Raju Pandey Ji
#छिलुक
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी हिंदी और कुमाउनी भाषा के शीर्ष रचनाकार हैं, हिंदी और कुमाउनी के उनकी कईं पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी हैं, एक कार्यक्रम में दिल्ली में उनसे मुलाकात हुयी, गजब प्रभावशाली और उर्जात्मक
ब्यक्तित्व। मुलाकात के दौरान उन्होंने स्नेह से अपनी एक पुस्तक "छिलुक" (कुमाउनी उपन्यास ) मुझे भेंट
दी।
"छिलुक" कुमाउनी भाषा में लिखा गया उपन्यास हैं, जो कई सामाजिक कुरीतियों पर करारा व्यंग करता हैं,
उत्तराखंड के रीती रिवाजों को बहुत सुन्दर तरीके से लोगों के सामने रखता है और उत्तराखंड के लोगों के द्वारा
विकास के अभाव में झेली जा रही कठिनाइयों को बहुत बारीकी से रेखांकित करता हैं।
रिश्तों को कैसे बनाया और जिया जा सकता है इसके लिए कुछ पात्रों को बड़ी कुशलता से गढ़ा गया है, किसान देव,
हंसा दत्त, पुष्पा और हरदत्त के माध्यम से मानवीय जीवन के आदर्शों को स्थापित किया गया हैं, "तुम जवैं लै
हया और च्यल लै हया", ये एक वाक्य रिश्तों की प्रगाढ़ता को नूतन रूप देता है। उपन्यास में बहुत से घटनाक्रम
पाठक की आँखों को भिगो देते है, बेटे (कैलाश) की नौकरी का समाचार और मां का कहना "आज मेरी आँखा कि जोत बढ़ि
गे च्यला", छोटे बेटे (हेमू ) को बुआ पुष्पा के घर पढ़ने भेजने के फैसले पर उसकी मां (सरु) का कहना "यतु नान
भौ कैं अल्लै बै बनवास नि करो भै, मि मरि जूल", पुष्पा का अपने मायके की तारीफ में कहना "म्यार मैतौड़ सबूं
है भल" और पुष्पा के पूछने पर कैलाश कहाँ है उसकी मां का जवाब "दा यफ्नै डोई रौ हुनल कैं" पाठकों के चेहरे
पर मुस्कान ले आता है।
बुबु का अपने परिवार के लिए स्नेह रोमांचित करता है और पाठक को उसके बचपन में ले जाता है, "बुबु तुमार खलेति
में बै एक टॉफी निकाई ल्यूं " और "जा नतिया आपणी पाटि-दवात ल्या" जैसे वाक्य कथानक को सजीव कर देते
हैं।
काण्डपाल जी ने पहाड़ों की सबसे बड़ी समस्या "शराब" और उसके दुस्प्रभाओं को कथानक और पात्रों के माध्यम से
लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया है, "कतू बोतल ल्यैह रौछे रै मधिया?" और "ऐ गछा सालो आपणी औकात पर"
शराबियों की मानसिकता को दर्शाया है दूसरी तरफ शराबी पति से परेशान महिला द्वारा शराब बैचने वाले को "हौ
नरुवै कि कूड़ि कैं आग लै जाल" गाली देना उसकी पीड़ा को प्रदर्शित करता है, शराब की लत से अपनी अच्छी जिंदगी
लोग तबाह कर रहे है।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी ने बड़ी कुशलता के साथ इस रचना के माध्यम से शिक्षा की महत्वा को उजाकर किया है,
किसन देव् द्वारा अपनी बहू को पढ़ने के लिए प्रेरित करना उत्तराखंड समाज की एक सभ्य तस्वीर दिखाने और शिक्षा
के प्रचार का बेहतरीन तरीका जान पड़ता है, "पढ़ी लिखी काम औछ, कभै ख्वाड नि जान" और "बाज्यू शिक्षा यसि चीज छ
जैकै कवै चोरी नि सकन, जैक बटवार नि है सकन" जैसे वाक्य रचना को दूसरा आयाम दे रहे हैं।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी बड़ी निर्भीकता से सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का विरोध करते हैं, "छिलुक" में भी
उन्होंने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार किया है और बताने का प्रयास किया है की शिक्षा के द्वारा
बेहतर जीवन यापन किया जा सकता है, एक प्रसंग में पंडित जी कहते है "जतू दान बामण कै दयला उ सिद स्वर्ग में
तुमरि घरवाई क पास पुजौल", एक दूसरे प्रसंग में हंसा दत्त, किसन देव को मजाक में कहते है "ठीक हौय पै तू बन
भोव बै डंगरी और मी करनू बामणचारी"।
सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के विरोध के साथ महिला सशक्तिकरण को सफल बनाने की अपनी भावनाओं को काण्डपाल जी
ने बखूबी निभाया है, वो "मुंडन और गत करण क विधान शास्त्र में केवल च्यला कैं छ" के जवाब में लिखते हैं
"शास्त्र लेखणी मैंस छी। उनुल क्ये लै बात स्वैणियां है पूछि बेर नि लेखि"
काण्डपाल जी ने उत्तरांचल की पीड़ाओं को कुशल शिल्पी की तरह अक्षर चित्रों से पाठकों के ह्रदय पटल पर उकेर
दिया है।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी को इस सुन्दर रचना "छिलुक" के लिए असीम शुभकमनाएं, उम्मीद है आपके द्वारा जलाया गया
यह "छिलुक" अपनी रोशनी से बहुत से लोगों को सद मार्ग दिखायेगा।
~ राजू पाण्डेय
बगोटी - चम्पावत (उत्तराखंड)
यमुनाविहार (दिल्ली)
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शहर में भी गांव हूँ मैं
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भीड़ है बहुत दिखता तन्हा हर इंसान हैं
एक दूजे से मुँह फुलाये खड़े मकान हैं
सूरज को भी जगह नहीं झांक पाने की
फुर्सत किसे, दूजे की देली लांघ जाने की
फिर भी पड़ोसी से पूछता हाल हूँ मैं
शहर में भी गांव हूँ मैं।
पड़ती बड़ी गर्मी, बूंद को पंछी तरसते हैं
बड़ी मुश्किल यहाँ, कभी बादल बरसते हैं
पपीहा कहाँ, जिसको तलब हो बूंद पाने की
दिखती नहीं बच्चों में हरसत, भीग जाने की
फिर भी बनाता कागज की नाव हूँ मैं
शहर में भी गांव हूँ मैं।
पकवान है विविध, क्या आलीशान शादी है
ट्रैफिक जाम में फसी, सुना बारात आधी है
लगी एक होड़ सी है, टिक्का पनीर पाने की
जल्दी पड़ी है सबको खा कर के जाने की
बारात के आने के इंतजार में हूँ मैं
शहर में भी गांव हूँ मैं।
सब सोचते है उसका, ओरौ से मुकाम ऊंचा है
दौलत नहीं है पास जिसके, इंसा भी नीचा है
लगी एक दौड़ सी है, बस दौलत को पाने की
किसी को फिक्र ना "राजू", दिलों के टूट जाने की
सबको दुवा सलाम करता हूँ मैं
शहर में भी गांव हूँ मैं।
~राजू पाण्डेय
ग्राम - पो. बगोटी (चम्पावत) - उत्तराखंड
यमुनाविहार - दिल्ली
#आंगनकेपाथर
पैर जैसे ही पड़े आंगन में बरसों बाद
एक एक पाथर मचल उठा, सुबक पड़ा
उसके आने के अहसास से
ये तो वही पैर थे जो बरसों पहले
बच्पन में दिनभर धमाचौकड़ी करते थे
आंगन के इन पाथरो पर
और कभी कमेड या छोटे पत्थर से
लिखते इन पर अ आ इ ई, १ २ ३ ४
कभी पिठ्ठू, कंचे, गिल्ली डण्डा खेलते
कभी बैट बॉल घुमाते थे इसी आंगन में
कभी ईजा के साथ लीपने में लग जाते
गाय के गोबर से नन्हे हाथों से
तुरन्त उखाड़ फेकते थे
कहीं भी घास उग आये आंगन में
एक तरफ़ सूखते रहते थे अनाज और दालें
और एक कोने में बँधी होती थी दुधारू गाय
फिर अचानक बंद हो गयी पैरों की चहलकदमी
और अकेले रह गए
बंद मोल के साथ आंगन के पाथर
धीरे धीरे उगने लगी घास और
हावी हो गयी कटीली झाड़ियां
दरवाजे में लगे संगल ने भी निराश हो
छोड़ दिया था दरवाजे का साथ
दीमक लगा दरवाजा खड़ा था किसी तरह
शायद उनके आने की प्रतीक्षा में
उसके पैरों के साथ कुछ और पैर थे
कुछ नये पैर थे तो कुछ पुराने
पाथर जो पैर पैर से वाकिफ थे
बैचेन हो गये उन पुराने पैरों को ना पाकर
जो अचानक गायब हुये थे इन्हीं पैरों के साथ
शायद वो फिर लौट कर ना आये
पाथर खुद को संभालते बुदबुदाये
लौटकर आने वालों में कुछ नन्हें पैर भी तो है
शायद फिर से लौट आये वो पुरानी रौनक
और फिर शुरू हो जायें इस आंगन में
पिठ्ठू, कंचे, गिल्ली डण्डा, बैट बॉल के खेल
फिर सजाने लगे हम पाथरों को
लिखकर अ आ इ ई, १ २ ३ ४
~ राजू पाण्डेय
ग्राम - पो. - बगोटी (चम्पावत)
उत्तराखंड
दवा
दवा अभी आयी नहीं, कोसे कुछ बड़बोल
"राजू" जलन हावी भयि, बिकन लगा बरनोल।।
कोरोना
कोरोना ले भरि के घेरी, गरीब जनता अति लचार हैरे
भैर बठे मैसो की रोज, घरो खिन जब भजभाज हैरे
रोटा खिन राख्या पैसा ले, बुक करनी प्राइवेट कार हैरे
बसों किराया डबल करि, उत्तराखंडे गजबै सरकार हैरे।
-- राजू पाण्डेय
#नमन
अभी घंटा भर पहले ही तो
बॉर्डर से
आई लव यू बोला था
और चूमा था माथे को
वीडियो कॉल पे
बोला था रखना ईजा, बाबू
और बच्चों का ध्यान
फिर शाम को बात करूँगा
ये तो कहा ही नहीं
तू ही रखना अकेले
अब ध्यान सबका
बोल दो! बोल दो! ना भईया
झूठ है जो तुमने कहा
"वो अब नहीं रहे !"
