Pooran Chandra Kandpal Ji
मीठी मीठी - 549 : मेरे आँखरों के शीर्षक ( बिरखांत, खरी - खरी, मीठी - मीठी और ट्वीट )
सोसल मीडिया के सभी मित्रों को सपरिवार नववर्ष 2021 के आगमन पर पुनः बहुत -बहुत शुभकामनाएं । आपने अन्य वर्षों की
तरह बीते वर्ष 2020 में भी पूरे साल (अविरल 365 दिन ) मेरी खरी -खरी, मीठी -मीठी, बिरखांत और ट्वीट को समय दिया और
सुना । विगत कुछ वर्षों से सोसल मीडिया में निरंतर लिखते हुए अब तक 351 बिरखांत (साप्ताहिक वर्णनात्मक लेख ), 765
खरी - खरी ( साप्ताहिक कटु सत्य लेख ), 549 मीठी - मीठी ( खरी खरी के साथ बीच बीच में सूचनापरक लेख) और 1218 ट्वीट (
प्रतिदिन कम शब्दों में अपनी बात ) लिख चुका हूं । हिंदी और कुमाउनी में लिखे गए मेरे सभी आँखरों को आपने समय दिया,
आप सभी का हार्दिक आभार । पूर्ण आशा है इस वर्ष भी आप चाहे -अनचाहे मेरे शब्दों को जरूर समय देंगे, पढ़ेंगे और मेरा
मार्गदर्शन करते रहेंगे । मुझे आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहती है । धन्यवाद के साथ पुनः नववर्ष की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.01.2021
बिरखांत- 351 : दुनिया के साथ हैपी न्यू ईयर
जी हां, आपको भी ‘हैपी न्यू ईयर’, नव वर्ष की बधाई | भारत का नव वर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (मार्च द्वितीय
सप्ताह) माना जता है परन्तु उस दिन बहुत कम लोगों को हैपी न्यू ईयर या नव वर्ष की बधाई कहते हुए सुना गया है | हमारे
देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31 दिसंबर को
मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाती है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है | आज
भी यही हो रहा है | वाट्सैप, फेसबुक सहित सभी सोशल मीडिया में इस तरह के संदेशों का सैलाब आया है कि संभाले नहीं
संभल रहा | यह नव वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |
दुनिया के साथ चलना ही पड़ता है | जो नहीं चलेगा वह पीछे रह जाएगा । कम्प्यूटर क्रान्ति इसका एक उदाहरण है | हमने
माशा, रत्ती, तोला, छटांग, सेर और मन की जगह मिलि, सेंटी, डेसी,/ डेका, हेक्टो, किलो, क्विंटल और टन अपनाया है तो
विश्व के साथ जनवरी 1 को नव वर्ष मानने में हिचक नहीं होनी चाहिए | घर में हमने अपने बच्चों को हिन्दी महीनों/दिनों
के नाम बताने भी छोड़ दिये हैं । 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89 और 99 को हिंदी में क्या कहते हैं, हमारे अधिकांश बच्चे
नहीं जानते | अपने बच्चों से आज ही पूछ कर देखिये | हम कोई भी भाषा सीखें परन्तु अपनी मातृभाषा तो नहीं भूलें |
हमारे देश का वित्त नव वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है | दूसरे नव वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा
पूर्व 57 से मनाया जता है | 2021 में वि.स. 2077 है जो 21 मार्च 2020 को आरम्भ हुआ था | तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है
जो 78 ई. से आरम्भ हुआ अर्थात यह वर्तमान 2020 से 78 वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष 1943 है |
भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग
समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में
‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी
में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ' इंदु ' फिर ‘हिंदु’ से
आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया ( इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को
‘इंदोई’ कहते थे |
जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को
गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा
जाय तो अच्छा है | हमारे संविधान के आमुख में भी लिखा है “वी द पीपल आफ इंडिया दैट इज ‘भारत’...” अर्थात हम भारत के
लोग... | हम भारतीय हैं, ‘वसुधैव कुटम्बकम’ हमारा विश्व दर्शन है | इसलिए सबके साथ 1 जनवरी को मुस्कराते हुए नव वर्ष
की बधाई जरूर कहिये | सभी को नव वर्ष की शुभकामना । नव वर्ष के आगमन पर जब कुछ लोग आज पटाखे छोड़कर नए साल 2021 का
स्वागत कर रहे थे तब देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डरों पर कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन का 38वां दिन
शुरू हो गया था । ठिठुरती ठंड में सड़कों पर डेरा डाले इन हजारों किसानों को भी नववर्ष की शुभकामना । देश की सीमाओं
पर डटे हुए सैनिकों एवम् सैन्य परिवारों को भी नववर्ष की शुभकामना । जय जवान जय किसान ।
नववर्ष की एक दूसरे को शुभकामना देते समय आज बहुत दुख भी होता है । दुख का कारण है कोरोना (कोविएड - 19) से हुई देश
में 1.49 लाख से अधिक लोगों की असामयिक मृत्यु । बीते वर्ष 30 जनवरी को हमारे देश में इस संक्रमण का पहला केस हुआ था
। इस क्रूर संक्रमण से जिनके परिजन चले गए वे उस घटना को कभी भी भूल नहीं सकेंगे क्योंकि संक्रमण के कारण परिवार के
लोग जाने वाले पर हाथ भी नहीं लगा सके । विगत 10 महीनों में हमारे देश में 1.02 करोड़ से अधिक लोग संक्रमित हुए जबकि
पूरे विश्व में यह संख्या 8.34 करोड़ से अधिक थी जिनमें से 18.19 लाख से अधिक लोग काल कवलित हो गए । सभी दिवंगतों को
विनम्र श्रद्धांजलि । हम परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि सभी प्रभावित परिवारों को अपने परिजन के चले
जाने के दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे । पतझड़ के बाद बसंत जरूर आता है । इसी आशा और विश्वास के साथ पुनः सभी
को नववर्ष की शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.01.2021
मीठी मीठी -548 : डटे हैं वतन के लिए -40०C पर
आजादी के बाद वर्ष 1947 - 48, 1962, 1965, 1971 और 1999 में हमारी सेना ने बड़े शौर्य के साथ दुश्मन का डटकर
मुकाबला किया । वर्ष 1989 से जम्मू -कश्मीर में छद्म युद्ध लगातार हो रहा है जिससे हमारे सैकड़ों सुरक्षा प्रहरी वतन
की माटी को अपने लहू से सिंचित कर गए । देश के कुछ अन्य भागों में भी हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपना बलिदान दिया है
। हमारी सेना और अन्य सुरक्षा प्रहरियों ने भी दुश्मन की हर गोली का बड़ी मुस्तैदी से मुहतोड़ जबाब दिया और प्रत्येक
शहीद के बलिदान का तुरंत बदला लिया । आतंकवाद के नाग का सिर कुचलना अभी बाकी है जिसकी देश को दरकार है । अब तक देश
के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी अमर शहीदों को नए साल की पूर्व संध्या पर विनम्र श्रद्धांजलि के साथ नमन ।
हम नव वर्ष पर अपने सैन्य भाइयों को भी हार्दिक शुभकामना देते हैं जो -40० C पर भी वतन की रक्षा में डटे हैं
।
बर्फीला सियाचीन हो या थार का तप्त मरुस्थल,
नेफा लेह लद्दाख कारगिल रण कच्छ का दलदल ।
हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम सारी मही में तेरा नाम
दुश्मन के गलियारे में भी होती तेरी चर्चा आम ।
नववर्ष 2021 की पूर्व संध्या पर भलेही आज हम नए साल का स्वागत कर रहे हैं और एक - दूसरे को बधाई- शुभकामना दे रहे
हैं परन्तु दिल से हम मातृभूमि के लिए स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक अपना बलिदान देने वाले इन वीर सपूतों के
प्रति नतमस्तक होकर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और विनम्रता के साथ सभी शहीद परिवारों का बड़ी आत्मीयता से
सहानुभूतिपूर्वक सम्मान करते हैं ।
'शहीदों की चिंताओं में
लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का
बस एक यही निशां होगा ।'
इस गमगीनअंधेरे में
एक दीप जलाते हैं,
सभी मित्रों को नववर्ष
की शुभकामना देते हैं ।
जयहिन्द,
जय हिंद की सेना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.12 .2020
खरी खरी -765 : "मुझे नहीं पता श्रंंगार।"
उत्तराखंड के पर्वतीय भाग में ग्रामीण महिलाओं के लिए विज्ञान कोई बदलाव नहीं लाया । वह कहती है, "मेरे लिए कुछ भी
नहीं बदला । मैं जंगल से घास -लकड़ी लाती हूँ, हल भी चलाती हूँ, दनेला (दन्याइ) लगाती हूँ, निराई-गुड़ाई करती हूँ, खेत
में मोव (गोबर की खाद) डालती हूँ, दूर-दूर से पीने का पानी लाती हूँ, राशन की दुकान से राशन लाती हूं । पशुपालन करती
हूँ और घर -खेत-आँगन का पूरा काम करती हूँ । वर्षा हो गई तो कुछ अनाज हो जाता है उसे भी सुंगर या बानर खा जाते हैं ।
इस उजाड़ को देखकर लगता है कि क्यों हमने इन खेतों में बीज बोया । इस उजाड़ को देखकर सांस अटक जाती है । मैं व्यस्त
नहीं रहती बल्कि अस्त - व्यस्त रहती हूं । मुझे पता नहीं चलता कि कब सूरज निकला और कब रात हुई । मुझे नहीं पता
श्रंगार क्या होता है ।"
वह चुप नहीं होती, बोलते रहती है, ''गृहस्थ के सुसाट -भुभाट, रौयाट - बौयाट में मुझे पता भी नहीं चलता कि मेरे
हाथों- एड़ियों में खपार (दरार) पड़ गये हैं और मेरा मुखड़ा फट सा गया है, मेरे गालों में चिरोड़े पड़ गए हैं । सरकारी
स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों को तो मैं बिलकुल भी समय नहीं दे पाती । सिर्फ उनके लिए रोटी बना देती हूँ, हफ्ते
में एकबार उनके कपड़े धो देती हूं बस । बच्चों से उम्मीद करती हूं कि से मेरे काम में हाथ बटाएं परन्तु उनको पढ़ाई
भी करनी होती है इसलिए उनसे कुछ भी नहीं कहती । उनकी पढ़ाई से भी मैं खुश नहीं होती क्योंकि वे खींच - खांच के पास
होते हैं ।
अब कुछ बदलाव कहीं- कहीं पर दिखाई देता है वह यह कि खेत बंजर होने लगे हैं । नईं- नईं बहूएं आ गईं हैं जो पढ़ी लिखी
हैं । वे यह सब काम नहीं करती । हम भी बेटियों को पढ़ाकर ससुराल भेज रहे हैं जो वहाँ यह सब काम नहीं करेंगीं । लड़कों
के लिए यहाँ रोजगार नहीं है और वे बहू संग नौकरी की तलाश में निकल गए हैं या निकल रहे हैं । सरकार - दरबार से कहती
हूं कि तुम ढूंढते रहो उजड़ते गाँवों से पलायन के कारण... पर गांव तो खाली हो गए हैं । यहां वे ही रह गए है जिनका कोई
कहीं ले जाने वाला नहीं है ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.12.2020
मीठी मीठी - 547 : कुमाउनी दोहे
(8 दोहे, 8 बातें)
कविता मन कि बात बतैं,
कसै उठी हो उमाव ।
बाट भुलियां कैं बाट बतैं,
ढिकाव जाई कैं निसाव ।।
द्वि आंखर हँसि बेर बलौ,
बरसौ अमृत धार ।
गुस्सम निकई कड़ू आंखर,
मन में लगूनी खार ।।
लालच जलंग पाखंड झुटि,
राग- द्वेष अहंकार ।
अंधविश्वास अज्ञान भैम,
डुबै दिनी मजधार ।।
धरो याद इज बौज्यू कैं,
शिक्षक सिपाइ शहीद ।
दुखै घड़िम लै भुलिया झन
धरम करम उम्मीद ।।
याद धरण उ मनखी चैंछ,
मदद हमरि करी जैल ।
हमूल मदद जो कैकि करि,
उकैं भुलण चैं पैल ।।
देश प्रेम जति घटते जां,
कर्म संस्कृति क नाश ।
निहुन कभैं भल्याम वां,
सुख शांति हइ टटास ।।
तमाकु सुड़ति शराब नश,
गुट्क खनि धूम्रपान ।
चुसनी माठु माठु ल्वे वीक,
बैमौत ल्ही ल्हिनी ज्यान ।।
आपणि भाषा भौत भलि,
करि लियो ये दगाड़ प्यार ।
बिन आपणि भाषा बलाइए,
नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.12.2020
कविता संग्रह 'मुकस्यार'
खरी खरी - 764 : जयमाला में बेवड़े दोस्त
हम सब कहते हैं कि ज़माना बदल गया है | पहले के जमाने में ऐसा होता था, वैसा होता था | सत्य तो यह है कि ज़माना नहीं
बदलता बल्कि वक्त गुजरने के साथ कुछ परिवर्तन होते रहता है | कई शादियों में निमंत्रण निभाया और तरह तरह का बदलाव
देखा | धीर-धीरे कैमरे को खुश करने के लिए बहुत कुछ बदलाव हो रहा है | कई बार वर-वधू को दुबारा पोज देने के लिए कहा
जाता है | मस्ती के दौर में दोस्त उनसे मुस्कराने की फर्मायस करते हैं | आखिर कोई कितनी देर तक मुस्कराने की एक्टिंग
कर सकता है, यह तो मेकअप से लथपथ बेचारी दुल्हन ही जानती है |
अब बात एक जयमाला की कर लें | इस सीन में जो हो रहा है वह भी बहुत अटपटा है । जयमाला मंच के इस सीन में दूल्हा
दोस्तों से घिरा है ( कुछ बेवड़े भी लेकिन होश में ) और दुल्हन भाइयों और सहेलियों से घिरी है | दुल्हन को कैमरे से
पहले इशारा मिला कि जयमाला दूल्हे को पहनाओ | ज्योंही वह एक कदम आगे बढाकर जयमाला पहनाने लगी तो दूल्हे के दोस्तों
ने दूल्हे को ऊपर उठा लिया | दुल्हन पहला चांस मिस हो गया और वह टैंस हो गयी जबकि कैमरा ऐक्सन में है | तुरंत भाइयों
के हाथों में उठी हुई दुल्हन ने दूसरा प्रयास किया और जैसे –तैसे दोस्तों द्वारा ऊपर उठाये गए, पीछे की ओर टेड़ा तने
हुए दूल्हे के गले में जयमाला ठोक दी जैसे घर में घुसे हुए तैंदुवे के गले में बड़ी मुश्किल से रस्सी डाल दी हो
|
इसी तरह दूल्हे को भी दो बार प्रयास करने पर सफलता मिली | दुल्हन का आर्टिफीसियल जेवर भी हिल गया और मेकअप का डिजायन
भी बिगड़ गया | एक शादी में तो इस धक्कामुक्की में दूल्हे की माला भी टूट गयी | दोनों ओर के कबड्डी खिलाड़ियों से कहना
चाहूंगा कि ये ऊपर उठाने का फंडा बंद करो और दोनों को ही असहज होने से बचाओ | ऐसा न हो कि गर्दन को माला से बचाने के
चक्कर में दोनों में से एक गिर जाय | एक जगह तो दूल्हा - दुल्हन के लिए रखा हुआ सोफ़ा ही मंच पर पलट गया । दूल्हा
नीचे गिरने से बाल - बाल बच गया । ये दूल्हे को ऊपर उठाने का भद्दा रिवाज पता नहीं कहां से ले आए लोग ?
प्यार से नजाकत के साथ दूल्हा - दुल्हन को एक –दूसरे के पास ले जाकर मुस्कराते हुए मधुर मिलन से माल्यार्पण करना
बहुत रोचक लगेगा | देखनेवाले भी रोमांचित होंगे और यह मिलन का क्षण अविस्मरणीय बं जाएगा | बेचारों का टेनसन भरा
मुर्गा खेल मत कराओ | इस भौंडी हरकत से दोनों तरफ के अभिभावक बहुत असहज महसूस करते हैं और दुखी होते हैं । बेवडों को
तो जयमाला मंच से दूर रखना चाहिए ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.12.2020
खरी खरी - 763 : अंधविश्वास के ग्रहण को भी समझें
यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु
इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का
प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़
जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत
तो करनी ही पड़ेगी |
हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, किसानों का देश हर, सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है,
सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके
बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा -अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों-
बाबाओं के देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस
नहीं जुटा पा रहे हैं |
हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का
डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम अंधविश्वासियों को सुनते हैं परन्तु खगोल
शास्त्रियों या वैज्ञानिकों को नहीं सुनते । हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य
बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं |
हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगते हैं, गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और
दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध
डालते हैं और हम बीमार होने पर या घर में शिशु के न आने पर या किसी भी समस्या का निदान के लिए डाक्टर के पास जाने के
बजाय झाड़ -फूक वाले तांत्रिकों अथावा अंधविश्वास का जाल फैलाए सैयादों के पास जाते हैं |
वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा । केवल परीक्षा के दिन तिलक
लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा- नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को
पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने
वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं -
‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी
बन गए लेकर डिग्री ढेर,
अंधविश्वास कि मकड़जाल में
फंसते न लगती देर,
पंडित बाबा गुणी तांत्रिक
बन गए भगवान,
आंखमूंद विश्वास करे जग,
त्याग तत्थ – विज्ञान ।
सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा मेरे शब्दों पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं | सभी मित्रों एवं
टिप्पणीकारों तथा पसंदकारों का साधुवाद तथा हार्दिक आभार |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12.2020
मीठी मीठी - 546 : क्रिसमस पर रोपिये एक पौधा
होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।
पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,
उष्म धरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।
हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,
परन्तु बड़े होकर वे रहेंगे कहां ?
जल विहीन वायु विहीन
पृथ्वी रहने लायक तो रहेगी नहीं ।
धरा में हरियाली लाओ
पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ ।
क्रिसमस की शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.12.2020
स्मृति - 545 : वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली
आज 25 दिसंबर पेशावर विद्रोहक अमर सेनानी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ज्युकि जयंती छ । "लगुल" पुस्तक बै उनार बार में
लघुलेख याँ उधृत छ । अन्यायक विरुद्ध आवाज बुलंद करणी य वीर योद्धा कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2020
स्मृति - 544 : आज अटल ज्यूकि जयंती
आज 25 दिसम्बर हमार 10उं प्रधानमंत्री, भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी ज्युकि जयंती छ । नेताओं कैं राजधर्म कि याद
द्यऊणी अटल ज्यूक बार में पुस्तक "लगुल'' बै लेख याँ उधृत छ । अटल ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2020
बिरखांत - 350 : जागर नहीं है मर्ज की दवा (ii, समापन )
( पिछली बिरखांत 349, 24.12.2020 से आगे)
... आरम्भ में ढोल- तासे की आवाज मंद होती है जो धीरे-धीरे जोर पकड़ती हुई कड़कीली हो जाती है | तब वह क्षण आता है जब
ढोल- तासे के शोर में कुछ भी सुनाई नहीं देता | सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है और इसके साथ ही डंगरिया नाचने
लगता है | सौंकार और पंच- कचहरी हाथ जोड़कर स्वागत करते हैं | महिलाएं चावल और फूल चढ़ाती हैं | इसके बाद सौंकार अपनी
समस्या देव के सम्मुख रखता है | उत्तर में समस्या पनपने के इने- गिने परम्परागत कारण डंगरिए द्वारा बताये जाते हैं
जैसे- देव पूजा न करने से देवता रुष्ठ हो गए हैं, बुजर्गों का हंकार (श्राप) है, पांच या सात पीढ़ी की बुढ़िया लगी
है, पुरखों ने बेईमानी की थी, कई पीढ़ी के पुरखों ने फलाने का हक़ मारा था, भूत- मसाण –हवा का प्रकोप है आदि | भूत-
मसाण- हवा की जागर में तो महिलाओं को भी पंच-कचहरी के सामने लोटते –लुड़कते हुए देखा जा सकता है |
जागर आयोजन का आदेश अक्सर ‘गणतुओं’ (पुछारियों) द्वारा उचैंण (मुट्ठी भर चावल तथा एक फूल) खोलने के बाद दिया जाता है
| समस्या के पनपते ही उचैंण एक कपड़े के टुकड़े में बाँध दी जाती है जिसे गणतुआ (स्वयंभू आत्मज्ञानी स्त्री या पुरुष )
समस्या का कारण बताता है और जागर आयोजन की सलाह देता है | प्रथम जागर में एक निश्चित अवधि, दो- तीन सप्ताह या अधिक
दिनों में समस्या समाप्त होने के बाद पूजा करने का संकेत दिया जाता है | यदि निश्चित अवधि में समस्या का निवारण नहीं
हुआ तो पुन: जागर आयोजित की जाती है | कुल मिलाकर इसमें पहली जागर की बात दोहराई जाती है साथ ही एक सप्ताह की
निश्चित अवधि या जितना शीघ्र हो सके पूजा आयोजन का आदेश दिया जाता है | पूजा के लिए आवश्यक सामग्री मंगाई जाती है
जिसमें एक या अधिक बकरियां, मुर्गे और शराब का होना जरूरी है | यह पूजा रात को किसी सुनसान जंगल या गधेरे में होती
है जहां मांस- मदिरा मिश्रित उन्माद में ये लोग रात्रि पिकनिक मनाते हैं |
जागरों के आयोजन तथा पूजा में अथाह धन फूंकने के बाद भी संकट का निवारण नहीं होता तो पुन: जागर आयोजन किया जाता है
जिसमें डंगरिया दो टूक शब्दों में कहता है, “तुम्हारे भाग्य का दुःख है भोगना ही पड़ेगा ।” एक लम्बे अंतराल तथा धन की
बरबादी के बाद डंगरिये के ये शब्द सुनकर निराशा ही हाथ लगती है | कई बार तो उस रोगी की मृत्यु भी हो जाती है जिसके
ठीक होने के लिए जागरों का आयोजन किया जाता है |
उत्तराखंड में लोक विश्वास का रूप लिए हुए यह अंधविश्वास अपनी जड़ जमाये हुए है जिसका शिकार महिलाएं तथा गरीब ही अधिक
होते हैं | अशिक्षा और अन्धविश्वास की क्यारी में उपजी यह प्रथा विरोध करने वालों को नास्तिक कहने में देर नहीं करती
| कई जागरों और पूजा के पश्चात वांच्छित परिणाम नहीं मिलने का कारण डंगरियों से पूछना उन्हें ललकारने जैसा है | ऐसा
जोखिम यहां कोई उठाने को तैयार नहीं | लकीर के फ़कीर बन कर सब मूक दर्शक बने रहते हैं | डंगरियों का डर समाज में इस
तरह घर कर गया है कि लोग इनकी खुलकर भर्त्सना भी नहीं कर सकते | लोग सोचते हैं यदि इनसे तर्क करेंगे तो कहीं ये कुछ
उलटा-पुल्टा न कर दें | अधिकांश डंगरिये- जगरिये निरक्षर या कम पढ़े लिखे होते हैं | ये भ्रम और अन्धविश्वास फैलाने
में दक्ष होते हैं | सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि शिक्षित समाज भी इन्हें देखकर मसमसाते अवश्य रहता है परन्तु
खुलकर विरोध नहीं करता |
अच्छा तो यह होता कि लोग रोगी को चिकित्सक या वैद्य के पास ले जाते | कैसी भी जटिल समस्या क्यों न हो उससे जूझने के
लिए स्वयं को तैयार करते, असफलता से पुनः लड़ते, साहस- धैर्य- बुद्धि से समस्या का समाधान ढूंढते, भाग्य के भरोसे न
बैठकर परिश्रम करते, स्वयं में बदलाव लाते, क्रोध- अव्यवहारिकता- स्वार्थ तथा चमत्कार की आशा को त्यागकर सहिष्णु,
आशावादी, व्यवहारिक, निःस्वार्थी तथा कर्म में विश्वास करने वाले बनते | साथ ही इस सत्य को भी समझते कि दुःख- सुख एक
दूसरे से जुड़े रहते हैं |अंत में एक बात और- जागर समर्थक समाज में ज्ञान वर्धक एवं कर्म की ओर अग्रसर करने वाले
आयोजनों का कोई अर्थ नहीं होता | यदि गांव में रामलीला, भगवत प्रवचन, कोई सांस्कृतिक समारोह, देशप्रेम की बात तथा
जागर अलग- अलग स्थानों में एक ही रात्रि या दिन में आयोजित हो रहे हों तो सबसे अधिक उपस्थिति या भीड़ जागर में ही
होती है | शिक्षा और कर्म के खरल में सफलता की बूटी हमें स्वयं तैयार करनी होगी |
इस वेदना की कथा अनंत है | “पढ़े लिखे अंधविश्वासी बन गए लेकर डिग्री ढेर/ अन्धविश्वास के मकड़जाल में फसते न लगती
देर/, पण्डे ओझा गुणी तांत्रिक बन गए भगवान्/ आँख मूंद विश्वास करे जग त्याग तथ्य विज्ञान |”
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2020
बिरखांत -349 : जागर नहीं है मर्ज की दवा (i)
देवताओं की भूमि कहा जाने वाला प्रदेश उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य, स्वच्छ वातावरण तथा अनगिनत देवालयों के लिए
प्रसिद्ध है | यहां के निवासी परिश्रम, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, देशप्रेम तथा जुझारूपन के लिए भी जाने जाते
हैं | साक्षरता में भी अब यह प्रदेश अग्रणीय हो रहा है | रोजगार के अभाव में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | इस
पहाड़ी राज्य में पहाड़ से भी ऊँची रुढ़िवादी परम्पराएं यहां के निवासियों को आज भी घेरे हुए है |
ऐसी ही एक परम्परा है ‘जागर’ जिसे यहां ‘जतार’ या ‘जागरी’ के नाम से भी जाना जाता है | पूरे राज्य में यह परम्परा
भिन्न-भिन्न नाम से समाज को अपने मकड़जाल में फंसाए हुए है | सभी जाति- वर्ग का गरीब- अमीर तबका इस रूढ़िवाद में जकड़ा
हुआ है जिसे इस जकड़ का तनिक भी आभास नहीं है |
इस तथाकथित समस्या समाधान के लिए आयोजित की जाने वाली ‘जागर’ में मुख्य तौर से तीन व्यक्तियों का त्रिकोण होता है |
पहला है ‘डंगरिया’ जिसमें दास द्वारा ढोल या हुड़के की ताल- थाप पर देवता अवतार कराया जाता है जिसे अब ‘देव नर्तक’
कहा जाने लगा है | दूसरा है ‘दास’ जिसे ‘जगरिया’ अथवा ‘गुरु’ भी कहा जाता है | यह व्यक्ति जोर- जोर से बिजेसार (ढोल)
अथवा हुड़का (डमरू के आकार का स्थानीय वाद्य ) बजाकर वातावरण को कम्पायमान कर देता है | इसी कम्पन में डंगरिये में
देवता अवतरित हो जाता है | देवता अवतार होते ही डंगरिया भिन्न- भिन्न भाव- भंगिमाओं में बैठकर अथवा खड़े होकर नाचने
लगता है | इस दौरान ‘दास’ कोई लोकगाथा भी सुनाता है | लोक चलायमान यह गाथा जगरियों को पीढ़ी डर पीढ़ी कंठस्त होती है |
वीर, विभत्स, रौद्र तथा भय रस मिश्रित इस गाथा का जगरियों को पूर्ण ज्ञान नहीं होता क्योंकि सुनी- सुनाई यह कहानी
उन्हें अपने पुरखों से विरासत में मिली होती है | यदि इस गाथा में कोई श्रोता शंका उठाये तो जगरिया उसका समाधान नहीं
कर सकता | उसका उत्तर होता है “ बुजर्गों ने इतना ही बताया |”
‘जागर’ आयोजन का तीसरा कोण है ‘सौंकार’ अर्थात जो व्यक्ति अपने घर में जागर आयोजन करवाता है | ‘सौंकार’ शब्द
‘साहूकार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है धनवान या ऋण देनेवाला | जागर आयोजन करने वाला व्यक्ति अक्सर गरीब होता है
परन्तु जागर में उसे ‘सौंकार’ फुसलाने के लिए कहा जाता है ताकि वह इस अवसर पर खुलकर धन खर्च करे |
‘जागर’ आयोजन का कारण है आयोजक किसी तथाकथित समस्या से ग्रस्त है जिसका समाधान जागर में करवाना है | बीमार पड़ने,
स्वास्थ्य कमजोर रहने, कुछ खो जाने, परिजन का आकस्मिक निधन हो जाने, पशुधन सहित चल- अचल सम्पति का नुकसान होने,
पुत्र-पुत्री के विवाह में विलम्ब होने, संतान उत्पति में देरी अथवा संतान नहीं होने, संतान का स्वच्छंद होने, संतान
उत्पति पर जच्चा को बच्चे के लिए दूध उत्पन्न नहीं होने, विकलांग शिशु के जन्म लेने, तथाकथित ऊपर की हवा (मसाण –भूत,
छल- झपट ) लगने, किसी टोटके का भ्रम होने, दुधारू पशु द्वारा दूध कम देने, जुताई के बैलों की चाल में मंदी आने,
तथाकथित नजर (आँख) लगने, परीक्षा में असफल होने, नौकरी न लगने, परिजन के शराबी- नशेड़ी- जुआरी बनने, सास- बहू में तू-
तड़ाक होने अथवा मनमुटाव होने, परिवार- पड़ोस में कलह होने, पलायन कर गए परिजन का पत्र अथवा मनीआर्डर न आने अथवा
आशानुसार उसके घर न आने जैसी आए दिन की समस्याएं जो वास्तव में समस्या नहीं बल्कि जीवन की सीढ़ियां हैं जिनमें हमें
चलना ही होता है, जागर आयोजन का प्रमुख कारण होती हैं | वर्षा नहीं होने, आकाल पड़ने अथवा संक्रामक रोग फ़ैलने पर
सामूहिक जागर का आयोजन किया जाता है जिसका अभिप्राय है रुष्ट हुए देवताओं को मनाना परन्तु ऐसा कम ही देखने को मिला
है जब जागर के बाद इस तरह के संकट का निवारण हुआ हो |
व्यक्तिगत जागर पर विहंगम दृष्टिपात करने पर स्पष्ट होता है कि उपरोक्त में से किसी भी समस्या के पनपते ही
समस्या-ग्रस्त (दुखिया) व्यक्ति डंगरिये तथा जगरिये से सलाह- मशवरा करके जागर आयोजन की तिथि निश्चित करता है | पूरा
गांव जागर वाले घर में एकत्रित हो जाता है | समस्या समाधान की उत्सुकता सबके मन में बनी रहती है | दास- डंगरिये को
भोजन कराया जाता है | (अब शराब भी पिलाई जाती है ) | धूप- दीप जलाकर तथा गोमूत्र छिड़क कर स्थान को पवित्र किया जाता
है | डंगरिये को आसन लगाकर बैठाया जाता है | ठीक उसके सामने जगरिया और उसका साथी तासा (रौटी) वाला बैठता है |
डंगरिये को भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू के ऊपर छोटे छोटे जलते हुए कोयले रखे जाते हैं ) दी जाती है जिसे वह धीरे-
धीरे कश लगाकर पीते रहता है | पंच- कचहरी (वहाँ मौजूद जन समूह ) में धूम्रपान का सेवन खुलकर होता हे | नहीं पीने
वाला भी मुफ्त की बीड़ी- सिगरेट पीने लगता है | इसी बीच जगरिया अद्वायी (गाथा) सुनाने लगता है | शेष भाग अगली बिरखांत
350 में...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12.2020
खरी खरी -760 : ' देवी- देवता ' ऐसे तो नहीं आते ?
शादी में महिला संगीत और कीर्तन भी दो विधाएं आजकल देखादेखी खूब रंग में हैं | महिला संगीत में स्थानीय भाषाओं को
सिनेमा के गीतों ने रौंद दिया है | ‘चिकनी चमेली..., बदतमीज दिल...., आंख मारे ...जैसे सिने गीतों की भरमार है |
कैसेट- सी डी या डीजे लगाओ और आड़े- तिरछे नाचो, हो गया महिला संगीत | कहाँ गये वे ‘बनड़े’ जैसे परम्परागत गीत ?
कीर्तन में भी पैरोडी संग नृत्य हो रहा है | सिनेमा के गीत की धुन में शब्दों का लेप लगा कर माता रानी को रिझाने का
एक निराला अंदाज बन गया है | ' बृज की छोरी से राधिका गोरी से ...' (सिने गीत ' हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से ...)
। पता नहीं ये कौन लोग हैं जो कृष्ण की अनन्य भक्त राधा का कीर्तन में कृष्ण से ब्याह कराना चाहते हैं ? लोग तालियां
बजाते है या नाचने लगते हैं ।
आजकल हरेक कीर्तन में कुछ महिलाओं में ‘देवी’ आ जाती है जो आयोजकों से हाथ जुड़वा कर ही थमती है | पता नहीं दूसरे के
घर में बिन बुलाये ये ‘देवी’ आ कैसे जाती है ? आना ही है तो अपने घर में आ और अपने घरवालों को राह दिखा, दूसरे के घर
में यह सबके सामने तमाशा क्यों ? कीर्तन में यह शोभा भी नहीं देता जबकि ‘देवी’ वाली अमुक आंटी चर्चा में आकर भविष्य
में गणतुवा भी बन सकती है | जिस कीर्तन में अपनी ही संस्कृति की झलक हो उसे उत्तम कीर्तन कहा जाएगा |
इधर आजकल सांस्कृतिक आयोजन में कुछ कलाकार मंच से गायन की ‘जागर’ विधा गाते हैं तो दर्शकों में बैठी कुछ महिलाओं (
पुरुषों को भी )को 'देवी ' आ जाती है । चप्पल पहने, बिन हाथ-मुंह धोये दर्शकों के समूह में यह ‘देवी’ पता नहीं क्यों
आ जाती है ? गीत - संगीत थमते ही देवी चली भी जाती है क्योंकि यह सब गीत - संगीत का असर होता है । लोग इनके आगे हाथ
जोड़कर महिमा मंडन करने लगते हैं और गायक भी स्वयं को धन्य समझने लगता है । हमने यह जरूर सुना - देखा है कि कुछ लोग
' जागर ' में अपने घर पर देवी या देवता नचाते है परन्तु इसकी एक श्रद्धा - मर्यादा वे जरूर अपनाते हैं । आयोजनों में
इस तरह किसी स्त्री या पुरुष में देवी - देवता नाचना और उसका महिमामंडन करना एक अनुचित परम्परा को प्रोत्साहन देना
है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12.2020
मीठी मीठी - 542 : दो बारातों की बात
जब बारातों की चर्चा होती है तो इन दो बारातों की चर्चा हो ही जाती है । कुछ महीने पहले एक समाचार के अनुसार बिहार
के पटना में एक शादी बड़ी सादगी के साथ सम्पन्न हुई । इस शादी में कई अतिथियों ने अपना अंग दान किया और कइयों ने बिना
दहेज के विवाह का संकल्प पत्र भरा । बिना दहेज, बिना बैंड बाजे, बिना नाच-गाने, बिना डीजे- डिस्को और बिना भोज की इस
शादी को कई गणमान्य लोगों ने देखा । यहाँ केवल चाय की व्यवस्था थी और चार-चार लड्डू प्रसाद स्वरूप प्रत्येक आगन्तुक
को दिये गए । दहेज रहित इस शादी में कोई भी गिफ्ट स्वीकार नहीं किया गया जिसकी सूचना आगन्तुकों को पहले से दी गई थी
।
एक अन्य समाचार के अनुसार इसी दिन एक बारात मुरादाबाद उ.प्र. से कोटा, राजस्थान पहुंची । दूल्हा और दुल्हन दोनों ही
उच्च शिक्षा प्राप्त थे । शादी के एक दिन पहले यहां सगाई हुई जिसमें दुल्हन के पिता ने पैंतीस लाख ₹ के सोने के जेवर
और इक्कीस लाख ₹ नकद दिए । शादी के दिन दहेज लोभी दूल्हे का लालच बढ़ गया और उसने एक करोड़ ₹ की मांग कर दी । साथ ही
प्रत्येक बाराती को एक -एक सोने का सिक्का देने का हुकम भी चला दिया । जब दुल्हन को इस बात का पता चला तो उसने दहेज
के भूखे दूल्हे रूपी इस भेड़िये से शादी करने से इनकार कर दिया । सबसे बड़ी बात तो यह है कि दुल्हन के पिता ने इस
दुःखद घटना की चर्चा मंच पर जा कर तब की जब सभी मेहमान खाना खा चुके थे । इसके बाद बारात बिना दुल्हन के लौट गई
।
ये दोनों घटनाएं बिना किसी विश्लेषण के हम से बहुत कुछ कहतीं हैं । एक तरफ एक दूल्हे ने दहेज तो छोड़ो, भोज तक नहीं
लिया और दूसरी तरफ एक दूल्हे रूपी भेड़िये ने लालच की सभी सीमाओं को पार कर दिया । एक दूल्हा शुभकामनाओं सहित अपनी
दुल्हन के साथ विदा हुआ और दूसरा दूल्हा रूपी भेड़िया बिन दुल्हन के अपने मुंह में थूका कर बेशरमी से गर्दन झुकाए लौट
गया ।
हमें इन दोनों घटनाओं की चर्चा अपने परिजनों, दोस्तों और सहकर्मियों से अवश्य करनी चाहिए । यदि हम यह चर्चा कर सके
तो हमने समाज में व्याप्त दहेज प्रथा के उन्मूलन में अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा योगदान दिया समझा जाएगा । स्वेच्छा
से नए जोड़े को सामर्थ्यानुसार कुछ उपहार दिए जा सकते हैं परन्तु दहेज की मांग कभी भी स्वीकार नहीं होनी चाहिए । दहेज
विरोधी कानून होने के बावजूद भी दहेज के दानव ने विवाह के कई मंडपों को बिरान कर दिया और कई परिवार तवा हो गए
।
( कोरोना संक्रमण के विश्व में 7.62 करोड़ से अधिक केस हो गए हैं जबकि 16.85 लाख इसके ग्रास हुए हैं । हमारे देश में
भी कल यह संख्या 1 करोड़ 15 हजार को पार गई है जबकि 1.45 लाख लोग इस रोग के ग्रास हो चुके हैं । समस्या अब भी बनी
हुई है । अपना बचाव जरूरी, मास्क पहनो रखो देह दूरी ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.12. 2020
खरी खरी - 759 : भटका दिए जाते हैं जनहित मुद्दे
कुछ महीने पहले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में छपे एक लेख "असली हिन्दू, नकली हिन्दू" देश का ध्यान इस
ओर
आकर्षित करता है कि सोमनाथ मंदिर (गुजरात) में गैर हिन्दुओं की प्रविष्टि के लिए अलग रजिस्टर क्यों रखा गया ? इस
मुद्दे पर हमारे मीडिया खूब टी आर पी बनाई । यह वही मीडिया है जो कुछ समय पहले शनि सिगनापुर मंदिर में स्त्री की
प्रविष्टि नहीं होने पर बहुत आंदोलित था या सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश किये जाने पर पक्षधर था । अब सबरीमाला
मंदिर पर भी मीडिया का रुख बदल गया है और चुप्पी साध ली । अधिकांश मीडिया सुविधाजनक सिद्धांत पर चलने लगा है । हमारी
मीडिया को इस विभाजनकारी प्रवृति से निजात कब मिलेगी या मिलेगी भी कि नहीं ? जाति - धरम के मुद्दों को हवा देने के
बजाय भारत और भारतीयता की बात होती तो देश का हित होता ।
कुछ मीडिया चैनल इस मुद्दे पर चुप रहे । एक ओर हम देश में संविधान में स्त्री - पुरुष के बराबरी की बात करते हैं और
दूसरी ओर हम यह सामाजिक खाई क्यों चौड़ी करते जा रहे हैं ? मंदिर में किसी भी श्रद्धालु को अपनी श्रद्धानुसार प्रवेश
पर न कोई पाबंदी होनी चाहिए और न किसी प्रकार का जातीय भेदभाव इंगित किया गया नजर आना चाहिए । देश में सामाजिक
विषमता को सिंचित करने के किसी भी कारक को नहीं बख्शा जाना चाहिए और इस तरह के राग-द्वेष उत्पन्न करने वाली प्रथाओं
को शीघ्रता से बंद किया जाना चाहिए । इसके लिए कानून पहले से ही है जिसकी आएदिन अवहेलना होती है ।
इसी तरह इस बीच मंदिर जाने या नहीं जाने पर भी मीडिया ने बहुत कोलाहल किया । यह एक व्यर्थ शोर था । धार्मिक अनुष्ठान
करना किसी भी व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण है । कोई करे या नहीं करे इससे उस व्यक्ति की श्रेष्ठता से कोई लेना -देना
नहीं । मीडिया को इस तरह के व्यर्थ मुद्दों पर समय नष्ट करने के बजाय देश हित की चर्चाओं जैसे किसान, जवान, शिक्षा,
विज्ञान, पर्यावरण, अंधविश्वास निवारण, सामाजिक सौहार्द आदि के विषय में वार्ता करनी चाहिए तथा देश में व्याप्त
भ्रष्टाचार, रुढ़िवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, सामाजिक विषमता, आतंकवाद, बढ़ती मंहगाई, और कट्टरता के विरोध में खुलकर
चर्चा करनी चाहिए ।
( आज की यह खरी खरी किसान आंदोलन के 24वें दिन को समर्पित है । देश के सभी किसान तो गलत नहीं हो सकते । किसानों को
मिलता हुआ जन जन का अपार समर्थन भी गलत नहीं हो सकता । देश हित में किसानों की बात को उदारता से सुना जाना चाहिए ।
कुछ लोग उनके लिए बेहद अशिष्ट शब्द बोलते हैं जो गलत है । इन्हीं किसानों के बेटे देश के जवान भी हैं और हमारा नारा
भी ' जय जवान जय किसान ' है । कल्पना कीजिए यदि किसान भी हड़ताल कर दें तो क्या हमारा अस्तित्व रहेगा ? लेकिन वह
हड़ताल नहीं करता क्योंकि वह अन्नदाता है, जिससे मानव का और जीव का अस्तित्व है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.12. 2020
खरी खरी - 758 : कस जमान ऐगो
ब्या में बरेतिय लोग सिद
ब्योलि कै घर ऊंनी,
खै-पी बेर लिफाफ
ब्यौला बाप कैं पकडूंनी,
कै दगै बात करण क
टैम न्हैति बतूनी,
जैमाव डाउण है
पैलिकै खसिकि ऊंनी,
बरयात कूण में सिरफ
ब्यौलक परिवार वां रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
ब्या क लगन कि
परवा क्वे नि करन,
वीडियो फोटो वलांक
सब जाग हुकम चलूं,
खिसाई बामण चुपचाप
टकटकी लगै भैरां,
कभतै झपकि ल्युछ
कभतै आंख मिनू,
फोटोग्राफी भलि है गेई
समझो भल ब्या हैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पैली बै सरास जाणता
ब्योलि डाड़ मारछी,
आब आंसु लै नि ऊँन
सरास जाणकि खुशि
और मेकअपकि फिकर,
यास में डाड़क के
मतलब नि हुन,
डाड़ निकाउणक लिजी
डाड़क कैसेट बाजैं फैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
ब्या होते ही
ब्यौल बदलि जां,
भली निकरन
घरववां हूँ बात,
उतकै बै मानू
ब्योलिक ऑडर
भाजि बेर सुणु
विकी धात,
ब्याकै दिन बै उ
ब्योलिक कब्ज में न्हैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
18.12.2020
खरी खरी -757 : थोड़ा समय तो दें बच्चों को !
बीते समय पहले ग्रेटर नोएडा में कक्षा 11 के एक लड़के द्वारा अपनी मां और छोटी बहन की अपने ही घर में हत्या कर दी ।
इस दिल दहला देने वाली घटना ने एक बार फिर समाज के सामने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि हमारे नौनिहाल कहां जा रहे हैं
? इस हिंसा के लिए देखा जाय तो अभिभावक जिम्मेदार हैं । कक्षा 11 का छात्र करीब 16- 17 वर्ष का रहा होगा । अभी हाल
में एक कक्षा 7 की लड़की ने अध्यापक की मामूली डांट पर घर आकर आत्महत्या कर ली ।
सत्य तो यह है कि हमने बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया । बच्चों पर बाल्यकाल से ही नजर रखनी पड़ती है । हम तब उन्हें
समझाने की सोचते हैं जब वे किशोर अवस्था के चरम पर होते हैं । हमारे बच्चे कैसे बोल रहे हैं, उनकी चाल-ढाल क्या हो
रही है, उनमें अनुशासन कैसा है, वह घर के कार्यों में कितनी रुचि ले रहा है, भाई-बहन से उसका वर्ताव कैसा है, उसकी
संगत किसके साथ है, उसके कपड़ों से नशा - धूम्रपान की बदबू तो नहीं आ रही, वह बाथरूम-टॉयलेट में कितना समय लगा रहा
है, पढ़ाई तथा स्कूल के कार्य पर वह कितना ध्यान दे रहा है, जंकफूड पर वह कितनी रुचि लेता है, समाज से उसके बारे में
कैसी प्रतिक्रिया मिलती है आदि । इन सब बातों पर मां की नजर अधिक पैनी होनी चाहिए ।
ग्रेटर नोएडा का यह मां - बहन का हत्यारा छात्र एक दिन या एक महीने या एक साल में ऐसा कुपात्र नहीं बना । वह मिडिल
कक्षाओं से बिगड़ चुका था । उसमें परिवार उचित संस्कार नहीं भी नहीं भर सका । उसका मोबाइल भी पिता ने कुछ दिन पहले ही
ले लिया बताया जा रहा है । हम आजकल पालने से ही बच्चों को मोबाइल पकड़ा रहे हैं । हिंसा करना या दुष्कर्म जैसे अपराध
करना बच्चे टेलिविज़न या मोबाइल से सीख रहे हैं । ऐसे बच्चे बहुत जल्दी क्रोधित भी हो जाते हैं ।
इन पंक्तियों के लेखक ने कई बार कई किशोर होते लड़कों को समूह में बैठकर पार्कों में पोर्न देखते पाया है और उन्हें
ऐसा नहीं करने के लिए समझाया भी है । "ब्लू ह्वेल" गेम ने भी कई बच्चे मार दिये । बच्चों पर निरंतर नजर रखने वाले इस
तरह के हादसों से बचे रहते हैं । व्यक्ति कितना भी व्यस्त हो, उसे अपने बच्चों की डायरी और नोटबुक जरूर देखनी चाहिए
। इससे बच्चों को समझने और उन्हें भटकाव से रोकने में मदद मिलेगी ।
(कोरोना के दौर में बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि वे ऑन लाइन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । वास्तव
में शिक्षा ले रहे हैं या कुछ और कर रहे हैं यह अभिभावकों को जरूर देखना चाहिए । निरंकुशता भी बच्चों के लिए घातक है
। 'बचपन की बुनियाद' ही हमारे बच्चों को सफल नागरिक बनाती है । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.12. 2020
बिरखांत - 348 : 16 दिसंबर ‘विजय दिवस’ की याद
आज (16 दिसम्बर) भारतीय सैन्यबल को सलूट करने का दिन है | आज ही के दिन 1971 में हमारी सेना ने पाकिस्तान के 93000
सैन्य-असैन्य कर्मियों से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण करवाया था | इस युद्ध का मुख्य कारण था
करीब एक करोड़ से अधिक पूर्वी पाकिस्तानी जनता द्वारा पाकिस्तान की फ़ौज के अत्याचार से अपनी जान बचा कर भारत में शरण
लेना | तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी जिन्होंने दुनिया का ध्यान भी इस समस्या की ओर खीचा
|
पाकिस्तान को भारत द्वारा शरणार्थियों एवं मुक्तिवाहिनी ( पाकिस्तान के अत्याचारों से लड़ने वाला संगठन) की मदद करना
अच्छा नहीं लगा और उसने 3 दिसंबर 1971 को भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ युद्ध थोप दिया | 14 दिन के इस
युद्ध में पाकिस्तान छटपटाने लगा और उसके सैन्य कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने पूरे सैन्य साजो सामान के
साथ भारतीय सैन्यबल के कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल जे एस अरोड़ा के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया |
इस युद्ध की पूरी बागडोर देश के चीफ आफ आर्मी, जनरल एस एच एफ जे मानेकशा (शैम मानेकशा) के हाथ थी जिन्हें 3 जनवरी
1973 को, भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर देश के राष्ट्रपति ने आजीवन फील्ड मार्शल का रैंक प्रदान किया | बाद में
उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया | 16 दिसंबर 1971 को विश्व के नक्शे में एक नए देश ‘बंग्लादेश’ का जन्म
हुआ जिसके राष्ट्रध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान बने | इस महाविजय पर पूर्व प्रधानमंत्री (तब नेता विपक्ष ) अटल बिहारी
वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री, भारत रत्न, श्रीमती इंदिरा को ‘दुर्गा’ का अवतार बताया था |
आजादी से अब तक के युद्धों में हमारे लगभग साड़े बारह हजार सैनिक शहीद हो चुके हैं जिनमें साड़े तीन हजार से अधिक
सैनिक 1971 के युद्ध में शहीद हुए | इन शहीदों में 255 उत्तराखंड के थे | प्रतिवर्ष हम 16 दिसंबर को अपने शहीदों का
स्मरण करते हुए ‘विजय दिवस’ मनाते हैं और अपने शहीदों को नमन करते हुए उनके परिजनों का दिल से सम्मान करते हैं |
मीडिया में इस दिवस को सूक्ष्म स्थान मिलने का हमें दुःख है | (इन पंक्तियों के लेखक (तब उम्र 23 वर्ष) को उस 14 दिन
के युद्ध में भाग लेने वाली भारतीय सेना का सदस्य होने का सौभाग्य प्राप्त है जिसकी याद में मिला " पश्चिम स्टार "
आज भी मेरे पास मौजूद है | मुझे याद है 3 दिसंबर 1971 (आज से 49 वर्ष पहले) की सायं करीब साढ़े पांच बजे अंधेरा होने
लगा था । तभी दुश्मन का पहला गोला हमारे बहुत नजदीक गिरा था । बंकर ने बचाव किया और हमने अपना कार्य जारी रखा । उन
क्षणों को याद कर आज भी रोमांचित हो जाता हूं । भारतीय सैन्य बल को दिल से बहुत प्यार के साथ बहुत बड़ा सलूट ।
जयहिंद ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.12.2020
विजय दिवस
खरी खरी - 756 : चुप क्यों ?
जब मेरे आंखों के सामने
कभी किसी कन्या भ्रूण का
लहू गिरता है,
किसी नारी का दामन लुटता है,
रेल का डिब्बा सरेआम फुकता है,
किसी वृक्ष पर कुल्हाड़ा चुभता है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब पड़ोसी का घर लुटता है,
जब कोई बेकसूर कुटता है,
जब किसी स्त्री पर हाथ उठता है,
जब सत्य पर कहर टूटता है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब राष्ट्र की संपत्ति लुटती है,
प्रदूषण -धार नदी में घुसती है,
किसी असहाय की सांस घुटती है,
जब भ्रष्टों की जमात जुटती है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब सही मांग उठती है,
जनता सड़क में जुटती है,
न्याय की फरियाद गूंजती है,
करनी कथनी सी नहीं लगती है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
शायद मैं हालात से डर जाता हूं,
मरने से पहले मर जाता हूं,
कर्तव्य पथ पर ठहर जाता हूं,
फर्ज से पीठ कर जाता हूं ।
अगर मैं जिंदा होता,
अपना मुंह अवश्य खोलता,
चिल्लाकर लोगों को बुलाता,
मिलकर उल्लुओं को भगाता ।
शायद मेरी संवेदना मर गई है,
मुझ से किनारा कर गई है,
मेरा खून पानी हो गया है,
मेरा जमीर बिलकुल सो गया है ।
अब कौन मुझे जगायेगा?
कौन उल्लुओं को भगाएगा ?
मैं मुर्दा नहीं, जिन्दा हूं
यह मुझे कौन बताएगा ?
यह सब मुझे ही करना होगा,
वतन परस्तों से सीखना होगा,
भलेही कोई साथ न दे,
मुझे अकेले ही चलना होगा ।
मुझे अकेले ही चलना होगा ।।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.12.2020
खरी खरी - 755 : मिलावट का मोह
हल्दी में खड़िया
धनिए में लीद,
काली मिरच में
पपीते के बीज,
मिरच में लकड़ी का
बुरादा मिला है,
हर मसाले में मिलावट
का सिलसिला है ।
चावल में कंकड़
दाल में पत्थर,
आटे में मिट्टी
लगती है चर चर,
घी-तेल मिलावट से
हो गए बदतर,
अंदर से कुछ भी हो
खुशबू है ऊपर ।
शरबत में शकरीन
मिठाई में रंग है,
हर पकवान मिलावट के
रंग से भरा है,
लगता हरित है
रंग जिस भाजी का,
असली नहीं वह
नकली हरा है ।
'वर्क' मिठाई जो
ओढ़े हुए है,
ज़हर अपने में वह
जोड़े हुए है,
बर्फी में आलू
समाया हुआ है,
दूध में रसायन
मिलाया हुआ है ।
अरे ! ओ मिलावट
के धंधे वालो,
इस कुकृत्य से
अपना मन मोड़ो,
होगी एक दिन
दुर्गति तुम्हारी,
हैवानियत के इस
धंधे को छोड़ो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.12. 2020
खरी खरी - 754 : क्या-क्या बांटोगे ?
( पश्चिम बंगाल चुनाव की आहट )
राजनीति के हाट में
बंट गए भगवान
देखा नहीं था आजतक
ऐसा अद्भुत ज्ञान,
ऐसा अद्भुत ज्ञान
बांटो सूरज चांद सितारे,
धरती जल आकाश बांटो
बांटो प्रकृति नजारे,
जात धर्म और गोत्र की
क्यों रचे चुनाव रणनीति ?
मुद्दों से मत भटको नेता
करो जनहित राजनीति ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.12.2020
खरी खरी - 753 : पर उपदेश
अक्सर हम दूसरों को उपदेश देते हैं कि गलत काम न करें परन्तु स्वयं करते रहते हैं । मैंने कई कवियों को शराब,
धूम्रपान और गुटके के विरोध में मंच से कविता पढ़ते देखा और मंच छोड़ते ही उन्हें शराब या सिगरेट या गुटका सेवन करते
देखा । ये लोग द्वय चरित्र के होते हैं जो उचित नहीं है । दुनिया इन्हें देखती है परन्तु चुप रहती है । कुछ लोग हवन
- यज्ञ या कर्मकांड करते समय भी मुंह में गुटका भरे हुए रहते हैं जिसकी निंदा की जानी चाहिए । यजमान ऐसे लोगों को
टोकने के बजाय अनदेखी कर देते हैं जो गलत है । डंगरिये शराब या भंगड़ी पीकर दुलैंच में बैठ अपनी आरती करवाते हैं और
सौकार आंख बंद कर आरती करते हैं । इसी तरह कुछ वर्ष पहले एक अभीनेत्री ने दिवाली पर पटाखे नहीं चलाने की अपील की थी
लेकिन उनकी शादी में जमकर आतिशबाजी हुई जिसकी खूब आलोचना भी हुई ।
आज कोरोना के दौर में भी यही हो रहा है । हमारे देश 98 लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और 1.42 लाख लोग
इस बीमारी के ग्रास भी बन चुके हैं । जो चले गए उनके परिवार पर क्या बीती वे ही जानते हैं । आज हमारे नेता कोरोना से
बचने के भाषण देते हैं, नित नए नारे/मंत्र देते हैं परन्तु उन पर स्वयं नहीं चलते । हम सबने इन्हें भीड़ में जाते
देखा, रैली करते देखा, जीत का जश्न मनाते देखा और कई बार बिना मास्क के देखा । खुद कानूनों की खिल्ली उड़ाने के बाद
फिर भी ये दूसरों से कानून मानने की उम्मीद रखते हैं । हम सबसे अपील करते हैं कोरोना से बचने के लिए मास्क पहनें,
देह दूरी रखें और अवांच्छित बाहर जाने से बचें ।
हमारे देश में कानूनों की जमकर अवहेलना प्रतिदिन होती है परन्तु जब सेलिब्रेटी काननू की अवहेलना करते हैं तो एक गलत
संदेश समाज में जाता है । उपदेश देना बहुत आसान होता है । हम जो भी उपदेश समाज को दें उस पर पहले खुद अमल करें ।
समाज को सेलिब्रेटी से देश के हित में कुछ सार्थक करने की उम्मीद होती है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.12.2020
खरी खरी - 752 : कभैं आपूहैं पुछो !
भाग्य क भरौस पर
तमगा नि मिलन
पुज-पाठ भजन हवन ल
मैदान नि जितिन,
पसिण बगूण पड़ूं
जुगत लगूण पणी,
कभतै हिटि माठु माठ
कभतै दौड़ लगूण पणी ।
पढ़ीलेखी हाय
पढ़ी लेखियां जस
काम नि करें राय ,
गिचम दै क्यलै जमैं थौ
आपू हैं नि पूछैं राय,
मरि-झुकुड़ि बेर कुण नि बैठो
ज्यौना चार कभें त जुझो,
क्यलै मरि मेरि तड़फ
क्यलै है रयूं चुप
कभैं आपूहैं पुछो ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.12 .2020
बिरखांत -347 : “मैं इंडिया गेट से शहीद बोल रहा हूं जी”
“भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट से मैं ब्रिटिश भारतीय सेना का शहीद इंडिया गेट के प्रांगण का आखों
देखा हाल सुना रहा हूं | 130 फुट (42 मीटर) ऊँचा यह शहीद स्मारक 10 वर्ष में 1931 में बन कर तैयार हुआ | इस स्मारक
पर मेरे नाम के साथ ही मेरे कई शहीद साथियों के नाम लिखे हैं जिन्होंने भारतीय सेना में 1914 - 18 के प्रथम महायुद्ध
तथा तीसरे अफगान युद्ध में अपनी शहादत दी थी |
जब मैं शहीद हुआ तब से कई युद्ध हो चुके हैं | देश की स्वतन्त्रता के बाद 1947-48 के कबाइली युद्ध, 1962 का चीनी
आक्रमण, 1965, 1971 तथा 1999 का पाकिस्तान युद्ध, 1986 का श्रीलंका सैन्य सहयोग, संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना बल और
विगत 30 वर्षों से जम्मू-कश्मीर के छद्म युद्ध में मेरे कई साथी शहादत की नामावली में अपना नाम लिखते चले गए | शहीदी
का सिलसिला जारी है और रहेगा भी | प्रतिदिन मेरा कोई न कोई साथी कश्मीर में भारत माता पर अपने प्राण न्यौछावर करते
जा रहा है |
स्वतंत्रता के बाद देश की राजधानी में कोई ऐसा स्मारक नहीं था जहां शहीदों के नाम अंकित किये जाते | भला हो उन लोगों
का जिन्होंने 1971 के युद्ध के बाद इंडिया गेट पर उल्टी राइफल के ऊपर हैलमट रखकर उसके पास 26 जनवरी 1972 को ‘अमर
जवान ज्योति’ स्थापित कर दी | इंडिया गेट परिसर में एक शहीद स्मारक बनाने का सुझाव मेरी व्यथा को लिखने वाले इस लेखक
ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया गेट का शहीद’ (प्रकाशित २००५) में अवश्य दिया है | अब एक शहीद स्मारक बन चुका है ।
मेरे देश में शहीदों और शहीद परिवारों का कितना सम्मान होता है यह तो आप ही जानें परन्तु मैं इंडिया गेट पर लगे सबसे
ऊँचे पत्थर से चौबीसों घंटे देखते रहता हूं कि यहां क्या-क्या होता है | राष्ट्रीय पर्वों पर हमें पुष्प चक्र चढ़ा कर
सलामी दी जाती है और कुछ देश-प्रेमी जरूर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं | बाकी दिन इंडिया गेट एक पिकनिक स्पॉट बन कर
रह गया है | यहां लोग सैर– सपाटे और तफरी के लिए आते हैं | यहां मदारी बन्दर नचाते हैं, स्वदेशी-विदेशी युगल
प्रेमालाप करते हैं, बच्चों की अनदेखी कर फब्तियां कसते हैं, अश्लील हरकत करते हैं, किन्नर वसूली करते हैं, कारों
में लगे डेक का शोर होता है, भोजन खाकर दोना-पत्तल-प्लास्टिक की थैलियां-खाली बोतल जहां-तहां डालते हैं, खिलौने वाले
और फोटोग्राफर द्विअर्थी संवाद बोलते हैं |
हमें श्रधांजलि देना तो दूर हमारी ओर कोई देखता तक नहीं | हमारे प्रति दिखाई गयी यह उदासी तब जरा जरूर कम होती है जब
कोई इक्का-दुक्का देशवासी मेरी उलटी राइफल, हैलमट और प्रज्वलित ज्योति को देखने के लिए वहाँ पर पल भर के लिए रुकता
है | मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है क्योंकि मैं अपने देश के लिए शहीदी देने स्वयं गया था, मुझे कोई खीच कर
नहीं ले गया | कुछ कलमें मेरी गाथाओं को लिखने के लिए जरूर चल रहीं हैं, कुछ लोग यदा-कदा मेरे गीत भी गाते हैं, क्या
ये कम है मेरी खुशी के लिए ? मैं तो इन पत्थरों में लेटे -लेटे गुनगुनाते रहता हूं –‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां
हमारा’ |"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.12.2020
खरी खरी - 751 : यदि दूल्हा - दुल्हन चाहैं तो ?
देश की राजधानी में आजकल शादियों का जोर है । शादियों के कारण सड़क पर अक्सर जाम लगा रहता है । इस जाम से प्रदूषण
अधिक कष्टदायी हो जाता है । इस प्रदूषण के मुख्य कारक डीजल जनरेटर थे जिसे न्यायालय ने बंद करवा दिया है । भलेही
चोरी से मिलीभगत के साथ अब भी जनरेटर चलाये जा रहे हैं जिनसे खतरनाक प्रदूषण हो रहा है ।
शादियों में प्रदूषण का एक कारण आतिशबाजी भी है । बरात जहां से चलती है और जहां पहुंचती है इन दोनों जगह पर जम कर
आतिशबाजी होती है । जाम के कारण या शराबी बरेतियों के कारण अक्सर बरात गंतव्य तक देरी से पहुंचती है । तब आस - पास
के लोग अपने घरों में आराम कर रहे होते हैं या सो गए होते हैं । ठीक इसी समय जमकर आतिशबाजी होने लगती है, जोर -जोर
डीजे बजने लगता है । रिपोट करने पर उल्टे पुलिस की छत्रछाया इस अवसर पर बढ़ जाती है । अब लोग किससे कहें ? गसगसाते -
मसमसाते हुए तंत्र को गाली देकर अपना क्रोध शांत करते हैं ।
ऐसी विकट परिस्थितियों में यदि दूल्हा -दुल्हन चाहे तो पहले से ही आतिशबाजी के लिए मना कर सकते हैं । आतिशबाजी नहीं
होने से शादी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि लोगों को शोर - प्रदूषण से छुटकारा मिल जाएगा और दूल्हा - दुल्हन को
आशीर्वाद भी दिल से मिलेगा । उम्मीद करते हैं दाम्पत्य डोर में बंधने वाले युवा और युवतियां अपनी मिलन की इस सुमधुर
बेला में जन - जन का आशीर्वाद तो लेंगे साथ ही प्रदूषण से हमारे व्यथित पर्यावरण को भी बचाएंगे ।
( कोरोना के कारण इस वर्ष शादियां कम हुई हैं लेकिन पटाखे कम नहीं हुए ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.12.2020
स्मृति 539 : भारत रत्न बाबा साहेब
आज 6 दिसम्बर, भारत रत्न डा.बी आर अंबेडकर (बाबा साहेब) क महापरिनिर्वाण दिवस छ । किताब " लगुल " में लेखी उनार बार
में एक लघुलेख याँ उधृत छ । बाबा साहेब कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.12.2020
मीठी मीठी -538 : घरवाइ कैं लै खवाै
म्यार पड़ोसक चनरदा
घरवाइ-भक्ति पैलिकै बै करैं रईं,
ऑफिस बै आते ही चट्ट
रसोइ में घुसी जां रईं ।
पिसी लै वलि दिनी
भान लै खकोइ दिनी,
घरवाइ दगै ठाड़ है बेर
साग लै खिरोइ दिनी ।
एक दिन उं रसोइ में
भौत व्यस्त है रौछी,
मी भ्यार बै ठाड़ है
बेर उनुकैं चै रौछी ।
मील कौ हो किलै आज
मालिक्याण कां जैरीं,
जो तुमार हूं एकलै
फान फुताड़ लैरीं।
अरे यार वीकि मुनाव
पीड़ हैरै, अलै आंख लैरीं,
नान रवाट खणा लिजी
टकटकै बेर चैरीं ।
मील कौ यार नना हूं
किलै आपूं हैं लै पकौ,
द्वि रवाट तुम लै खौ
और बीमार कैं लै खवौ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.12.2020
खरी खरी - 749 : चुनाव भी : जिंदगी की जंग '
प्रजातंत्र में चुनाव भी
'जिन्दगी की जंग'
का हिस्सा है।
एक मित्र के पूछने पर कि
वोट किसको देगा ?
दूसरे मित्र ने बताया,
"यार एक वोट है,
क्या करना है जहां
मन करेगा बटन दबा दूंगा।
मैं इस बारे में ज्यादा
गंभीरता से नहीं सोचता ।"
मित्र का यह उत्तर उचित
नहीं है। प्रजातंत्र में ही वोट
का अधिकार मिलता है ।
जीतने वाले ही हमारे
भविष्य की नीतियां बनाते हैं ।
आप भलेही किसी दल या
व्यक्ति को वोट करें परन्तु
बड़ी गम्भीरता से सोच-
विचार कर, मन बनाकर
बड़े उत्साह से वोट करें।
चुनावी जंग में सुनें
सबकी, करें अपने मन की ।
चुनाव में वोट अवश्य करें
परन्तु सोच- समझकर
वोट करें क्योंकि इस
एक वोट के साथ हमारी
'जिंदगी की जंग' भी जुडी़ है ।
( 10 दिन हो गए, विगत 23 नवम्बर 2020 से दिल्ली में भी 'जिंदगी की जंग' लड़ी जा रही है, हां किसानों द्वारा दिल्ली
की सड़कों पर । तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर ...। )
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.12.2020
मीठी मीठी - 538 : नौसेना दिवस की शुभकामनाएं
आज 4 दिसम्बर 'भारतीय नौसेना दिवस' के उपलक्ष्य में देश की नौसेना को हार्दिक शुभकामनाएं एवं जयहिन्द । 4 दिसम्बर
1971 को हमारी नौसेना ने पाकिस्तान के कराची नेवल बेस को ध्वस्त किया था । यह उस युद्ध की जीत के जश्न के बतौर मनाया
जाता है ।
हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम,
सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी,
होती तेरी चर्चा आम |
गुरखा सिक्ख बिहारी कहीं तू,
कहीं तू जाट पंजाबी,
कहीं कुमाउनी कहीं गढ़वाली,
कहीं मराठा मद्रासी |
कहीं राजपूत डोगरा है तू,
कहीं महार कहीं नागा,
शौर्य से तेरे कांपे दुश्मन,
पीठ दिखाकर भागा |
नहीं हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
तू है हिन्दुस्तानी,
मातृभूमि पर मर मिट जाए,
ऐसा अमर सेनानी |
मात-पिता पत्नी बच्चे
रिश्तेदार या घर संसार,
आंख के आगे ये नहीं होते
सामने जब करतब का भार ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.12.2020
मीठी मीठी - 537 : डॉ राजेंद्र प्रसाद स्मरण
आज 3 दिसंबर देशक पैल राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद ज्यूक जन्म दिन । उनार बार में एक लेख ' लगुल '
किताब बै द्वि भाषा में यां उद्धरत छ । डॉ प्रसाद कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.12.2020
बिरखांत – 346 : गणतुवों (पुछारियों) के तुक्के
अंधविश्वास की जंजीरों में बंधा हमारा समाज गणतुवों या पुछारियों के झांसे में बहुत जल्दी आ जाता है | लोग अपनी
समस्या समाधान के लिए गणतुवों के पास आते हैं या भेजे जाते हैं | कभी- कभार उनका तुक्का लग जाता है तो उनके श्रेय का
डंका पिटवाया जाता है | तुक्का नहीं लगने पर भाग्य- भगवान्- किसमत –नसीब -करमगति कह कर वे पल्ला झाड़ देते हैं
|
विगत कुछ वर्ष पहले दिल्ली महानगर में ऐसी ही एक घटना घटी | मेरे एक व्यक्ति का उपचाराधीन मानसिक तनाव ग्रस्त युवा
पुत्र अचानक दिन में घर से बिन बताये चला गया | इधर -उधर ढूंढने के बावजूद जब वह देर रात तक घर नहीं आया तो थाने में
उसकी रिपोट लिखाई गई | इस तरह परिवार का पहला दिन रोते-बिलखते बीत गया | दूसरे दिन प्रात: किसी मित्र के कहने पर
पीड़ित माता- पिता गणत करने वाली एक महिला (पुछारिन) के पास गये | पुछारिन बोली, “आज शाम से पहले तुम्हारा बेटा घर आ
जाएगा | वह सही रास्ते पर है, सही दिशा पर चल रहा है | तुम बिलकुल भी चिंता मत करो |”
उसी रात थाने से खबर आती है कि आपके बताये हुलिये के अनुसार एक लाश अमुक अस्पताल के शवगृह (मोरचुरी) में है | परिजन
वहां गए तो मृतक वही था जो घर से गया था | चश्मदीदों ने बताया कि यह व्यक्ति उसी दिन (अर्थात गणत करने के पहले दिन )
रात के करीब साड़े नौ बजे दुर्घटनाग्रस्त होकर बेहोशी हालत में पुलिस द्वारा अस्पताल लाया गया | उसकी मृत्यु लगभग तभी
हो गयी थी | दस-ग्यारह घंटे पहले मर चुके व्यक्ति को पुछारिन ने बताया कि ‘वह सही दिशा में चल कर घर की ओर आ रहा है’
|
इस धंधे के लोग किस तरह समाज को बरगलाते हैं, यह एक उदाहरण है | यदि पुछारिन के पास कुछ भी ज्ञान होता तो वह कह सकती
थी ‘वह व्यक्ति घोर संकट में है या परेशान है, अड़चन में फंसा है |’ पोस्टमार्टम और अंत्येष्टि के बाद पुछारिन को जब
यह दुखद समाचार भिजवाया गया तो उसने ‘भाग्य -भगवान्- किसमत- नसीब- करम -परारब्ध- ब्रह्मलेख’ आदि शब्दों को दोहरा
दिया | यदि वह व्यक्ति जीवित आ जाता तो यह पुछारिन महिमामंडित हो जाती जबकि उससे आज ‘तूने तो ऐसा बताया था’ पूछने
वाला कोई नहीं है |
सच तो यह है कि दोषी हम हैं जो इस प्रकार के तंत्रों के जाल में फंसते हैं और कभी सही तुक्का लगने पर इनकी वाह-वाही
का डंका पीटते हैं | कब जागेगा तू इंसान ? किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को महिमामंडित नहीं करने से हम समाज में
सुधार ला सकते हैं | चर्चा तो कर ही सकते हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.12.2020
खरी खरी - 748 : हमार नेता और किसान
अघिल -पिछाड़ि नेता हमूकैं भुलि जानी
चुनाव क टैम गिड़गिड़ानै ऐ जानी,
हात जोड़नी इजा - बाबू कै जानी
वोट पड़ते ही पुठ देखै न्है जानी ।
यूं मुख में राम राम बगल में छुर धरनी
जाड़ काटी नि देखिन टुक सुकिये देखिनी,
इनरि खाल लै मोटि हैं निबुड़न तीर
यौ मनखियौ क रूप छ बिना जमीर ।
उम्मीद निछोड़ण चैनि वोट दिण पड़ल
कभैं त क्वे माई च्यल जरूर पैद ह्वल,
जो वोट दिणियांक नजर में खर उतरल
वोट- चुनाव और प्रजातंत्र कि लाज धरल ।
अघिल पिछाड़ि किसानों कि बात हिंछ
ऐन मौक पर उनरि बात नेता नि सुणन,
नेता कूंरीं किसान भैम -भड़कूण में ऐ गईं
पर देशाक सबै किसान गलत नि है सकन।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.12.2020
खरी खरी - 747 : ये बाजार में नहीं मिलेंगे !
तुम्हारी कुंठा अहंकार ने
दूर रखा तुम्हें सदाचार से,
पैसे से यदि मिल जाएं तो
ये चीजें ले आना बाजार से ।
खुशी नींद भूख स्वास्थ्य
संतोष सुमति ले आना,
कुछ दुआ आशीर्वाद देशप्रेम
कुछ संस्कार संस्कृति ले आना ।
मित्रता दोस्ती स्नेह सभ्यता
रिश्तेदार घर परिवार पड़ोस ले आना,
थोड़ा ज्ञान थोड़ी मुस्कान
थोड़ा शिष्टाचार भी ले आना ।
खूब दौड़ -भाग कर लो
तुम ढूंढते रह जाओगे,
परंतु ये सभी वस्तुएं
किसी बाजार में न पाओगे ।
कोई कितना ही मोल देदे
ये बाजार में नहीं मिलते,
मानव संवेदना स्रोत इनका
ये किसी दुकान में नहीं बिकते ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.12.2020
मीठी मीठी -536 : आज 30 नवम्बर गुरुपूरब
आज 30 नवम्बर, सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी की 551वीं जयंती अर्थात गुरपूरब है । इस पुनीत अवसर की सभी को
शुभकामना । "लगुल" पुस्तक का लघु लेख "गुरुनानक देव'' यहां उधृत है ।
होली दीवाली दशहरा,
पितृ पक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमस बिहू पोंगल
गुरुपुरब लोहड़ी,
वृक्ष रोपित एक कर
पर्यावरण को तू सजा,
हरित भूमि बनी रहे
जल जंगल जमीन बचा ।
आज इस पर्व को मनाने के साथ कम से कम एक पेड़ जरूर रोपें और उसका संरक्षण करें । धरती मां का श्रृंगार करें । धरती
बचेगी तो सभी त्योहार होंगे, लोहड़ी भी होगी और गुरपूरब भी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2020
खरी खरी - 746 : अन्नदाता कृषक
अन्नदाता की यह गाथा हम सबको जाननी चाहिए क्योंकि उसके परिश्रम पर ही हमारा जीवन निर्भर है । वायु और जल के बाद
मनुष्य को उदर पूर्ति के लिए अन्न और तन ढकने के लिए वस्त्र की मूलभूत आवश्यकता है | यदि ये दोनों वस्तुएं नहीं
होतीं तो शायद मनुष्य का अस्तित्व नहीं होता और यदि होता भी तो वह अकल्पनीय होता |
आज जब हम अन्न और वस्त्र का सेवन करते हैं तो हमारी मन में यह सोच तक नहीं आता कि ये अन्न के दाने हमारे लिए कौन
पैदा कर रहा है, यह तन ढकने के लिए सूत कहां से आ रहा है ? यह सब हमें देता है कृषक |
कृषक वह तपस्वी है जो आठों पहर, हर ऋतु, मौसम, जलवायु को साधकर, हमारे लिए तप करता है, अन्न उगाता है और हमारी भूख
मिटाता है | वह हमारा जीवन दाता है | मानवता ऋणी है उस अन्नदाता कृषक की जो केवल जीये जा रहा है तो औरों के लिए |
अन्न के अम्बार लगा रहा है केवल हमारी उदर-अग्नि को शांत करने के लिए |
कृषक के तप को देखकर अपनी पुस्तक‘स्मृति लहर (2004) में मैंने ‘अन्नदाता कृषक’कविता के शीर्षक से कुछ शब्द पिरोयें
हैं जिसके कुछ छंद देश में डीएवी स्कूल की कक्षा सात की ‘ज्ञान सागर’ पुस्तक से यहां उद्धृत हैं –
पौ फटते ही ज्यों मचाये
विहंग डाल पर शोर,
शीतल मंद बयार जगाती
चल उठ हो गई भोर |
कांधे रख हल चल पड़ा वह
वृषभ सखा संग ले अपने,
जा पहुंचा निज कर्म क्षेत्र में
प्रात: लालिमा से पहले|
परिश्रम मेरा दीन धरम है
मंदिर हें मेरे खलिहान,
पूजा वन्दना खेत हैं मेरे
माटी में पाऊं भगवान् |
तन धरती का बिछौना मेरा
ओढ़नी आकाश है,
अट्टालिका सा सुख पा जाऊं
छप्पर का अवास है|
हलधर तुझे यह पता नहीं है
कार्य तू करता कितना महान,
तन ढकता, पशु- धन देता,
उदर- पूर्ति, फल- पुष्प का दान |
कर्मभूमि के रण में संग हैं
सुत बित बनिता और परिवार,
अन्न की बाल का दर्शन कर
पा जाता तू हर्ष अपार |
मानवता का तू है मसीहा
सबकी भूख मिटाता है,
अवतारी तू इस मही पर
परमेश्वर अन्नदाता है |
कृषक तेरी ऋणी रहेगी
सकल जगत की मानवता,
यदि न बोता अन्न बीज तू,
क्या मानव कहीं टिक पाता ?
जीवन अपना मिटा के देता
है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम,
है अराध्य तू इस जग को |
धन्य है तेरे पञ्च तत्व को
जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू
तुझे नमन शत-शत मेरा |
( 26 नवम्बर 2020 से चल रहे वर्तमान किसान आंदोलन को शीघ्र सुलझाया जाना चाहिए ताकि किसान शीघ्र अपने घरों को लौट
चलें ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2020
खरी खरी - 745 : आबारा कुत्तों से परेशान हैं लोग
देश के हर शहर में आबारा कुत्तों से लोग दुःखी हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । एक समाचार के अनुसार देश
में लगभग साड़े चार करोड़ से अधिक आबारा कुत्ते हैं और प्रतिवर्ष बीस हजार लोग कुत्तों के काटने से रेबीज रोग के शिकार
होते हैं जबकि कुत्तों के काटने के लगभग दो करोड़ केस होते हैं । यह भयावह स्तिथि महानगरों में अधिक है जिसका विवरण
सरकारी और निजी अस्पतालों में देखा जा सकता है ।
स्थानीय निकाय आबारा कुत्तों की संख्या को रोकने में असहाय लगते हैं । श्वान बंध्याकरण निराशाजनक है तभी यह संख्या
बढ़ रही है । अबारा कुत्तों को जहां-तहां पोषित किये जाने से भी इनकी संख्या बढ़ रही है । जिस व्यक्ति को कुत्ते ने
काटा है वही जानता है कि उसे कितनी पीड़ा होती है और किस तरह उपचार कराना पड़ता है । समाज चाहे तो आबारा श्वान
नियंत्रण में सहयोग कर सकता है । आबारा कुत्तों को भोजन देने से बेहतर है कुत्तों को घर में पाला जाए । इस विषय में
किसी प्रकार के अंधविश्वास के भंवर में न पड़ा जाय । यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है । अबारा कुत्ते तो गंदगी करते
हैं, पालतू कुत्तों को भी श्वान मालिक बीच सड़क या किसी के भी घर के आगे बेझिझक शौच कराते हैं और मना करने पर 'तुझे
देख लूंगा' की धमकी देते हैं । हम भारत माता की जय या वन्देमातरम तो बोलते हैं परन्तु इस भारत माता के प्रति अपनी
जिम्मेदारी को नहीं समझते ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.11.2020
खरी खरी - 744 : मोबाइल पर ज्ञान
हमने लोगों को मोबाइल पर
बड़े बड़े संदेश भेजते देखा,
सहिष्णुता की टी वी वार्ता में
बात बात पर लड़ते देखा ।
क्या वे उस पथ चलते होंगे
जिस पथ चल चल कहते होंगे,
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी करनी में अंतर देखा ।
नशामुक्ति पर बोलते देखा
गुटका छोड़ो कहते देखा,
आंख बचाकर हमने उसको
मुंह में पुड़िया डालते देखा ।
शराब मत पियो कहते देखा
शराब से हानि गिनाते देखा,
जेब जब उसकी हमने पिड़ाई
उसकी जेब में पउवा देखा।
मास्क लगाओ बोलते देखा
मत भीड़ में जाओ कहते देखा,
बिना मास्क के बीच बजार की
सड़क में उसको घूमते देखा ।
चुनाव की रैली करते देखा
तिकड़म से भीड़ जुटाते देखा,
कोरोना के दौर को भूलकर
जीत का जश्न मनाते देखा ।
नेताओं को गिरगिट बनते देखा
घड़ियाली आंसू बहाते देखा
हमने आज तक किसी भी नेता को
नहीं अपने भाषण पर चलते देखा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.11.2020
बिरखांत -345 : खूब गाली दो यारो !
कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया में
अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के समर्थक बन गए
| तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई | हम किसी को कैसे
रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं |
दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट कला
की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी वाकपटुता या
अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते हैं अन्यथा गाली
तो गाली है |
सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ उससे
कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह सर्वथा
अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर में मां-
बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।
हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी अशिष्ट
है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो अच्छा लगे वही
बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी गाली या अशिष्टता का
समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि जो अनुचित है उसे अनुचित
कहने का गुनाह तो हमने किया ही है ।
आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | लोग डरते हैं और मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी गाली
से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है -
“गारी देई एक है,
पलटी भई अनेक;
जो पलटू पलटे नहीं,
रही एक की एक |”
साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते -
“मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौ बाट में जो दव
हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |”
(मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने
वाले चाहिए | ) इसी बहाने अकेले ही चट्टान तोड़कर सड़क बनाने वाले पद्मश्री दशरथ माझी का स्मरण भी कर लेते हैं ।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.11.2020
मीठी मीठी - 535 : संविधान दिवस
26 नवम्बर 1949 हुणि भारतक संविधान कैं संविधान सभाल स्वीकार करौ । संविधान लेखण में 2 साल 11 महैण 18 दिन लागीं ।
'लगुल ' किताब बै संविधान दिवसक बार में एक लेख यां उद्धृत छ । सबूं कैं संविधान दिवस कि बधै और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.11.2020
खरी खरी - 743 : घरवाइकि भक्ति
कौसल्या केकई सुमित्रा
दसरथाक छी राणी तीन,
उं हमेशा बारि बारि कै
हराम करछी दसरथकि नीन ।
अच्याल यूं तीनोंक रोल
क्वे लै घरवाइ एकलै निभै सकीं,
कौसल्या सुमित्रा कम
केकई जरा ज्यादै
बनि बेर दिखै सकीं ।
जभणि क्वे मंथरा कि
नजर लै जालि घरवाइ पार,
समझो घर में चलक ऐगो
बिगड़ि गो सब घरबार ।
भ्यार भलेही सबूं हैं
खूब बागै चार गुगौ,
घर आते ही भिजाई
बिराउ जास बनि जौ ।
घरवाइक सामणि फन फन
नि करो, मुनव कनौ,
खांहूँ नि लै बनै सकना
भान तब लै चमकौ ।
साग-पात सौद पत्त ल्हीहूँ
उ दगै हमेशा बाजार जौ,
समान उ आफी ख़रीदलि
तुम चुपचाप झ्वल पकड़ि
वीक पिछाड़ि बै ठाड़ हैरौ ।
अगर चांछा हमेशा भलि भांत
चलो गृहस्थी कि गाड़ि,
तो टैम टैम पर ल्याते रौ
वीक मनकसि भलि भलि साड़ि।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.11.2020
मीठी मीठी - 534 : हमरि भाषा भौत भलि
"आपणी भाषा भौत भलि,
करि लियो ये दगै प्यार;
बिन आपणि भाषा बलाइए
नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।"
"हमरि भाषा हमरि पछ्याण "
कुमाउनी किताब जरूर पढ़िया और आपण नना कैं लै पढ़ाया तबै बचलि हमरि भाषा । नना दगै कुमाउनी बलाण लै भौत जरूरी छ ।
आपणि भाषा बलाण में शरम के बात कि ? जरूर बलाया आपणि भाषा, भुलिया झन। सबै भाषा प्रेमियों कैं भौत भौत शुभकामना
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.11.2020
खरी ख़री - 741 : मरण बाद याद
मैंसा क मरण बाद
काबिलियत याद ऐं,
वीक ज्यौंन छन
दुनिय चुप रैं ,
गौरदा गिरदा शेरदा क
बार में लै यसै हौ,
उनार जाण बाद
लोगों कैं य महसूस हौ ।
के बात नि हइ
क्वे त उनुकैं याद करें रईं,
उनरि याद में कभतै त
गिच खोलें रईं,
अणगणत हुनरदार
चुपचाप यसिके गईं,
शैद दुनिय कि रीत यसी छ
जानै जानै य बात कै गईं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.11.2020
खरी खरी - 740 : यमुना का संताप
स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।
व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।
आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?
( दिल्ली में अब तक 5.17 लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं जिनमें से 8.1 हजार से अधिक इसके ग्रास बन
चुके हैं । 10 नवम्बर 2020 के बाद से प्रतिदिन दिल्ली में एक सौ से अधिक रोगियों की इस संक्रमण से मौत हो रही है ।
मास्क लगाएं, देह दूरी रखें, भीड़ से बचें और मजबूरी के सिवाय न तो बाहर जाएं और न बेवजह किसी के घर जाएं ।
)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2020
मीठी मीठी -533 : सिक्खों से सीख
मैं एक भारतीय हूँ और सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ परन्तु सिक्ख धर्म जिसकी स्थापना गुरु नानक देव जी (1468 -
1539 ) ने ई.1499 में की, हमें बहुत कुछ सिखाता है क्योंकि इसकी निम्न विशेषता है -
1. पूजा मूर्ति की नहीं बल्कि पवित्र पुस्तक 'गुरु ग्रंथ साहब' की होती है । शबद - कीर्तन में कानफोडू शोर नहीं होता
। सिर्फ एक ओंकार में विश्वास ।
2. किसी तरह का आडम्बर -पाखंड नहीं है । शादी -विवाह अक्सर किसी भी रविवार को होती है ।
3. पाठी (पुजारी) किसी भी जाति का हो सकता है।
4. लंगर व्यवस्था निरंतर है । दान स्वेच्छा से दान पात्र में ।
5. कहीं भी आपदा होने पर सिक्खों को सबसे पहले पहुंचते देखा गया है ।
6. राशि -कुंडली- अंधविश्वास, पशु बलि आदि कुछ भी नहीं ।
7. किसी गुरुद्वारे में मन्नत नहीं मांगी जाती । स्वच्छता का विशेष ध्यान होता है ।
8. सभी अन्य धर्मों का सम्मान सिखाया जाता है ।
9. प्रत्येक अमीर गरीब साथ बैठकर लंगर छकते हैं ।
10. कोई किसी भी गुरुद्वारे में निःशुल्क रैन-बसेरा कर सकता है ।
(पुनः संपादित -साभार सोसल मीडिया मित्र धीरज कुमार । उक्त बिंदुओं पर मंथन कर हम बहुत कुछ सीख सकते हैं और अपना
सकते हैं ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2020
स्मृति - 532 : आज इंदिरा गांधीक जन्मदिन
देशकि तिसरि और पैल महिला प्रधानमंत्री, भारत रत्न श्रीमती इंदिरा गांधीक आज 19 नवम्बर हुणि जन्मदिन छ । देश कैं
प्रत्येक क्षेत्र में समृद्धशाली बनूण और देश कैं एकजुट धरण में उनर नाम सर्वोपरि छ । 1971 क भारत -पाक युद्ध में
93000 पाक सेनाल उनरै नेतृत्व में घुन टेकीं और दुनियक नक्स में बांग्लादेश बनौ । "लगुल" किताब में लै उनरि चर्चा छ
। पुस्तक ''महामनखी" बटि उनार बार में मुणि एक नान लेख उधृत छ । विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.11.2020
खरी खरी - 739 : देश में सांप्रदायिक एकता बहुत जरूरी
कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े
रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर
कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता
तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।
कबीर के दोनों दोहे याद हैं -
पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार;
ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।'
दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय;
ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।'
मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है -
'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में;
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।'
बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है-
"मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका मदिरालय एक ही है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक
मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला ।"
दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए ।
सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था,
"हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि
हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू -मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने
षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।
हमारे देश का एक संविधान है जो हमारा पग - पग पर मार्गदर्शन करता है जिसे सोच -समझ कर 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में
संविधान निर्माण समिति द्वारा संविधान सभा के निर्देशन में लिखा गया । देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो गए हैं और देश
के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो
अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी
रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । सर्वोच्च न्यायालय का आभार जो 9 नवम्बर 2019 को सर्वसम्मति से देशहित में
अयोध्या का केस सुलटाया । सियासत वाले अपनी दुकान से अब कुछ अन्य आइटम बेचने की सोचेंगे क्योंकि दुकान तो बंद होने
से रही ।
स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था
के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर
नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त
की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.11.2020
खरी खरी - 738 : प्रकाश पर्व पर पटाखा धुंध
पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री राम जी 14 वर्ष के वनवास के बाद भार्या और अनुज सहित अयोध्या वापस आये तो प्रजा ने
घर -घर दीप प्रज्ज्वलित कर खुशियां मनाई । हमने इस प्रथा-परम्परा को आगे बढ़ाया जिसने आगे चल कर आतिशबाजी का रूप ले
लिया। आज वह आतिशबाजी जी का जंजाल बन गयी जिसने सांस लेना ही दूभर कर दिया । उल्लेखनीय बात यह है कि पटाखे जलाने
वाले और बेचने वाले दोनों ही गरीब नहीं होते बल्कि ये समाज के संभ्रांत वर्ग के लोग होते हैं जो कानून की भी परवाह
नहीं करते अन्यथा राजधानी में 30 नवंबर 2020 तक पटाखों के बिक्री और आतिशबाजी पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हा ।
14 नवंबर 2020 दीपावली की रात को इस मानवजनित विभीषिका के कारण देश की राजधानी में प्रदूषण खतरनाक हालात पत पहुंच
गया । इस प्रदूषण के कारण लोग राजधानी बारूदी आबोहवा में घुटन के साथ जीने को मजबूर है । न्यायालय के प्रतिबंध की
खुलेआम धज्जियां उड़ते हम सब ने बेबस होकर देखी । वायुप्रदूषण कई गुना तक बढ़ गया है ।
यदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखे नहीं फूटते तो ऐसी स्तिथि नहीं होती । न सीने में जलन होती और न सांस लेने
में घुटन होती । न बच्चों के नाजुक अंग कुम्हलाते और न वृद्धों की श्वसन क्रिया अवरुद्ध होती । देर रात तक उच्च शोर
के पटाखे फोड़ने वालों ने अपने क्षणिक आनंद के लिए पूरे वातावरण को जहरीला बना दिया । कुछ लोगों ने तो इसे धर्म के
साथ जोड़ दिया । नुकसान के सिवाय पटाखा फोड़ने से और कुछ नहीं मिलता । हमारी पुलिस और प्रशासन इस बारूदी आबोहवा को
रोकने में निष्फल क्यों रहे यह प्रश्न दो दिन बाद भी भैयादूज के दिन तक हवा में गूंज रहा है । सभी को भैयादूज की
शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.11.2020
खरी खरी - 736 : नहीं लगी पटाखों पर नकेल
बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाली और अन्य अवसरों पर
आतिशबाजी के लिए दिशा-निर्देश पहले ही दिए हैं जिनके पालन करवाने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय थाना प्रभारी की होती है ।
इन निर्देशों की अवहेलना पर थाना प्रभारी न्यायालय की अवमानना के दोषी माने जाते हैं । इस बार बढ़ते प्रदूषण और
कोरोना संक्रमण के कारण दिल्ली में आतिशबाजी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा प्रतिबंधित थी । फिर भी चोरी से बेचे गए
पटाखों की आवाज खूब सुनने में आईं । रात 12 बजे के बाद भी पटाखों का शोर सुनाई दिया जबकि 30 नवम्बर 2020 तक सभी
प्रकार के पटाखों पर दिल्ली में प्रतिबंध गए ।
प्रतिबंध के बावजूद भी ये पटाखे लोगों तक कैसे पहुंचे ? हमारे देश में कानून की अवहेलना सरे आम होती है और कानून के
रक्षक अनदेखी - अनसुनी कर देते हैं । दिल्ली में पुलिस स्थानीय सरकार के अधीन नहीं है । यहां पुलिस केंद्र सरकार के
नियंत्रण में है । इसके बावजूद भी प्रदूषित दिल्ली में पटाखों से प्रदूषण बढ़ा । कई स्थानों पर वायु प्रदूषण का स्तर
1000 तक पहुंच गया । राजधानी में कोरोना का कहर जारी रहा । पिछले 24 घंटे में 90 से अधिक लोग इस रोग के ग्रास हुए
जबकि सात हजार से अधिक नए केस अस्पतालों तक पहुंचे । बाज़ार में देह दूरी दूर तक नजर नहीं आई । अनियंत्रित भीड़ भूल
गई कि वे कोरोना संक्रमण को बढ़ा रहे हैं । जब लोग सहयोग न करें तो सरकारें भी अपने वोटो की टकसाल की सुरक्षा में लग
जाती हैं । 11 नवम्बर की रात दिल्ली में बिहार जीत का जश्न हुआ । वहां भी वही भीड़ थी जिसने किसी की नहीं सुनी ।
छोटे - बड़े नेता सभी वहां मौजूद थे । बिहार चुनाव में भी भीड़ संबंधी सभी नियम - कानून दरकिनार कर दिए गए । इन सब
हालातों से स्पष्ट होता है कि हमारे देश में लोग कानून कि परवाह नहीं करते और कानून की पालना करने वाले कभी बेबस तो
कभी सिथिल नजर आते हैं ।
समाज को जनहित और अपने बच्चों के हित में पटाखे नहीं जलाने चाहिए । प्रथा -परम्परा में भी सिर्फ दीप जलाकर रोशनी के
साथ दीपावली मनाई जाती थी । पटाखों का प्रचलन वर्तमान में होने लगा जिससे स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया । हमें
पटाखे खरीदने, भेंट करने और जलाने से बचना चाहिए । यह हमारा प्रदूषण घटाने और पर्यावरण बचाने में अपनी भावी पीढ़ी के
लिए बहुत बड़ा योगदान होगा । वैसे भी जब श्रीराम घर वापस आए थे तब पटाखे नहीं केवल दीप प्रज्ज्वलित किए गए थे ।
बाजारवाद ने इसमें पटाखे जोड़ दिए जो आज स्वास्थ्य समस्या, प्रदूषण और बीमारी के स्रोत बन गए हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.11.2020
मीठी मीठी - 529 : शुभ दीपावली
शुभ दीपावली सबके नाम,
एक दीप शहीदों के नाम,
चीनी सामान का नहीं नाम,
स्वच्छता हो सबका काम,
आतिशबाजी न लो नाम,
सुप्रीम कोर्ट को लाल सलाम ।
जब चीन प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मामले पर संयुक्त राष्ट्र में हमारे विरुद्ध अड़ंगा लगा रहा है, सीमा पर घुसपैठ में
पाक की मदद कर रहा है तो फिर हम चीन की मूर्तियां, लड़ियां, पटाखे और खिलौनों पर मोह क्यों करें ? चीन में बनी जिन
वस्तुओं का विकल्प हमारे पास है उन चीनी वस्तुओं को भी नहीं खरीदा जाय । हमें हमेशा यह देशप्रेम प्रदर्शित करना ही
होगा तभी चीन की बुद्धि काम करेगी ।
पिछली दीपावली से इस दीपावली तक हमारे कई दर्जन सैनिक/सुरक्षाकर्मी उग्रवाद से लड़ते हुए शहीद हो गए । कल 13 नवंबर
2020 को भी पश्चिमी सीमा पर हमारे चार सैन्य/सुरक्षाकर्मी देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं । इस दीपावली पर एक
दीप शहीदों के नाम पर भी प्रज्ज्वलित करें और शहीदों को नमन करते हुए शहीद परिवारों के प्रति सम्मान प्रकट करें
।
दीपावली दीप पर्व है । दीप प्रज्ज्वलित करें, घर और परिसर की स्वच्छता और सजावट सर्वोपरि है । दीपावली स्वच्छता का
त्यौहार है । आतिशबाजी स्वेच्छा से ही नहीं करें । कानूनी तौर पर भी इस बार पटाखे बेचना गैर कानूनी है । उच्चतम
न्यायालय को दीपावली की विशेष शुभकामनाएं जो उन्होंने हमें प्रदूषण से बचाने का कदम उठाया । हो सके तो प्रदूषण कम
करने के लिए एक पेड़ लगाएं । आज हम कोरोना के दौर से गुजर रहे हैं । चिकित्सकों सहित कई कर्मवीर इस रोग के ग्रास बन
गए । देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 24 घंटों में 8500 केस हुए और 104 असमय मृत्यु के ग्रास बन गए । हमें अपना
बचाव करना है । दीपावली फिर आएगी, फिर हम एक दूसरे के घर जाएंगे और उपहार भेंट करेंगे । इस बार संयम बरतें तो सबके
लिए उत्तम होगा । फोन से या सोसल मीडिया से हम सभी को बधाई दे सकते हैं ।
सभी मित्रों को दीपावली की पुनः हार्दिक शुभकामनाएं । मातृभूमि के उन वीर सपूतों को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ एक
निवेदन -
तुम गजल लिखो या
गीत प्रीत के खूब लिखो,
एक पंक्ति तो कभी
शहीदों पर लिखो,
लौट नहीं आये जो
गीत लिखो उनपर,
देह-प्राण न्यौछावर
कर गए राष्ट्र की धुन पर ।
शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.11.2020
शुभ दीपावली
बिरखांत - 343 : प्रदूषण मुक्ति के सख्त कदम
यदि महानगरों में प्रदूषण घटाना है तो सख्त कदम तो उठाने ही पड़ेंगे । अपने स्वास्थ्य के खातिर हमने कोई बदलाव
स्वीकार नहीं किया । वर्त्तमान दिल्ली सरकार ने दो बार सम- विषम (ऑड -ईवन ) का प्रयोग कर भी लिया है परंतु नियमित
नहीं हो सका जो अब नियमित करना ही होगा । अपनी सुख-सुविधा के खातिर हम बच्चों के नाजुक फेफड़ों की तरफ नहीं देख रहे ।
अब पुनः आड - इवन की बात पर चर्चा हो और इसका क्रियान्वयन हो ।
राजधानी के पड़ोसी राज्य धान की पराली जला रहे हैं । जन - जागृति उन पर बेअसर रही । सरकार रात - दिन जोर - शोर से कह
रही है कि हम टेक्नोलोजी में बहुत आगे हैं परन्तु हम वह तकनीक नहीं खोज सके हैं जिससे पराली का कुछ सदुपयोग हो और
किसान को पराली जलानी नहीं पड़े । हमारे देश में मानव जनित प्रदूषण अधिक है । दीवाली के पटाखे, धान की पराली और
कंस्ट्रक्शन की धूल तथा कूड़े का जलना । इनसे सख्ती से नहीं निपटा जाता । भ्रष्टाचार की वजह से देश में बैन के बाद
भी दीपावली पर अवैध पटाखे हर साल देर रात तक जलते हैं जिनकी आवाज कानून के रखवालों को नहीं सुनाई देती । छिटपुट
पटाखे तो जल रहे हैं ।
देश में सड़कों पर कारों की संख्या बहुत है जिसे घटाया नहीं जा सकता बल्कि यह संख्या दिनोदिन बढ़ती रहेगी। वर्षों से
यह अपील जारी है कि लोग कार -पूलिंग करें अर्थात एक ही गंतव्य स्थान तक जाने के लिए दो-चार व्यक्ति बारी-बारी से एक
ही कार का उपयोग करें जिससे चार कारों की जगह सड़क पर एक ही कार चलेगी। पेट्रोल भी बचेगा और सड़क पर वाहन भीड़ भी कम
होगी। इस अपील पर बिलकुल भी अमल नहीं हुआ। कार मालिक सार्वजानिक वाहन (बस ) की कमी और समय अनिश्चितता के कारण उसका
उपयोग करना पसंद नहीं करते। वर्तमान कोरोना दौर में कार पूलिंग भले ही आसान न हो परन्तु सामान्य हालात में इसकी
नितांत आवश्यकता है ।
सरकार यदि देश के सभी महानगरों के लिए यह क़ानून बना दे कि सम और विषम संख्या की कारें बारी-बारी से सप्ताह में
तीन-तीन दिन के लिए ही सड़क पर चलें अर्थात जिन कारों के अंत में 1, 3, 5 ,7 ,9 (विषम संख्या ) हो वें विषम तारीख को
चलें और जिनके अंत में 2, 4, 6, 8, 0 (सम संख्या ) हो वे सम तारीख को चलें तथा रविवार को सभी वाहन चलें तो इससे
सड़कों पर वाहन संख्या घट कर आधी रह जायेगी, तेल का आयात घटेगा, प्रदूषण कम होगा और प्रदूषण जनित बीमारियां कम हो
जाएंगी क्योंकि बच्चों के फेफड़ों पर इस प्रदूषण का बहुत बड़ा कुप्रभाव पड़ रहा है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.11.2020
खरी खरी - 735 : कायरता त्याग
राह में घायल कोई
मैं उठाता हूं नहीं,
मुजरिम मुझे ही समझ कर
वे जेल न कर दें कहीं ?
खोह असली मुजरिम की
उन्हें दीखती है नहीं,
पकड़ लेते मेमनों को
भेड़िये मिलते नहीं ।
मूंद लेता आंख अपनी
आबरू कोई लुट रही,
कान बहरे हो गए हैं
सिसकियां नहीं सुन रही ।
त्याग डर को, संत की
उस बात को तू याद कर,
मृत्यु से सौ बार पहले
कायर जन जाता है मर ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.11.2020
( मेरा कविता संग्रह 'स्मृति लहर' से )
खरी खरी - 732 : कहां गया हमारे सपनों का उत्तराखंड ?
जब मैं प्राइमरी पाठशाला का विद्यार्थी था ( 1954-59 ), स्वतंत्रता दिवस के दिन स्कूल से प्रभात फेरी निकाली जाती
थी जो स्थानीय गांवों से होते हुए पुनः स्कूल में आती थी | प्रभात फेरी में गीत थे “क्या सुहाना वक्त है कैसा मुवारक
राज है, राजेन्द्र जी के सिर पर देखो विराज ताज है”, “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा, इसकी शान न
जाने पावे, चाहे जान भलेही जावे” आदि ।
काल का पहिया घूमते हुए 42 शहीदों की धधकती चिताओं की रोशनी में 9 नवम्बर 2000 को देवेगौड़ा जी घोषित (15 अगस्त 1996)
उत्तराखंड बन गया | आशा, आकांक्षा, अपेक्षा और उम्मीदों के उत्तराखंड का हमने ढोल- नगाड़े बजाकर और गीत- कविताओं के
साथ जोरदार स्वागत किया |
राज्य तो बन गया परन्तु शुरुआत कुछ अटपटी हुई | भूमिये के थान में गलत पत्थर थाप दिया | नए राज्य की बागडोर उस
व्यक्ति को सौप दी जिसे मडुवे- झुंगरे और पहाड़ की हिमानी बयार का ज्ञान नहीं था | तब से इन 20 वर्षों में आठ
मुख्यमंत्री बन गए हैं | इन सबका राजपाट कैसा रहा तथा राज्य को क्या मिला, इस पर एक बड़ी बिरखांत की जरूरत नहीं है
केवल एक छंद से ही पता चल जाएगा -
“ बरस बीस में बनि गईं,
राज्य में मुख्यमंत्री आठ
राज्यक भल नि हय भलेही,
उनार हईं खूब ठाट।
उनार हईं खूब ठाट,
हमूल देखीं सबूं क हालत,
स्वामी भगत नारायण खंडूड़ी,
निशक बहुगुणा डबल रावत।
कूंरौ ‘पूरन’ विकास देखूंहूँ,
दूर दराज गो तरस,
पुर नि कर सब्जबाग दिखाईं,
बिति गईं बीस बरस ।”
आजकल उत्तराखंड कर्म के नाम पर विधायक विहीन है | सभी सत्तर विधायकों में कुछ लुकी गए हैं और कुछ लुका दिए गए हैं |
दिल्ली - देहरादून में बारी- बारी से आते जाते रहते हैं । सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि हमारे सभी विधायक सी एम बनना
चाहते हैं | सी एम की पोस्ट एक है | आजकल सभी केदार बाबा की उपासना में लगे हैं कि कुर्सी उनकी झोली में आ जाये | दो
प्रमुख राजनैतिक दल एक दूसरे पर इतना कीचड़ फाल रहे हैं जिसके लिए अतिशयोक्ति अलंकार फीका पड़ रहा है | किसी को सब्र
नहीं है । दोनों ओर से अपने अपने हाई कमान को खुश करने के लिए उथल-पुथल मची हुई है | सुना है दिल्ली वाली आप पार्टी
भी वहां तुतुरी बजाने लगी है । देखते हैं इनका रणसिंह कितनी फूक मारता है ?
अब गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों की दुलैचों पर पव्वे- अद्धे चढ़ने का समय नजदीक आ रहा है क्योंकि चुनाव के
दौरान सभी लड़ने वाले या लड़ने का नाटक करने वाले चुपचाप इन्हीं की शरण में जाकर जनता के सामने अंधविश्वास विरोधी भाषण
देते हैं | कुछ वर्ष पूर्व होली से पहले उत्तराखंड में एक निर्दोष घोड़े के टांग खंडित कर दी गयी | अमानुष दण्डित
नहीं हुए ?
पलायन थम नहीं रहा है । पलायन आयोग उवाच - '10 वर्ष में 5 लाख पलायन कर गए ।' हम सब रोजगार के लिए खानाबदोश बने और
खानाबदोश ही रह गए । राज्य बनने पर किसका भला हुआ ? भ्रष्टाचार के बारे क्या कहना । पुल उद्घाटन से पहले ही हिल रहे
हैं और सड़क पर बिन कोलतार के बजीरी बिछाई जा रही है । इसका वीडियो बच्चे बना रहे हैं और लोग देख रहे हैं । 42
शहीदों की आत्मा क्या इन सबको नहीं देख रही होगी ? राज्य गठन की शुभकामना हम सब उत्तराखण्डियों को, जैसा कि हर साल 9
नवम्बर को देते आ रहे हैं । जय भारत, जय उत्तराखंड ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.11.2020
खरी खरी - 731 : मनुष्य रूपेण कुत्ता चरंती
हम सबके परिचित चनरदा बोले, "यकीन करिये मैं दिनभर कई दो टांग वाले कुतों से रूबरू होता हूं । आप ठीक सोच रहे हैं
कि कुत्ते की तो चार टांग होती हैं परन्तु ये दो टांग वाले कुत्ते कहां से आ गए ? ध्यान से देखिए ये दो टांग वाले
कुत्ते सभी के इर्द-गिर्द हैं । कुत्ता तो एक घरेलू वफादार जानवर है । कहीं यह पालतू है तो कहीं आबारा । कुत्ता जब
चाहे कहीं पर भी, सड़क के बीचोंबीच, रास्ते में, गली में, वाहन की आड़ में, घर के आगे, पार्क में, जहां उसका मन करे
वहां मल-मूत्र छोड़ देता है । वह नहीं जानता कि उसकी इस हरकत से मानव परेशान होता है, दुखी होता है ।
यदि यही हरकत यदि कोई मनुष्य करे तो उसे कुत्ता ही तो कहेंगे । इन दो टांग वाले कुत्तों में मूत्र विसर्जन के अलावा
एक विशेष बात यह होती है कि वे किसी भी स्थान पर, सड़क, सीढ़ी, जीना, दफ्तर, नुक्कड़, कोना कहीं पर भी गुटखा- तम्बाकू
थूक देते हैं । वह कार सहित किसी वाहन से भी थूक देते हैं । उनके इस गुटखा -मल से वह स्थान लाल हो जाता है । ऐसे
कुत्तों की ब्रीड भगाने पर गुर्राने या काटने आती है जबकि अबारा कुत्ते चुपचाप भाग जाते हैं । यकीन नहीं होता तो ऐसे
दो टांग वाले कुत्तों को एक बार चनरदा की तरह हड़काओ तो सही ।"
सुना है कोरोना संक्रमण के दौर में है देश की राजधानी में कुछ श्वान हरकत करने वालों और सड़क - शौचालय को लाल करने
वालों के चालान भी काटे जा रहे हैं । यह इन्हें सुधारने का एक तरीका हो सकता है परन्तु क्या समाज के लोग इन्हें
टोकने के लिए कभी अपना मुंह खोलेंगे ? सरकारें तो गुटका पुड़ियों पर प्रतिबंध लगाने से रही ? प्रतिबंध की बात तो
छोड़ो इन जहरीले पाउचों के प्रिंट मीडिया और टीवी चैनलों में बड़े बड़े विज्ञापन दिए जाते हैं । कथनी और करनी में
हमारे देश में पग पग पर अंतर देखते रहो और मसमसाते हुए अपने पग बढ़ा कर आगे निकलने के सिवाय अन्य कोई विकल्प की सोच
तो उपजने से रही ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.11.2020
खरी खरी - 730 : कितने देवता ?
देवता कितने हैं ? इस पर लोग बहस करते रहते हैं । देवता तो 33 कोटि हों या 33 करोड़ । ( बताए 33 कोटि अर्थात 33
प्रकार के हैं ।) पर बहस क्यों हो ? यह अनंत बहस है । कभी समाप्त नहीं होगी । हम एक ईश्वर की बात करें । जिसको जो
देवता पूजना हो पूजे । ईश्वर/भगवान केवल एक है और वह निराकार है । उसमें विश्वास रखने से हमें ताकत मिलती है, शांति
मिलती है और अंहकार दूर रहता है तथा दुःख को सहने की शक्ति मिलती है । यह श्रध्दा का सवाल है । यही आदि औऱ यही अंत ।
इस पर इससे ज्यादा वार्ता करना व्यर्थ है ।
हम वर्तमान में जी रहे हैं और पौराणिक युग की चर्चाओं को ही समय देकर उनमें उलझ रहे हैं । यह बहस क्यों नहीं होती कि
देश के बच्चे कुपोषित क्यों हैं ? हमारे देश में शिक्षक कम हैं, चिकित्सक कम हैं, अस्पताल कम हैं, सुदूर क्षेत्रों
में बुनियादी सुविधाएं नहीं है जिससे पलायन हो रहा है । इन सभी विषयों पर बहस क्यों नहीं होती ? शिक्षा, रोजगार,
पानी, सड़क, बिजली, स्वास्थ्य पर बहस क्यों नहीं होती ? पराली जलाने जैसे एक छोटे मुद्दे का हल हम नहीं निकाल पाए ।
इस पर चर्चा नहीं होती । यह बहस क्यों नहीं हो कि देश अंधविश्वास के घेरे से बाहर कैसे आये ? बहस तो कितने दीए
जलाएं, इस पर भी होनी चाहिए और पटाखों के निषेध पर भी होनी चाहिए । यह वार्ता क्यों नहीं होती कि नदियों में विसर्जन
सहित सभी प्रकार की गंदगी मत डालो । इस वैज्ञानिक युग में उस धरती की बात नहीं हो रही जो हमारे शोषण से त्रस्त है और
जलवायु का अचानक परिवर्तन हो रहा है । पर्यावरण को बचाने की बहस भी बहुत जरूरी है । प्रत्येक त्यौहार पर एक पौधा
रोपने की भी बहस होनी चाहिए । अतः समाज को स्वयं चेतना/सोचना होगा कि हम अपने को किस बहस में उलझाएं ? मास्क की शरण
में जाओ और अपने को संक्रमण से बचाओ क्योंकि देह दूरी का पालन तो वे भी नहीं कर रहे हैं जो इस पर भाषण दे रहे हैं
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.11.2020
मीठी मीठी - 527 : नारी का ऋण
मानव जाति ऋणी नारी की
माने जग या ना माने,
नारी के बलिदान त्याग पर
स्थिर मानवता सब जाने ।
वैसे तो हर नारी से
मानव का कोई है रिश्ता,
हर रिश्ते में बनी है नारी
मानव के लिए एक फरिश्ता ।
लेकिन रिश्ते चार हैं ऐसे
जिन बिन जीवन है ही नहीं,
मां बहन पत्नी बेटी बन
प्रकट हुई वह सारी मही ।
मां बनकर नारी इस जग को
जीवन अमृत देती है,
कर अपना सबकुछ न्यौछावर
जग से कुछ नहीं लेती है ।
घेरे विपत्ति या सुख-दुख होवे
बहन दौड़कर आती है,
राखी दूज त्यौहार पै आकर
अमर स्नेह बरसाती है ।
जीवन रथ एक चक्र वह
बिना उसके रथ बढ़ता नहीं,
बिन भार्या जीवन एक पतझड़
जिसमें सुमन खिलता ही नहीं ।
बेटी बन जब भी नारी
जिसके घर में आई है,
हो गई कुर्बान भलेही
लाज दो घर की निभाई है ।
यदि न होती नारी जग में
मानवता नहीं टिक पाती,
अपने हर रिश्ते से जग को
ऋणी सदैव बना जाती ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.11.2020
बिरखांत - 342 : पटाखों पर हो पूर्ण पाबन्दी
पटाखों की पाबंदी पर पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ, ‘बिरखांत’ भी लिख चुका हूँ | हर साल दशहरे से तीन सप्ताह
तक पटाखों का शोर जारी रहता है जो दीपावली की रात चरम सीमा पर पहुंच जाता है | शहरों में पटाखों के शोर और धुंए के
बादलों से भरी इस रात का कसैलापन, घुटन तथा धुंध की चादर आने वाली सुबह में स्पष्ट देखी जा सकती है | दीपावली के
त्यौहार पर जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा तथा लाइलाज रोगों का शिकार बनाता है |
पटाखों के कारण कई जगहों पर आग लगने के समाचार हम सुनते रहते हैं | पिछले साल छै से चौदह महीने के तीन शिशुओं की ओर
से उनके पिताओं द्वारा देश के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में
बड़े होना उनका अधिकार है और इस सम्बन्ध में सरकार तथा दूसरी एजेंसियों को राजधानी में पटाखों की बिक्री के लिए
लाइसेंस जारी करने से रोका जाय |
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को
शिक्षित करें और उन्हें पटाखों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दें | न्यायालय ने कहा कि इस सम्बन्ध में प्रिंट और
इलेक्ट्रानिक मीडिया में व्यापक प्रचार करें तथा स्कूल और कालेजों में शिक्षकों, व्याख्याताओं, सहायक प्रोफेसरों और
प्रोफेसरों को निर्देश दें कि वे पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में छात्रों को शिक्षित करें |
यह सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय का रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने का आदेश पहले से ही है परन्तु नव-
धनाड्यों एवं काली कमाई करने वालों द्वारा इस आदेश की खुलकर अवहेलना की जाती है | ये लोग रात्रि दस बजे से दो बजे तक
उच्च शोर के पटाखे और लम्बी-लम्बी पटाखों के लड़ियाँ जलाते हैं जिससे उस रात उस क्षेत्र के बच्चे, बीमार, वृद्ध सहित
सभी निवासी दुखित रहते हैं |
एक राष्ट्रीय समाचार में छपी खबर के अनुसार सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बार देश में विदेशी पटाखों को रखना और
उनकी बिक्री करना अवैध होगा | इसकी अवहेलना करने पर निकट के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट की जा सकती है | इन विदेशी
पटाखों में पोटेशियम क्लोरेट समेत कई खरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही
इससे आग भी लग सकती है या विस्फोट हो सकता है | विदेश व्यापार महानिदेशक ने आयातित पटाखों को प्रतिबंधित वस्तु घोषित
किया है | ऑनलाइन पटाखा बिक्री पर भी अब रोक लग गई है ।
कुछ लोग अपनी मस्ती में समाज के अन्य लोगों कों होने वाली परेशानी की परवाह नहीं करते | उस रात पुलिस भी उपलब्ध नहीं
हो पाती या इन्हें पुलिस का अभयदान मिला होता है | वैसे हर जगह पुलिस भी खड़ी नहीं रह सकती | हमारी भी कुछ जिम्मेदारी
होती है | क्या हम बिना प्रदूषण के त्यौहार या उत्सव मनाने के तरीके नहीं अपना सकते ? यदि हम अपने बच्चों को इस
खरीदी हुई समस्या के बारे में जागरूक करें या उन्हें पटाखों के लिए धन नहीं दें तो कुछ हद तक तो समस्या सुलझ सकती है
| धन फूक कर प्रदूषण करने या घर फूक कर तमाशा देखने और बीमारी मोल लेने की इस परम्परा के बारे में गंभीरता से सोचा
जाना चाहिए | उच्च शोर के पटाखों की बिक्री बंद होने पर भी ये बाजार में क्यों बिकते आ रहे हैं यह भी एक बहुत बड़ा
सवाल है |
हम अपने को जरूर बदलें और कहें “पटखा मुक्त शुभ दीपावली” | “ SAY NO TO FIRE CRACKERS”. पटाखों के रूप में अपने
रुपये मत जलाइए , इस धन से गरीबों को गिफ्ट देकर खुशी बाँटिये । इस बार उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार पटाखों की
बिक्री पर पाबंदी होने से दीपावली की रात कुछ प्रदूषण कम होने की उम्मीद है जिसके लिए सभी नागरिक धन्यवाद के पात्र
हैं । आज हम कोरोना के दौर से गुजर रहे हैं । ( 4 नवम्बर 2020 तक देश में करीब 83.6 लाख लोग संक्रमित हैं और 1.24 से
अधिक लोग इस संक्रमण के ग्रास बन चुके हैं ।) ऐसे में एक पटाखा जलाना भी रोग के संक्रमण को बढ़ाना है । अतः इस बार
बहुत संयम बरतने की आवश्यकता है । अब समय आ गया है जब पटाखों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर पूर्ण पाबंदी लगनी
चाहिए । आप सभी को आने वाली दीपावली की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.11.2020
खरी खरी -729 : करवाचौथ
करवाचौथ व्रत !
सुहाग के लिए
पति के लिए,
निर्जल निश्छल
आस्था अविरल ।
व्रत श्रद्धा के दीये
सब स्त्री के लिए,
किसी पति ने कभी
शायद व्रत नहीं रखा
पत्नी के लिए ।
तुमने सभी धर्मग्रन्थ
वेद पुराण अनंत
श्रुति शास्त्र स्मृति,
लिख डाले मेरे लिए
स्वयं को मुक्त किये ।
रीति रिवाज मान मर्यादा
कायदे क़ानून संस्कृति सभ्यता,
शर्म हया नियम परम्परा
सब का सिंकजा मेरे लिए धरा,
स्त्री होने की यह निर्दयता ।
चाह नहीं मेरी
तुम मेरे लिए व्रत करो,
पर है एक छोटी सी चाह
तुम जीवन संगीनी का
कभी न अपमान करो ।
स्मरण है मुझे
मेरा पत्नी धर्म निश्छल,
यही आशा-अपेक्षा
तुम्हें भी याद रहे
पति धर्म हर पल ।
मैं अपूर्ण तुम बिन
तुम्हारी अपूर्णता भी
बनी रहे मुझ बिन,
मेरे स्वाभिमान पर
न आये आंच पल छिन ।
है जो तुमने मुझे
अपनाया तन मन से,
समझा अर्धांगिनी ह्रदय से
तो चीज वस्तु कठपुतली
शब्द न फूटें मुख से ।
नहीं है प्रश्न मेरी
पूजा सम्मान सत्कार का,
न किसी भवन दरबार का
बस सहचरी समझो मुझे
चाह नहीं धन अम्बार का ।
(सभी पतियों -पत्नियों को करवाचौथ के शुभअवसर पर बहुत- बहुत शुभकामना । प्रथम मिलन के क्षण का स्मरण आज जरूर करें,
एक छिपी हुई मिठास महसूस होगी आपको । पति के लिए व्रत पत्नी ही क्यों रखे ? पति को भी पत्नी के लिए व्रत रखना चाहिए
। कुछ लोग रखते भी हैं ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.11.2020
खरी खरी 728 : मसमसै सब रईं
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे के नि कूं रय,
आपणि आपणि है रै
क्वे कैकि नि सुणै रय ।
कोरोना संक्रमण है बचो,
मास्क लगौ सब कूंरीं
लगूंण क्वे नि रय,
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे के नि कूं रय,
मैंस रात भरि
पटाखा छोड़ै रईं,
हौरन - लौस्पीकर
जोरैल बजूं रईं,
जागरण वाव
खूब कमू रईं,
मैंसूं कि रातै कि
नीन उडूँ रईं,
कानून कैं क्वे
लै नि पुछै रय,
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे
के नि कूं रय ।
आब नानतिन लै
आपण मना क हैगीं,
जता जस मन ऊँछ
उता उस करैं फैगीं,
मै बाप कैं हर बखत
बाघ जस देखैं फैगीं,
समझूण में कै दिनी
तुमार बात पुराण हैगीं,
बाव कैं दे भुलिगो
बुड़ आब रै नि गय ।
मसमसै....
मसाण - जागर मैं
सब डुबि रईं,
गणतू - पुछ्यारूं क
पिछलगू बनि गईं,
गांठ- पताव ताबीजों क
माव जपैं रईं,
बकार - कुकुड़ खां रीं
परया जेब काटैं रईं,
अंधविश्वास में डुबि रीं
क्वे कैकं नि रोकैं रय,
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे के नि कूं रय ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.11.2020
खरी खरी - 727 : दिल्ली में उत्तराखंडी संस्थाएं
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अनुमान लगाकर लोग बताते हैं कि यहां लगभग 25 से 30 लाख तक उत्तराखंड के लोग
रहते हैं जो दिल्ली की आबादी ( 1.9 cr वर्ष 2011 ) का 7वां हिस्सा बताया जाता है । इस जनसंख्या की कोई ऑपचारिक गिनती
नहीं है । उत्तराखंड एकता मंच के नाम से 20 नवंबर 2016 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली भी उत्तराखंड समाज ने
की । वहां लोग आए परंतु कितने लोग आए उसका भी अनुमान नहीं लगाया जा सका । ( कृपया किसी को ज्ञात है तो बताने का कष्ट
करें ।) इतना जरूर है कि यह भीड़ अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से बहुत कम थी क्योंकि रामलीला मैदान की कैपेसिटी लगभग
एक लाख से अधिक बताई जाती है । दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंडी जनसंख्या की करीब 400 से 500 तक (अनुमानित ) सामाजिक
संस्थाएं बताई जाती हैं । इनकी भी गिनती किसी ने नहीं की हैं लेकिन उत्तराखंडी समाज की संस्थाएं दिल्ली के कोने -
कोने में या हर गली - मोहल्ले में हैं । इन संस्थाओं में पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों प्रकार की संस्था हैं जो अपनी
संस्कृति, भाषा, त्यौहार और रीति - रिवाजों को सिंचित करते रहते हैं । यही उत्तराखंड समाज की एक बहुत बड़ी पहचान है
।
पंजीकृत संस्थाओं में अधिकांश संस्थाएं पंजीयन कानून 1860 के हिसाब से निरंतरता नहीं बनाए रखती । प्रत्येक पंजीकृत
संस्था को प्रतिवर्ष 31 मार्च को बैलेंस सीट और बैंक खाते के परिचालन का विवरण अपनी संस्था के सदस्यों को महासमिति
की आम बैठक में देना होता है । यही नियम प्रत्येक RWA के लिए भी होता है । हम सब कई ऐसी संस्थाओं को जानते हैं जो
पंजीकृत केवल लेटर हेड में हैं जबकि जमीन में उनकी कभी कोई क्रियान्वयन गतिविधि नजर नहीं आई । इनमें कुछ ऐसी
संस्थाएं भी हैं जिनको दो दसक से भी अधिक हो गए हैं । पता नहीं संस्था है भी या नहीं परन्तु उनके पदाधिकारी अवश्य
यदा कदा कई मंचों से पुकारे जाते हैं, तब पता लगता है कि अमुक संस्था भी कहीं न कहीं है ।
कुछ मित्रों को इस बात का पता नहीं है कि वार्षिक ऑडिट, बैलेंस शीट और संस्था में यदि कुछ बदलाव हुआ है तो इसकी
सूचना पंजीयक सोसाइटी को देना आवश्यक होता है अन्यथा उनका पंजीयन रद्द हो जाता है । पुनः पंजीयन के लिए फिर नए सिरे
से पूरी कार्यवाही करनी होती है । सभी मित्रों से अनुरोध है कि यदि आपके पास दिल्ली एनसीआर में उत्तराखण्डियों की
जनसंख्या और सामाजिक संस्थाओं की अनुमानित संख्या ज्ञात हो तो साझा करने का कष्ट करें । संस्थाओं को जीवंत रखना आसान
कार्य नहीं है । अपने समाज के लिए जनहित में प्रतिबद्ध इन सभी संस्थाओं को हम नमन करते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.11.2020
खरी खरी - 725 : अन्धविश्ववास की जकड़
पढ़े-लिखे अंधविश्वासी
बन गए
लेकर डिग्री ढेर,
अंधविश्वास कि म टककड़जाल में
फंसते न लगती देर ।
औघड़ बाबा गुणी तांत्रिक
बन गए भगवान्
आंखमूंद विश्वास करे जग,
त्याग तत्थ – विज्ञान ।
लूट करे पूजा दर्शन में
प्रसाद में लूट मचावे,
धर्म के नाम पर जेब तराशे
मृदु उपदेश सुनावे ।
उलझन सुलझे करके हिम्मत
और नहीं मंत्र दूजा,
सार्थक सोच विश्वास दृढ़
मान ले कर्म को पूजा ।
अंधविश्वास ने जकड़ा जग को
यह जकड़ मिटानी होगी,
कूप मंडूक की जंजीरों से
मुक्ति दिलानी होगी ।
अंधियारा ये अंधविश्वास का
मुंह बोले नहीं भागे,
शिक्षा का हो दीप प्रज्ज्वलित
तब अंधियारा भागे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.11.2020
स्मृति - 526 : आज द्वि भारत रत्नों क स्मरण
देश में 45 भारत रत्नों में बै आज द्वि भारत रत्नों का स्मरण दिवस छ । पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ज्यू क आज
शहीदी दिवस छ जबकि पूर्व उप-प्रधानमंत्री और पैल गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ज्यू क जन्मदिन छ । इनार बार में
पुस्तक 'महामनखी' में तीन भाषाओं में चर्चा छ । यूं द्विये महामनखियों कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.10.2020
खरी खरी - 723 : पूजालय
मंदिर-मस्जिद वास नहीं मेरा
नहीं मेरा गुरद्वारे वास,
नहीं मैं गिरजाघर का वासी
मैं निराकार सर्वत्र मेरा वास ।
मैं तो तेरे उर में भी हूं
तू अन्यत्र क्यों ढूंढे मुझे ?
परहित सोच उपजे जिसे हृदय
वह सुबोध भा जाए मुझे ।
काहे जप-तप पाठ करे तू
तू काहे ढूंढे पूजालय?
मैं तेरे सत्कर्म में बंदे
अंतःकरण तेरा देवालय ।
क्यों सूरज को दे जलधार तू
नीर क्यों मूरत देता डार?
अर्पित होता ये तरु पर जो
हित मानव का होता अपार ।
परोपकार निःस्वार्थ करे जो
जनहित लक्ष्य रहे जिसका,
पर पीड़ा सपने नहीं सोचे
जीवन सदा सफल उसका ।
राष्ट्र- प्रेम से ओतप्रोत जो
कर्म को जो पूजा जाने,
सवर्जन सेवी सकल सनेही
महामानव जग उसे माने ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.10.2020
(मेरी पुस्तक 'यादों की कालिका' से)
ख़री खरी - 721 : अब "मान्यताओंं" को समझने लगी है नारी ।
अतीत में जितना भी महिलाओं को पुरुषों से कमतर दिखाने की बात कही-लिखी गई उसको लिखने वाले नर थे । सबकुछ अपने मन
जैसा लिखा, जो अच्छा लगा वह लिखा । एक शब्द है "मान्यता" है । 'बहुत पुरानी मान्यता है' कहा जाता है । ये कैसी
मान्यताएं थी जब जब औरत को बेचा जाता था, जुए के दाव पर लगाया जाता था, बिन बताए गर्भवती को घर से निकाला जाता था,
उस पर मसाण लगाया जाता था, उसे लड़की पैदा करने वाली कुलच्छिनी कहा जाता था, उसे सती -जौहर करवाया जाता था और उसे
मुँह खोलने से मना किया जाता था । महिला ने कभी विरोध नहीं किया । चुपचाप सुनते रही और सहते रही ।
अब हम वर्तमान में जी रहे हैं । अब सामंती राज नहीं, प्रजातंत्र है । 74% महिलाएं शिक्षित हैं । श्रध्दा के साथ किसी
भी मंदिर जाइये, नारियल फोड़िये, नेट विमान चलाइये, स्पीकर बनिये, प्रधानमंत्री बनिये, राष्ट्रपति बनिये और बछेंद्री
की तरह ऐवरेस्ट पर चढ़िये । देश के लिए ओलंपिक से केवल दो पदक आये 2016 में, दोनों ही पदक महिलाएं लाई । पुरुष खाली
हाथ आये । आज देश में हमारा संविधान है जिसके अनुसार हम सब बराबर हैं । जयहिंद के साथ सभी सीना तान कर आगे बढ़िए । जय
हिन्द की नारी ।
(कोरोना से पूरा विश्व संक्रमित है । विश्व में 4.35 करोड़ लोग संक्रमित हैं जबकि 11.62 लाख लोग इसके ग्रास बं चुके
हैं । हमारे देश में संक्रमितों की संख्या 79 लाख पार कर गई है जबकि 1.19 लाख लोग इसके ग्रास बन चुके हैं । मास्क
पहनो, देह दूरी रखो, हाथ धोते रहो और इस संक्रमण की गंभीरता को समझो । यही इससे बचाव है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.10.2020
खरी खरी - 720 : एक इंटरव्यू रावण का
रामलीला में दहन से पहले दिल्ली में रावण से आमने-सामने भेंट हो गई । रावण की विद्वता, ज्ञान और पराक्रम की याद
दिलाते हुए मैंने पूछा, " इतना सबकुछ होते हुए आप युद्ध में मारे जाते हैं और लोग आज भी आपकी बुराई करते हैं । इतने
पराक्रमी होने पर भी आपने छल से सीता का हरण क्यों किया ?
अजी साहब इतना सुनते ही रावण साहब उछल पड़े और गरजते हुए बोले, "आपने सुना नहीं युद्ध और प्यार में सब जायज है । किसी
की बहन की नाक कट जाय तो भाई कैसे चुप रह सकता है । मेरी बहन सूपनखा भी तो नारी थी । मानता हूं उसने गलती की पर उस
गलती की इतनी बड़ी सजा तो नहीं होनी चाहिए थी ।"
मशाल की तरह धधकती रावण की आंखों को देख कर मुझ से बोला नहीं गया । रावण का पारा सातवे आसमान पर था । वह गरजना के
साथ बोलता गया, " क्यों मुझे बदनाम करते हो ? मैंने एक मंदोदरी के सिवाय कभी किसी दूसरी नारी की ओर देखा तक नहीं ।
सीता को उठाकर ले तो गया परंतु अपने महल के बाहर अशोक वाटिका में रखा उसे । उसके आँचल को छुआ तक नहीं । उसके सम्मान
पर आंच नहीं आने दी ।"
रावण अपनी जगह सही था । वह आगे बोलता गया, " मैंने कभी नारी पर लाठीचार्ज नहीं किया और कभी किसी नारी का बलात्कार भी
नहीं किया । न कभी किसी नारी का उत्पीड़न किया और न अपमान किया । मुझे बुरा समझ कर कोसते हो तो पहले अपने अंदर छुपे
हुए रावण को तो बाहर निकालो फिर जलाना मेरा पुतला । 94 % बलात्कारी पीड़िता के किसी न किसी तरह से परिचित या सम्बन्धी
होते हैं तुम्हारे इस समाज में । पहले इनके अंदर के राक्षस को मारो । मैंने तो अपनी मौत और मौत का तरीका खुद ढूंढा
था । बलात्कारियों संग मेरा नाम मत जोड़ो ।"
रावण की इस 24 कैरट सच्चाई से मैं वाकशून्य हो गया था । उसकी इस कटु सत्यता से मैं हिल चुका था । इसी बीच रामलीला
डायरेक्टर की सीटी बजी और दनदनाते हुए रावण मंच पर पहुंच गया । मंच की ओर जाते हुए वह मुझे कुछ पाखंडी बाबाओं,
दुष्कर्मी जनप्रतिनिधियों, नरपिशाच आचार्यों, घूसखोर अफसरों, मिलावट करने वाले दुकानदारों, ठगविद्या से भ्रमित
करनेवालों और भ्रष्ट नेताओं के नाम गिना गया जो आजकल या तो जेल में हैं या बाहर खुल्ले आम घूम रहे हैं । वर्तमान
कोरोना काल में नियमों की अनदेखी करने वालों और मास्क न पहनने वालों को भी उसने समाज के उदंडी रावण बताया । रावण
वास्तव में सत्य कह रहा था । हमें अपने अंदर की बुराइयों के रावण का दहन सबसे पहले करना होगा ।
(आज 25 अक्टूबर 2020, विजयदशमी की सभी मित्रों को शुभकामनाएं ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.10.2020
खरी खरी - 718 : रोटी की कद्र
हम सब रोटी के लिए ही तो दर दर भटक रहे हैं । कहीं रोटी मिलती नहीं तो किसी को रोटी पचती नहीं । कोई किसी की आंच
में रोटी सेक रहा है तो कोई रोटी को चौबाट में फेंक रहा है । किसी की रोटी भद्र नहीं है तो कहीं रोटी की कद्र नहीं
है । कोई रोटी की बाट देख रहा है तो कोई रोटी के लिए जेब काट रहा है । कुछ लोग रोटी कमाने के लिए दौड़ रहे हैं तो कुछ
रोटी पचाने के लिए दौड़ रहे हैं । सुबह से लेकर देर रात तक, कहीं कहीं तो रात भर भी लोग रोटी के लिए ही भाग रहे हैं ।
जिस आटे की रोटी देश का सबसे धनी आदमी खाता है उसी आटे की रोटी देश का सबसे गरीब आदमी भी खाता है । जब यही रोटी
बेकद्री से सड़क पर पड़ी रहती है तो कई बातें उस व्यक्ति के दिल को चीरने लगती हैं जो दो जून की रोटी के लिए कभी तड़फा
हो या तड़फ रहा हो ।
महानगर की एक पॉश कालोनी के पार्क के गेट पर फेंकी हुई रोटियों के ढेर हम प्रतिदिन देखते हैं । प्रश्न उठता है किसने
फेंकी होंगी इतनी बेकद्री से ये रोटियाँ ? जिस घर से इन्हें फेंका गया होगा क्या वहाँ कोई रोटी की कद्र नहीं जानता
होगा ? शायद उसे रोटी कमाने का ज्ञान नहीं होगा या वह अब तक कभी भूख से तड़फा नहीं होगा । हम दिन में कम से कम तीन
बार तो अपने पेट की आग इस रोटी से बुझाते हैं । एक बार रोटी न मिलने पर हमारी हालत बिगड़ने लगती है ।
हमारे देश में आज भी करीब 20% लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं । कई लोग तो दिन में केवल एक बार की रोटी भी बड़ी मुश्किल
से प्राप्त कर पाते हैं । मेरा मानना है रोटियाँ उसी घर से फेंकी जाती हैं जहाँ भोजन का अनुशासन नहीं है । जब
रोटियाँ हिसाब से बनेंगी तो बचेंगी नहीं और जब बचेंगी नहीं तो फेंकी भी नहीं जाएंगी । वैसे भी सुबह की बची रोटी रात
को और रात की बची रोटी वह व्यक्ति तो अवश्य खा सकता है जो जीवन में रोटी के लिए कभी न कभी तड़फा हो । रोटी हमारी
जिंदगी है और रोटी ईश्वर का दिया हुआ एक अमूल्य उपहार है । हमें हमारे लिए रोटी उगाने वाले अन्नदाता कृषक को प्रणाम
करते हुए रोटी की कद्र करनी चाहिए और रोटी नहीं फैंकनी चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.10.2020
खरी खरी - 713 : रोना नहीं
(कोरोना से लड़ने वालों को समर्पित )
रोने से कभी
कुछ नहीं मिलता,
रह नहीं गए अब
आंसू पोछने वाले ।
.
दूर क्यों जाते हो
खोजने -ढूढने उन्हें,
तुम्हारे सामने ही हैं
पीठ पीछे बोलने वाले।
भरोसा मत करो
दिल अजीज कह कर,
शरीफ से लगते हैं
छूरा घोपने वाले।
संभाल अपने को
मतलब परस्तों से,
देर नहीं लगायेंगे
भेद खोलने वाले।
साथ देने की कसम पर
यकीन मत कर इनकी,
बहाना ढूढ़ लेते हैं
साथ छोड़ने वाले।
धर्म और मजहब सब
एक ही सीख देते हैं,
मतलब जुदा निकाल लेते हैं
समाज तोड़ने वाले।
अपने घर की बात
घर में ही रहने दो,
लगाकर कान बैठे हैं
घर को फोड़ने वाले।
दो बोल प्रेम के
बोल संभल के ' पूरन '
नुक्ता ढूढ़ ही लेंगे
तुझे टोकने वाले।
आजकल घर से बाहर तू
निकल कदम फूक -फूक कर,
घुस सकते हैं तुझ में
वायरस कोरोना वाले ।
एक नज़र उनकी
तरफ भी देख जी भर,
बड़ी हिम्मत से जूझ रहे हैं
क्रूर कोरोना से लड़ने वाले।
करते हैं दिल से सलूट
इन साहसी कर्मवीरों को,
अथाह हिम्मत वाले हैं
ये कोरोना को भगाने वाले ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.10.2020
स्मृति- 523 : भारत रत्न कलाम साब क स्मरण (मि जाइल मैन कलाम ज्यू कैं सलाम )
आज 15 अक्टूबर पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न, मिजाइल मैन, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ज्यू कि जयंती छ । उनार बार में
"लगुल" (2015) किताब बै एक लेख यां उद्धृत छ । उनर निधन 27 जुलाई 2015 हुणि शिलांग में हौछ । मरण बाद उनर सामान - 6
पैंट, 4 कुड़त, 3 सूट, 2500 किताब, 1 फ्लैट (दान पैलिकै), 1 पद्मश्री, 1 पद्मभूषण, 1 भारत रत्न, 16 डाक्ट्रेट, 1
वेबसाइट, 1 ट्विटर ऐकाऊंट, 1 ई मेल । क्वे गाड़ी नै, टीवी नै, जेवर नै, बैंक बैलेंस नै । सब 8 साल पैलिकै ग्राम सभा
कैं दान । यास छी महात्मा कलाम अंकल । कलाम ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
15.10.2020
बिरखांत – 340 : मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम
रामलीला के इस मौसम में श्रीराम का स्मरण ह्रदय से हो जाए तो अच्छा है | बताया जाता है कि श्री राम का जन्म आज से
लगभग सात हजार वर्ष ( बी सी ५११४ )पूर्व हुआ | कुछ लोग इस पर भिन्नता रखते हैं | पौराणिक चर्चाओं में अक्सर मतान्तर
देखने-सुनने को मिलता ही है | श्रीराम की वंशावली की विवेचना में मनु सबसे पहले राजा बताये जाते हैं | इक्ष्वाकु
उनके बड़े पुत्र थे | आगे चलकर वंशावली में ४१वीं पीढ़ी में राजा सगर, ४५ वीं पीढ़ी में राजा भगीरथ, ६०वीं में राजा
दिलीप बताये जाते हैं | दिलीप के पोते रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के पुत्र श्रीराम जो ६५वीं
पीढ़ी में थे |
वाल्मीकि के राम मनुष्य हैं | तुलसी के राम ईश्वर हैं | कंबन ने ११वीं सदी में कंबन रामायण लिखी और तुलसी ने १६वीं
सदी में रामचरित मानस | अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘पुरवासी-२०१२’ में डा. एच सी तेवाड़ी (वैज्ञानिक) का लेख श्रीराम के
बारे में कई जानकारी लिए हुए है | श्रीराम तेरह वर्ष की उम्र में ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में गए | वहाँ से मिथिला
नरेश जनक- पुत्री सीता से उनका विवाह हुआ | २५ वर्ष (कुछ लोग १४ वर्ष भी कहते हैं ) की उम्र में उन्हें वनवास हुआ |
१४ वर्ष वन में बिताने के बाद वे ३९ वर्ष की उम्र में अयोध्या लौटे | श्रीराम हमारे पूज्य या आदर्श इसलिए बन गए
क्योंकि उन्होंने समाज के हित में कई मर्यादाएं स्थापित की | उन्होंने माता-पिता की आज्ञा मानी, हमेशा सत्य का साथ
दिया, पर्यावरण से प्रेम किया, अनुसूचित जाति के निषाद को गले लगाया, भीलनी शबरी के जूठी बेर खाए और सभी जन-जातियों
से प्रेम किया |
एक राजा के बतौर राज्य की प्रजा को हमेशा खुश रखा | उन्होंने एक धोबी के बचनों को भी सुना और सीता का परित्याग कर
दिया | सीता और धोबी दोनों ही उनकी प्रजा थे परन्तु सीता उनकी पत्नी और प्रजा दोनों थी जबकि धोबी केवल प्रजा था |
लेख के अनुसार एक धारणा है कि भारत में जाति भेद आदि काल से चला आ रहा है और तथाकथित ऊँची-नीची जातियां हमारे
शास्त्रों की ही देन है | महर्षि वाल्मीकि इस धारणा को झुठलाते लगते हैं क्योंकि वह स्वयं अनुसूचित जाती से थे और
इसके बावजूद सीता उनकी पुत्री की तरह उनके आश्रम में रहीं | स्वयं राजा श्रीराम ने उन्हें वहाँ भेजा था | राज-पुत्र
लव -कुश महर्षि के शिष्य थे | यहां यह दर्शाता है कि श्रीराम की मान्यता सभी वर्ग के लोगों में सामान रूप से थी | आज
हम मानस का अखंड पाठ करते हैं परन्तु उसकी एक पंक्ति अपने ह्रदय में नहीं उतारते | जो उतारते हैं वे श्रद्धेय हैं |
हम समाज में आज भी राम के निषाद-शबरी को गले नहीं लगाते | जो लगाते हैं वे अधिक श्रद्धेय हैं |
संक्षेप में श्रीराम का वास्तविक पुजारी वह है जो उनके आदर्शों पर चले | हमारी समाज में कएक रावण घूम रहे हैं और
कईयों के दिलों में रावण घुसे हुए हैं | हम उस रावण का तो पुतला जला रहे हैं जबकि इन रावणों से सहमे हुए हैं | गांधी
समाधि राजघाट पर मूर्ति स्तुति में विश्वास नहीं रखने वाले बापू के मुंह से निकला अंतिम शब्द ‘हे राम’ बताता है कि
वे सर्वधर्म समभाव से वशीभूत थे और ‘ईश्वर-अल्लाह’ को एक ही मानते थे | हम भी श्रीराम का निरंतर स्मरण करें और ऊँच
–नीच तथा राग- द्वेष रहित समाज का निर्माण करते हुए सर्वधर्म समभाव बनाकर अपने देश में मिलजुल कर भाईचारे के साथ
रहने का प्रयत्न करें |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.10.2020
खरी खरी - 712 : रीत- रिवाज क ठ्यकदार
मै -बाबू कि स्याव नि करि
बार दिन के क्वड़ करें रईं,
न्यूतपट बोलचाल न्हैति
फिर लै मुंडन करें रईं,
क्वड़ पांच-सात दिनक लै
है सकूं पर को मानल ?
जै हुणी य बात कौला
उई गुरकि बेर आंख ताणल ।
जसिके आठ घंट के ब्या
दिन में आदू घंट में है सकूं,
उसिके बार दिन क पिपव लै
पंछां-सतां दिन है सकूं ,
पर रीत -रिवाज क ठ्यकदार
य बदलाव में टांग अड़ाल,
के न के नुक्त लगै बेर
आपणी मन कसि कराल ।
गौं में ब्या-काज लै
बाड़ मुश्किलल निभै रईं,
क्वे कैकि मदद निकरन
भैबेर धूं देखैं रईं,
न्यूति बलै बेर लै खाण हैं
नि ऐ दिन ऐंठी रौनी,
उनार दिलों में हमेशा
अन्यसाक किल घैटिये रौनी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.10.2020
खरी खरी - 711 : माया नहीं महान
जग में माया नहीं महान,
फिर तू काहे करे गुमान ।
माया से प्रसाधन मिलते
मिलते नहीं संस्कार,
माया से संस्कृति मिले ना
मिल जाता बाजार,
अंत समय कछु हाथ न लागे
सभी खोखला जान । जग...
माया से तुझे मिले बिछौना
नींद न मिलने पाये,
माया से साधन मिल जाते
खुशी न मिलने पाये,
माया से तुझे मिलता मंदिर
मिले नहीं भगवान । जग...
माया से मिले भवन चौबारे
घर नहीं मिलने पाये,
दवा -आभूषण मिले माया से
मुस्कान न मिलने पाये,
माया से पोथी मिल जाए
नहीं मिल पाये ज्ञान । जग...
'यादों की कलिका से'
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.10.2020
मीठी मीठी - 521 : 'कुमाउनी भाषाक व्याकरण
(आजकि ( 10102020 ) मीठी मीठी -521 में हल्द्वानी निवासी कुमाउनी भाषाक रचनाकार श्री गोविन्द बल्लभ बहुगुणा ज्यू कि
शब्दशः समीक्षा छ जो बहुगुणा ज्यूल मेरि किताब ' कुमाउनी भाषाक व्याकरण ' पर लेखी छ । समीक्षा साभार उद्धृत छ । )
कुमाउनी साहित्यकिअमूल्य धरोहर"कुमाउनी भाषाक् व्याकरण" किताब ।
कोई लै भाषाक् ल्यखण, पढ़न और बुलाणक लिजी नियम तय हुनी ताकि भाषाकि शुद्धता और सुंदरता बणी रओ । व्याकरणक
दसरनाम'शब्दानुशासन' लै कई जां । कोई लै भाषा वीक व्याकरण कें लिबेर फलें-फुलें । कुमाउनी भाषाक् बा्र में अक्सर यो
सुणन्हों मिलछी कि यो भाषा नै एक बोलि छू । यैक कोई व्याकरण न्हेंती । यैकि कोई लिपि नैंती वगैरा-वगैरा ।
हमार वरिष्ठ कवि, लेखक और विचारक पूरन चंद्र काण्डपाल ज्यू कें हिंदी है लै पुराणि भाषा कुमाउनीक लिजी यो बात दिल
में चुभछी । उनूल योई बातों खंडन कुमाउनी भाषा में लगभग सबै विधाओं में १३ किताब लेखिबेर और आब एक यो व्याकरणकि
किताब लेखिबेर यो सावित कर दे कि कुमाउनी बोली नै एक समृद्ध भाषा बणि गे । संदर्भित व्याकरणकि किताब लेखन में उनुकैं
करीब द्वि सालकि कड़ी मेहनत करन पड़ी तब जै बेर किताब प्रकाशित हैबेर कुमाउनी साहित्य सागर में शामिल है सकी । यो
खास उपलब्धिक लिजी काण्डपाल ज्यू कें बधाइ ।
ऐल जबकि नई शिक्षा नीति ऐगे और दर्जा पांच तककि पढा़इ मातृभाषा में हुणी वालि छू पाठ्यक्रमक लिजी यो किताब
उपयुक्त लागें । काण्डपाल ज्यूकि कुमाउनी में छपी हौर किताब लै बालोपयोगी छन प्रदेशक शिक्षा विभाग कें ये बातक
संज्ञान लिण चें ।
गोविंद बल्लभ बहुगुणा
कुमाउनी रचनाकार
बहुगुणा ज्यूूक हार्दिक आभार ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10102020
खरी खरी - 709 : कभैं आपूहैं पुछो !!