😢😢😢😢😢
~ राजू पाण्डेय
◆कुमाउनी इंटरव्यू● हमार कुमाउनी रचनाकार【
""""""""""""""""""""""
~मित्रों कुमाउनी इंटरव्यू सीरीज में, आज मैं संक्षिप्त परिचय ल्हीबेर ऐरयूँ हमार वरिष्ठ साहित्यकार श्री
पूरन चंद्र कांडपाल ज्यूक। इनर जन्म 28 मार्च सन 1948 हूं ईजा श्रीमती हंसी कांडपाल व बौज्यू श्री
बी.बी.कांडपाल ज्यू वाँ ग्राम-खग्यार, पिलखोली (राणिखेत) में भौ। पूरन चंद्र कांडपाल ज्यू दिल्ली में रहते
हुए हिंदी'क दगाड़-दगाड़ै कुमाउनी बोलि भाषा विकास में लै आपण महत्वपूर्ण योगदान दिण लाग रयी। हिंदी और
कुमाऊनी में इनार द्वारा रची लगभग द्वी दर्जन हैं जादे किताब छन्। यौ काल्पनिक लिखण हैं भल वास्तविकता लिखण
में विश्वास करनी। अंधविश्वास और दुर व्यसनों विरोध में मुखर हबेर लिखणी काण्डपाल ज्यू आर्मी'क स्वास्थ्य
शिक्षका'क पद बटी रिटायर छन। प्रस्तुत छन इनन दगै हई बातचीता'क कुछ अंश...
सवाल01◆ जनून आपूं प्रभावित भछा उ तीन मनखीनों नाम बताओ?
जवाब● इज,बाबू और सन् 1962 में मिडिल स्कूल कुनेलाखेताक् हेड मासाब दिवंगत मथुरादत्त मठपाल।
सवाल02◆ रचना धर्मिता कब बटी और कसिक शुरू भै? आपूं हिंदी में लिखछा फिर कुमाउनी लिखनकि प्रेरणा काँ बटी
मिलै?
जवाब● 23 सालैकि उमर में सन् 1971 कि लड़ाई में कलमक् जनम बंकर जमीन भितेर भौ। कुमाउनी में लिखण पाठकों'क
अनुरोध पर करौ।
सवाल03◆ आपुण लोकप्रिय मनखी को छन?
जवाब● महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, सुंदर लाल बहुगुणा और लै भौत।
सवाल04◆ अछा आपुण खास शौक के-के छन?
जवाब● अध्ययन और हिंदी कुमाउनी साहित्य सृजन।
सवाल05◆ आपूंल कुमाउनी साहित्याक् लगभग सबै विधा'न् में लिखि राखौ। लेकिन हम आपूं कें मूल रूपल के मानि सकनू
और आपुणि लिखणैकि मन पसंद विधा के छ?
जवाब● सबै विधा मनपसंद छन क्वे कम न क्वे जादे। कलम घिसणीं छूँ महराज साहित्य'क एक सिपाही कै सकछा।
सवाल06◆ आपुण जिंदगी'क एक यादगार किस्स बताओ जो सबन दगै साझा करण चाला।
जवाब● उसिक तो जिंदगी में भौत सारै याद छन पर मैं आपूं कें उ यादगारी बतूं जो म्यार दिलो दिमाग में विशेष
रूपल बसि रै। सन 1971 क युद्ध में मेरि उमर 23 साल छी। 14 दिनैकि लड़ैं भै। लड़ैं बाद जो बौडराक गौं छी हमन
कैं वाँ जाणोंक आदेश मिलौ। मैं कें जोंगा गाड़ी दगै एक ड्राइवर मिलिछी। हम आपण हाथ में एक निशाण बादिबेर
जांछी तो लोग समज जांछी यौ हमौर ईलाज करण हूँ ऐरौ। गौं में जाबेर देखौ तो भौत लोगों कें काफी चोट आरै। उनरि
दरदवाई करै और जनन कें गंभीर चोट छी उननकें सही जाग पुजोंनक बंदोबस्त करौ। हम दिन भर वाँ रूछियां और कयी दिन
तक जाते रयां तो बाद में वाँ लोग आपस में हमार बा्र में कूंछी कि यौ जाणी कां बटी अवतार ल्हीबेर धरती में
ऐरी। उ लोगनक् जो प्यार और स्नेह मिलौ मैं आज लै न भुलि रयी उकें, जबकि यौ बात कें सन् 71 बटी यतू साल है
गयी।
सवाल07◆ आपुण जिंदगी में सबन हैं ठुलि खुशीक छण को छी?
जवाब● जब च्यल एनडीए में चयनित भौ। आज उ सेना में सीनियर अधिकारी छ।
सवाल08◆ क्वे यस काम जो आपूं समजंछा अगर यौ है जांछियो तो भौत भल हुंछी?
जवाब● कुमाउनी भाषा में व्याकरण'कि किताब लिखण चानूं।
सवाल09◆ वर्तमान में के रचनौछा और आपुणि ऊणी वालि क्वे रचना?
जवाब● मैं ऐल कुमाउनी भाषा में व्याकरण पर काम करनयूं और यै अघिल ऊणी वालि रचना छ मेरि।
सवाल10◆ साहित्य लिखण और पढन जरूड़ी किलै छ?
जवाब● सहित्यक् अध्ययन और सृजन मनखी कें पूर्ण मनखी बणों। बिना अध्ययनै मनुष्य अपूर्ण छ।
सवाल11◆ आपुण हिंदी और कुमाउनी'क प्रिय लेखक को-को छन? एक-एक नाम बताओ?
जवाब● हिंदी में मुंशी प्रेमचंद और
कुमाउनी में शेरदा अनपढ़।
सवाल12◆ टीवी में आपूं के देखण भल मानछा?
जवाब● समाचार, अंधविश्वास पर वार्ता और विज्ञान वार्ता।
सवाल13◆ पहाड़ी भोजन में आपूं के खाण् पसंद करछा?
जवाब● सब पसंद छ हरी साग समेत।
सवाल14◆ नवोदित लेखक, रचनाकारों हूं आपूं के कूंण चाँछा?
जवाब● लेखन श्रम करो, पुराण लेखकों कें पढो,विनम्रता भौत जरूड़ी छ। चमचागीरी, जुगाड़बाजी और झुटि तारीफ
करणियां धैं बचिया। साहित्य में सबै विधाओं पर लिखी जाण् चैंछ। बेझिझक गिज खोलिया।
सवाल15◆ उत्तराखंड बणी 20 साल है गई लोकभाषा साहित्य और संस्कृति विकास में उत्तराखंड सरकार कें 10 में हैं
कतू नंबर देला?
जवाब● 2012 बटी घट बा्ंज हैरौ, विभाग असफल छ। गैरसैंण राजधानी नि बनि, मुजफ्फरनगरा'क नरपिशाचों कैं सजा नि
मिलि जनूल हमरि मातृशक्तिक अपमान करौ, पलायन नि थम और देवभूमि शराब व भ्रष्टाचार भूमि बनि गे। जोकि दुखद छ।
उत्तराखंड सरकार कें 10 में 3 नंबर उलै मन मारि बेर।
सवाल16◆ आपूं कर्मकांड, बिभूत जागर,छुआछूत और बलि प्रथा व सुर शराबाक धुर विरोध में लिखछा अच्छा यौ सब चीजन
कें आपूं आपण घर में नि मानना। किलै?
जवाब● य सब अंधविश्वास छ। यैक माध्यमल लोग भैम फैलूनी। य मिलीभगतल लोगों कैं डरै बेर परेशान करणक सुनियोजित
धंध छ। भगवद गीताक संदर्भ में देखी जो। उत्तराखंड में मसाण केवल स्यैणियां पर किलै लागूं, मैंसू पर किलै नि
लागन ? च्येलि - बेटि - ब्वारियों कैं शुरु बै डरै बेर धरी जां वां, ताकि मसाण उद्योग बंद नि हो। शराब आत्मा
और शरीर, घर, समाजक नाश करीं। कुछ कवि शराब पी बेर कविता पाठ में शराबक विरोध करनी। यास डबल चरित्रों है बचण
चैंछ और इनुकैं दूर धरण चैंछ। सरस्वतीक वरद पुत्र शराब, धूम्रपान, गुटका, नश् हैं दूर रूनी।
सवाल17◆ अछा आपुण हिसाबल भगवान हुनेर भया या न?
जवाब● भगवान निराकार छ, सर्वत्र छ और सर्वशक्तिमान छ। उ धर्मस्थलों में नि रौन । उ घट-घट वासी छ। भगवान कैक
बदन या शरीर में अवतार न ल्हिन।
सवाल17◆ आपूं हर रोज नियमित रूपल सोशल मीडिया में लिखछा और पोस्ट करछा यतू कटिबद्धता अनुशासनाक बार में लै
बताओ धैं?