भाग्य क भरौस पर
तमगा नि मिलन
पुज-पाठ भजन हवन ल
मैदान नि जितिन ।
पसिण बगूण पड़ूं
जुगत लगूण पणी,
कभतै हिटि माठु माठ
कभतै दौड़ लगूण पणी ।
हाम यौस करण चैं कै दिनू
करि बेर नि देखून,
भाषण एक दुसरै कैं दिनूं
चलि बेर नि देखून ।
औरों हैं पुछण है पैली
आपूं हैं पुछो,
आफी सवाल करो
आफी जबाब ढूंढो ।
नै हमूल नशेणियां कैं टमकाय
नै शराबियों कैं रोक,
नै कभैं गुट्क तमाकु खै बेर
थुकणियां कैं टोक ।
मैंसूं देखादेखि हाम शिवजी कैं
भांग - धतुर चढ़ाते रयूं,
अंधविश्वास क नागौर
सबूं दगै बजाते रयूं ।
दुनिय विसर्जना क नाम पर
कुड़कभाड़ नदियों में बहाते जांरै,
मूर्ति फोटो कलेंडर पुज
हवन क शेष,
सब नदियों में घुसाते जांरै ।
नदी गंद नाव बनि गईं
पाणी गजवैन हैगो काव,
गंदगी फैलूणी कारखणा पर
आजि लै नि लाग ताव ।
गिच खोलो भू- विसर्जन कि
बात दुनिय कैं समझौ,
नदियों क हाल नि बिगाड़ो
विसर्जन वाइ चीज माट में दबौ ।
पढ़ीलेखी हाय
पढ़ी लेखियां जौस
काम नि करें राय ,
गिचम दै क्यलै जमैं थौ
आपू हैं नि पूछैं राय ।
मरि-झुकुड़ि बेर कुण नि बैठो
ज्यौना चार कभैं त जुझो,
क्यलै मरि मेरि तड़फ
क्यलै है रयूं चुप,
कभैं आपूहैं पुछो ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.10.2020
मीठी मीठी - 520 : भारतीय वायुसेना को सलूट
आज 08 अक्टूबर भारतीय वायुसेना दिवस है । इस शुभ अवसर पर देश की वायुसेना को हार्दिक शुभकामनाएं | वायुसेना के
एकमात्र परमवीर चक्र विजेता फ़्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखूं को आज हम पुनःशत शत नमन करते हैं | सेखूं को युद्ध
के समय वीरता का यह सर्वोच्च पुरस्कार 1971 के भारत- पाक युद्ध में मरणोपरांत प्रदान किया गया था | वर्तमान में
भारतीय वायुसेना के सर्वोच्च अधिकारी (मुखिया, CAS) एयर चीफ मार्शल राकेश कुमार सिंह भदौरिया हैं ।
कारगिल युद्ध (1999) में वायुसेना के आपरेशन 'सफ़ेद सागर' को भी देश कभी नहीं भूलेगा जब उसने टाइगर हिल, जुबेर और
तोलोलिंग के शिखरों पर दुश्मन के परखचे उड़ाए थे | साथ ही केदारनाथ आपदा (2013) को हम कैसे भूल सकते हैं जब हमारी
वायुसेना ने आपदा में घिरे हजारों असहाय लोगों की जान बचाई थी | विंग कमांडर अभिनंदन, वीर चक्र, ने 27 फरवरी 2019 को
अपने मिग 21 बिसन फाइटर से पाकिस्तान का F16 फाइटर गिराया था और 60 घंटे पाकिस्तान में बंदी रहकर स्वदेश वापस आए थे
। अपनी लाडली वायुसेना को 'ग्रेट रेड सलूट' |
"सूखा बाढ़ भूकम्प दंगा
तुरत प्रकट हो जाता तू,
हर त्रासदी में देश का रक्षक
हर गर्दिश में सखा है तू ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.10.2020
खरी खरी - 708 : एक थी कैकई
रघुवंश के राजा अयोध्या नरेश दशरथ का पत्नी कैकई से गहन प्रेम अवर्णनीय है । पत्नी का साथ और पत्नी का प्रेम देख कर
उसे दो वरदान दे दिये । कैकई बोली, "जब मन करेगा मांग लूंगी राजन, आप बचन दे दो ।'' अपनी प्रियतमा पर भरोसा था सो
महाराज दशरथ ने बचन दे दिया । भरोसा करना भी पड़ता है । उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि इस बचन की परिणीति क्या होगी
?
आगे चलकर राम राज्याभिषेक का वक्त आया और पुत्र प्रेम में डूबी कैकई जी को उनकी परमानेंट कामवाली (आजकल मेड कह रहे
हैं ) मंथरा जी ने ऐसा उकसाया कि कैकई ने अपने सर्वप्रिय कौशल्या पुत्र राम को वनवास और अपने पुत्र भरत को राजा
बनाने की मांग कर डाली । दशरथ बोले, "प्यारी कैकई, मेरे प्यार के साथ विश्वासघात मत कर । मैंने कभी सोचा भी नहीं था
कि तू इतनी भयानक हो सकती है । अब मेरी विनती है कि भरत को भलेही राजा बना दे परन्तु निर्दोष राम को वन मत भेज
।"
कैकई नहीं मानी, वह अपनी मांग पर अड़ी रही । राजा दशरथ को ऐसा सदमा लगा कि वे कौमा में चले गए और कौमा से कभी वापस
नहीं आये । तत्काल उनके प्राण पखेरू उड़ गए । वे चार पुत्रों के पिता थे परन्तु मृत्यु के समय कोई भी पुत्र सामने
नहीं था । कैकई की निष्ठुरता इतनी उग्र हो गई कि मरते हुए पति को देखकर भी उसका हृदय नहीं पिघला । उसकी जिद दुनिया
को कुछ तो शिक्षा दे गई । (आगे की कहानी सब जानते हैं फिर भी मौका मिले तो रामलीला देखते रहिए ।)
यदि कैकई चाहती तो दशरथ बच सकते थे । भरत राजा भी बन जाते और राम वन भी नहीं जाते लेकिन वह नहीं मानी । यदि दशरथ यह
जानते कि कैकई इस तरह की हरकत करेगी तो वे उसे बचन नहीं देते । यह त्रेता युग की बात है । सभी विवाहित पुरुषों से
निवेदन है कि अपनी पत्नी को बचन भी दें, उसको ATM का पिन नम्बर भी बतायें और उसे दशरथ से ज्यादा प्यार भी करें
परन्तु उसे प्यार से या मजाक में भी कैकई न कहें, वह बुरा मान सकती है । कैकई तो सिर्फ और सिर्फ एक ही थी । लेकिन यह
घ्यान जरूर रखें कि आपकी पत्नी के संपर्क में दूर- दूर तक ब्रेन वाश करने वाली कोई मंथरा न मंडराने पाए ।
(कृपया कथानक को पौराणिक दृष्टि से नहीं, केवल साहित्यिक दृष्टि से देखें । धन्यवाद ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.10.2020
खरी खरी - 707 : 1 और 2 अक्टूबर की वह दरम्यानी काली रात !!
1 और 2अक्टूबर 1994 की उस दरम्यानी रात को जब उत्तराखंड से हमारी बहनें राज्य की मांग के लिए अहिंसक आंदोलन करने
दिल्ली की गद्दी को चेताने के लिए बसों से आ रही थी तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा की कंस के राक्षस 2 अक्टूबर की
भोर को रामपुर तिराहे पर बांगोवाली गांव के पास उनका अपमान करेंगे । उनके हाथ में उस दिन दराती भी नहीं थी अन्यथा उन
नरपिशाचों के चिथड़े उड़ गए होते । उन्हें पहली बार कमर में दराती नहीं होने की कमी खली ।
इसी तरह 1994 के राज्य आंदोलन में 42 उत्तराखंडी शहीद हो गए । इन लोगों ने आंदोलन में कूदते समय यह नहीं सोचा होगा
कि आज वे शहीद हो जॉयेंगे । इनकी वीरगति से इनके घरों के दीपक बुझ गए । इनका आंदोलन भी अहिंसक था ।सोचिए क्या बीती
होगी इन शहीदों के परिवारों पर । अपने लिए नहीं मरे थे ये । ये उत्तराखंड राज्य के लिए मरे । ये गैरसैण राजधानी के
लिए शहीद हुए । इनकी जीवटता को नमन ।
1- 2 अक्टूबर की उस काली रात को उत्तराखंड के लिए भुलाना मुश्किल है । भूलेगा भी नहीं क्योंकि दोनों ही घटनाएं
दुःखद, शर्मनाक और निंदनीय थीं । यह दिन उत्तराखंड के लिए हमेशा ही काला रहेगा क्योंकि उस रात महिलाओं के उस निरादर
ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकृष्ट किया था । इस दिन कुछ लोग घड़ियाली आंसू बहाते हैं जो जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने
जैसा है । सत्ता - सुख भोग रहे मान्यवरों को उत्तराखंड को न्याय दिलाना चाहिए । 26 वर्ष हो गए हैं, एक भी दोषी दंडित
नहीं हुआ । क्यों ? यदि आप आत्मा में विश्वास रखतें हैं तो उन 42 शहीदों की आत्मा के बारे में भी सोचो । देश की 2
महान हस्तियों, गांधी -शास्त्री को 2 अक्टूबर को विनम्र श्रद्धांजलि के अलावा उत्तराखंड के लिए यह दिन काला दिवस के
रूप में ही याद किया जाता है । "वैष्णव जन तो तेने कहिए... 'सबको सन्मति दे भगवान...."
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.10.2020
खरी खरी -706 :मैं मुजफ्फरनगर कांड का शहीद बोल रहा हूं जी ।”
राज्य बनने की 20वीं वर्षगांठ पर मैं राज्य आंदोलन में मारा गया शहीद बोल रहा हूं जी, “अलग उत्तराखंड राज्य कि
मांग वर्ष 1923 में पहली बार उठी और 1952, 1956, 1968, 1973 और 1979 में यह अधिक गुंजायमान हुई | 1994 के काल खंड
में इस अहिंसक मांग पर गोली चला दी गयी और आजाद हिन्द में एक राज्य की मांग पर 42 आन्दोलनकारियों को गोली का शिकार
होना पड़ा | रामपुर तिराहे पर बने शहीद स्मारक से ही में एक शहीद आपको इस लम्बी कहानी को एक छोटी सी गाथा के रूप में
सुना रहा हूं ।"
"एक सितम्बर 1994 को उत्तर प्रदेश की बर्बर पुलिस ने अंग्रेजी हकूमत की तरह खटीमा में निहत्थे आन्दोलनकारियों पर
गोली चलाकर आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया | 2 सितम्बर को मसूरी में 8 प्रदर्शनकारी मारे गये | इसके बाद पूरे
उत्तराखंड के गांव, कस्बों और नगरों में अहिंसक आन्दोलन चरम पर पहुंच गया | राज्य का सभी वर्ग लेखक, पत्रकार,
गीतकार, कवि, किसान, भूतपूर्व सैनिक, विद्यार्थी, स्त्री- पुरुष- बच्चे अपना काम-धंधा और घरबार छोड़कर सडकों पर आ गए
| इस आन्दोलन का कोई केन्द्रीय नेतृत्व नहीं था | दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक दल इससे अलग रहे |"
"2 अक्टूबर 1994 को आन्दोलनकारी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए बसों में बैठ कर उत्तराखंड से दिल्ली आ रहे थे | तब
उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे | एक सोची-समझी चाल से उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के रामपुर
तिराहे पर आन्दोलनकारियों पर नादिरशाही दमन चक्र चलाया गया | पुलिस की वर्दी पर दाग लगाने वालों ने भोर होने से पहले
अचानक निर्दोषों पर आक्रमण कर दिया | लाठी-डंडे –बन्दूक का जम कर इस्तेमाल हुआ |महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई जिसने
सभ्यता को शर्मसार किया | गन्ने के खेतों में घसीट कर लोगों को पीटा गया । रामपुर, सिसोना, मेदपुर और बागोवाली के
लोगों ने महिलाओं की मदद की | "
"एक महिला कह रही थी “काश ! आज मेरी कमर में दराती होती, इन भेड़ियों के मैं भुतड़े (टुकड़े) कर देती” | उत्तराखंड की
नारी ने वहां पर वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह संघर्ष किया | पुलिस फायिरिंग में वहां पर कई शहीद हो गए और सैकड़ों घायल
हुए | 3 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तराखंड में आन्दोलन और तेज हो गया जिससे देहरादून, नैनीताल और
कोटद्वार में 5 लोग मारे गए | 3 नवम्बर को पूरे उत्तराखंड में काली दिवाली मनाई गयी | केवल शहीदों कि नाम पर एक दीपक
जलाया गया | 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने लालकिले से उत्तराखंड राज्य बनाने की घोषणा
कर दी और 9 नवम्बर 2000 को राज्य बन गया | तब से राज्य में 10 मुख्य मंत्री बन गए हैं । जिन पुलिस कमांडरों ने जघन्य
अपराध कर 42 निर्दोषों को मारा उन्हें तरक्की मिल गई है परन्तु न आजतक शहीदों को न्याय मिला और न हमारे सपनों का
उत्तराखंड बना |"
"जब तक दोषियों को दण्डित नहीं किया जाएगा और राज्य की राजधानी देहरादून से गैरसैण नहीं जाएगी, हमारी आत्मा को
शान्ति नहीं मिलेगी | मुझे पता है उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष मोर्चा पिछले 26 वर्षों से दिल्ली के जंतर-मंतर पर
शहीदों को न्याय दिलाने के लिए प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को अहिंसक प्रदर्शन करते आ रहा है | हमारी चिताओं पर आप मेले
लगाते हैं, हमारे लिए आखें नम करते हैं, इससे कुछ शान्ति जरूर मिलती है | जय भारत, जय उत्तराखंड |”
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.10.2020
संस्मरण - 3 : मंथन से बदली सोच
वर्ष 1975 -76 के दौरान मैं पूर्वोत्तर के एक सीमावर्ती राज्य में सेवारत था । तब वहां के गावों की सेनिटेसन
(स्वच्छता) हालात ठीक नहीं थे । लोग अपने घर के पास ही खुले में शौच करते थे । उस शौच से उनके सूवर पलते थे लेकिन
गन्दगी बहुत थी । स्वच्छता अभियान के दौरान एक दुभाषिये के साथ मुझे वहां भेजा गया । मैंने उन लोगों को खुले में शौच
से होने वाले सभी दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और सेनिटरी इंजीनियरिंग के तरीके से स्थानीय हालात को देखकर शैलो
तथा डीप ट्रेंच लैट्रिन बनाने का डिमोंस्ट्रेसन दिया ।
गांव वाले यह सब देख-सुन कर मुझ से नाराज हो गए । उनका कहना था, "ये आदमी हमारे सूवरों को मारना चाहता है ।"
दुभाषिये ने मुझे सारी कहानी समझाई । इसके बाद मैंने उन्हें मक्खियों से होने वाले रोग, जल -जनित रोग तथा कृमिरोग के
बारे में समझाया । वहां कई लोग इन रोगों से ग्रसित भी थे । गांव के मुखिया, दुभाषिये के सहयोग और मेरे प्रयास से उन
लोगों ने खूब मंथन किया और खुले में शौच करना बंद कर दिया ।
एक महीने के बाद स्वास्थ्य निदेशक के आदेश से मुझे उस क्षेत्र के मूल्यांकन के लिए पुनः भेजा गया । गांव की दशा बदल
चुकी थी । गांव से मक्खियों की भनभनाहट दूर हो चुकी थी और मेरे प्रति उनकी नाराजी भी दूर हो चुकी थी । इस चर्चा से
मैं कहना चाहता हूं कि यदि लोग मंथन करें तो वे अवांच्छित प्रथा- परम्परा - अंधविश्वास के सांकलों को तोड़ सकते हैं
।
यह भी बताना चाहूंगा कि पी एम साहब का कथन, "जो मुंह से तो 'वंदेमातरम' कहते हैं और धरती में जहां-तहां कूड़ा डालते
हैं, यह वंदेमातरम नहीं है" बिलकुल सत्य और सटीक है । हम सब देश के स्वच्छता अभियान को जहां -तहां कूड़ा डाल कर पलीता
लगा रहे हैं । स्मरण रहे कि स्वच्छता अभियान कोई नया नहीं है । अब तक के सभी 14 प्रधानमंत्रियों और 14 राष्ट्रपतियों
ने इसकी चर्चा की है और इसे गति दी है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.10.2020
मीठी -मीठी -516 : जनहित ही सर्वोपरि
खरी -खरी तो लगातार कह ही रहा हूं । संग में मीठी-मीठी भी गतिमान है । 24 अप्रैल 2017 को जब देश की आंखें सुकमा में
जान देने वाले 25 शहीदों के लिए नम हो रहीं थीं , उसी दिन एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार 101 गरीब जोड़े विवाह
बंधन में बंध गए । इन 101 जोड़ों में 93 हिन्दू, 6 मुस्लिम,1 सिक्ख तथा 1 ईसाई समुदाय से थे ।
गरीब परिवारों के हित किये गए इस सर्वप्रिय विवाह समारोह का आयोजन सहारा शहर लखनऊ में सहारा इंडिया परिवार द्वारा
किया गया । वर्ष 2004 से आरंभ इस सामूहिक विवाह समारोह का यह 12वां आयोजन था जिसमें तब तक 1212 जोड़े विवाह बंधन में
बंध गये थे । इन सभी जोड़ों को गणमान्य लोगों ने आशीर्वाद दिया एवं गृहस्थी की बुनियादी वस्तुएं भेंट की गईं
।
कई लोग समाज में कई तरह के कार्य करते हैं जिनमें जनहित के बजाय आडम्बर, पाखंड, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, ढकोसला और
दिखावा अधिक होता है । ऐसे कृत्यों से दूर रह कर जनहित - देशहित के कार्यों में योगदान देना ही समाजोपयोगी कार्य कहा
जायेगा । जल-स्रोतों का संरक्षण - स्वच्छता, पौध रोपण और साहित्य - संस्कृति प्रसार करते हुए धरा का श्रंगार करना भी
सर्वोत्तम कर्म है । सहारा इंडिया एवं इसी तरह की सोच रखने वालों तथा ऐसी गतिविधियों में व्यस्त मनिषियों को दिल से
साधुवाद ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2020
खरी खरी - 705 : पुरस्कार के मापदंड ?
हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ? कार्यानुभव, योग्यता,
वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?
आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार
हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार
को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद
दिया गया ।
पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि
वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान है ।
योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत
व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ सदैव सालते रहता है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.09.2020
खरी खरी -704 : लाखक है जां खाक
मंखियैक जिंदगी
लै कसि छ,
हव क बुलबुल
माट कि डेल जसि छ ।
जसिक्ये बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसक्ये सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।
मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।
त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।
चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाख क छी
जइ बेर खाक बनि जां ।
मुर्दा क क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।
मनखिये कि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
यौ बात याद नि धरन ।
(कोरोना संक्रमणल देश में तिरानबे हजार है ज्यादा लोग अकाल मौत में मरि गईं जमें करीब पौण तीन सौ डाक्टर लै छीं ।
इनुकैं श्रद्धांजलि । सबूंल आपण बचाव करण चैंछ और मास्क लगूण चैंछ। )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.09.2020
संस्मरण - 1 : मेरी यादें
वर्ष 1964 में 10वीं पास करते ही मैं काम की खोज में निकल गया था । नौकरी करते हुए स्नातकोत्तर शिक्षा (राजनीति
शास्त्र में) तथा तकनीकी स्वास्थ्य शिक्षा में अध्ययन किया । 40 वर्ष की नौकरी में मैंने कई उतार - चढ़ाव देखे ।
भारतीय सेना में रह कर 1971 के 14 दिन के भारत - पाक युद्ध में देश की सीमा पर भी सेवा दी । जीवन में बड़े खट्टे -
मीठे - कड़ुवे अनुभव भी हुए । अपने अनुभवों को याद करता हूं तो गुजरा जमाना याद आ जाता है । कभी कभी सोचते सोचते
अपने आप मुस्कराने लगता हूं । पत्नी देवी कहती है अपने आप पागलों की तरह क्यों हंस रहे हो ? यादें मनुष्य की बहुत
बड़ी निधि हैं जिनके सहारे वह दुख - सुख में जी लेता है, समस्याओं से जूझ सकता है । मैं सोसल मीडिया में विगत 7- 8
वर्ष से कुछ शीर्षकों ( बिरखांत, खरी खरी, मीठी मीठी, स्मृति, दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै ( कुर्मांचल अखबार अल्मोड़ा) और
ट्वीट ) के अन्तर्गत कुमाउनी और हिंदी में कलमघसीटी कर रहा हूं जिनकी कुल संख्या 2724 ( 'दिल्ली चिठ्ठी ' इसमें नहीं
है जिनकी संख्या 300 से अधिक है ) हो गई है जिन्हें मेरे मित्र, आलोचक, पाठक आदि सभी पढ़ते हैं और अच्छी प्रतिक्रिया
देते हैं तथा मेरा मार्ग दर्शन भी करते हैं । मैं इन सबका आभारी हूं ।
मैं बदलाव का पक्षधर हूं । कट्टरवाद को अनुचित समझता हूं । रूढ़िवाद और अंधश्रद्धा से भरी परंपराओं में शिक्षा के
सूर्योदय के साथ बदलाव होना चाहिए । शिक्षा के प्रकाश से ही अंधेरा मिटेगा । अंधेरा मिटाने के लिए दीप प्रज्ज्वलित
करना ही होगा । इसी सोच से पढ़ना - लिखना मेरा शौक बन गया । मैं आजीवन छात्र बन कर ही रहना चाहता हूं । विगत 40
वर्षों में 30 किताबों ( 17 हिंदी और 13 कुमाउनी ) की रचना भी कब हो गई पता नहीं चला । अब एक नए शीर्षक ' संस्मरण '
के अन्तर्गत कुछ संजोई हुई यादों को अपने पाठकों से साझा करने का मन है । कितना सफल होता हूं यह तो समय बताएगा ।
शीघ्र ही नया शीर्षक ' संस्मरण ' आरम्भ होगा तथा साथ ही पुराने शीर्षक भी गतिमान रहेंगे । मुझे पूर्ण विश्वास है कि
आपका स्नेह बरसते रहेगा जिससे मेरी कलम घसीटी चलते रहेगी ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.09.2020
खरी खरी - 519 : अलग थकुली नि बजौ
देशा का मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ ।
एकै उल्लू भौत छी
पुर बगिच उजाड़ू हूँ
सब डवां में उल्लू भै गयीं
बगिचौ भल्याम कसी हूँ ।
गिच खोलो भ्यार औ
भितेर नि मसमसौ, देशा क ....
समाओ य देशें कें
हिमाल धात लगूंरौ
बचौ य बगीचे कें
जहर यमे बगैँ रौ ।
उंण नि द्यो य गाड़ कें
बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क .....
उठो आ्ब नि सेतो
यूं उल्लू तुमुकें चै रईं
इनू कें दूर खदेड़ो
जो म्या्र डवां में भै रईं ।
यकलै यूं नि भाजवा
दग डै जौ दौड़ी बे जौ . देशा क .....
शहीदों कें याद करो
घूसखोरों देखि नि डरो
कामचोरों हूँ काम करौ
हक़ आपण मागि बे रौ ।
अंधविश्वास क गव घोटो
अघिल औ पिछाड़ी नि रौ.
देशा क मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
21.09.2020
खरी खरी - 518 : देशभक्ति की परिभाषा
आप लोग अक्सर देशभक्ति के लेख पढ़ते होंगे या भाषण सुनते होंगे । आजकल कुछ लोग देशभक्ति के प्रमाण पत्र भी देने लगे
हैं । जो उनके मन कैसी नहीं बोलेगा वह देशभक्त नहीं है । ऐसे कुछ लोग सड़क पर गुटका थूकते हैं, कूड़ा डालते हैं,
हुड़दंग मचाते हुए भारत माता की जय - वन्देमातरम कहते हैं और वे स्वयं को देश भक्त कहते हैं । हमारे नेता स्वछता
रखने वालों और छोटा परिवार रखने वालों को देशभक्त कहते हैं जिसकी सराहना होनी चाहिए और उनकी बात का अनुपालन होना
चाहिए ।
वास्तविक देशभक्तों के अनुसार देशभक्ति चीखने - चिल्लाने में नहीं, शिष्ट भाषा और व्यवहार में प्रकट होती है। खुद
बेहतर इंसान बनना देशभक्ति है, नफरत मिटाना और लोगों में इंसानियत जगाना देशभक्ति है । जाति, धर्म की कट्टरता से
लड़ना, आपसी सौहार्द पैदा करना, अंधश्रद्धा को त्यागना, विवेक से कार्य करना, अंहकार छोड़ना, दूसरों को अपने जैसा
इंसान समझना और उनका सम्मान करना देशभक्ति है । उन्माद से बचना और बचाना, उन्माद पर नियंत्रण रखना तथा सबके कल्याण
की कामना करना देशभक्ति है । यदि हमारे अंदर इस देशभक्ति की कमी है तो सबसे पहले इस कमी को दूर करते हुए हमें स्वयं
में देशभक्ति जगानी होगी तभी हम किसी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का हक रखते हैं । जयहिंद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.09.2020
खरी खरी - 517 : नॉर्मल डिलीवरी या सिजेरियन ?
किसी भी महिला के लिए मां बनना एक अद्भुत ऐहसास है जिसे प्रत्येक महिला पाना चाहती है । आज नव-मातृत्त्व में कदम
रखने वाली अधिकांश युवतियां शिशु का जन्म नार्मल डिलीवरी (प्राकृतिक प्रसव) के बजाय सिजेरियन से करवा रहीं हैं ।
सिजेरियन अर्थात महिला के गर्भ से शिशु को सर्जरी (ओप्रेसन) से बाहर निकलना । आजकल यह सुविधानुसार भी होने लगा है
।
चिकित्सकों के अनुसार नार्मल डिलीवरी में कुछ घंटे का समय लगता है जबकि सिजेरियन से मात्र 30 से 45 मिनट में शिशु
बाहर आ जाता है । इससे डॉक्टरों का समय बचता है, प्रसूता को प्रसव पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता । अस्पताल को सिजेरियन
से अच्छी कमाई भी होती है क्योंकि कि प्रसूता को 7- 8 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है । सिजेरियन के लिए सीजीएचएस
योजना से सरकारी कर्मचारियों का या कारपोरेट कर्मचारियों का कम्पनी द्वारा बिल भुगतान हो जाता है ।
बताया जाता है कि देश की राजधानी में 70 % डिलीवरी सिजेरियन से प्राइवेट अस्पतालों में होती है । अधिकांश महानगरों
में 70 से 95 % तक प्रसव सिजेरियन से करवाये जाते हैं । नार्मल डिलीवरी एक स्वस्थ परम्परा है जिसे अस्पताल में ही
कराया जाना चाहिए । चिकित्सकों के अनुसार सिजेरियन प्रसव से जन्मे बच्चे संघर्ष में अक्षम और निरीह होते हैं वहीं
महिलाओं को सिजेरियन के बाद रक्ताल्पता (अनेमिया), मोटापा या उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेसर) जैसे परेशानी हो सकती
है ।
एक समाचार के मुताबिक उन डॉक्टरों पर अब नजर रखी जा रही है जिन्होंने अधिक सिजेरियन किये हैं । मां बनने वाली युवती
को उसके परिजनों द्वारा नार्मल प्रसव के लिए प्रोत्साहित किया जाना आज के माहौल में एक सर्वोत्तम बात होगी । आरम्भ
में ही सिजेरियन की बात करना गलत है । सिजेरियन तो एक आपातकाल परिस्थिति है जब महिला बीमार हो या कोई चिकित्सकीय
सलाह दी गई हो । नारी को इतना नाजुक या हिम्मतहार भी नहीं होना चाहिए कि वह प्रसव के नाम से डरने लगे । ग्रामीण भारत
में सामान्य प्रसव का ही अधिक प्रचलन है जबकि शहरों में सिजेरियन एक आम बात हो गई है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.09.2020
खरी खरी - 516 : पुलिस भरोसा
पुलिस से स्नेह, कर्तव्य और भरोसे की उम्मीद करते हुए एक कुंडली पुलिस को समर्पित करता हूं -
कैसा अब माहौल बना
पुलिस भरोसे कौन,
स्तुत्य दुर्जन बन गया
रह गया सज्जन मौन,
रह गया सज्जन मौन
पुलिस पर विश्वास नहीं है
जनता है सुरक्षित
ऐसी आस नहीं है,
कह 'पूरन' हे पुलिस जन
विश्वास जगा दे ऐसा,
मिटे सकल अपराध
किसी को फिर डर कैसा ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.09.2020
मीठी मीठी - 512 : मोदी ज्यूक जन्मदिन
आज 17 सितम्बर, देशाक 14उं प्रधानमंत्री मोदी ज्यूक जन्मदिन । उनार बार में मेरि किताब " लगुल " बै एक लेख यां
उद्धृत छ । मोदी ज्यू कैं जन्मदिनकि बधै ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.09.2020
बिरखांत 338 : हम मजाक में सीखते हैं नशा
अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक समूह में रहकर देश हित में निष्पक्ष कलम चला रहा हूं | स्वास्थ्य शिक्षक होने के नाते कई
वर्षों से नशामुक्ति अभियान से भी जुड़ा हूं और सैकड़ों लोगों को शराब, धूम्रपान, खैनी, गुट्का, तम्बाकू सहित इसके मिथ
और अन्धविश्वास से छुटकारा दिलाने में मदद कर चुका हूं । एक टी वी चैनल पर मैंने इस बात को स्वीकारा है कि प्रत्येक
व्यक्ति अपने तरीके से भी किसी नशा-ग्रसित को नशामुक्त करने में मदद कर सकता है | इसमें क्रोध नहीं विनम्रता की
जरूरत है |
नशेड़ी नशे के दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ होता है | जिस दिन वह इसके घातक परिणाम को समझ जाएगा, वह नशा छोड़ देगा | कोई भी
नशा हम मजाक-मजाक में दोस्तों से सीखते हैं फिर खरीद कर सेवन करने लगते हैं | अपना धन फूक कर स्वास्थ्य को जलाते हुए
कैंसर जैसे लाइलाज रोग के शिकार हो जाते हैं | यदि आप किसी प्रकार का नशा कर रहे हैं तो इसे तुरंत छोडें | अपने
मनोबल को ललकारें और जेब में रखे हुए नशे को बाहर फैंक दें |
वर्ष 2004 में मेरी कविता संग्रह ‘स्मृति लहर’ लोकार्पित हुई | जनहित में जुड़ी देश की कई महिलाएं हमें प्रेरित करती
हैं | ऐसी ही पांच प्रेरक महिलाओं – इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, किरन बेदी, बचेंद्री पाल और पी टी उषा पर इस पुस्तक
में कविताएं हैं | पुस्तक भेंट करने जब में डा. किरन बेदी के पास झड़ोदाकलां दिल्ली पहुंचा तो उन्होंने बड़े आदर से
पुस्तक स्वीकार करते हुए मुझे नव-ज्योति नशामुक्ति केंद्र सरायरोहिला दिल्ली में स्वैच्छिक सेवा की सलाह दी | मैं
कुछ महीने तक सायं पांच बजे के बाद इस केंद्र में जाते रहा | मेडिकल कालेज पूने की तरह यहां भी बहुत कुछ देखा, सीखा
और किया भी |
आज भी मैं हाथ में तम्बाकू मलते या धूम्रपान करते अथवा गुट्का खाते हुए राह चलते व्यक्ति से सभी प्रकार के नशे छोड़ने
पर किसी न किसी बहाने दो बातें कर ही लेता हूं | कुछ महीने पहले निगमबोध घाट दिल्ली के नजदीक कश्मीरीगेट, यमुना
बाजार, हनुमान मंदिर पर नशेड़ियों से नशा छोड़ने की अपील करने एक महिला नेता पहुँची जिनके सिर पर किसी ने पत्थर मार
दिया | बहुत दुःख हुआ |
जनहित में मुंह खोलने वाले को असामाजिक तत्व निशाना भी बना देते हैं, यह नईं बात नहीं है | आज भी पूरी दिल्ली में
पाउच बदल कर जर्दा- गुट्का, तम्बाकू अवैध रूप से बिक रहा है | कानूनों के धज्जियां उड़ते देख भी बहुत दुःख होता है |
इसका जिम्मेदार कौन है ? बुराई और असामाजिकता के विरोध में मुंह खोलने में जोखिम तो है |
'क्या जलजलों की डर से
घर बनाना छोड़ दें ?
क्या मुश्किलों की डर से
मुस्कराना छोड़ दें ?
मैं बिरखांत में किसी को सलाह (प्रवचन) देना नहीं चाहता बल्कि समस्या को उकेर या उजागर कर इसकी गंभीरता को समझाने का
प्रयास करता हूं | नशा करने वाले याद करें , जब पहली बार आपने सिगरेट की कस अथवा शराब की एक शिप (घूंट) लगाई, इसे
किसी दोस्त ने ही मजाक- मजाक में आपके हाथ में थमाया । इसी तरह आप पीने लगे फिर खरीद कर पीने और पिलाने लगे । एक
धीमी रफ्तार से आप पीने वालों में शामिल हो गए । अंत में एक बात और बता देता हूं, यदि कभी आपके पेट के निचले हिस्से
में दाईं तरफ दर्द उठने लगे तो समझो आंत में जख्म होने लगा है । फिर तो आप नशा तुरंत छोड़ ही दोगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.09.2020
स्मृति - 511 : याद रौल राणा ज्यू
आज 16 सितम्बर महान लोकगायक, कवि और गीतकार दिवंगत हीरा सिंह राणा ज्यूक जन्मदिन छ । 2019 में आजक दिन उनार सानिध्य
में कएक आयोजन करी गईं । 'अहा रे जमाना' जास कएक कालजई गीतों के य रचनाकार जन मानस में हमेशा बसिए रौल । विनम्र
श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.09.2020
खरी खरी - 515 :अन्धविश्ववास की जकड़
पढ़े-लिखे अंधविश्वासी
बन गए
लेकर डिग्री ढेर,
अंधविश्वास कि मकड़जाल में
फंसते न लगती देर ।
औघड़ बाबा गुणी तांत्रिक
बन गए भगवान्
आंख मूंद विश्वास करे जग,
त्याग तत्थ – विज्ञान ।
लूट करे पूजा दर्शन में
प्रसाद में लूट मचावे,
धर्म के नाम पर जेब तराशे
मृदु उपदेश सुनावे ।
उलझन सुलझे करके हिम्मत
और नहीं मंत्र दूजा,
सार्थक सोच विश्वास दृढ़
मान ले कर्म को पूजा ।
अंधविश्वास ने जकड़ा जग को
यह जकड़ मिटानी होगी,
कूप मंडूक की जंजीरों से
मुक्ति दिलानी होगी ।
अंधियारा ये अंधविश्वास का
मुंह बोले नहीं भागे,
शिक्षा का हो दीप प्रज्ज्वलित
तब अंधियारा भागे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.09.2020
खरी खरी - 514 : चुप क्यों ?
जब मेरे आंखों के सामने
कभी किसी कन्या भ्रूण का
लहू गिरता है,
किसी नारी का दामन लुटता है,
रेल का डिब्बा सरेआम फुकता है,
किसी वृक्ष पर कुल्हाड़ा चुभता है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब पड़ोसी का घर लुटता है,
जब कोई बेकसूर कुटता है,
जब किसी स्त्री पर हाथ उठता है,
जब सत्य पर कहर टूटता है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब राष्ट्र की संपत्ति लुटती है,
प्रदूषण -धार नदी में घुसती है,
किसी असहाय की सांस घुटती है,
जब भ्रष्टों की जमात जुटती है,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
जब चैनल मनमानी करते हैं,
जन - मन की नहीं सुनते हैं,
मुद्दों से ध्यान बंटाते हैं,
अपनी टी आर पी बढ़ाते हैं,
मैं चुप क्यों रहता हूं ?
मुझे नहीं पता ।
शायद मैं हालात से डर जाता हूं,
मरने से पहले मर जाता हूं,
कर्तव्य पथ पर ठहर जाता हूं,
फर्ज से पीठ कर जाता हूं ।
अगर मैं जिंदा होता,
अपना मुंह अवश्य खोलता,
चिल्लाकर लोगों को बुलाता,
मिलकर उल्लुओं को भगाता ।
शायद मेरी संवेदना मर गई है,
मुझ से किनारा कर गई है,
मेरा खून पानी हो गया है,
मेरा जमीर बिलकुल सो गया है ।
अब कौन मुझे जगायेगा?
कौन उल्लुओं को भगाएगा ?
मैं मुर्दा नहीं, जिन्दा हूं
यह मुझे कौन बताएगा ?
यह सब मुझे ही करना होगा,
वतन परस्तों से सीखना होगा,
भलेही कोई साथ न दे,
मुझे अकेले ही चलना होगा ।
मुझे अकेले ही चलना होगा ।।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.09.2020
खरी खरी - 513 : हिन्दी की वेदना
(14 सितम्बर हिन्दी दिवस)
हिन्दी अपनी राष्ट्र की भाषा
पढ़ लिख नेह लगाय,
सीखो चाहे और कोई भी
हिन्दी नहीं भुलाय,
हिन्दी नहीं भुलाय
मोह विदेशी त्यागो,
जन जन की ये भाषा
हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह ‘पूरन’ कार्यालय में
बनी यह चिंदी,
बीते इकहत्तर बरस
अभी अपनाई न हिन्दी |
लार्ड मैकाले ने भारत में
अंग्रेजी की ऐसी जड़ जमाई,
अंग्रेजों के जाने के बाद भी
अंग्रेजी उखड़ नहीं पाई,
भले ही यू एन में कुछ
लोगों ने हिन्दी पहुंचाई,
पर अपनी संसद में तो
अंग्रेजी की ही है दुहाई ।
( सभी भारतीयों को हिन्दी 'दिवस की शुभकामनाएं ' तथा इंडिया वालों को 'हैप्पी हिन्दी डे टु यू।' )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.09.2020
खरी खरी - 512 : मैं कैं के खबर न्हैति (अंधविश्वास )
देवभूमि दगै
अंधविश्वास ज्यड़िये रैगो,
उखड़ण नि रय
गैर तक खड़िये रैगो,
डंगरिय कूं रईं मसाण
केवल स्येणियां परै लागूं,
यौ सिरफ शराबि
डंगरियां कैलै भाजूं,
अच्याल नईं नईं
मसाण पैद है गईं,
जो हेल्वाण दगै
बोतल लै माँगें फै गईं,
मंदिरों में लै चोरि बेर
बकर कटै खूब चलि रै,
दास-डंगरी करैं रईं
मैसों कि जेब रिती,
यां क्यलै हूंरै
द्याप्तां थानों में खुन्योव,
मैंकैं के खबर न्हैति ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.09.2020
मीठी मीठी - 511 : आपका दिल से धन्यवाद
मुझे स्मरण है कि लेखन के मेरे शब्द सबसे पहले नवभारत टाइम्स समाचार पत्र में वर्ष 1989 में छपे । तब से 11 सितम्बर
2020 तक इन 32 वर्षों में विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं, पुस्तकों, अखबारों और स्मारिकाओंं में मेरे शब्दों को जगह मिलते
रही । कभी कम तो कभी अधिक शब्द, कभी छोटा तो कभी बड़ा लेख, कभी कहानी तो कभी कविता सहित निबंध, सामान्य ज्ञान, जीवनी
आदि छपते रहे । ये सब गद्य या पद्य के रूप में कभी कुमाउनी में तो कभी हिंदी में लिखे गए जबकि दो पुस्तकें अंग्रेजी
सहित तीन भाषाओं में लिखी गईं । इसी दौर में मैंने हिंदी में 17 और कुमाउनी में 13 सहित कुल 30 पुस्तकें भी लिखी ।
विगत सात वर्ष से सोसल मीडिया में भी खरी खरी, बिरखांत, मीठी मीठी, ट्वीट आदि शीर्षक से दो हजार सात सौ से अधिक छोटे
- बड़े लेख लिख चुका हूं । सभी पाठकों का आभार ।
पाठकों के साथ ही मैं आज उन पत्र - पत्रिकाओं, पुस्तकों और समारिकाओं को भी हार्दिक धन्यवाद करना चाहता हूं
जिन्होंने मेरे शब्दों को जगह दी तथा मेरे उद्गारों को समाज तक पहुंचाया । इन पत्र - पत्रिकाओं और स्मारिकाओं के नाम
आज प्रस्तुत करते हुए मुझे इनका आभार प्रकट करने में बहुत हर्ष हो रहा है । ये हैं - नव भारत टाइम्स, राष्ट्रीय
सहारा, साथी, उपवन, हिल संदेश, प्यारा उत्तराखंड, उत्तरांचल पत्रिका, उत्तरांचल धै, गढ़ रैबार, उत्तराखंड जागरण,
पंजाब केसरी, देवभूमि की पुकार, ओमेगा रिपोर्टर, पहरू (अल्मोड़ा), कुमगढ़ (काठगोदाम), कुर्मांचल अखबार (अल्मोड़ा),
आदलि कुशलि (पिथौरागढ़), ज्ञान - विज्ञान बुलेटिन, बाल प्रहरी, पंखुड़ी (रुद्रपुर), जनपक्ष आजकल, अलकनंदा, सृजन से,
शिल्पकार टाइम्स, जनधारा, रोहिणी संवाद, कर्मभूमि, पुरवासी(अल्मोड़ा), दुदबोलि (रामनगर), संस्कारम, स्वाधीन प्रजा,
नवल (रामनगर), हिलांश (पटियाला), पर्वत प्रेरणा (हल्द्वानी), संकल्प, गद्यांजलि, ज्ञान सागर कक्षा 7, भारतीय कविता
बिम्ब और कौ सुआ - काथ कौ । समारिकाओं में कुछ नाम हैं - गंगोत्री, देवभूमि हमर पहाड़, उत्तराखंड क्लब, रोहिणी
व्यायामशाला, म्यर पहाड़, प्रेरणा (मैथिली), म्यर उत्तराखंड ग्रुप, बुरांश, अभिव्यक्ति, उत्तराखंड स्पंदन, श्रृंखला
(बारामासा), संघर्षों का राही और ट्रू मीडिया आदि । मैं इन सभी का पुनः दिल से धन्यवाद करना चाहता हूं क्योंकि
इन्हीं में संयोजित होकर मेरे मन की उथल - पुथल से उपजे शब्द मेरे उन पाठकों तक पहुंचे जिन्होंने कई बार मेरी कलम को
धार लगाई और मेरा मार्गदर्शन भी किया । मैं इन सभी शब्दों के संवाहकों का सदैव ऋणी रहूंगा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.09.2020
खरी खरी - 694 : गुटखा-धूम्रपान
गुटखा तम्बाकू धूम्रपान
लहू तेरा पी रहे सुनसान ।
खैनी गुटखा पान मसाला
चूना कत्था जर्दा वाला,
पुड़िया तम्बाकू मुंह उड़ेले
कब जागेगा तू इंसान ।
खुद को तो तू मार रहा
धुआं दूजे पर डाल रहा,
तेरे मुंह के धुमछल्लों से
सारा जग होता परेशान ।
अस्पताल बैंक रेल स्टेसन
घर दफ्तर आंगन बस स्टेसन,
गली मुहल्ला झड़क शौचालय
लाल किया तूने नादान ।
नुक्कड़ कोना खिड़की सीढ़ी
फैंके टुकड़े सिगरट बिड़ी,
कार्यालय का वाटर कूलर
बना दिया तूने थूकदान ।
नशा नहीं है ये तो जहर है
तुझ पै ढा रहा कैसा कहर है,
अभी वक्त है छोड़ नशे को
बन समाज का व्यक्ति सुजान ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
11.09.2020
बिरखांत - 337 : जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी
जनसंख्या नियंत्रण पर वार्ता बहुत जरूरी है और नीति निर्माण भी जरूरी है । लड़के की चाह आज भी कई जगह सर्वोपरि है ।
लड़कियाँ पैदा होने से पहले ही क्यों मार दी जाती हैं ? जन्मी हुई बेटियां हमें भार क्यों लगती हैं ? हम पुत्रियों की
तुलना में पुत्रों को अधिक मान्यता क्यों देते हैं ? हमें बेटा ऐसा क्या दे देगा जो बेटी नहीं दे सकती ? बेटे को
चावल और बेटी को भूसा समझने की सोच हमारे मन-मस्तिष्क में क्यों पनपी ? इस तरह के कई प्रश्नों का उत्तर हमें अपनी
दूषित -संकुचित मानसिकता एवं कथनी- करनी में बदलाव लाकर स्वत: ही मिल जाएगा |
‘लड़की ससुराल चली जायेगी, लड़का तो हमारे साथ ही रहेगा और सेवा करने वाली दुल्हन के साथ खूब दहेज़ भी लाएगा, जबकि लड़की
को पढ़ाने में, फिर उसके विवाह में खर्च होगा और मोटा दहेज़ भी देना पड़ेगा | इतना धन कहां से आएगा ? दहेज़ का
‘स्टैण्डर्ड’ भी बढ़ चुका है | इससे अच्छा है दो-चार हजार ‘सफाई’ के दे दो और लाखों बचाओ | फिर बेटा तो सेवा करेगा,
वंश चलाएगा, मुखाग्नि और पिंडदान देगा तथा श्राद्ध भी करेगा | लड़की किस काम की ?’ इस तरह की मानसीकता ने ही आज यह
सामाजिक समस्या खड़ी कर दी है | कसाई बने चिकित्सकों को दोष भलेही दें परन्तु वास्तविक दोषी तो माता-पिता या
दादा-दादी हैं जो दबे पांव कसाइयों के पास जाते हैं |
पुत्र लालसा ने जनसँख्या के सैलाब को विस्फोटक बना दिया है | बढ़ती जनसंख्या में विकास ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसे
लगने लगा है | शिक्षा के प्रसार से लोग इस बात को समझ रहे हैं कि लड़का- लड़की जो भी हो संतान दो ही काफी हैं | आज भी
हमारे देश में एक आस्ट्रेलिया की जनता के बराबर जनसख्या प्रतिवर्ष जुड़ती जा रही है | ग्रामीण भारत तथा शहर के पिछड़े
तबके में जनसँख्या वृद्धि अधिक है | हमें एक दोष जनसंख्या नीति अपनानी ही होगी जिसमें दो संतान के बाद ग्राम सभा से
लेकर संसद तक की सभी सुविधाएं वंचित होनी चाहिए | पड़ोसी देश चीन ने नीति बनाकर ही जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिया है
|
जनसँख्या नियंत्रण के आज कई तरीके हैं परन्तु अवैध शल्य चिकित्सा द्वारा भ्रूण हत्या में महिला को पीड़ा के साथ –साथ
बच्चेदानी के अंदरूनी पर्त के क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी रहती है | उस समय गर्भ से छुटकारा पाने की जल्दी में
ऐसी महिलाओं को वांच्छित पुनः गर्भधारण करने में रुकावट हो सकती है | क़ानून के अनुसार लिंग बताना तथा भ्रूण ह्त्या
करना अपराध है | कुछ ‘कसाइयों’ को इसके लिए दण्डित भी किया जा चुका है |
दुख की बात तो यह है की अशिक्षित एवं गरीबों के अलावा संपन्न लोग भी लड़के के लिए भटक रहे हैं | काश ! इन लोगों को
पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आकाश की ऊँचाइयों को छूने वाली अनगिनत महिलायें नजर आती तो शायद ये अपनी बेटियों के
साथ कभी अन्याय नहीं करते और दो बेटियों के आने के बाद किसी लाडले की प्रतीक्षा में परिवार नहीं बढ़ाते | रियो से
2016 में ओलम्पिक दो पदक लाने वाली सिंधु- साक्षी सबके सामने हैं | 18वें एशियाड में भी लड़कियों ने कई पदक जीते
।
अब समय आ गया है कि हम देश की जनसंख्या नियंत्रण के बारे में गंभीरता से सोचें । "चार बेटे पैदा करो । एक इसको दो,
एक उसको दो, एक को साधु बनाओ और एक को सेना में भेजो" जैसे बयानों पर लगाम लगे और एक जनसंख्या राष्ट्रीय नीति बने जो
सभी देशवासियों पर समरूपता से लागू हो । देश को जनसंख्या विस्फोट से बचाओ !
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.09.2020
खरी खरी - 692 : ' मिसिंग स्पार्क ' सिंड्रोम
कुछ दिन पहले मैंने " मिसिंग टाइल सिंड्रोम " की चर्चा की थीं । आज पति - पत्नी संबंधित एक नए विषय को छूने का
प्रयास है । जब किसी भी उम्र में पति - पत्नी के संबंध में सिथिलता या उदासीनता आने लगती है या एक दूसरे की परवाह या
सम्मान कम होने लगता है, आपसी हंसी - मजाक कम होने लगती है, ' आइ लव यू ' कहना तो दूर, नाश्ता - लंच - डिनर भी अकेले
होने लगता है, छोटी छोटी बातों में एक दूसरे की तीक्ष्ण आलोचना होने लगती है, झूठ बोलने के बेवजह आरोप लगने लगते
हैं, सोने का समय भी अलग अलग होने लगता है, एक दूसरे के साथ बिताया जाने वाला वक्त भी मोबाइल में बीतने लगता है,
यहां तक कि रात्रि शयन भी अलग अलग कमरे में होने लगता है, तो समझिए दाम्पत्य जीवन को ' मिसिंग स्पार्क ' नाम की
बीमारी ने घेर लिया है । ये सभी उक्त लक्षण ' मिसिंग स्पार्क ' बीमारी के हैं जिसे " मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम " भी
कहते हैं । ऐसे में जीवन में निराशा या सदमा या डिप्रेशन भी दस्तक से सकता है ।
इस बीमारी का इलाज किसी डाक्टर या वैद्य या तांत्रिक या ज्योतिषि या किसी जगरिये - डंगरिये के पास नहीं है बल्कि इस
रोग का उपचार स्वयं पति - पत्नी के पास है । रोग के जो भी ऊपर लक्षण बताए आप उनको अपने रिलेशन या संबंध में न आने
दें । इस संबंध में इगो ( अकड़ ) रूपी जंग नहीं लगने दें । यदि यह जंग लग गया तो छूटेगा नहीं । कुछ छोटी छोटी बातें
हैं यदि अमल करी जाएं तो हम ' मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम ' से बच सकते हैं । भले ही इसमें दोनों का रोल है परन्तु मैं
पति परमेश्वरों को कुछ सलाह देना चाहूंगा । आप जमी हुई बर्फ को पिघलाने में पहल करें क्योंकि दिन में तीन बार आपको
उनके द्वारा भोजन परोसा जा रहा है । अपने मस्तिष्क के रिमोट को कूल में लाइए और किचन में जाने का शुभ अवसर ढूंढिए ।
हिम्मत के साथ उनके कंधे में हाथ रखते हुए प्यार से पूछिए, " क्या बन रहा जी या क्या हो रहा है जी ..." फिर अपने
हिसाब से दृश्य को आगे बढ़ाते जाइए । बताने की जरूरत नहीं है । पहल तो बेचारे पति परमेश्वर को ही करनी पड़ेगी । आपकी
पहल से निनानाबे फीसदी बर्फ पिघल जाएगी ।
मेरे एक मित्र ने मेरी राय पर ऐसा ही किया । पत्नी गुस्से में थी । वह अवसर को भाप नहीं पाया । जैसे ही उसने किचन
में जाकर पत्नी के कंधे में हाथ रखा, पत्नी ने उसे धक्का मारते हुए कहा "छोड़ो उथां जौ, मिकैं नि चैन ह पोताड़ -
पातड़ " ( हटो उधर जाओ, मुझे नहीं चाहिए यह झूठा दिखावा ) । मित्र ने पुनः प्रयास किया और उसे सफलता मिली । एक -
दूसरे की बात सुनकर, मोबाइल से दूरी रखकर और गृहकार्य में हाथ बंटाते कर हम स्पार्क को मिस होने से बचा सकते हैं ।
स्पार्क को यहां चिंगारी या करंट न समझें इसे एक छिपी हुई मिठास समझें । घर - गृहस्थी तो ऐसे ही चलती है और चलते आ
रही है । जहां बर्फ नहीं पिघलती, जहां छिपी हुई मिठास लुप्त होने लगती है वहां जीवन बहुत दुखद है, कूल की जगह शूल है
। इसलिए जितनी जल्दी हो सके बर्फ पिघलाने में ही समझदारी है । अब अधिक सोचने के बजाय किचन की ओर बढ़ने में ही
परमानंद है । बढ़िये ...
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.09.2020
खरी खरी - 691 :फार्मूलों की होलसेल मार्केट
फार्मूला ले लो फार्मूला !!
समाधान निकलने का फार्मूला
समाधान न निकलने का फार्मूला
दुकान बंद का फार्मूला
दुकान खुली का फार्मूला
अड़ंगे लगाने का फार्मूला
भिड़ने - भिड़ाने का फार्मूला
दांवपेंच लगाने का फार्मूला
वोट बैंक संभालने का फार्मूला
सभा -परिषद का फार्मूला
अखाड़ा -बोर्ड का फार्मूला
एक से बढ़ कर एक फार्मूला
इन सब में दब गया
इंद्रधनुषी राग का फार्मूला
सामाजिक सौहार्द का फार्मूला
जीओ और जीने दो का फार्मूला
प्रेम-प्यार भाईचारे का फार्मूला
रामराज्य के संकल्प का फार्मूला
शबरी - निषाद का फार्मूला
मिटे फसाद का फार्मूला
फार्मूलों के इस बाजार में
खो गया हे ' घट घट वासी राम' !
जन की आकांक्षा का फार्मूला ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
07.09.2020F
खरी खरी - 690 : मनकि बात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
बंद कानों में नि पुजि धात ।
महंगाई बढ़िगे, नौकरी न्हैगे
बाड़ में गबार फसल डुबिगे,
किसान रूंरौ लगै ख्वार हात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
कतु जाग दे नौकरीक टेस्ट
न रात सित न दिन खाय,
इंतजारी में साल न्हैगो
रिजल्ट आजि लै नि आय,
भविष्यक हमर बनिगो भात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
टीवी चैनलों में रिया कै नाम
चौबीस घंट बस एक्कै काम,
अहा रे मीडिया के हैगो तिकैं
ढाई महैंण हैगो कैल मुनौ तिकैं,
है गछै बेशरम पापड़क पात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
देश में कोरोना बढ़नै जांरौ,
जीडीपी दिनोदिन घटनै जांरौ,
दुनिय में सबूं है ज्यादा केस हूंरी
भुल हाम मास्क भुल देह दूरी,
कोरोना कर्मवीरोंक नि दी साथ
कैहूं कौनू मनकि बात ?
केस हैगीं चालिस लाख पार
चौबिस घंट में छियासि हजार,
नियम कानून किनार हैगीं
सबै आपण मनाक हैगीं,
बिमारी नि देखनि धरम जात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
मन कि बात सबै कूंरीं
झाणि के कूंरीं कै हुणि कूंरीं,
स्यापक घौ बिच्छीक मंतर
कां भैरीं उल्लू कां जै खंतर,
क्याप जै सोचौ क्याप है बात
कैहूं कौनू मनकि बात ?
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.09.2020
मीठी मीठी - 508 : शिक्षक दिवस की बधाई
आज 5 सितंबर, पूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिन देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता
है । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि । उनके बारे में पुस्तक "लगुल" से एक लघु लेख यहां उधृत है ।
कलम- कमेट से पाटी पर आरंभिक अक्षरबोध कराने वाले शिक्षकों से लेकर आज तक पढ़ाने वाले, ज्ञान देने वाले, हमारा मार्ग
दर्शन करने वाले तथा हमारे दुर्गुणों को बताने वाले सभी शिक्षकों को प्रणाम और शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
।
"शिक्षा का रामबाण
है शिक्षक के हाथ,
भावी पीढ़ी का निर्माण
है शिक्षक के हाथ ।"
इस वर्ष विगत 6 महीने से देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है । 39 लाख से अधिक संक्रमित और 68 हजार से अधिक रोग के
ग्रास बन गए हैं जिनमें सवा तीन सौ से अधिक डाक्टर भी हैं । हमें अपना बचाव करना है और नियमों को मानना है । देश के
शिक्षक भी इस विपदा में कर्मवीर बने हैं । कुछ गैरसरकारी शिक्षकों को वेतन कटौती भुगतनी पड़ रही है । शिक्षा के
तीनों कोण विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक सभी इस समस्या से बाधित हुए हैं । सरकारों को इस समस्या से लचीले रुख से
निबटने का प्रयास करना होगा । राष्ट्र निर्माता शिक्षक के मनोबल को गिरने से रोकना होगा ।
पूरन चंद्र काण्डपाल
05 सितंबर 2020
खरी खरी -689 : ज्यौंन द्याप्तां उंज्या लै चौ !
( पितृपक्ष में ज्यौंन द्याप्तां कैं समर्पित )
हाम ढुंगाक, लुवाक
पितवाक, सुन-चांदीक
द्याप्तां पर
फूल बरसूं रयूं
उनुकैं दूदल नउं रयूं,
घराक ज्यौंन द्याप्तां हूं
बलाण नि राय,
उनुकैं तरसूं रयूं,
उनु उज्यां चाण नि राय
पुठ फरकूं रयूं,
मंदिर में घंटी बजै बेर
फल-फूल-दूद चढूं रयूं ।
द्वि आंखर उनुहैँ लै
जरूर हंसि बेर बलौ,
उं लै जाल धिति,
हाम बुजरगों हैं
किलै नि बलां राय
मैं कैं के खबर न्हैति ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.09.2020
बिरखांत – 336 : शराद- श्रद्धा- पितृपक्ष
हम अक्सर सुनते हैं, “ अरे यार आजकल शराद लगे हैं, कामधंधा ठंडा चल रहा है | शरादों में लोग शुभ काम नहीं करते,”
आदि-आदि | उधर एक वर्ग कहता है, “आजकल पितर स्वर्ग से जमीन पर आए हैं और सोलह दिन तक यहां विचरण करेंगे तथा खा-पीकर
पितृ-विसर्जन के दिन वापस चले जायेंगे |” यह खाना -पीना शराद के माध्यम से होता है | शराद में एक व्यक्ति विशेष के
कथनानुसार सभी खाद्य-अखाद्य वस्तुएं रखी जाएंगी | पिंड भी रखे जाएंगे | शराद समाप्ति पर वहां रखी हुई सभी वस्तुएं,
धन-द्रव्य आदि उस व्यक्ति की पोटली में चला जाएगा और पिंड- पत्तल वहीं पड़े रहेंगे | भोजन -दक्षिणा प्राप्त कर उस
व्यक्ति का प्रस्थान यह कहते हुए होता है –“ये पिंड- पत्तल को किसी जल स्रोत में डाल देना |” ये पिंड वह व्यक्ति
क्यों नहीं ले गया, यह आज तक किसी ने नहीं पूछा | वहां पर बैठे-बैठे यह मान लिया गया कि पिंड पितरों ने खा लिए हैं |
हमारे पितर कभी पिंड तो नहीं खाते थे । वे तो रूखी - सूखी साग - रोटी खाते थे फिर शराद में हम उनके लिए पिंड क्यों
बटते हैं ?
एक बार काशी में कुछ पण्डे लोगों को तर्पण के नाम पर ठग रहे थे | गुरुनानक देव इस पाखण्ड को देख कर अपनी अंजुली से
गंगा का पानी किनारे की तरफ उलीचने लगे | पण्डे के पूछने पर उन्होंने बताया “मैं पंजाब में अपने खेत की सिचाई कर रहा
हूं |” जब पण्डे ने पूछा कि यह वहां इस तरह कैसे पहुंचेगा तो नानक जी ने उत्तर दिया, “जब तुम्हारे तर्पण कराने से यह
आकाश में न जाने स्वर्ग कहां है वहां पहुँच जाता है तो मेरा खेत तो इस धरती पर ही है |” पण्डे का मुंह बंद हो गया
|
पितरों को हम भगवान मानते हैं | जब भगवान पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं तो पितृपक्ष अशुभ क्यों ? वैदिक काल से
कर्मकांड की परम्परा चल रही है तब एक विशेष वर्ग के सिवाय किसी को मुंह खोलने अथवा शंका जताने की इजाजत ही नहीं थी |
शराद या किसी भी कर्मकांड में उस व्यक्ति ने क्या कहा यह आजतक किसी के समझ में नहीं आया | शराद शब्द ‘श्रधा’ से उपजा
है | पितरों को श्रधांजलि जरूर दें | उनकी स्मृति हमारे दिल में बसी है | उनका रक्त हमारे तन में संचार कर रहा है |
उनकी जयन्ती मनाएं, पुण्य तिथि मनाएं तथा सामर्थानुसार दान भी दें | पितृ पक्ष में हम सभी पितरों को विनम्र
श्रद्धांजलि देते हैं ।
दान किसी सुपात्र को दें | जो भोजन से तृप्त है फिर उसे ही भोजन क्यों ? हम अपने पितरों की स्मृति में गरीब बच्चों
को पठन सामग्री या वस्त्र दे सकते हैं, अपने गांव में स्कूल के बच्चों को पारितोषक दे सकते हैं, उनके स्कूल में इस
अवसर पर एक पेयजल का ड्रम या अलमारी या चटाई दे सकते हैं, पुस्तकालय में पुस्तकें भेंट कर सकते हैं, पितरों के नाम
पर स्कूल में एक छोटी सी पुरस्कार योजना चला सकते हैं, अनाथालय या किसी जनहित में काम करने वाली संस्था को भी हम दान
कर सकते हैं | ऐसा करने से पितरों का स्मरण भी हो जाएगा और पिंड भी नहीं फैंकने पड़ेंगे ।
हमने अपने हिसाब से परम्पराएं बदली हैं | पूरी रात होने वाली शादी अब दिन में मात्र आधे घंटे में हो रही है |
देवभूमि में शराब की परम्परा हमने ही बनाई है | शराब देकर ही वहां नल में पानी, तार में बिजली आती है और पंडित-
पुजारी, बाबू, चपरासी, अध्यापक, जगरिये, डंगरिये, रस्यारों ने शराब को अपना हक़ बना लिया है | (अपवाद को नमस्कार ।)
दिखावा -आडम्बर- अंधविश्वास ग्रसित परंपराओं को एक न एक दिन हमें बदलना ही पड़ेगा | श्रधा और अंधविश्वास के बीच में
एक पतली रेखा है | हमें देखना है कि हम कहां खड़े है ? यदि हम नहीं बदले तो फिर इक्कीसवीं सदी हमारी नहीं हो सकती
भलेही हमारे शीर्ष नेता कितना ही कह लें | आज पूरा देश कोरोना संक्रमण के दौर से गुजर रहा है । अपना बचाव स्वयं करने
हेतु जन - जागृति बहुत जरूरी । इसे हल्के में नहीं लें । एक समाचार के अनुसार अब तक 326 डाक्टर एक कर्मवीर की तरह
कोरोना रोगियों का उपचार करते हुए इस रोग के ग्रास बन गए हैं । उन्हें भी विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.09.2020
खरी खरी - 688 : पुरस्कार के यथार्थ सुपात्र
आज से 10 साल पहले वर्ष 2009 में ईमानदारी के पहरुओं, राष्ट्रहित के चिंतकों तथा सार्थक दृष्टिकोण के समर्थकों को
समर्पित मेरी पुस्तक "यथार्थ का आईना " जिसमें मैंने राष्ट्र हित के 101 मुद्दों की लघु चर्चा उनके समाधान के साथ की
थी। इस पुस्तक में लघु लेखों के रूप में मेरे द्वारा उठाए गए वे मुद्दे हैं जो अगस्त 1989 से 2004 की अवधि में
विभिन्न समाचार पत्रों में छपे थे और प्रासंगिक होने के कारण इन्हें मैंने 2009 में पुस्तक का आकार दिया ।
दो दशक बाद भी ये लेख प्रासंगिक हैं । इन मुद्दों में फरवरी 2003 में छपा एक मुद्दा है "विवादों के घेरे में
पुरस्कार "। इस लेख का एक अनुच्छेद यहां उद्धृत है - "हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार
अक्सर विवाद के घेरों में फंस जाते हैं । चाहे ये केंद्र द्वारा दिए दिए जाते हों या राज्यों द्वारा । यह तो
पुरस्कार देने वाले ही जानते होंगे कि पुरस्कार से नवाजने का मापदंड क्या है ? कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र
में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, जुगाड़बाजी, चाटुकारिता आदि कुछ प्रचलित मापदंड देखे गए हैं
।"
आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार
हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार
को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद
दिया गया ।
हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव
में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो
यह उस पुरस्कार का अपमान तो है ही, उसकी चयन समिति भी प्रश्नों के घेरे में रहती है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य
व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के
सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का कंटक सदैव सालते रहता है । पुरस्कार यदि यथार्थ व्यक्ति को नहीं
मिलेगा तो यह पुरस्कार का उसी तरह अनादर है जैसे ' आदर के चने भले बेआदर की दाल बुरी ।' अतः किसी भी पुरस्कार का
अनादर न हो और पुरस्कार सुपात्र को ही दिया जाय ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.09.2020
मीठी मीठी -505 : फिरेंगे ट्रांसजेंडर्स (किन्नर) के दिन
शादी -ब्याह, जन्मदिन, नामकरण आदि शुभ अवसरों पर एक मोटी रकम ऐंठने वाले और नहीं देने पर गाली-गलौज करके नग्न होने
की धमकी देने वाले किन्नरों के दिन अब धीरे -धीरे बदलने की उम्मीद है । संविधान द्वारा तीसरे लिंग के रूप में
स्वीकारे जा चुके परंतु समाज और परिवार का बहिष्कार झेल रहे किन्नरों को अकादमिक सत्र 2017-18 से इंदिरा गांधी
राष्ट्रीय मुक्त विश्व- विद्यालय (इग्नू) ने स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों में मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने की
अनुमति दे रखी है । अब किन्नर फीस माफी के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और कर भी रहे हैं । विगत 5 वर्षों
में 814 ट्रांसजेंडर ने यहां से शिक्षा अर्जित की है ।
भलेही आजतक या आये दिन किन्नरों ने समाज को आतंकित किया हो परन्तु इनमें कुछ खुद्दार भी हैं जो भीख नहीं मांगते और
समाज में एक सम्मानजनक स्थिति में जीये या जी रहे हैं । आतंकित इसलिए कि ये जो इनाम-बख्शीस मिले उसे स्वीकारने के
बजाय हजारों रुपए मांगते हैं । नहीं देने पर उधम मचाते हैं । कुछ वर्ष पहले सबनम मौसी के नाम से विख्यात किन्नर 1998
में मध्यप्रदेश से पहली किन्नर विधायक चुनी गईं । कटनी म प्र की किन्नर कमला जान 2000 में महापौर बनी । किन्नर आशा
देवी गोरखपुर से मेयर बनीं और मानवी बंधोपाध्याय पश्चिम बंगाल के नादिया, कृष्णनगर महिला कॉलेज की प्रधानाचार्या बनी
। इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल में जोयता मंडल पहली ट्रांसजेंडर जज बनी ।
कार्य कठिन है परन्तु किन्नरों को यदाकदा सही राह दिखाई जा सकती है, पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है,और उन्हें
कार्य दिया जा सकता है। विकसित देशों में भारत की तरह किन्नर भीख नहीं मांगते या बस-ट्रेन अथवा सड़क के चौराहों पर
लोगों को परेशान नहीं करते बल्कि उन्हें काम दिया जाता है और लोग उनके प्रति सहिष्णुता और सदभावना दिखाते हैं । निजी
क्षेत्र में भी इन्हें कार्य दिए जाने की आवश्यकता है । वर्ष 2011 की सेंसस के अनुसार देश में 4.9 लाख ट्रांसजेंडर
थे । जहां तक इनाम - बख्शीस का प्रश्न है इन्हें जो भी राशि मिले उसे खुशी से स्वीकारना चाहिए । किसी को आतंकित कर
लिया हुआ धन इनाम या बख्शीश नहीं कहालता ।।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.08.2020
खरी खरी - 687 : रिया रिया रिया !
रिया रिया रिया !
अठत्तर दिन से
ये क्या हो रिया ?
ये कैसी मीडिया
जो रिया के ही
गीत गा रिया ?
ध्यान क्यों नहीं
रिया से हट रिया ?
देश में बाड़ आ रिया
कोरोना बड़ रिया
रुजगार नहीं मिल रिया
महंगाई बड़ रिया
छात्र परेशान हो रिया
किसान रो रिया
जीडीपी घट रिया
इन पर कोई
नहीं बोल रिया
तेरे को किसने मुन दिया
जो तू हर बखत
रिया रिया बोल रिया ?
अब बहुत हो लिया
बंद कर रिया रिया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
30.08 2020
मीठी मीठी - 504 : कौ सुआ, काथ कौ
कुमाउनी कि अस्सी सालों कि कथा जात्रा कैं एकबटै बेर मंपापुर रामनगर (उत्तराखंड ) में रौणी हिंदी व कुमाउनीक वरिष्ठ
साहित्यकार और " दुदबोलि " क संपादक मथुरादात्त मठपाल ज्यू द्वारा संपादित किताब " कौ सुआ, काथ कौ " बेई डाक द्वारा
देहरादून बै मंगै । य किताब में 100 कुमाउनी लेखकोंक 100 कहानि छीं । कहानियोंक क्रम वरिष्ठता बै कनिष्ठता कि ओर छ
अर्थात वरिष्ठतम लेखक (जन्म 1901 ) कि कहानि सबूं है पैली छ और कनिष्ठतम लेखक (जन्म 1989 ) कि कहानि आंखिर में छ ।
55उं क्रम में म्येरि लेखी कहानि ' पंचोंक फैसाल' कैं य संग्रह में जागि मिलि रै जो म्यर कुमाउनी कहानि संग्रह ' भल
करा रौ च्यला त्वील ' बै यां उद्धृत छ । मठपाल ज्यू रचित कहानि ' लिकरू पंडितौ बिरखांत ' 44 उं क्रम में छ ।
किताब ऐगे, आब माठ -माठु कै पढ़ी जालि । य संग्रह में कएक यास लेखक छीं जनुकैं हाम नि जाणन । कुमाउनी साहित्य
प्रेमियोंल य किताब जरूर पढ़ण चैंछ। 454 पृष्ठोंकि य किताबक मूल्य ₹ 445/- छ परन्तु लेखक हुणक वज़ैल प्रकाशकल थ्वाड़
छूट लै दी । प्रकाशक - समय साक्ष्य, देहरादून, उत्तराखंड । संपर्क - 0135 2658894 । आदरणीय मठपाल ज्यू कैं य अद्भुत
साहित्य श्रम करणक लिजी भौत भौत बधै। ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.08.2020
बिरखांत- 335 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त
कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों में से मात्र छै लोग एकत्र हुए |
(जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद
पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और
मर जाओ | यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया
झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के
मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |” सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम
सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |
स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक
व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा
से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है |
ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे,
बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये
अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से,
अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने,
भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े
खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं
|” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का
कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का
निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो
सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो
सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई,
वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब
जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |
इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा
गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में
स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं
तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा
निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ
देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |
टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |” चनरदा ने
उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से
ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं |
सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में
महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को
भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |
कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह
वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन
मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों,
शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने
खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”
समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को
पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी
इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो,
निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर
पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले,
देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” ( इस बार गली -
मुहल्ले और गांव में कोरोना संक्रमण के कारण 15 अगस्त केवल प्रतीक के तौर पर या संदेश भेज कर ही मनाया गया ।
)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2020
खरी खरी - 686 : रैपिड प्रोमोसन (द्रुत प्रोन्नति)
आजकल सोसल मीडिया और कई मंचों पर कुछ लोग चिकनी -चुपड़ी, रंग-पुताई से भरपूर, विशेषण युक्त शब्दावली से बहुत ही
द्रुत प्रोन्नति (रैपिड प्रोमोसन ) दे रहे हैं । बानगी देखिए -
अभी एक भी गीत नहीं गाया -
सुर सम्राट, लोक गायक !
अभी संगीत का पता भी नहीं-
संगीतज्ञ, संगीत सम्राट !
अभी कविता का ककहरा नहीं सीखा-
जन कवि, कवि शिरोमणि !
अभी लेखन ने पुस्तक रूप नहीं धरा-
विख्यात लेखक, प्रसिद्ध साहित्यकार !
रंगमंच में पहला कदम-
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी !
मंच संचालन की वर्णमाला ज्ञात नहीं-
कुशल एवं श्रेष्ठ मंच संचालक !
कला औऱ अदाकारी से अनभिज्ञ-
सुप्रसिद्ध अदाकार, उत्कृष्ट कलाकार !
समाज की कोई सेवा नहीं-
जाने-माने समाज सेवी !
राजनीति में मुहल्ले में भी नहीं-
लोकप्रिय राजनेता, जन-नेता !
भाषण में माफियागिरी-
विद्वान वक्ता !