जवाब● लेखन और अध्ययन तपस्या छ। सोसल मीडिया में पांच शीर्षकों में लगभग 10 साल बटि लेखनू - खरी खरी, मीठी
मीठी, ट्वीट, दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै और बिरखांत। म्यार आँखर लोगों कैं ठीक लागनी और लोग इंतजार लै करनी।
लेखन में तपस्या करण हइ। म्यार आलोचक और पाठक म्यार मार्गदर्शक छन।
सवाल18◆ अछा आपूं द्वारा रची-लिखी भौत किताब छन कुछ विशेष किताब'नक जिक्र करो धैं जरा?
जवाब● हिंदी में 17 किताब छन~ बचपन की बुनियाद, कारगिल के रणबांकुरे, स्मृति लहर, ये निराले, जागर, शराब
धूम्रपान, इंडिया गेट का शहीद आदि किताब ज्यादा लोकप्रिय हई ।
कुमाउनी में 13 किताब छन~ महामनखी, सांचि, छिलुक, बटौव, मुकस्यार, उज्याव, लगुल, हमरि भाषा, यूं किताब विशेष
छीं।
सवाल19◆ आपण जिंदगी'क मूल मंत्र कि छ?
जवाब● कर्म करो, बस एक मंत्र। भगवान वीकि मदद करनी जो श्रम करूं। सबै किस्मक नश हैबेर दूर रौण चैंछ।
सवाल20◆ लेखन कार्य करते हुए आपूं कें आज तक के-के सम्मान और पुरस्कार मिलि रयी?
जवाब● पुरस्कार और सम्मान लेखक'क हौसला बणूंनी। उसिक तो भौत सारै सम्मान मिलि रयी लेखन कार्य करते हुए पर
कुछ खास यौ प्रकार'ल छन१)'आचार्य चतुर सेन सम्मान', २)राष्ट्रीय सहारा का 'प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान',
३)साथी एवं उपवन पत्रिका से 'कृति सम्मान', ४)हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार का 'बाल किशोर साहित्य सम्मान'
2009,५)सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली- 'गिरदा साहित्य सम्मान' 2018, गंगा मेहता स्मृति सम्मान पहरू अल्मोड़ा
2013, 'कलश साहित्य सम्मान' 2014 नई दिल्ली, बहादुर सिंह बनोला स्मृति सम्मान पहरू अल्मोड़ा 2014, महाकवि
'कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान' 2016 लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली, हिमालय गौरव सम्मान 2018 पर्वतीय लो
वि समिति दिल्ली आदि।
सवाल21◆ अक्सर लोग यौ कूंनी हमन् धैं कि तुम शहरन् (भाबर) में बसिबेर पहाड़ बचूंनकि बात किलै करछा?कि
कौला।
जवाब● एक ड्यार पहाड़ में, एक ड्यार दिल्ली में छ। इज - बाबुक गुजरणा बाद पहाड़ जाण कम हैगो। वां रुजगार
मिलन तो को छोड़छी पहाड़? विगत 10 वर्षों में 5 लाख लोग निकली गईं पहाड़ बै मैदानी क्षेत्रों कि तरफ। वां
दूर - दराज में बुनियादी सुविधा न्हैंतीन। बी पी एल क दान'कि जिंदगी के नि हइ। कब तक य बी पी एल दान चलल? ये
में खुद्दारी कि खुशबू नि हइ। 20 साल में 10 राज, लोग उसै-उसै। नामकि देवभूमि और शहीद भूमि, पर बनैदी शराब
भूमि। भ्रष्टाचार टिहरी डैम है लै ठुल।
सवाल22◆ क्वे यसि बात जो मैंन पुछि न और आपूं सब लोगन दगड़ी साझा करण चाँछा?
जवाब● मैं 1971 में हैई 14 दिन'क युद्ध नि भुलि सकन। ये है अलावा लै मैं और द्वि दिन नि भुलि सकन एक- 26
जनवरी 2006 - मरण बाद देह -दान'क फार्म भरौ और 26 जनवरी 2016 - उत्तराखंड में एक रात एक शिल्पकार'कि घर में
गुजारी और जलपान लै करौ। य बातक दुख छ कि उ दिन कुछ सवर्णोंलन मैं दगै हात न मिलाय जसी मैंन क्वे ठुल पाप
करि दी हुनेल।
सप्रेम धन्यवाद सादर
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★प्रस्तुति◆राजेंद्र ढैला काठगोदाम।
मदर्स_डे
मां के हाथ के छाले
और
पैरों में पड़े चीरों में
शायद दर्द ही नहीं होता था
जब भी सामने आती
वही मुस्कुराता चेहरा..
खुरदुरे हाथों से
मसार कर गाल हमारे
लगा देती थी चारों ओर हमारे
अपने आशीर्वाद का पहरा...
सिर के बिचो बीच से
गायब होता बालों का झुंड
ढोकर लकड़ी, घास के बोझे..
ये फुट क्रीम, फेस क्रीम
एन्टी डैंड्रफ शेम्पू
होती ही नहीं थी
या पहुँच में नही थी
थपोड लेती सरसों का तेल
बालों में, मुँह में, हाथों और
फटी एड़ियों में भी...
ईजा, रोज हर गाश से पहले
सोचती है बच्चों को
बच्चों के याद करने को
समझ जाती हैं बाटुली से..
हर छोटे दर्द में भी
स्वतः निकल आता है, ओ ईजा!
और हर दर्द का इलाज है
ईजा का प्यार से सिर मसारना..
जीवन मे ईजा के उपकार इतने
"राजू" लेखनी में समा नहीं सकते
मनाये रोज मदर्स डे
फिर भी ऋण चूका नहीं सकते।।
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शब्दार्थ :
मसार कर - प्यार से सहलाना।
थपोडना - ज्यादा सा लगा लेना।
गाश - निवाला। ईजा - मां।
बाटुली - हिचकी।
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~राजू पाण्डेय
बगोटी - चम्पावत
यमुनाविहार - दिल्ली
शराबी और आशिक
लॉकडाउन में शराबी और आशिको का एकै हाल है ग्यान
एकैका पव्वा, दोसरा का दगाडिया बिजारी हाल बेहाल है ग्यान।।
कबै चीन मे, कभै जमाती मे, कभै सरकार मे भड़की रयान
दुव्वै दिन भरी दाज्यू बिन पानी, माच्छा न्याति तड़पी रयान।।
एक बार बार फ़ोन देखनो, एक थे खाली आब चखनी रैगे
शराब और सोना बाबू, पहाड़ा विकासे झे धौ देखनी हैगे।।
येकैको ठेको ना खुल नयो, एकै की सोना बाबू फ़ोन ना उठूंने
तब तब खूब गलूनयान, जब जब सरकार लोकडाउन बढूंने।।
एकैले बोतल खक्वाली हाली, जसे उत्तराखंडौ खजानो हैगो
एक रिचार्ज त करनो उइको, पर बात करि जसे जमानो हैगो।।
कति दिनो बठे कुंने थोड़ी देर में फ़ोन करनू, चुनावी वैदा हैग
एक सोचनो चुनाओ में बोतल बाटनया नेता हामुरो कौं कैद हैग।।
दिन भरी बैचेन दुवै, कभै आंगन में कभै पाखा में जानन्यान
लेकिन दुव्वै दिन रात भितरे रेबैर दाज्यू कोरोना हरुण्यान।।
यो दिन ना देखना हूनो
अगर हामरौ हक,
हामरी जमीन में मिली गयो हूनो
दाज्यू यो दिन ना देखना हूनो।।
हामु हामरौ स्कूल, हामरा अस्पताल
दयू रोटो जुगाड़, साफ पानी ताल
बुढया कालो आराम, नन्तिना खेलनया खाल
सब पैले वाई मिल गयो हूनो
दाज्यू यो दिन ना देखना हूनो।।
गुनी बानरों टोक हुनी, शराब में रोक हुनी
चकबंदी घेरी हुनी, दूध बेचन खन डेरी हुनी
वैज्ञानिक बिधि ले खेती हुनी, सोच मनी सेती हुनी
गडा गड़ा में गूलो पानी हूनो
दाज्यू यो दिन ना देखना हूनो।।
बिजली चमचमाट हुनी, गाड़ी घुरघुराट हुनी
दूर संचारे तार हुनी, स्कूल में चेली कतार हुनी
घर घरों में गैस हुनी, घरे घर कसी ऐश हुनी
गर्भवती नंतिनि बचली कूनो पूरो विश्वास हूनो
दाज्यू यो दिन ना देखना हूनो।।
रोटो भातो ना झगड़ो हूनो, भाईचारा तगडो हूनो
गौं घरे थें सोच्यो हूनो,आपना ह्के थे लड्यो हूनो
बाटा घाटा में रोक्यो हूनो, नेता केलेे टोक्यो हूनो
वोट आपनो ना बेच्यो हूनो
दाज्यू यो दिन ना देखना हूनो।।
ठेका खोलनाको करि दी विचार
एक बठि कोरोना मार,
मलि बठे भितरे भीतर कमी हैगो अहार
तुमरो भलो होलो हो मोदी ज्यूँ दयू घंटा थे ले
ठेका खोलनाको करि दी विचार।
उई बिजारी अंग्रेजी बोलनो भूलि गया
बस पहाड़ी भाशा को है रो संचार
बिन पिये आवाजे ना निकलने हो
लागनो पड़ी गया बीमार
तुमरो भलो होलो हो मोदी ज्यूँ दयू घंटा थे ले
ठेका खोलनाको करि दी विचार।
कुछ भाई लोग एकला खोड़ी रयान
नीन ना उनने बल, है रौला बीमार
दयू घुट लगा बैर सी रुना
उनुकवे खयाल राखी कर ली बिचार
तुमरो भलो होलो हो मोदी ज्यूँ दयू घंटा थे ले
ठेका खोलनाको करि दी विचार।
सैनीटाइज़र में अल्कोहल हूंचा
रोज खूब बतूननयान समाचार
एक बैर ये वायरस के पैवा बैर देखनु
की पतो ये ले हैजो कै सुधार
तुमरो भलो होलो हो मोदी ज्यूँ दयू घंटा थे ले
ठेका खोलनाको करि दी विचार।
वादो छ भितरे पिन खोड़ी रुना
भैर पन ना करू कचार
देशो ले भलो होलो हो मोदी ज्यूँ
इकनॉमी ले ना हो लचार
तुमरो भलो होलो हो मोदी ज्यूँ दयू घंटा थे ले
ठेका खोलनाको करि दी विचार।
धरा का श्रृंगार
देख धरा का श्रृंगार
लग रहा है स्वर्ण काल है
धरा और गगन के मिलन का
हट गया है धुंध का पर्दा
निहार पा रही धरा एकटक
अपने नीले आसमान को...
सोलह कलाओं से परिपूर्ण चाँद
उड़ेल देना चाहता है
सारा नूर धरा पे...
मानो हर रात हो
शरद पूर्णिमा की रात
बरसाना चाह रही है अमृत
बस कोई बना रख दे खीर छत पे...
तारे चमका रहे और अपनी चमक को
मानो इसी वक्त के इंतजार में
बिचर रहे हो आसमां में...
पेड़ जैसे गंगा में डुबकी लगा
मस्ती से हिला रहे
अपनी धूल विहीन पत्तियां
कोई सुंदरी गीले बालों को
ज्यूँ झाड़ती हो...
मुस्कुराती धरा देख
खिल उठे है गाढ़े रंगों से सुज्जित
सुगंधित पुष्प नाना
फैला दी खुश्बू चहुं ओर धरा का इत्र बन...
दूर तक निहार पा रही नजरें
धरा का अनुपम श्रृंगार देख
लगता बड़ी फुर्सत से
खुद सुसज्जित किया है धरा को
सौंदर्य की अधिष्ठात्री देवी रति ने...
मैं अपलक निहारते सौंदर्य पर मुग्ध
एकाएक कर्णपटिका में मेरी
गुनगुनाया हवा के झोंके ने
"राजू" भाती है ऐसी श्रृंगरित धरा
और चमचमाता नीला आसमान
तो बिगड़ने पाये ना ये श्रृंगार
सब मिलकर जतन "करो"ना...
प्रकृति से फिर ना करनी पड़े गुहार
"करो"ना "करो"ना
कभी फिर दूबारा ना रोकना पड़े
प्रकृति को सबकुछ
करने को धरा का श्रृंगार।
कोरोना भाग जायेगा
सब मिलकर करो कमाल, कोरोना भाग जायेगा
सब घर में रहो फिलहाल, कोरोना भाग जायेगा
बस बोर नही होना है, हाथों को जम के धोना है
टूटेगा अब इसका जाल, कोरोना भाग जायेगा।।
तू भी चल मोदी की चाल, कोरोना भाग जायेगा
गरीबों में बांटों थोड़ा माल, कोरोना भाग जायेगा
नहीं किसी को खोना है, नहीं भूखा कोई सोना है
ये ना बने किसी का काल, कोरोना भाग जायेगा।।
सेवा में लगे देश के लाल, कोरोना भाग जायेगा
ना हो ये देश मेरा बेहाल, कोरोना भाग जायेगा
बस घर में ही रहना है, "राजू" थोड़ा तो सहना है
खाली नही बजाने गाल, कोरोना भाग जायेगा।।
बिन सुजाये जानी रै
खट खट सेंडिल बजूनि
बिन सुजाये जानी रै
कुंछी त्वै बीजारी बचूं ना
बिन पच्यानै जानी रै।
चमचमानी म्याली मुखड़ी
आब भौं भली के तानी रै
मौ तौपा जसि उक्की वानी
तितो करेलो मानी रै।
जैकी थे मि गौं में रयुं
शैद समझ मेरी कानी रै
उकै सुजुना मनुना मेरी
ब्या की उमर जानी रै।
छोड़ी गै हो मझधार मिकै
उत बड़ी सयानी रै
भलो कमुन्या परदेशी देखि
"राजू" बिन बताये जानी रै।
खट खट सेंडिल बजूनि
बिन सुजाये जानी रै
ब्याली तकैकि मेरी मधुली
मया तोड़ी बै जानी रै।
बादलों की बैचेनी!!
आज बादलों की बैचेनी कुछ खाश है
न जाने क्यों धरा को इतनी प्यास है
तड़ तड़ गिरी, जमी आँखें बादलों की
लगता है उसका सब्र फूटा आज है ।
देख लगा आज इंद्रधनुष भी उदास है
सिहर कर दुबकी जगह जगह घास है
गिरे फूल पत्ते उजड़ी रौनक डालों की
लगता है फसलों पर निकली भड़ास है।
किसी का मनोरंजन, कोई हुआ बर्बाद है
बादलों की बैचेनी पर लग रहे कयास है
"राजू" लगती ये हमारी गलती सालों की
देख नजारे ये, दिल से निकला काश है ।
उसे फिर से बुनना है
खती ये अँधेरी सी शाम है
अभी करना बहुत सा काम है
अभी वो कुछ भी कहें, सुनना है
जगह जगह से उधेड़ रखा है
उसे फिर से बुनना है
दूर से जो दिखते रसीले आम हैं
अंदर कुछ में कीड़े तमाम हैं
बस आँखें खोलकर चुनना है
जगह जगह से उधेड़ रखा है
उसे फिर से बुनना है।
सर्वधर्म समभाव वृक्ष प्यारा है
लगाया किसने जड़ पे आरा है
ढूँढ़ना है उसे जो घुनना है
जगह जगह से उधेड़ रखा है
उसे फिर से बुनना है।
रंगहीन पानी हुआ काला है
हवा तो ज़हर का प्याला है
लगायें पेड़, नहीं जंगल धुनना है
जगह जगह से उधेड़ रखा है
उसे फिर से बुनना है।
कुर्सी इंसा की, गधों का बोलबाला है
जिधर दलिया, बदले उधर ही पाला है
अब हमें "राजू" नायक चुनना है
जगह जगह से उधेड़ रखा है
उसे फिर से बुनना है।
त्वे बठे जो मया लागि
एक तरफे बयालो हैरो, फट्याला लगुनो ना
त्वेै बठे मया लागि, कसे घरवाला बतुनो ना।
दिन भरी हिक हिक, येति बाटुली लगुना ना
तेरी मेरी बीचे की बात, सबो के बतुना ना।
यो जवानी दिन बार, बिन तेरा काटिनी ना
त्वै बठे जो मया लागि, यो मया बाटिनी ना।
तेरी मुखडी देखि, कोई मुखडी जमनी ना
रात दिन ऊं तेरी याद, तेरी याद थमनी ना।
तुई मेरा हिया बसी रै, और कवै तलाश ना
झटआ तैरो हाथ मांगनू, हवै तू निस्वास ना।
बाजैघाजा बै ब्या लीजुनु, रवै तू धदधाद ना
हाथहाथा में रौली “राजू”, हवै तू उधास ना।
शब्दार्थ :
बयालो - हवा
ना - नहीं
फट्याला - चादर से
हवा देना
बतुनो - बताना
हिक हिक - हिचकी
की आवाज
येति - इतनी
बाटुली - हिचकी
बाटिनी - बंटती
जमनी - पसंद
ऊं - आती है
थमनी - रूकती
झटआ - जल्दी
आकर
निस्वास - उदास
रवै - रोना
धदधाद - ऊँची आवाज में
चुनाव
लोकतंत्र के क्षितिज में
ये चुनाव गजब ढा रहे हैं
कसी का अर्श से फर्श में
किसी को फर्श से अर्श में ला रहे हैं।
ये नेता भी गजब हैं
रोज नये नये स्लोगन ला रहे हैं
खुद की बीबी को,
युवाओं के दिल की घड़कन बता रहे हैं।
नेता नाए यग में भी
वही परानी कारीगरी दिखा रहे हैं
अपने महल को चाहिए ईंटें
ईटों के लिए मंदिर-मस्जिद को लड़ा रहे हैं।
ये कुर्सी की लालसा कैसी
शूरों के शौर्य पर भी प्रश्न उठा रहे हैं
इक्कीसवी सदी में भी
विरोध में सरकारी वाहन जला रहे हैं।
'राजू' हम भी कहाँ कम हैं
कीमत वोट की खुद गिरा रहे हैं
खरीद सकते हैं सहाना कल जिससे
कीमत उसकी एक बोतल लगा रहे हैं।
उसकी चिंता
सोचा मैंने !
मैं शामिल हो जाऊँ
उसकी चिंता में
समर्थन दे आऊँ
मौन ही सही
मगर उसकी चिंता अलग है
खुल के बता नहीं सकता ।
उसकी चिंता है
अपनी काली कोठरी बचाने की
जिसमें बना दिए रौशनदान
एक फकीर ने
जाने लगी है
रौशनी हौले हौले
जिसमें कैद विचारों को
भेद से परे
मिलने लगा है उजाला
नई सोच का ।
उसकी चिंता है
अपने पिंजड़े को बचाने की
जिसका दरवाजा खोल दिया
एक हवा के झोंके ने
उड़ने लगे है
कैद पंछी हौले हौले
दिखने लगा है
उन्हें खुला आसमान
और मनाने लगे है जश्न
उड़ने की आजादी का।
उसकी चिंता है
बचाने की अपना वो महल
जिसकी टपकने लगी है
आडम्बर की छत
झूठ पर टिकी दीवारें
दरकने लगी है हौले हौले
जिसे समझते थे अपना आसमान
दिखने लगा सूरज नया
है नहीं कोई उपाय चिंता के सिवा
बचने का इस तपिस से।
वो एक दूजे पे . . .