मित्रो विशेषण जरूर लगाइए परन्तु ईमानदारी से खपने लायक हों, पचने लायक हों । इतनी अतिशयोक्ति भी मत करिए कि पीतल को
सोना कह दो । बच्चे के चेहरे पर दाड़ी मत उगाइये, भद्दी लगेगी । आत्मप्रशंसा और स्वमुग्धा से हम आगे बढ़ने के बजाय
पीछे रपट सकते हैं । अतः विशेषण देख-परख कर ही चस्पाइये ताकि पढ़ने, सुनने और समझने वालों को ये शब्द शिष्ट, सहज और
सत्य लगें । अंत में यही कहूंगा -
'हम तो बदनाम हो गए
खरी खरी सुनाने में,
कह दो हम से कुछ भी बेझिझक
कुछ नहीं धरा मसमसाने में ।'
( कुछ छूट गया है तो जोड़ने का सुझाव शिरोधार्य है । आजकल कोरोना के कारण जमीन में होने वाले आयोजन वेबीनार में हो
रहे हैं जो अच्छी सामाजिकता का परिचायक है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.08.2020
खरी खरी - 685 : यमुना का संताप
स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।
व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।
आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2020
खरी खरी - 684 : रोटी और भगवान
अक्सर हम सब देखते हैं कि जब भी कुछ घरों में रोटी और भगवान की फ़ोटो/तस्वीर फालतू हो जाती है तो उसको वे चौराहे पर
या पार्क के कोने पर या किसी पेड़ के नीचे फेंक देते हैं । उसके बाद कुत्ते या आवारा पशु उस स्थान पर आते हैं । इन
पशुओं का मन हुआ तो रोटी खाते हैं अन्यथा वहीं इर्द-गिर्द मल-मूत्र करके चल पड़ते हैं ।
रोटी की बात करें तो जिसके लिए पूरी दुनिया दौड़ रही है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जिसके लिए हम दर-दर की
ठोकरें खाते हैं उसे लोग इस तरह क्यों फैंक देते हैं ? पहले तो रोटी उतनी ही बने जितनी चाहिए । यदि बच भी जाये तो
उसका सदुपयोग अगले भोजन में कर लें । हम सुबह रोटी लेकर कार्यस्थल पर खाते रहे हैं तब तो यह बासी नहीं होती । फिर भी
रोटी फैंकने के बजाय किसी गौशाला तक पहुंचा दी जाय ।
भगवान तो बेचारे अनाथ हैं । टूट गए, पुराने हो गए या खंडित हो गए उनको तो लावारिश होना ही है । पता नहीं लोग जिस
फोटो-मूर्ती पर रात-दिन नाक रगड़ते हैं, उसकी पूजा करते हैं उसे इस तरह गंदगी में क्यों छोड़ देते हैं । यह हमारे देश
की कैसी धार्मिक शिक्षा है ? किसी ने तो उन्हें ऐसा करने को कहा है । किसी भी मूर्ति-फोटो को इस तरह आवारा पशुओं के
बीच उसका निरादर करते हुए छोड़ने के बजाय उसे भू-विसर्जन कर देना चाहिए अर्थात किसी पेड़ के नीचे या साफ जगह पर उसे
तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिए । जल-विसर्जन में भी वह मिट्टी में ही मिलेगी । अंधविश्वास - जड़ित प्रथा-परम्परा की
जंजीरों से हमें अपने को मुक्त करना है तभी हम अपनी अगली पीढ़ी के लिए जलस्रोतों और नदियों को बचा पाएंगे तथा श्रद्धा
का भी सम्मान कर सकेंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.08.2020
खरी खरी - 683 : गणेश जी की आरती के शब्द
आज पुनः गणेश जी की आरती के शब्दों की बात करते हैं । हमारे समाज में चिरकाल से गणेश जी की एक आरती प्रचलन में है,
"जय गणेश जय गणेश श्रीगणेश देवा..."। इस आरती की इन पंक्तियों में बदलाव होना चाहिए -
" अंधन को आंख देत, कोडिन को काया;
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।"
आरती में तीन शब्द अप्रिय हैं, कलुषित हैं और अप्रासंगिक हैं ।
मेरे विचार से आरती इस प्रकार से हो -
" सूरन को आंख देत, रोगिन को काया;
नारी को मातृत्व देत, सबजन को छाया ।"
अंधे व्यक्ति को सूर कहते हैं, सूर कहना उचित है । कोड़ की बात न हो, कोड़ रोग का भी उपचार होता है । प्रत्येक रोग
से सभी को दूर रखने की बात हो । बांझ शब्द किसी भी विवाहिता के लिए कटु शब्द है । यहां मातृत्व की बात करें । पुत्र
देत न कहें । पुत्र देत कहने से हम अपनी पुत्रियों का अपमान करते हैं । माया तो मांगनी ही नहीं चाहिए । कर्म करें,
उच्च चरित्र रखें, जीओ और जीने दो का सिद्धांत अपनाएं और स्वस्थ जीवन जीएं । जिस ' छाया ' शब्द का मैंने प्रयोग किया
है उसका अर्थ है भगवान की छत्र छाया सब पर बनी रहे । मुझे उम्मीद है सभी मित्र इस बदलाव पर अवश्य मंथन करेंगे और इन
तीन शब्दों ( अंधन, कोडिन और बांझ ) से आहत होने वाले व्यक्तियों को इन अप्रिय शब्दों से बचाएंगे तथा इनकी जगह '
सूरन ' 'रोगिन ' और 'मातृत्व ' शब्द प्रयोग करेंगे । इस आशय में एक ऑडियो भी पहले प्रेषित किया है ।
आज 22 अगस्त, गणेश उत्सव की शुभकामना । त्यौहार घर में ही मनाएं । देश में कोरोना से करीब 29 लाख से अधिक संक्रमित
हैं और 55 हजार इस संक्रमण के ग्रास बन गए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर चलें, केवल दिखाने के लिए
मास्क लटकाकर न चलें । हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी और भीड़ से बचाव; ये चार बातें ही तो याद
रखनी हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
22.08.2020
खरी खरी-682 : फेसबुक- व्हाट्सेप के नाम
फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा,
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |
कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’
व्यर्थ तारीफ़ शब्द लय -लय,
जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर
वह देवी- देवता भेजते देखा |
कट-पेस्ट के लम्बे थान देखे
घूम- फिर कर वही ज्ञान देखे
छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता
लम्बा ज्ञान बरसते देखा |
मस्ती देखी चैटिंग देखी
अन्धविश्वास के सैटिंग देखी
नाम बदल कर कई ग्रुप में
झूठा प्रोफाइल बहते देखा |
शराब गुटखा नशा धूम्रपान
मध्यम गति से लेते जान
हमने पार्क में बाल -बाला को
व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा |
राजनीति को ढलते देखा
झूठनीति को फलते देखा
राजनीति कोई कहीं कर रहा
यहां कईयों को लड़ते देखा |
जिसको अपने मोबाइल में
जब भार्या ने हंसते देखा
क्रोध यों मडराया तिय पर
शब्द शोला बरसते देखा |
प्यार की आह भी भरते देखे
व्यंग्य बाण भी चलते देखे,
दूसरों की लेख -कविता पर
नाम अपना चस्पाते देखा |
चुटकुलों की बौछार भी देखी
बदलती बयार भी देखी,
पति-पत्नी एक दूजे के पूरक
पति को हरदम दबते देखा |
कभी किसी को जुड़ते देखा
कभी किसी को कुड़ते देखा
कभी तंज- भिड़ंत भी देखी
व्यर्थ बहस उकसाते देखा |
रात रात भर जगते देखा
घंटों वक्त गंवाते देखा
स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को
मोबाइल से होते देखा |
चलते-चलते पढ़ते देखा
सैल्फी खीचते गिरते देखा
अश्लीलता का खुलकर तांडव
बदनाम मोबाइल होते देखा |
ऊंट –गधे के सुर में सुर
रखते जाते खुर में खुर
नहीं थी सूरत नहीं था सुर
झूठी प्रशंसा करते देखा |
कुछ शब्दों की धार भी देखी
शब्द पिरोती हार भी देखी
मान-मर्यादा के पथिकों को
राह गरिमा की चलते देखा |
कोरोना संक्रमण आते देखा
कई लोगों को मरते देखा,
ढीठ नहीं रखे कभी देह दूरी
बिना मास्क के घूमते देखा ।
क्या वे उस पथ चलते होंगे ?
जिस पथ चल- चल कहते होंगे !
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी- करनी में अंतर देखा |
फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.08.2020
बिरखांत- 334 : ग्वेल/ गोरिया /गोलु ज्यु, एक न्यायप्रिय राजा
उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नाम से जिस देव की पूजा होती है आज की बिरखांत उन लोगों को
समर्पित है जो इस देवता में श्रद्धा रखते हैं | भगवान् तो निराकार है, उसे न किसी ने देखा है और न कोई उससे मिला है
| फिर भी जब हम व्याकुल होते हैं तो उसे याद करते हैं | कुछ लोग मनुष्य रूप में आकर अपने कर्म से इतने लोकप्रिय हो
जाते हैं कि लोग उन्हें देव तुल्य मानते हैं | ऐसे ही एक देवता गोलु भी हैं जिनके उत्तराखंड में कई मंदिर हैं |
जगरियों (दास ) के मुख से सुनी गाथा और कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार गोलु देवता जो उस क्षेत्र के रक्षक माने जाते
हैं, इसकी काव्य गाथा मैंने अपनी पुस्तक “उकाव-होराव” (2008) में लिखी है जिसकी कहानी कुछ इस तरह है –
उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व 2500 से 700 ई. तक लगभग 3200 वर्ष रहा | इस शासन में सूर्यवंशी- चक्रवर्ती
राजा हुए जिनका विस्तृत राज्य था | गोलु ज्यु भी कत्यूरी वंश के राजा थे | उनके परदादा तिलराई, दादा हालराई और पिता
झालराई थे | गढ़ी चम्पावती -धूमाकोट मंडल इस क्षेत्र का केंद्र था | झालराई के सात विवाह करने पर भी संतान नहीं हुई |
आठवीं शादी कालिंका से हुई जिसे पंचनाम देवों की बहन बताया जाता है | कालिंका के गर्भ में गोलु के आते ही सातों सौत
ईर्ष्या करने लगी | उन्होंने प्रसव होते ही एक संदूक में गोलु को बहा दिया और प्रसव में ‘सिल- बट्टा’ पैदा हुआ बता
दिया’ | संदूक गोरिया घाट पर एक धेवर ने बाहर निकाल कर बालक को बचाया और नाम रखा गोरिया |
जब बालक बड़ा हुआ तो एक दिन झालराई –कालिंका ने गोलु के सपने में आकर पूरी कहानी के साथ बताया कि वे उनके बेटे हैं |
कहानी सुनते ही गोलु एक चमत्कारिक काठ के घोड़े में बैठ कर राणीघाट पहुंचे जहां सात सौत नहाने आई थी | उन्होंने सौतों
को पानी में जाने से रोकते हुए कहा, “पहले मेरा घोड़ा पानी पीएगा |” सौतों ने कहा, “काठ का घोड़ा पानी कैसे पीएगा ?”
जबाब, “वैसे ही पीएगा जैसे कालिंका ने ‘सिल-बट्टे’ को जन्म दिया था |” सौतों को अपनी करतूत याद आ गयी | गोलु ज्यु
सौतों को राजा के पास ले गए और पूरी कहानी बताई तो कालिंका के स्तनों से दूध की धार बहने लगी | तब गोलु ज्यु का नाम
दूदाधारी पड़ गया | राजा ने सौतों को मौत की सजा सुनाई जिसे गोलु ज्यु ने ‘देश निकाले’ में बदलवा दिया |
जब गोलु ज्यु राजा बने तो वे प्रजा के दुःख दूर करने में लग गए | उन्होंने भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर
की | वे जन हित के लिए सफ़ेद घोड़े में बैठ कर जनता के बीच जाते और सब को न्याय दिलाते | वे एक प्रजापालक और न्यायविद
के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए जिस कारण लोग उनकी पूजा करने लगे | वे प्रजा के भलाई के लिए शिविर लगाते थे | जिला
नैनीताल के घोड़ाखाल नामक स्थान पर वे एक दिन घोड़े सहित जल में विलीन हो गए |
गोलु ज्यु ने जहां –जहां भी न्याय शिविर लगाए वहाँ आज भी गोलु देवता के मंदिर हैं जिनमें आज भी लोग अन्याय के
विरुद्ध फ़रियाद करते हैं | उदाहरण के लिए अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कई जगह उनके
मंदिर हैं जहां कई फरियादी जाते हैं | इनकी फ़रियाद से बेईमान या अन्यायी पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है जिससे वह
सुधरने का प्रयास करता है |
ग्रामीण आँचल में स्थानीय देवों के ही बहुत थान-मंदिर हैं जिनकी पूजा में जगरिये -डंगरिये अंधविश्वास का जमकर तड़का (
जिसमें पशु बलि भी है ) लगा कर सुरा- शिकार की जुगलबन्दी का लुत्फ़ उठा रहे हैं | श्रद्धा होना अच्छी बात है परन्तु
अन्धश्रधा ठीक नहीं हैं | किसी आम व्यक्ति में अमुक देव का अवतार होना या नाचना एक भ्रम है क्योंकि इनके कथन में कोई
जिम्मेदारी नहीं होती | कई विदुजन और शोध कर्ता इन डंगरियों को देव नर्तक कहते हैं । वांच्छित परिणाम नहीं मिलने पर
ये लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं | कहीं पर तीर- तुक्का लग जाता है | अत: भगवान की पूजा
एक निराकार की तरह होनी चाहिए तथा किसी के झांसे में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए | श्रीकृष्ण का कर्म
संदेश हमें स्मरण करना चाहिए |
हवन करने से बारिश नहीं होती | अगर हवन से बारिश होती तो देश में कहीं भी फसल चौपट नहीं होती और न रेगिस्तान बनते |
हवन गृह - वातावरण शुद्धि में प्रतीक के तौर पर होना अच्छी बात है । डंगरियों ने अपनी करामात देशहित में दिखानी
चाहिए और उग्रवाद पर चुनौती के साथ नियंत्रण करना चाहिए जो आए दिन हमारे सुरक्षाकर्मियों पर गोली चला रहे हैं,
उन्हें शहीद कर रहे हैं | मुशर्रफ अपनी बेगम के साथ ताजमहल के सामने बैठ कर फोटो खिचवा गया और वापस जाकर उसने कारगिल
काण्ड (1999) किया जिसमें हमारे 517 सैनिक शहीद हुए | बभूत का एक फुक्का इन डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों ने उस
कपटी पर क्यों नहीं मारा ? वर्तमान में उत्तराखंड सहित पूरा देश (विश्व भी) कोरोना संक्रमण से ग्रसित है । इस त्रास
में भी किसी ने कोई चमत्कार नहीं किया । अतः भगवान ग्वेल ज्यू कि पूजा हमें स्वयं आत्मसंतुष्टि के लिए करनी चाहिए
जैसे हम अन्य देवी/देवताओं की करते हैं । मुझे आज तक श्री राम, परशुराम, सीता, द्रौपदी या कृष्ण का डंगरिया भी नहीं
मिला जिनकी हम पूजा करते आ रहे हैं या जिन्हें हम अपना आदर्श मानते आ रहे हैं और मानते रहेंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.08.2020
खरी खरी - 681 : धार्मिक होने का दिखावा
आज धार्मिक आडम्बर हमारी जीवन-शैली बन गए हैं । हम प्रतिदिन किसी न किसी धार्मिक आयोजन में सहभागिता निभाते हैं ।
वहां हम ऐसा अभिनय करते हैं जैसे कि हम एक अच्छे इंसान हैं जिसे अपने पड़ोस, समाज और देश की बहुत चिंता है । हम देश
के प्रत्येक कानून का बखूबी आदर करते हैं और हमने स्वयं में सुधार कर लिया है ।
हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हम पूरी तरह से दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं और बाजार संस्कृति के अधीन होकर
सामाजिकता, नैतिकता, देश-प्रेम, पड़ोस-प्रेम, परोपकार, कर्तव्यपारायणता, ईमानदारी , धैर्य, संयम, सहनशीलता सहित जीवन
की अमूल्य निधियों को तिलांजलि दे चुके हैं । हम चोरी की बिजली से धार्मिक पंडाल की जगमगाहट करते हैं और आस्था के
नाम पर सड़क या पार्क किनारे अवैध धार्मिक निर्माण करते हैं । ध्यान से देखने पर इस तरह की कई कानून अवहेलना आपको
अपने ही क्षेत्र में दिखाई देंगी । हम प्रत्येक दिन सोसल मीडिया में चाहे वाह फेसबुक हो या वॉट्सएप कोई न कोई भगवान
की मूर्ति का कट पेस्ट फारवर्ड करते हैं । क्या भगवान मोबाइल के अंदर ही पूजे जाने लगे हैं । भगवान का नाम लेकर अपना
कर्म करना ही सबसे बड़ी भगवान की पूजा है जो श्रीमद् भगवद गीता में भी लिखा है । कुछ लोग तो इतनी जगह भगवान को
फारवर्ड करने की कसम भी देते हैं । इस तरह भगवान खुश नहीं होते । कृपया मंथन जरूर कीजिए । मोको कहां ढूंढे रे बंदे,
मैं तो तेरे पास में ।
हमें धर्म के अर्थ को समझते हुए दिखावे के आडंबरों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और स्वयं में बदलाव लाना चाहिए ।
कम से कम ऐसे ढकोसलों से तो बचना चाहिए जिससे आपके इर्द-गिर्द के लोगों के जीवन में बाधा पड़ती हो । जन- पीड़क दिखावा
अनैतिक ही नहीं अपराध भी है । कुछ तथाकथित धार्मिक लोगों के व्यवहार से सभी श्रद्धालुओं की बदनामी होती है जो बहुत
ही निंदनीय है । भगवान या इस धरती को हम एक पौधा भी तो अर्पित कर सकते हैं । हमारे देश में विश्व की तुलना में प्रति
व्यक्ति बहुत कम पेड़ हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.08.2020
खरी खरी - 679 : घी संक्रांत का घी और गनेल
कल 16 अगस्त 2020 को उत्तराखंड में घी संक्रांत (घ्यों /घ्यू सग्यान ) का त्यार मनाया गया । दिन भर एक कटोरे में घी
और चमच तथा नीचे अलग से एक गनेल (घोंघा) सोसल मीडिया में दिन भर फारवर्ड होते रहा । उन लोगों ने भी कट पेस्ट फारवर्ड
किए जिन्होंने दिन भर घी पर हाथ नहीं लगाया होगा । साथ में यही भी कहा कि जो आज घी नहीं खाएगा वह अगले जनम में गनेल
बनेगा । पूरा त्यार सोसल मीडिया में ही सिमटा रहा । घी संक्रांत के त्यार में सिर के बाल और माथे के बीच टीके की तरह
घी लगाना शुभ माना जाता है । अच्छी फसल की खुशी और पशु धन की रौनक भी इस त्यार के पर्याय हैं । आर्थिक तंगी के कारण
सभी घी नहीं खरीद सकते थे । घी के व्यापारियों ने इसके पीछे गनेल का तर्क जोड़ दिया ताकि लोग गनेल बनने की डर से घी
अवश्य खरीदेंगे । अगले जन्म में कौन क्या बनता है या पिछले जन्म में वह क्या था यह कोई नहीं जानता परन्तु इस अगले
जन्म के चक्कर में कुछ लोग आज भी लाभ कमा रहे हैं ।
इसी तरह दीपावली में अमावस्या के दिन उत्तराखंड में (देश के अन्य भागों में भी ) कई जगह जुआ खेला (जुआ मेला ) जाता
है । पुरुषों में यह मिथ फैलाया गया है कि जो आज जुआ नहीं खेलेगा वह अगले जनम में कुत्ता या उल्लू बनेगा और वह
मनुष्य योनि में नहीं आएगा । लोगों ने इसे मैंसों का त्यार (आदमियों का त्यौहार ) कहना शुरु कर दिया। दीवाली में
गरीब से गरीब आदमी ने भी अपनी औकात के अनुसार कम से कम पांच - दस रुपए का जुआ खेलना जरूरी समझ लिया जो आज भी खेला
जाता है । इस जुवे से आयोजकों को बहुत लाभ होता है, शिकार - शराब बिकती है, फड़ (अड्डा) वालों की उघाई होती है जबकि
जेब जुवारियों की कटती है क्योंकि आदमी का त्यार हुआ अन्यथा कुत्ता बनने का डर जो हुआ । जुए में कई लोग जमीन या पशु
भी हार जाते हैं । महाभारत का जुआ भी सभी को स्मरण होगा ।
दीवाली में ही धन तेरस के नाम से यह मिथ चला दिया कि आज तो एक बर्तन जरूर खरीदना है या एक जेवर जरूर लेना है । धनवान
तो कुछ भी खरीदेगा परन्तु गरीब क्या करेगा ? गरीब उधार या कर्ज लेकर एक थाली या गिलास खरीदेगा क्योंकि यह मिथ चलाया
गया है कि आज खरीदारी नहीं करोगे तो लक्ष्मी जी नाराज हो जाएंगी । इस मिथ से लाभ हुआ दुकानदार को क्योंकि इस दिन रेट
भी आसमान पर होते हैं । जरूरत का बर्तन तो कभी भी खरीदा जा सकता है फिर धन तेरस पर ही क्यों ?
इसी तरह हमारे समाज में अलग अलग जगहों पर अलग अलग मिथ हैं । शराद में बामण भैजी को खिलाने का मिथ, मृत्यु भोज का
मिथ, शनि को तेल लगाने का मिथ, ग्रहण में भोज्य पदार्थ फैंकने का मिथ आदि । किसी ने एक पेड़ रोपने का मिथ नहीं बनाया
जिससे धरती का हरित श्रंगार होता । हमें मिथ से बचना चाहिए और कर्म करते हुए भगवान पर भरोसा करना चाहिए । कुछ लोग
मुझ से असहमत हो सकते हैं । असहमत होना सबका अधिकार है लेकिन सत्य को ही प्रमाण के साथ स्वीकार करते हुए भेड़ चाल से
बचना चाहिए । जिसके पास धन है खूब घी खाओ (कोलेस्ट्रॉल से बचना जरूरी ) परन्तु ऋण करके घी पीना नासमझी ही कहा जाएगा
। मुझे याद है बचपन में घ्यू सग्यान के दिन मेरे बुलबुलियों पर घी का हाथ मेरी इज़ा ने भी लगाया था परन्तु उसने न
कभी अपने सिर पर घी छुआ और न कभी घी चखा बल्कि घी बेचकर परिवार पर ही खर्च करते रही । ऐसी थी मेरी इजा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.08.2020
.
मीठी मीठी -498 : याद रहेंगे अटल जी (1924- 2018)
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बहुआयामी व्यक्तित्व वाले शिखर पुरुष अमर रहते हैं
। वे एक राजनीतिज्ञ तो थे ही, एक कवि, साहित्कार, कुशल वक्ता, पत्रकार और दूरदृष्टा भी थे । 93 वर्ष तक जीवित रहे
भलेही जीवन का अंतिम चरण में अस्वस्थता ने उन्हें घेर लिया जिससे वे अंत तक लड़ते रहे । वे देश के तीन बार
प्रधानमंत्री रहे ।( 13 दिन, 13 महीने और 5 वर्ष ,कुल लगभग 6 वर्ष)। उन्होंने ने 2005 में राजनीति से सन्यास ले लिया
। "मेरी 51 कविताएं'' उनकी अमर रचना है जो सदैव प्रासांगिक रहेगी । उन्होंने संयुक्तराष्ट्र में हिन्दी में
व्याख्यान दिया और अपनी विदेश नीति को वहाँ बड़ी प्रखरता से रखा । उनका निधन 16 अगस्त 2018 को अस्पताल में हुआ । आज
उनकी दूसरी पुण्य तिथि है । विनम्र श्रद्धांजलि ।
अटल जी अपने प्रधानमंत्रीत्व काल में कुछ खास कार्यों के लिए हमेशा याद किये जाएंगे जिनमें मुख्य हैं सर्वशिक्षा
अभियान 2001, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, प्रधानमंत्री सड़क योजना, दिल्ली में मेट्रो की शुरुआत, दिल्ली -लाहौर बस
यात्रा, चीन से व्यापार संबंध, 1999 के कारगिल युद्ध विजय तथा पोखरण परमाणु परीक्षण -II, 11 -13 मई 1998 । (प्रथम
परमाणु परिक्षण 18 मई 1974 को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुआ ।) इसके अलावा अटल जी
देश में सामाजिक सौहार्द , विरोधियों के लिए सम्मान व शिष्ट भाषा और देश की इंद्रधनुषी संस्कृति तथा गंगा- जमुनी
धरोहर के संरक्षक के रूप में भी लोगों के दिलों में राज करेंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.08.2020
खरी खरी - 678 : देश में हर साल बाढ़ ! जिम्मेदार कौन ?
कल जब हम अपने 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे तो देश के कई भागों को भीषण बाढ़ ने अपनी चपेट में के रखा था ।
केरल, कर्नाटक,असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित थे । यहां कई लोगों की डूबने से
मृत्यु भी हो गई है । उत्तराखंड में भी बादल फटने से बहुत क्षति हुई है । वैज्ञानिकों के अनुसार जिस वर्षा को लगातार
दो हफ्ते होना था वह अचानक एक या दो दिन में होने लगी है । देश में कहीं सूखा है तो कहीं अधिक वर्षा हो रही है ।
बाढ़ से होने वाली यह त्रासदी अधी वर्षा के कारण तो होती है परन्तु जिम्मेवार हम और हमारा शासन तंत्र भी है
।
ग्लोबल वार्मिग के कारण पूरा वर्षा चक्र गड़बड़ा गया है और ग्लोबल वार्मिग का कारण भी हम और हमारा असंतुलित पर्यावरण
को छेड़ना है । बंगाल और ओडिसा का भीषण चक्रवात भी इसी का कारण है । हमने 2013 की केदारनाथ विभीषिका से कुछ नहीं
सीखा जिसमें 5800 लोग जल प्रलय से अपना जीवन खो चुके थे । वहां हमने नदी के घर में ( बहाव क्षेत्र ) अपने डेरे बना
लिए थे । अन्य राज्यों में भी यही हो रहा है । नदी के बहाव क्षेत्र में घर या बाजार बन गए हैं , कुएं और तालाब लुप्त
करके वहां भी मनुष्य ने रहना शुरू कर दिया है । यह सब सरकार और शासन की नाक के नीचे होता है । स्थानीय निकाय इस अवैध
निर्माण के साक्षी होते हैं । भ्रष्टाचार की चादर की ओट में यह अवैध कर्म वैध हो जाता है । यह पूरे देश की हालत है
किसी राज्य विशेष की नहीं । हमारा प्रति व्यक्ति पेड़ का औसत भी दुनिया के कई देशों से कम है । पौध रोपण की बात
अवश्य होती है और कुछ पौधे रोपे भी जाते होंगे परन्तु कितने पौधे पेड़ बनते होंगे यह कहा नहीं जा सकता ।
बाड़ में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति हम एक कोरी सहानुभूति के सिवाय और कर भी क्या सकते हैं । वर्षा और बाड़
के थमने के बाद जिंदगी को पीड़ित लोग पुनः रास्ते में लाने का प्रयास करेंगे । मीडिया - अखबार भी चुप हो जाएंगे ।
पिछले साल भी यही हुआ और अगले साल फिर यही होगा । क्या हमारी सरकारें या नीति नियंता इस प्रतिवर्ष की त्रासदी पर कुछ
मंथन करेंगे ? क्या हम पर्यावरण की छेड़छाड़ में संयम बरतेंगे । क्या लोग ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से सोचेंगे ?
इस बीच एक सलूट उनको जरूरी है जो वर्दी पहने भगवान के रूप में पीड़ितों का जीवन बचा रहे हैं । जयहिंद एनडीआरएफ,
जयहिंद एसडीआरएफ, जयहिंद हिन्द की सेना । एक जयहिंद उन संवेदनशील मनखियों को भी जो वर्ष में किसी न किसी अवसर पर कुछ
पौधे अवश्य रोपते हैं और बाढ़ पीड़ितों की मदद में हाथ भी बंटाते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.08.2020
बिरखांत- 333 : हम स्वतंत्र हैं (व्यंग्य )
(शुभकामनाओं सहित, व्यंग्य में कुछ छूट गया तो निःसंकोच बता दें ।)
74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, अपने इर्द- गिर्द की अनचाही तस्बीर को समर्पित है आज की यह व्यंग्य बिरखांत |
लगभग दो सौ वर्ष फिरंगियों की गुलामी के बाद देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ | 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान
लागू हुआ जिसमें आज तक 123 संशोधन भी हो चुके हैं | संविधान ने हमें जो स्वतंत्रताएं दे रखी हैं उन पर हमने नहीं
सोचा क्योंकि हमारी मस्तिष्क में अपनी स्वतंत्र संहिता पहले से ही डेरा डाले हुए है | हमारी इस अलिखित स्वतंत्र
संहिता की न कोई सीमा है और न कोई रूप | बिना दूसरों की परवाह किये जो कुछ हमें अच्छा लगे या हमारा मन करे वही हमारी
असीमित स्वतंत्र संहिता है भलेही इससे किसी को परेशानी हो, कोई छटपटाये या किसी का नुकसान हो |
चर्चा करें तो सबसे पहले बोलने की स्वतंत्रता को लें | हमें किसी भी समय, कुछ भी, कहीं पर भी बिना सोचे- समझे बोलने
की छूट है | न छोटे- बड़े का ख्याल और न स्त्री- पुरुष का ध्यान | भाषा जितनी भी अभद्र या अश्लील हो बेरोकटोक निडर
होकर उच्चतम उद्घोष के साथ बोलने पर भी हमें कोई रोक नहीं सकता | वैसे हमारी संसद में भी कुछ लोगों को असंसदीय भाषा
बोलने की छूट है | गन्दगी फैलाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | हम कहीं पर भी- गली, मोहल्ला, सड़क, कार्यालय,
सार्वजनिक स्थान, प्याऊ, जीना-सीड़ी, रेल, बस में बेझिझक थूक सकते हैं | बस में बैठकर बाहर किसी राहगीर पर, दो-पहिये
सवार या कार पर थूकिये, खुल्ली छूट है | कार चला रहे हैं तो क्या हुआ, कहीं पर भी पच्च.. से थूकिये कोई कुछ नहीं
कहेगा |
मल-मूत्र विसर्जन की भी हमें पूरी छूट है | रेल की पटरी, नाली -नहर- नदी -सड़क के किनारे, कहीं पर भी करिए | कोई
देखता है तो देखने दीजिये, आप अनदेखी करिए | कोई बिलकुल ही पास से गुजरता है तो गर्दन घुटनों के अन्दर घुसा दीजिये,
देखने वाला थूकते हुए चला जाएगा | मूत्र विसर्जन आप कहीं पर भी कर सकते हैं | दीवार पर, पेड़ की जड़ या तने पर, बिजली-
टेलेफोन के खम्बे पर, खड़ी बस या कार के पहियों पर, सड़क के किनारे या कोने अथवा मोड़ पर या जहां मन करे वहां पर बिना
इधर- उधर देखे खूब तबियत से कर दीजिये |
अपने घर को छोड़कर कहीं पर भी कूड़ा- कचरा फैंकने की भी हमें पूरी स्वतंत्रता है | फल- मूंगफली या अंडे के छिलके, बचा
हुआ भोजन, पोस्टर- कागज, प्लास्टिक थैली, गुटका- पान मसाला पाउच, माचिस तिल्ली, बीडी-सिगरेट के डिब्बे- ठुड्डे,
डिस्पोजेबल प्लेट- गिलास, बोतल, नारियल आदि कहीं पर भी लुढ़का दीजिये | झाडू लगाओ कूड़ा पड़ोस की ओर धकाओ | कूड़े के ढेर
ऐसी जगह लगाओ जहां वह दूसरों की समस्या बने | घर में सफेदी कराओ, मलवा या बचा हुआ वेस्ट पार्क, सड़क या गली में
फैंको, कोई रोकने वाला नहीं | गांधी जी तथा नेहरू जी से लेकर मोदी जी तक 14 प्रधानमंत्री हमें समझाते रहे । हम क्यों
सुनें ? मैट्रो में हम डंडे के बल पर कूड़ा नहीं डालते, इसका हमें मलाल है ।
हमें अपने जानवरों को सड़कों पर खुला छोड़ने की पूरी छूट है | गाय, भैंस या सूवर के झुण्ड से सड़क के बीच कोई टकराए
हमारी बला से | हमने कुत्ते पाले हैं तो उन्हें सड़क या पार्क में ही तो घुमायेंगे | मल- मूतर करवाने के लिए ही तो हम
उन्हें वहां ले जाते हैं | पार्क-सड़क तो सभी का है, लोगों को देखकर अपने जूते –चप्पल बचा कर चलना चाहिए | हमारी
यातायात संबंधी आजादी तो असीमित है | बिना संकेत दिए मुड़ने, रात में प्रेशर हार्न बजाने, दिन हो या रात किसी को
बुलाने के लिए बहुत तेज हॉर्न बजाने, तेज गति से वाहन चलाने, दु-पहिये में पांच -छै जनों को बिठाने, दूसरे की या
किसी भी जगह वाहन पार्क करने, प्रार्थना पर बस न रोकने, बस में धूम्रपान करने, महिला- सीटों पर बैठने, भीड़ के बहाने
बस में महिलाओं के शरीर से स्वयं को रगड़ते हुए आगे बढ़ने, वरिष्ठ जनों के अनदेखी करने, शराब- नशा लेकर वाहन चलाने तथा
निर्दोष नागरिकों को टक्कर मारते हुए रफूचक्कर होने की भी हमें पूरी छूट है |
कहाँ तक बताऊँ, हमारी स्वच्छंदता के असीमित छूट का हम आनंद ले रहे हैं | महिलाओं को घूरने, उनपर कटाक्ष करने,
द्विअर्थी संवाद बोलने, बहला-फुसला कर उन्हें अपने चंगुल में फ़साने, उनका यौन शोषण करने तथा उनका बना- बनाया घर
बिगाड़ने की भी हमें खुल्ली छूट है | हमें झूठ बोलने, कोर्ट में बयान बदलने, बयान से मुकरने, घूस देने,
धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर विषवमन करने, असामाजिक तत्वों को संरक्षण देने, क़ानून की अवहेलना करने, रात को देर तक
पटाखे चलाने, कटिया डाल कर बिजली चोरने, सार्वजनिक स्थानों पर नशा -धूम्रपान करने, किसी का चरित्र हनन करने,
अश्लीलता देखने और पढ़ने, कन्याभ्रूण की हत्या करने, कालाबाजारी- मिलावट और तश्करी करने, फर्जी डिग्रीयां -प्रमाण
पत्र लेने, फुटपाथ खोदने, सड़क पर धार्मिक काम के नाम पर तम्बू लगाने, बिना बताये जलूस या रैली निकालने, यातायात जाम
करने, गटर के ढक्कन और पानी के मीटर चुराने, पार्कों की सुन्दरता नष्ट करने, विसर्जन के नाम पर नदियों में रंग-रोगन
युक्त मूर्तियाँ डालने और धार्मिक कूड़ा फैंकने, राजनीति में बेपैंदे का लोटा बनने, शहीदों और राष्ट्र भक्तों को
भूलने और सरकारी दफ्तरों में बिना काम की तनख्वा लेने सहित हमारी अनेकानेक स्वतंत्रताएं हैं |
कोरोना के इस दौर में बिना मास्क टहलने, भीड़ में सांड की तरह बेवजह घूमने, देह दूरी न रखने, मास्क इधर - उधर
फैंकने, डाक्टरों व कोरोना कर्मवीरों से लड़ने या उन्हें पीटने और उन्हें अपशब्द कहने की हमें खुल्ली छूट है । "साला
कोरोना हमारा क्या बिगाड़ लेगा " कहने की भी हमें पूरी आजादी है । ऐसे लोगों को देश के 25 लाख से अधिक संक्रमितों और
48 हजार से अधिक कोरोना के ग्रास हुए भारतीयों की कोई चिंता या दुख नहीं है ।
ये सभी स्वतंत्रताएं हमें कहाँ ले जाएंगी ? क्या इन्हीं के लिए हमारे अग्रज शहीद हुए थे ? क्या मनमर्जी के तांडव
करने के लिए ही हम पैदा हुए हैं ? क्या हमें दूसरों की तनिक भी परवाह है ? क्या हमें अपने राष्ट्र से प्यार है ? हम
अपना व्यवहार कब बदलेंगे ? हम कानून का सम्मान करना कब सीखेंगे ? इन प्रश्नों को हम अनसुना न करें और इस व्यंग्य में
वर्णित आजादी के बारे में स्वयं से जरूर सवाल करें | स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
20 अगस्त 2020
खरी खरी - 674 : समाज में बुराई सहने वाले
सुप्रसिद्ध अंग्रेज साहित्यकार शेक्सपियर ने 'मैकबेथ' में लिखा है, " The best of this kind are but shadow, the
worst is no worse if imagination amend them." इसका तातपर्य यह यह है कि इस दुनिया में अच्छा क्या है, बुरा क्या है
यह सब किसी के सोचने पर निर्भर करता है । जेब काटना बुरी बात है और यह अपराध भी है । फिर भी जेबकतरे अपना काम अविरल
कर रहे हैं बल्कि कुछ तो संरक्षण प्राप्त बताए जाते हैं । 23 मार्च 2018 को अन्ना की रामलीला मैदान रैली में 100 से
अधिक मोबाइल चोरी हुए और जेब तराशी भी खूब हुई । 29 अप्रैल 2018 की राजनैतिक रैली में भी शातिर चोरों ने चांदी काटी
। बताया जारहा है कि 50 से अधिक मोबाइल चोरी हुए और 150 से अधिक लोगों की जेब कटी । मोबाइल चोरी और झपटमारी आज भी
देश की राजधानी में खुलेआम हो रही है । जब तक कुछ समझ में आए कि क्या हुआ, बाइक सवार झपटमार फरार ।
शातीर जेबकतरों के लिए जेब काटना बुरा काम नहीं है । उनके चंगुल में शरीफ लोग ही आते है क्योंकि स्मार्ट व्यक्ति
पहले से चौकन्ना रहता है । इसी तरह असामाजिकतत्व भी अपने कार्य को बुरा नहीं मानते । कुछ पकड़े जाते हैं और कुछ डॉन
बनकर फिरते रहते हैं । देश की जेलों में करीब साढ़े तीन लाख से अधिक अपराधी हैं जिन्होंने अच्छाई से नाता तोड़ते हुए
बुराई से नाता जोड़ा । 22 अप्रैल 2018 से संशोधित दुष्कर्म अपराध कानून एक अध्यादेश के जरिये लागू हुआ है । उस दिन से
दुष्कर्म के अपराध घटे नहीं हैं ।
संक्षेप में कहूं तो हमने भी तो बुरे को बुरा कहना छोड़ दिया है । एक सत्य यह भी है कि समाज में बुराई बढ़ी नहीं है
परन्तु बुराई को सहन करने वाले बढ़ गए हैं । संवेदनशीलता घटते जा रही है । हम बंद नयनों से चुप्पी साधे चूहा दौड़ में
चलायमान हैं । जब सभी का यही हाल है तो हालात को बदलेगा कौन ? मित्रों निराशा के घुप्प अंधेरे से हमें बाहर आने की
हिम्मत जुटानी होगी और दिखाना होगा कि हम जिंदी लाश नहीं हैं । जिस दिन जेबकतरों को हमारे जिंदा होने का ऐहसास हो
जाएगा उस दिन समा बदल जाएगी, नव-प्रभात का अभिनंदन होगा । तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.08.2020
खरी खरी - 672 : जब गणेश जी ने दूध पीया
एक होता है तर्क और एक होता है कुतर्क । अक्सर बुद्धि जीवी तर्क संगत प्रसंग पर चर्चा करते हैं । कुतर्की लोग
अप्रसांगिक विषय को लेकर तर्क करते हैं और निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता । कुछ लोगों ने शिव लिंग पर दूध चढ़ाने की चर्चा
की, और सही निदान भी प्रस्तुत किया । अगर याद हो, 1995 में कनाडा से किसी ने एक मजाक उड़ाया कि गणेश जी दूध पी रहे
हैं और 21 सितम्बर 1995 दिन के एक बजे तक दिल्ली में लम्बी कतार में लगे थे दूध का लोटा लेकर । दिल्ली में उस दिन 35
हजार लीटर दूध मदर डेरी ने दूध बेचा जबकि रोज 27 हजार लीटर ही बिकता था । अर्थात 8 हजार लीटर दूध गणेश जी पी गये ।
हमारी इस भेड़ चाल को दुनिया ने ठहाके लगाकर देखा ।
शिव लिंग की पूजा, पानी, दूध चढ़ाना, इसका महत्व कोई सही ढंग से पण्डित लोग नहीं बताते हैं । अंततः यह सब नाली में
जाता गए । गीताजी के चौदवें अध्याय के तीसरा औऱ चौथा श्लोक इसका अच्छी तरह प्रतिपादन करते हैं, किन्तु लोग अपनी अपनी
ढपली अपना अपना राग अलापते हैं । (साभार श्री वाई पी नैनवाल जी ।)
यह बात उस दौरान ही सिद्ध हो चुकी थी कि गणेश जी की मूर्ति या किसी अन्य मूर्ति ने दूध नहीं पिया । वैज्ञानिकों ने
इसे एक प्रकार की मैटल टेनसन बताया । आज भी किसी भी मूर्ति में चढ़ाया दूध, जल या तेल सब बह कर नाली में जाता है ।
काश ! यह दूध देश के करोड़ों कुपोषित बच्चों के मुंह में जाता ! मूर्ति की श्रद्धा तो दो बूँद दूध या जल से भी पूर्ण
हो सकती है । देश के शीर्ष नेताओं को भी इस तरह दूध अभीषेक करते देखा है जिसका अनुसरण अन्य लोग करते हैं । नेता
कुपोषण पर कई घंटे भाषण देते हैं परन्तु कर्म कुछ और ही होता है । भगवान ने कभी नहीं कहा कि उसकी मूर्ति में दूध
बहाओ । जागेगा भारत और मिटेगा कोहरा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.08.2020
खरी खरी - 673 : हे राम ! हमारे आचरण में आओ !
5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्री राम मंदिर भूमि पूजन के दौरान विशिष्ट जगह को छोड़कर कोरोना संक्रमण की किसी ने
परवाह नहीं की । वहां न देह दूरी थी और न मास्क जरूरी का नियम माना गया । कई बाबा जिसमें कई नामचीन बाबा भी थे, बिना
मास्क घूम रहे थे । राम जी क्या करेंगे जब लोग ही अपना बचाव नहीं करेंगे ? वे तो तभी हमारी रक्षा करेंगे जब हम अपनी
रक्षा करेंगे । कुछ लोग दुखित भी थे क्योंकि 5 अगस्त तक देश में कई डाक्टर, नर्स, पुलिस, स्वास्थ्य कर्मी, कोरोना
वारियर सहित 39 हजार से अधिक लोग कोराेना के ग्रास बन चुके थे और 19 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके थे । इस संक्रमण
काल में यह आयोजन कुछ सोच समझ कर ही जरूरी समझा गया होगा । कुछ दिन बाद होता तो कई लोग इस पावन स्थल पर पहुंचते और
महामारी संक्रमण से भी देश बचता ।
एक तरफ हम कोरोना बचाव के भाषण देते हैं/दे रहे हैं और दूसरी तरफ खुद हम नियम तोड़ते हैं तथा नियमों का उल्लंघन करते
हुए देखते हैं । 5 अगस्त की सायंकाल कुछ लोगों ने दीप जलाए और कुछ लोगों ने पटाखे भी जलाए । मैं सोच रहा था कि इस
दीपावली और पटाखों के शोर ने उन लोगों को कितना दुखित किया होगा जिनके स्वजन इस महामारी के ग्रास बन गए । हमारे राम
ने ऐसी मर्यादा तो नहीं सिखाई थी हमें । आज यह प्रश्न भी गूंज रहा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम सिया बर रामचंद्र जी
जिनकी हम हमेशा जै बोलते हैं वे राम हमारे चरित्र में, हमारे आचरण में, हमारी भाषा में, हमारी नियत में और हमारी
मर्यादा में कब आएंगे ? जल्दी आओ प्रभो ! तभी तो एक फकीर के रामराज्य की कल्पना साकार होगी ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
07.08.2020
मीठी मीठी - 494 : एक सेवानिवृत टैंक से मुलाकात
उत्तर भारत में भ्रमण के दौरान एक विशेष जगह पर सम्मान के साथ स्थापित भारतीय स्थल सेना के एक सेवानिवृत टैंक से
बिलकुल नजदीक से मुलाकात हुई । मेरे पूछने पर टैंक ने बताया, "सर सेवानिवृत्ति के बाद इस स्थान पर मैं बहुत सम्मानित
महसूस कर रहा हूं । दिन भर जो भी देशवासी यहां से गुजरता है, बड़ी गर्मजोशी और गर्व के साथ मेरी ओर देखता है । कई
लोगों ने तो मेरे अंग - अंग को बड़े सम्मान से स्पर्श किया है, सहलाया है। बच्चे तो कभी कभी मेरी गोद में सवार हो
जाते हैं ।"
सेवानिवृत टैंक अपनी दास्तान सुनाते गया, " मुझे अपने जीवन पर गर्व है क्योंकि मेरे पूर्वज वर्ष 1948, 1962 और 1965
के सभी युद्धों में लड़े और दुश्मन को छटी का दूध याद दिलाया । मैं 1971 के युद्ध में अपने साथियों के साथ पश्चिमी
सीमा पर लड़ा और दुश्मन को नेस्तोनाबूद किया । आज भी मेरे वंशज बड़ी मजबूती के साथ देश की सीमाओं पर डटे हैं
जिन्होंने 1999 का कारगिल युद्ध भी लड़ा । हमारी हिम्मत, मजबूती, जोश और युद्ध प्रवीणता को देखकर कोई भी दुश्मन
हमारी ओर आंख उठाकर नहीं देख सकता । अपनी भारतभूमि की सेवा करने के लिए मैं स्वयं को धन्य समझता हूं । जयहिंद ।" इस
अमर सेनानी सेवानिवृत टैंक को सलूट और टैंक योद्धा परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत - 1965) CQMH अब्दुल हमीद एवम्
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल, परमवीर चक्र (मरणोपरांत -1971 ) का स्मरण करते हुए मैं अपने गंतव्य की ओर निकल
गया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
04.08.2020
मीठी मीठी 490 : पत्नी का गणित (केवल हास्य)
एक बार पति ने पत्नी से ₹ 250/- लिए,
कुछ दिनों बाद फिर ₹ 250/- लिए,
कुछ दिनों बाद पत्नी ने पैसे वापस मांगे ।
पति ने पूछा कितने रुपए देने हैं ?
पत्नी ने कहा ₹ 4100/-
पति चौंकते हुए बोला, कैसे?
पत्नी का हिसाब -
₹ 2 5 0
+₹ 2 5 0
-----------------
₹ 4 10 0
पति तब से सोच रहा था, जाने किस स्कूल से पढ़ी है ?
बाद में पति ने ₹ 400/- वापस किये
और पूछा अब कितने बचे ?
फिर पत्नी ने अपना गणित लगाया -
₹ 4 1 0 0
- ₹ 4 0 0
----------------
₹ 0100
पत्नी बोली ₹ 100/- बचे ।
पति ने ₹ 100 दे दिये ।
हिसाब बराबर ।
दोनों खुश ।
परन्तु गणित बेचारा मारा गया, पति
गणित से लड़ा, पत्नी से नहीं । वैसे भी पत्नी हमेशा सही होती है ।
( कल पत्नी के बारे में मैंने कुछ शब्द लिखे थे । । उस संदर्भ में कई मित्रों ने टिप्पणी की है और हास्य भी भेजा ।
आज का उक्त हास्य हल्द्वानी से हास्य रस के प्रोफेसर प्रकाश कांडपाल जी ने भेजा है जिसे विश्व की सभी पत्नियों को
नमन करते हुए साभार संपादित कर पोस्ट कर रहा हूं ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.08.2020
खरी खरी- 671 : घरवाइ अर्थात पत्नी अर्थात वाइफ
पत्नी के बारे में सोसल मीडिया में बहुत हास्य है । कुछ पचनीय तो कुछ अपचनीय भी है । पत्नी उतनी खराब भी नहीं होती
जितना प्रोजेक्ट किया जाता है । हास्य लाने के साथ यह भी ध्यान रहे कि कहीं उधर से नफरत न उगने लगे और कुटान हो जाय
।
जब पत्नी की बात आती है तो हमें तिलोतम्मा और रत्नावली की याद आती है जिन्होंने अपने पति कालिदास और तुलसीदास को अमर
कर दिया । हमें केकई और सावित्री की भी याद आती है जिनमें केकई ने तो दशरथ के प्राण ले लिए और सावित्री सत्यवान के
गए प्राण वापस ले आई ।
किसको कैसी पत्नी मिलती है यह उसकी लाट्री है । लाट्री पत्नी के लिए भी है कि उसे कैसा पति मिलता है । जैसी भी पत्नी
मिले एडजस्ट तो करना ही होगा । एक व्यक्ति अपनी पत्नी से परेशान था और बोला, "वाइफ इज ए नाइफ हू कट द लाइफ" अर्थात
पत्नी वह चाकू है जो जिंदगी का कत्ल कर देती है । दूसरा व्यक्ति अपनी पत्नी से खुश था और बोला, "दियर इज नो लाइफ
विदाउट वाइफ" अर्थात पत्नी के बिना जिंदगी है ही नहीं ।"
पत्नी पर आये क्रोध में शीतलता के दो छीटे इस तरह डाले जा सकते हैं "कुछ भी हो यार ये मेरे बच्चों की मां है, इसी ने
तो मुझे बाप बनाया है ।" पत्नी से हमारा रिश्ता जग जाहिर है । नर के घर, नारायण के घर और कानूनी तौर से भी वह हमारी
पत्नी है । सबसे बड़ी बात यह है कि क्या पत्नी पति की दोस्त भी है ? यदि दोस्त है तो फिर जिन्दगी का नजारा ही कुछ और
है । यदि दोस्त नहीं है तो उसे दोस्त बनाने में ही जिंदगी गेंदा फूल है । दोस्ती का हाथ पति ने बढ़ाना है । जी हां,
पहल पति की तरफ से ही होनी है । इस तरह से -
"पत्नी तू भार्या ही नहीं है
मित्र बंधु और शखा है तू,
जीवन नाव खेवैया तू है
वैद हकीम दवा भी तू ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.08.2020
बिरखांत- 331 : मुस्लिम महिला और इबादत
अस्सी के दशक में बरेली (उ.प्र.) में एक स्वास्थ्य कैम्प में मैं अपने सहकर्मी सहित बच्चों को बी सी जी (टी बी से
बचने का टीका) का टीका लगाने पहुंचा | मैं बच्चों को टीका लगा रहा था और सहकर्मी नाम लिख रहा था | एक मुस्लिम महिला
ने अपने छै बच्चों के नाम लिखाए | सहकर्मी के मुंह से मजाक में अनायास ही निकल गया “पूरी वॉलीबाल टीम है आपकी |”
महिला को यह अच्छा नहीं लगा और वह भन्नाते हुए बोली, “जब मुझे पैदा करने में परेशानी नहीं हुई तो तेरे को नाम लिखने
में दर्द क्यों हो रिया है ? खांमखां मेरे बच्चों पर नजर लगा रिया है |” वह आगे कुछ और बोलने ही वाली थी मैंने उसे
रोकते हुए कहा, “आपको बुरा लगा तो माफ़ कर दें | उसने एक माँ- बाप के इतने बच्चे एकसाथ पहली बार देखे हैं |” सहकर्मी
ने भी तुरंत ‘सौरी बहनजी’ कह दिया और मैंने बिना देर किये बच्चों को टीका लगाकर उन्हें शीघ्र रुख्शत कर दिया | आज
चार दशक बाद परिवर्तन देखने को मिल रहा है क्योंकि अपवाद को छोड़कर अब मुस्लिम महिलाएं परिवार नियंत्रित करने लगीं
हैं और रुढ़िवादी सोच से परहेज करने लगीं हैं |
नब्बे के दशक में फैज रोड दिल्ली की बैंक शाखा में एक मुस्लिम युवती पी ओ (प्रोबेसनरी ऑफिसर ) बन कर आई | वह हमेशा
ही सिर में स्कार्फ बांधे रखती थी | शाखा प्रबंधक ने उसे प्रशिक्षण का जिम्मा मुझे दिया | यह शायद उस बैंक में पहली
मुस्लिम महिला आई होगी | मेरे लिए तो एक मुस्लिम महिला का बैंक ज्वाइन करना, एक सुखद आश्चर्य था | वह बड़ी शालीन,
विनम्र और सीखने के जज्बे से सराबोर थी | यदा- कदा में उससे मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक दशा और अधिक बच्चों पर चर्चा
करता था | वह बताती थी, ‘सर अच्छी हालत नहीं है मुस्लिम महिलाओं की | जल्दी शादी और फिर बच्चे | मजहबी क़ानून भी
महिलाओं के लिए सख्त हैं | मुझे यहाँ तक पहुंचने के लिए मेरे अम्मी- अब्बा का बहुत बड़ा सहयोग रहा है |’ उस युवती की
सोच बड़ी प्रगतिशील और महिला उत्थान की थी | प्रशिक्षण के बाद जब वह चली गई तो पूरा स्टाफ और ग्राहक उसे बड़ी श्रद्धा
से याद करते थे | हम सबने बतौर सहकर्मी पहली बार एक मुस्लिम महिला देखी थी जो हमारे कई भ्रम और मिथक तोड़ कर बड़े
सौहार्द के साथ वहाँ से विदा हुई थी |
परिवर्तन का एक सुखद क्षण 7 जुलाई 2016 को भी देखने को मिला जब ईद-उल-फितर के मौके पर ऐशबाग लखनऊ में पहली बार
मुस्लिम महिलाओं ने ईदगाह में नमाज अता की | उनके लिए नमाज अता करने हेतु अलग से प्रबध किया गया था | वहाँ के मौलाना
ने भी बताया कि इस्लाम में कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाएं मस्जिद या ईदगाह में नमाज अता नहीं कर सकती | यह देर से
आरम्भ की गई एक नई पहल है, नई रोशनी है और मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय और बराबरी का स्वीकार्य हक़ है | हाल ही में
शनि- सिगनापुर में महिलाएं मंदिर में प्रवेश हुई हैं जबकि सबरीमाला में उनके लिए अभी भी मंदिर के द्वार बंद हैं
|न्यायालय ने महिलाओं के लिए द्वार खोल दिए परन्तु राजनीति ने बंद कर दिए । मुस्लिम महिलाएं मजारों पर जाती थी
परन्तु उनके लिए मस्जिद या ईदगाह प्रवेश पर प्रतिबंधित था | पूरा देश इस नई रोशनी का स्वागत करता है | यह एक
प्रगतिशील कदम है |
देश तभी उन्नति करेगा जब देश की ‘आधी दुनिया’ (महिला शक्ति) को संविधान के अनुसार बराबरी का हक़ मिलेगा | जब तक देश
के सभी सम्प्रदायों में महिलाओं को हर जगह बराबरी का हक नहीं मिलेगा, देश तरक्की नहीं कर सकता | सबके सहयोग से ही तो
हमने चेचक, प्लेग और पोलियो पर विजय पाई है | लघु परिवार का सपना भी ऐसे ही पूरा होगा | देश को बड़े परिवार की जरूरत
नहीं है बल्कि स्वस्थ और शिक्षित लघु परिवार की जरूरत है | आज कुछ युवा लड़का या लड़की जो भी हो केवल दो बच्चों के ही
परिवार से खुश हैं | आज देश की सबसे बड़ी समस्या ही जनसँख्या वृद्धि है | साथ ही हम किसी भी सम्प्रदाय द्वारा ईश्वर
या अल्लाह के नाम पर पशुबलि को भी उचित नहीं मानते | कोई मांसाहार करे या न करे यह उसकी मर्जी है परन्तु धर्म,
भगवान् या अल्लाह के नाम पर निरीह पशु की बलि गलत है | बदलाव की बयार चल पड़ी है | मंदिरों में तो पशुबलि निषेध पूर्ण
रूपेण लागू हो चुका है भलही कई जगहों पर चोरी से पशुबालि जारी है जिसे स्थानीय मूक समर्थन मिलता है | आशा है सभी
सम्प्रदाय इस तथ्य को समझने का प्रयास करेंगे और आस्थालयों में पशु बलि को समाप्त करेंगे।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.07.2020
बिरखांत - 330 : पूजा/इबादत प्रथा पर मंथन जरूरी
हमने हमेशा ही पूजा या इबादत या धर्म के नाम पर पशुबलि को अनुचित कहा है । कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते
हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं
हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से
कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता-
बोलता हूं ।
कबीर के दोनों दोहे याद हैं ।
पहला-
'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार;
ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार ।'
दूसरा -
'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय;
ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।'
मोको कहां ढूंढे रे बंदे भी याद है ।
'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में;
ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास में ।'
बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है -
"मुसलमान और हिन्दू हैं दो,
एक मगर उनका हाला;
एक है उनका मदिरालय,
एक ही है उनका प्याला;
दोनों रहते एक न जब तक
मंदिर -मस्जिद हैं जाते,
बैर कराते मंदिर-मस्जिद
मेल कराती मधुशाला ।"
दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए ।
सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था,
"हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि
हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते अपने
षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।
देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी
जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत किस
पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । इस नफ़रत से देश का विकास भी बाधित
होता है और हम सृजनात्मक कर्मों से भटक कर इधर - उधर उलझ जाते हैं ।
स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और आस्था
के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । कोई मांसाहार करता है तो करे परन्तु ईश्वर के नाम पर
नहीं । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में
हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस
संक्रामक रोग से बचा सकें ।
ईद की सभी को शुभकामना । जब वे हमें दीपावली की शुभकामना कहते हैं, कांवड़ियों की सेवा में पंडाल लगाते हैं, तीर्थ
यात्राओंं में सहयोग करते हैं, होली - रामलीला में संगत करते हैं तो हमें भी उन्हें ईद की शुभकामना देने में संकोच
नहीं करना चाहिए । देश का सौहार्द्र इसी इंद्रधनुषी रंग में लहलहाएगा।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.07.2020
खरी खरी - 670 : अपराध बोध ही प्रायश्चित
एक बड़ा अपराध
फिर से कर लिया है,
कत्ल अपनी आत्मा
का सह लिया है ।
नजरों में लोगों की मैं
एक भला इंसान हूं,
कर्म ऐसा कर लिया है
जैसे मैं शैतान हूं ।
आंखें अपने आप से मैं
अब मिला सकता नहीं,
आत्मा झकझोरे मुझको
बोल कुछ सकता नहीं ।
हो गया अपराध जब
कंपकपाने मैं लगा,
जान जाए जग न सारा
सकपकाने मैं लगा ।
नहीं जानता क्यों मुझे वो
क्षमा यूं ही कर गया,
निगाहों के आगे उसके
जीते जी मैं मर गया ।
विश्वसनीयता आज से वह
कैसे करेगा जगत पर,
विश्वास के क्षण पर उसे
आ जाऊंगा मैं ही नजर ।
बिना मांगे, मौन हो वो
क्षमा मुझे कर गया,
है उच्च क्षमा करने वाला
बात साबित कर गया ।
घृणा अपने आप से
हृदय मेरा अब कर रहा,
वो क्षमा मुझे कर गया
पर मैं नहीं कर पा रहा ।
प्रायश्चित अपराध का
करना जो चाहो तुम अभी,
पुनरावृति अपराध की
होने न देना तुम कभी ।
(अपराध का बोध होने पर ऐसा होता है । यह महसूस करने की बात है । किसी भी अपराध का प्रायश्चित है उसे दोहराया न
जाय।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.07.2020
बिरखांत - 329 :कारगिल युद्ध की याद ( विजय दिवस : 26 जुलाई )
प्रतिवर्ष 26 जुलाई को हम ‘विजय दिवस’ 1999 के कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में मनाते हैं | कारगिल भारत के
जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर से 205 कि. मी. दूरी पर श्रीनगर -लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिंगो नदी के दक्षिण में
समुद्र सतह से दस हजार फुट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है | मई 1999 में हमारी सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चला |
घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए 14 मई को आपरेशन ‘फ़्लैश आउट’ तथा 26 मई को आपरेशन ‘विजय’ और कुछ दिन बाद भारतीय
वायुसेना द्वारा आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ आरम्भ किया गया | इन दोनों आपरेशन से कारगिल से उग्रवादियों के वेश में आयी पाक
सेना का सफाया किया गया | इस युद्ध का वृतांत मैंने अपनी पुस्तक ‘कारगिल के रणबांकुरे’ ( संस्करण 2000) में लिखने का
प्रयास किया है |
यह युद्ध ग्यारह 11000 से 17000 फुट की ऊँचाई वाले दुर्गम रणक्षेत्र मश्कोह, दरास, टाइगर हिल, तोलोलिंग, जुबेर,
तुर्तुक तथा काकसार सहित कई अन्य हिमाच्छादित चोटियों पर लड़ा गया | इस दौरान सेना की कमान जनरल वेद प्रकाश मलिक और
वायुसेना के कमान एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस के हाथ थी | इस युद्ध में भारतीय सेना ने निर्विवाद युद्ध क्षमता,
अदम्य साहस, निष्ठा, बेजोड़ रणकौशल और जूझने की अपार शक्ति का परिचय दिया |
हमारी सेना में मौजूद फौलादी इरादे, बलिदान की भावना, शौर्य, अनुशासन और स्वअर्पण की अद्भुत मिसाल शायद ही विश्व में
कहीं और देखने को मिलती हो | इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने न केवल बहादुरी की पिछली परम्पराओं को बनाये
रखा बल्कि सेना को देशभक्ति, वीरता, साहस और बलिदान की नयी बुलंदियों तक पहुँचाया | 74 दिन के इस युद्ध में हमारे
पांच सौ से भी अधिक सैनिक शहीद हुए जिनमें उत्तराखंड के 74 शहीद थे तथा लगभग एक हजार चार सौ सैनिक घायल भी हुए थे
|
कारगिल युद्ध के दौरान हमारी वायुसेना ने भी आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ के अंतर्गत अद्वितीय कार्य किया | आरम्भ में
वायुसेना ने कुछ नुकसान अवश्य उठाया परन्तु आरम्भिक झटकों के बाद हमारे आकाश के प्रहरी ततैयों की तरह दुश्मन पर चिपट
पड़े | हमारे पाइलटों ने आसमान से दुश्मन के खेमे में ऐसा बज्रपात किया जिसकी कल्पना दुश्मन ने कभी भी नहीं की होगी
जिससे इस युद्ध की दशा और दिशा में पूर्ण परिवर्तन आ गया | वायुसेना की सधी और सटीक बम- वर्षा से दुश्मन के सभी आधार
शिविर तहस-नहस हो गए | हमारे जांबाज फाइटरों ने नियंत्रण रेखा को भी नहीं लांघा और जोखिम भरा सनसनी खेज करतब दिखाकर
अपरिमित गगन को भी भेदते हुए करशिमा कर दिखाया | हमारी वायुसेना ने सैकड़ों आक्रमक, टोही, अनुरक्षक युद्धक विमानों और
हेलिकोप्टरों ने नौ सौ घंटों से भी अधिक की उड़ानें भरी | युद्ध क्षेत्र की विषमताओं और मौसम की विसंगतियों के बावजूद
हमारी पारंगत वायुसेना ने न केवल दुश्मन को मटियामेट किया बल्कि हमारी स्थल सेना के हौसले भी बुलंद किये |
कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता, कर्तव्य के प्रति अपने को न्योछवर करने के लिए 15 अगस्त 1999 को भारत के राष्ट्रपति
ने 4 परमवीर चक्र (कैप्टन विक्रम बतरा (मरणोपरांत), कैप्टन मनोज पाण्डेय (मरणोपरांत), राइफल मैन संजय कुमार और
ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ( पुस्तक ‘महामनखी’ में इनकी लघु वीर-गाथा तीन भाषाओं में एक साथ है ), 9 महावीर चक्र, 53
वीर चक्र सहित 265 से भी अधिक पदक भारतीय सैन्य बल को प्रदान किये | कारगिल युद्ध से पहले जम्मू -कश्मीर में
छद्मयुद्ध से लड़ने के लिए आपरेशन ‘जीवन रक्षक’ चल रहा था जिसके अंतर्गत उग्रवादियों पर नकेल डाली जाती थी और स्थानीय
जनता की रक्षा की जाती थी |
हमारी तीनों सेनाओं का मनोबल हमेशा की तरह आज भी बहुत ऊँचा है | वे दुश्मन की हर चुनौती से बखूबी जूझ कर उसे मुहतोड़
जबाब देने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं | उनका एक ही लक्ष्य है, “युद्ध में जीत और दुश्मन की पराजय |” आज इस विजय
दिवस के अवसर पर हम अपने अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर शहीद परिवारों का सम्मान करते हुए अपने सैन्य
बल और उनके परिजनों को बहुत बहुत शुभकामना देते हैं । आज ही हम सबको हर चुनौती में इनके साथ डट कर खड़े रहने की
प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए । मेरी पुस्तक " कारगिल के रणबांकुरे " कारगिल युद्ध के रणबांकुरों को समर्पित है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26 जुलाई 2020
खरी खरी - 669 : मोबाइल पर ज्ञान
हमने लोगों को मोबाइल पर
बड़े बड़े संदेश भेजते देखा,
सहिष्णुता की टी वी वार्ता में
बात बात पर लड़ते देखा ।
क्या वे उस पथ चलते होंगे
जिस पथ चल चल कहते होंगे,
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी करनी में अंतर देखा ।
नशामुक्ति पर बोलते देखा
गुटका छोड़ो कहते देखा,
आंख बचाकर हमने उसको
मुंह में पुड़िया डालते देखा ।
शराब मत पियो कहते देखा
शराब से हानि गिनाते देखा,
जेब जब उसकी हमने पिड़ाई
उसकी जेब में पउवा देखा।
मास्क लगाओ बोलते देखा
मत भीड़ में जाओ कहते देखा,
बिना मास्क के कार्यकर्ता संग
सड़क में उनको घूमते देखा ।
नेताओं को गिरगिट बनते देखा
घड़ियाली अश्रु बहाते देखा
हमने आज तक किसी भी नेता को
नहीं अपने भाषण पर चलते देखा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.07.2020
मीठी मीठी - 487 : 25 जुलाई श्रीदेव सुमन स्मरण दिवस
उत्तराखंडक क्रांतिवीर, अमर शहीद श्रीदेव सुमन ज्यूक आज बलिदान दिवस छ । 25 जुलाई 1944 हुणि तत्कालीन रियासतक राजक
खिलाफ 84 दिनक अनशनक दौरान उनर देहावसान हौछ । उनर जन्म 25 मई 1915 हुणि टिहरी उत्तराखंडक जौल गांव में हौछ । '
बुनैद ' किताब बै उनार बार में लेख उद्धत छ । य महान स्वतंत्रता सेनानी कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.07.2020
खरी खरी - 668 : बेझिझक गिच खोलणी चैनी
मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।
अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में एक मस्याव
जगूणी चैनी ।
मसमसै..
जात - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...
गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
उनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी चैनी ।
मसमसै...
क्ये दुखै कि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणी कैं एक आऊं
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...
अच्याल कोरोनाक दौर चलि रौ
सबूंल आपण बचाव करण चैं,
बिना मास्क जो भ्यार घुमैं रईं
उनुकैं पकड़ि बेर गोठ डाउणी चैनी..
मसमसै बेर...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.07.2020
मीठी मीठी - 485 : गीतोंक गीतकार/गायक/संगीतकार
(संदर्भ - मीठी मीठी - 484, 18 जुलाई 2020 )
हमू कैं गीतों कि कतू जानकारी छ ? कुमाउनी में मुणि लेखी 12 गीत भौत लोकप्रिय छीं । इनार गीतकार/गायक/संगीतकारोंक
प्रामाणिक जानकारी छ तो जरूर बताया ? य संबंध में जो लोगोंल कुछ न कुछ जानकारी भेजी ऊं छीं - सर्व श्री भास्कर
भौर्याल, गौरव मठपाल, महेंद्र ठकुराठी , ज्योति उप्रेती, अरविंद कांडपाल, रिस्की पाठक, ब्रिगेडियर (से नि) डी के
जोशी, ललित तुलेरा, सी एम पपनै, बिशन हरियाला व विनोद पंत और म्येरि किताब उज्याव (2012) । मील य जानकारी वरिष्ठ
साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली दगै दूरभाष पर साझा करी । अंत में मि जो निष्कर्ष पर पुजूं उ मुणि छ । येक बाद लै
क्वे प्रमाणिक जानकारी होलि तो साझा करिया -
1. बेडू पाको बारियो मासा - लोकगीत, शुरुआती गायक बृजेन्द्र लाल साह और मोहन उप्रेती ।
2. ओ भिना कसिके जानू दोरिहाटा - लोकगीत, गोपाल बाबू गोस्वामी, रेखा धस्माना।
3. सर्ग तारा य जुन्याली राता - लोकगीत, शुरुआती गायक शेरसिंह रावत, भानु सुकोटी, चन्द्र सिंह राही ।
4. झन दिया बौज्यू छनाबिलोरी - लोकगीत, कएक गायक ।
5. गोरखिये च्येली भागुली - लोकगीत, मोहन सिंह तोलिया, नंदी आर्या और मदन जी ।
6.ओ परूवा बौज्यू चपल के ल्याछा - शेरादा अनपढ़ - बीना तिवारी ।
7. रूपसा रमोती घुंगुर न बजा छम - हीरा सिंह राणा व गोपाल बाबू गोस्वामी
8.पारा वे भिड़ा को छै घस्यारी - पीताम्बर दत्त व साथी ।
9.कैले बजै मुरुली हो बैणा - गोपाल बाबू गोस्वामी ।
10. बिनसरा गाध्यारा ठंड पिडै गो - लोकगीत, गायक अज्ञात ।
11.घुघुति न बासा - गोपाल बाबू गोस्वामी ।
12. लस्का कमर बादा - हीरा सिंह राणा ।
यूं सब गीतों/लोकगीतों कैं लोग आज आपण - आपण हिसाबल , आपणि - आपणि धुन में गां रईं । यूं गीतोंक संगीतकार को छी य
ज्ञात नि है सक । अधिकांश गीतोंक गीतकार और गायक उ ई व्यक्ति छ । मि य दाव नि करि सकन कि य विवरण पूर्ण सत्य छ किलै
कि क्वे लिखित प्रमाण म्यार पास नि पुज । यूं गीतकार और गायकों कैं (कुछ तो 100 वर्ष है लै पुराण गीत ) साधुवाद जनूल
हमरि भाषा कैं समृद्ध बना और आज लै यूं गीत खूब फुफ़ै रईं, लोक में गुजैं रईं। यूं 12 गीतोंक अलावा और लै दर्जनों
लोकप्रिय गीत छीं, उनरि लै चर्चा हुण चैंछ ।
अच्याल लै भौत गीत लोकप्रिय है रई। उदाहरण - थलकी बजारा, त्येरी रंग्याली पिछोड़ी, हाय काकड़ी झीलमा, चंदन ना मेरो,
के मु वै गाड़ी, टक टका कमला आदि आदि । अगर विवरण मिलि जालौ तो भविष्य में यूं गीतों कि चर्चा लै करुल ताकि लोगों
कैं हमार गायकों/गीतकारोंकि जानकारी है सको । क्वे लै गायक या अन्य व्यक्ति य बार में सूचित लै करि सकनी ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.07.2020
मीठी मीठी - 484 : गीतोंक गीतकार/गायक/संगीतकार
हमू कैं गीतों कि कतू जानकारी छ ? कुमाउनी में मुणि लेखी 12 गीत भौत लोकप्रिय छीं । इनार गीतकार/गायक/संगीतकारोंक
प्रामाणिक जानकारी छ तो जरूर बताया -
1. बेडू पाको बारियो मासा...
2. ओ भिना कसिके जानू दोरिहाटा...
3. सर्ग तारा य जुन्याली राता...
4. झन दिया बौज्यू छनाबिलोरी...
5. गोरखिये च्येली भागुली...
6.ओ परूवा बौज्यू चपल के ल्याछा...
7. रूपसा रमोती घुंगुर न बजा छम...
8.पारा वे भिड़ा को छै घस्यारी...
9.कैले बजै मुरुली हो बैणा...
10. बिनसरा गाध्यारा ठंड पिडै गो...
11.घुघुति न बासा...
12. लस्का कमर बादा...
पूरन चन्द्र कांडपाल
18.07.2020
बिरखांत-328 : अन्नदाता कृषक
अन्नदाता की यह गाथा हम सबको जाननी चाहिए क्योंकि उसके परिश्रम पर ही हमारा जीवन निर्भर है । वायु और जल के बाद
मनुष्य को उदर पूर्ति के लिए अन्न और तन ढकने के लिए वस्त्र की मूलभूत आवश्यकता है | यदि ये दोनों वस्तुएं नहीं
होतीं तो शायद मनुष्य का अस्तित्व नहीं होता और यदि होता भी तो वह अकल्पनीय होता |
आज जब हम अन्न और वस्त्र का सेवन करते हैं तो हमारी मन में यह सोच तक नहीं आता कि ये अन्न के दाने हमारे लिए कौन
पैदा कर रहा है, यह तन ढकने के लिए सूत कहां से आ रहा है ? यह सब हमें देता है कृषक |
कृषक वह तपस्वी है जो आठों पहर, हर ऋतु, मौसम, जलवायु को साधकर, हमारे लिए तप करता है, अन्न उगाता है और हमारी भूख
मिटाता है | वह हमारा जीवन दाता है | मानवता ऋणी है उस अन्नदाता कृषक की जो केवल जीये जा रहा है तो औरों के लिए |
अन्न के अम्बार लगा रहा है केवल हमारी उदर-अग्नि को शांत करने के लिए |
कृषक के तप को देखकर अपनी पुस्तक‘स्मृति लहर (2004) में मैंने ‘अन्नदाता कृषक’कविता के शीर्षक से कुछ शब्द पिरोयें
हैं जिसके कुछ छंद देश में डीएवी स्कूल की कक्षा सात की ‘ज्ञान सागर’ पुस्तक से यहां उद्धृत हैं –
पौ फटते ही ज्यों मचाये
विहंग डाल पर शोर,
शीतल मंद बयार जगाती
चल उठ हो गई भोर |
कांधे रख हल चल पड़ा वह
वृषभ सखा संग ले अपने,
जा पहुंचा निज कर्म क्षेत्र में
प्रात: लालिमा से पहले|
परिश्रम मेरा दीन धरम है
मंदिर हें मेरे खलिहान,
पूजा वन्दना खेत हैं मेरे
माटी में पाऊं भगवान् |
तन धरती का बिछौना मेरा
ओढ़नी आकाश है,
अट्टालिका सा सुख पा जाऊं
छप्पर का अवास है|
हलधर तुझे यह पता नहीं है
कार्य तू करता कितना महान,
तन ढकता, पशु- धन देता,
उदर- पूर्ति, फल- पुष्प का दान |
कर्मभूमि के रण में संग हैं
सुत बित बनिता और परिवार,
अन्न की बाल का दर्शन कर
पा जाता तू हर्ष अपार |
मानवता का तू है मसीहा
सबकी भूख मिटाता है,
अवतारी तू इस मही पर
परमेश्वर अन्नदाता है |
कृषक तेरी ऋणी रहेगी
सकल जगत की मानवता,
यदि न बोता अन्न बीज तू,
क्या मानव कहीं टिक पाता ?