वो एक दूजे पे नकाब में होने का इल्जाम लगाये बैठे है
कई है जो उनके इल्जामों को हथियार बनाये बैठे है
वो सेक रहे है अपनी रोटी सुनो! देश के कर्णधारो
देश के दुश्मन तुमारी आड़ में "राजू" घात लगाये बैठे है
-- राजू पाण्डेय
हाई मेरी मधुली ईजा
कभ्भे ठंडो पानी, कभ्भे गर्म त्वौ में पड़े झवाँ
कभ्भे सौरास स्वर्ग लागो, कभ्भे यो पड्यू में क्वाँ
कभ्भे बोलना पटानी ना, कभ्भे कतुक चूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप |
कभ्भे देबुता की सूलि, कभ्भे झपक सिन्नो ढांक
कभ्भे हर बात में हसी, कभ्मे ऊचो एकदम नाक
कभ्भे ह्यून आगा अंगेठी, कभ्भे जेठे दफोरी धूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप |
कभ्भे धीरज में पहाड़, कभ्भे चुमासे गाड़
कभ्मे तीखा कांडा, कभ्भे कुँली हरि झाड़
कभ्भे होशियारी सागर, कभ्भे भैंगाना वाली कूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप।
कभ्भे मंदिरे बत्ती, कभ्मे भड़की बने आग
कभ्मे लसपस खीर, कभ्भे तितो करेलो साग
कभ्मे दसेरी आम, कभ्भे निछबै खट्टो चूक
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप |
कभ्मे रंगीली चंगीली, कभ्मे मुख सुजायो भे
कभ्भे प्यारा आखर कती, कभ्भे मुख जमायो दै
कभ्मे जींस टॉप, कभ्भे “राजू” द्यु हाथे की झूप
हाई मेरी मधुली ईजा, हाई तेरा कतुक रूप |
शब्दार्थ :
त्वौ-त्वा
झवाँ - गर्म त्वै में पानी
डालने पर आने वाली आवाज
कवाँ - कहाँ
चूप - चुप्पी
देबुता की सूलि - देवता के
द्वारा जिससे झाड़ा
लगाया जाता है
सिन्नो ढांक - बहुत चुभने
वाली एक झाड़ी
कांडा - कांटा
चुमासे गाड़ - बरसाती नदी
कुँली -- कोमल
हरि- हरी
झाड़ - घास
भैंगाना - मेढक
कूप - कुंवा
दे - दही
झूप - घूँघट
नव वर्ष की अनेकों अनेक शुभकामनाएं
हर खेत उपजाऊ हो
हर डाल में बहार हो
खुशहाल हर गाँव और
भरपूर हर बजार हो।
शुद्ध साफ निर्मल जल
साफ साँस को बयार हो
धरा को अपनी स्वच्छ करने
हर हाथ खुद तैयार हो।
भूखा ना कोई मरने पाये
हर रोग का निदान हो
धर्म आस्था के साथ
फलता फूलता विज्ञान हो।
ना तुम छोटे ना बड़े बस
सबका एक ही आकार हो
भेद भाव मिटते ही जाएँ
अब राम राज साकार हो।
नव वर्ष मंगलमय बहुत
आपका हर सपना साकार हो
"राजू" ना दे, ना हो कष्ट कोई
जीवन सुख हर प्रकार हो।
#रोटी
वो रोटी दाल संग
कूड़े में पड़ी
बड़बड़ा रही थी
पॉलीथिन में बंद
सोच रही थी
काश! मैं किसी
गरीब के घर होती
इज्जत और
मान सम्मान
पा रही होती
किसी भूखे की भूख मिटा
उसके चेहरे में
खुशियाँ ला रही होती
या
फेंकने वाले ने
फेंका होता
बिना बांधे पॉलीथिन में
किसी
जानवर का
पेट भर रही होती
या सड़ खाद बन
पौधों के काम आती।
~राजू पाण्डेय
बगोटी (चम्पावत)
यमुनाविहार (दिल्ली)
# वो जालिम नहीं है#
वो सरकार है चिरकालिक नहीं है
वो रखवाला है पर मालिक नहीं है
किसी को घमंड यदि सत्ता का तो
खुदा के चाबुक से वाकिफ नहीं है।
मिलेगी सजा कब तारीख नहीं है
आएगा वक्त कोई वाकिफ नहीं है
मानते है सब अपराध उसका बड़ा
पर कहते अभी वह बालिक नहीं है।
गिरती है बूंदे पर वो बारिश नहीं है
नोचे है बालों को पर खारिश नहीं है
बदलते समय के है अब सोच गहरे
जलती बसें पर कोई वारिस नहीं है।
खड़े सर्दी गर्मी कोई तारीफ नहीं है
गाली देते रहे ये भी वाजिब नहीं है
पड़े है कुछ छींटे पुलिस पे भी मगर
वो दाग है पर वो कालिख नहीं है।
तोड़ना सिखाये ऐसी तालीम नहीं है
वो इंसा के दुश्मन में शामिल नहीं है
लेता है फैसले वो रख देश ऊपर
वो कठोर है "राजू" जालिम नहीं है।
विपक्ष
विपक्ष में छू हाम विरोधे करना
इन कसी सोचाका है ग्यान
एक आदमी विरोधा चक्कर में
देशा का विरोधी है ग्यान।
कैस्से ईवीएम कैस्से ईडी, सीबीआई
कैस्से पुलिस के गाली दिन न्यान
सबूत के छन ना उनुथे
फिरि ले चोर चोर कुन न्यान।
इनुका मुड घूमी चक्कर आगो
येति बिल कसी के पास हुन न्यान
एक एक करि ठूला ठूला
वैदा आब सब पूरा हुन न्यान।
महगाई, बेरोजगारी मुद्दा में
विपक्ष वाला एक ना हुन न्यान
बिन मातलेबे बातो में खूब
धरना प्रदर्शन कर न्यान।
थोड़ा थोड़ा कमी त सबो में भै
ययौ कवेले दूधो धोइनो न्हान
विपक्ष जरुरी छ उले सकारात्मक
विपक्ष बिना लोकतंत्र पुरो न्हान।
~ राजू पाण्डेय
बगोटी (चम्पावत)
यमुना विहार (दिल्ली)
गौ में ब्या
सुपा सुप भरी धान
ओखला में मुसला की धमा धम हैरे
नान्तिना की गौ मे
घर घर बठे भाड़ा कुना सरसार हैरे
कैला पातो ले गेट सजनो
सुस्वागत लेखे कापडे खोज हैरे
नानो ग्यु धूलो बैसवार बना
धागा में पतंग चिपकुनि हैरे
चाहा कितली माजे माज
गुडे कटकी बठे चा की बहार हैरे
चुलान खन ठूला ठूला ढूँगा ले
मलीमे रसोई त्यार हैरे
चेली हाथ मेहदी सजने
भीतर नंतिनि खूब रतयाली हैरे
भैर गौ का सज्याना मे
कस्या बरयात परखूना बात हैरे
पंडित ज्यू को मंत्रोचार
ब्योली हल्दी लागि, रवै लाल हैरे
गौ वाला की मिली जुली
मलीमे तै भाते रसोई त्यार हैरे
दमुआ की घनाघन
बरेतिया नाच पन पुलपट्ट हैरे
चाहा नमकीन बिस्कुट ली
स्वागत खन एक टीम त्यार हैरे
बरेति बैठाया थाली लोट्या दी
बामन ज्यू की रसोई त्यार हैरे
पुरो गौ एक घर बनी
हर कामे थे टीम पैले त्यार हैरे
करयो रात भरी जागी कन्यदान
बटेघटे भरी आँखा चेली विदाई हैरे
पुरो गौ का रूना रूना बुरा हाल
जसे हर घर बठे चेली परायी हैरे
..........शब्दार्थ : ...........
भाड़ा कुना - बर्तन
सरसार - उठा कर लाना
नानो - थोड़ा
ग्यु - गेहूं
धूलो बैसवार - पतला आटा
कितली - केतली
माजे माज - लगातार चूल्हे में
मलीमे - ऊपर
रतयाली - महिला संगीत
भैर - बाहर
कस्या - कैसे
परखूना - निभाना
रवै - रोकर
तै भाते - हल्दी वाले दिन बनने वाला खाना
दमुआ - नगाड़े
पुलपट्ट - धूल उड़ना
बटेघटे - तैयार करके
वृदाश्रम छोड़ आया है
राहे सजाने जिसकी बिछाया अपना सपना
उसके सीधे रस्ते में ये कैसा मोड़ आया हे
पकड़ जिन हाथों ने सिखाया था चलना
पकड़ उन हाथों को वृदाश्रम छोड़ आया है।
नम है बहुत आँखे ये झुर्रियों के साये में
छोटी नाली में ज्यूँ बड़ा सैलाव आया है
दुवाओ से जना जिसे मौत के साये में
छोड़ने साथ वही लश्करे छाव आया है।
काँटे बन उलझते रहे पेड़ों से आसपास
समझ आँगन उनके नन्हा फूल आया है
आयी क्या तितलियाँ कुछ उसके आसपास
समझ राह के कांटे उन्हें वो भूल आया है।
घर हम बना नहीं पाये थे इतना बड़ा
बेटा इसलिए यहाँ मजबूरी में लाया है
आता नहीं मिलने न लूगाओ लांछन बड़ा
अभी पिछले साल दिवाली में आया है।
रहता है व्यस्त बहुत वो आदमी बड़ा है
सेवा पर लेक्चर देने इस शहर आया हैं
देखो 'राजू दिल उसका कितना बड़ा हैं
मिलने हमसे वो बच्चों के साथ आया है।
जिस गोदी में लेटकर दुनियां को झाँका
उस आँचल के धागो को वो तोड़ आया है
जिन हाथों ने प्यार से सहलाया था माथा
पकड़ उन हाथों को वृदाश्रम छोड़ आया है।
जंगल में था चुनाव
एक तरफ चीता, दूसरी तरफ बिल्लियों की फौज
बंदर कूद कूद कर,दोनों तरफ ले रहे थे मौज
कभी इस डाली से उस डाली में छलांग लगा रहे थे
जो दिखाता फलों का टोकरा, उधर ही जा रहे थे।
कहीं नहीं था जुड़ाव
जंगल मे था चुनाव।।
कुछ झुंड के झुंड ले, चुनाव पर्चा भर रहे थे
कुछ तो चिड़ियाघर से ही, हुंकार भर रहे थे
जीतना हैं चुनाव,सब यही प्रयास कर रहे थे
नस्लों पे रंगों पे, एक दूजे के वार कर रहे थे।
अब होना था टकराव
जंगल मे था चुनाव।।
ऊँची ऊँची आवाजों में, सियारों का प्रचार था
मीडिया मैनेजमेंट सारा, लोमड़ियों के पास था
भेड़ो के झुंड में भी, खुशी का माहौल था
जीते तो ऊनी कंबल बटेंगे, वादा बेजोड़ था।
किसका होना था कटाव?