जीवन अपना मिटा के देता
है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम,
है अराध्य तू इस जग को |
धन्य है तेरे पञ्च तत्व को
जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू
तुझे नमन शत-शत मेरा |
(हरेला उत्सव की सभी मित्रों को शुभकामना।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.07.2020
खरी खरी - 664 : पूजालाय
मंदिर-मस्जिद वास नहीं मेरा
नहीं मेरा गुरद्वारे वास,
नहीं मैं गिरजाघर का वासी
मैं निराकार सर्वत्र मेरा वास ।
मैं तो तेरे उर में भी हूं
तू अन्यत्र क्यों ढूंढे मुझे,
परहित सोच उपजे जिस हृदय
वह सुबोध भा जाए मुझे ।
काहे जप-तप पाठ करे तू
तू काहे ढूंढे पूजालय,
मैं तेरे सत्कर्म में बंदे
अंतःकरण तेरा देवालय ।
क्यों सूरज को दे जलधार तू
नीर क्यों मूरत देता डार,
अर्पित होता ये तरु पर जो
हित मानव का होता अपार ।
परोपकार निःस्वार्थ करे जो
जनहित लक्ष्य रहे जिसका,
पर पीड़ा सपने नहीं सोचे
जीवन सदा सफल उसका ।
राष्ट्र- प्रेम से ओतप्रोत जो
कर्म को जो पूजा जाने,
सवर्जन सेवी सकल सनेही
महामानव जग उसे माने ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.07.2020
( मेरी पुस्तक 'यादों की कालिका' से)
खरी खरी - 663 : उत्तराखंड में 'बैसि '
उत्तराखंड में सौण (सावन) में कुछ लोग बैसी करनीं | चनरदा बतूरईं, “कुमाउनी में लेखी एक कहानी किताब छ ‘भल करौ
च्यला त्वील’ ( लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल -2009) | य किताब में एक कहानी छ ‘बैसी में ल्हे बद्यल’ |” चनरदा ल कहानि
शुरू करी, “उत्तराखंड में बैसीक मतलब छ बाइस दिन तक गौं कि धुणी में रोज जागर | (जागरक मतलब जां डंगरी (डा. एस एस
बिष्ट ज्यूक अनुसार ‘देव नर्तक’ ) नाचनी और दास (जगरिय) नचूनीं | य दौरान जो लोग बैसी करनीं ऊँ यकोइ खानी और दुकोइ
नानी | नियमक अनुसार बाईस दिन तक भक्ति करनी और आपण घरकि बिलकुल लै बात नि करन | इनार घराक लोग लै इनुहें मिलु हैं
नि ऊंन | बाईस दिन तक यूं दाड़ी लै नि बनून | पर आब समय कैं आग लैगो, य बैसी लै दिखावै कि रैगे |”
चनरदाल कहानि अघिल खसकै, “एक आदिमल मैंकैं आपण गौं कि बैसि कि पुरि कहानि बतै | द्वि डंगरियां कूण पर गौं वाल बैसिक
लिजी मानि गाय | हरेक घर बटि द्वि हजार रुपै मांगी गाय और य लै बतै दे कि जो ज्यादै द्याल भगवान् वीक उतुक्वे ज्यादै
भल करल | जो नि दी सकछी वील लै करज गाड़ि बेर रुपै जम करीं |
उ आदिमल एक दिन कि कहानि बतै, “एक दिन मि धोपरि कै धुणी में आयूं | उता वां सिरफ द्वि डंगरी छी | उनू दिना चौमासि
टिमाटर, कोपी, बीन और सगीमर्च कि फसल है रैछी | गौंक मैंस जैक पास जतू साग-पात हय दनादनी बेचै रौछी | गौं बै द्वि
रुपै - चार रुपैं किलो माल खरीदी बेर पांच-छै गुण ज्यादै कीमत पर माल शहर हूं जां रौछी | मील द्विए डंगरियां हूं हाथ
जोड़ि बेर कौ, “अहो आदेश”| बैसि में भैटियां हूं नमस्कार करणक य ई तरिक छ | उनूल जवाब दे ‘अहो आदेश’| ऊं गेरू धोति
लपेटि बेर आसन बिछै बेर भै रौछी | उनूल मि हूं इशार करनै कौ ‘भैटो भगत’ | ‘जो आदेश’ कौनै मि भै गोयूं | यूं द्विए मि
कैं पच्छाण छी लै | एकैल मि हूं पुछौ, “कतू डाल टिमाटर न्हैगीं और भौ क्ये चलि रौ ? फलाणक कतू न्हैगीं ? अमकाणक कतू
न्हैगीं ? और नईं-ताजि क्ये हैरीं गौं में ? मील उनुकैं सब बता और थ्वाड़ देर भै बेर मि नसि आयूं ?
बैसि में भक्ति करणक त नाम छी, पर इनर ध्यान चौबीस घंट घर-गौं कि तरफ छी | चालिस घरों बै द्वि- द्वि हजार कनै इनूल
अस्सी हजार रुपै इकठ्ठ करीं और राशन, साग, घ्यूं, तेल, फल, इनण, दै, दूद, धूप, बत्ती यूं सब भेट-घाट चड़ाव में ऐ गाय
| आखिरी दिन इनूल भनार करौ | लोग आईं और खै-पी बेर न्है गईं | य ई गौं में उ साल दर्जा दस और बारक इमत्यान में क्वे
लै नान पास नि हय |
अगर गौं वाल हरेक परिवार बै एक्कै हजार रुपै लै इकठ्ठ करि बेर यूं नना लिजी अंगरेजी, गणित और विज्ञानक ट्यूशन धरना
तो यूं सबै नना कि जिन्दगी बनि जानि | गौं में पुस्तकालय हुनौ या एक अखबार हुनौ तो ननाक ज्ञान बढ़न | पर यस सुझाव गौं
में कैक समझ में नि ऐ सकन | येकैं ऊं भल काम नि समझन | बैसि करि बेर डंगरियों क प्रचार हुंछ | उनर रुजगार, रुतवा और
कद बढूं | उनुकैं गौंक ननाक पास-फेल सै के लै मतलब न्हैति |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.07.2020
मीठी मीठी - 483 : ' छिलुक ' उपन्यास - समीक्षा
(समीक्षक - राजू पांडे, बगोटी चंफावत, उत्तराखंड )
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी हिंदी और कुमाउनी भाषा के शीर्ष रचनाकार हैं, हिंदी और कुमाउनी के उनकी कईं पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी हैं, एक कार्यक्रम में दिल्ली में उनसे मुलाकात हुयी, गजब प्रभावशाली और उर्जात्मक ब्यक्तित्व।
मुलाकात के दौरान उन्होंने स्नेह से अपनी एक पुस्तक "छिलुक" (कुमाउनी उपन्यास ) मुझे भेंट दी।
"छिलुक" कुमाउनी भाषा में लिखा गया उपन्यास हैं, जो कई सामाजिक कुरीतियों पर करारा व्यंग करता हैं, उत्तराखंड के
रीती रिवाजों को बहुत सुन्दर तरीके से लोगों के सामने रखता है और उत्तराखंड के लोगों के द्वारा विकास के अभाव में
झेली जा रही कठिनाइयों को बहुत बारीकी से रेखांकित करता हैं।
रिश्तों को कैसे बनाया और जिया जा सकता है इसके लिए कुछ पात्रों को बड़ी कुशलता से गढ़ा गया है, किसान देव, हंसा दत्त,
पुष्पा और हरदत्त के माध्यम से मानवीय जीवन के आदर्शों को स्थापित किया गया हैं, "तुम जवैं लै हया और च्यल लै हया",
ये एक वाक्य रिश्तों की प्रगाढ़ता को नूतन रूप देता है। उपन्यास में बहुत से घटनाक्रम पाठक की आँखों को भिगो देते है,
बेटे (कैलाश) की नौकरी का समाचार और मां का कहना "आज मेरी आँखा कि जोत बढ़ि गे च्यला", छोटे बेटे (हेमू ) को बुआ
पुष्पा के घर पढ़ने भेजने के फैसले पर उसकी मां (सरु) का कहना "यतु नान भौ कैं अल्लै बै बनवास नि करो भै, मि मरि
जूल", पुष्पा का अपने मायके की तारीफ में कहना "म्यार मैतौड़ सबूं है भल" और पुष्पा के पूछने पर कैलाश कहाँ है उसकी
मां का जवाब "दा यफ्नै डोई रौ हुनल कैं" पाठकों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है।
बुबु का अपने परिवार के लिए स्नेह रोमांचित करता है और पाठक को उसके बचपन में ले जाता है, "बुबु तुमार खलेति में बै
एक टॉफी निकाई ल्यूं " और "जा नतिया आपणी पाटि-दवात ल्या" जैसे वाक्य कथानक को सजीव कर देते हैं।
काण्डपाल जी ने पहाड़ों की सबसे बड़ी समस्या "शराब" और उसके दुस्प्रभाओं को कथानक और पात्रों के माध्यम से लोगों तक
पहुंचाने का कार्य किया है, "कतू बोतल ल्यैह रौछे रै मधिया?" और "ऐ गछा सालो आपणी औकात पर" शराबियों की मानसिकता को
दर्शाया है दूसरी तरफ शराबी पति से परेशान महिला द्वारा शराब बैचने वाले को "हौ नरुवै कि कूड़ि कैं आग लै जाल" गाली
देना उसकी पीड़ा को प्रदर्शित करता है, शराब की लत से अपनी अच्छी जिंदगी लोग तबाह कर रहे है।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी ने बड़ी कुशलता के साथ इस रचना के माध्यम से शिक्षा की महत्वा को उजाकर किया है, किसन देव्
द्वारा अपनी बहू को पढ़ने के लिए प्रेरित करना उत्तराखंड समाज की एक सभ्य तस्वीर दिखाने और शिक्षा के प्रचार का
बेहतरीन तरीका जान पड़ता है, "पढ़ी लिखी काम औछ, कभै ख्वाड नि जान" और "बाज्यू शिक्षा यसि चीज छ जैकै कवै चोरी नि सकन,
जैक बटवार नि है सकन" जैसे वाक्य रचना को दूसरा आयाम दे रहे हैं।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी बड़ी निर्भीकता से सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का विरोध करते हैं, "छिलुक" में भी उन्होंने
सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार किया है और बताने का प्रयास किया है की शिक्षा के द्वारा बेहतर जीवन यापन
किया जा सकता है, एक प्रसंग में पंडित जी कहते है "जतू दान बामण कै दयला उ सिद स्वर्ग में तुमरि घरवाई क पास पुजौल",
एक दूसरे प्रसंग में हंसा दत्त, किसन देव को मजाक में कहते है "ठीक हौय पै तू बन भोव बै डंगरी और मी करनू
बामणचारी"।
सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के विरोध के साथ महिला सशक्तिकरण को सफल बनाने की अपनी भावनाओं को काण्डपाल जी ने
बखूबी निभाया है, वो "मुंडन और गत करण क विधान शास्त्र में केवल च्यला कैं छ" के जवाब में लिखते हैं "शास्त्र लेखणी
मैंस छी। उनुल क्ये लै बात स्वैणियां है पूछि बेर नि लेखि"
काण्डपाल जी ने उत्तरांचल की पीड़ाओं को कुशल शिल्पी की तरह अक्षर चित्रों से पाठकों के ह्रदय पटल पर उकेर दिया
है।
पूरन चन्द्र काण्डपाल जी को इस सुन्दर रचना "छिलुक" के लिए असीम शुभकमनाएं, उम्मीद है आपके द्वारा जलाया गया यह
"छिलुक" अपनी रोशनी से बहुत से लोगों को सदमार्ग दिखायेगा ।
~ राजू पाण्डेय
बगोटी - चम्पावत (उत्तराखंड)
यमुनाविहार (दिल्ली)
(पाण्डेय ज्यूक सादर आभार - पूरन चन्द्र कांडपाल, 13.07.2020 )
मीठी मीठी - 480 : गीत, गीतकार, गायक और संगीतकार
अक्सर सांस्कृतिक मंचों/समारोहों में हम कएक कुमाउनी गीत सुणनू । गायक गीत गानी , कलाकार नाचनी और द्विए पारिश्रमिक
पानी जो भलि बात छ पर लोगों कैं पत्त नि हुन कि य अमुक गीतक गीतकार, गायक और संगीतकार को छ/छी । उदाहरणक लिजी ' बेडू
पाको बारामासा ' ( जबकि सही छ ' बारियो मासा ' किलै कि बेडू बारों महैण नि पाकन ) गीत भौत लोकप्रिय छ । मील वर्ष
2012 में आपणि किताब 'उज्याव ' ( उत्तराखंड सामान्य ज्ञान - कुमाउनी में ) में य गीतक लेखक बृजेन्द्र लाल साह और
गायक मोहन उप्रेती लेखि रौछ । य जानकारी मील लोगों हैं पुछि बेर जुटै। कुछ लोगोंल येक लेखक कैं गलत बता और येकैं लोक
बटि चलायमान गीत बता ।
मि सबै जानकारों हैं अनुरोध करनू कि कुमाउनीक लोकप्रिय (सुपरहिट) गीत जनरि आपूं कैं जानकारी छ कृपया उ गीतक मुखड़,
गीतकार, गायक और संगीतकारक नाम बतूणक कष्ट जरूर करिया ताकि हमरि भाषा कैं ज्यौंन धरणी यूं मनीषियोंक बार में हम सब
जाणि सकूं । जानकारी प्रमाणिक (सत्य ) हुण चैंछ । वर्तमान में गीत गाणी सबै गायकों हैं लै निवेदन छ कि कृपया गीत गाण
है पैली वीकि चर्चा जरूर करिया । यस कराला तो तुमुकैं ज्यादा सम्मान मिलल और उ व्यक्ति लै गुमनाम नि रवा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
09.07.2020
बिरखांत – 326 : बेडू पाको ‘बारा मासा’ नहीं ‘बारियो मासा’
कुमाउनी में गाया जाने वाला सुप्रसिद्ध गीत ‘बेडू पाको’ बारा मासा नहीं बल्कि ‘बारियो मासा’ है | इस बात का रहस्य
मुझे नवम्बर 2014 में कुमाउनी भाषा सम्मलेन अल्मोड़ा में तब हुआ जब एक साहित्यकार (नाम विस्मृत) ने मुझे मेरि पुस्तक
‘उज्याव’ (उत्तराखंड सामान्य ज्ञान, कुमाउनी में) के पृष्ठ 28 पर छपी पंक्तियों पर विमर्श किया | मैंने ‘उज्याव’ में
लिखा है “बेडू पाको के रचियता ब्रजेन्द्र लाल शाह और गायक मोहन उप्रेती हैं|” वे बोले, “ आपने बहुत अच्छी किताब लिखी
है और शायद यह इस प्रकार की पहली किताब है | जो पढ़ेगा उसे बहुत कुछ मिलेगा इस पुस्तक में | परन्तु आपके ‘बेडू पाको’
गीत पर में इत्तफाक नहीं रखता | यह एक लोक ग़ीत है और लोक में चलते आया है | पता नहीं कब और किसने लिखा और पहली बार
किसने गाया ?
लोक गीत पर कब्जा करना ठीक नहीं |” उन्होंने एक पुस्तक के पृष्ठ दिखाते हुए पुन: कहा, ”महाराज जी यह ‘बेडू पाको बारा
मासा’ नहीं बल्कि बारा मासा की जगह ‘बारियो मासा’ है |” मैंने पुस्तक का अनुच्छेद पढ़ा | कुछ इस तरह लिखा था, “बेडू
बारह महीने नहीं पकता | लोग इस गीत को गलत गा रहे हैं | बेडू भादो महीने में पकता है जिसे ‘बारिय’, ‘बारियो’ या
‘काला’ महीना कहते हैं |” ‘बारिय’, या ‘बारि’ का अर्थ है ‘मना’ या ‘बंद’ | जैसे ‘उसने लहसुन-प्याज ‘बारि’ रखा है,
ब्वारि ल भौ लिजी मर्च-खुश्याणी, खट-मिठ ‘बारि’ रौछ’ (बहू ने बच्चे की वजह से मिर्च, खट्टा-मीठा खाना बंद कर रखा
है)| भादो महीने को काला या ‘बारिय’ महीना मानने के कारण लोग इस माह कोई शुभ कार्य भी नहीं करते थे| नव-विवाहिता को
भादो महीने में मायके भेजा दिया जाता था |
आषाड़-सावन में गुड़ाई पूरी हो जाने के कारण भादो में कुटला (कुटौव) ‘बारि’ दिया जाता था अर्थात कसि -कुटव पर महिलाएं
हाथ नहीं लगाती थीं | भादो में फसल गबार (पूर्ण जवानी) आने से खेतों में जाने की मनाही होती थी | अत: यह बात मुझे
स्पष्ट उचित लगती है कि यह गीत ‘बारियो मासा’ गाया जाना चाहिए क्योंकि भादो एक ‘बारिय’ महीना है | हम सब जानते हैं
कि बेडू बारहों महीने नहीं पकता, केवल भादो (अगस्त-सितम्बर) ‘बारिय’ महीने में ही पकता है |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.07.2020
खरी खरी - 661 जिंदगी क हाल
जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव,
कभैं अन्यार औंछ येमें
कभैं छ उज्याव ।
सुख दुखा बादल येमें
आते जाते रौनी,
सिद बाट कम येमें
टयाण ज्यादै औंनी ।
कभैं यां तुस्यार जौ लागूं
कभैं तात मुछ्याव ।
जिन्दगी...
कैं खुशी का नौव येमें
कैं दुख कि गाड़,
कैं छ गुलाब- हांजरी
कैं कना कि बाड़ ।
कैं सुखी गध्यार येमें
कैं पाणी का पन्याव ।
जिन्दगी...
जिन्दगी क म्यल मजी
मैंस कसा कसा,
गिरगिट जौस रंग देखूनी
आँसु मगर जसा ।
कैं भुकणी कुकुर येमें
कैं घुरघुरू बिराउ ।
जिन्दगी...
जिन्दगी में औनै रनी
रस कसा कसा,
कैं कड़ुवा नीम करयाला
कैं मिठ बत्यासा ।
कैं खट्ट अंगूर येमें
कैं मिठ हिसाउ ।
जिन्दगी...
कैहुणी नागफणी येमें
कैहुणी क्वैराव,
कैहुणी लंगण छीं यां
कैहुणी रैंसाव ।
कैहुणी यौ मिठी शलगम
कैं क्वकैल पिनाउ ।
जिन्दगी...
कैहुणी किरमाडू छ य
कैहुणी कांफोव,
कैहुणी बगिच कैहूणी
घनघोर जंगोव ।
कैहुणी धान कि बालड़ि
कैहुणी पराव ।
जिन्दगी...
कैहुणी छ झोल येमें
कैहुणी गुलाल,
क्वे उडूँ रौ मुफत की
कैक हूं रौ हलाल ।
क्वे मानछ धान ख़्वारम
क्वे लगूं दन्याव ।
जिन्दगी...
उकाव -होराव मजी
सब छीं रिटनै,
कैं दगड़ी मिलि जानी
हिटनै - हिटनै ।
जै पर यकीन करौ
वील करौ छलाव ।
जिन्दगी...
के तू यां लि बेर आछै
के तू यां बै लि जलै
के ट्वील यां कमा
सब यां ई छोडि जलै।
तेरि नेकी बदी कौ
रै जालौ लिखाव ।
जिंदगी...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.07.2020
खरी खरी - 660 : गुरुजन स्मरण दिवस
05 जुलाई 2020 को गुरुपूर्णिमा के अवसर पर कई लोगों ने अपने गुरुजनों का स्मरण किया और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की
। फेसबुक-व्हाट्सएप - सोसल मीडिया में चित्र- फोटो का खूब आदान-प्रदान हुआ, कट- पेस्ट का अनंत ज्ञान भी बहा और जिसे
जो अच्छा लगा उसने वह किया ।
इस बात पर भी मंथन होना चाहिए कि हमने उन गुरुजनों को कितना याद किया जिन्होंने हमें कलम-कमेट के साथ पाटी- तख्ती का
परिचय कराते हुए अक्षर ज्ञान दिया, गिनती- पहाड़े और प्रार्थना सिखाई । हम में से कई तो उनका नाम भी भूल गए होंगे ।
हमें उनका हमेशा स्मरण करना चाहिए और उनसे मिलने के अवसर ढूंढने चाहिए । वे तो सोसल मीडिया में भी नहीं होंगे
।
जिस विद्यालय की शिक्षा के पायदानों पर चलकर आज हम जहां भी पहुंचे हैं वहां से हम उस विद्यालय को याद कर सकते हैं और
किसी न किसी बहाने उससे जुड़ने का प्रयास कर सकते हैं । मां हमारी सबसे प्रथम गुरु है । उससे बड़ा गुरु कोई नहीं ।
अन्य गुर सब बाद के हैं । सभी गुरुजनों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम ।
(आज अनलौक.2 का 6ठा दिन । विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 1.15 करोड़+/5.36+लाख और देश में
6.97+लाख/19.65+हजार हो गई है । मास्क ठीक तरह से पहनें, देहदूरी रखें, हाथ साबुन से धोते रहें, भीड़ से बचें, अपना
बचाव करें और कर्मवीरों का आभार प्रकट करें । इस संक्रमण को गंभीरता से समझें ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.07.2020
खरी खरी - 659 : भूलो नहीं शहीदों को
भूलों नहीं शहीदों को
उन्हें दिल में बिठाओ,
लौट के घर नहीं आये
यह इतिहास गिनाओ,
यह इतिहास गिनाओ
कर दिए प्राण न्यौछावर,
चढ़े भेंट कर्तव्य पथ
सिर कफ़न बांध कर,
कह 'पूरन' हो विनम्र
शहीद- चिता को छूलो,
परिजन शहीद रहे स्मरण
निज कर्तव्य न भूलो ।
( हम अपनी सेना के उन 20 अमर शहीदों को पुनः विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जो 15 और 16 जून 2020 की
रात को सीमा पर देश के लिए बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.07.2020
मीठी मीठी - 479 : संस्कारम (पिता और बच्चे)
सामाजिक मूल्यों की पारिवारिक मासिक पत्रिका "संस्कारम " जो अब 12वें वर्ष में प्रवेश कर गई है, मेरे पास हर महीने
पहुंचती है । संपादक आदरणीय ईश्वर दयाल जी और सह - संपादक आशा सोलंकी जी का धन्यवाद और आभार जो यदा- कदा मेरे शब्दों
को भी पत्रिका में स्थान देते हैं । इस बार ' घर - परिवार ' कालम में मेरा लेख ' पिता और बच्चे ' ( पुस्तक ' बचपन की
बुनियाद' से ) स्थान पाया हुआ है । पत्रिका में सभी सामग्री पठनीय एवम् रोचक है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
04.07.2020
खरी खरी - 658 : शराब करती है विनाश !
जग जाहिर है जो किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते वे वास्तव में उत्तम लोग हैं । आप अपने मित्र, परिवार, संबंधी,
सहकर्मी को भी जनजागृति कर अपनी कैटेगरी में शामिल करें । किसी भी प्रकार का नशा करने वाला समाज को हानि पहुंचाता है
। देखा गया है कि बलात्कार सहित अन्य अपराध करने वाला कोई न कोई नशा करता रहा है ।
कुछ वर्ष पहले जब तबादला होकर नए स्थान पर गया तो सायँ 5 बजे एक सहकर्मी पास आकर कान पर कहने लगा, "आपसी
कंट्रीब्यूसन से कभी कभी व्हिस्की मंगाते हैं, सौ रुपए निकाल ।" मैंने मना किया तो वह बोला, "अबे कंगले स्टाफ में
मिलकर रहना पड़ता है । निकाल सौ रुपये ।" मैंने सौ रुपये दे दिए परन्तु चुपचाप घर को चला आया । दूसरे दिन सुबह उसने
सौ का नोट मेरे मुंह पर मारते हुए कहा, "हमें भिखारी समझता है । कोई मुसीबत आएगी तो हम ही काम आएंगे तेरे ।" यह बंदा
यों ही उटपटांग बोलने में माहिर था और जो मन आई सो बोल कर चला गया । स्टाफ का मामला था, मैं चुप रहा ।
मैंने कोई बहस नहीं की । मुझे किसी भी शराब पीने वाले से कोई नफरत नहीं है । शराब पीने के बाद यदि पता चल रहा है कि
उसने शराब पी है, वह समाज -परिवार का अहित कर रहा है तो वह शराबी है । वैसे शराब सहित सभी प्रकार का नशा मानव के लिए
100 % दुःखदायी, खतरनाक और अंततः आत्मघाती है । मैं जानता हूँ कई ऑफिसों में 5 बजे के बाद खूब शराब पार्टी होती है
जिसे बॉस का संरक्षण होता है ।
उपन्यास "छिलुक" में इसका पूर्ण विवरण है । मैं अंतिम दिन तक शराब पार्टी में शामिल न होने के कारण पता नहीं क्या
क्या अपने सहकर्मियों के मुख से सुनता रहा, यहां बता नहीं सकता । स्मरण रहे शराब सहित सभी नशे ले डूबते हैं । इसलिए
डरिये मत, शराब से बच कर रहिये और शराबियों से भी । मैंने अपने काम से अपने शराबी सहकर्मियों का दिल जीता और उनसे
सम्मान पाया जिसका आभाष मुझे तब होता था जब वे नहीं पीए हुए होते थे ।
इस साल कोरोना के दौर में शराबियों ने शराब की दुकानें खुलने पर जो हरकत करी उसे इतिहास भी नहीं भुला पाएगा ।
इन्होंने संक्रमण रोकने के सभी निर्देश ताक पर रख दिए और बेकाबू होकर उन्मुक्त हाथी की तरह भड़कने लगे । शराब की
कीमत बढ़ाई गई, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा । क्या शराब इसी तरह की गैर जिम्मेदार हरकत करने के लिए थी ? उस दिन एक
आश्चर्य यह भी हुआ कि लौकडाउन से कई लोगों के पास नौकरी नहीं थी, वेतन भी नहीं मिला था परन्तु शराब के लिए नकद राशि
कहां से आई होगी ? 05 मई 2020 को मैंने खरी - खरी 622 इसी मुद्दे पर लिखी थी । शराब की उस खरी - खरी का एक अंश यहां
प्रस्तुत है -
"कल 04 मई 2020 को लौकडाउन के 41/54वें दिन देश में सुबह 10 बजे शराब से ठेके खुलने का ऐलान हुआ । ठेकों पर सुबह 7
बजे से ही लंबी कतारें देख आश्चर्य नहीं हुआ । रात 10 बजे तक करोड़ों कि शराब बिक गई । कोराना को ठैंगा दिखाकर
दारूबाजों ने खुल्लम खुल्ला लौकडाउन की खिल्ली उड़ा दी । कई जगह पुलिस की बेवडों को कंट्रोल करने के लिए लाठी चार्ज
करना पड़ा । शराब की तड़प में शराबियों को यह भी याद नहीं रहा कि वे स्वयं और अपने परिवार को जोखिम में डाल रहे हैं
। देश में कई जगह अपने घर जाने वाले मजदूरों का सब्र बांध भी टूटा और उन्होंने ने भी लौकडाउन की जमकर खिल्ली उड़ाई ।
ऐसे में विगत 40 दिनों के लौकडाउन को इन सबने मुंह चिढ़ाते हुए ठैंगा दिखा दिया । दारू के ठेके खोलने से पहले या
मजदूरों को कोई रियायत देने से पहले पुलिस का प्रबंधन सिथिल पड़ गया जिसने उन लोगों को निराश किया को पूर्ण ईमानदारी
से घर बैठ कर लौकडाउन का पालन कर रहे हैं ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.07.2020
बिरखांत – 324 : ‘छुटिगो पहाड़’ का विलाप क्यों ?
कुछ कुमाउनी-गढ़वाली गीत मुझे यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि इनमें ‘छुटिगो पहाड़’ (पहाड़ छूट गया), ‘बिछुडिगो पहाड़’
(पहाड़ बिछुड़ गया) जैसे विरह-विलाप के शब्द क्यों होते हैं ? ऐसा सोचने या कहने की जरूरत क्या है ? हम जो भी पहाड़
(अपने क्षेत्र) से दूर हैं, अपनी मर्जी से हैं | हमने पहाड़ छोड़ा भी अपनी मर्जी से | हमें किसी ने भगाया नहीं, किसी
ने निकाला नहीं, किसी ने हमें खदेड़ा भी नहीं, किसी ने ऐसी हरकत भी नहीं की जो हम पहाड़ छोड़ने पर मजबूर हो गए | हमें
किसी ने विस्थापित भी नहीं किया, ( टिहरी को छोड़ कर ) | दिल्ली सहित देश के मैदानी भागों में उत्तराखंडियों की आवादी
लाखों में है | हम प्रवासी भी नहीं हैं, अपने देश में कहीं पर भी रहने पर उसे प्रवासी नहीं कहते | प्रवासी तो वे
होते हैं जो दूसरे देश से आते हैं जैसे साइबेरिया से प्रवासी पक्षी आते हैं |
यह सत्य है यदि प्रत्येक उत्तराखंडी को राज्य में रोजी-रोटी-रोजगार मिलता या वर्षा आधारित कृषि नहीं होती तो वह
मैदानी क्षेत्रों की तरफ खानाबदोष बन कर पलायन नहीं करता | वैसे बौद्धिक पलायन तो सभी को स्वीकार्य है | हम जो भी
पहली बार अपने क्षेत्र से आए हमने अपने लिए रोजगार ढूंढा | कुछ वर्ष बीतने के बाद पत्नी संग आई | बच्चे हुए, उन्हें
पढ़ाया और उनके लिए भी यहां रोजगार ढूंढा, दामाद या बान भी ढूंढी | वक्त बीतते गया और हम तीसरी-चौथी पीढ़ी में आ गए |
न्योते-पट्टे, दुःख-सुख और भैम (भ्रम-अंधविश्वास) पूजने हेतु पहाड़ आना-जाना लगा रहा | कुछ लोग कहते हैं कि
सेवा-निवृति होने के बाद पहाड़ वापस जाना चाहिए | परिवार के दो फाड़ कौन चाहेगा ?
पहाड़ में जीवन पहले ही जैसा है | बुनियादी सुविधायें भी नहीं हैं | ( बी पी एल कार्ड ही जीवन का लक्ष्य नहीं होना
चाहिए | ) उम्र गुजरने के बाद क्या कोई पत्नी पुनः दातुली-कुटली चला सकती है ? वह ज़माना चला गया जब बाल-विवाह कर
छोटी सी दुल्हन घर में मां-बाप की सेवा कि लिए छोड़ कर लड़का चला जाता था | आज पूर्ण यौवन में विवाह बंधन होता है |
कुछ सासू जी जरूर कहेंगी कि बहू उनकी सेवा में गांव में रहे परन्तु बेटी दामाद के संग रहे | विवाह के बाद पत्नी को
तो पति के साथ रहना ही चाहिए | मजबूरी के सिवाय कौन पत्नी चाहेगी कि वह पति से दूर रहे और गोपाल बाबू गोस्वामी के
विरही गीत (घुघूती न बासा..) गुनगुना कर आंसू टपकाए ?
अत: जिसे पहाड़ जाना है जाए, उसे रोक कौन रहा है ? हम विदेश में नहीं हैं | भारत में हैं, भारत हमारी जन्मभूमि है, जी
हां भारत माता | हम भारत में कहीं भी रहें उस थाती से प्यार करें परन्तु अपनी भाषा- इतिहास- सामाजिकता और सांस्कृतिक
विरासत को न भूलें, आते- जाते रहें, जुड़ाव रखें क्योंकि यह उत्तराखंड की पहचान है अन्यथा हमें उत्तराखंडी कोई नहीं
कहेगा | संकीर्णता छोडें, अपने को भारतवासी समझें और ‘छुटिगो पहाड़’ जैसे विरह-विलाप न करें | यदि इसके बाद भी विरह
है तो फिर मसमसाएं नहीं, मणमणाट -गणगणाट न लगाएं, पहाड़ जाने की तैयारी करें | मेरे शब्दों का यह अर्थ न निकालें कि
मैं किसी से पहाड़ जाने के लिए मना कर रहा हूं | जय भारत, जय उत्तराखंड |
( देश में कोरोना संक्रमण चरम पर है । अपना ख्याल रखें । देश में कई कर्मवीरों सहित 17 हजार+ से अधिक इस महामारी के
ग्रास बन चुके हैं । बचाव ही एकमात्र उपाय ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.07.2020
बिरखांत - 324 : कैक रांछ कांथ में ध्यान ?
हमार ‘चनरदा’ यूं पंक्तियोंक लेखकक एक भौत पुराण जाणी- पछ्याणी किरदार छ | इनर नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त,
चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ लै है सकूं
पर लोग उनुहें चनरदा ई कूंनी | चनरदा मसमसाणक बजाय गिच खोलनीं, कडुआहट में मिठास घोउनीं, बलाण है पैली
भली-भांत तोलनीं और सच- झूठकि परख लै करनी | म्येरि कएक रचनाओं में चनरदा कतू ता ऐ गईं | आज ऊँ एक काथ सुणि
बेर ऐ रईं |
राम- रमो क बाद मील चनरदा हूं पुछौ, “भौत दिनों में नजर आछा चनरदा आज, लागें रौ कैं दूर जै रौछिया और वै रमि
गछा ?” “कां जनूं यार, याइं छी | राजकपूर कै गो, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ काथक न्यौत
खै बेर ऊं रयूं | सत्यनारायण ज्यू कि काथ छी एक मितुर क घर”, चनरदाल मुलमुलै बेर कौ | “अच्छा काथक ताज
ज्ञानल सराबोर है रौछा, तबै भौत खुशि नजर ऊं रौछा,” मील मजाक करी | “तुम जे समझो यार, क्वे ताज ज्ञान वालि
बात नि हइ | वर्षों बटि सुणते ऊं रयूं, बस एकै ज्ञान हय- लालचल वशीभूत है बेर पुजक संकल्प करो, बामणों कैं
भोजन खाण खवौ, संकल्प नि निभाला तो उ व्यौपारीक चार बेक़सूर दुख पाला...आदि | काथक बहानै ल इष्ट- मितुरों दगै
भेट है जींछ और ‘वील काथ करै’ क प्रचार त है ई जांछ |”
“काथ छी तो ब्राहमण और बाबा त आयै हुनाल, उनुकैं खउण –पेउण में पुण्य मिलनेर हय बल | जजमानक दगाड़ सुणणियांल
पुण्य कमा हुनल”, मील सवाल उठा | चनरदा सहमत नि हाय और झट बलाईं, “काथ सुणणी त छी पर कैक ध्यान काथ में नि
छी | यास में पंडिज्यू लै टोटल पुर करैं रौछी | ‘जसी तेरी जाग्द्यो उसी म्येरि भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देखि
मील सुणणियां हैं हाथ जोड़नै कौ, “ देखो काथ ध्यानल सुणो, कथाक आखिर में पांच सवाल पुछी जाल | जो सही उत्तर
द्यल उकैं हर सही उत्तर पर बीस रुपैक इनाम दिई जाल | मील दस-दसाक दस नौट थान में धरि देईं | कुछ कम शोरक साथ
काथ चलते रै |
काथ पुरि होते ही आरती है पैली मील सुणणियां हैं पांच साधारण सवाल पुछीं –‘लीलावती और कलावती को छी, सूत जी
को छी, सदानंद को छी, को ऋषियोंल को जाग पर सूत ज्यू हैं बात पुछी और बर को नगरक छी ?’ हैरानी तब है जब एक
लै सवालक उत्तर ठीक नि मिल | स्पष्ट है गोछी कि कैक लै ध्यान काथ में नि छी | पंडिज्यू हैं सवाल नि पुछ ताकि
व्यास गद्दीक सम्मान बनी रौ और पंडिज्यूल लै खुद उत्तर दीण कि क्वे पहल नि करि | सौ रुपै कि जमा राशि तत्काल
पंडिज्यूक सुपुर्द करि दी |”
चनरदा अघिल बतूनै गईं, "मिकैं कैकि आस्था- श्रधा पर के कूण न्हैति, मी त अंधश्रद्धा या अंधविश्वासक विरोध
करनू | काथ में क्वे गरीब कैं भोजन करूण या कर्म करण कि चर्चा कैं लै न्हैति | बामणों कैं भोजन करूणल और पुज
करणल पुण्य और वांच्छित फल मिलण कि चर्चा कतू ता छ | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करणक संदेश जबकि ‘य
काथ’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल बामण कैं भोजन करूणल पुण्य प्राप्तिक द्वार बताई रौछ |
अंत में एक लौंडल सवाल पुछौ, “य काथ में पुज करण कि बात कतू ता बतायी गे, काथ करण कि बात लै कई गे पर
सत्यनारायण कि काथ के छी य त बतैयै ना ?” चनरदा बलाय, “उ लौंड क सवाल मिकैं ठीक लागौ जैक जबाब आज लै नि मिलि
रय | आखिर काथ के छी जैकैं नि करण ल कएक लोगों कैं सजा भुगतण पड़ी ? य काथ कैं ‘कथा’ कि जागि पर ‘पुज’ कूंण
ठीक रौल | काथक आरम्भ है पैली एक डाव - बोट जरूर रोपण चैंछ । अंत में एक बात य लै कचोटीं -
काथ - पुराण म भजन कीर्तन म
क्वे लै नि कै सकन शराब नि पियो तुम
आस्था कम हैगे चरणामृत प्रसादम
ध्यान न्हैगो सबूंक बोतल खोजणम ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.06.2020
खरी खरी -656 : बारात - न्यूतेर में लवली पैग
कुछ मित्रों ने बताया कि महिलाएं भी शराब पी रहीं हैं । हां पी रहीं हैं परंतु ये आम महिला नहीं हैं, खास हैं
। कहना चाहूंगा कि कुछ पति 2 बड़े पैग (120 ml) लेते हैं और एक छोटा पैग (30 ml) पत्नी को देते हैं ताकि ठंडक
बनी रहे । रत्याई के दिन एक बोतल काखी- ठुलिज को दे जाने वाला ठैरा दूल्हा क्योंकि वे जबरजस्ती मांगने वाले
ठैरे । ऎसा कहीं-कहीं ठैरा, सब जगह नहीं होने वाला ठैरा ।
इसी तरह आपसी एडजस्टमेंट से पार्टी-क्लब में भी होने वाला ठैरा । कुछ भी हो, शराब के लिए मेरे दिल में कोई
सॉफ्ट कॉर्नर नहीं है । होली, दिवाली, त्यार-ब्यार, जन्मदिन- सालगिरह, न्यूतेर, शादी आदि, कहीं भी शराब नहीं
होनी चाहिए । पहले 1 पैग, फिर 2 पैग, फिर पैग में पैग, फिर लवली पैग, फिर झगड़ा, फिर खतरनाक झगड़ा, फिर होश
आने पर बोलचाल बन्द । अनंत कथा ठैरी शराब की...
अब जहां दिन की शादी हो रही है वहाँ से रत्याई लुप्त ठैरी । दिन की शादी में कुछ को छोड़कर बाकी सभी
घरेतिए-बरेतिए लेने वाले ठैरे थोड़ा थोड़ा । मुफ्त में भी भतीजा- भांजा- साला, चाचा- मामा- जीजा को देने वाले
ठैरे । फिर बारात देर से पहुँचने वाली ठैरी । फिर रात का आठ घंटे में होने वाला ब्या दिन में शराबियों की
वजह से आधे घंटे में निपटाना ठैरा । ये टैम भी वीडियो वाले ले लेने वाले ठैरे । सब पिरोगराम गड्डमगड्ड हो
जाने वाला ठैरा । शायद कई मितुरों ने भी यदा कदा ऐसा देखा होगा । ये हुई अंगूर की बेटी की महिमा । इससे
प्यार न हो तो अच्छा, ये दूर रहे तो बढ़िया ।
(कोरोना संक्रमण के दौरान जब लौकडाउन के बाद शराब की दुकानें खुली तो लोग देह दूरी, मास्क, भीड़,
सेनिटाइजर,सब भूल गए, सिर्फ दारू याद रही । इस तरह संक्रमण बढ़ाने में इनका भी योगदान रहा ही होगा । आज देश
में साढ़े 5 लाख से अधिक केस हो गए हैं और साढ़े 16 हजार से अधिक कोरोना के ग्रास हो गए हैं । भलेहे ही इस
दौर में शादियां ठप्प हैं परन्तु पैग कम नहीं हुए । अपना ख्याल रखें और पैग से दूर रहें ।)
"जो लोग डूबे हैं शराबों में
कभी न उभर सकेंगे जिंदगानी में,
लाखों की क्या कहने
करोड़ों बह गए इस बोतल के
बंद पानी में ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.06.2020
खरी खरी - 655 : पेट बड़ना बहुत खतरनाक
आम तौर पर हमारे समाज में तौंदूमल उस आदमी को कहते हैं जिसका पेट निकला हो या बड़ा दिखाई दे । इसी तरह मोटापा ग्रसित
महिला (गर्भवती नहीं) को उसकी सहेलियाँ मोटी भैंस कहतीं हैं । ऐसे ही एक तौंदूमल पति से पत्नी बोली-
पत्नी : कितने मोटे हो गए हो?
पति : तुम भी तो मोटी हो गई हो ।
पत्नी: मैं तो माँ बनने वाली हूँ ।
पति : मैं भी तो पिता बनने वाला हूँ ।
सच्चाई यह है कि तोंदूमल जी को अपना पेट नजर नहीं आया और न इसे उन्होंने कभी गंभीरता से लिया । किसी भी व्यक्ति का
पेट बड़ना बहुत खतरनाक है । इसके कई कारणों में एक कारण है फैटी लीवर अर्थात लीवर (कलेजा) पर फैट (बसा) की पर्त चढ़
जाना । लीवर का मुख्य काम है पित्त के साथ मिलकर बसा का पाचन करना और इसे रक्त-संचार से शरीर की मांशपेशियों तक
पहुँचाना । यदि लीवर में बसा चढ़ गया तो लीवर के सभी कार्य अवरुद्ध हो जाएंगे । फैटी लीवर होने के कई कारण हैं जैसे
शराब की अधिकता, बसायुक्त अधिक भोजन का उपभोग, व्यायाम -सैर की कमी, भोजन अनुशासन की कमी आदि ।
अतः स्वस्थ रहना है तो उक्त बातों का ध्यान रखना पड़ेगा अन्यथा तौंदूमल जी एक न एक दिन अपने नाजुक कलेजे को जख्म देते
हुए दिल और गुर्दे की बीमारी के शिकार भी हो सकते हैं । स्त्री-पुरुष या बच्चे सभी को मोटापे से स्वयं को बचाने का
एकमात्र उपाय है अपने पर नजर रखना, अपना वजन देखते रहना, कमर की मोटाई नापते रहना । यदि आप ऐसा कर पाए तो जिंदगी का
सुहाना सफर आपको गुदगुदाते रहेगा । यह सब हम कर सकते हैं क्योंकि इसके लिए हम किसी पर आश्रित नहीं हैं । तो उठिए और
एकबार आईने में अपने को देखिए । (कृपया पुरुष कमर से ऊपर के वस्त्र उतार कर शीशे के सामने खड़े हों।) यदि पेट प्रश्न
खड़ा करेगा तो उत्तर आप स्वयं ढूंढ लेंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2020
बिरखांत-323 : कैसे कहूं दर्द नहीं है ?
(आज से 4 साल पहले पहाड़ में जो देखा उससे दिल में दर्द और आंखों में नमी छा गई जिसे 2016 के मई महीने में लेखनी ने
प्रकट कर दिया । क्या इन 4 वर्षों में कुछ बदलाव आया, यह तो आप ही जानें ?)
मई 2016 का एक दिन । पहले की ही तरह इस बार भी न पहाड़ में ठंडी हवा मिली और न ठंडा पानी | पहाड़ों के दर्शन भी नहीं
हुए | प्रत्येक वर्ष की तरह, इस बार भी पहाड़ के जंगलों में भीषण आग से भारी क्षति हुयी थी | धुएं की घनी परत
काठगोदाम से ही नजर आने लगी थी | पहाड़ों की ऊँची चोटियों से भी चारों और धुँआ ही दिखाई दे रहा था | लोगों ने बताया,
‘इस बार भयंकर आग लगी या लगाई गयी | धुंए में धूल के कणों के मिल जाने से घना कोहरा बन गया है | यह धुंध तभी हटेगी
जब पहाड़ों के बीच तेज हवा के साथ लगातार बारिश होगी |’ जंगलों को निकट से देखा तो घास और छोटे-छोटे पौधे तथा
जड़ी-बूटियाँ जल चुकी थी | राख और कालख के ऊपर पीरुल (चीड़ की सूखी पत्तियां) के पर्त जम चुकी थी | चीड़ के अधजले पेड़
बता रहे थे कि यह एक साधारण आग नहीं बल्कि दावानल था | ‘पहाड़ में हर साल आग क्यों लगती है या क्यों लगाई जाती है और
आग बुझाने में देरी क्यों की जाती है?’ ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं |
पेयजल की कमी से लगभग सभी गाँव त्रस्त थे | जिन जलस्त्रोतों को नलूँ द्वारा गांवों से जोड़ा गया था वे सूख चुके थे |
चीड़ के जंगलों को इसका जिम्मेदार बताया जा रहा है | लोग मीलों दूर से पीने का पानी लाने में व्यस्त थे | सुबह से
सांय तक पानी की ही बात | पानी के अभाव में मौसमी साग- सब्जी की पौध रोपाई की प्रतीक्षा कर रही थी | विद्युत पूर्ती
में भी एकरूपता नहीं थी | यह बात अलग है कि उत्तराखंड से अन्य राज्यों में विद्युत् आपूर्ति की जाती है | रोजगार के
अभाव में पहाड़ से पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | शिक्षित- अशिक्षित सभी का रोजगार की तलास में शहरों की और जाना
जारी है | किसी के बीमार होने पर गावों में चार आदमी डोली पर लगने के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जो उसे सड़क तक पहुंचा
सकें |
पहाड़ में एक बदलाव अवश्य आया है, अब शादियां दिन में ही हो रही हैं तथा बारात बसों के बजाय जीपों में जा रही है |
सुबह बारात जाती है तथा सायं तक दुल्हन लेकर वापस आ जाती है यदि शराबियों का सहयोग रहा तो | शराबखोरों की बढ़ती हुयी
संख्या के कारण शादियाँ दिन में हो रही हैं | सूक्ष्म शादी की रश्म, फेरे और बिदाई सभी दिन में ही पूरी हो जाती हैं
| रात की शादी में शराब बरात को आधी रात से पहले दुल्हन के द्वार तक नहीं पहुंचने देती थी | दिन की शादी में भी शराब
खूब बह रही है परन्तु बड़े फसाद होने का भय कम रहता है | बरेतिये ही नहीं घरतिये भी शराब में डूबे रहते हैं |
पहले भी शादी के हफ्ता- दस दिन के बाद दूल्हा दुल्हन को घर छोड़ कर चला जाता था और आज भी यह सिलसिला जारी है | शादी
की उम्र में तनिक परिवर्तन आया है | अब बाल- विवाह नहीं हो रहे हैं | पहले विवाह होते ही दूल्हे के पलायन करने पर
दुल्हन को रोते- बिलखते नहीं देखा जाता था क्योंकि वह बचपन के भोलेपन में खोयी रहती थी परन्तु अब शादी के उपरान्त ही
पति के विछोह का दर्द सिसकियों से सनी न थमने वाली अश्रुधार स्वयं प्रकट कर देती है | सिसकियाँ पलायन को नहीं रोक
सकती क्योंकि रोजगार का प्रश्न मुंह बाए खड़ा रहता है | विवाहोपरांत दुल्हन को घर छोड़ना वहाँ के नियति बन गयी है जो
पलायन थमने से ही थम सकती है |
परंपरा, परिस्थिति और रोजगार के चूल में पिसता यह प्रश्न मन को बोझिल कर देता है | शादी नहीं करना इसका उत्तर नहीं
है | नवदुल्हनों की इस व्यथा पर बड़ों का विशेष ध्यान नहीं जाता है | उनका कथन है, ‘यह कोई नहीं बात नहीं है | हम भी
तो ऐसे ही रहे | रोजगार की तलाश में पहाड़ के पुरुष बाहर जाते रहे हैं | नहीं जायेंगे तो खायेंगे क्या ?’ घर से बाहर
गए पुरुष साल- छै महीने में घर आते हैं और कमाई का एक बड़ा भाग आने- जाने में खर्च हो जाता है | घर आकर वह दीन- क्षीण
पत्नी एवं छाड़- छिटके, दुबले, बीमार एवं समुचित शिक्षा से वंचित बच्चों को देखकर स्वयं को कसूरवार समझते हैं | उधर
वृद्ध होते माँ –बाप के मूक चेहरे भी कई प्रश्न पूछते हैं | परिस्थितियों के इस भंवर में इन प्रश्नों के उत्तर नहीं
दिखाई देते |
नवविवाहित जोड़े का शादी के दिन से ही विरह में रहना बहुत अखरता है | शादी के बाद दुल्हन का दूल्हे के साथ न रह पाना,
यह दूल्हा- दुल्हन दोनों के लिए नाइंसाफी है | काश ! पहाड़ में रोजगार उपलब्ध होता तो विरह- वेदना के इन दर्द भरे
दिनों से विवाहित युगलों को नहीं गुजरना पड़ता | इस दर्द को वर्तमान मोबाइल फौन हल्का करने के बजाय और अधिक बढ़ा देता
है | इस दर्द की छटपटाहट किसी दवा से भी कम नहीं हो सकती | साथ रहना ही इसका एकमात्र निदान है | यह तभी संभव है जब
पहाड़ में रोजगार हो और शादी के बाद दूल्हा अपने घर से अपने कार्य पर जा सकता हो अन्यथा सिसकती दुल्हन के आंसुओं की
गाड़ थमने वाली नहीं....।
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
27.06.2020
खरी खरी - 654 : आपातकाल की याद
प्रतिवर्ष आपातकाल की याद में 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का
प्रावधान संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का दूसरा पहलू भी है । वे दिन
याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल-दाल-
खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और
भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।
आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात
तो यह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गई । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी
जल्दी वापस कैसे आ गई ? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से
बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था ।
आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । पहली बार डीजल पेट्रोल से महंगा हो गया है । जून
2020 के महीने में 18 बार डीजल और पेट्रोल की कीमत बढ़ी है । अब डीजल पहली बार पेट्रोल से आगे निकलकर ₹ 80.02 और
पेट्रोल ₹ 79.92 प्रति लीटर हो चुका है । आज भी (कोरॉना को छोड़कर ) सैकड़ों बच्चे बीमारी से और लाखों बच्चे कुपोषण
से मर रहे हैं । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 45 वर्ष पहले जो हुआ उससे
हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष-विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । वर्तमान सत्ता को देश ने
इसलिए चुना कि उसने कुछ वायदे किए थे । अब उन वायदों पर कार्य करने के बजाय हर समय विरोधियों को गरियाना उचित नहीं
है । यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है परन्तु हम सुधरते नहीं, यह दुःख तो कचोटता ही है । जिस दिन हम कर्म- संस्कृति
को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में अपना बाजार ढूंढते हैं
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.06.2020
मीठी मीठी- 477 : हीरा सिंह राणा - ताकि स्मृति बनी रहे !
अपने दिल की व्यथा - वेदना को शब्दों से प्रकट कर गीत तक पहुंचाने वाले एक साधारण कलाकार से दिल्ली राज्य में
कुमाउनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले फकीरी पसंद हीरा सिंह राणा जी 13 जून 2020
को 78 वर्ष की उम्र में इस संसार से दिवंगत हो गए । वे अपने पीछे पत्नी श्रीमती विमला राणा और पुत्र हिमांशु राणा के
आलावा अपार जन - स्मृति, गीत, कुमाउनी भाषा की शब्द संपदा और एक उच्च कोटि का सरल स्वावलंबन संदेश तथा सौहार्द्र
सुगंधित सामाजिकता छोड़ गए ।
16 सितम्बर 1942 को डढोई, मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60 वर्षों से अपने गीत- कविताओं के माध्यम
से लोक में छाए रहे | उनके गीत उनकी पुस्तकें - 'प्योलि और बुरांश', 'मानिलै डानि ' और 'मनखों पड़ाव ' में हमारे बीच
मौजूद हैं । राणा जी कुमाउनी के शीर्ष लोकगायक तो रहे, वे उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के साथ अंत तक जुड़े रहे, भाषा
आन्दोलन में भी संघर्षरत रहे तथा वे राजधानी गैरसैण के समर्थक भी रहे । उनके कई कैसेट/सीडी हैं जिनमें उनके गीतों का
संग्रह बतौर उनकी अमूल्य निशानी हमारे बीच हमेशा उपलब्ध रहेंगे । लोक गायन के अलावा राणा जी कुमाउनी में कविता पाठ
भी करते थे । वे कएक सम्मान -पुरस्कारों से भी विभूषित थे | वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष उन्हें पद्मश्री सम्मान दिए जाने
के बारे में हमने चार बार निवेदन भी ज्ञापित किया को अनसुना रह गया परन्तु लोगों ने उनके गीत सुनकर उन्हें सबसे बड़ा
सम्मान दिया ।
' म्येरि मानिलै डानि, लश्का कमर बाधा (राज्य मांग आंदोलन ), त्यर पहाड़ म्यर पहाड़, हाई हाई रे मिजाता, अणकसी छै
तू, ह्यूं हैगो लाल, आहा रे जमाना... आदि उनके कई कालजई गीत हैं जो हमारे बीच गूंजते रहेंगे और लोगों के द्वारा
हमेशा गुनगुनाए जाते रहेंगी । राणा जी सही मायने में उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर थे । उनके नहीं रहने पर उनकी
सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखना हम सबका सामजिक कर्तव्य है । राणा जी के इस अद्भुत कृतित्व को जीवंत रखने के लिए हम
सबका सामाजिक उत्तरदायित्व है । इस हेतु मुख्य तीन बिंदुओं पर सामाजिक संस्थाओं को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए । ये
बिंदु हैं -
1. राणा जी के नाम से मानीला में उत्तराखंड सरकार द्वारा संग्रहालय बनाया जाय जहां प्रतिवर्ष उनकी जयंती और
पुण्यतिथि पर सामाजिक आयोजन किया जाए ।
2. राणा जी के नाम पर सरकार द्वारा एक राज्य स्तरीय पुरस्कार घोषित किया जाए जो प्रतिवर्ष किसी उत्कृष्ट कलाकार को
प्रदान किया जाए;
3. राणा जी नाम से विद्यालयों के लिए एक छात्रवृती योजना आरंभ की जाए ;
समाज के प्रबुद्ध जनों और सामाजिक संस्थाओं को इन तीन बिंदुओं का क्रियान्वयन करने हेतु उत्तराखंड सरकार से लिखित
अनुरोध ज्ञापित करना चाहिए जिसे राणा जी के प्रति सम्मान समझा जाएगा । उपरोक्त के अलावा राणा जी के एकमात्र पुत्र
हिमांशु राणा को उनकी योग्यतानुसार सरकार द्वारा नौकरी दी जाए जिसके लिए उनके पुत्र को शीघ्र निवेदन भी ज्ञापित करना
चाहिए । वर्तमान में इस परिवार को आर्थिक सहयोग भी जरूरी है । इस दुख की घड़ी में हम राणा जी की पत्नी श्रीमती विमला
राणा जी से सामाजिक संघर्ष करने हेतु मंथन करने की अपील भी करते हैं क्योंकि समाज ने उन्हें राणा जी के साथ कई बार
कई मंचों पर सम्मानित होते हुए देखा है । उक्त बिंदुओं का क्रियान्वयन ही दिवंगत राणा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी
ताकि उनकी पावन स्मृति बनी रहे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2020
खरी खरी - 653 : अनसुना रह गया हमारा किसान
एक तरफ किसानों की आय दोगुनी और लागत से डेड़ गुना अधिक देने की बात हो रही है तो दूसरी ओर देश में लगभग बारह हजार
किसान प्रति वर्ष आत्महत्या कर रहे हैं । आत्महत्या का एक कारण फसल के उचित दाम नहीं मिलना भी है । कहा तो जाता है
किसान का एक भी उत्पाद बरबाद नहीं होगा और भोज्य परि संस्करण मंत्रालय इस पर नजर रखेगा । आश्वासन कब पूरे हुए है
?
उदाहरण के लिए देश के कुछ भागों में विगत वर्ष आलू की बम्पर फसल हुई और ₹ 487/- प्रति क्विंटल आलू का समर्थन मूल्य
रखा गया जबकि किसान की लागत कम से कम ₹ 500/- प्रति क्विंटल से अधिक थी । बताया गया कि इस पर भी मात्र एक प्रतिशत ही
आलू खरीदा गया । परिणाम स्वरूप किसान ने आलू सड़कों पर फेंका या चिप्स कम्पनियों को एक - दो रुपए प्रति किलो बेचा ।
यही उत्तम किस्म का आलू दिल्ली जैसे महानगरों में फुटकर में ₹ 10/- प्रति किलो बेचा गया । फुटकर दुकानदार ₹ 6/-
प्रति किलो थोक बाजार से लाया था ।
उधर बाजार में 15 ग्राम का हवा भरा हुआ आलू चिप्स का पाउच ₹ 5/- में बेचा जा रहा है । ₹ 5/- में 15 ग्राम आलू चिप्स
बेचने वाली कम्पनी ने किसान से 1 या 2 ₹ प्रति किलो खरीद कर उसे चिप्स के रूप में ₹ 333/- प्रति किलो बेचा । यदि यह
आलू सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदती तो किसान आत्महत्या क्यों करता ? किसान- किसान कहने के बजाय जमीन में किसान को
बचाने के लिए हमारे नेताओं और सरकारों को कुछ तो ईमानदारी दिखानी चाहिए । यदि यही हाल रहा तो एक दिन देश की जमीन
किसान के बिना वीरान हो जाएगी और देश आलू विहीन हो जाएगा ।
ये किसान तेरे
हाल पर रोना आया,
कभी आपदा ने
तो कभी बम्पर
ने तुझे रुलाया ,
इस दौर में दर्द
तेरा अधिक बढ़ा
जब चीन से आए क्रूर
कोरॉना ने तुझे रुलाया ।
( शिमला मिर्च , प्याज और टमाटर की बंपर फसल उगाने वाले किसानों का भी इसी तरह शोषण हुआ है और रहा है । )
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.06.2020
खरी खरी - 651 : चीनी सामानक त्याग " वीकै बणाई मोबाइलल फौंस- फसक "
कुमाउनी भाषाक ठुल साहित्यकार त्रिभुवन गिरी ज्यूक चीनी वस्तु वहिष्कार (संदर्भ - खरी खरी - 649, 20 जून 2020) विषय
पर विचार आज कि 'खरी खरी ' में सादर प्रस्तुत छीं -
"चीनी सामान त्याग करण चैं जरूर। उहै पैली आपणि आवश्यकता में अंकुश लगूण चैं। आवश्यकता यसि कि जै बिना हम रई नि
सकना। हम आपण मन मारि बेर कटरी जूंल। जैल कटरीण चैं उ चुप रौनी। असल में यो मलि बै तलि कै आली तो भलै ह्वल। हमर वाँ
के भयै नैं। याँ चीज हमन भलि नि लागनि। हमर याँ बड़नि नैं। जो मोबाइल कैं हम हाथ में ल्हि बेर पचार मारनया, धैं दिन
भरी लिजी पलि धरि बेर देखौ धैं, धरी नि सकना। चाण चितूण सामणि बै छु। याँ बड़न के लागिरौ? भितर लठ चलनई। इचाव लै
म्यरै नीस लै म्यरै हैरै। भ्यार पन इचाव लै नीस लै लुठि है, पहरू मारि है।
हम कूणयाँ क्वे हमर बाव लै नि उपाड़ि सकन। भल भै। खुशी बात छु। पैं हका हाक क्यैकि। किस कै राखौ- '' जैक बुड़ बिगड़
वी कुड़ उजड़। '' काण्डपालज्यू तलि बै मली तक के देखीना भल? हम खपड़ियोलै में रै जानू। कामा नाम पर सिणका टोड़ि द्वी
नि करि सक्याँ। हौर चीज पलि, पतंगक मंज, सिलाई डाब, बिजली माल रंग, पटाखा तक वैं बै ल्हिनयां। बाकि फैसन,
इलेक्ट्रोनिक सामान दवाइ पाणि हौर हौर दुणी नमानक सामान वैं बै खरीदण लागि रयां। मणि मणि कै वी सामानक त्याग और याँ
निर्माण करण में जोर दिण पड़ल। तबै भल्यामा लछण छन। हमर तुमर कैल के है सकूं? तुमरि हमरि बात मानणी छना क्वे? भल
हैरौ, हाथ में वीकै बणाई मोबाइल छु। फौंस फसक लगै बेर दिन काटी जना। हां रोज रोजै मारामार भलि नि है रै। लणै बटी
हासिल सिफर रौल। जय जवान जय हिन्दुस्तान।" ( समाज कैं चीनी सामानक त्याग करण संबंधी द्वि टूक आंखरों में आपण विचार
धरणक लिजी गिरी ज्यू महाराजक हार्दिक आभार ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
22.06.2020
मीठी मीठी - 476 : पितृ -स्नेह
( आज 21 जून 2020, पितृ दिवस के अवसर पर पर कुमाउनी कविता "बौज्यू " का हिंदी रूपांतर । )
माली की बगिया की तरह
तुमने मुझे संवारा है,
चित्रकार की अनुपम कृति सा
जीवन मेरा निखारा है ।
चाक अंगुली ज्यों कुम्हार की
मिट्टी को जीवित करती,
उसी तरह जीवन की खूबी
तुमने है मुझ में भर दी ।
पाठ गुरु से जो नहीं सीखा
वह सिखलाया है तुमने,
शिक्षक बन कर दीप ज्ञान का
मन में जगाया है तुमने ।
लक्ष्य जीवन का मुझे बताया
स्वावलंबन का पाठ दिया,
सत्य के मारग पर ही हमेशा
चलने का दृष्टांत दिया ।
जब जब रूठा हूं मैं तुमसे
तुम मनाते ही चले गये,
बचपन, यौवन से अब तक तुम
गले लगाते चले गए ।
जब तक प्राण तन में मेरे
स्मृति मन में बनी रहे,
'पितृ देव' की पावन ज्योति
प्रज्ज्वलित मेरे उर में रहे ।
(स्मृति ,लहर' से)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21 जून 2020, पितृ दिवस)
मीठी मीठी - 475 : बौज्यू स्मरण (पितृ दिवस)
आज 21 जून 2020 योग दिवस छ और बौज्यूू स्मरण दिवस लै छ । ' मुक्स्यार ' (कुमाउनी कविता संग्रह ) किताब बै ' बौज्यू
' कविता यां उद्धृत छ । बौज्यू कैं विनम्रता क साथ नमन ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
21.06.2020
मीठी मीठी -474 : योग भगाए रोग
(आज 21 जून अंतरराष्ट्रीय 'योग' दिवस)
इक्कीस जून को हो रहा
पूरे जग में 'योग',
भारत की भूमिका प्रबल
जान गए सब लोग,
जान गए सब लोग
रामदेव अलख जगाई,
जागा भारत दुनिया में
डुगडुगी बजाई,
कह 'पूरन' कर भोग कम
मिट जाएंगे रोग,
हो भलेही व्यस्त दिनचर्या
कर नित कसरत-सैर 'योग' ।
(आज सबसे बड़ा दिन भी ।
योग के लिए स्वच्छ हवा भी चाहिए ।
स्वच्छ हवा के लिए पेड़ चाहिए ।
इसलिए कम से कम एक पेड़ भी
रोपित कर उसका संरक्षण करें ।
आज दुनिया कोरोना के दौर में है ।
अपना बचाव धोते रहो हाथ,
रखो नित चार बातें याद ।
चेहरे पर मास्क, भीड़ रहे दूर;
हस्त प्रक्षालन , देह रहे दूर । )
(आज 68 दिन के लौकडाउन के बाद अनलौक.1 का 21वाँ दिन । विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 89.13+/4.66+लाख और देश
में 4.11+लाख/13.2+हजार हो गई है । अपना बचाव करें, निर्देश मानें और प्रत्येक कर्मवीर का हार्दिक सम्मान करें ।
कोरोना के दौर में योग घर में ही करें, बाहर जाना कोरोना जोखिम है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21 जून 2020
खरी खरी - 649 : चीनी वस्तुओं का वहिष्कार
15 और 16 जून 2020 की रात को लद्दाख क्षेत्र की गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ संघर्ष करते हुए हमारे 20 सैन्य
कर्मी वीरगति को प्राप्त हो गए और कई घायल भी हुए । हमारी सेना ने भी दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया । सेना की इस
शहीदी से देश में चीन के प्रति गहरा रोष देखा गया और कई जगह पर चीनी वस्तुओं का दाह भी किया गया । विगत 4 दिन से
सोसल मीडिया में चीनी वस्तुओं का विरोध करने की मुहीम चल रही है और पूरे देश में चीन का विरोध हो रहा है ।
देश में 20 शहीदों की दहकती चिताओं को देखकर लोग चीनी सामान के वहिष्कार का प्रण कर रहे हैं । यह प्रण पूर्ण होना
चाहिए । इस बार दीपावली 14 नवम्बर 2020 को है । प्रतिज्ञा करिए कि दीपावली पर एक भी नई या पुरानी चीनी लड़ी नहीं
चमकेगी और न त्यौहार संबंधी चीन का कोई नया या पुराना सामन प्रयोग किया जाएगा । हमने चीनी खिलौने, मूर्तियां, टार्च,
लाइटर, कैमरे, इलेक्ट्रिक आइटम्स, पिचकारी, आदि सभी वस्तुएं चीन निर्मित नहीं खरीदनी चाहिए । कोई सरकार हमसे इन
चीजों को जबरदस्ती नहीं खरीदवा सकती । चीन की उन वस्तुओं का प्रयोग करना देश की मजबूरी है जिनका उत्पादन हमारे देश
में नहीं होता और वे वस्तुएं वर्तमान में परित्यक्त नहीं हो सकती जैसे स्मार्ट फोन आदि ।
चीन की उन सभी वस्तुओं का वहिष्कार अब बड़ी दृढ़ता से करना होगा जिनके बिना हम रह सकते हैं या जिनका हमारे पास
विकल्प है । यदि हम यह सब कर सके तो तभी हम अपने 20 शहीदों का आंशिक ऋण चुका सकेंगे । देश को अपनी कथनी को करनी में
क्रियान्वित करना ही होगा तभी चीन को सबक सिखाया जा सकता है । बताया जाता है कि चीन से भारत को जो आयात होता है उसका
मात्र चौथाई हिस्सा ही चीन को हमारा निर्यात होता है । इस असंतुलन से हम चीनी वस्तुओं के गुलाम बनते चले गए और चीन
अपनी दादागिरी दिखाते गया । चीनी सामान नहीं खरीदने से उसकी दादागिरी समाप्त हो सकती है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.06.2020
मीठी मीठी - 473 : बहुत कम लोग ऐसा कर सकेंगे ?
आज उस छोटी सी सत्य कथा की बात करना चाहता हूं जिसे बहुत कम लोग ही क्रियान्वित कर सकेंगे । हमने दूसरे को खुशी
देने के लिए खुद की खुशी को कुर्बान करना सिनेमा में कई बार देखा है । जमीन में ऐसा कम ही देखने को मिलता है । हमने
ऐसे कई पति देखें हैं जो सोचते हैं कि बढ़ती उम्र में पत्नी उनसे पहले निकल जाए तो अच्छा ताकि उन्हें यह संताप नहीं
रहे कि उम्र के पड़ाव पर पति के बिना कहीं पत्नी की दुर्गति न हो जाय । चिंता से कुछ होना-जाना नहीं है । मृत्यु तो
अपने समय पर ही आएगी । वैसे भी दोनों में से एक पहले तो जाएंगे । दोनों एक साथ जाते कम ही देखे - सुने गए हैं
।
एक जवान नवविवाहित पति ने जिंदादिली का एक नायाब नमूना कुछ महीने पहले पेश किया । कानपुर देहात क्षेत्र में एक युवा
की शादी हुई । युवा पति को महसूस हुआ कि उसकी पत्नी खुश नहीं है । पति द्वारा नवविवाहिता पत्नी से पूछने पर पता चला
कि पत्नी किसी अन्य लड़के से प्यार करती है और उसके बिना रह नहीं सकती । अभिभावकों ने उसकी शादी वर्तमान पति से उसकी
इच्छा के विपरीत कर दी । इस युवा ने अपनी इस पत्नी का अंग भी स्पर्श नहीं किया ।
इस युवक को पत्नी की बात पर संदेह हुआ फिर भी उसने इस मामले की स्वयं जांच की । इस युवक ने पत्नी की बात को सत्य
पाया औऱ काफी मशक्कत के बाद अपने घर वालों को राजी कर लिया कि वह अपनी पत्नी की शादी उसके प्रेमी से कर देगा । उसने
स्थानीय पार्षद के सहयोग से सार्वजनिक तौर पर एक मंदिर में अपनी पत्नी की शादी उस लड़के से कर दी और खुशी खुशी अपनी
पत्नी को उसकी खुशी के लिए विदा कर दिया । क्षेत्र के लोगों ने भी इस आयोजन में खुशी खुशी भागीदारी दी ।
यह काम बहुत कठिन था । बड़ी मुश्किल से तो इस युवक की शादी हुई थी । खर्च भी हुआ था । अंत में कहानी कुछ इस तरह मोड़
खा गई कि उसके दिल में एक ऐसा जख्म कर गई जिस जख्म के दर्द की कसक उसने अपने चेहरे पर नहीं आने दी । जिंदादिल तो
निकला यह युवक । हम दुआ तो कर ही सकते हैं कि इस युवक की शादी की शहनाई जल्दी गूंजे और उसे खोई हुई खुशी पुनः मिले
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.06.2020
खरी खरी -648 : हमारा समाज नहीं बदलता क्योंकि ?
1. यहाँ बाबा के वेश में बालात्कारी होते हैं ।
2. यहाँ मुंह में गुटखा डाल कर पंडित हवन करते हैं ।
3. यहाँ शराब के विरोध में कविता पढ़ कर कवि शराब पीते हैं ।
4. स्कूल-कालेज में पढ़ाने वाले अध्यापक धूम्रपान करते हैं ।
5. यहाँ अंधविश्वास में डूबकर पशुबलि दी जाती है और मूर्ति में दूध उड़ेला जाता है ।
6. यहाँ नदियों को माता भी कहते हैं और उनमें गंदगी भी डालते हैं।
7. यहाँ लकड़ी जलाने के दो त्यौहार हैं, पौधरोपण का कोई त्यौहार नहीं ।
8. यहाँ देवताओं के नाम पर भांग-धतूरा और शराब को प्रोत्साहन मिलता है ।
9. यहां संस्कृति-संस्कार और महिला सम्मान की शिक्षा पर गम्भीरता नहीं होती है ।
10.यहाँ कानून का डर नहीं है और कि सरकारें भी न्यायालय की अवहेलना करती हैं ।
11.यहां भ्रष्टाचार उखाड़ने की बात होती है परन्तु भ्रष्टाचार पोषित होता है ।
12.यहां जनता और सरकारें कोरोना जैसे महामारी के दौर में गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.06.2020
मीठी मीठी- 469 : हीरा सिंह राणा : शब्द - स्वर जिंदा रहेंगे ।
अपने दिल की व्यथा - वेदना से प्रकट शब्दों को गीत तक पहुंचाने वाले एक साधारण कलाकार से दिल्ली में कुमाउनी,
गढ़वाली और जौनसारी अकादमी के उपाध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले फकीरी पसंद हीरा सिंह राणा जी का दिल्ली में अपने निवास
स्थान विनोदनगर में 13 जून 2020 को प्रातः हृदय गति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया । वे अपने पीछे पत्नी विमला
राणा और पुत्र हिमांशु राणा को छोड़ गए । दिल्ली के निगमबोध घाट पर 13 जून को ही उनका दाह संस्कार हुआ । दिल्ली में
कोरोना संक्रमण फैलाव को रोकने के आशय से उनकी शवयात्रा में उनके अधिकांश प्रशंसक शामिल नहीं हो सके ।
राणा जी उत्तराखंड अपने गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंचने वाले लोकप्रिय गायक/कवि थे । जन कवि श्री हीरा
सिंह राणा (हिरदा ) का जन्म 16 सितम्बर 1942 को मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60 वर्षों से अपनी
गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाये हुए रहे | उनकी लोकप्रियता की विशेषता यह थी कि वे अपने शब्दों को स्वर देते
हुए उन्हें गीत तक पहुंचाते थे । उनकी कुछ पुस्तकें हैं- प्योलि और बुरांश, मानिलै डानि और मनखों पड़ाव में हमारे बीच
हमेशा के लिए जीवित रहेंगी ।
राणा जी कुमाउनी के शीर्ष लोकगायक थे, वे राज्य आन्दोलन से जुड़े रहे, भाषा आन्दोलन में भी संघर्षरत थे, और राजधानी
गैरसैण के समर्थक थे । उनके कई कैसेट–सीडी हैं जिनमें उनके गीतों का संग्रह समाज में बतौर उनकी निशानी उपलब्ध रहेगा
। लोक गायन के अलावा राणा जी कुमाउनी में कविता पाठ भी करते थे और कई सम्मान -पुरस्कारों से विभूषित थे | वर्ष 2016
से प्रतिवर्ष लगातार चार बार उन्हें पद्मश्री सम्मान देने हेतु मैंने निवेदन भी ज्ञापित किया जो अनसुना रह गया
परन्तु लोगों ने इससे भी बढ़कर सम्मान उन्हें उनके गीत सुनकर दिया ।
उनकी संघर्ष गाथा पुस्तक रूप में वर्ष 2014 में प्रकाशित हुई | इस संघर्ष यात्रा ‘संघर्षों का राही’ (संपादक- वरिष्ठ
पत्रकार चारु तिवारी, प्रकाशक- उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली, परामर्श - डॉ विनोद बछेती, चेयरमैन डी पी एम
आई, नई दिल्ली ) का लोकार्पण वर्ष 2014 में ही कांस्टीट्यूशन क्लब दिल्ली में डॉ बछेती के सहयोग से किया गया | इन
पंक्तियों के लेखक को राणा जी के साथ काव्यपाठ करने का कई बार अवसर प्राप्त हुआ जिनमें अल्मोड़ा, सल्ट (रानीखेत - दो
बार ), नोएडा, एन सी आर दिल्ली सहित कई स्थान शामिल हैं । चंडीगढ़ में 19 जनवरी 2020 को भी राणा जी के साथ काव्यपाठ
में भागीदारी निभाने का अवसर प्राप्त हुआ ।
बहुत ही सरल, निश्चल, निष्कपट व्यवहार के धनी राणा जी जब मंच से गीत गाते थे तो लोगों की फर्माईस कभी समाप्त नहीं
होती थी । लोग उनके साथ फोटो - चित्र खींचवाने के लिए लालायित रहते थे । कई बार वे फोटो शूट देते देते थक जाते थे
परन्तु अपने प्रशंसकों को निराश नहीं करते थे । ' म्येरी मानिलै डानि, लश्का कमर बाधा (राज्य मांग आंदोलन ), त्यर
पहाड़ म्यर पहाड़, हाई हाई रे मिजाता, अणकसी छै, ह्यूं हैगो लाल, आहा रे जमाना आदि उनके कई कालजई गीत हैं जो जमाने
में गूंजते रहेंगे, लोगों के द्वारा गुनगुनाए जाते रहेंगे । राणा जी सही मायने में उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर थे
। इस सांस्कृतिक धरोहर के जाने से आज जनमानस दुखी है, स्तब्ध है और उनके स्मरण में व्यथित है । दिवंगत राणा जी को
विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.06.2020
खरी खरी - 646 :ये किसान तेरे हाल पै रोना आया !
(आज अनलौक.1 का 12वाँ दिन है । 31 मई 2020 को 68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 75.95+/4.23+ लाख और देश में यही संख्या 2.98
लाख+8.45+ हजार हो गई है । दुखद बात यह है कि कोरोना संक्रमण में अब देश अमेरिका, ब्राजील और रूस के बाद चौथे स्थान
पर है । देश में करीब 1.4 लाख से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर चलें, केवल
दिखाने के लिए मास्क लटकाकर न चलें । हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी और भीड़ से बचाव; ये चार
बातें ही तो याद रखनी हैं ।)
आज अन्नदाता किसान की बात करते हैं । केंद्र और राज्यों की सरकारें हमेशा ही कहती हैं कि वे किसान हितैषी हैं । यदि
किसान हितैषी हैं तो टमाटर और शिमला मिर्च या कोई भी बंपर फसल सड़क पर क्यों गिराई जाती है ? कहाँ है हमारा खाद्य
संस्करण मंत्रालय ? बम्पर फसलों के उचित दाम नहीं मिलने से किसान मजबूर होकर आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने को
मजबूर हो जाते हैं जो उचित नहीं है । इस सरकारी उदासीनता को देखकर आज का युवा किसान बनने को तैयार नहीं है । यदि यही
हाल रहा तो एक दिन यह सोना उगलने वाली धरती गुम होते किसानों के कारण बंजर हो सकती है । कोरोना के दौर में तो किसान
की नकदी फसलें बरबाद हो रही हैं क्योंकि ये फसलें जल्दी सड़ जाती हैं । कब चेतेगी किसान हितैषी सरकारें ? सुनो सरकार
-
'ये किसान तेरे
हालात पै
रोना आया,
कभी आपदा ने
तो कभी बम्पर ने
तुझे रुलाया,
इस बार तो
कोराना ने तुझ
पर भी कहर ढाया।'
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.06.2020
खरी खरी - 643 :धरती गरम हो गई है, जीओगे कैसे ?
(आज अनलौक.1 का 7वाँ दिन है । 31 मई 2020 को 68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 69.73+/4.02+ लाख और देश में यही संख्या 2.46
लाख+/6.9+ हजार हो गई है । दुखद बात यह है कि कोरोना संक्रमण में अब देश छठे स्थान पर है । देश में करीब 1.15 लाख से
अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर चलें, केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर न चलें
। हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी और भीड़ से बचाव; ये चार बातें ही तो याद रखनी हैं ।)
आज धरती के गरम होने की बात करते हैं । वर्ष में दो त्यौहार लकड़ी जलाने के- होली और लोहड़ी परंतु पौध रोपण का एक भी
त्यौहार नहीं है यहां । सब बेलपत्री और आम की टहनी मंगाते हैं पूजा में । आज तक किसी ने पूजा के दौरान एक पौध रोपने
की बात नहीं कही । ये तो होना ही था । विश्व में आने वाले चक्रवाती तूफ़ान और हिम स्खलन मानव के औद्योगिक विकास और
प्रकृति की अनदेखी के कारण हैं । धरती से सब कुछ लेते जाओ, इसे कुछ देने की सोच भी तो बनाओ । वर्ष के 365 दिनों में
5 पेड़ तो रोपो ।
सालगिरह के दिन, पत्नी के जन्मदिन, बच्चों के जन्मदिन, कोई त्योहार या तिथि के दिन एक पौधा तो रोपो । अब भी जागें तो
अच्छा है वर्ना कब मिजाज बिगड़ेगा इस गरम होती धरती का कह नहीं सकते । सहन करने की भी एक सीमा होती है । जिस दिन धरती
का धैर्य टूटेगा उस दिन सबकुछ धरा रह जायेगा सिर्फ हम ही नहीं होंगे । हाल ही में बंगाल - ओडिसा में अंफन चक्रवात और
गुजरात - महराष्ट्र में निसर्ग चक्रवात इसी प्रकृति के संतुलन के कारण हैं । इसलिए इस चिंतन का गंभीर मंथन करें और
पौध रोप कर धरती का श्रृंगार करें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.06.2020
खरी खरी -642 : शरीर का सबसे अस्वच्छ अंग (अब हाथ नहीं मिलाना)
(आज अनलौक.1 का 6वाँ दिन है । 31 मई 2020 को 68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 68.44+/3.98+ लाख और देश में यही संख्या 2.36
लाख+/6.6+ हजार हो गई है । दुखद बात यह है कि कोरोना संक्रमण में अब देश छठे स्थान पर है । देश में करीब एक लाख से
अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क
लटकाकर देह दूरी नियम की धज्जियां उड़ाकर चल रहे हैं जो गलत है । हाथ धोते रहना, मास्क ठीक से लगाए रखना, देह दूरी
और भीड़ से बचाव; ये चार बातें ही तो याद रखनी हैं ।)
हाथ नहीं मिलाने की जागरूकता पर मैंने तीन वर्ष पूर्व 24 जून 2017 को एक खरी - खरी लिखी थी । यह आज बहुत प्रसांगिक
है और पुनः पढ़ने के लिए आपके सम्मुख है ।
"आप जानते हैं कि मनुष्य के शरीर का सबसे अधिक अस्वच्छ अंग कौनसा है ? जी वह है हमारा दांया हाथ । एक अध्ययन के
अनुसार हमारे देश में 47 % लोग शौच के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते हैं । 62 % लोग भोजन करने से पहले और 70 % लोग
भोजन पकाने से पहले हाथ नहीं धोते हैं ।
हम दिन भर सबसे हाथ मिलाते हैं, रेल- मेट्रो- बस- टैक्सी के डंडे-दरवाजे पकड़ते हैं, सीड़ियों के रैलिंग पकड़ते हैं,
नाक- कान- मुंह में हाथ डालते हैं, कार्यालय के काउंटर- टेबल- खिड़की- कुंडी पर हाथ लगाते हैं, स्विच- रिमोट- मोबाइल-
पैन- सार्वजनिक बेंच-कुर्सी, करंसी नोट-सिक्के आदि सब पर दिन भर हाथ रगड़ते रहते हैं । पसीना पोछते हैं, मूत्रांग
स्पर्श करते हैं, खांसते- छींकते मुंह पर हाथ रखते हैं । सारा दिन हमारा दांया हाथ इन सभी जगहों से पूरी तरह दूषित-
अस्वच्छ हो जाता है ।
गंदे हाथ से हमें जुकाम, डायरिया, हैपेटाइटिस, आंख की बीमारी, हैजा, टाइफाइड, वाइरल जैसे कई रोग हो सकते हैं । सौ
बातों की एक बात यह है कि भोजन करने और खाना बनाने से पहले, स्कूल- कार्यालय से घर पहुंचते ही सबसे पहले साबुन से
अच्छी तरह रगड़कर हाथ धोने चाहिए ।
अभिवादन करने के लिए हाथ मिलाने के बजाय हाथ जोड़कर अभिवादन करने की आदत डालिये । यदि हमने ऐसा कर लिया तो 90% रोगों
से हमने स्वयं को बचा लिया । सोचिए मत, आज ही से हाथ धोकर इस पुनीत आदत को अपनाने हेतु अपने पीछे पड़ जाइये । पूरन
चन्द्र काण्डपाल,24.06.2017."
इस लेख को संपादित करते हुए मैंने 20.02.2020 तथा 21.03.2020 को पुनः सोसल मीडिया में पोस्ट किया । आज कोरोना
संक्रमण के इस दौर में इस लेख की प्रासंगिकता को समझने की आवश्यकता है । अब तो लोगों ने कोरोना दौर बीत जाने के बाद
भी अभिवादन हाथ जोड़कर ही करने की संस्कृति को अपनाना होगा । भूल से भी हाथ मिलाने की संस्कृति को अब न अपनाया जाय
ताकि हस्त स्पर्श से कोरोना सहित किसी भी प्रकार का संक्रमण न फैले ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.06.2020
खरी खरी - 641 : आज पर्यावरण दिवस - कैसे बचेगी धरती ?
(आज अनलौक.1 का 5वाँ दिन है । 31 मई 2020 को 68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 66.97+/3.93+ लाख और देश में यही संख्या 2.26
लाख+/6.3+ हजार हो गई है । देश में करीब एक लाख से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को
ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर देह दूरी नियम की धज्जियां उड़ाकर चल रहे हैं जो गलत है ।)
आज पर्यावरण दिवस के अवसर पर धरती को बचाने की बात करते हैं । विकसित देश सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं ।
अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन एक न एक दिन इस धरा को के डूबेगा । समरथ को नहीं दोष गोसाईं । इन्हें रोकने वाला कौन है ?
कोई नहीं । वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत में पिछले 17वर्षों में (2001- 2018) 16 लाख हेक्टेयर से अधिक
जंगल खत्म हो चुके हैं।
इस हाल में कैसे बचेगी धरती ? वर्ष 2000 में वन आवरण भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 12% था जो 2010 में घटकर 8.9% रह
गया जबकि कार्बन उत्सर्जन निरंतर बढ़ते रहा । कैसे बचेगी धरती की हरियाली ? विकास के नाम पर पेड़ काटकर धरती को नग्न
किया जा रहा है । यह विकास नहीं, विनाश है । यह थमना चाहिए ।
हमने सोसल मीडिया में एक दूसरे को घर बैठे बैठे खूब पौधे भेज दिए हैं और बधाई भी दे दी । पेड़ कितने लोगों ने रोपे
यह तो उनकी आत्मा जाने । मैदानी क्षेत्रों में गरमी भी बहुत है । रोपे हुए पेड़ को जीवित रखना जरूरी है । इसलिए
जिसने आज 5 जून पर्यावरण दिवस पर पेड़ नहीं रोपा वह दिल से संकल्प करे कि बरसात आते ही वह पौधरोपण कर धरा का शृंगार
अवश्य करेगा । हमें इस धरती को बचाना है । धरती ने हमें सबकुछ दिया, हमने भी पेड़ लगाकर धरती का ऋण चुकाना है
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.06.2020
खरी खरी - 640 : मिसिंग टाइल सिंड्रोम (एक मानव जनित रोग)
(आज अनलौक.1 का चौथा दिन है । 31 मई 2020 को 68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 65.67+/3.87+ लाख और देश में यही संख्या 2.16
लाख+/6.08+ हजार हो गई है । देश में करीब 1 लाख से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को
ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर देह दूरी नियम की धज्जियां उड़ाकर चल रहे हैं जो गलत है ।)
आज एक मनोवैज्ञानिक बीमारी की बात करते हैं। एक व्यक्ति ने घर में सुंदर टाइल लगाए । बाथ रूम के एक कोने पर एक टाइल
कम पड़ गई । यह जगह दरवाजे के पीछे थी । अतः मिस्त्री ने जोड़-जंतर कर वहां पर टाइल लगा दी जो आसानी से दिखाई नहीं दे
रही थी । जैसा कि इस व्यक्ति को इस टाइल का पता था, जो भी व्यक्ति इनके घर आता वह उस व्यक्ति से इस टाइल की चर्चा
करते हुए कहता, "यार एक टाइल ने काम खराब कर दिया, बाकी तो सब काम बढ़िया हुआ । " देखने वाला व्यक्ति कहता, "अरे यार
दरवाजे के पीछे है, दिखाई भी नहीं दे रही, तुम्हारे बताने पर मुझे पता चला । रहने दो क्यों टेंसन ले रहे हो ?" उसके
समझाने पर भी मकान मालिक चेहरा लटकाए ही रहा ।
यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जो हमारा पूरा ध्यान एक छोटी सी नजरअंदाज करने वाली इस तरह की कमी की ओर खींच कर हमें
परेशान करती है । हम जन्मदिन उत्सव मनाते हैं । करीब 20 मित्र- परिजन इस छोटे से आयोजन में सम्मिलित होते हैं। सबको
भोजन और आयोजन अच्छा लगता है । आये हुए 20 में से कोई एक व्यक्ति आयोजन या भोजन में कुछ न कुछ त्रुटि निकाल देता है
जबकि 19 इस आयोजन की प्रशंसा करते हैं । हम इन 19 की प्रशंसा को तो भूल जाते हैं और उस एक की अनावश्यक बात को
"लोग-बाग कह रहे हैं" कह कर मन-मस्तिष्क में उतार कर हमेशा ढोते रहते हैं ।
इस मनोवैज्ञानिक समस्या को 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता है । मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हमै
हमारी खुशी चुराने वाली ऐसी बातों को समस्या का रूप देकर दुखी नहीं होना चाहये । इस एक व्यक्ति द्वारा उत्पन्न की गई
असहजता को तरजीह नहीं देते हुए हमें उन 19 लोगों को तरजीह देनी चाहिए जिन्होंने सत्य के साथ हमारा मनोबल बढ़ाने में
अपना सहयोग दिया । वैसे भी किसी के आयोजन में अनावश्यक मीन -मेख निकालना एक लाइलाज बीमारी है जो कुछ लोगों में हम
अक्सर देखते हैं । इस 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' नामक बीमारी से हम बचे रहें यही हमारा प्रयास होना चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.06.2020
खरी खरी- 639 : गंगा पुछैं रै सवाल ?
(कोरोना संक्रमणक ध्यान धारिया । आज 68 दिन के लौकडाउनक बाद अनलॉक के तिसर दिन छ । विश्व में संक्रमित/मृतक संख्या
64.84+ लाख/ 3.82+लाख और देश में 2.07+लाख/5.8+ हजार हैगे जो भौत दुखद छ । करीब 95 हजार बीमार ठीक लै हैगीं । य
बिमारीक के इलाज लै न्हैति, सिर्फ आपण बचाव येक इलाज छ । कोरोना कर्मवीरोंक सम्मान जरूर करिया और बेवजह घर बै भ्यार
झन अया और मास्क ठीक ढंगल पैरिया। )
मिहुणि गंगा मैया
लै कूं रौछा,
सबूं हैं गंगा गंदी
हैगे लै कूं रौछा,
गंद नालों कैं
म्ये में बगों रौछा,
मुर्द म्यार किनार
पर भडूँ रौछा,
मरी जानवर म्ये
में लफाऊँ रौछा,
धोबीघाट म्यार
किनार खोलें रौछा,
विसर्जन क नाम पर
म्ये में कुड़-कभाड़
लफाउं रौछा,
गंगा दश्यारक दिन
बधै लै दीं रौछा,
पै दिखाव कि बात केक
लिजी करैं रौछा ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.06.2020
मीठी 465 - महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल स्मरण
आज 2 जून महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल ज्यू कि पुण्य तिथि । विनम्र श्रद्धांजलि । लेख ' लगुल ' किताब बै यां उद्धृत
छ
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.06.3020
खरी खरी - 638 : कामवाली/बाई/मेड
(आज अनलौक.1 का दूसरा दिन है । 31 मई 2020 को 68/68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व
में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 63.65+/3.77+ लाख और देश में यही संख्या 1.98
लाख+/5.6+ हजार हो गई है । देश में करीब 95 हजार से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को
ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर देह दूरी नियम की धज्जियां उड़ाकर चल रहे हैं जो गलत है ।)
आज कामवाली की बात करते हैं । शहरों में कुछ लोग घर के काम ( झाड़ू - पोछा, बर्तन - कपड़े धोना, धूल साफ करना, खाना
बनाना आदि ) में मदद के लिए जिस महिला को अपने घर में कुछ घंटों के लिए बुलाते है उसे कहीं कामवाली या कहीं बाई और
कहीं मेड या डोमेस्टिक हेल्प कहते हैं । कुछ लोगों को तो वास्तव में मदद की आवश्यकता होती है और कुछ पड़ोस को देखकर
स्टेटस सिंबल के बतौर कामवाली रख लेते हैं । ये कामवालियां गरीब अशिक्षित होती हैं और मजबूरी में यह कार्य करतीं हैं
। दिन में 4 - 5 घरों में खटने के बाद इन्हें शायद 9 - 10 हजार मासिक आय हो जाती होगी जिससे इनका गुजारा हो जाता है
। कई बार सुनने को मिलता है कि इनके पति इस आय का कुछ भाग दारू के लिए छीन लेते हैं ।
देश में 25 मार्च 2020 से लौकडाउन शुरू हुआ जिसे आज 2 जून 2020 को 70 दिन हो गए हैं भलेही 68 दिन बाद इसे अनलॉक.1
कहा जा रहा है । इस दौरान कामवाली का काम बंद हो गया । कुछ लोगों ने इनकी मदद इस दौरान भी जारी रखी । प्रश्न है इस
दौरान कामवाली का काम इन घरों में किसने किया होगा ? कुछ घरों में यह कार्य परिवार के सदस्यों ने मिलजुलकर कर लिया
और कुछ घरों में केवल घरवाली ही कामवाली बनी रही या पति ने चाहे - अनचाहे सहयोग दिया । यह जग जाहिर कि कुछ पति काम
नहीं करते या कर नहीं सकते और कुछ पत्नियों को पति का कार्य पसंद नहीं आता क्योंकि ऐसी पत्नियों को अपना ही किया हुआ
कार्य भाता है, अच्छा लगता है ।
हमने अपने बच्चों को घर के कार्य में हाथ बंटाने का संस्कार देना छोड़ दिया और बच्चों की फरमाइश 100% पूरी करनी
आरम्भ कर दी । क्या हमें अपने बच्चों में अपने भोजन किए हुए बर्तन धोने और अपने कपड़े स्वयं धोने ( कम से कम अंत:
वस्त्र ) के संस्कार किशोर अवस्था से नहीं डालने चाहिए ? क्या बच्चों को झाड़ू - पोछा करना या डस्टिंग करना, चाय
बनाना या सब्जी - सलाद काटना नहीं सिखाना चाहिए ? कई घरों के बच्चे ये सब काम बखूबी करते हैं । गांधी जी ने एन पी
(नेहरू - पटेल ) से साबरमती आश्रम में भोजन करने के बाद थाली धुलवाई थी क्योंकि यह आश्रम का नियम था ।
हमने अपने बच्चों को घरेलू कार्य में सहभागिता निभाने के संस्कार/नियम अवश्य डालने चाहिए । जिन्होंने ऐसा किया उनके
बच्चे आज इस दौर में जब कामवाली नहीं है तो घर के काम में मदद कर रहे हैं । आदर्श परिवार तो उसे कहा जाएगा जहां सभी
अपने अपने बर्तन स्वयं धोते हैं । हमारे देश में पुरुष द्वारा घर के बर्तन धोने को अच्छा नहीं समझा जाता था/जाता है
। इसका टेंडर/ठेका पूर्ण रूप से महिलाओं के नाम होता था/ है । तब भी कुछ पुरुष बर्तन धोने में हाथ बंटाते थे/ आज भी
बंटा रहे हैं । अब शिक्षा की बयार ने बराबरी का माहौल बना दिया है । इसलिए आपके लाडले को भी मालूम होना चाहिए कि आटा
गूंथते समय आटे में कितना पानी गिराया जाता है । पुरुष इस लेख से मसमसाएं नहीं अपितु खुलकर मेरा
मार्गदर्शन/सहमति/असहमति अवश्य दें । (इन पंक्तियों के लेखक पर महिलाओं को भड़काने/उकसाने का आरोप कई पुरुष मित्र
पहले ही लगा चुके हैं जो एक सुखद अनुभूति है ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
2 जून 2020
प्यार से खाओ दो जून की रोटी ।
खरी खरी - 637 : मैं ' मास्क ' बोल रहा हूं सर !
(आज अनलौक.1 का पहला दिन है । कल 31 मई 2020 को 68/68 दिन का लौकडाउन पूरा हो गया । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व
में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 62.63+/3.73+ लाख और देश में यही संख्या 1.9
लाख+/5.3+ हजार हो गई है । देश में करीब 86 हजार से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को
ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर चल रहे हैं । बेचारे मास्क की कोई नहीं सुन रहा है । इसलिए
मास्क आज आपसे फरियाद कर रहा है । मास्क की सुनो और कोरोना को हराओ । जीतेगा भारत, हारेगा कोरोना ।)
"जी आप मेरा निवेदन सुनिए । हां, जी मैं एक भारतवासी के गले में लटका हुआ ' मास्क ' बोल रहा हूं । 25 मार्च 2020 को
देश में आदेश हुआ कि घर से बाहर निकलने पर मुंह पर मास्क पहनना जरूरी होगा । इस बीच विगत 68 दिनों तक मैंने कई
नागरिकों के मुंह पर मास्क बंधा देखा । मेरी बिरादरी के कई रूप और रंग के मास्क मैंने इस बीच देखे । सस्ते भी देखे
और महंगे मास्क भी देखे । कई दुकानों ने मुझे आरम्भ में ऊंची कीमत पर भी बेचा । मेरे बारे में लिखने वाला ये मास्क
पहना हुआ लेखक भी एक कैमिस्ट की दुकान पर गया और मास्क के बारे में पड़ताल की । कैमिस्ट ने इसे ₹ 10/- से लेकर ₹
90/- तक के मास्क दिखाए । गरीब आदमी के लिए मास्क पर 10/- खर्च करना भी मुश्किल होता है । ज्यों ज्यों ये चीन का
कोरोना देश में बढ़ता गया मास्कों की जरवत भी बढ़ने लगी । फिर लोगों ने घर में ही मास्क बनाने शुरू कर दिए और गले
में लटकाकर वजह या बेवजह बाहर निकल पड़े । इस बीच कुछ देशप्रेमियों ने गरीबों को मुफ्त में भी मास्क बांटे
।"
"इस बीच मैंने देखा कि लोग पुलिस की डर से मास्क लटका कर चलने लगे हैं । जैसे ही पुलिस ने देखा तो मुंह पर लपेट दिया
और पुलिस के जाते ही गले में लटका दिया । मेरे देश के कुछ दुपहिए चालक भी तो हेलमेट को आगे लटकाकर ही चलाते हैं और
पुलिस को देख सिर में रख लेते हैं । ठीक वैसा ही व्यवहार मेरे साथ भी हो रहा है । कुछ लोग मुझे उतार कर जहां - तहां
सड़क/गली/फुटपाथ पर बेकद्री से फेंक भी रहे हैं जो बहुत खतरनाक हो सकता है और बीमारी का संक्रमण बढ़ सकता है । बहुत
प्रचार के बाद भी कुछ लोग नहीं समझ पाए कि ठीक से नाक - मुंह ढका हुआ मास्क उन्हें इस संक्रामक से बचाता है । यदि
केवल मुंह ढका है और नाक खुला है तो कोई लाभ नहीं होगा । यदि मास्क नहीं है तो रुमाल या गमछे से भी नाक - मुंह ढका
जा सकता है परन्तु बार बार मुंह - नाक को हाथ से छूने से भी कोई लाभ नहीं होगा ।"
" सर मैं बहुत व्यथित होकर आपको अपनी कहानी सुना रहा हूं ताकि आप भी बिना मास्क पहने हुए या सिर्फ गले में लटकाकर
घुमक्कड़ी करने वाले दुर्योधनों को विनम्रता से समझाएं कि मास्क पुलिस या किसी की डर से नहीं बल्कि स्वयं और अपने
परिवार को कोरोना राक्षस से बचाने के लिए जरूर पहनें और ठीक से नाक - मुंह ढकते हुए पहनें । यदि आप दिन में 2 - 4
दुर्योधन नों को भी समझा सके तो मैं आपको भारत माता का लाड़ला/लाड़ली कहते हुए साधुवाद दूंगा । मेरी इस विनती को आप
तक पहुंचाने वाले इन पंक्तियों के लेखक ने कई दुर्योधनों हाथ जोड़कर समझाने में सफलता हासिल की है । आप भी समझाइए तो
बात बनेगी सर । हारेगा कोरोना और जीतेगा भारत । जयहिंद ।"
पूरन चन्द्र कांडपाल
01.06.2020
बिरखांत - 321 : 31 मई तमाकु- धूम्रपान निषेध दिवस
हर साल ३१ मई हुणि पुर दुनिय में तमाकुल हुणी नुकसानोंक बार में जनजागृति क लिजी धूम्रपान निषेध (तमाकु निषेध )
दिवस
मनाई जांछ | यै हुणि WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे ) लै कई जांछ | संयुक्त राष्ट्र संघ
(UNO) कि संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) क अनुसार दुनिय में हर साल साठ लाख लोग कैंसर सहित तमाकु जनित रोगोंल
बेमौत मारी जानी जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप ल धूम्रपान क शिकार है जानी | वर्ष १९८९ में विश्व स्वास्थ्य संगठनल
एक प्रस्ताव पास करि बेर हर साल ३१ मई हुणि तमाकु निषेध दिवस मनै बेर जनजागृति करणक निर्णय ल्हेछ | य दिन हर साल एक
नयी नार दिई जांछ | वर्ष २०१६ क लिजी नार छ – तम्बाकू रहित युवा ( tobacco free youth) जैक उद्देश्य छ नौजवानों में
धूम्रपान कि लत रोकण |
तमाकुक सबै उत्पादों में जो चार हजार रसायन हुनी उनु में कुछ यास जहरिल हुनी जैक वजैल सेवनकर्ता कैं नश हुंछ | जब लै
यूं रसायनिक तत्वोंकि वीक खून में कमी ऐंछ उ तमाकु या धूम्रपान ढूँढण लागि जांछ | यूं जहरिल तत्वों में निकोटिन, टार
और कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हिंछ जो मनुष्य क लिजी भौत घातक हुनीं | तमाकु क सेवन ल हमूकैं शारीरिक, मानसिक,
आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक नुकसान हुंछ | हर रोज दस बटि पचास रुपै तक धूम्रपान पर खर्च करणी मैंस साल
में आपणि जेबाक चार हजार बटि बीस हजार रुपै तक भष्म करि द्यूंछ और बद्याल में गिच, मसुड़, गव, फेफड़ सहित शरीर क कएक
अंगों में कैंसर जास भयंकर रोगों क शिकार है जांछ |
क्वे लै मैंस कोई नश, धूम्रपान, तमाकु, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांज, चरस, अत्तर, नश्वार क प्रयोग करण आपण
मितुरों, दगडियों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत बटि सिखूँ | कुछ लोग त तमाकु -नश- धूम्रपान कैं
महिमामंडित लै करनी | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों कैं ‘भंगड़ी’ क रूप में सुल्प या ह्वाक में तमाकु या चरस- गांज
भरि बेर दिई जांछ, (अब शराब लै दिई जांरै) जैक य मतलब बतायी जांछ कि डंगरिय में नश पी बेर आत्मज्ञान पैद हुंछ |
कीर्तन मंडलि में लै सिगरट या सुल्प में भरि बेर ‘शिवजी की बूटी’ क नाम ल चरस पीई जैंछ जैकैं बाबाओं क खुलि बेर
समर्थन और संरक्षण प्राप्त छ | यूं लोग खुद त पीनी और दुसार लोगों कैं लै अप्रत्यक्ष रूप ल नश पेउनी |
क्वे बैठक या चौपाल में एक ठुलि चिलम (फरसी) में एक साथ कएक लोग तमाकु दगाड़ में पीनी | इनुमें अगर एक कैं लै टी बी
(क्षय) ह्वली तो चिलम दगाड में पीण ल सबू में फ़ैल सकीं | देवभूमि में बारातों में लै बीड़ी- सिगरट बड़ी शान ल बांटी
जानीं | बरेतियों या घरेतियों कैं नाश्ता और भोजन क बाद एक ट्रे या थाइ में बीड़ी- सिगरट लै परोसी जानीं | मुफ्त में
मिलनी तो सबै पीनी | नान लै लुकि-लुकि बेर पीनी | नि पिणी लै गिच पर लगै ल्हिनी | ‘मुफ्त क चन्दन घैंस म्यर नंदन’
वालि कहावत क प्रैक्टीकल देखण में औंछ | यसिकै मजाक में या मुफ्त में हाम धूम्रपान करण सिखि जानूं |
धूम्रपानक विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगोंल पुछौ, “सर भोजन करण बाद एकदम धूम्रपान क चटांग या हुड़क
क्यलै उठीं?” यह सवाल सही छ | यस अक्सर हुंछ | धूम्रपान करणियांक खून में निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रांछ,
उनुकैं क्ये लै परेशानी नि हुनि | भोजन करते ही उनर खून में निकोटिन क स्तर घटण फै जांछ क्यलै कि निकोटिन कैं कल्ज
(लीवर) निष्क्रिय करि द्यूंछ और भोजन क पश्चात लीवर में खूनकि बढ़ोतरी हुण फै जींछ | लीवर में ज्यादै खून पुजण क वजैल
उमें निकोटिन क स्तर निष्क्रिय हुण फै जांछ और धूम्रपान करणी कैं परेशानी अर्थात निकोटिन कि जरवत महसूस हुण फै जींछ
ज्येक वजैल उ भोजन क तुरंत बाद धूम्रपानक लिजी या तमाकु या गुट्ख (या अन्य नशा) क लिजी तड़फण फै जांछ |
य विषय भौत ठुल छ | बात ख़तम करण चानू | जब जागो तब सवेरा | अगर आपूं, आपण क्वे मितुर, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई
अनजान आपूं कैं धूम्रपान करते या गुटखा- तमाकु खाते हुए नजर ऐ जो तो एक बार विनम्रता क साथ जरूर कौ, “आपण कल्ज नि
फुक, फेफड़ में छेद नि कर, कैंसर कैं नि बला, आपण शरीर नि सुखा, ख़म-ख़म करनै हूं त्यार आंख वड्यार न्हैगीं, आपण नान और
घरवाइ क उज्यां चा |” धूम्रपान क सेवन करणी या गुट्ख खणी एक ता जरूर सोचल | मील प्रयास करौ और कतुक्वा कैं नश है
मुक्ति मिलि गे | एक ता आपूं लै करि बेर देखो त सही, भौत भल लागौल ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.05.2020
खरी खरी - 636 : प्रेस की निष्पक्षता
(आज लौकडाउन का 68/68वां दिन है । 68 दिन का लौकडाउन 31 मई 2020 को पूरा हुआ । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 61.53+/3.70+ लाख और देश में यही संख्या 1.81
लाख+/5.1+ हजार हो गई है । देश में करीब 71 हजार से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को
ढककर पहनिए । कुछ लोग केवल दिखाने के लिए मास्क लटकाकर चल रहे हैं । कोरोना को हराइए । जीतेगा भारत, हारेगा कोराना
।)
प्रेस स्वतंत्रता की स्वतंत्रता बनी रहे और प्रेस बेझिझक अपनी बात कहे तथा प्रेस की गुणवत्ता एवं उस पर विश्वास बना
रहे । प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते निडर, निर्भीक और निष्पक्ष बना रहे तभी हमारे देश का हित होगा और
प्रजातंत्र मजबूत रहेगा ।
वर्तमान में कई बार हम देखते हैं कि प्रेस निष्पक्ष नहीं होती । हमने हाल का चुनाव प्रचार देखा । ऐसा लग रहा था कि
प्रिंट और दृश्य-श्रवण मीडिया कई बार प्रायोजित प्रचार कर रहा है । साक्षात्कारों में मन चाहे प्रश्न पूछे या
पुछवाये जा रहे हैं । किसी दल की बात अधिक तो किसी की कम होती है । कार्टून के माध्यम से भी जो बात कही जाती है
उसमें कई टीवी चैनलों द्वारा एकतरफा बात कही जाती है अर्थात दूसरे दल या व्यक्ति का उपहास किया जाता है । स्पष्ट
दिखाई देता है कि चैनल एकतरफा पक्षकार हो गया है ।
प्रेस की स्वतंत्रता का मूल मंत्र है निष्पक्षता । हम आशा करते हैं कि हमारे देश की प्रेस स्वतंत्र रहे, अपनी
नैतिकता समझे, अपनी आचार संहिता बनाये और राष्ट्रहित में अपना कर्तव्य निभाये । साथ ही जो समाचार पत्र या मीडिया
चैनल जेबी बन गए हैं वे जेब से बाहर आकर जनहित में कार्य करें और किसी एक के दब्बू बनकर न रहें । यदि मीडिया दब्बू
बन कर रहा तो लोग दुखित -व्यथित होकर कहेंगे कि हमारे देश की प्रेस और मीडिया बिक गए हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.05.2020
मीठी मीठी - 463 : जाते समय किसी की दे जाओ रोशनी
(आज लौकडाउन का 66/68वां दिन है । 68 दिन का लौक डा उन 31 मई 2020 को पूरा होगा । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व
में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 59.04+/3.62+ लाख और देश में यही संख्या 1.65
लाख+/4.65+ हजार हो गई है । करीब 65 हजार से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर
पहनिए । कुछ लोग दिखाने के लिए सिर्फ लटकाकर चल रहे हैं । कोरोना को हराइए । जीतेगा भारत ।)
मृत्यु के बाद आँख की एक झिल्ली (कार्निया) का दान होता है । लोग मृत्युपरांत नेत्रदान इसलिए नहीं करते क्योंकि वे
सोचते हैं मृतक के आंखों पर गढ्ढे पड़ जाएंगे । मृतक के चेहरे पर कोई विकृति नहीं आती । हमारे देश में लगभग 11 लाख
दृष्टिहीन कार्निया की प्रतीक्षा कर रहे हैं और प्रतिवर्ष लगभग 25 हजार दृष्टिहीनों की बढ़ोतरी भी हो रही है
।
कार्निया आंख की पुतली के ऊपर शीशे की तरह एक पारदर्शी झिल्ली होती है । कार्निया का कोई कृत्रिम विकल्प नहीं है ।
एक नेत्रदान से दो दृष्टिहीनों को रोशनी मिल सकती है । किसी भी मृतक का नेत्रदान हो सकता है भलेही वह चश्मा लगता हो,
शूगर केस हो, मोतियाबिंद ऑपरेटेड हो अथवा उच्च रक्तचाप वाला हो । मृतक के आंखों पर तुरंत एक साफ कपड़े की गीली पट्टी
रख देनी चाहिए ताकि कार्निया सूखे नहीं ।
कैसे होगा नेत्रदान ? परिवार के सदस्य अपने मृतक का नेत्रदान कर सकते हैं । मृत्यु के 6 से 8 घंटे के दौरान नेत्रदान
हो सकता है । सूचना मिलते ही नेत्रबैंक की टीम बताए स्थान पर आकर यह निःशुल्क सेवा करती है । 15- 20 मिनट में मृतक
का कॉर्निया उतार लिया जाता है । नेत्रदान एक पुण्यकर्म है । इस पुण्य की चर्चा परिजनों से करनी चाहिए और नेत्रदान
में कोई संशय नहीं होना चाहिए । याद रखिये -
आंख चिता में जाएगी
तो राख बन जाएगी,
आंख कब्र में जाएगी
तो मिट्टी बन जाएगी,
यहां से विदा लेते समय
नेत्रों का दान करदो,
किसी को अंधकार में
रोशनी मिल जाएगी ।
(नेत्रदान के लिए कृपया 8178449226 /011-23234622 गुरु नानक नेत्र केंद्र नई दिल्ली से संपर्क किया जा सकता है
।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.05.2020
मीठी मीठी - 462 : कुमाउनी भाषाक व्याकरण
26 मई 2020 हुणि कुमाउनी भाषा में म्येरि 13उं किताब ' कुमाऊनी भाषाक व्याकरण ' प्रिंटिंग प्रेस में भेजि है । य
किताब कैं लेखण/पुर करण में द्वि साल है ज्यादै टैम लागौ । कोरोनाक य दौर में किताबोंक कैं लै भेजण या पुजण मुश्किल
है रौछ । प्रेस में लै लोग नि पुजैं राय । पत्र/पत्रिका/किताब/पार्सल अच्याल विगत तीन महैंण बै नि पुजैं राय ।
उम्मीद छ य दौर लै जल्दी निकल जाल तब साहित्य कि फसल फिर लहलहालि ।
किताबक प्रकाशक - कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रसार समिति, कसार देवी , अल्मोड़ा (उत्तराखंड ) ।
(कोरोना लौकडाउनक ध्यान धारिया । आज लौकडाउनक 64/68उं दिन छ । विश्व में संक्रमित/मृतक संख्या 56.81+ लाख/ 3.52+लाख
और देश में 1.50+लाख/4.3+ हजार हैगे जो भौत दुखद छ । भौत दुख छ कि आज अमरीका में मृतक संख्या एक लाख है ज्यादा हैगे
और संक्रमित संख्या 17.25 लाख हैगे । य बीमारीक के इलाज लै न्हैति, सिर्फ आपण बचाव येक इलाज छ । कोरोना कर्मवीरोंक
सम्मान जरूर करिया । )
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.05.2020
खरी खरी - 635 : आज कारगिल युद्ध की याद
(आज लौकडाउन का 63/68वां दिन है । 68 दिन का लौक डा उन 31 मई 2020 को पूरा होगा । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व
में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 55.87+/3.47+ लाख और देश में यही संख्या 1.44
लाख+/4.1+ हजार हो गई है । करीब 54 हजार से अधिक संक्रमित ठीक भी हुए हैं । मास्क ठीक तरह से मुंह और नाक को ढककर
पहनिए । कुछ लोग दिखाने के लिए सिर्फ लटकाकर चल रहे हैं । कोरोना को हराइए । जीतेगा भारत ।)
( स्वच्छता हमारी सबसे बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है । जबसे लौकडाउन शुरू हुआ लोगों ने कूड़ा पार्कों में डालना शुरू
कर दिया है । लगभग सभी पार्क कूडादान बन गए हैं । सबसे दुखद बात यह है कि मजदूर तो मजबूरी में रोते - बिलखते अपने
गांवों को पलायन कर रहे हैं परन्तु शहरों में भी लोग कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे ( विशेषतः युवा पीढ़ी )।
परिणाम स्वरूप आज 63 वें दिन देश में कोरोनाआ संक्रमितों की संख्या 144000 को पार कर चुकी है और 4100 से अधिक ग्रास
बन चुके हैं । यदि हम इसे बीमारी को नहीं समझेंगे और मनमानी करते रहेंगे तो देश को बहुत गंभीर संकट से गुजरना पड़
सकता है । सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं ।)
कारगिल युद्ध ( 1999) जिसमें हमारे पांच सौ से अधिक सैनिक शहीद हुए उस मुशर्रफ की देन थी जो इस युद्ध से पहले भारत
आया था और ताजमहल के सामने अपनी बेगम के साथ बैठ कर फोटो खिचवा कर चला गया | देश के सभी तांत्रिकों ने उस पर मिलकर
कोई तंत्र क्यों नहीं किया ? हमारी सीमा पर वर्ष 1989 से अब तक आये दिन उग्रवादी घुसपैठ करते आ रहे हैं | विगत 30
वर्षों में उग्रवाद के छद्म युद्ध में हमारे हजारों सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं |
देश के सभी ज्योतिषी, ग्रह- साधक, तंत्र विद्या और काला जादू में स्वयं को माहिर बताने वाले इस पाक प्रायोजित छद्म
युद्ध को क्यों नहीं रोकते और उग्रवादियों पर अपना प्रभाव क्यों नहीं दिखाते ? ये लोग थार के तप्त मरुस्थल में कभी
एकाद बारिश ही करा देते | ये सब अंधविश्वास के पोषक हैं और अज्ञान के अन्धकार में डूबे लोगों को अपने शब्द जाल से
लूटते हैं | दूसरे शब्दों में ये अंधभक्तों को उल्लू और उल्लुओं को अंधभक्त बनाते हैं |
(26 मई 1999 को कारगिल युद्ध की शुरुआत हुुई जो 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ । इस युद्ध में हमारे 500 से अधिक सैनिक
शहीद हुए । इन शहीदों को शत शत नमन और जयहिंद के साथ बहुत बड़ा सलूट ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.05.2020
मीठी मीठी - 461 : ईद की शुभकामना
होली दीवाली दशहरा,
पितृ पक्ष नवरात्री,
'ईद' क्रिसमस बिहू पोंगल
गुरुपुरब लोहड़ी,
वृक्ष रोपित एक कर
पर्यावरण को तू सजा,
हरित भूमि बनी रहे
जल जंगल जमीन बचा ।
सभी मित्रों को ईद की शुभकामना । सोसल मीडिया में एक-दूसरे को ईद की शुभकामनाएं दी जा रही हैं । ईद खुशी, प्रेम,
सौहार्द और मिलन का पर्व है । इस अवसर पर अन्य त्यौहारों की तरह एक पेड़ अवश्य रोपित करें, धरती का श्रंगार करें और
पृथ्वी को खुशहाल बनाएं तथा लॉकडाउन का सम्मान करें तथा सभी को कोरोना संक्रमण से बचाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.05.2020
खरी खरी - 634 : कोरोना में मजूरों कि रोवारोव थामणी चैनी
(आज लौकडाउनक 62/68वां दिन छ । संक्रामक रोग कोरोना पुर विश्व में बढ़ते जां रौ । आज तली विश्व में कोरोना
संक्रमित/मृत संख्या 54.97+/3.46+ लाख और देश में य ई संख्या 1.38 लाख+/3.9+ हजार छ । लौकडाउन क नियम मानो और कोरोना
है बचो ।)
मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।
अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में एक मस्याव
जगूणी चैनी ।
मसमसै..
क्ये दुखै कि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणी कैं एक आऊं
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...
लौकडाउनक य दौर में
कुछ बेसउरि देह दूरी नि धरैं राय
नाक -गिच पर मास्क नि लगूं राय
यूं दुर्योधनों कैं पकड़ि बेर
महाव लगूणी चैनी ...
अच्याल मजूर मजबूरी में गौं जां रईं
हिटन-हिटनै उनार खुटां में छाव पड़ि गईं
भुख -लाचार छीं बिचार डाड़ मारैं रई
यूं लाचारों कि रोवारोव कैं
थामणी चैनी...
मसमसैर बेर के नि हुन...
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.05.2020
खरी खरी - 633 : हम स्वच्छता का ध्यान नहीं रखते
(आज लौकडाउन का 61/68वां दिन है ।18 मई 2020 से 14 दिन के लिए 31 मई 2020 तक बढ़ा दिया है जिसे चौथा लौकडाउन कहा
जाता है, जो अब कुल 68 दिन का हो गया है । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में
कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 54.01+/3.43+ लाख और देश में यही संख्या 1.31 लाख+/3.8+ हजार हो गई है । मास्क ठीक तरह
से मुंह और नाक को ढककर पहनिए । कुछ लोग दिखाने के लिए सिर्फ लटकाकर चल रहे हैं । कोरोना को हराइए । जीतेगा भारत ।)
आज के वीडियो में मैंने कुछ समय पहले स्वच्छता की चर्चा की थीं । समाज में बदलाव जल्दी नहीं आता । आज भी गंदगी का
वही आलम है । लोग अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते । स्वच्छता हमारी सबसे बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है । जबसे लौकडाउन शुरू
हुआ लोगों ने कूड़ा पार्कों में डालना शुरू कर दिया है । लगभग सभी पार्क कूडादान बन गए हैं । सबसे दुखद बात यह है कि
मजदूर तो मजबूरी में रोते - बिलखते अपने गांवों को पलायन कर रहे हैं परन्तु शहरों में भी लोग कोरोना को गंभीरता से
नहीं ले रहे ( विशेषतः युवा पीढ़ी )। परिणाम स्वरूप आज 61 वें दिन देश में कोरोनाआ संक्रमितों की संख्या 131000 को
पार कर चुकी है और 3800 से अधिक ग्रास बन चुके हैं । यदि हम इसे बीमारी को नहीं समझेंगे और मनमानी करते रहेंगे तो
देश को बहुत गंभीर संकट से गुजरना पड़ सकता है । सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं । जयहिंद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.05.2020
खरी खरी - 632 : 2019 क लोकसभा चुनाव स्मरण
आज लौकडाउनक 60/68वां दिन छ । संक्रामक रोग कोरोना पुर विश्व में बढ़ते जां रौ । आज तली विश्व में कोरोना
संक्रमित/मृत संख्या 53.03+/3.39+ लाख और देश में य ई संख्या 1.24 लाख+/3.7+ हजार छ । लौकडाउन क नियम मानो और कोरोना
है बचो । 2019 लोकसभा चुनाव कि याद आजक वीडियो में ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.05.2020
बिरखांत- 318 : सेना का दिल से सम्मान
(आज लौकडाउन का 59/68वां दिन है ।18 मई 2020 से 14 दिन के लिए 31 मई 2020 तक बढ़ा दिया है जिसे चौथा लौकडाउन कहा
जाता है, जो अब कुल 68 दिन का हो गया है । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में
कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 51.94+/3.34+ लाख और देश में यही संख्या 1.17 लाख+/3.5+ हजार हो गई है । लौकडाउन के नियम
मानिए और कोरोना को हराइए ।)
अक्सर कुछ अलगाववादी और असामाजिक तत्व जानबूझ कर हमेशा ही हमारी सेना को बदनाम करने की फिराक में रहते हैं ताकि सेना
का मनोबल टूटे | हमारी अनुशासित सेना का मनोबल इनके षड्यंत्र से कभी भी नहीं गिरेगा | हमारी लाडली सेना से हमें बहुत
उम्मीद है | वह राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा तो करती है, हमें अन्य गर्दिशों जैसे सूखा, बाड़, भूकंप, दंगे जैसी
मुश्किलों में भी मदद करती है | बर्फीला सियाचीन हो या थार का तप्त मरुस्थल, नेफा- लेह- लद्दाख हो या रण-कच्छ का
दलदल | पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण सहित देश की दशों दिशाओं में सेना का निरंतर पहरा रहता है जिससे हमारा देश
सुरक्षित है ।
अपने प्राणों को न्यौछावर करके सेना अपना कर्तव्य निभाती है | तिरंगे में लिपट कर जब हम अपने कुछ शहीदों के पार्थिव
शरीर देखते हैं तो उनकी वीरता और साहस पर नम आँखों से हमें गर्व होता है | तिरंगे में लिपटा हुआ वह वीर शहीद हम में
से किसी का बेटा होता है या किसी का पिता और या किसी का पति | उसके अलविदा कह जाने से कोई अनाथ होता है या कोई विधवा
होती है या किसी की कोख सूनी होती है परन्तु पूरा राष्ट्र उस शहीद परिवार के साथ होता है और शहीद परिवार को श्रद्धा
से नमन करता है | हम अपने इन शहीद महामानवों को प्रणाम करते हैं, सलाम करते हैं और गर्व से सलूट करते हैं |
हमारी सेना को बदनाम करने की साजिश कुछ असामाजिक तत्व दुर्भावनावश स्वतंत्रता के बाद से ही करते आये हैं | इन
पंक्तियों के लेखक को अपने देश की सीमाओं पर कर्तव्य निभाने का अवसर प्राप्त हुआ है | पंजाब (1970-71), नागालैंड,
मणिपुर, मीजोराम, मेघालय (1976-78) तथा जम्मू-कश्मीर (1982-83) आदि जगहों पर स्थानीय जनता के बीच रह कर इन क्षेत्रों
को अच्छी तरह देखा है |
जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में कुछ उग्रवादी संगठनों के बहकावे में लोग सेना पर जानबूझ कर लांछन लगाते हैं और वहाँ
से सेना को हटाने का षड्यंत्र रचते रहते हैं क्योंकि सेना के रहते उनकी नापाक हरकतें कामयाब नहीं होती | वर्ष 1958
से पूर्वोत्तर में तथा 1990 से जम्मू-कश्मीर में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट (आफ्सा) लगा है ताकि सेना को
कर्तव्य निभाने में रुकावट न रहे | अलगाववादी तत्व इस ऐक्ट को हटाना चाहते हैं, इसी कारण वे सेना पर अक्सर कई तरह के
घृणित लांछन लगाते रहते हैं और मानवाधिकार रक्षक संस्थाओं के पास जाने की धमकी भी देते रहते हैं |
कुछ वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में अलगाववादियों ने सेना पर एक स्कूली छात्रा के साथ
छेड़खानी करने का आरोप लगाया | छात्रा ने वीडियो जारी कर इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और सेना पर लगे लांछन को
स्थानीय असामाजिक तत्वों का षड्यंत्र बताया | इस बीच अलगाववादियों ने उपद्रव भी शुरू कर सेना के चौकी पर पथराव कर
दिया | सेना को उन्हें तितर-बितर करने के लिए हवा में गोली चलानी पड़ी ।
हमें सेना को बदनाम करने के लिए षड्यंत्रकारियों के नापाक मंसूबों को समझना होगा | हमारी सेना पर आरम्भ से ही दाग
लगाने की साजिश चल रही है | भारत की सेना विश्व की सबसे अनुशासित सेनाओं में से एक है जिसका चरित्र और मनोबल बहुत
ऊँचा है जिस पर इस प्रकार के अमानुषिक आरोप कुछ विकृत मानसिकता के लोग ही लगाते रहे हैं जो कभी भी सिद्ध नहीं हुए |
हम अपनी सेना को दिल की गहराइयों से सलूट करते हैं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.05.2020
मीठी मीठी - 460 : पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, आज पुण्यतिथि
आज लौकडाउन का 58/68वां दिन है । 54 दिन का लागातार तीसरा लौकडाउन रहा जिसे 18 मई 2020 से 14 दिन के लिए 31 मई 2020
तक बढ़ा दिया है जिसे चौथा लौकडाउन कहा जाएगा, जो अब कुल 68 दिन का हो गया है । संक्रामक रोग कोरोना पूरे विश्व में
बढ़ते जा रहा है । आज तक विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 50.85+/3.29+ लाख और देश में यही संख्या 1.11
लाख+/3.4+ हजार हो गई है ।
अपने घरों को पलायन करते हुए मजदूरों की हालत देख सभी का मन द्रवित है । जो कष्ट वे भुगत रहे हैं वह देखा नहीं जाता
। कौन जिम्मेदार है इन मजदूरों की इस टूटती जिंदगी का ? कहां त्रुटि हुई ? किससे त्रुटि हुई ? मजदूरों को धैर्य रखना
होगा । अपने जीवन से न खेलें और घर जाने के लिए रेल या वाहनों की प्रतीक्षा करें, पैदल न जाएं, रेल पटरी से न जाएं
।
आज पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न, राजीव गांधी की पुण्य तिथि हैं । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए
पुस्तक ' लगुल ' से उनके बारे में लघु लेख यहां उद्घृत है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
21.05.2020
मीठी मीठी-457 : शेरदा 'अनपढ़' - पुण्यतिथि पर याद
(आज लौकडाउन क 57/68ऊं दिन छ । आज तली विश्व में कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 49.85/3.24 लाख और देश में य संख्या
1.06 लाख+/3.2+ हजार हैगे । लौकडाउनक सम्मान करिया, भ्यार झन अया । कोरोना कर्मवीरोंक मनोबल बढ़ाया । )
आजकि मीठी मीठी सुप्रसिद्ध कुमाउनी कवि शेरसिंह बिष्ट 'शेरदा अनपढ़' (3.10.1933 - 20.5.2012) कैं सादर समर्पित छ ।
शेरदा दगै मंच पर भैटण कएक ता मौक मिलौ ।अल्माड़ बै प्रकाशित हुणी कुमाउनी मासिक पत्रिका 'पहरू'क (संपादक डॉ हयात
सिंह रावत) अंक जून-2017 में छपी उनरि कविता 'राम-राज ' पर एक नजर -
तिरंग रंगी रौ
सौ रंग में आज,
ढडू खानईं जाम पुंजि
बंढाडु खानईं ब्याज,
खान खानै फिर लै
रकसी रईं आज,
त्यार-म्यार हिस्स ददा
लूण दगै प्याज,
ओ शेरदा !
यै छु राम-राज ।
(शेरदाक बार में एक लघु वीडियो और लेख म्येरि किताब 'लगुल ' बै यां उद्धरत छ। शेरदा कैं विनम्र
श्रद्धांजलि।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.05.2020
खरी खरी - 630 : चाह है तो कर्म जरूरी (कोरोना भी घर आना नहीं चाहता )
(आज लौकडाउन का 54/54वां दिन है । इस तरह तीसरा लौकडाउन पूरा हुआ । अब आगे के प्रतीक्षा । विश्व को कोरोना
संक्रमित/मृत संख्या 47.19/3.13 लाख और देश में यही संख्या 89+/2.8+ हजार हो गई है । घर में रहें और लौकडाउन तथा
कर्मवीरों का सम्मान करें । आज कविता ' चाह है तो कर्म जरूरी ' पर दृष्टि डालिए ।)
भोजन सभी को चाहिए लेकिन
खेती करना कोई नहीं चाहता,
पानी सभी को चाहिए लेकिन
पानी बचाना कोई नहीं चाहता,
दूध सभी को चाहिए लेकिन
गाय पालना कोई नहीं चाहता,
छाया सभी को चाहिए लेकिन
पेड़ लगाना कोई नहीं चाहता,
बहू सभी को चाहिए पर
बेटी बचाना कोई नहीं चाहता,
सफलता सबको चाहिये लेकिन
परिश्रम करना कोई नहीं चाहता ,
जागृति सभी चाहते हैं पर
जागरूकता करना कोई नहीं चाहता ।
नशे से नफरत सभी करते हैं पर
घर के नशेड़ी को कोई नहीं टोकता ।
कोरोना से सभी बचना चाहते हैं
लेकिन लौकडाउन कोई नहीं चाहता ।
घर में रहो सभी कह रहे हैं लेकिन
घर में रहना कोई नहीं चाहता ।
तुम यदि घर में ही रहे, बाहर न निकल तो
कोरोना भी तुम्हारे घर आना नहीं चाहता ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.05.2020
मीठी मीठी - 456: अविरल कलमघसीटी का आज 1096वां दिन
(आज लौकडाउन का 53/54वां दिन है । विश्व को कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 46.26/3.08 लाख और देश में यही संख्या
84+/2.7+ हजार हो गई है । घर में रहें और लौकडाउन तथा कर्मवीरों का सम्मान करें । आज ' मेरी कलम घसीटी ' पर एक नजर
।)
मित्रो फेसबुक और व्हाट्सएप पर लगातार कलमघसीटी के आज 16 मई 2020 को पूरे 1096 दिन हो गए । सोसल मीडिया में लिखना तो
वर्ष 2013 के आरंभ से चल रहा है परंतु यह नियमित अथवा प्रतिदिन नहीं था । बीच बीच में रुक -रुक कर चलते रहा परन्तु
15 मई 2017 से लगातार रहा, एकदिन भी नहीं छूटा । सोसल मीडिया की इस लेखन यात्रा में अब तक 4 शीर्षकों के माध्यम से
बिरखांत के 317, खरी -खरी के 629, ट्वीट के 1057 और मीठी-मीठी के 456 लेख लिखे जिनका कुल योग 2459 होता है ।
अविरल लेखन के 1096वें दिन पर मैं अपने फेसबुक के पसन्दकारों, टिप्पणीकारों, आलोचकों, व्हाट्सएप के करीब दो दर्जन से
अधिक समूहों तथा सैकड़ों पाठकों को नमन करता हूँ और सबका हार्दिक आभार भी व्यक्त करता हूँ । आप सभी मुझे प्रेरित
करते हैं, मेरी लेखनी पर धार लगाते हैं, मेरा मार्ग-दर्शन करते हैं और मेरी आलोचना करते हैं तथा मुझे ऊर्जा देते हैं
। आशा है भविष्य में भी मेरे शब्दों की माला पर आपका स्नेह बरसते रहेगा । यही मेरे लिए आपका दिया हुआ सबसे बड़ा
पुरस्कार भी होगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.05.2020
बिरखांत-317 : अवैध धार्मिक निर्माण और न्यायालय
(आज लौकडाउन का 52/54वां दिन है । विश्व को कोरोना संक्रमित/मृत संख्या 45.25/3.03 लाख और देश में यही संख्या
81+/2.6+ हजार हो गई है । घर में रहें और लौकडाउन का सम्मान करें । भगवान और धर्म के नाम पर होने वाले अनुचित
कार्यों का मंथन करें और भगवान को समझें तथा कर्मवीरों का सम्मान करें । )
भगवान महावीर जैन, भगवान् गौतम बुद्ध और गुरु नानक देव जी, हिन्दू धर्म से अलग हुए तीन पंथों की नींव डालने वाले
महमनीषियों को हम जानते हैं | महावीर जैन का जन्म 599 ई.पू. हुआ और 72 वर्ष की आयु में 527 ई.पू. में महाप्रयाण हुआ
| ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत पर सत्य, अहिंसा एवं कर्म पर चलने तथा लालच, झगड़ा, छल-कपट और क्रोध से दूर रहने का
उन्होंने संदेश दिया | भगवान् बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में तथा 80 वर्ष की आयु में 483 ई.पू. में देहावसान हुआ |
उन्होंने भी अहिंसा एवं उच्च चरित्र का उपदेश दिया और अंगुलीमाल जैसे मानव हत्यारे का हृदय परिवर्तन कर उसे संत
बनाया | गुरुनानक देव जी का जन्म 1469 ई. में हुआ और 70 वर्ष की आयु में 1539 ई. में उनका देहावसान हुआ | उन्होंने
‘ईमानदारी से कमाओ, बाँट कर खाओ और परमात्मा को याद करते हुए जनहित में कर्म करते जाओ’ का संदेश दिया |
इन तीनों ही महामनीषियों ने हिन्दू समुदाय में व्याप्त अंधविश्वास, कुरीतियां, आडम्बर और दिखावा से कुपित होकर नए
पंथ की स्थापना की | लगभग 2500 वर्षों से इन्हीं के तरह कई संतों ने हमारी कमियों को उजागर किया, हमें कई बार जगाया
परन्तु हम नहीं बदले | आज हमारे ही बीच से आर्य समाज के अनुयायी भी अंधविश्वास और रूढ़िवाद को मिटाने में बहुत संघर्ष
के साथ जुटे हैं |
अंधविश्वास ने सभी धर्म/संप्रदायों सहित हिन्दू धर्म को भी बहुत नुकसान पहुँचाया है | मंदिरों में महिला और दलित
प्रवेश पर पाबंदी, पूजालयों में पशु बलि, मूर्तियों का दूध- तेल अभिषेक, वर्षा कराने के नाम पर विशालकाय यज्ञ,
स्वर्गलोक की कल्पना, गंडे -ताबीज और तंत्र के माध्यम से लूट, जल-स्रोतों में शव, शव-राख और अन्य वस्तुओं का विसर्जन
आदि जैसे कई अंधविश्वासों के सांकलों में समाज आज भी बंधा है जिसे कुछ को छोड़ सभी के मूक समर्थन प्राप्त है
|
धर्म के नाम पर हमारी इन विसंगतियों को देश का सर्वोच्च न्याय मंदिर भी जानता है | कुछ वर्ष पहले एक राष्ट्रीय
हिन्दी दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की खिचाई
इसलिए की क्योंकि इन्होने अदालत के उस निर्देश का पालन नहीं किया जिसमें कहा गया था कि वे सार्वजनिक सड़कों और
फुटपाथों पर बने अवैध धार्मिक निर्माण/ढांचों को हटाने की दिशा में उठाये गए क़दमों की जानकारी दें | न्यायालय वर्ष
2006 में दायर उन याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था जिसमें सार्वजनिक स्थानों एवं सड़क के किनारे से पूजास्थल समेत
अनाधिकृत ढांचों को हटाने का पहले ही आदेश दिया था |
आज कोई भी व्यक्ति धर्माचार्य बन कर तंत्रिकता और अंधविश्वास को पोषित करता है | गुटखा मुंह में डाले अपने तथाकथित
प्रवचन में चोरी से बिजली का कनकसन लेकर चोरी नहीं करने का संदेश देता है तथा अंधविश्वास फैलाता है | समय की मांग है
कि एक आर एम पी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर) की तरह इनके लिए भी शिक्षा का स्तर और योग्यता सुनिश्चित की जानी
चाहिए तथा इसी आधार पर इन्हें लाइसेंस दिया जाना चाहिए जिससे देश और समाज का हित हो तभी दुनिया हमें सपेंरों का देश
कहना बंद करेगी |
हम देखते हैं किसी भी सड़क के किनारे पेड़ के नीचे एक गेरू लगे पत्थर को तीन पत्थरों से ढक कर उसी शाम वहाँ पर एक दिया
जलाकर मंदिर तैयार हो जाता और दूसरे दिने वहां एक चरसिया व्यक्ति गेरुवे वस्त्र पहन कर बैठ जाता है जिसे लोग तुरंत
बाबा कहने लगते हैं | यह बाबा कौन है कोई नहीं पूछता | हमें इस मुहीम में मुंह खोलना चाहिए और किसी भी धर्म की मान-
मर्यादा को ठेश पहुँचाने वालों को सामूहिक तौर से बेनकाब करना चाहिए | धर्माचार्यों से भी विनम्र अपील है कि वे समाज
में व्याप्त अन्धविश्वास के विरोध में जनजागृति कर राष्ट्र –हित में योगदान दें |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.05.2020
खरी खरी - 629 : तीन क्षणिकाएं
(आज लौकडाउन का 51/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या
44.27+ लाख/2.98+ लाख और देश में 77+हजार /2.5+ हजार हो गई है । देेश में 24 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं ।
कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । आज समसामयिक ' तीन क्षणिकाएं ' देखिए ।)
1. भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार के गहरे समुद्र में
मछलियों पर गाज,
मगरमच्छ नज़र अंदाज़
अफसोस ! कैसा रिवाज ?
2. अवैध निर्माण
अवैध निर्माण
बन जाता है वैध
सेवापानी होते ही
अति शीघ्र निर्वाण ।
3. कैबिन में छेड़छाड़
चश्मदीत मरीजों ने
डाक्टर को पीटा
दवा के लिए नहीं,
अपने कैबिन में एक
महिला रोगी को
छेड़ रहा था ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.05.2020
खरी खरी - 628 : समय के अनुसार बदलाव जरूरी
(आज लौकडाउन का 50/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या
43.39+ लाख/2.92+ लाख और देश में 74+हजार /2.4+ हजार हो गई है । देेश में 21 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं ।
कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । आज ' समय के अनुसार बदलाव जरूरी ' पर चर्चा ।)
वक्त के हिसाब से बदलना जरूरी । वैदिक साहित्य लगभग 3500 वर्ष पहले लिखा गया । आज विज्ञान ने हमें बहुत कुछ दे दिया
है । जाति के आधार पर किसी को श्रेष्ठ कहना उचित नहीं है । जो ज्ञान प्राप्त करेगा वह श्रेष्ठ होगा । व्यास -
वाल्मीकि श्रेष्ठ बने अपने ज्ञान से । आज हम संविधान के अनुसार चलते हैं । जो ज्ञानी होगा वह पूजनीय होगा । घर
-मंदिर बनाने वाले शिल्पकार/दलित से भेदभाव उचित नहीं । उसके साथ वैसा ही व्यवहार हो जैसा हम सबसे करते हैं । हम
ढाबे में कभी नहीं पूछते रोटी/खाना किसने बनाया ? स्थान स्वच्छ हो, भोजन स्वच्छ हो और बनाने वाला स्वच्छ हो । अन्न
तो परमेश्वर है । भगवान या वायरस अमीर - गरीब या ऊंच - नीच नहीं देखते । सब एक समान ।
मैं आज के युग की बात करता हूं । गंगा पौराणिक युग में राजा सगर लाए परन्तु आज हम बच्चों को बताते हैं गंगा
गंगोत्री, उत्तराखंड से निकलती है । सूर्य - चन्द्र ग्रहण कोई राहू - केतू नहीं है, यह पृथ्वी/चन्द्र की छाया से
होता है । सूर्य स्थिर है जबकि कहा जाता था घूम रहा है । यदि कोई आज भी उसी पौराणिक युग में जीना चाहे तो मोबाइल,
इंटरनेट, कार, एसी, टीवी, फ्रिज, सहित विज्ञान प्रदत सब चीजों का त्याग करे और उसी युग का जीवन जीये । विज्ञान प्रदत
वस्तुओं का आनंद लेकर दूसरों को पौराणिक युग में जीने का प्रवचन/भाषण देना उचित नहीं । ज्ञान किसी भी युग का हो, जन
हितैषी हो और सर्वहिताय हो, तो उसे अवश्य लेना चाहिए । तभी तो कहा - सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे संतु निरामया
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
13.05.2020
मीठी मीठी - 455 : ओम जय जगदीश हरे
(आज लौकडाउन का 49/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या
42.54+ लाख/2.87+ लाख और देश में 70 +हजार /2.2+ हजार हो गई है । देेश में 19 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं ।
कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । आज ' ओम जय जगदीश हरे ' पर चर्चा । )
हम सब 'ओम जय जगदीश हरे ' आरती को अपने घर के मंदिर या अन्य मंदिरों में अक्सर गाते हैं भले ही इसका अर्थ नहीं समझते
या इसके काथनानुसार नहीं चलते । इस आरती का लेखक कौन है ? यह प्रश्न हम नहीं पूछते । हम तो लोकप्रिय गीत 'ये मेरे
वतन के लोगो ' भी गाते हैं परन्तु इसके गीतकार को भी नहीं जानते और न जानने की कोशिश करते हैं ।
आरती के अंत में कुछ लोगों ने अपना नाम भी जोड़ दिया - कहत ' फलाना..... स्वामी ' जबकि वे इसके लेखक नहीं हैं ।
कुंडली विधा में या पदों में में लेखक अपना नाम 5वें चरण /अंतिम पद में जोड़ता है । इस आरती के लेखक दिवंगत पंडित
श्रृद्धा राम फिल्लौरी जी को बताया जाता है । वे फिल्लौर (लुधियाना के निकट, पंजाब) के रहने वाले थे । उनका जन्म
1837 में हुआ । वे एक विद्वान व्यक्ति थे । लगभग 1870 के दौरान उन्होंने इस आरती को लिखा और उन्होंने ही इसको संगीत
- स्वर वद्ध भी किया । वे इसे भागवत कथा के बाद गाते थे । (संदर्भ साभार राहुल सिन्हा ) ।
उनके खंडहर मकान को कुछ महिलाओं ने 1996 में ठीक किया । अब वहां प्रतिदिन आरती होती है । इस आरती को फिल्म 'पूरब -
पश्चिम ' में मनोज कुमार जी ने स्थान दिया और अंत में एक पंक्ति ' तेरा तुझको... क्या लागे मेरा ' जोड़ते हुए घर -
घर तक पहुंचाया ।
'ये मेरे वतन के' गीत के लेखक पंडित प्रदीप (कवि ) हैं जबकि लता जी ने इसे स्वर दिया । हमें उन लेखकों का नाम जानने
की जिज्ञासा होनी चाहिए जिनके रचना का हम आनंद लेते । लोग इन अनाम लेखकों की रचनाओं से आजकल व्यवसाय करने लगे हैं ।
हमारे कुछ गायक भी मंच से गीत गाने से पहले उस लेखक का नाम नहीं लेते जिसका लिखा हुआ गीत गाकर वे पारिश्रमिक लेते
हैं । यदि उनका नाम लेंगे तो उस गाने वाले को भी सम्मान मिलेगा । अतः 'फिल्लौरी जी को याद रखिए और आरती के शब्दों का
मंथन करते हुए उन पर चलने का प्रयास करिए । अन्यथा हम 'मात - पिता तुम मेरे ... कहते तो जरूर हैं परन्तु स्थिति अरबी
के पत्ते की तरह रहती है जिस पर जल का कोई असर नहीं होता । फिल्लौरी जी की जै । आशा के दीप से प्रकाश करते हुए
कोरोना रूपी निराशा के अन्धकार को हम जरूर मिटाएंगे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.05.2020
बिरखांत - 319 : कफल्टा का शर्मनाक हत्याकांड
(आज लौकडाउन का 48/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक
संख्या 41.46+ लाख/2.81+ लाख और देश में 65 +हजार /2.1+ हजार हो गई है । देेश में 19 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं ।
कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत। आज कफल्टा हत्याकांड की बरसी पर बिरखांत प्रस्तुत है । )
9 मई 1980 उत्तराखण्ड के इतिहास की सबसे काली तारीखों में से एक है । इस दिन कुमाऊं के कफल्टा नाम के एक छोटे से
गाँव में थोथे सवर्ण जातीय दंभ ने पड़ोस के बिरलगाँव के चौदह दलितों की नृशंस हत्या कर डाली थी. इसके बाद देश भर का
मीडिया वहां इकठ्ठा हुआ था । दिल्ली से तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को भी मौके पर पहुंचना पड़ा था ।
देवभूमि कहलाने वाले उत्तराखण्ड की सतह ऊपर से कितनी ही मानवीय और मुलायम दिखाई दे, सच तो यह है कि यहाँ के ग्रामीण
परिवेश में सवर्णों और शिल्पकार कहे जाने वाले दलितों के सम्बन्ध सदी-दर-सदी उत्तरोत्तर खराब होते चले गए हैं । इस
बात की तस्दीक एटकिन्सन का हिमालयन गजेटियर भी करता है । इन तनावपूर्ण लेकिन अपरिहार्य रिश्तों पर कफल्टा में पुती
कालिख अभी तक नहीं धुल सकी है ।
सारा मामला एक बारात को लेकर शुरू हुआ था । लोहार जाति से वास्ता रखने वाले श्याम प्रसाद की बारात जब कफल्टा गाँव से
होकर गुजर रही थी तो गाँव की कुछ महिलाओं ने दूल्हे से कहा कि वह भगवान बदरीनाथ के प्रति सम्मान दिखाने के उद्देश्य
से पालकी से उतर जाए । चूंकि मंदिर गाँव के दूसरे सिरे पर था, दलितों ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि दूल्हा
मंदिर के सामने पालकी से उतर जाएगा । इससे बौखलाई महिलाओं ने गाँव के पुरुषों को आवाज दी जिसके बाद गाँव में उन
दिनों छुट्टी पर आये खीमानन्द नाम के एक फ़ौजी ने जबरन पालकी को उलटा दिया । ब्राह्मण खीमानन्द की इस हरकत से नाराज
हुए दलितों ने उस पर धावा बोल दिया जिसमें उसकी मृत्यु हो गई ।
अब बदला लेने की बारी ठाकुरों और ब्राह्मणों की थी । अपनी जान बचाने को सभी बारातियों ने कफल्टा में रहने वाले
इकलौते दलित नरी राम के घर पनाह ली और कुंडी भीतर से बंद कर दी । ठाकुरों ने घर को घेर लिया और उसकी छत तोड़ डाली ।
छत के टूटे हुए हिस्से से उन्होंने चीड़ का सूखा पिरूल, लकड़ी और मिट्टी का तेल भीतर डाला और घर को आग लगा दी
।
छः लोग भस्म हो गए और जो दलित खिड़कियों के रास्ते अपनी जान बचाने को बाहर निकले उन्हें खेतों में दौड़ाया गया और
लाठी-पत्थरों से उनकी हत्या कर दी गयी । इस तरह कुल मिलाकर 14 दलित (वहां शिल्पकार कहते हैं ) मार डाले गए । दूल्हा
श्याम प्रसाद और कुछेक बाराती किसी तरह बच भागने में सफल हुए ।
इन भाग्यशालियों में 16 साल का जगत प्रकाश भी था । घटना के कई वर्षों के बाद एक पत्रिका को साक्षात्कार देते हुए
उसने कहा था – “कुछ देर तक भागने के बाद मेरी सांस उखड़ गई और ठाकुरों ने मुझे पकड़ लिया । वे मुझे वापस गाँव लेकर आये
और मुझे उस जलते हुए घर में फेंकने ही वाले थे जब हरक सिंह नाम के एक दुकानदार ने पगलाई भीड़ को ऐसा करने से रोका और
मुझे गाय-भैंसों वाले एक गोठ में बंद कर दिया । तीन दिन बाद मुझे पुलिस ने बाहर निकाला तो मैंने लाशों की कतार लगी
हुई देखी ।”
इस घटना ने सारे देश को थर्रा दिया था । बाद में मुकदमे चले और निचली अदालत के साथ साथ हाईकोर्ट ने भी सबूतों के
अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया लेकिन अंततः 1997 में न्याय हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने सोलह आरोपियों को उम्र
कैद की सजा सुनाई । इन में से तीन की तब तक मौत हो चुकी थी ।
9 मई उत्तराखण्ड के लिए सामूहिक शर्म का दिन होना चाहिए । हाल ही में जब जात-पात की आंच में सुलगते हमारे इसी
उत्तराखण्ड के एक दूसरे गाँव (टिहरी जिला) में एक निरीह दलित युवक की हत्या सिर्फ इसलिए हुई है कि वह एक बारात में
सवर्णों की उपस्थिति में कुर्सी पर बैठ कर खाना खा रहा था तो हमने कफल्टा को याद करना चाहिए और अपने आप से सवाल
पूछना चाहिए कि हम इस धरती के वाशिंदे कहलाने लायक हैं भी या नहीं ? देवभूमि तो बहुत बाद की चीज है ।
(काफल ट्री डेस्क से साभार । उत्तराखंड का यह शर्मनाक दलित हत्याकाण्ड भुलाए नहीं भूलता । देवभूमि में यह जघन्य
अपराध क्यों हुआ ? आज भी क्यों होता है ? इसका जिम्मेदार कौन है ? यह नफरत कब तक ? )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.05.2020
मीठी मीठी - 454 : इज है ठुल को ? (मातृ दिवस )
न सरग न पताव
न तीरथ न धाम,
इज है ठुल क्वे
और न्हैति मुकाम ।
आपूं स्येतीं गिल म
हमूकैं स्येवैं वबाण,
हमार ऐरामा लिजी
वीक ऐराम हराण ।
इज क कर्ज है दुनिय में
क्वे उऋण नि है सकन,
आंचव में पीई दूद क
क्वे मोल नि चुकै सकन ।
दुख सुख में हरबखत
गिचम इज क नाम,
'ओ.. इजा..' कैते ही
मिलि जां सुख ऐराम ।
'मातृ दिवस' कि शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10 मई 2020
मीठी मीठी - 453 : 'मां तुझे सलाम'- मातृ दिवस
मई महीने का दूसरा रविवार मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है । सोसल मीडिया में इस अवसर पर मां के सम्मान के बारे
में बहुत कुछ कहा जा रहा है । इस पुनीत अवसर पर इतना ही कहना बहुत होगा कि जिनकी मां अब नहीं रहीं उनकी स्मृति में
किसी सुपात्र की मदद की जाय तथा जिनकी मां उनके साथ हैं उनसे दो मीठे बोल बोलें जाएं ।
जहां मां और पत्नी के बीच में पुरुष पिस रहा है वहां दोनों की सुनी जाय । यह काम थोड़ा कठिन है परंतु न्याय दोनों को
मिले और पत्नी को मां का और मां को पत्नी का महत्व एवं स्थान बड़ी शालीनता और शिष्टता से समझाया जाय ।
इस दुनिया में मां से बढ़कर कोई नहीं है , भगवान भी नहीं । मां हमारे लिए मां तो है ही, वह हमारी प्रथम गुरु भी है
जिसके आंचल में ही हम शिक्षा का पहला पाठ पढ़ते हैं । सभी को मातृदिवस की शुभकामनाएं । मां तुझे नमन , मां तुझे सलाम
।
आज हम स्वयं से भी पूछ लें कि हमने सिर्फ सोसल मीडिया में ही 'मां -मां या ईजा- ईजा' या ' इज इज ' कहा या घर में
बैठी या स्वयं से दूर बैठी मां से प्यार से दो बात भी करी अथवा उसके पसंद की कोई चीज भी उसे लाकर दी । यदि आपने ऐसा
किया तो आपने सच्चा मातृदिवस मनाया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10 मई 2020
मातृ दिवस ।
खरी खरी - 627 : मजबूर मजदूर
आज लौकडाउन का 47/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या
41+ लाख/2.8+ लाख और देश में 61 +हजार /2+ हजार हो गई है । देेश में 18 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं । कर्मवीरों का
मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत । हमारे देश में असंगठित क्षेत्र के किस राज्य के किस राज्य में कितने
मजदूर हैं यह स्पष्ट नहीं था । मजदूरों की निराशा और अस्पष्टता के कारण वे सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांवों की
यात्रा पैदल ही निकल पड़े जो ठीक नहीं था । इस बीच एक हादसे में 16 मजदूर रेल से कट कर मर गए । प्रस्तुत है उस दुखद
क्षण की चर्चा कविता " मजबूर मजदूर " वीडियो के रूप में ।
कोरोना का दंश पूरा देश झेल रहा था
तीसरे लौकडाउन का दौर चल रहा था
बंद था जिन पटरियों पर, रेल का चलना
मजदूर उन्हीं पर हो मजबूर चल रहा था ।
साथ छोटे बच्चे, संग पत्नी चल रही थी
ऊबड़खाबड़ पटरी तपन से जल रही थी
ये कैसी परीक्षा थी कैसा इम्तहान था
न जाने जिंदगी क्यों उन्हें छल रही थी ।
वीरान था हाईवे, जिस पर चलना मना था
पग पग पुलिस का, वहां पहरा घन था
न बस न रेल, न कोई वाहन कहीं था
चलूं गांव अपने मन सबका बना था ।
न पीने का पानी, न अन्न का दाना था
कंकरीट पटरी पर, दूर बहुत जाना था
जब देह लड़खड़ाई कदम न बढ़ रहे थे
तलुओं में छाले, कठिन पग उठाना था ।
यह पैदल पथ नहीं था, फिर भी वे चले थे
ज्योंहि बैठे पटरी पर, लगी आंख थके थे
गुजरी मालगाड़ी अचानक उस जगह से
सोलह मजदूर तत्काल, शव बन गए थे ।
कहीं झेली आंसुगैस, कहीं डंडे पड़े थे
थे वे बेघर बेधंधे, बिलख चल पड़े थे
न मिली जीतेजी ट्रेन, जिन्हें घर जाने को
कटे हुए शव उनके, ट्रेन से घर गए थे ।
कसूर था किसका, जो बेमौत मर गए वो
चुनाव में जो आए थे, नेता कहां गए वो ?