जंगल मे था चुनाव।।
शेरों से वादा था, शिकार घर बैठे दिलवायेंगे
सहूलियत हर तरह की, गुफा में दिलवायेंगे
शिकारों से वादा था, शेरों से हम बचाएंगे
आपकी रक्षा को हम, सब कदम उठायेंगे।
किसका होगा था बचाव?
जंगल मे था चुनाव।।
पीठ पर वार करने वालो कायरों!
पीठ पर वार करने वालो कायरों!
दम हैं तो सामने आओ
माँ भारती के सपूतों से
बस आँखें मिलाकर ही दिखाओ।
गर ये सोच रहे हो जल्लादों!
यूँ डिगा पाओगें हमें
खेल जाओगे हमारे हौसलों से
डरा पाओगें हमें
याद रखना पिल्लों!
तुमारी लहू का हर कतरा
हम निचोड़ लेंगे
तुमारे कुत्ताघर में आकर
वहीं से खींच लेंगे।
तुमारा रहननुमा भी
अब खौफ खायेगा
याद रखना गद्दारों!
हमारी क्रोध की ज्वाला में
भस्म हो ही जायेगा।
शहीदों के रक्त का तिलक
माथे में लगाते हैं
उठो जागो माँ के लाड़लो
"राजू" एक हो जाते हैं
इन कायरों को मिटाने की
आज कसम खाते हैं।
संवेदना संदेश नहीं चाहिये
हमें कोई संवेदना संदेश नहीं चाहिये
निंदा वाला कोई भाषण नहीं चाहिये।
राजनीति कोई भी अभी नहीं चाहियें
देश के लिये सबको एक होना चाहियें।
छप्पन इंच की छाती का कमाल अब चाहिये
घुसकर घर में अब घसीट लाना चाहिये।
बस बम गोलों की आवाज आनी चाहिये
दुश्मन के गिड़गिड़ाने की आवाज आनी चाहिये।
किसी को बचाने का प्रयास नहीं चाहिये
सीधी सीधी देश हित की बात होनी चाहियें।
फाँसी का फंदा अब तैयार होना चाहियें
जयचंद जो भी हो लटका ही देना चाहिये।
सपूतों के बलिदान का सम्मान होना चाहियें
कतरे कतरे खून का हिसाब होना चाहिये।
सर इस नाग का कुचल देना चाहिये
जहरीले कीड़े को मसल देना चाहिये।
कायरों के अब घर सुनसान होने चाहिये
चारों तरह उनके कब्रिस्तान होने चाहिये।
बहुत हुयी शांति "राजू" त्याग देनी चाहियें
दुश्मनों के शिवरों में हाहाकार होनी चाहियें।
कुछ लोग तो अपने
कुछ लोग तो अपने
मर के भी जिंदा हो गये
जन्में थे किसी एक घर
मर के वो सबके हो गये।।
जीवन के इन रंगों में
रंग ऐसा भर गये
देश की खुशियों की खातिर
लहू वो अपना दे गये।
कुछ लोग तो अपने.....।।
खेलने की सी उमर में
खेल ऐसे कर गये
मां के आँचल की वो खातिर
दान वो अपना दे गये।
कुछ लोग तो अपने.....।।
उनको जो सौपा था जिम्मा
वो उसी के हो गये
हस्ती हमारी रखने के खातिर
हस्ती वो अपनी दे गये।
कुछ लोग तो अपने.....।।
वो तो कोई तारे ही थे
जो गगन से आ गये
फर्ज अपना पूरा करके
फिर गगन के हो गये।
कुछ लोग तो अपने.....।।
जिंदगी दवाओं से
थे हरे भरे बृक्ष धरा पर
चहुँ ओर हरियाली थी
ठंडे ठंडे पानी के संग
फ्री हवा मतवाली थी।
पेड़ों के जंगल बदले
कंक्रीट के बागों से
जानवर ज़ू में आ गये
अपने अशियानों से।
फ़िल्टर पानी बिकने लगा
लीटर के भावों से
बोतलें भर गयी अब
बहती हुई हवाओं से।
मिलकर के खिलवाड़ किया हैं
पानी और हवाओं से
थोड़ी थोड़ी खिसक रही हैं
"राजू" जिंदगी दवाओं से।
माँ
मेरी करवट से जगती हैं, मेरी चिंता में रहती हैं
मेरे मुस्काने का हर कर्म, मेरी माँ रोज करती हैं
हर दर्द अपना छुपा सीने में रखती हैं
मुझे हर वक्त माँ मेरी, दुवाओं में रखती हैं।।
हो जाऊं लाख भी बड़ा, माँ मैं संतान तेरी हूँ
चाहे मैं दूर कितना हूँ, तेरे दिल के करीब हूँ
तुझे याद करने का कोई तय वक्त तो नहीं
तू हर वक्त माँ मेरी, मेरी धड़कन में रहती हैं।।
हैं सैलाब सा जमा, जो कहना हैं कहने दो
मुझे हर वक्त माँ मेरी, चरणों में रहने दो।
मुझे तेरी मोहब्बत का सुकून इतना है
मुझे माँ प्यार की अपनी, जंजीरों में रहने दो।।
हर रास्ता मंजिल, माँ तेरे चरणों से जाता हैं
विज्ञान भी तुझसे, मेरी माँ ज्ञान पाता हैं
तेरे चरणों की सेवा में चारों धाम आते हैं
हर मोक्ष का हर द्वार, यहीं से हो के जाता हैं।।
गरीब डे मनाते हैं।
रोज डे गया, हग डे गया
टेडी डे, वेलेंटाइन डे भी गया
अब कुछ टाइम निकालते हैं
आओ गरीब डे मनाते हैं।
कुछ कॉपी किताबें, पेंसिल लाते हैं
बैग के डाल कर कुछ टॉफियां
गरीब बच्चों का
आओ शिक्षा डे मनाते हैं।
कुछ खाना पीना, मीठा मंगाते हैं
डायनिग टेबल पर सजाकर
सेवकों को बैठा
आओ सेवक डे मनाते हैं।
कुछ चादरें लिहाफ, कंबल लाते हैं
रोडों के किनारे बनी खुली बस्ती में
ठिठुरते लोगों को दे
आओ कंबल डे मनाते हैं।।
वजह इसकी तेरा मुस्कराना हैं।
ये मौसम बड़ा ही सुहाना हैं
वजह इसकी तेरा मुस्कराना हैं
खिल उठे हैं इस चमन के फूल ही सारे
खुश्बू कुछ अलग सी फिजा में छाई हैं
तितलियों के रंगों से हुआ रंगीन तराना हैं
खुशियों ने अब यहीं घर बसाना हैं
वजह इसकी तेरा मुस्कराना हैं।
चिड़िया सारी ही चहचहाने लगी
तरंगे कुछ अलग सी फिजा में छाई हैं
कोयल की कुंक से हुआ संगीत सुहाना हैं
सुरसा ने अब यहीं घर बसाना हैं
वजह इसकी तेरा मुस्कराना हैं।
पैर तेरे जब से पड़े हैं आँगन में मेरे
खुशियां कुछ अलग सी घर में आयी हैं।
पायल की छन छन में गूंजा घराना हैं
इश्क ने अब यहीं घर बसाना हैं
वजह इसकी तेरा मुस्कराना हैं।
वीर बालाओं को नमन
उन वीर बालाओं को नमन
जो बलिदान को मान देती हैं
देश के मान सम्मान की खातिर
चूड़ियां तोड़ लेती हैं।
सिंदूर पोछ लेती हैं।।
जो बातें स्वपन में भी
रूह को झकझोर देती हैं
वीरंगना वो अपनी जिंदगीभर
मुस्कुराते झेल लेती हैं।।
घेरती विरह की वेदना जब
आँगन में चली आती हैं
प्रेयसी तारों के झुंड से गगन में
सजन को ढूंढ लेती हैं।
पूज्य अवतरित देवियां ये
"राजू" वीरांगनायें हमारी है
माँ दुर्गा, काली, भैरवी के अंश से
जो धरा में जन्म लेती हैं।।
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ
मैं अपने बचपन को
माँ का प्यार, पापा की फटकार
आमा, बुबू के किस्से
दीदी, दयाजु का हर पल का साथ
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ।
वो गांव की गलियां, पतली सी पगडंडिया
हाथ में पतंग लिये
माँ की आवाज जरा देख के
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ।
बचपन के सखा साथी, वो साथ साथ खेलना
लड़ना जरा जरा सी बात में
धूल से सने वो हाथ
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ।
वो होली का त्यौहार, खुशी से लाल लाल गाल
फुलझड़ी लिये दिवाली की जगमग
वो पूड़ी के पकवान
इंटरनेट में ढूंढ रहा हूँ।।
हा हा कार कर दी।
वीरों के गर्जन से कांपी
दुश्मन की धरती
घुसकर के बालाकोट में
हा हा कार कर दी।
अद्भुद अकल्पनीय
नभ से ऐसी गर्जन ऐसी गूंज
ज्यूँ टकरा रहें हो बादल
घडम भडम, घडम भडम।
बरषा रहे थे मीराज गोले
बरष रहे हो ज्यूँ नभ से ओले
भड़म भडाम, भड़म भडाम।