किसे सुनाते शिकवा, न कोई सुनने वाला
दिया था वोट जिसको, कहां छिप गए वो ?
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.05.2020
खरी खरी - 626 : सोसल मीडिया में भी हैं दुर्योधन - दुशासन
आज लौकडाउन का 46/54वां दिन है । घर में रहिए, बाहर मत निकलिए । इस दौर में विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या
40.11+ लाख/2.76+ लाख और देश में 59 +हजार /1.9+ हजार हो गई है । देेश में 26 + हजार रोगी ठीक भी हो गए हैं ।
कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाइए । भागेगा कोरोना , जीतेगा भारत ।
उन दुर्योधन - दुशासनों की देखदेखी न करें जिनके व्यवहार और कानून अवहेलना से दिन प्रतिदिन संक्रमण बढ़ रहा है ।
हमें उन लोगों का अनुकरण करना है जो घर बैठकर निर्देशों का पालन कर रहे हैं । कुछ लोग सोसल मीडिया में निराशा या
अवांच्छित बातें या अफ़वाह फैला रहे हैं, उन पर भी ध्यान न दिया जाय । ऐसे लोगों को ब्लॉक करना ही उत्तम है
।
सोसल मीडिया की
दोस्ती बड़ी गंभीर है,
दोस्तों को खुश करना
बड़ी टेड़ी खीर है,
मूर्ति -फोटो -नेता- चित्र
लाइक तो सब खुश हैं,
टिप्पणी की तो बस
सूख गई सीर है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.05.2020
मीठी मीठी - 452 : अस्सी सालकि भलि बान
दुनिय में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 39.16+ लाख/2.70+ लाख और देश में 55+हजार /1.8+ हजार हैगे । 15267 रोगी हमार
देश में ठीक लै है गईं । आज लौकडाउन क 45/54उं दिन छ । घर में गोठि रया, भ्यार झन जया । कोरोना है बचि बेर रया। भाजल
कोरोना, जितल भारत । अच्याल दादी - नानी (आम, बुड़ि आम, इज, ठुलिज ) भौत उमरदार स्यैणिय ज्यादा निराश है रईं । आज कि
वीडियो कविता ' ह्यूमर हरैगो ' यूं सयाणा कैं समर्पित छ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.05.2020
बिरखांत - 316 : क्या आप हल्द्वानी रहते हैं ?
( विश्व में कोरोना संक्रमित/मृतक संख्या 38.21+ लाख/2.65 + लाख और देश में 52 +हजार /1.7+ हजार हो गई है । आज
लौकडाउन का 44/54वां दिन है । घर में ( गोठि ) रहिए , बाहर मत निकलिए, कोरोना से बचिए और बचाइए । भागेगा कोरोना ,
जीतेगा भारत ।)
हल्द्वानी में मेरे कई मित्र, संबंधी, दोस्त, गांव के लोग, सहपाठी, मेरे पाठक, मेरे शब्दों के पसंदकार, आलोचक,
व्यापारी, दुकानदार, नौकरशाह समेत कई बुद्धिजीवी, पत्रकार, कवि, लेखक, साहित्यकार और कलमकार रहते हैं जिन्हें मैं
जानता हूं । आप सभी को यह बिरखांत दिल से पुनः समर्पित है । शराब के ठेके खुलते ही देश सहित हल्द्वानी में भी शराब
के लिए जान की परवाह नहीं की शराबियों ने और लौकडाउन और देह - दूरी को ठैंगा दिखा दिया (04/05 मई 2020 )। हल्द्वानी
का यह वीडियो सोसल मीडिया में दुनिया देख रही है ।
उत्तराखंड में जिला नैनीताल के नगर हल्द्वानी को कुमाऊँ का द्वार कहा जाता है । अब कुमाऊँ क्षेत्र से आकर सब इस
द्वार में बसने लगे हैं । भीड़-भाड़ ने सुकून के जीवन को हथिया लिया है ।सबकी जमापूंजी यहां पानी-बिजली की किल्लत होने
के बावजूद एक अदद आशियाना बनाने में जुटी है । आजकल हल्द्वानी मीडिया में अधिक जगह पा रहा है । इस शांत नगर में
अपराध बढ़ने लगे हैं । अधिक उपापोह होने लगी है । सामाजिक सरोकार घटने लगे हैं । सब बड़े- बड़े मकान बनाने में व्यस्त
हैं । इन बड़े मकानों में अधिकांश खाली हैं या उनमें वृद्धों का एक अकेला जोड़ा रहता है । किसी को अपनी विलुप्त होती
भाषा, संस्कृति या सामाजिक सरोकारों से कुछ लेना- देना नहीं है । जल-जंगल-जमीन-टैंकर और अवैध कब्जा माफिया चरम पर है
।
यकीन करें या नहीं परन्तु आम जीवन की वस्तुओं में मिलावट भी यहां खूब गुलजार है । दूध, खोया, पनीर, क्रीम सहित सभी
अधिकांश दुग्ध उत्पाद मिलावट से भरे हैं । सभी सामाजिक आयोजनों में इन मिलावटी उत्पादों का भरपूर उपयोग हो रहा है ।
आयोजक तो उत्तम भोजन का भुगतान करता है परन्तु ठेके के कैटरिंग की उस हिसाब से गुणवत्ता नहीं होती । लगनों के सीजन
में मांग अधिक होने से लगभग सभी वस्तुओं में मिलावट चरम पर पहुंच जाती है ।
कुमाउनी भाषी क्षेत्र होने के बावजूद हल्द्वानी में लोग अब कुमाउनी भाषा से भी परहेज करने लगे हैं । डीजे में
उत्तराखंडी गीतों की जगह फूहड़ गीत बजने लगे हैं जिनमें पूरा परिवार एकसाथ नाचता है । चिपका ले फेविकोल से, चिकनी
चमेली, आंख मारे... आदि गीत डी जे में खूब शोर से बजते हैं जिनमें पूरा परिवार एकसाथ ठुमके लगाता है । पारिवारिक
समारोहों में सब कमा रहे हैं परन्तु आयोजक देखादेखी मजबूरी में लुट रहा है । शराब- गुटखा- धूम्रपान -चरस-गांजा अपनी
जड़ जमाये हुए हैं । कूड़ा और गंदगी का भी जहां -तहां भरपूर दीदार होता है ।
नगरवासियों को हल्द्वानी की यह गुहार सुननी ही होगी -
"संभालो इस नगर को
तुमसे हल्द्वानी कह रहा,
बचालो इस बाग को
क्यों जहर इसमें बह रहा,
आने न दो विष बाड़ को
तन-मन मेरा है जल रहा,
मत रहो बन तमाशबीन
अस्तित्व मेरा ढह रहा ।"
( इस बिरखांत (दर्द भरा लेख ) से इत्तफाक नहीं रखने वालों से अग्रिम क्षमा । हो सकता है कुछ क्षेत्रों में सबकुछ
ठीकठाक हो और आप डी जे में उक्त गीतों का विरोध भी करते हों।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.05.2020
खरी खरी - 622 : दारूबाजों ने दारू में बहाया लौकडाउन
कल 04 मई 2020 को लौकडाउन के 41/54वें दिन देश में सुबह 10 बजे शराब से ठेके खुलने का ऐलान हुआ । ठेकों पर सुबह 7
बजे से ही लंबी कतारें देख आश्चर्य नहीं हुआ । दिन भर करोड़ों रुपए की शराब बिक गई । कोराना को ठैंगा दिखाकर
दारूबाजों ने खुल्लम खुल्ला लौकडाउन की खिल्ली उड़ाई । कई जगह पुलिस को बेवडों को कंट्रोल करने के लिए लाठी चार्ज
करना पड़ा । शराब की तड़प में शराबियों को यह भी याद नहीं रहा कि वे स्वयं और अपने परिवार को जोखिम में डाल रहे हैं
। देश में कई जगह अपने घर जाने वाले मजदूरों का सब्र बांध भी टूटा और उन्होंने ने भी लौकडाउन की जमकर धज्जियां उड़ाई
। ऐसे में विगत 40 दिनों के लौकडाउन को इन सबने मुंह चिढ़ाते हुए ठैंगा दिखा दिया । दारू के ठेके खोलने से पहले या
मजदूरों को कोई रियायत देने से पहले पुलिस का प्रबंधन सिथिल पड़ गया जिसने उन लोगों को निराश किया को पूर्ण ईमानदारी
से घर बैठ कर लौकडाउन का पालन कर रहे हैं । ऐसे में आकाश से फूल बरसाना या अस्पतालों में बैंड बजाने के कर्म को भी
धूमिल होना पड़ा ।
शराब स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब है । इससे कई रोग पनपने के अलावा रोगप्रतिरोधक क्षमता ( इम्यूनिटी) भी कम हो जाती
है और कोरोना केस बढ़ भी सकते हैं । इस जहर से बचिए और दोस्तों को बचाइए । अपनी आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक और
मानसिक हालात को मत बिगड़ने दीजिए । वर्तमान संकट से जूझने की सबकी जिम्मेदारी है । सेना ने 3 मई को कोराना
कर्मवीरों का जो मनोबल बढ़ाया उसे 4 मई को शराबियों ने विक्षिप्त कर दिया। शराबियों की इस शर्मनाक हरकत से देश
शर्मसार है । भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे ।
आज लौकडाउन का 42/54वां दिन है । विश्व में संक्रमितों की संख्या 36 लाख से अधिक और मृतक संख्या 2.5 लाख से ऊपर हो
गई है । हमारे देश में भी 46 हजार से अधिक संक्रमित और डेढ़ हजार से अधिक कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । घर में
रहें, जरूरी हो तो तभी मास्क और देह दूरी के साथ बाहर निकलें । भागेगा कोरोना, जीतेगा भारत ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.05.2020
खरी खरी - 622 : अब 14 दिन का तीसरा लौकडाउन (40+14 =54 दिन )
कोरोना लौकडाउन का आज 41/54वां दिन है क्योंकि 04 मई 2020 से 14 दिन का तीसरा लौकडाउन आगे बढ़ा दिया गया है जो 17
मई 2020 तक रहेगा । इस तरह अब लौकडाउन 54 दिन का हो गया । लौकडाउन आगे बढ़ाना बहुत जरूरी था क्योंकि देश में कोरोना
संक्रमण बढ़ रहा है । लोकडाउन का अनुपालन भी बहुत जरूरी है जो बीते 40 दिनों में ठीक से नहीं हुआ । कुछ लोगों ने इसे
गंभीरता से नहीं लिया जिसके कारण देश में संक्रमितों की संख्या 40 हजार पार कर गई और 1 हजार 3 सौ से अधिक ग्रास बन
गए । ये लापरवाही बहुत दुखित करने वाली है । कर्मवीरों के श्रम को सफल बनाने के लिए 03 मई 2020 को भारतीय सैन्य बल
ने संयुक्त रूप से उनका मनोबल भी बढ़ाया । लौकडाउन में सख्ती बहुत जरूरी है अन्यथा लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते ।
घर में रहिए । बेवजह बाहर मत निकलिए । जीतेगा भारत, हारेगा कोरोना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.05.2020
खरी खरी - 621 : कोरोना कैं हरै दे ।
(आज कोरोना लौकडाउनक 40/40उं दिन छ । यूं 40 दिनों कि सूक्ष्म गाथा कविता ' कोरोना कैं हरै दे ' में यां प्रस्तुत छ
। आजि लौकडाउन ख़तम नि है रय, तिसरि बार शुरु हैगो । आज दुनिया में संक्रमित संख्या 34.83 लाख और मृतक संख्या 2.44
लाख हैगे जबकि भारत में संक्रमित संख्या 39 हजार है ज्यादा और मृतक संख्या तेर सौ है ज्यादा हैगे । घर में रया,
भ्यार झन अया , तबै देश जितल, हारल कोरोना । )
चीन बै वायरस कोराना आय,
येल दुनिया कैं हिलै दे ।
तीस जनवरी द्वि हजार बीस
भारत में है पैलि तफ्तीश,
पुर देश में मची हलचल
फ़ैल कोरोना चारों दिश ।
हाय रै! चीना त्वील दुनिय कैं
य संताप किलै दे ? चीन...
पैल लौकडाउन ईक्कीस दिनक
फिर दुसर हय उन्नीस दिनक,
नि थमी बीमारी फिर लगायौ
झट तिसरि बार चौद दिनक।
चालीस दिनक लौकडाउनल
पुर देश कैं वसिलै दे । चीन...
लौकडाउन में यसि आफत
जो जां छीं वांईं रै गोयौ,
भुक मरण कि नौबत ऐ गेइ
काम धंध सब छुटि गोयौ।
हाहाकारल मजदूरों कैं
डरै बेर तिलमिलै दे । चीन...
सरकारी ऑडर ऐ गया
घर में आपण बंद रया,
जरूरी काम पड़ल जब
तबै खुट भ्यार ल्याया ।
देह दूरीक ख्याल करिया
मास्क महाव लगै दे । चीन...
मुफ्त राशन मुफ्त भोजन
सरकारों लै लगायौ जतन,
लैन भौत लाम है गा छी
कैकणी मिलौ कै नि मिलन ।
दानवीरों लै दान दी बेर
गरीबों कैं खाण खिलै दे । चीन...
एक तरफ बीमारी दहशत
दुसरि तरफ बिगड़ी बोल,
क्वे करैं रौछी देश सेवा
क्वे छणकैं रौछी जहर घोल।
अफवाहों लै कोरोना पर
रंग मजहबी चढै दे । चीन...
स्वास्थ्य कर्मी पुलिस डाक्टर
य बीच बनि गाय भगवान,
थाइ बजै बेर दी जगै बेर
देश लै कर इनर आहवान।
कर्मवीरों लै जोखिम उठै
कर्तव्य आपण निभै दे । चीन...
तीस अप्रैल तक पुरि दुनिय में
तैंतीस लाख बीमार है गाय,
साव द्वि लाख है ज्यादै रोगी
कोरोनाल आपण गास बनाय।
अमरिका इटली स्पेन फ़्रांस
जर्मनी इंग्लैंड हिलै दे । चीन...
हमार देशम य दौरान में
पैंतीस हजार बीमार हईं,
इग्यार सौ है ज्यादै बीमार
क्रूर कोरानाक शिकार हईं।
देशल फिर लै हिम्मत नि हारि
कोरोना मिलि बेर हरै दे। चीन...
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.05.2020
बिरखांत -315 : वे चार दिन अपवित्र क्यों ?
( आज कोरोना लौकडाउन का 39/40वां दिन । लौकडाउन आगे बढ़ाना बहुत जरूरी परन्तु इसका अनुपालन भी जरूरी जो बीते 38
दिनों में ठीक से नहीं हुआ । कुछ लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया जिसके कारण देश में संक्रमितों की संख्या 37
हजार पार कर गई और 1 हजार 2 सौ से अधिक ग्रास बन गए । ये लापरवाही ले डूबेगी । घर में रहिए । कर्मवीरों के श्रम को
सफल बनाने के लिए लौकडाउन में सख्ती बहुत जरूरी । जीतेगा भारत । )
कुछ समय पहले एक समाचार पत्र में 'वे चार दिन' के बारे में एक लेख छपा था । शायद कुछ मित्रों ने पढ़ा भी हो । सूक्ष्म
में बताता हूं, कालम की लेखिका कहती है, “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के महीने में चार दिन तक
राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है | फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र भक्तों में बांट दिया
जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि पानी के लाल होने के पीछे
पुजारियों का हात होता है |”
लेखिका ने ‘रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों?' इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन की घटनाओं की
चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में कई सवाल पूछे
हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | महिला को अपवित्र कहना
हमारी अज्ञानता है ।
उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें पहले गोठ (पशु निवास) या ' छूत कुड़ी' में रहती थी | बाद में चाख के कोने
(मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार से आज बदलाव आ
गया है | बेटियों का विवाह बीस से पच्चीस वर्ष या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को छूत लगती है, न
किसी के बदन में कांटे बबुरते हैं और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) है | घर –मकान- वातावरण सब
पहले जैसा ही है, सिर्फ अब छूत नहीं लगती |
सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम), पाखण्ड, आडम्बर, मसाण और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा- डरा कर रखने की परम्परा
का न आदि है न अंत | बात- बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों, डंगरियों और बभूतियों
द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) |
ऋतुस्राव (रजस्वला अर्थात पीरियड या मासिक ) के वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक प्रकृति प्रदत
क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है और इसका
नियमित होना स्त्री के स्वस्थ शरीर का परिचायक है । यदि ऋतुस्राव नहीं होगा तो मातृत्व सुख भी नहीं मिल सकता । इस
दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस | इसमें छूत या अस्पर्श जैसी कोई बात नहीं है । स्कूल जाने वाली छात्राओं तक को अब इस
प्रक्रिया से जानकारी दी जाने लगी है जो एक अच्छी बात है । अब फिल्म और विज्ञापन से यौवन में कदम रखने वाली लड़कियों
को बताया जाता है कि यह उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है और इसे कुछ अनहोनी या समस्या समझना हमारी जानकारी की कमी समझा
जाएगा । इस दौरान स्वच्छता का ध्यान अति आवश्यक है । अतः प्रकृति नियम के इन चार दिनों को अपवित्र न समझा जाय
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.05.2020
खरी खरी - 620 : कितनी दारू ठीक रहेगी ?
(देश की अधिकांश शराब की दुकानें और देशी ठेके मजदूरों की बदौलत ही गुलजार रहती हैं । मजदूर दिवस पर मंथन करें कि
आख़िर शराब पीने की मजबूरी क्या है ? भले ही आजकल दारू के ठेके बंद हैं परन्तु लौकडाउन खुलते ही ये ठेके फिर गुलजार
हो जाएंगे । आज 01 मई 2020, देश में लौकडाउन का 38/40वां दिन है । घर में रहिए । जिम्मेदार नागरिक बनिए । हालात
बिगड़ते जा रहे हैं । सहयोग करिए और कर्म वीरों को नमन करिए । मजदूर दिवस पर आज देश ही नहीं विश्व के सभी मजदूर
परेशान हैं । निराश न हों । कोरोना हारेगा और मानव जीतेगा । मजदूर दिवस की सभी मजदूरों को शुभकामना ।)
कुछ दिन पहले (जब कोरोना का दौर नहीं था ) सायँकालीन सैर के समय कुछ दारूबाज रोज की तरह पार्क में दारू गटकाते हुए
मिल गए । ''सार्वजनिक स्थान पर यह प्रतिबंधित कर्म क्यों कर रहे हो ?'' कुछ हिम्मत के साथ जब यह सवाल पूछा तो बोले,
"जाएं तो जाएं कहां ? घर में पी नहीं सकते, कार्यस्थल पर भी मनाही है और यहां सुनसान में आपको आपत्ति है ?" "पीते ही
क्यों हो ? दारू अच्छी चीज नहीं है । स्वास्थ्य, धन, सम्मान, घर -परिवार सब बरबादी ही बरबादी होती है दारू से ।"
बहुत देर तक बहस हुई । वे सवा सेर मैं मात्र छटांग भर । अंत में एक बोला, "सर आप हमारे भले के लिए कह रहे हैं ,
छोड़ने की कोशिश करेंगे ।" दूसरा बोला, "सर कम से कम कितनी दारू ठीक रहेगी ? कई डाक्टर -वैद्य भी तो पीते हैं
।"
मैंने पुलिस नहीं बुलाई क्योंकि ऐसा करने से पुलिस लाभान्वित होती रही है । समझा कर हृदय परिवर्तन का लक्ष्य था सो
समझाया, "शराब हर हाल में नुकसान दायक है । मैं आपको शराब छोड़ने के लिए ही कहूंगा ।" तीसरा बोला, "सर एक पैग तो
चलेगा, ज्यादा ठीक नहीं ।" मैने कहा, "एक पैग के बाद ही अगला पैग लगाते हैं आप लोग । एक पैग के बाद बंद करो तब ना ।"
वे सुनते रहे । छै लोग थे । बिना नमकीन के बोतल समापन की ओर थी । कुछ सुन रहे थे, कुछ मसमसा रहे थे और कुछ डौन हो
चुके थे । मैंने उन्हें चार 'D' की बात समझायी और चला आया ।
क्या है ये चार 'D' ? चार डी दारू के चार पैग की दास्तान है जिससे एक- एक कर चार पैग दारू पीने के परिणाम सामने आते
हैं । एक पैग- Delighted खुश, दूसरा पैग- Dejected उदास, तीसरा पैग- Devilish राक्षस और चौथा पैग - Dead drunk
मृतप्राय लंबा लेट गया जमीन पर । चार पैग का क्रमशः अंजाम है खुश, उदास, राक्षस और मृत प्रायः । मुझे दूर तक उनकी
आवाज सुन रही थी । एक कह रहा था, "भइ बात सही कह गया ये बंदा । अब दारू कम करनी पड़ेगी ।"
(मजदूर दिवस पर सभी दारू पीने वाले मजदूरों को/मितुरों को इस उम्मीद के साथ शुभकामना कि आपकी मजदूरी, परिवार और
स्वास्थ्य दोनों सकुशल रहेंगे यदि आप दारू छोड़ दें तो । दारू छोड़ना कोई असम्भव कार्य भी नहीं है । बस एक बार दृढ़
प्रतिज्ञ होकर ठान लीजिए । मां के गर्भ से तो हम दारूबाज नहीं थे, दुनिया में आने पर ऐसे यार/दोस्त मिले जिन्होंने
हमें दारुबाज/नशेड़ी बना दिया ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.05.2020
खरी खरी - 619 : कर्मवीरों पर पत्थर क्यों ?
आज कोरोना लौकडाउन का 37वां दिन है । विश्व में कोरोना संक्रमितों की संख्या 32.19 लाख से अधिक हो चुकी है जबकि
2.28 से अधिक रोगी मृत हो चुके हैं । हमारे देश में संक्रमितों की संख्या 32 हजार से अधिक हो चुकी है और एक हजार से
अधिक इस क्रूर के ग्रास हो चुके हैं । यह बहुत ही दुखद है और देश के लिए अपूरणीय क्षति है । हमें लौकडाउन का सम्मान
करते हुए घर में रहना चाहिए ।
जहां एक ओर देश इस त्रासदी से लड़ रहा है वहीं कुछ सिरफिरे उन कोरोना कर्म वीरों पर पत्थर फेंक रहे हैं जो अपना घर
-परिवार त्यागकर सड़क से अस्पताल तक हर रूप में कोराना से लड़ रहे हैं । समाचारों में बताया जाता है कि अमुक जगह
पुलिस पर पत्थर मारे गए और अमुक जगह कोरोना रोगी को लाने गए स्वास्थ्य कर्मियों को पत्थर मारे गए । यह बहुत पीड़ा
दायक है । आखिर ये पत्थर मारने वाले कौन हैं जो बजाय कर्मवीरों का मनोबल बढ़ाने के उन्हें पत्थर क्यों मार रहे हैं ?
राग हिन्दू - मुस्लिम भी कोरोना को रोकने में अड़चन पैदा करेगा । इस राग से देश को बचाना है । ये जो भी हैं ये इंसान
नहीं हैं । ऐसी हरकत नरपिशाच ही करते हैं । सरकारों को इन सिरफिरों को सख्त से सख्त दंड देना चाहिए । कुछ सिरफिरों
को छोड़कर सम्पूर्ण राष्ट्र कोरोना से लड़ने वाले इन कर्मवीरों को हार्दिक शुभकामना दे रहा है और 'नमन' कहते हुए
उनका मनोबल बढ़ा रहा है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
30.04.2020
खरी खरी - 618 : पी पी ई किट्स पहनना साहसी कार्य
चीन द्वारा उत्पन्न वैश्विक संकट कोविड -19 (कोरोना वायरस ) से विश्व में 31.37 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके
हैं जिनमें से 2.17 लाख मृत हो चुके हैं । भारत में इस रोग का पहला केस 30 जनवरी 2020 को पहचान में आया । आज देश में
31 हजार से अधिक लोग ग्रसित हैं जबकि एक हजार से अधिक मृत हो चुके हैं । आज देश में लौकडाउन का 36/40वां है । देश को
बचाने के लिए हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम घर में रहें, केवल बहुत जरूरी कार्य के लिए बाहर निकलें । घूमना
या धर्म स्थलों में जाना जरूरी कार्य नहीं है ।
इस समय देश के कर्मवीर इस रोग को हराने में जुटे हैं । अस्पताल में रोगी से संपर्क करने वाले प्रत्येक कर्मवीर को पी
पी ई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट ) किट पहननी अनिवार्य है । सिर से लेकर पैर तक पूरे शरीर को ढकने के लिए कई
परतों में यह किट पहनी जाती है जिसमें एडल्ट डाईपर भी शामिल है । इस किट से शरीर को हवा नहीं मिलती और असहजता पैदा
होती है । जीवन को जोखिम में डालने वाले ये कर्मवीर इस किट को बड़ी हिम्मत और सही तरीके से पहनते हैं । थोड़ी सी
असावधानी खतरनाक हो सकती है । ये कर्मवीर इस अवस्था में भी बड़े धैर्य और साहस से अपना कर्तव्य निभाते हैं ।
हम इन कर्मवीरों को सलाम कहते हैं, नमन करते हैं और सलूट करते हैं । इनका कर्म व्यर्थ न जाय इसलिए हमारी जिम्मेदारी
है कि हम कोरोना को हराने के लिए घर में रहें तथा लौकडाउन का सम्मान करें । अभी भी कुछ लोग इसे गंभीरता से नहीं ले
रहे और धार्मिक स्थानों व मंडियों में जा रहे हैं तथा सड़कों पर घूम रहे हैं । सबसे बड़ा धर्म देश है । देश को बचाएं
और घर में रहें तथा प्रत्येक कर्मवीर को घर बैठे शुभकामना दें ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.04.2020
खरी खरी - 616 : अंधश्रद्धा की समझ
अंधविश्वासियों ने हमेशा विज्ञान का लाभ तो लिया परन्तु लोगों को किसी न किसी तरह अंधविश्वास में जकड़े रखा । आज भी
गंगा सहित देश की नदियों में अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग दूध बहा रहे हैं और जमकर धार्मिक विसर्जन कर रहे हैं । काश !
यह दूध नदियों और मूर्तियों में बहने के बजाय किसी कुपोषित बच्चे के मुंह में जाता तो देश से कुपोषण दूर होता और देश
का IMR (शिशु मृत्यु दर) कम होती । भारतमाता को अंधविश्वास से मुक्त करके ही हम विश्वगुरु बन सकते हैं । विश्व के
शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है ।
आज ( लॉकडाउन का 34/40वां दिन ) पूरा विश्व कोरोना संक्रमण से दुखित है जहां 29.9 लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं और
2.06 लाख से अधिक लोग इस रोग के ग्रास बन चुके हैं । हमारा देश भी इस त्रासदी को झेल रहा है । देश में 27 हजार से
अधिक लोग कोरोना संक्रमित हैं और आठ सौ से अधिक इसके ग्रास बन चुके हैं । चिकित्सा वैज्ञानिक और अनगिनत हाथ सामूहिक
रूप से इस रोग से लड़ रहे हैं । देश में कई तथाकथित धर्मगुरु ऐसी महामारी में इसका अंधविश्वास के तरीकों से उपचार
बताते हैं । हम चाहे किसी भी धर्म या संप्रदाय के हों हमें केवल और केवल चिकित्सकों के ही निर्देश को मानते हुए
लौकडाउन का सम्मान करना है और सोसल डिस्टैंस बनाए रखना है ।
हमारे देश में टेलीविजन के सैकड़ों चैनलों में प्रतिदिन अंधविश्वास परोसा जाता है जिसके कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण को
धक्का लगता है । समाज को आज भी शनि- राहु - केतु की डोर से उलझाये रखा गया है । हमें ऐसे तथाकथित गुरु - चेलों से
बचना है जो सत्य स्वीकारने को तैयार नहीं हैं । कहते हैं -
जाका गुरु भी अन्धत्वा, चेला निरा निरंध ।
अंध ही अंधा ठेलिया, दोऊं कूप पड़न्त ।।
अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग भारतमाता को कहां ले जाना चाहते हैं यह हमने समझना - सोचना है । भगवान तो प्रतीक के बतौर
केवल एक बूंद दूध- जल की श्रद्धा से सन्तुष्ट हो जाते हैं फिर यह मूर्ति के ऊपर से होता हुआ दूध नाली में क्यों बह
रहा है ? मंथन करेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा । आपके द्वारा किसी कुपोषित बच्चे को दिया गया दूध हमारे देश को ताकत
देगा और भारत का IMR सुधरेगा । जयहिन्द ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.04.2020
खरी खरी - 615 : अपने गुर्दों की भी सुनो
(आज कोरोना लौकडाउन का 33/40वां दिन है । कोरोना रोग से विश्व में कल तक 29.2 लाख लोग संक्रमित हो गए हैं और 2.03
लाख से अधिक इसके ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी 26 हज़ार से अधिक ग्रसित और आठ सौ से अधिक ग्रास बन चुके हैं
। घर में रहें, लौकडाउन का सम्मान करें, अफवाहों पर ध्यान न दें, कर्मवीरों की जयकार करें । हारेगा कोरोना, जीतेंगे
हम ।)
स्वास्थ्य जागृति के लिए वर्षों से मैं जनहित में कुछ न कुछ लिखते रहता हूं । कुछ ही दिन पहले आटिज्म, क्षय रोग,
मोटापा, डिप्रेशन और मधुमेह के बारे में कुछ शब्द लिखे थे । कोरोना रोग के बारे में भी जब से इसने मानव पर आक्रमण
किया है कुछ न कुछ लिखते आ रहा हूं । कई मित्रों ने इन लेखों पर बहुत रुचि दिखाई और मेरे शब्दों को साझा भी किया ।
इसी क्रम में आज गुर्दों (kidney) की चर्चा करते हुए आप से पूछना चाहता हूँ कि आप कितना नमक खाते हैं ?
हमारे शरीर में दो गुर्दे हैं जिनका मुख्य कार्य शरीर की गंदगी बाहर करना है । जितना भी तरल पदार्थ हम पीते हैं
गुर्दे उसका तत्व छानकर हमारे पोषण में लगा देते हैं तथा शेष तरल को मूत्र के रूप में बाहर कर देते हैं । उत्सर्जन
तंत्र ( Excretory system) में गुर्दों का बहुत महत्वपूर्ण कार्य है । यदि हमारे गुर्दे ठीक से काम नहीं करेंगे तो
हमारे रक्त की स्वच्छता नहीं हो पाएगी और हम अनेक बीमारियों के शिकार हो जाएंगे । अक्सर हम सुनते हैं कि अमुक
व्यक्ति की किडनी फेल हो गई है या अमुक व्यक्ति डायलिसिस पर है ।
गुर्दे खराब होने या गुर्दे में स्टोन (पथरी) बनने के लिए हमारा खानपान जिम्मेदार है जिसमें अधिक नमक या अधिक मसाले
होते हैं । एक व्यक्ति को प्रतिदिन 3 से 4 ग्राम ही नमक लेना चाहिए । इससे अधिक नमक हर हाल में हानिकारक है ।
उत्तराखंड में अधिकतर लोग अनभिज्ञता के कारण अधिक नमक खाते हैं । अधिक नमक से रक्तचाप भी बढ़ता है । सलाद में बिलकुल
नमक नहीं लेना चाहिए बल्कि भोजन की मेज पर नमक होना ही नहीं चाहिए । यदि आपके परिवार में चार व्यक्ति हैं तो 1 किलो
नमक 2 महीने के लिए काफी है । इसलिए मित्रो अपने नाजुक गुर्दों की सुनते हुए नमक कम खाओ और अपने गुर्दों की हिफाजत
करो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.04.2020
खरी खरी - 613 : क्या यह सच नहीं ?
आज से 11 वर्ष पहले 2009 में मेरी पुस्तक ' यथार्थ का आईना ' प्रकाशित हुई । उसके पृष्ठ आवरण पर 11 बातें लिखी हैं
। मुझे लगता है ये 11 बातें आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी तब थीं । इस पुस्तक में मैंने राष्ट्रहित के 101 मुद्दे
उनके समाधान सहित बहुत ही लघु रूप में लिखे हैं ।
आज कोरोना लौकडाउन का 31/40 वां दिन है । दुनिया में संक्रमित लोगों की संख्या 27 लाख पार कर गई है और 1.9 लाख लोग
कोरोण के ग्रास बन गए हैं । हमारे देश में भी 22 हजार से अधिक संक्रमित हैं और पौने सात सौ लोग क्रूर कोरोना के
शिकार हो चुके हैं । घर में रहना और निर्देश पालन करना तथा परेशानियों को राष्ट्रहित में सहना आज के वक्त की मांग है
तभी हम इस बीमारी को भगा सकते हैं । कोरोना कर्मवीरों को जयहिंद, साधुवाद, नमन ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.04.2020
बिरखांत - 313 : भूतल भाजण नि पाय
वर्ष 1995 में म्यर पैलउपन्यास ‘जागर’ हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित हौछ जो बाद में ‘प्यारा उत्तराखंड’
अखबार में किस्तवार छपौ लै | जैल लै य देखौ वील यकैं भल बता | एक दिन महानगर दिल्ली में रत्ते पर उपन्यासक एक पाठक
रेशम म्यार पास ऐ बेर बला, “कका आज दिन में तीन बजी हमार घर भूत कि जागर छ, म्येरि घरवाइ पर भूत नाचें रौ | एक कम्रक
मकान छ, बैठणक लिजी जागि न्हैति ये वजैल केवल आपूं कैं और एकाध सयाण झणी कैं बलूं रयूं | डंगरि आल, दास नि अवा |
डंगरि बिना ढोल- हुड़क कै हात –पात जोड़ि बेर नाचि जांछ | आपूं जरूर अया |” तीन वर्ष पैली रेशमक ब्या हौछ | पांच
लोगोंक य परिवार में इज- बौज्यू, एक भै, रेशम और वीकि घरवाइ छी | परिवार एक भौ लिजी लै तरसि रौछी |
मि ठीक तीन बजे वां पुजि गोय | वां यूं पाँचोंक अलावा पड़ोसक द्वि जोड़ि दम्पति और डंगरिय मौजूद छी | धूप-दीप जगै बेर,
डंगरिय कैं दुलैंच में बैठा और रेशमक बौज्यू जोड़ी हाथों कैं मुनाव पर टेकि बेर गिड़गिड़ाने कौं राय, “हे ईश्वर- नरैण,
य म्यार घर में कसि हलचल हैगे ? को छ य जो म्येरि ब्वारि पर लैरौ | गलती हैगे छ त मिकैं डंड दे भगवन, यैक पिंड छोड़
|” डंगरिय कापण फैगोय और ब्वारि लै हिचकौल –हिनौल खेलें फैगेइ | ब्वारिक उज्यां चै बेर रेशमक बौज्यू जोरल बलाय, “हम
सात हाथ लाचार छ्यूं, तू जो लै छै येकैं छोड़, मिकैं पकड़, मिकैं खा |” ऊँ डंगरियक उज्यां चानै बलाय, “तू देव छै,
द्यखा आपणि करामात |” य बीच ब्वारि भैटी- भैटिये ख्वारक खोली बाव हलूनै डंगरियक तरफ सरकि गेइ | डंगरियल जसै उकैं
बभूत लगूण चा उ बेकाबू घोड़िक चार बिदकि गेइ, यस लागें रय कि उ डंगरिय पर झपट पड़लि | डंगरिय डरनै बचाव मुद्रा में ऐ
बेर म्ये उज्यां चां फै गोय |
य दृश्य देखि सब दंग रै गाय | रेशम म्येरि तरफ देखि बेर बलाय, “य त हद हैगे | यैक क्वे गुरु गोविन्द नि रय | यस
डंगरिय नि मिल जो ये पर साव सेर पड़ो | परिवार कि परेशानी देखि म्यार मन में एक विचार आ और मि उठि बेर भ्यार जाणी
द्वारक नजीक भैटि गोय | मील गंभीर मुखड़ बनूनै जोरल कौ, “बिना गुरुकि अन्यारि रात नि हुण चैनि ! बता तू कोछै ? को
गाड़- गध्यार बै ऐ रौछे ? खोल आपण गिच | आदि-आदि..” म्येरि भाव- भंगिमा और बोल सुणि बेर सबै समझें फैगाय कि मि उ
डंगरिय है ठुल डंगरिय छ्यूं | म्यार उज्यां चै बेर रेशम क बौज्यू बलाय, “परमेसरा बाट बते दे, म्यर इष्ट –बदरनाथ बनि
जा |” मील उनुकैं इशारल चुप करा |
मि रेशमकि घरावाइक उज्यां चै बेर बलायूं, “तू बलाण क्यलै नि रयै ? नि बलालै मि बुलवे बेर छोडुल | मसाण- भूतक इलाज छ
म्यार पास |” उ नि बलाइ | मील रेशम उज्यां चै बेर जोरल कौ, “धुणि हाजिर कर दे सौंकार |” रेशम- “परमेसरा यां धुणि कां
बै ल्यूं ?” मि - “धुणि न्हैति तो स्टोव हाजिर कर दे |” रेशम तुरंत रस्या बै स्टोव, पिन और माचिस ल्ही बेर आ | म्यार
इशार पर वील स्टोव जला | मि - “चिमट हाजिर कर दे सौंकार |” उ भाजि बेर गो और रस्या बै चिमट ल्ही आ | सबै समझें रौछी
कि म्ये में द्याप्त औंतरी गो पर य बात निछी | डरल म्येरि हाव साफ़ है रैछी | मील ठान रैछी, अगर रेशम कि घरवाइ म्ये
पर झपटली तो मि द्वार खोलि बेर भ्यार कुतिकि जूल |
मील स्टोवक लपटों में चिमट लाल करनै रेशम कि घरवाइ उज्यां चै बेर कौ, “जो लै भूत, प्रेत, पिसाच, मसाण, छल, झपट तू य
पार लै रौछे, अगर त्ये में हिम्मत छ तो पकड़ य लाल चिमट कैं, नतर मि खुद य चिमट कैं त्यार गिच में टेकि द्युल |” मी
उकैं डरूणक लिजी कौं रौछी | लाल चिमट देखि रेशम कि घरवाइक हिलण बंद है गोय और उ ख्वार में साड़ी पल्लू धरनै सानी कै
उतै बै पिछाड़ि खसिकि गेइ | आब मी बेडर है बेर जोरल बलाय, “जो लै तू य पर लै रौछिये आज त्वील य धुणि –चिमटक सामणि येक
पिंड छोड़ि है | आज बै येक रुमन- झुमन, रुण –चिल्लाण, चित्त-परेशानी, शारीरिक- मानसिक क्लेश, रोग -व्यथा सब दूर हुण
चैनी |” यतू कै बेर मील स्टोव कि हाव निकाल दी |
जागर ख़तम है गेछी | उ डंगरियल मिकैं आपू है ठुल डंगरी समझि मुनव झुकै बेर म्यार उज्यां चानै हात जोड़नै कौ, “धन्य हो
महाराज |” रेशम आपणि घरवाइ कैं अघिल ल्या और मिहूं बै उकैं बभूत लगवा | बभूत लगूनै मील उहैं कौ, “आज बै तू निरोग छै,
निश्चिंत छै और बेडर छै | खुशि रौ, आपू कैं व्यस्त धर, कुछ पढ़ –लिख, खालि नि रौ और एक परमात्मा में विश्वास धर | भूत
एक भैम छ, कल्पना छ | खालि भैटि बेर बेकाराक, उल-जलूल विचार मन में पनपनी | येकै वजैल खालि दिमाग भूतक घर कई जांछ |
जिन्दगीक एक मन्त्र छ कि कर्म करते रौ, व्यस्त रौ और भगवान में विश्वास धरो | यतू कै बेर मि चड़क उठूं और नसि आयूं
|
य क्वे सोची समझी योजना नि छी | सबकुछ अचानक हौछ | कएक लोग मिकैं भूत साधक समझण फै गाय | भूत हय नै, साधुल कैकैं ? य
एक भैम -रोग छ जो यौन वर्जना, डर, फिकर, आक्रामक इच्छाओं कि पुर नि हुणल कुंठाग्रस्त बनै द्युछ और दबाव देखूण पर
भावावेश में य रूप प्रकट है जांछ | मनखी है क्वे ठुल भूत नि हुन | आज क्वे यसि जागि न्हैति जां मनखी नि पुजि रय |
रेशम कि कहानि हमूकैं य बतै छ कि वीकि घरवाइ पर क्वे भूत नि छी | अंधविश्वास कि सुणी- सुणाई बातों क घ्यर में उ
कुंठित है गेछी | अघिल साल उनार घर एक भौ जन्म है गोछी | हमुकैं फल कि इच्छा नि करण चैनि और कर्म रूपी पुज में
व्यस्त रौण चैंछ | अंधविश्वासक अन्यार कर्मयोगक उज्यावक सामणि कभै लै नि टिकि सकन | ( य कहानि म्येरि किताब
‘उत्तराखंड एक दर्पण -2007’ क आधार पर उधृत ) |
(कोरोना लौकडाउनक आज 30/40उं दिन छ । भ्यार झन जया । चौक्कन रया ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.04.2020
खरी खरी 611 : आज दशरथ की बात
आज लौकडाउन का 29वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में 25 लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में 1लाख 77
हजार से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी उन्नीस हजार से अधिक लोग संक्रमित जो चुके
हैं और छै सौ से अधिक मृत हो चुके हैं । देश का पूरा तंत्र इस रोग से लड़ रहा है । हमारा सहयोग यह है कि हम घर में
रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और स्वयं
को घर में बंद करें तथा करोना से लड़ रहे कर्मवीरों को शुभकामनाएं प्रेषित करें ।
वीडियो के माध्यम से आज कुछ बातें दशरथ के एक ऐसे संकल्प की आपके सम्मुख हैं जिसने उन्हें अमर कर दिया । उसी संकल्प
से कुछ लोग प्रेरणा लेते हैं । हमारे देश को भी आज वीर दशरथ जैसे ही एक संकल्प की सख्त आवश्यकता है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
22.04.2020
बिरखांत-314 : लाडले दुर्योधनों के बीच
महाभारत महाकाव्य के रचना में महर्षि व्यास जी ने कुछ ऐसे चरित्रों का वर्णन किया है जो आज भी हमारी इर्द- गिर्द
घूमते हैं | ऐसा ही एक चरित्र है ‘दुर्योधन’ | कुरुवंश के राजकुमारों को जब आचार्य द्रोण शिक्षा देते थे तो इस पात्र
को उनकी अवहेलना करते हुए बचपन में ही देखा गया | साथ ही इस पात्र ने न कभी बड़ों का सम्मान किया और न शिष्टाचार की
परवाह की | महाभारत महाकाव्य का पौराणिक या राजवंशी कथानक जो भी हो इसमें पारिवारिक एवं सामाजिक मान-मर्यादाओं का
विशिष्ट उल्लेख है | दुर्योधन ने पूरे महाकाव्य में अशिष्टता के पायदान पर चलते हुए बड़बोलेपन से अन्याय को गले लगाया
| उसने कुल की मान-मर्यादाओं की खिल्लियाँ उड़ाते हुए नारी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने का जो दुस्साहस किया, इससे
बड़ा घृणित और पिशाचिक कुकृत्य कोई हो ही नहीं सकता | यदि अदृश्य योगेश्वर श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को वसन विहीन होने से
नहीं बचा लिया होता तो भरी सभा में पांच पांडवों और अन्य महारथियों के साथ बैठे भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और
महात्मा विदुर कौन सा दृश्य देखते ?”
वहाँ विद्यमान पारिवारिक बड़ों में धृतराष्ट्र भी थे परन्तु उनके पास तो अंधा होने का प्रमाण था | दुर्योधन के आदेश
पर जब दुशासन द्रोपदी को भरी सभा में बाल पकड़ कर घसीट लाया और निर्वस्त्र करने लगा तो उपरोक्त चारों महारथियों ने
स्वयं को विवश पाया और गर्दन झुका ली | यहाँ कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि ये महारथी उस सभा से उठकर चले क्यों नहीं
गए या उन्होंने दुर्योधन को रोका क्यों नहीं ? क्या ये चारों मिलकर भी दुर्योधन पर प्रहार नहीं कर सकते थे ? अकेले
भीष्म ही काफी थे | आखिर ऐसी कौन सी विवशता थी जो इनके हाथ बंधे रह गए ? मैं काव्य के अन्तरंग पहलू पर नहीं जाता |
कथानक से प्रतीत होता है कि दुर्योधन इन सबके नियंत्रण से बाहर हो गया था | वह जानता था कि भीष्म हस्तिनापुर से बंधे
हैं, विदुर राजशाही के मंत्री हैं तथा दोनों आचार्य राजघराने में दखल न देना ही उचित समझते हैं | इस तरह दुर्योधन एक
जिद्दी, निरंकुश, हठधर्मी, महत्वाकांक्षी एवं अन्याय का पक्ष लेने वाला कुपात्र बन गया |
क्या दुर्योधन को बाल्यकाल से ही पथभ्रष्ट होने से रोका नहीं जा सकता था ? धृतराष्ट्र अपने बेटे की गलती को अनसुना
कर देते थे और मां गांधारी ने तो आँखों पर पट्टी बाँध ली थी | यदि उसे रोका जाता तो महाभारत काव्य का अंत कुरुवंश के
नाश के साथ नहीं होता | आज हमारे घरों में भी दुर्योधनों की पौध उत्पन्न होने लगी है और हम सब लगभग धृतराष्ट्र-
गांधारी बन गए हैं | हम अपने बच्चों के दोषों को अनदेखा करते हैं | बच्चों द्वारा अध्यापकों अथवा किसी अन्य की बुराई
हम चुपचाप सुन लेते हैं | बच्चों की असभ्य भाषा और अमर्यादित व्यवहार पर भी हम चुप रहते हैं | बड़ों का आदर न करने,
उनका मजाक उड़ाने तथा छोटों का उपहास करने पर हम आखें मूँद लेते हैं जो अनुचित है | घर के काम में हाथ बंटाने,
सामाजिक और मितव्ययी बनने तथा अच्छी संगत करने की निरंतर सलाह बच्चों के लिए जरूरी है |
बच्चों में देशप्रेम की उदासीनता, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस से बेपरवाही, भोजन और पहनावे में मनमानी, भाई या
बहन के प्रति खींझ आदि हम सब देख रहे हैं जो दुखदायी है | बच्चों का अड़ियल, असहिष्णु, असंयमी, संवेदना हीन होना और
प्रत्येक बात में कुतर्क करना उनमें सार्थक व्यक्तित्व नहीं पनपने देगा | ‘गलती हो गयी’, ‘दोबारा ऐसा नहीं होगा’,
‘क्षमा करें’, ’मैं करता हूँ आप रहने दो’, जैसे शब्द बच्चों के मुंह से लुप्त हो गए हैं | वाणी में मिठास की जगह
कर्कशता छा गयी है | कुछ बच्चे गुटका, धूम्रपान, पान- मशाला और शराब भी पीते देखे गए हैं | यहाँ तक कि स्कूल में भी
कुछ बच्चों के बैग में शराब मिली है | मोबाइल में भी वे अश्लील देख रहे हैं |
कबूतर की तरह आँख बंद कर लेने से हमारे बच्चे अंधकार में भटक जायेंगे | औलाद के मुंह से निकले कटु शब्द पीड़ा
पहुँचाते हैं | हमें अपने दिशाहीन बच्चों को पुचकार कर समझाने- सहलाने की राह अपनानी होगी | यदि हम डर गए या हार गए
तो अंततः नुकसान हमारा ही होगा | हमें समय रहते अपने बच्चों पर चौकस निगाह रखनी ही होगी और अपना व्यवहार विनम्र रखना
होगा ताकि एक दिन वे समझ सकें कि उनके माता- पिता उनके भविष्य के लिए ही कबाब की तरह सिंकते –सिंकते सिकुड़ जाते हैं
|
( आज 21अप्रैल, 2020 कोरोना लौकडाउन का आज 28वां दिन है । विश्व में 24.8 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और
1.7 लाख इसके ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी 17 हजार से अधिक संक्रमित हो चुके हैं और साढ़े पांच सौ से अधिक
ग्रास बन चुके हैं । कुछ दुर्योधन घर से बाहर बेवजह किसी न किसी बहाने निकल रहे हैं । उन्हें किसी तरह रोकिए ।
हिम्मत से मुंह खोलिए । आज हम हस्तिनापुर से नहीं बल्कि भारत देश के राष्ट्रप्रेम से बंधे हैं और अपने लाडले
दुर्योधनों को कोरोना का मुकाबला करने वाले कर्मवीरों की मेहनत पर पानी नहीं फेरने दे सकते । हारेगा कोरोना, जीतेगा
भारत । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
21.04.2020
खरी खरी - 610 : आज राम जी की बात
आज रामजी के बारे में बहुत बड़े लेख की जरूरत नहीं है क्योंकि राम के बारे में हम सब जानते हैं, प्रतिवर्ष रामलीला
भी देखते हैं, सुन्दर कांड का पाठ भी करते-सुनते हैं और यदाकदा राम कथा भी सुनते हैं । राम के बारे में जानते तो हैं
परन्तु उनके बताए मार्ग पर नहीं चलते । राम की तरह हम निषाद- सबरी को गले नहीं लगाते । हम पर्यावरण पर भी ध्यान नहीं
दे रहे और न हमें उस राम-राज्य की चिंता है जिस में सामाजिक न्याय और सामाजिक सौहार्द को प्रमुखता दी जाती थी । राम-
भक्त हनुमान जी की तरह हम में सेवा -भाव भी नहीं है । हो सके तो इस पर विनम्रता से मंथन करें क्योंकि राम जी संयम,
विनय, सामंजस्य, सौहार्द, मर्यादा, शिष्टाचार तथा कर्म के प्रतीक हैं । यह गीत भी हमें यही शिक्षा दे रहा है -
'देखो वो दिवानों
तुम ये काम न करो,
राम का नाम
बदनाम न करो ।'
कोरोना लौकडाउन का आज (20 अप्रैल 2020 ) 27/40वां दिन है । समाज और देश के लिए कुछ अच्छा काम करके आज अपने राम को
रिझाने का पवित्र अवसर है । आइये अपने राम को रिझायें और सबको शुभकामना दें कि वे कोरोना लौकडाउन का सम्मान के साथ
पालन करें । देश के संकट का सब मिलकर मुकाबला करें । स्वयं घर में रहें और सबको घर में रहने का निवेदन करें । पतझड़
से निराश न हों, वसंत दूर नहीं है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.04.2020
खरी खरी - 609 : आज रावण की बात
देश में पिछले माह 25 मार्च 2020 से आरम्भ हुए कोरोना लौकडाउन का आज 26वां (26/40) दिन है । 40 दिन का लौकडाउन 03
मई 2020 तक चलेगा । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में तेईस लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में एक लाख साठ हजार से
अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में पंद्रह हजार से अधिक लोग संक्रमित हैं और पांच सौ से
अधिक ग्रास बन चुके हैं । हमारी सरकार/सरकारें /शासन इस रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम घर में रहें,
बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और स्वयं को घर
में बंद करें तथा करोना से लड़ रहे कर्मवीरों को शुभकामनाएं दें । इस दौर में हमें निराशा से बचना है । हम सब आजकल
रामायण और महाभारत सीरियल देख रहे हैं जो बहुत ही शिक्षाप्रद हैं जिन्हें बच्चों ने भी देखना चाहिए । वीडियो के
माध्यम से 13 अप्रैल को दो बातें दुर्योधन के बारे में की थीं, आज दो बातें रावण के बारे में आपके सम्मुख है
।
आज सबसे बड़ी बात यह है कि हम दुर्योधन बनकर बाहर न घूमें और रावण बनकर अहंकार न करें । दुर्योधन और रावण दोनों ही
विनम्रता विहीन दुष्चरित्र थे जो किसी की बात नहीं सुनते थे और स्वयं को सर्वोपरि समझते थे। इन दोनों ने अपनी जिद और
अहंकार से अपने साथ कई निर्दोषों का भी विनाश किया । कोरोना से बचिए और देश को बचाईए । यही इस वक्त राष्ट्र की पुकार
है और राष्ट्रभक्ति भी ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.04.2020
खरी खरी - 607 : हारेगा कोरोना हम सब जीतेंगे
कोरोना ने दुनिया में आग लगा दी है
मानव को मानव की औकाद बता दी है,
धृतराष्ट्र की तरह मानव चलने लगा था
सर्वशक्तिमान खुद को समझने लगा था,
पड़ोसी चीन ने पहले इसको छिपाया
जब मरने लगा तो दुनिया को बताया,
चीन से ही ये महामारी दुनिया में फैली
जिसने पूरे विश्व में अनगिनत जान लेली,
कोरोना को जब तक दुनिया समझ पाती
वायरस बना लाइलाज अति क्रूर उत्पाती,
लेकर हल्के में इसे कर दी लापरवाही
पूरे विश्व में मच गई है अब त्राहि त्राहि,
इक्कीस लाख मानव ग्रसित कर चुका है
सवा लाख जन जीवन को निगल चुका है,
भारत में भी पांव इसके पहुंच चुके हैं
हजारों जन ग्रसित हैं कई मर चुके हैं,
उपचार एक ही है इसके कहर का
कर ले गृह बंदी तू घर में ठहर जा ।
संकल्प कर लें हम सब घर में रहेंगे
हारेगा कोरोना हम मिलकर जीतेंगे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.04.2020
खरी खरी - 606 : जहां- तहां थूकने वाले अब दंडनीय
आज कोरोना लौकडाउन का 23वां दिन है अर्थात लौकडाउन.2 का दूसरा दिन (2/19वां दिन) । विश्व में 20 लाख से अधिक लोग
इस रोग से ग्रसित हो गए हैं जबकि एक लाख तीस हजार से अधिक रोगी इसका ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी कोरोना
पैर पसार चुका है । सरकार इसे रोकने के लिए सबके सहयोग से जुटी है । इसे रोकना है तो घर में रहिए और लौकडाउन का
सम्मान करिए । जहां - तहां थूकने वालों को जगाने के लिए पहले भी कई बार लिखा । आज यह लेख बहुत प्रासंगिक है क्योंकि
कोरोना वायरस थूक से फैलता है । अब सरकार ने इसे दंडनीय अपराध घोषित किया है । कृपया लेख को पढ़िए और कोरोना को
फैलने से रोकिए ।
‘दाने-दाने में केसर’, ‘बेजोड़’ आदि शब्द-जालों के भ्रामक विज्ञापन पान मसालों के बारे में हम आए दिन देख-सुन रहे हैं
| पाउच पर महीन अक्षरों में जरूर लिखा है, “पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ | पान मसाला, गुट्का,
तम्बाकू, खैनी, जर्दा चबाने वालों और धूम्रपान करने वालों को अनभिज्ञता के कारण अपनी देह की चिंता नहीं है परन्तु
इन्होंने सड़क, शौचालय, स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, रेल-बस स्टेशन, कोर्ट-कचहरी, थाना, गली-मुहल्ला, सीड़ी-जीना, यहां तक
कि श्मशान घाट तक अपनी गंदी करतूत से लाल कर दिया है |
बस से बैठे-बैठे बाहर थूकना, कार से थूकना, दो-पहिये या रिक्शे से थूकना इनकी आदत बन गयी है | पान-सिगरेट की दुकान
पर, फुटपाथ, दिवार या कोना सब इनकी काली करतूत से लाल हो गये हैं | जहां-तहां थूकने वालों का यह नजारा राजधानी
दिल्ली सहित पूरे देश का है | क़ानून बना है पर उसकी अवहेलना हमारे देश में आम बात है | क़ानून बनाने वाले और क़ानून के
पहरेदार भी क़ानून की परवाह नहीं करते | हरेक थूकने वाले के पीछे पुलिस भी खडी नहीं हो सकती है | कोरोना रोग के इस
दौर में थूकना बीमारी का प्रसार करना है ।
इन थूकने वालों को देख मसमसाने के बजाय, दो शब्द इन्हें “थैंक यू” कहने की हिम्मत जुटा कर हम स्वच्छता अभियान के
भागीदार तो बन सकते हैं | “थैंक यू” इसलिए कि न लड़ सकते हैं और लड़ने से बात भी नहीं बनने वाली | हम तो अपने घर के
बन्दे से भी इस मुद्दे पर कुछ कहने से डरते हैं | अब डरने या चुप रहने का वक्त नहीं है, अब इन्हें रोकने का वक्त है
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.04.2020
बिरखांत -312 : पत्थर मार परम्परा
(आज कोरोना लौकडाउन का 22वां दिन है । घर में रहिए । निम्न शब्दों को पढ़ते हुए आज वीडियो के माध्यम से एक पत्थरमार
परम्परा की चर्चा सुनिए । )
उत्तराखंड में पुरातन परम्पराएं आज भी जड़ जमाये हैं | बड़ी मुश्किल से पशु-बलि प्रथा अब कम हो रही है लेकिन
चोरी-छिपकर खुकरी- बड्याठ अब भी चल रहे हैं | देवालयों में रक्तपात बहुत ही घृणित कृत्य हैं परन्तु जिन लोगों ने इसे
उद्योग बना रखा है उनके बकरे बिक रहे हैं | जेब किसी की कटती है और पिकनिक कोई और मनाता है | हम किसी से शिकार मत
खाओ नहीं कह सकते परन्तु देवता- मसाण- हंकार के नाम पर किसी की जेब काटना जघन्य पाप ही कहा जाएगा | मांसाहार के लिए
बुचड़ के दुकानें गुलज़ार तो हैं ही |
परम्परा के नाम पर उत्तराखंड में आज भी मानव –रक्त बहाया जाता है | प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन जिला चम्पावत में
वाराहीधाम देवीधुरा के खोलीखाड़- दूबाचौड़ मैदान में पत्थरों की बारिश होती है | एक दूसरे पर पत्थर बरसाने वाले चार
खामों के लोग बड़े जोश से मैदान में कूद पड़ते हैं | इस पत्थरबाजी को बग्वाल भी कहा जाता है | अपराह्न में मंदिर के
पुजारी की शंख बजाते ही पत्थरबाजी शुरू होती है जो कुछ मिनट तक पत्थरों की वर्षा से कई लोगों का खून बहने लगता है |
जब पुजारी को यकीन हो जाता है कि एक व्यक्ति के खून के बराबर रक्तपात हो चुका है तो वे युद्ध बंद करा देते हैं | इस
युद्ध में दर्शकों सहित कई व्यक्ति घायल होते हैं जिनका बाद में उपचार किया जाता है |
यह परम्परागत पाषाण युद्ध वर्षों से चला आ रहा है | इसी प्रकार का पत्थर युद्ध जिला अलमोड़ा के ताड़ीखेत ब्लाक स्तिथ
सिलंगी गाँव में भी वर्षों पहले बैशाख एक गते (13 या 14 अप्रैल ) को प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता था जिसमें स्थानीय
लोगों की दो टीमें ‘महारा’ और ‘फर्त्याल’ भाग लेती थीं | सूखे गधेरे में एक स्थान (खइ ) तय किया जाता था जिसे
पत्थरों की वर्षा के बीच हाथ में ढाल लेकर पत्थरबाज छूने जाते थे | जो इस स्थान पर पहले पहुँच जाय उसे विजेता माना
जाता था | यहाँ भी कई लोग घायल होते थे जिनका उपचार किया जाता था या खाट में डाल कर रानीखेत अस्पताल में ले जाया
जाता था | पत्थरबाजी से खून बहाने को ‘देवी को खुश करने’ की बात मानी जाती थी | लगभग 20वीं सदी के 5वें दसक ( 65 -
70 वर्ष पहले ) के दौरान नव-युवकों ने इस पाषण युद्ध को बंद करवा दिया और उस स्थान पर झोड़े (खोल दे देवी, खोल भवानी,
धारमा केवाड़ा ...आदि ) गाये जाने लगे | अब झोड़े भी बंद हो गए हैं क्योंकि कौतिक एक नजदीकी स्थान पर होने लगा है,
झोड़े वहीं होने लगे हैं | पत्थरमार युद्ध बंद होने से न कोई रोग फैला और न कोई अनहोनी हुई जैसा कि पुरातनपंथी भय
दिखाकर प्रचारित करते थे |
चम्पावत की इस पत्थरबाजी के खून –खराबे में भाग लेने वाले जोश से सराबोर खामों को आपस में मिल-बैठ कर सर्वसम्मति से
इस पाषाण युद्ध को बंद करवाना चाहिए | इसकी जगह कोई खेल की टूर्नामेंट आरम्भ की जानी चाहिए जिसमें चार खामों की चार
टीम या अन्य स्थानीय टीमें भाग लें और साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करायें | पुरस्कार के लिए ट्रॉफी रखें | ऐसा
करने से उत्तराखंड में खेलों को प्रोत्साहन भी मिलेगा | हमें समय के साथ बदलना चाहिए | देश में पत्थरबाजी की कोई
प्रतियोगिता नहीं होती | बग्वाल का जोश खेलों में परिवर्तित होना चाहिए | ‘देवी नाराज हो जायेगी’ का डर ग्राम सिलंगी
में भी था जो एक भ्रम था | रुढ़िवाद को सार्थक कदम उठाकर और सबको साथ लेकर समाप्त करते हुए खेल भावना युक्त नूतन
परम्परा आरम्भ करने की पहल होनी चाहिए |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.04.2020
खरी खरी - 605 : मैं ‘भगवान’ बोल रहा हूं ।
जी हां, मैं भगवान बोल रहा हूं | कुछ लोग मुझे मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं अपनी बात कह
ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी
तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको
देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं |
आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र-रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर
बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा-आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो |
दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस
बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी
दुर्दशा होती है जी | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते
हैं | "
"आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं जी ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब
मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर
से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को
आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं
मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर
भूमि में दबा दें | "
"मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं
पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा
जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही
से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब
आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे | सदा ही आपके दिल में डेरा डाल कर रहने वाला
आपका प्यारा ‘भगवान’ | ( लौकडाउन के आज 21वें दिन पर भगवान की इस व्यथा को वीडियो के माध्यम से आपके सम्मुख रखने का
प्रयास है । आज अम्बेडकर जयंती भी है, भारत रत्न बाबा साहेब को विनम्र श्रद्धांजलि । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.04.2020F
खरी खरी - 604 : आज दुर्योधन की बात
देश में पिछले माह 25 मार्च 2020 से आरम्भ हुए लौकडाउन का आज 20वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में
अठारह लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में एक लाख चौदह हजार से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे
देश में भी संक्रमण थमा नहीं है । हमारी सरकार/सरकारें /शासन इस रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम घर
में रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और
स्वयं को घर में बंद करें तथा करोना से लड़ रहे कर्मवीरों को शुभकामनाएं प्रेषित करें । हमें साहस के साथ कोरोना से
लड़ने की जरूरत है । इस दौर में हमें निराशा से बचना है । हम सब आजकल रामायण और महाभारत सीरियल देख रहे हैं जो बहुत
ही शिक्षाप्रद हैं जिन्हें बच्चों ने भी देखना चाहिए । वीडियो के माध्यम से आज दो बातें दुर्योधन के बारे में आपके
सम्मुख है ।
आज 13 अप्रैल 2020 को बैसाखी/फूलदेई का त्यौहार भी है । गृहबंदी में ही त्यौहार को मनाना आज हमारी विवशता नहीं,
जिम्मेदारी है । सभी मित्रों को बैसाखी की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
13.04.2020
खरी खरी - 481 : अलग थकुली नि बजौ
देशा का मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ .
एकै उल्लू भौत छी
पुर बगिच उजाड़ू हूँ
सब डवां में उल्लू भै गयीं
बगिचौ भल्याम कसी हूँ.
गिच खोलो भ्यार औ
भितेर नि मसमसौ, देशा क ....
समाओ य देशें कें
हिमाल धात लगूंरौ
बचौ य बगीचे कें
जहर यमे बगैँ रौ
उंण नि द्यो य गाड़ कें
बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क .....
उठो आ्ब नि सेतो
यूं उल्लू तुमुकें चै रईं
इनू कें दूर खदेड़ो
जो म्या्र डवां में भै रईं
यकलै यूं नि भाजवा
दग डै जौ दौड़ी बे जौ . देशा क .....
शहीदों कें याद करो
घूसखोरों देखि नि डरो
कामचोरों हूँ काम करौ
हक़ आपण मागि बे रौ
अंधविश्वास क गव घोटो
अघिल औ पिछाड़ी नि रौ.
देशा क मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ.
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.04.2020
खरी खरी - 603 : मिलावट से सावधान
आज भारत बंद का 19वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में सत्रह लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में एक
लाख से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी स्तिथि दुखदाई है । हमारी सरकार/सरकारें
/शासन इस रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम घर में रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी
जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और स्वयं को घर में बंद करें तथा करोना से लड़ रहे कर्मवीरों
को शुभकामनाएं प्रेषित करें । हमें साहस के साथ कोरोना से लड़ने की जरूरत है । वीडियो के माध्यम से आज संकट की घड़ी
में मिलावट करनेवालों और अधिक मुनाफा कमाने वालों से सावधान करने का प्रयास है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.04.2020
खरी खरी - 601 : धर्मगुरु भी अपील करें
आज भारत बंद का 17वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में 15 लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में 88 हजार
से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी स्तिथि दुखदाई है । हमारी सरकार/सरकारें /शासन इस
रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम घर में रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी
जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और स्वयं को घर में बंद करें तथा करोना से लड़ रहे कर्मवीरों
को शुभकामनाएं प्रेषित करें । आज साहस के साथ कोरोना से लड़ने की जरूरत है । वीडियो के माध्यम से आज हम धर्म गुरुओं
से निवेदन करते हैं कि वे समाज से ईमानदारी से लौकडाउन और सरकारी निर्देशों को पालन करने की अपील करें तथा
क्वारेनटाइन में रह रहे संक्रमित व्यक्तियों को अशिष्टता त्याग सहयोग करने को कहें । धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.04.2020
खरी खरी - 598 : आज शराब और शराबियों की बात
जग जाहिर है जो किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते वे वास्तव में उत्तम लोग हैं । आप अपने मित्र, परिवार, संबंधी,
सहकर्मी को भी जनजागृति कर अपनी कैटेगरी में शामिल करें ।
कुछ वर्ष पहले जब तबादला होकर नए स्थान पर गया तो सायँ 5 बजे एक सहकर्मी पास आकर कान पर कहने लगा, "आपसी
कंट्रीब्यूसन से कभी कभी व्हिस्की मंगाते हैं, सौ रुपए निकाल ।" मैंने मना किया तो वह बोला, "अबे कंगले स्टाफ में
मिलकर रहना पड़ता है । निकाल सौ रुपये ।" मैंने सौ रुपये दे दिए परन्तु चुपचाप घर को चला आया । दूसरे दिन सुबह उसने
सौ का नोट मेरे मुंह पर मारते हुए कहा, " अबे हमें भिखारी समझता है । कोई मुसीबत आएगी तो हम ही काम आएंगे तेरे ।" यह
बंदा यों ही उटपटांग बोलने में माहिर था और जो मन आई सो बोल कर चला गया । स्टाफ का मामला था, मैं चुप रहा ।
मैंने कोई बहस नहीं की । मुझे किसी भी शराब पीने वाले से कोई नफरत नहीं है । शराब पीने के बाद यदि पता चल रहा है कि
उसने शराब पी है, वह समाज -परिवार का अहित कर रहा है तो वह शराबी है । वैसे शराब सहित सभी प्रकार का नशा मानव के लिए
100 % दुःखदायी, खतरनाक और अंततः आत्मघाती है । मैं जानता हूँ कई ऑफिसों में 5 बजे के बाद खूब शराब पार्टी होती है
जिसे बॉस का परोक्ष संरक्षण होता है या वह इसे अनदेखा कर देता है ।
उपन्यास "छिलुक" में इसका पूर्ण विवरण है । मैं अंतिम दिन तक उस स्थान पर शराब पार्टी में शामिल न होने के कारण अपने
सहकर्मियों के मुख से खूब गालियां सुनता रहा, जो यहां बता नहीं सकता । स्मरण रहे शराब सहित सभी नशे मनुष्य को ले
डूबते हैं । इसलिए डरिये मत, शराब से बच कर रहिये और शराबियों से भी । मैंने अपने काम से अपने शराबी सहकर्मियों का
दिल जीता और उनसे सम्मान पाया जिसका आभाष मुझे तब होता था जब वे शराब नहीं पीए हुए होते थे । आज कोरोना लौकडाउन का
14वां दिन है । विश्व में कोरोना संक्रमित संख्या तेरह लाख से अधिक और मृतकों की संख्या चौहत्तर हजार से अधिक हो
चुकी है । अपने देश में भी स्थिति अच्छी नहीं है । घर में रहिए, लक्ष्मण रेखा के अंदर रहिए और स्वयं को तथा देश को
संक्रमण से बचाइए । आज का वीडियो शराब और शराबियों पर है, जरूर देखिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.04.2020
मीठी मीठी - 448 : भगवान महावीर जयंती
आज 6 अप्रैल 2020 को भगवान महावीर जी की जयंती है । महावीर जैन का जन्म 599 ई.पू. हुआ और 72 वर्ष की आयु में 527
ई.पू. में महाप्रयाण हुआ | ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धांत पर सत्य, अहिंसा एवं कर्म पर चलने तथा लालच, झगड़ा, छल-कपट
और क्रोध से दूर रहने का उन्होंने संदेश दिया | पुस्तक " लगुल " से उनके बारे में हिंदी और कुमाउनी में एक लघु लेेख
यहां उद्धृत है । सभी मित्रों को महावीर जयंती की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.04.2020
खरी खरी- 597 : देश की मुख्य आठ समस्या
आज 4 अप्रैल 2020, भारत बंद का 11वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में दस लाख से अधिक हो गए हैं ।
दुनिया में पचास हजार से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी स्तिथि दुखदाई है । हमारी
सरकार/सरकारें /शासन/चिकित्सक/स्वास्थ्य कर्मी और अन्य सभी सहयोगी इस रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम
घर में रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें
और स्वयं को घर में बंद रखें । आज दो बातें देश की मुख्य आठ समस्याओं के बारे में वीडियो के माध्यम से आपके सम्मुख
प्रस्तुत हैं । धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
04.04.2020
मीठी मीठी - 445 : आज बच्चों की बात
आज भारत बंद का 10वां दिन है । कोरोना वायरस के केस पूरे विश्व में दस लाख से अधिक हो गए हैं । दुनिया में पचास
हजार से अधिक लोग क्रूर कोरोना के ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी स्तिथि दुखदाई है । हमारी सरकार/सरकारें
/शासन इस रोग से लड़ रहे हैं । हमारा सहयोग यह है कि हम घर में रहें, बाहर न निकलें । इस वक्त यही हम सबकी बहुत बड़ी
जिम्मेदारी है कि हम सरकार के निर्देशों का पालन करें और स्वयं को घर में बंद करें । आजकल बंद के दौर में बच्चे भी
हमारे साथ घर में बंद हैं। वीडियो के माध्यम से आज कुछ बातें बच्चों की आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं । धन्यवाद
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.04.2020
खरी खरी - 594 : मसाण उद्योग - नारी शोषण
आज भारत बंदक आठूं दिन छ । घर बै भ्यार झन जया । प्रधानमंत्री कि अपील कैं समझिया । कोरोना बीमारीक प्रकोप कम नि है
रय । आपणि जिम्मेदारी समझिया । "मसाण स्यैणियां पर किलै लागूं " य विषय पर एक वीडियो देखिया । धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
01.04.2020
मीठी मीठी - 444 : गणेश जी की आरती के शब्द
वीडियो के अनुसार यह 3 सितम्बर 2019 की मीठी मीठी - 341 के शब्द भी पढ़िए जो नीचे उद्धृत हैं ।
"मीठी मीठी - 341 : गणेश जी की आरती के शब्द
हमारे समाज में चिरकाल से गणेश जी की एक आरती प्रचलन में है, "जय गणेश जय गणेश श्रीगणेश देवा..."। इस आरती की इन
पंक्तियों में बदलाव होना चाहिए-
"अंधन को आंख देत, कोड़िन को काया; बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।"
आरती में तीन शब्द अप्रिय हैं और अप्रासंगिक हैं । मेरे विचार से आरती इस प्रकार से हो -
" सूरन को आंख देत, रोगिन को काया;
नारी को मातृत्व देत, सबजन को छाया ।"
अंधे व्यक्ति को सूर कहते हैं, कोड़ की बात न हो, प्रत्येक रोग से सभी को दूर रखने की बात हो । बांझ शब्द किसी भी
विवाहिता के लिए कटु शब्द है । यहां मातृत्व की बात करें ,पुत्र देत न कहें । पुत्र देत कहने से हम अपनी पुत्रियों
का अपमान करते हैं । माया तो मांगनी ही नहीं चाहिए । कर्म करें, उच्च चरित्र रखें, जीओ और जीने दो का सिद्धांत
अपनाएं और स्वस्थ जीवन जीएं । ' छाया ' का अर्थ है भगवान की छत्र छाया सब पर बनी रहे ।
मुझे उम्मीद है सभी मित्र इस बदलाव पर अवश्य मंथन करेंगे और इन तीन शब्दों ( अंधन, कोड़िन और बांझ ) से आहत होने
वाले मनिषियों को इन अप्रिय शब्दों से बचाएंगे तथा इनकी जगह ' सूरन ' रोगिन और मातृत्व ' शब्द प्रयोग करेंगे । इसी
उद्देश्य से एक वीडियो में चंद शब्द बोलने का प्रयास किया है, कृपया वीडियो को समय देने का कष्ट करें । धन्यवाद
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.09.2019"
आज भारत बंद का 7वां दिन है । घर में रहिए और जो लोग कोरोना से जूझ रहे हैं उनको जयहिंद कहिए । सरकार और शासन के
निर्देश मानिए । धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल,
31.03.2020.