आसमानी बिजली की तरह
गिरे बम बनकर शोले
तड़क तड़क, तड़क तड़क।
ऐसी रण भेरी सुन
रिपु के नभ, जल, थल डोले
वीरों के साहस के आगे
दुष्टों के सिंहासन डोले।
कब्रिस्तान में बदल दिये
पुत्रों ने आशियानें उनके
माँ भारती पे नजर उठाने को
जिसने थे नैना खोले।।
हम हिन्द के सैनिक
हम तो हिन्द के सैनिक हैं
नहीं किसी से डरते हैं
मातृ भूमि की रक्षा को
मर सकते हैं, मिट सकते हैं ।।
बर्फीली हिमालय की चोटी
रेगिस्तान की गर्मी सहते हैं
सीना ताने हर बॉर्डर पे
मोर्चा संभाले रहते हैं ।।
दुश्मन के खून से खेले होली
उड़ा बम दिवाली करते हैं
दुश्मन को मार भगा करके
ईद मिलन हम करते हैं ।।
दिल मजबूत बहुत हमारे
छाती भी चौड़ी रखते हैं
पर भारत माँ की शान बान को
मर्यादा में हम रहते हैं।।
श्री कृष्ण के वंशज हैं
पहले वार नहीं करते हैं
कंस कोई बन ही जाये तो
फिर माफ नहीं करते हैं।।
जल थल नभ पर हम अपनी
नजर बनायें रखते हैं
रात दिन की परवाह किये बिन
डटे सदा हम रहते हैं ।।
गोली बंदूके खेल हमारा
ले मीराज उड़ चलते हैं
तिरंगे की शान के खातिर
"राजू" जान दांव पे रखते हैं ।।
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
घुस गये दुश्मन के घर में
निडर निर्भीक पवन सी सीख
लगा माथे पर
भारत माँ की माटी का चंदन
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
मार गिराया था उनका
F-16 बन के कहर
दुश्मन के गढ़ में भी निडर
बस भारत माँ का करता वंदन
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
प्राणों की बलि देने को आतुर
बस सम्मान देश का आगे हैं
तुम हो सम पूज्नीय वीर
आदर्श भांति नंद के नंदन
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
हो कैसे सीमाएं चिंतित?
क्यों न हम अभिमान करें
वो देश भला क्यों ना हो सबल
जिनके घर में हो ऐसे कुंदन
अभिनंदन, आपका अभिनंदन!
सब का अभिनंदन हैं।
दिल जीत लिया जी आपने
सब का अभिनंदन हैं
जो लौटा हैं पाक से
माथे का चंदन हैं।
विपक्ष अपने देश का, जिम्मेदार दिखा हैं
देशहित के मुद्दों में, हिस्सेदार दिखा हैं
दिखा दिया जी आपने
ये देश का बंधन हैं
सब का अभिनंदन हैं।
मीडिया अपने देश का, प्रगतिशील दिखा हैं
देशहित के मुद्दों में, संवेदनशील दिखा हैं
बता दिया जी आपने
ये देश का मंथन हैं
सब का अभिनंदन हैं।
बच्चा बच्चा भारत माँ का, असली लाल दिखा हैं
भेद भाव सब छोड़ छाड़, एक बन साथ दिखा हैं
दिखा दिया जी आपने
सब देश के नंदन हैं
सब का अभिनंदन हैं।
सरकार में बैठा चेहरा, लगा दिन रात दिखा हैं
मजबूत इरादों से जिसने, गौरव इतिहास लिखा हैं
बता दिया जी आपने
करना कैसे वंदन हैं
सब का अभिनंदन हैं।
तुम्हें भी, हमें भी
चिंता दोनों को हैं
तुम्हें भी, हमें भी
बचाने की
तुम्हें खुद को
हमें देश को।
हुनर दोनों में हैं
तुम में भी, हम में भी
बड़ा दिखाने का
तुम्हें खुद को
हमें देश को।
गुरुर दोनों को हैं
तुम्हें भी, हमें भी
मिलते सम्मान का
तुम्हें खुद को
हमें देश को।
लगन दोनों में हैं
तुम में भी, हम में भी
जीत जाने की
तुममें खुद के लिये
हममें देश के लिये।
बिछड़ने का दर्द
बिछड़ने का दर्द उससे पूछो
जो दो रोटी की खोज में
उस आँगन में कंटीली
झाड़ियों का झुंड देखा रहा हैं
जिसमें उसने सीखा था
घुटनों के बल चलना।
खंडहर होते देख रहा हैं
अपने उस घर को
जिसमें गूंजी थी
किलकारी उसकी।
भूल रहा हैं वो पथ
जिस पर हाथ पकड़
मां मेले ले जाती।
जो खुली हवा छोड़
घुट रहा हैं बस....
बिछड़ने का दर्द उससे पूछो।
घुघुती तू ही बता !
आम तो अब भी पाके
सावन में
अब बलमा क्यूँ नहीं आते
फागन में!
जिनके पिया परदेश
गये हैं
अब नारी भी उनके
साथन में।
पहाड़ों के लाल तो
फँस जो गये
रोजी रोटी के
जुगाड़न में।।
बूढ़ा बाज्यू मन ही मन
याद करें
ईजा आंश लगे
त्यारन में।
रंगों के रंग
फीके पड़ गये
"राजू" फंसे पहाड़
पलायन में।।
दुआ मांग कर आते हैं
चलो पकड़ो ढोल मजीरा
घर घर में जाते हैं
रंगों की पिचकारी भर लो
चलो गुलाल उड़ाते हैं।
खड़ी होली, बैठक होली
राग पे राग मिलाते हैं
दयाजु के संग बौज्यु को
चलो मिलकर नचाते हैं।
इंतजार की घड़ियां हैं बीती
बलमा घर आये फागन में
मैं छिड़कूँ रंग देवर तुम पे
तुम खेलों फाग आँगन में।
खेलें फाग, आशीष पावें
चलो देव द्वारे जाते हैं
अपने सब खुशहाल रहें
"राजू" दुआ मांग कर आते हैं।
वो बचपन हमारा
वो बचपन हमारा, वो बचपन के किस्से
रस्ते थे कच्चे, पक्के थे रिश्ते
वो दादी की लोरी, वो दादा के किस्से
न मैं मैं की बातें, बातों में हम थे।
वो पापा की ड्यूटी, वो मम्मी के सपने
पड़ोसी के मामा भी, मामा थे अपने।
वो पड़ोसी की भैंसे, वो गाये हमारी
चरने को जाती थी, सारी की सारी।
वो शादी की रस्में, वो पकती रसोई
कोई लाता था पानी, पकाता था कोई।
वो गांव हमारा, वो गांव के बच्चें
लड़ते झगड़ते थे, दिल से थे सच्चे।
वो चलती हवाये, वो उड़ते परिंदे
फूलों की खुश्बू, महकते ही रहते।
वो बचपन हमारा, फिर से तू ला दे
कच्चे मका थे, थे पक्के इरादे।
पंछी सोचें किसकी भूल।
उड़ता पंछी दाना चुगने
निकल गया वो दूर
वापस आने का रस्ता
शायद गया वो भूल।
सुंदर पहाड़ो के बीच में
था अपना सुंदर घोंसला
हर घड़ी हर सुख दुःख में
बढ़ाता उसका हौसला।
पंछी अपने बाकी साथी
थे उड़ते खुले गगन में
इधर उधर सब बिखर गये
अनजाने किसी शहर में।
अपने घर की यादें सचमुच
चुभती बन कर के सूल
"राजू" शहर में दाना चुगते
पंछी सोचें किसकी भूल।
पराये हो गये
पराये हो गये
हो गये खलियान खाली, खेत खाली हो गये।
जो खेलते थे आँगन में, वो कही अब खो गये।
बूढ़ो की पथरा ली आंखे, आँसू भी अब खो गये।
फिर लौट कर वो न आये, आऊंगा कह कर जो गये।
सीढ़ीनुमा खेत सारे, बंजर जमी अब हो गये।
पट्टीयों वाले मकान अपने, झड़ छत जमी हो गये।
छूटी भाषा खानपान, रीत गीत मीत पुराने हो गये।
झोडी झुमका ढुसक नवले, कोलाहल में खो गये।
हिसालू किलमोडा काफल, झाड़िया बस रह गये।
आड़ू बेड़ू घिगारु पकना, सब गानों में ही रह गये।
होली उत्तरायणी देव मेले, किस्से कहानी हो गये।
बैठक रजजाके खेला जागर, इतिहासों में खो गये।
जिस मिट्टी में देखें सपनें, उसको ही हम भूल गये।
रोटी कपड़े की खातिर तो, मां से अपनी दूर गये।
ये पलायन विकराल वेदना, खुद से ही हम खो गये।
छोड़ हम गांव घर अपना, "राजू" पराये हो गये।।
गृह शान्ति के उपाय
पाण्डेय जी हमें भी
परेशानियों से निकालिये
गृह शान्ति के लिये
कुछ उपाय तो बताइये।
शर्मा जी पंडित ज्योतिषी के
चक्कर में न पड़ जाइये
कुछ नुस्खें बता रहा हूं
जरा उनको आजमाइये।
नियम बांध रोज जी
ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाइये
गरम गरम चाय बना
उन्हें प्यार से पिलाइये।
बंद करिये दरवाजे
किसी को पता ना चलाइये
मुस्कराते दिल लगा के
चुपके झाड़ू पौछा लगाइये।
बीबी को ही प्रेयसी समझ
उपहार लाकर दीजिये
सोने से पहले प्यार से
पैर उनके दबाइये।
गाड़ी गृहस्थ जीवन की
ड्राइवर ना बन जाइये
चुपचाप स्टेरिंग बनकर
जैसे घुमाये घूम जाइये।
जानते हो ज्यादा मुझसे
नुस्खें तो बताइये
नहीं तो मुस्कराते मेरे
नुस्खें ही अपनाइये।
पहाड़ों ने सिखाया
मोहब्बत का पैगाम हमनें जो पाया
पहाड़ों के आंचल में बच्पन बिताया।
ये खुद्दारी, जज्बा, हौसला जो पाया
पहाड़ो की चोटी ने हमको सिखाया।
प्रकृति का उपकार हैं कैसे जताना
पहाड़ी त्यौहारों ने जग को बताया।
बोझों को सिर पर हँस हँस उठाना
पहाड़ों की बेटी ने सब को सिखाया।
देश की रक्षा को मुस्काते बलिदान होना
पहाड़ों की लालो ने सब को दिखाया।
ईश्वर की उसमें हैं अनुपम ही माया
देवभूमि में "राजू" जन्म जो हैं पाया ।
न करो चिंता सवालों की
चमकते सितारों पे बंदिशें हो गई बादलों की
दो दिल क्या मिले रंजिशे हो गई घरानों की।
उमड़ते घुमड़ते मचाया शोर इतना बादलों ने
दबी रह गयी आवाज मनमोहक तरानों की।
खिलने दो फूल बिखरेगी महक एक दिन
उसे महकनें को जरुरत नहीं कतारों की।
न रोको दरिया यूँ बनेगा सैलाव एक दिन
बहने दो उसे न करो चिंता किनारों की।
राधा भी मीरा भी किये बदनाम दुनिया ने
उड़ने दो उसे न करो चिंता सवालों की।
हटना ही पड़ेगा एक दिन तो बादलों को
रोक पायेंगें कब तलक चमक सितारों की।
किसने निकाली किताबों से मेरी
किसने निकाली किताबों से मेरी
तस्वीर जो उसकी थी मैंने उकेरी।
वो काली लटे जो पीछे बधी थी
छोटी सी बिंदिया माथे सजी थी।
नूरे वो चेहरा ज्यूँ पूनम का चंदा
पलकें सजाता काजल वो मंदा।
गुलाबों के पंखों से नाजुक अधर दो
कानों में सजते जो कुंडल गजब वो।
गले बाँह डाले वो मोती की माला
सलीखे से ओढ़ा गुलाबी दुशाला।
क़यामत से लिपटी मेहरून साड़ी
चूड़ी सजी वो दो नाजुक सी नाड़ी।
संगीत सुर को सजाती जो पायल
अदायें वो जिनसे हुये हम थे घायल
निकाली जो तस्वीर किताबों से मेरी
ह्रदय में बसी "राजू" मूरत वो मेरी।
मेरी सुन तेरी भी सुनूँगा
आ मेरी सुन, फिर तेरी भी सुनूँगा
ला दे ऊन, तेरी भी स्वेटर बुनूँगा
अल्फाज मोहब्बत रसधार करूँगा
कर देश की बात तुझ को ही चुनूँगा
नफरत का दे पैगाम मै न सुनूँगा
जाल तेरे ऊन से तेरा ही बुनूँगा।
ना दूसरे की हार का जश्न करूँगा
ना अपनी जीत का गरूर करूँगा
उन्नति विकास का आधार बनूँगा
करू जो वादा वो निर्वाह करूँगा
तू बढ़ा कदम ऐसे तेरे साथ चलूँगा
आ मेरी सुन, फिर तेरी भी सुनूँगा
ला दे ऊन, तेरी भी स्वेटर बुनूँगा।।
ऊच नीच भेद भाव मैं ना करूँगा
दब रही आवाज वो आवाज बनूँगा
हो जंग सत्य के लिए वो ही लड़ूंगा
सत्य की मशाल के मै साथ चलूँगा
माँ भारती का अपमान मै न सहूँगा
अस्मिता दुश्मन की मिटा राख करूँगा
चरणों में माँ के भेंट शीश करूँगा
तू झुका शीश "राजू" साथ चलूँगा
आ मेरी सुन, फिर तेरी भी सुनूँगा
ला दे ऊन, तेरी भी स्वेटर बुनूँगा।।
अभी जिद ना करो जाने की
अभी लगी है भनक तेरे आने की
बैठो, अभी जिद ना करो जाने की।
मुद्दतो बाद ये समा आया है,
महफिल ने आज ये ताज पाया है
अभी बारी हैं नजरें इनायत पाने की
बैठो, अभी जिद ना करो जाने की।
झील सी आँखों में सुकून पाया है
देख जिन्हें दिले चेन आया हैं
अभी बारी है इनमें डूब जाने की
बैठो, अभी जिद ना करो जाने की।
तेरी जुल्फों के बादल अब छाए हैं
दिल की जमी में घिर आये है
अभी बारी हैं इनके बरस जाने की
बैठो, अभी जिद ना करो जाने की।
अब छुप गया है चाँद चेहरा
"राजू" हथेली का दामन हैं
अभी बारी हैं ये दामन हटाने की
बैठो, अभी जिद ना करो जाने की।
मुकद्दर देख लेते है
आ बैठ तेरा भी मुकद्दर देख लेते है,
भट्टी गर्म है, आ कुछ सेक लेते हैं।
चुनाव पास है, वादों का मौसम हैं,
आ बैठ मजनू भाई, कुछ सीख लेते हैं।
कर वादे चाँद तारों के, तू अज़ीज़ को
बिठा अश्क में उसके , जन्नत की चाह को
वास्ता अल्लाह का, या रख दांव पे राम को
न बने बात बात से, तो सजाले जाम को
हामी मुहब्बत की, जज़्बातों पे वॉर कर
चुनावी इश्क का, आ बैठ तू एलान कर
वादों का दौर "राजू", सपने देख लेते है
चुनावों की तरह, अब क़ल्ब जीत लेते हैं।
आ बैठ तेरा भी मुकद्दर देख लेते है,
भट्टी गर्म है, आ कुछ सेक लेते हैं।
ढूंढो अपराधी कौन
ये सरकारे अंधी बैठी, ये सरकारे मौन है।
भीख मांगते बच्चों का, ये अपराधी कौन हैं?
लगे रहो तुम चमकाने में, रोड और मकानों को
देख ना लेना कोई भी तुम, गिरते हुए इमानो को।।
तू तू मैं मैं कर लो तुम, इतिहासों की बातों में
कभी बहस ना कर लेना तुम, टूटते हुये जज्बातों पे।।
स्टेलाइट तुम अंतरिक्ष में, कोई डालो ऐसी भेज
बिलखते बच्चों की जो, तुमको भेजे फ़ोटो रोज।।
समय बदला सरकारें बदली, अब तो बदल गए हैं नोट
बस लीपा पोती में लगे हुए, लगती है नियत की खोट।।
उठ जाओ खोलो आंखे, तोड़ डालो तुम अपना मौन
भीख मांगते बच्चों का, "राजू" ढूंढो अपराधी कौन?
मेरी नैतिक जीत हैं
श्रीमती के फेंकें बेलन से
बचते हुये गुप्ता जी बोले
ये तो घर घर की रीत हैं
बेलन नहीं लगा मेरी नैतिक जीत हैं।।
गर्लफ्रैंड की शादी में
बर्तन उठाते मजनू जी बोले
वो अभी भी दिल के करीब हैं
मुझे भाई बना लिया मेरी नैतिक जीत हैं।।
मिसेज शर्मा से सॉरी बोल
मुस्कराते शर्मा जी बोले
पास आके सॉरी बुलवाया ये ठीक हैं
अपने पास नहीं बुलाया मेरी नैतिक जीत हैं।।
उम्रकैद की सजा पाया कैदी
छाती चौड़ी करके बोला
जिंदगी अभी भी हसीन हैं
मृत्यदंड नहीं मिला मेरी नैतिक जीत हैं।।
चुनावों में चौथे पायदान में रहे
मूछें उठाकर नेता जी बोले
पब्लिक के दिलों के हम ही मीत हैं
जमानत बच गयी मेरी नैतिक जीत हैं।।
सही नहीं हैं
ये तुम जो खेल रहे हो ना
बस खुद को जिताने का खेल
ये तुम जो मिला रहे हो ना
बस लूट खाने का मेल
सही नहीं हैं।
ये तुम छोटे रास्ते चुन रहे हो ना
बस खुद जल्दी पहुँचने को
ये तुम पीछे गढ्ढे कर रहे हो ना
बस बाकियों को गिराने को
सही नहीं हैं।
ये तुम जो जहर भर रहे हो ना
बस खुद को बचाने को
ये तुम जो रस्सी बन रहे हो ना
बस बाकियों को गिराने को
सही नहीं हैं।
ये तुम चिंगारी भड़का रहे हो ना
बस नफरते फैलाने को
ये जो तुम आग लगा रहे हो ना
बस देश को जलाने को
सही नहीं हैं।