मीठी मीठी - 442 : गदुवाक गुटुक
भारत बंद क आज पांचू दिन छ । घर बै भ्यार झन अया । कोरोनाक समाचार ठीक न्हैति । टेंशन झन लिया । घर में गदुवाक
गुटुक बनौ और सबूं कैं खवाै । य वीडियो देखो ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.03.2020
खरी खरी - 592 : आनंद विहार की भीड़ ठीक नहीं
दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा आई एस बी टी आनंद विहार दिल्ली पर भीड़ के कारण - बीमारी का डर, घर पहुंचने की
जल्दी, धैर्य - संयम की कमी, बीमारी की गंभीरता की नासमझ । सरकार मिलकर काम कर रही है, उस पर भरोसा करना चाहिए ।
सरकार की "जहां हो वहीं रहो " बात की अनसुनी करना गलत । लोगों को 135 करोड़ जनसंख्या के हमारे देश में तुरन्त
करिश्में की उम्मीद नहीं करनी चाहिए । जो लोग रात - दिन दिलोजान से जूझ रहे हैं उनके किए - कराए पर पानी न फेरें ।
हमारी गैर - जिम्मेदार हरकतों से सबका मनोबल टूट सकता है । सब अपनी जिम्मेदारी समझें और निर्देशों को मानें तथा जहां
हैं वहीं रहें । घर में रहें , बाहर न निकलें ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.03.2020
मीठी मीठी - 441: तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर !!
मित्रो आज भारत बंद का चौथा दिन है । क्रूर कोरोना विश्व के 199 देशों के 5,94,791 लोगों को ग्रसित कर चुका है और
27,255 लोगों को अपना शिकार बना चुका है । हमारे देश में 887 लोग इस रोग से पीड़ित हैं और 18 लोग इस काल के ग्रास बन
चुके हैं । केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारें इस रोग से बचाने के भरसक प्रयास कर हीं हैं । बाकी बातें इस छोटे
से वीडियो में सुनिए और राष्ट्र के हित में घर से बाहर न निकलिए । यदि हम सभी निर्देशों को मानते हैं तो यह हमारा
बहुत बड़ा योगदान/ सहयोग होगा । धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28 मार्च 2020
खरी खरी - 591 : समाजसेवी की पहचान
समाजसेवा उतना आसान काम नहीं है जितना लोग इसे समझते हैं । हमारे चारों ओर एक बहुचर्चित शब्द है 'समाजसेवी' । किसी
भी आयोजन या समारोह में माइक में खूब गुंजायमान होता है कि अमुक समाजसेवी हमारे बीच हैं । कई बार तो 01 पैसे का काम
पर 99 पैसे का शोर मिश्रित अपचनीय प्रचार होता है ।
'समाजसेवी' का वास्तविक अर्थ है जो समाज के हित में निःस्वार्थ सेवा करे और अपना मुंह खोले तथा उस दिखाई देने वाली
सेवा का बखान अन्य लोग भी करें और उस सेवा से समाज का वास्तव में भला भी हो । हमारे इर्द-गिर्द कुछ लोग ऐसे अवश्य
दिखाई देते हैं जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है । ऐसे लोग प्रत्येक विसंगति को बड़ी विनम्रता से इंगित करते हैं और
परिणाम प्राप्त करते हैं । आज जब देश में कोरोना वायरस के कारण भारत बंद का चौथा दिन है और देश में इस बीमारी से 887
लोग ग्रसित हो गए हैं तथा 17 लोग हमारे बीच से जा चुके हैं, तब भी कुछ लोग सरकारी आदेशों का पालन करते हुए कुछ न कुछ
समाज सेवा कर रहे हैं । ( आज प्रातः की सूचना के आधार पर विश्व में 199 देशों के 5,94,791 लोग इस रोग से ग्रसित हैं
और 27,255 व्यक्ति इसके शिकार हो चुके हैं ।) किसी व्यक्ति को घर से बाहर नहीं जाने के लिए प्रेरित करना और स्वयं
बाहर न जाना भी आज देश सेवा का पर्याय बन गया है ।
बिना समाज के लिए कुछ कार्य किये हम क्यों किसी को समाजसेवी कह देते हैं ? जो स्वयं को समाजसेवियों में गिनते हैं
उन्हें एक डायरी या कापी अपने लिए भी बनानी चाहिए जिसमें स्वयं द्वारा प्रतिदिन समाज के हित में किये गए कार्य की
चर्चा स्वयं लिखी जाए । हमें कुछ ही दिनों में अपने समाज- सेवी होने का प्रमाण स्वतः ही मिल जाएगा । हम 'वन्देमातरम,
'भारतमाता की जय' और 'जयहिन्द' शब्दों को तभी साकार या सार्थक कर सकते जब हम अपनी क्षमता के अनुसार समाज और देश के
लिए देश के कानूनों और सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए कुछ न कुछ आंशिक योगदान देते रहें । जयहिन्द ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.03.2020
मीठी मीठी - 440 : तुम राह दिखाते हो
( 'खरी खरी' तो प्रतिदिन होती है । आज 'मीठी मीठी' एक भजन/प्रार्थना 'तुम राह दिखाते हो ।' वैसे 2 मिनट प्रभू स्मरण
तो प्रतिदिन करता हूं और सबको करना भी चाहिए । प्रभू स्मरण के लिए किसी भी प्रकार के आडंबर या दिखावे की आवश्यकता
नहीं है । घर के मंदिर में ही माथा टेकना सर्वोत्तम । )
तुम राह दिखाते हो
तुम ज्योति जगाते हो,
भटके हुए मेरे मन को
प्रभु जी थाह दिलाते हो ।
जब -जब मेरे
मन में प्रभु जी
अंधियारा घिर आया,
देर नहीं की आकर तुमने
ज्ञान का दीप जलाया,
सुख-दुख जीवन
के पहलू हैं
तुम्हीं बताते हो । तुम...
संकट के बादल छिटकाये
क्रोध की अग्नि बुझाई,
भंवर से तुमने
मुझे निकाला
खुद पतवार बनाई,
मेरे मन की चंचल नैया को
तुम पार लगाते हो । तुम...
जीवन मेरा
सफल हो जाये
तुम्हरी कृपा पा जाऊं,
फल की आस
जगे नहीं मन में
कर्म पै बलि बलि जाऊं,
कर्म ही मेरा दीन धरम
संदेश बताते हो । तुम...
(आज इस प्रार्थना का वीडियो भेजने का प्रयास करूंगा । यह भजन मेरी पुस्तक " यादों की कालिका " ( 2010) में अन्य 51
कविताओं के साथ है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.03.2020
मीठी मीठी - 438 : नव वर्ष नव- संवत्सर आरम्भ
भारत का नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 25 मार्च 2020 आज आरम्भ हो रहा है । आज भी हमें एक-दूसरे को शुभकामना देनी
चाहिए । देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव -वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31
दिसंबर को मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाते है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा
जाता है । यह नव -वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |
दूसरे नव- वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं जो ईसा पूर्व 57 से मनाया जता है | 2020 में वि.स. 2077 है जो 25 मार्च
2020 से आरम्भ हो रहा है । आज से ही नव संवत्सर भी आरम्भ है । तीसरा नव वर्ष साका वर्ष है जो 78 ई. से आरम्भ हुआ
अर्थात यह वर्तमान 2020 से 78 वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष 1942 है |
भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग अलग
समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम अंग्रेजी में
‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी देशों के नाम अंग्रेजी
में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’ शब्द ‘हिंदु’ से आया और
‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के किनारे के लोगों को ‘इंदोई’ कहते
थे |
जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और ‘भारत’ को
गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ ‘भारत’ ही पुकारा
जाय तो अच्छा है | सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाए ।
वर्तमान में भारत सहित पूरा विश्व कोरोना बीमारी से ग्रस्त है । हमें इस संकट की घड़ी में 24 मार्च 2020 को रात्रि 8
बजे प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील को अक्षरशः मानना है । घर से बाहर न निकलें । पूरा देश कर्फ्यू में है । हम
सुनें, समझें और सहयोग करें । कहते हैं भगवान भी उसकी मदद करता है जो स्वयं की मदद करता है । अपने देश के खातिर घर
से बाहर न निकलिए और परेशानी को हिम्मत से झेलिए । पुनः नव वर्ष की शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.03.2020
मीठी मीठी - 437 : बात चलि रै (रमुवक /मधियक ब्या )
अच्याल घर में भैटि बेर बोर हुंण सैज बात छ । कोरोना वजैल देश कि हालत गंभीर छ । पुर देश में कर्फ्यू लैगो ।
कर्फ्यू जरूरी छी तबै बीमारी है सब बचि सकाल । भ्यार झन निकलिया । सरकार/शासन सब जूझि रईं । हमर सहयोग य छ कि हमूल
घर बै भ्यार नि जाण चैन । एक कविता वीडियो देखो । पांच मिनट टैम पास है जाल । राम चरित मानस वाल वीडियो भौत मितुरोंल
पसंद करौ और टिप्पणी लै करी, वीक लिजी आभार ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.03.2020
खरी खरी - 589 : अरे वो बाहर घूमने वालो !
दिल्ली बंद, धारा 144, कर्फ्यू, लॉक डाउन के बाद भी कोरोना बीमारी को गंभीरता से न लेते हुए बाहर घूमने वालों से एक
विनम्र निवेदन -
खुद को तो
तुम मार रहे हो,
सबको खतरे में
डाल रहे हो,
घर में ही अपने
को रोक लो,
क्यों तुम बाहर
भाग रहे हो ?
घर में रहोना
भागे कोरोना ।
कोरोना पर नजर : विश्व- ग्रसित देश 192, कुल केस 3.78 लाख, मृत्यु 16510 : भारत - कुल ग्रसित केस 499, मृत्यु- 9 :
हाथ धोना, बाहर न जाना, भीड़ से बचना, भागे कोरोना। (24 मार्च 2020, 0600 am)। जानकारी जरूरी और सतर्कता भी जरूरी ।
हमारी लापरवाही हमारे लिए, हमारे परिवार और हमार देश के लिए घातक । जनता कर्फ्यू बढ़ाना देश हित में होगा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.03.2020
मीठी मीठी - 436 : शहीद भगतसिंह स्मरण दिवस ,23 मार्च ।
शहीदे आजम भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर में हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव
तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई थी । 23 मार्च यानि, देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर करने
वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस है । यह दिवस न केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने वा गौरव का अनुभव
कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रृद्धांजलि देता है।
उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस
याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंति हैं। भगतसिंह ने अपने अति संक्षिप्त
जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। "आदमी को मारा जा सकता है उसके
विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को
सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।" बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था।
भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार
भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद
उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस
अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला। यह मुकदमा भारतीय
स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगतसिंह
क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा। फांसी पर जाने से पहले तक भी वे लेनिन की
जीवनी पढ़ रहे थे।
आज अमर शहीद भगत सिंह की 89वीं पुण्यतिथि है । हम विनम्रता के साथ उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.03.2020
खरी खरी - 587 : जनता कर्फ्यू 22 मार्च
जनता कर्फ्यू को सबने है समझना
जगे अपनी हिम्मत दहशत न करना
22 मार्च 2020 सब घर में है रहना
खुद से है कहना और खुद को समझना
शासन का दिल से सहयोग है करना
घड़ी है परीक्षा की बिलकुल न डरना
दुनिया में कोरोना ने ढाया है कहर
चीन से चला है ये महामारी बनकर
क्रूर कोरोना की तोड़नी है कमर
निज संयम संकल्प से जीतेंगे समर
कोई यात्रा नहीं भीड़ से है बचना
सुनो न अफवाह हाथ धोते रहना
पांच से ज्यादा एक जगह खड़े न होना
होगा बेहतर घर से बाहर न निकलना
हम सब मिलकर इस बला से लड़ेंगे
हारेगा कोरोना जंग हम ही जीतेंगे
पांच बजते ही सांय बजे जोर से ताली
उनके लिए, संघर्ष डोर जिसने संभाली।
कोरोना को धोना है तो धोना अपने हाथ
पास फटके न कोरोना सत्य है ये बात ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
22 मार्च 2020
जनता द्वारा जनता कर्फ्यू
खरी खरी - 585 : निर्भया के दरिंदे लटके फांसी पर
तीन बार फांसी टलने के बाद अंततः आज न्याय की जीत हुई । 7 साल 3 महीने 3 दिन के इंतजार के बाद आज 20 मार्च 2020 की
सुबह 0530 बजे निर्भया के चारों दोषियों को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई । आज देश में निर्भया दिवस
मनाया जा रहा है । फांसी के समय निर्भया के घर के बाहर काफी लोग पहुंचे थे । दिल्ली के तिहाड़ जेल के बाहर भी कई लोग
इस न्याय को अंजाम पर जाते देखने - सुनने के लिए खड़े थे । आज निर्भया की आत्मा को शांति मिलेगी । निर्भया के माता -
पिता और जनता का संघर्ष इस सजा को अंजाम तक पहुंचाने में काम आया । निर्भया के माता - पिता ने अदालतों, वकीलों,
सरकार, मीडिया, पत्रकारों और जनता का इस न्याय संघर्ष में साथ देने के लिए दिल से अश्रुपूर्ण आभार जताया ।
दुष्कर्म (रेप) ने हमारे देश में अब एक समस्या का रूप ले लिया है । प्रतिदिन कई बच्चियां और महिलाएं इस जघन्य अपराध
का शिकार हो रही हैं जबकि 10 में से केवल 1 केस ही कानून तक पहुंचता है क्योंकि सामाजिक डर या न्याय में देरी के
कारण लोग रिपोर्ट नहीं करते जबकि प्रत्येक पीड़ित को रिपोर्ट करना चाहिए । 95 % आरोपी तो पीड़िता के रिश्तेदार,
पड़ोसी, सहपाठी, सहकर्मी या पहचान वाले होते हैं । अब किस पर भरोसा करें । आज हम उस दौर से गुजर रहे हैं जब नारी वर्ग
को हर किसी भी पुरुष को संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए कि वह उसके लिए कभी भी घातक हो सकता है ।
अधिक दुःखद तो तब होता है जब ये नरपिशाच दुधमुंही बच्चियों को इस कुकृत्य का शिकार बनाते हैं । कुछ दिन पहले इंदौर
में एक 26 वर्षीय नरपिशाच ने एक 4 माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी । यह नरपिशाच उस बच्ची के
परिजनों को जानता था । निर्भया के दुष्कर्मी तो शैतान थे जिन्होंने सामूहिक दुष्कर्म के बाद उस लड़की के शरीर को
अपने दांतों से काटा, उसके अंग - प्रत्यंग को बड़े वीभत्स तरीके से क्षत - विक्षत किया । इस घृणित कुकृत्य की सजा
मौत ही थी ।
एक सवाल यह भी है कि यह फांसी 3 बार इसलिए टली क्योंकि हमारे कानून में कहीं न कहीं लूप होल था जिसका इन दरिंदों के
वकील ने 19 मार्च 2020 की रात तक खूब फायदा उठाया और केस को इतना लंबा खीचा । यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
जाने कई धमकी तक दी गई । ये लूप होल शीघ्र बंद होने चाहिए ।
समाज को अपने बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए क्योंकि ये दरिंदे 16 दिसंबर 2012 की रात अचानक नरपिशाच नहीं बने । ये
नरपिशाच अपने पीछे रोते - बिलखते पांच परिवार छोड़ गए जो जीवनभर इनके कुकर्म की सजा भोगेंगे और नरपिशाचों के संबंधी
कहलाएंगे । हम सब जो निर्भया को न्याय दिलाने में निर्भया के परिवार के साथ थे, इन दरिंदो को फांसी पर लटकाए जाने के
बाद एक राहत महसूस कर रहे हैं । हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ क्योंकि कई दुष्कर्मी आज भी सजा पाने की कतार में
जेल के अंदर हैं या बाहर खुलेआम घूम रहे हैं । इन्हें भी सबने मिलकर सजा के अंजाम तक पहुंचाना है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.03.2020
खरी खरी - 584 : कभैं आपूहैं पुछो !!
( कोरोना देखि नि डरो )
भाग्य क भरौस पर
तमगा नि मिलन
पुज-पाठ भजन हवन ल
मैदान नि जितिन,
पसिण बगूण पड़ूं
जुगत लगूण पणी,
कभतै हिटि माठु माठ
कभतै दौड़ लगूण पणी ।
कोरोना देखि नि डरो
गंड -टोटकों है दूर रौ
डाक्टरों कि बात सुनो
हाथ धुण नि भुलो
भीड़ में नि घुसो
खासै काम पर भ्यार जौ
सरकारक सहयोग करो
कोरोना देखि नि डरो ।
पढ़ीलेखी हाय
पढ़ी लेखियां जस
काम नि करें राय ,
गिचम दै क्यलै जमैं थौ
आपू हैं नि पूछैं राय,
मरि-झुकुड़ि बेर कुण नि बैठो
ज्यौना चार कभें त जुझो,
क्यलै मरि मेरि तड़फ
क्यलै है रयूं चुप
कभैं आपूहैं पुछो ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18. 03 .2020
खरी खरी - 583 : तेलंगाना -आंध्रा से कुछ सीखें
देश का 29वां राज्य तेलंगाना 2 जून 2015 को घोषित हुआ । इसकी राजधानी हैदराबाद घोषित हुयी । आंध्रा के लिए नयी
राजधानी अमरावती तय हुयी जिसका निर्माण कार्य जोरों पर है । हमारे राज्य को बने हुए 19 वर्ष हो गए । इस दौरान यहां 8
मुख्यमंत्री बने परंतु राजधानी गैरसैण तय होने के बाद भी अभी तक देहरादून में अटकी है । अभी तक गैरसैण को राजधानी
घोषित भी नहीं किया गया है । अब ग्रीष्म कालीन की बात हो रही है जो नाकाफी है । गैरसैण को पूर्णकालिक राजधानी बनाने
से ही उत्तराखंड का भला होगा । तेलंगाना में 11 अक्टूबर 2016 को 21 नए जिले भी अस्तित्व में आ गए हैं । उत्तराखंड
में 4 जिले घोषित हुए एक अरसा बीत गया परंतु अस्तित्व अभी दूर है । हम कुछ तो तेलंगाना- आंध्र प्रदेश से सीखें ।
हमें शायद बुसिल ढुंग इसीलिये कहने लगे हैं लोग ।
क्या गैरसैण राजधानी के लिए एक और आंदोलन की आवश्यकता पड़ेगी ? उनका सिंगल इंजन और इनका डबल इंजन शक्तिहीन हो गए हैं
। राजधानी की कोई बात ही नहीं करता । अब जनता को सोचना है । पलायन रोकने और उत्तराखंड में विकास को गति देने के लिए
राजधानी का पूर्णकालिक गैरसैण कूच नितांत आवश्यक है । राज्य आंदोलन के 42 शहीदों ने भी राजधानी गैरसैण ही तय की थी
और इसके लिए अपना बलिदान दिया था । हमने उन शहीदों को भी भुला दिया जिन्होंने राज्य और राजधानी गैरसैण के लिए वर्ष
1994 में अपने सीने में गोली खाई । हमने उत्तराखंड की नारी शक्ति के उस अपमान को भुला दिया जिसकी वीभत्स गूँज आज भी
मुज्जफरनगर चौराहे पर गूँज रही है जिसके गवाह है उस आसपास के राई और बागोवाली गांव जो उत्तराखंड की नारी के सम्मान
की रक्षा करने के लिए 2 अक्टूबर 1994 की भोर को आगे बढ़े थे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.03.2020
खरी खरी - 582 : डिप्रेशन (अवसाद )
अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि उसका बौस डिप्रेशन का शिकार है, पति या पत्नी अवसाद में है, उसका
पड़ोसी डिप्रेशन में है, रिश्तेदार/ परिजन या कोई अन्य जानकार डिप्रेशन में चला गया है । ऐसा कहने वाले लोग स्वयं
अपने बारे में नहीं जानते । डिप्रेशन या अवसाद एक मानसिक असंतुलित हालत होती है जिसके कुछ लक्षण इस प्रकार हैं -
- चिड़चिड़ापन
- जल्दी गुस्सा आना
- जिद्दी होना, अड़ियलपन
- भुलक्कड़ी पनपना
- अंधेरा पसंद होना
- मजाक पसंद नहीं करना
- सलाह का विरोध करना
- विनम्रता रहित होना
- बदलाव / सुधार अस्वीकार्य होना
- कोई रुचि नहीं होना
- हर बात पर प्रतिकार करना
- अधिक बोलना, जोर से बोलना
- कभी कभी गुमसुम रहना
- नकारत्मक सोचना
- शक या संदेह करना
- बिना सोचे ही बोलना
- आत्महत्या के विचार आना
- अपनी कही हुई बात को सही मनाना
- अध्ययन से विरक्ति होना
- अपनों के बजाय गैरों पर भरोसा होना
- नींद कम आना
- यदा - कदा नींद में बोलना
गुस्सा या उपरोक्त लक्षणों से आंशिक तौर पर लगभग सभी मनुष्य ग्रसित रहते हैं । प्रत्येक व्यक्ति में इन लक्षणों का
न्यूनतम होना आश्चर्य या चिंता की बात नहीं है परन्तु इन लक्षणों का धीरे धीरे बढ़ना या अत्यधिक होना किसी को भी
डिप्रेशन का शिकार बना सकता है । ऐसा व्यक्ति परिवार के लिए अवश्य ही चिंता का विषय है । ऐसे व्यक्ति को अकेला
छोड़ना कभी भी बड़ी समस्या पैदा कर सकता है । उससे मजाक नहीं करनी चाहिए बल्कि साधारण बातचीत करते रहनी चाहिए और वह
जोर से बोलने लगे तो चुप हो जाना चाहिए ।
अवसाद ग्रस्त व्यक्ति से कम बोला जाय । उस व्यक्ति से उसी की तरह पेश नहीं होना चाहिए अन्यथा स्तिथि बिगड़ सकती है ।
उसमें कोई रुचि पैदा हो सके इस तरह के उपाय किए जाने चाहिए । यदि यह व्यक्ति व्यस्त रहे तो उचित होगा । उसकी कमियां
नहीं गिनाई जानी चाहिए और उससे ' तू डिप्रेशन का मरीज है' जैसे शब्द भूल कर भी नहीं कहने चाहिए । यही सलाह
काउंसिलिंग वाले भी देते हैं । उपरोक्त वर्णित समस्या जो कोई बीमारी नहीं है बल्कि व्याहारिक विकृति है, से
पारिवारिक सहयोग से धीरे धीरे कम किया जा सकता हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
16.03.2020
खरी खरी - 581 : वाह रे ! पैंट - फाड़ फैशन
आजकल हम देखते हैं कि युवक-युवतियां घुटने से नीचे और घुटने से ऊपर (जांघ के ऊपरी सिरे से थोड़ा नीचे तक ) कई जगह से
फटी जीन्स पहन कर खुलेआम चल रहे हैं । सबसे पहले मैंने यह दृश्य मेट्रो ट्रेन में देखा । उसके बाद इसी तरह की फटी
जीन्स पहने प्रेमी जोड़ों को मेट्रो स्टेसन की सीढ़ियों में सट कर बैठे देखा । जंतर मंतर की ओर गैरसैण के लिए
धरना-प्रदर्शन के लिए जा रहा था तो रास्ते में भी कई फटेहालों को देखा । कुछ मित्रों से पूछा तो वे बोले, "सर ये
फटीचर नहीं हैं, ये फैशन हैं । बाजार में फटी पैंट पहनने का फैशन आ गया है ।" मैं सोचने लगा 'यदि कमर से ऊपर के फटे
वस्त्र पहनने का फैशन भी आ गया तो तब कैसा लगेगा ?'
इसी सोच में मुझे अपने मिडिल स्कूल का जमाना याद आ गया जब मैं और मेरे जैसे कई छात्र तीन टल्ली (पैबंद) लगी सुरर्याव
(पैंट) पहने स्कूल जाते थे । हमारे घरवाले पैंट फटने पर उस पर तुरन्त टल्ली लगवा देते थे । हम फटी पैंट पहन कर कभी
बाहर नहीं गए । परन्तु आज जमाने की बलिहारी देखो युवा फैशन के नाम पर पैंट फाड़े सीना तान कर चल रहे हैं । वाह रे!
पैंट-फाड़ फैशन । युवतियों की फटी पैंट पर एकबारगी नजर पड़ते ही अपनी नजर झुक जाती है । मेरा आश्चर्य का ठिकाना तो तब
नहीं रहा जब एक लड़का बोला, "अंकल इन फटी पैंटों की कीमत बिनफटी पैंटों से अधिक है, क्योंकि यह फैशन की फाड़ है
।"
अब तो फटी पैंटों को देख आश्चर्य भी नहीं होता, शायद नैनों ने समझ लिया है कि इस तरह के वस्त्र-फाड़ अंग-दिखाऊ नए नए
फैशन आने वाले वक्त में देखने को मिलते रहेंगे । वस्त्र डिजायनर कहीं हमें पुनः उसी युग में तो नहीं ले जाना चाहते
जिस युग में सबसे पहले मानव ने पेड़ों की छाल -पत्तों से शरीर ढकना सीखा ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.03.2020
मीठी मीठी - 435 : सीख जो दे गए स्टीफन हॉकिंग -आज पुण्यतिथि
8 जनवरी 1942 को इंग्लैंड के आक्सफोर्ड में जन्मे स्टीफन हॉकिंग 14 मार्च 2018 को 76 वर्ष की उम्र में दुनिया से
जाते समय यह सीख दे कि यदि इच्छा शक्ति हो तो अपंगता या लाचारी में भी मनुष्य आश्चर्यजनक कार्य कर सकता है । उन्हें
मात्र 21 वर्ष की आयु में स्नायु सम्बन्धी ( ALS, अम्योट्रापिक लेटरल स्क्लेरोसिस) रोग लग गया जिसमें रोगी कुछ ही
वर्ष जीवित रहता है । इस बीमारी के कारण वे एक हाथ की कुछ अंगुलियां ही हिला सकते थे, बाकी पूरा शरीर हिल नहीं पाता
था । बोलने सहित उनके रोजमर्रा के काम तकनीक या लोगों पर निर्भर रहते थे । 56 वर्ष तक उनका ज्यादातर वक्त विशेष
व्हील चेयर पर गुजरा ।
स्टीफन हॉकिंग एक महान वैज्ञानिक और अद्भुत व्यक्ति थे जिनके कार्य और विरासत सदैव जीवित रहेंगे । उनकी बुद्धिमता,
साहस और दृढ़ता दुनिया को प्रेरित करती रहेगी । उन्होंने 1970 में रॉजर पेनरोज के साथ मिलकर पूरे ब्रह्मांड पर ब्लैक
होल के गणित को लागू किया और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में बिग-बैंग के सिद्धांत को समझाया । उनकी पुस्तक 'ए
ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइम' जो 1988 में प्रकाशित हुई, से उन्हें प्रसिद्धि मिली । इस पुस्तक की एक करोड़ प्रतियां बिकी
और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ ।
वे निरीश्वरवादी थे और पुनर्जन्म में उनका विश्वास नहीं था । वे विज्ञान के दुष्प्रभावों से भी दुनिया को आगाह करते
थे । वे 2001 में भारत आये थे । वे अपनी खोजों में हमेशा जिंदा रहेंगे । मानवतावादी स्टीफन हॉकिंग अमेरिका के
सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से विभूषित किये गए थे । हम सबकी ओर से इस अद्भुत इंसान और विशिष्ट
वैज्ञानिक को आज उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.03.2020
खरी खरी - 580 : भागेगा कोरोना
कोरोना वायरस बड़ा अजीब
न देखे अमीर न देखे गरीब
न देखे हिन्दू न देखे मुसलमान
चपेटे लपेटे में आए सभी इंसान
चीन के वुहान से चला पहली बार
रोगी दुनिया अब एक सौ बीस हजार
लेली अब तक साड़े चार हजार जान
कई देशों के शहर हुए सुनसान
दस्तक भारत में कोरोना दे चुका है
तिहत्तर लोगों को ग्रसित कर चुका है
रोग के जाने गंभीरता दुनिया सारी
घोषित करी यू एन ओ ने महामारी
करना नहीं दहशत न होना परेशान
भीड़ आयोजन सिनेमा से दूरी ठान
बचने का केवल एक सटीक उपाय
स्पर्श हाथ से किसी का होने न पाय
अब न किसी से हाथ मिलाएं
जोड़कर हस्त अभिवादन पहुंचाएं
याद रहे साबुन से धुलते रहें हाथ
दूर भागेगा कोरोना भटके न पास
रहें सतर्क तो चिंता नहीं शेष
करो अपना बचाव बचेगा देश।
पूरन चन्द्र कांडपाल
13.03 2020
खरी खरी - 579 : ये संसार फूल सेमर को
ये संसार फूल सेमर को
सुवो देख लुभायो,
मारी चौंच रुई प्रकट भइ
सिर धुनि धुनि पछतायो ।
( इस दोहे का भावार्थ है कि यह संसार सेमर ( सेमहल ) के फूल की तरह चटक लाल लुभावना है । तोता भी इस चक्कर में इस पर
चौंच मारता है, ताकि उसे कुछ खाने को प्राप्त हो जाये परन्तु उसे खाने को कुछ नहीं मिलता सिर्फ रुई मिलती है जो उसके
काम की नहीं । अतः इस लुभावने माया - मोह से भरे संसार को एक दिन छोड़ना है इसके साथ ज्यादा लगाव ठीक नहीं । यही सत्य
सूफी संत कहते हैं जबकि माया मोह में जकड़े लोग इस सत्य को सुनना नहीं चाहते ।)
सांची कहे कबीर..
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.03.2020
मीठी मीठी - 434 : आज 11 मार्च 'गुमानी' ज्युकि जयन्ति
कुमाउनी भाषाक पैल साहित्यकार लोकरत्न पंत 'गुमानी', ज्यूक जन्म 11 मार्च 1790 हुणि काशीपुर, उत्तराखंड में हौछ ।
वर्ष 2015 में प्रकाशित म्येरि किताब 'लगुल' में उनार बार में छपी लेख मुणि उधृत छ । 'गुमानी' ज्यू कैं विनम्र
श्रद्धांजलि ।
कुमाउनी मासिक पत्रिका 'पहरू' (संपादक डा हयात सिंह रावत ) में 'गुमानी' ज्यूक बार में कएक ता जानकारी छपि गे ।
पिथौरागढ़ बै छपणी कुमाउनी मासिक पत्रिका (संपादक डा. सरस्वती कोहली) ' आदलि कुशलि' अंक फरवरी 2019 में लै 'गुमानी'
ज्यूक बार में भलि जानकारी ल्ही बेर संपादक डेस्क बै एक लेख छपि रौछ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.03.2020
खरी खरी - 578 : होली पर जमी दंगे और कोरोना की धुंध
इस वर्ष दो कारणों से होली का माहौल रंग विहीन है । पहला - अभी मात्र 15 ही दिन तो हुए हैं, दिल्ली में 23, 24 और
25 फरवरी की रात को दंगाइयों ने 53 निर्दोषों को बेमौत मार दिए । समाज के दुश्मनों ने सौहार्द बिगाडने का भरपूर
कुप्रयास किया । सैकड़ों संपत्तियां फूंक दी गई और करोड़ों रुपए का नुक़सान कर दिया । जो 53 निर्दोष मारे गए वे न
हिन्दू थे और न मुसलमान । ये सब भारतीय थे और अधिकांश गरीब थे जो दिल्ली में अपनी दर - गुजर कर रहे थे । इनके मां -
बाप भी थे और पत्नी - बच्चे भी थे जिन्हें इनकी मौत ने जीते जी मार दिया । अभी तक की गिनती के अनुसार करीब एक सौ से
अधिक मकान और 327 दुकान जलाए गए तथा 208 मकान क्षतिग्रस्त किए गए । लूट का कोई हिसाब नहीं है । बताया जा रहा है
दिल्ली सरकार हर स्तर पर मुआवजा दे रही है परन्तु जो मारे गए वे लौट कर नहीं आएंगे। इन मरने वालों में एक लड़का
उत्तराखंड का भी था । जिसे उत्तराखंडी समझकर नहीं बल्कि इंसान समझ कर अन्य 52 निर्दोषों की तरह मारा गया । यह तांडव
किसने किया ? इनको नफ़रत के जहर ने मारा । इस जहर को मनुष्य रूपी कुछ शैतानों ने दंगाइयों तक पहुंचाकर दिल्ली के एक
हिस्से को तहस नहस कर दिया । इस वहशीपन ने सामाजिक सौहार्द को इतने गहरे जख्म दिए जिन्हें भरने में बहुत समय लगेगा ।
दिल्ली ने पहले भी कई बार कई तरह के जख्म झेले हैं ।
होली को बदरंग करने वाला दूसरा दानव कोरोना वायरस कोविड- 19 है जिसने दिल्ली में दस्तक दे दी है । देश में अभी तक 45
लोग इस संक्रामक रोग से ग्रसित हो गए हैं और कई निगरानी में हैं । चीन में इस रोग से 3100 से अधिक लोग मर चुके हैं
और लगभग 92000 पीड़ित हैं । विश्व के लगभग एक सौ देशों में करीब 3900 लोग इस रोग से मर चुके हैं और 112000 लोग रोग
ग्रसित हैं । हम अपने देश में भीड़ से बचें, स्वयं को खतरे में न डालें और अस्पतालों का कार्य न बढ़ाएं । हमारे
स्वास्थ्य मंत्री ने भी सामूहिक आयोजन नहीं करने का अनुरोध किया है । सभी बातों में आदेश नहीं दिया जा सकता । इसे
हल्के में न लिया जाय । यदि संक्रामक भड़क गया तो फिर क्या होगा ? हमारी अपनी भी सामाजिक और राष्ट्रहित की
जिम्मेदारी है । होली आते रहेगी और खेलते भी रहेंगे लेकिन इस बार माहौल ठीक नहीं होने से संयम बरतना होगा । ऐसी
स्थिति में इस बार घर बैठ कर होली की हार्दिक शुभकामना दी जा सकती है ।
समाज में अब संवेदना धीरे धीरे कम हो रही है । कुछ लोगों ने दिल्ली दंगों की इन 53 बेमौत की मौतों पर संवेदना नहीं
दिखाई । विगत एक सप्ताह में कई जगह सामाजिक आयोजन भी किए गए जिन्हें टाला जा सकता था । इन आयोजनों में कमोवेश भीड़
भी पहुंची । स्मरण कराना चाहूंगा कि हमने 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा दिल्ली में दम घुटने से 59 लोगों की मौत देखी
थी और 18 नवम्बर 1997 को दिल्ली वजीराबाद पर यमुना में 28 स्कूली बच्चे डूबते देखे थे । (50 बच्चे गोताखोर अब्दुल
सत्तार ने बचाए थे अन्यथा मंजर अधिक भयंकर होता ।) सामाजिकता का जीवंत उदाहरण देते हुए तब लोगों ने सांस्कृतिक आयोजन
टाल दिए थे और शादियों में पटाखे - बैंड नहीं बजे थे । पिछले ही वर्ष 8 दिसंबर 2019 को दिल्ली अनाज मंडी में आग लगने
से 43 मौत हुई थी, तब भी दिल्ली बहुत गमगीन हुई थी ।
हमारे उत्सव न मनाने से कोई वापस तो नहीं आएगा लेकिन हजारों पीड़ितों तक हमारा सन्देश अवश्य पहुंचेगा कि उनके दुख
बांटने में समाज आगे आया और उन्हें अकेला नहीं छोड़ा । आज की सबसे बड़ी जरूरत है सामाजिक संवेदना को जिंदा रखकर आपसी
सौहार्द बनाए रखना और देश की वर्तमान स्वास्थ्य समस्या में सरकार के संदेशों ( एडवाइजरी ) का सम्मान करते हुए स्वयं
को इस संक्रामक रोग से बचाना । होली जरूर मनाएं परन्तु लगना चाहिए कि होली बिना हुड़दंग -हर्षोल्लास के बड़ी सादगी
के साथ मनाई जा रही है । सभी को होली की हार्दिक शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.03.2020
मीठी मीठी - 433 : : हमरि भाषा भौत भलि - 12 वर्षक ," पहरू "
कुमाउनी मासिक पत्रिका " पहरू " फरवरी 2020 अंक मिलिगो । भौत भल आवरण " दैणक फूल " और भतेर लै भलि सामग्री छपि रैछ
। पोस्टल विभाग कि कोताही वजैल दिसम्बर 2019 और जनवरी 2020 अंक नि मिल । वर्तमान में चार पत्र - पत्रिका हमरि भाषाक
लिजी भल काम करें रईं जनरि चर्चा लै करुल ।
हमरि भाषा कुमाउनी-गढ़वाली लगभग 1100 वर्ष पुराणि छ । यैक संदर्भ हमर पास मौजूद छीं । कत्यूरी और चंद राजाओं क टैम
में य राजकाज कि भाषा छी । आज लै करीब 400 लोग कुमाउनी में लेखनी जनर के न के साहित्य कुमाउनी पत्रिका "पहरू" में
छपि गो । भाषा संविधान क आठूँ अनुसूची में आजि लै नि पुजि रइ । प्रयास चलि रौछ । सबूं हैं निवेदन छ कि भाषा कैं
व्यवहार में धरो । हमार चार साहित्यकार छीं जनूकैं साहित्य अकादमी भाषा पुरस्कार लै प्रदान हैगो ।
"पहरू" मासिक कुमाउनी पत्रिका लिजी डॉ हयात सिंह रावत (संपादक मोब 9412924897) अल्मोड़ा दगै संपर्क करी जै सकूं ।
कीमत ₹ 20/- मासिक । य पत्रिका डाक द्वारा घर ऐ सकीं । विगत 11 वर्ष बटि म्यर पास उरातार य पत्रिका पूजैं रै । मि
येक आजीवन सदस्य छ्यूँ । बाकि बात आपूं हयातदा दगै करि सकछा । उत्तराखंडी भाषाओं कि त्रैमासिक पत्रिका "कुमगढ़ " जो
काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य बनि सकछा । मि येक लै आजीवन सदस्य छ्यूँ । संपादक दामोदर जोशी
'देवांशु' मो.9411309868, मूल्य ₹ 25/-। पिथौरागढ़ बै कुमाउनी मासिक पत्रिका " आदलि कुशलि " छपैं रै । येक संपादक डॉ
सरस्वती कोहली ( 9756553728 ) दगै संपर्क करी जै सकूं । मूल्य ₹ 30/- छ । अल्माड़ बै छपणी कुमाउनी साप्ताहिक अखबार "
कुर्मांचाल अखबार " लै पाठकों लिजी मौजूद छ । सालाना सहयोग ₹ 200/- मोब. 7830039032 , संपादक डॉ सी पी फुलोरिया छीं
। )
कुमाउनी भाषा में कविता संग्रह, कहानि संग्रह, नाटक, उपन्यास, सामान्य ज्ञान, निबंध, अनुच्छेद, चिठ्ठी, खंड काव्य,
गद्य, संस्मरण, आलेख सहित सबै विधाओं में साहित्य उपलब्ध छ । बस एक बात य लै कूंण चानू कि आपणि इज और आपणि भाषा (
दुदबोलि, मातृभाषा ) कैं कभैं लै निभुलण चैन । जब हमरि भाषा व्यवहार में रौलि तबै य ज्यौन लै रौलि । आपण नना दागाड़
और आपण आपस में आपणि भाषा में बलाण झन भुलिया ।
हमरि भाषा भौत भलि,
करि ल्यो ये दगै प्यार ।
बिन आपणि भाषा बलाइए,
नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.03.2020
बिरखांत- 309 : महिला दिवस (8 मार्च) : नारी सम्मान –सशक्तिकरण और प्रेम-विवाह
नारी सम्मान हेतु जागरूकता के लिए प्रति वर्ष आठ मार्च को महिलाओं के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए महिला दिवस मनाया
जाता है | दूसरे शब्दों में यदि सभी पुरुष महिलाओं का सम्मान करते, उन्हें बराबरी का हक़ देते और उनसे दुर्व्यवहार
नहीं करते तो इस दिन को मनाने के जरूरत ही नहीं होती | वास्तव में आज भी नारी शक्ति को वह हक और सम्मान नहीं मिलता
जिसकी वह हकदार है | महिला से हमारे मुख्य चार रिश्ते हैं- मां, बहन, पत्नी और बेटी | बाकी रिश्ते इन रिश्तों के बाद
हैं | हमें नारी को प्रोत्साहन देना ही होगा क्योंकि वह परिवार की धुरी है | संसद में महिलाओं को 33% जगह न मिलना और
निर्भया केस सहित अन्य नरपिशाचों का मृत्यु दंड के बाद भी आज तक जीवित रहना सोचनीय है | अब 20 मार्च 2020 को 3 बार
फांसी टलने के बाद 4 नरपिशाचों को फांसी दीए जाने की बात हो रही है ।
सत्य तो यह है कि नारी के बिना परिवार है ही कहां ? विख्यात लेखक रोयडन कहते हैं “मानव को इधर-उधर भटकने से बचा कर
सभ्यता के साथ रहने-बसाने का श्रेय महिला को ही जाता है |” कई अन्य विद्वानों ने भी नारी के पक्ष में बहुत कुछ कहा
है जो यथार्थ है | इस बीच नारी के एक रूप कुछ बेटियों द्वारा उनके माता -पिता एवं परिजनों को जो परेशानी हुई उसकी
चर्चा करनी भी जरूरी है | आजकल कुछ बेटियां माता- पिता को बिना विश्वास में लिए अपनी मर्जी से प्रेम- विवाह कर रही
हैं ,(क़ानून बालिग़ लड़की को यह अधिकार है ) जो माता- पिता को कई कारणों से उचित नहीं लगता | माता- पिता बेटी को अपने
अनुभवों के आधार पर समझाते हैं पर वह नहीं मानती और कोर्ट मैरीज के धमकी देती हैं | कुछ तो हौनर किलिंग के शिकार भी
हो गईं जो सर्वथा अनुचित है जिससे कई घर भी उजड़ गए | कुछ लड़कियों ने बिना मां- बाप को बताये अपनी मर्जी से विवाह कर
मां- बाप से किनारा भी कर लिया है |
विगत वर्षों में प्रेम- विवाह की ऐसी ही कई शादियां देखी | इन प्रेम - प्रसंगों में लड़कियों के कहने पर माता- पिता
को नहीं चाहते हुए भी बेटी के साथ सैकड़ों किलोमीटर दूर बस या रेल से धक्के खाते हुए लड़के के शहर में जाकर शादी करनी
पड़ी क्योंकि प्यार के बाद लड़के ने यह शर्त रख दी थी कि शादी उसी के शहर में होगी | यदि लड़की के मां- बाप नहीं जाते
तो कुछ भी घटित होने की धमकी भरी तलवार उनके सामने बेटियों ने लटकाई थी | बेटियों का यह अद्भुत प्रेम अपने प्रेमी को
बारात लेकर अपने घर भी नहीं बुला सका जो बहुत चकित करता है |
इन सभी घटनाओं में मां- बाप ने अपनी लाडलियों से अपनी असमर्थता भी प्रकट की परन्तु वे नहीं मानीं | इन बेटियों को एक
ही बात याद रही, “Everything is fair in love and war” ( प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज है ) | इस महिला दिवस पर
बेटियों से इंतना जरूर कहूंगा कि प्रेम- विवाह करो परन्तु मां- बाप को इंतना मजबूर भी मत करो कि उनके आंसू आपके लिए
भविष्य में सैलाब बन जाएं | ऐसा अंधा प्यार भी ठीक नहीं जिसमें हम भूल गए कि जिन मां- बाप ने हमें पाल-पोष एवं
शिक्षित कर इस योग्य बनाया, हमने यौवन के नशे में उन्हें ही हर तरफ से दण्डित कर दिया | प्रेम- विवाह में मां-बाप की
सहमति और आशीर्वाद आपके हित में होगा | महिला दिवस पर सभी महिलाओं को शुभकामनाएं और पतियों से एक विनम्र निवेदन, यदि
आपकी बैंक पासबुक में पत्नी का नाम अभी तक नहीं जुड़ा है तो आज ही जोड़ें क्योंकि सुख और दुःख दोनों में इसका बहुत बड़ा
महत्व है |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.03.2020
मीठी मीठी - 432 : कुमगढ़ पत्रिका, जन - फर 2020
उत्तराखंडी भाषाओं कि मासिक पत्रिका "कुमगढ़ " जो काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य बनि सकछा । छठूं वर्ष
में चली य पत्रिकाक लै मि आजीवन सदस्य छ्यूँ । पत्रिका में कुमाउनी और गढ़वाली द्विये साहित्य कैं जागि मिलीं ।
संपादक दामोदर जोशी 'देवांशु' ,मो.9719247882, मूल्य ₹ 25/- । पत्रिकाक जनवरी - फरवरी 2020 अंंक में म्यार लै कुछ
आंखर छपि रईं और भ्यारक आवरण में कुमाउनी में पढ़ाई जानी कक्षा 1 - 5 तक किताबोंक चित्र लै छापि रईं । संपादक ज्यू
कैं धन्यवाद और आभार ।
' कुमगढ़ ' पत्रिका क मुख्य उद्देश्य छ उत्तराखंड कि लोक भाषाओं क दस्तावेजीकरणक सामूहिक प्रयास । पत्रिका में
कुमाउनी और गढ़वाली साहित्य कि सबै विधाओं कि चर्चा हिंछ । क्वे लै पाठक आपणी रचना संपादक कि पास भेेजि सकूं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
07.03.2020
खरी खरी 577 : सुनो मुख्यमंत्री जी !
(सुना है गैरसैण में विधानसभा का अधिवेसन हो रहा है और गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया है । खरी खरी
- 203, सुनो मुख्यमंत्री जी , 21 मार्च 2018 , लेख इसी संदर्भ में आज से दो वर्ष पहले लिखा था जो पुनः यहां उद्दृत
है ।)
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ज्यू, चारों ओर, सर्वत्र, पहाड़- मैदान कहीं भी, सब जगह 'गैरसैण -गैरसैण' हो रही है
। पहाड़ की आवाज और पहाड़ की आत्मा को मत दबाओ मुख्यमंत्री जी । 9 ने तो नहीं सुनी, आप 10वें हो त्रिवेंदा । करो
हिम्मत गैरसैण स्थाई राजधानी घोषित कर दो । केवल ग्रीष्म कालीन से पहाड़ का भला नहीं होगा । आंध्र - तेलंगाना को
देखिए सर, राजधानी अमरावती बनाने का काम पहले दिन से चालू हो गया था । हम आज उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं जिसमें
कहा जाता है 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस ' । 20 वर्ष में निर्णय तो पूर्णकालिक स्थाई की बात होनी थी सर ।
इतिहास याद रखेगा आपको देवेगौड़ा जी की तरह जिन्होंने 15 अगस्त 1996 को लालकिले से राज्य की घोषणा की थी । यह तो पहाड़
की पुकार है । एक लोकप्रिय नेता बनने की घड़ी आपके सामने है । कैसे आप याद किये जाओगे यह आप एक बार सोचिए तो सही
त्रिवेंदा !! इतिहास कहेगा, "त्रिवेंद्र रावत ने बनाई राजधानी गैरसैण ।" अर्जुन बनिये सर, उठाइये तीर और वेध दीजिये
स्थाई पूर्णकालिक राजधानी गैरसैण का लक्ष्य । आपको शुभकामना । उत्तराखंड को शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.03.2020
बिरखांत -308 : संकल्प लेने की हिम्मत
हमने कई लोगों को कहते हुए सुना है के इस वर्ष गंगा स्नान करने हरिद्वार गया था और बीड़ी-सिगरेट-तम्बाकू छोड़ आया या
चाय छोड़ आया या मांसाहार छोड़ आया | अपने प्रण को पूरा करने के लिए लोग गंगा स्नान या कसम का सहारा लेते हैं परन्तु
उच्च मनोबल के कमी से कुछ ही दिनों में प्रण से फिसल जाते हैं | इधर सोशल मीडिया में में भी न्यू ईयर रिसोल्यूसन
(संकल्प) की बात कई अनुज-अग्रज कर रहे हैं | कुछ संकल्प यहां दे रहा हूं | ‘जब जागो तब सवेरा’ के मंत्र से अपने
मनोबल के सहारे हम इन पर खरे उतर सकते हैं |
1. सपने (कल्पना) देखें, बिना सपने के हम योजना नहीं बना सकते और न कर्म कर सकते हैं ।
2. फौंक अर्थात बड़बोलापन न करें, जो कहें उसे जरूर करें | कथनी को करनी में जरूर बदलें |
3. ईमानदारी से कार्य करें जिसका हमें पारिश्रमिक मिल रहा है | रात को सोने से पहले इस बारे में अपने से सवाल जरूर
करें |
4. समय प्रबंधन जरू करें | सेकेंड के दसवे भाग से मिल्खा सिंह और सेकेंड के सौवे भाग से पी टी उषा को ओलम्पिक पदक से
वंचित होना पड़ा | जो समय को बरबाद करेगा उसे समय कभी माफ़ नहीं करेगा |
5. स्वस्थ रहें, स्वस्थ रहने के लिए भोजन और जीवन शैली पर अनुशासन रखें, जंक फ़ूड न खाएं, नियमित व्यायाम जरूर करें
|
6. मुंह को राक्षसी गुफा न बनाएं बल्कि सुख का द्वार बनाएं, जो मिले सो नहीं खाएं, मोटापे से बचें क्योंकि सारी
बीमारियों की जड़ मोटापा है |
7. आलस त्यागें, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है | प्रातः बिस्तर जल्दी छोड़ें |
8. शराब, धूम्रपान, गुट्का, तम्बाकू, पान मसाला आदि ये सब हमारे दुश्मन हैं | इनसे अपने को दूर रखें | जो आपके निकट
भी इन्हें प्रयोग करता हैं उसे गांधीगिरी से मना करें |
9. अपने ऊपर किये गए सहयोग का आभार अवश्य व्यक्त करें तथा अभिवादन करने में पहल करें | ‘आभार’, 'क्षमा करें’, और
‘धन्यवाद’ शब्दों का प्रयोग जरूर करें | इससे ईगो (घमंड,अहंकार) नहीं पनपेगी |
10. चिंता न करें बल्कि चिंतन करें | चिंतन से युक्ति या राह मिलती है |
11. शिष्ट भाषा बोलें, हास्य रस-पान करते रहें तथा प्रसन्न रहें | सैनिक, शिक्षक और शहीद को न भूलें ।
12. व्यस्त रहें, अस्त-व्यस्त नहीं | पुस्तक-समाचार पत्र-पत्रिका से नाता अवश्य जोड़ें |
13. राष्ट्र की सम्पति को अपनी सम्पति समझें चाहे वह पेड़, पार्क, सड़क, बस, रेल कुछ भी हो |
14.भावी पीढ़ी को मोबाइल प्रदूषण से बचाएं । वे क्या देख रहे हैं आपको पता होना चाहिए ।
इन सभी बातों की चर्चा बच्चों एवं परिजनों से जरूर करें | ये सभी संकल्प हमारी जीवन में साहस, कर्मठता, निडरता,
राष्ट्र-प्रेम और सामाजिकता का संचार करते हैं | इन संकल्पों को हम बिना किसी की मदद के आसानी से क्रियान्वित भी कर
सकते हैं | फिर देर किस बात की है ? करिए संकल्प और निखारिये अपना व्यक्तित्व |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.03.2020
खरी- खरी 576 : कोवीड - 19 : हाथ जोड़कर अभिवादन करें, हाथ न मिलाएं ।
(20 फरवरी 2020 को मैंने "खरी खरी - 565 : जरा सोचिए हाथ मिलाने से पहले ?" शीर्षक के अन्तर्गत अभिवादन के लिए हाथ
नहीं मिलाने बल्कि हाथ जोड़ने का निवेदन किया था । कोरॉना वाइरस के कारण अब यह जरूरी हो गया है । 3 मार्च 2020 को
कुछ लोगों ने टेलीविजन पर भी अपील की है । लेख पुनः भेज रहा हूं । कृपया पुनः पढ़िए और हाथ जोड़कर ही अभिवादन करिए ।
धन्यवाद ।)
सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र अब 85 वर्ष के हो गए हैं । उनका एक बहुत ही प्रचलित शेर है-
" जरा हाथ क्या मिला दिया
यों गले मिल गए तपाक से,
ये गर्म मिजाज का शहर है
जरा फासले से मिला करें ।"
अब हम सब हाथ मिला कर एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं । हाथ जोड़कर अभिवादन का रिवाज ही समाप्त हो गया । फिर भी
महिलाओं से हम हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते हैं । कभी कभी बड़ी मजबूरी में न चाहते हुए भी हाथ मिलाना पड़ता है । तब
हम उस व्यक्ति से आंख नहीं मिलाते, सिर्फ हाथ मिलाते हैं । ' ऐसे में 'जिंदगी का अजब दस्तूर निभाना पड़ता है, दिल
मिले या न मिले हाथ मिलाना पड़ता है ।'
हाथ मिलाने की बात पर डाक्टर कहते हैं, ' हमारे शरीर का सबसे गंदा अंग हमारा दांया हाथ है । हम इससे खुजली भी करते
हैं और नाक भी पोछते हैं । हम इसे नाक में, मुंह में और कान में भी घुसाते हैं, आंख भी छूते हैं तथा कुदरती विसर्जन
करते समय भी इसकी मदद लेते हैं । हम बस के डंडे, मेट्रो के डंडे और मेट्रो एक्स्क्लेटर पर भी हाथ को रगड़ते हुए चलते
हैं । ऐसा सभी करते हैं क्योंकि सब जगह हमारा दांया हाथ आगे रहता है इसलिए यह सबसे अधिक गंदा है । जो जगह हमने अपने
हाथ से पकड़ी उसे हम से पहले सबने पकड़ा जिसकी वजह से ये स्थान सर्दी - जुकाम सहित अन्य कई प्रकार के वाइरसों और
रोगाणुओं से भरे होते हैं ।
हम में से अधिकांश लोग भोजन से पहले हाथ नहीं धोते । शायद घर में धोते हों परन्तु किसी पार्टी में तो नहीं धोते ।
बिना हाथ धोए भोजन करते हैं, प्रसाद या लंगर भी छक लेते हैं और गोलगप्पे खाते हैं । आजकल एक बहुत ही खतरनाक वायरल
बीमारी कोविड- 19 (कोरॉना वाइरस ) से चीन में 1800 लोग मर चुके हैं और 75 हजार रोग ग्रस्त हैं । दुनिया के 16 देशों
में यह रोग दस्तक दे चुका है । (अब चीन में मृतक संख्या 2900 और रोगग्रस्त संख्या 80000 से ऊपर है, और कई देशों में
फ़ैल गया है । हमारे देश में भी इस रोग ने दस्तक दे दी है ।) इसकी कोई दवा नहीं है । बचाव का एकमात्र उपाय है
स्वच्छता और अपने हाथ से उन अंगों को नहीं छूना जिनकी ऊपर चर्चा की गई है तथा हाथ धोना और किसी से भी हाथ नहीं
मिलाना । नोट गिनने के बाद भी हाथ जरूर धोएं । नोट सबसे ज्यादा संक्रमित होते हैं ।
इस खरी खरी का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हाथ धोते रहने से हम कई बीमारियों से बचेंगे और हाथ मिलाने के बजाय हम
अभिवादन हाथ जोड़कर करें तो हम सभी वायरल बीमारियों से बचेंगे । हम सचेत रहेंगे तो कुछ ही दिनों में हमारी हाथ
मिलाने की आदत छूट जाएगी । यदि कोई हाथ मिलाना चाहे भी तो हम हाथ जोड़ कर उसे अभिवादन कर सकते हैं । यदि हमारा कोई
लंगोटिया यार हाथ मिलाने की जिद भी करे तो हम कह सकते हैं, "यार मेरा हाथ गंदा है ।" यदि अब भी हम अपनी आदत नहीं
सुधारेंगे और हाथ धोने की आदत नहीं अपनाएंगे तो किसी जान लेवा हस्त- स्पर्श हस्तांतरित वायरल बीमारी के कारण हम अपनी
जान से हाथ धो बैठेंगे ।
(20 फरवरी 2020 की खरी खरी आज पुनः प्रसारित कर रहा हूं, जनहित में ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
(20.02.2020)
04.03.2020
मीठी मीठी - 431 : धूल (डस्ट) ऐलरजी
बढ़ते प्रदूषण में डस्ट ऐलरजी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है । यह समस्या धूल के अलावा आस - पास मौजूद कुछ चीजों के
कारण भी हो सकती है । आतिशबाजी, कंस्ट्रक्शन कार्य, धुंआ, खौशैन, तड़का लगाने आदि से यह बढ़ सकती है । इस समस्या के
कुछ लक्षण -
- अक्सर छींक आना
- अक्सर नाक बहना
- नाक भरा होना या महसूस करना
- थकान और कमजोरी
- आंखों में सूजन
- खांसी, खर खर लगातार, खरास
- आंख,नाक व गले में खुजली
- आंखें लाल या पानी भरी हुई
- आंखों के नीचे काले घेरे
- आस्थमा जैसे लक्षण
- कान बंद होना
- सूंघने की क्षमता में गिरावट
- थकान व चिड़चिड़ापन
- कभी कभी सिर दर्द
- त्वचा पर लाल चकत्ते
डस्ट ऐलर्जी का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है । हाथ - मुंह धोते रहें । चिकत्सक की सलाह पर क्रीम लगाई जा सकती है । धूल
और प्रदूषण से बचाव ही सबसे बड़ा उपचार है । मास्क या रुमाल से नाक ढका जा सकता है । नीबू पानी पीना और नहाते समय
पानी में कुछ बूंदें नीबू की डालने से खुजली से राहत मिल सकती है । अदरक का पानी या चाय भी लाभप्रद है । नमक के
हल्के गर्म पानी से गरारे करने से खरास दूर होगी । पालतू जानवर या कबूतर के माइक्रो फीदर से बचें । ऐलरजी से रोग
प्रतिरोधक शक्ति भी कम हो सकती है । अत: भोजन में विटामिन (फल - सब्जियां) और प्रोटीन (पनीर, काले चने, सोया चंक,
दाल ) नियमित लेते रहे तो इस समस्या से बचा जा सकता है । शराब, धूम्रपान, तम्बाकू जनित पदार्थों के सेवन से दूर रहना
सर्वोत्तम है । अधिक समस्या पर चिकित्सक से संपर्क ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.03.2020
खरी खरी - 574 : मिलीभगत से फर्जीवाड़ा
हमने कुछ वर्ष पहले दिल्ली महानगर निगम में फर्जी कर्मचारी (भूत कर्मचारी ) सुने थे जो एटीएम से वेतन के जाते थे ।
फर्जी बीपीएल कार्ड, फर्जी विधवा प्रमाण पत्र, फर्जी आर्थिक कमजोर वर्ग प्रमाण, फर्जी पिछड़ी जाति प्रमाण, फर्जी
अनुसूचित जाति प्रमाण, फर्जी विवाह प्रमाण पत्र, फर्जी वरिष्ठ नागरिक कार्ड, फर्जी पासपोर्ट, फर्जी चौकीदार, फर्जी
वजीफा, फर्जी माली, फर्जी वोटर /आधार कार्ड और पता नहीं क्या क्या हमारे देश में मिलीभगत से बहुत कुछ फर्जी प्रमाण
पत्र बन जाता है या बनाया जाता है जिसका पूरा लाभ हमारा भ्रष्ट तंत्र खूब उठाता है । इन फर्जी प्रमाणपत्रों के लिए
जब कोई दे रहा है तो तभी कोई के रहा है ।
हाल ही में उत्तर प्रदेश विधान सभा में सामूहिक विवाह सामारोह में दोबारा शादी का एक ऐसा फर्जीवाड़ा पकड़ा गया
जिसमें 57 जोड़े दोबारा विवाह कर रहे थे । घटना गाजीपुर मनिहारी ब्लाक की है । 14 नवम्बर 2019 को सामूहिक विवाह के
लिए निर्धन वर्ग के 110 जोड़े विवाह के लिए आए थे जिन्हें प्रति जोड़ा बीस हजार रूपए सामूहिक विवाह योजना के अंतर्गत
मदद दी जानी थी । जब मौके पर जानकारी ली गई तो मात्र 53 जोड़े सही निकले और 57 जोड़े दोबारा विवाह कर रहे थे । ये
गरीब दंपति बिना किसी सरकारी व्यक्ति की मिलीभगत के इस तरह दोबारा शादी नहीं कर सकते । इस फर्जीवाड़े की जांच के
आदेश दिए जा चुके । किसी भी फर्जी कार्य के लिए जब तक देश में सख्त सजा तय समय पर नहीं मिलेगी, देश को इन
फर्जीवाड़ों से मुक्ति नहीं मिल सकती ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
01.03.2020
मीठी मीठी - 430 : मोरारजी देसाई स्मरण
आज 29 फरवरी हमार चौथूं प्रधानमंत्री, आपण सिद्धांतों दगाड़ समझौता नि करणी दिवंगत भारतरत्न मोरारजी देसाई कि जयंती
छ । उनर जन्म 29 फरवरी 1896 हुणि हौछ । उनार बार में किताब " लगुल " बै एक लघु लेख यां उद्धृत छ । देसाई ज्यू कैं
विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.02.2020
बिरखांत- 307 : प्रथा- परम्परा में बदलाव
एक विख्यात जनप्रेरक ने एक टी वी चैनल पर कहा कि ‘वक्त के साथ परम्पराएं बदलनी चाहिए | महिलाओं पर लगे अनुचित
प्रतिबन्ध हँटने चाहिए | इंडोनेशिया में महिला पुजारी हैं | सभी धर्मों में महिलाओं को धर्मगुरु बनना चाहिए | पुरानी
परम्पराएं जिनका कोई वैधानिक आधार नहीं हो वे हटनी चाहिए |’ उन्होंने अहमदनगर के शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का
भी समर्थन किया है | अभी सबरीमाला मंदिर में भी महिला प्रवेश की ना-नुकुर करने के बाद न्यायालय के आदेश से अनुमति
मिल गई है परन्तु राजनीति ने दखल दे रखा है ।
उत्तराखंड में भी विगत कुछ वर्षों में बहुत कुछ बदला है | साठ के दसक तक देवभूमि में शराब नहीं थी जो आज चाय की
दुकान में भी खुलेआम मिल रही है | शराब के कारण ही रात्रि की शादी दिन में होने लगी परन्तु बरतिए- घरतिये दिन में ही
डॉन हो जाते हैं | पहले बरात सायंकाल को कन्या के आंगन में पहुँच जाती थी और सायंकाल में ही धुलिअर्घ (दुल्हे का
स्वागत) होता था | पूरी रात शादी के रश्में होती थी तथा सुबह सूर्योदय के बाद दुल्हन की विदाई होती थी | वर्तमान में
दिन की शादी में शराबियों के कारण बरात दिन में दो बजे के बाद ही आती है | दुल्हन की विदाई तीन बजे करनी होती है
ताकि वह समय पर अपने ससुराल के आंगन पर पहुँच जाय | इस तरह आठ घंटे में होने वाली शादी अब मात्र आधे घंटे में हो रही
है | इस नई परम्परा को हमने शराब के साथ स्वीकार कर लिया है और किसी को कोई आपति भी नहीं हैं |
समाज में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद सूतक (शोक) मनाने के भी एक प्रथा है | मैंने अमरनाथ (जम्मू- कश्मीर) से
अन्ना स्क्वायर समुद्र तट (तमिल नाडू) तक देश में सूतक की रश्में देखी हैं | विभिन्न स्थानों में सूतक मात्र तीन दिन
से लेकर तेरह दिन तक मनाया जाता है | उत्तराखंड में यह 12 दिन का है | इस दौरान मृतक के परिवार के एक परिजन को 12
दिन तक कोड़े (क्वड़ - एक विशेष रश्म में इस दौरान कर्मकांड के अनुसार नित्यकर्म करना पड़ता है जिसे "क्वड़'' कहते हैं
।) में बैठना पड़ता है | 12वे दिन पीपलपानी (जलांजलि देना ) होता है | 12 दिन के सूतक में बिरादरी में सभी शुभकार्य
स्थगित कर दिए जाते हैं और पहले से तय किये कार्य रद्द कर दिए जाते हैं | सम्बंधित जनों को 12 दिन तक कार्य बंद करना
पड़ता है या अवकाश लेना पड़ता है | इस दौरान यहां तक कि खेत में हल भी नहीं चलाया जाता |
प्रथा जब बनी थी तब सन्देश भेजने में कई दिन लगते थे और गाँवों में तार (टेलीग्राम) भी देर से मिलते या भेजे जाते थे
| आज तार के जगह इन्टरनेट ने ले ली जिससे सन्देश सेकेंडों में पहुँच जाता है | जब हम बदलाव स्वीकार करने के दौर से
गुजर रहे रहे हैं तो यह सूतक का समय भी 5 या 7 दिन किये जाने पर मंथन होना चाहिए | मृतक का दुःख हमें जीवन भर रहेगा
परन्तु हम 5 दिन का बंधन तो कम कर सकते हैं | श्रद्धांजलि अधिक से अधिक 7 दिन में होने से परिवार, सम्बंधी और
मित्रगण 12 दिन के बजाय 7 दिन में ही सूतक से मुक्त हो जायेंगे | इस बदलाव पर अवश्य मंथन करके अपने विचार जरूर
व्यक्त करें |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.02.2020
मीठी मीठी -429 : आज 27 फरवरी चंद्र शेखर आज़ाद का बलिदान दिवस
आजादी के महानायक चन्द्र शेखर आजाद की शहादत दिवस पर उनकी स्मृति को शतः शतः नमन् । जिस आजादी को हासिल करने के लिए
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने मात्र 24 साल की उम्र में 27 फरवरी 1931 को शहादत दी थी, उसकी चर्चा मीडिया में बिलकुल
नहीं । शहीदों का स्मरण भी करो भाई । देश के लिए अपना सबकुछ लुटा देने वालों की भी तो बात करो । कम से कम एक वाक्य
तो बोलों, एक पंक्ति की खबर तो बनाओ । अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद को विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.02.2020
खरी खरी - 572 : ये दंगाई कौन थे ?
दिल्ली में ये दंगाई कौन थे ?
बताओ तो सही ये कौन थे ?
उत्तर-पूर्व दिल्ली में अमन बिगाड़ने वाले
सताइस जानों को बेमौत मारने वाले
शांतिप्रिय दिल्ली को दहलाने वाले
दो सौ लोगों को जख्मी करने वाले
घर दुकान वाहन जलाने वाले
पेट्रोल पम्प शो रूम फूंकने वाले
मौत के तांडव पर नांचने वाले
सरे आम बेखौप फायरिंग करने वाले
हिंसा -साम्प्रदायिकता फैलाने वाले
दहशत -अफ़वाह से डराने वाले
झूठे उलजलूल वीडियो भेजने वाले
खुलकर अथाह जहर उगलने वाले
हिन्दू - मुस्लिम को लड़ाने वाले
दिल्ली में दो दिन गुंडई कराने वाले
करोड़ों रुपए का नुक़सान कराने वाले
सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट कराने वाले
अस्पताल पर लोगों को रुलाने वाले
मोर्चरी में अपनों के शव ढूंढवाने वाले
मौतों पर आंसू निकलवाने वाले
चुप क्यों रहे बिगड़ैलों को रोकने वाले ?
कहां चले गए थे दंगा थामने वाले ?
ये सब अमन चैन के दुश्मन थे
सौहार्द भाईचारे के दुश्मन थे
ये न हिन्दू थे न मुसलमान थे
ये केवल दंगाई शैतान थे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.02.2020
खरी खरी - 571 : साबरमती के दर्शन
मैं ध्यान से देख रहा था
वो दूर समुद्र पार से आए
वो मेरे साबरमती आश्रम आए
लाव लस्कर समेत आए
मेरे चित्र पर माला रोपी
मेरे चरखे के पास बैठे
कपास पकड़ सूत काता
मेरे बारे में पूछताछ भी की होगी
मेरे तीनों बंदरों को देखा
इधर उधर नजर घुमा कर देखा
मेज पर रखी आगंतुक पुस्तिका देखी
पन्ना खोला कलम खोली
मेरे बारे में तो कुछ लिखा नहीं
शायद वो मुझे भूल गए होंगे
मुझे लगा उन्हें कुछ तनाव था
उनके दिल-दिमाग में चुनाव था ।
- साबरमती का गांधी
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.02.2020
खरी खरी - 570 : मनखियेकि जिंदगी
मंखियैक जिंदगी
लै कसि छ,
हव क बुलबुल
माट कि डेल जसि छ ।
जसिक्ये बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसक्ये सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।
मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।
त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।
चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाख क छी
जइ बेर खाक बनि जां ।
मुर्दा क क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।
मनखिये कि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
य बात याद नि धरन ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.02.2020
खरी खरी - 569 : ये जहां –तहां थूकने वाले
‘दाने-दाने में केसर’, ‘बेजोड़’ आदि शब्द-जालों के भ्रामक विज्ञापन पान मसालों के बारे में हम आए दिन देख-सुन रहे
हैं | पाउच पर महीन अक्षरों में जरूर लिखा है, “पान मसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ | पान मसाला, गुट्का,
तम्बाकू, खैनी, जर्दा चबाने वालों और धूम्रपान करने वालों को अनभिज्ञता के कारण अपनी देह की चिंता नहीं है परन्तु
इन्होंने सड़क, शौचालय, स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, रेल-बस स्टेशन, कोर्ट-कचहरी, थाना, गली-मुहल्ला, सीड़ी-जीना, यहां तक
कि श्मशान घाट तक अपनी गंदी करतूत से लाल कर दिया है |
बस से बैठे-बैठे बाहर थूकना, कार से थूकना, दो-पहिये या रिक्शे से थूकना इनकी आदत बन गयी है | पान-सिगरेट की दुकान
पर, फुटपाथ, दिवार या कोना सब इनकी काली करतूत से लाल हो गये हैं | जहां-तहां थूकने वालों का यह नजारा राजधानी
दिल्ली सहित पूरे देश का है | क़ानून बना है पर उसकी अवहेलना हमारे देश में आम बात है | क़ानून बनाने वाले और क़ानून के
पहरेदार भी क़ानून की परवाह नहीं करते | हरेक थूकने वाले के पीछे पुलिस भी खडी नहीं हो सकती है |
इन थूकने वालों को देख मसमसाने के बजाय, दो शब्द इन्हें “थैंक यू” कहने की हिम्मत जुटा कर हम स्वच्छता अभियान के
भागीदार तो बन सकते हैं | “थैंक यू” इसलिए कि न लड़ सकते हैं और लड़ने से बात भी नहीं बनने वाली | हम तो अपने घर के
बन्दे से भी इस मुद्दे पर कुछ कहने से डरते हैं | कुछ महीने पहले काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर जर्मनी के एक जोड़े ने
बातों-बातों में मुझे रेलवे प्लेटफार्म की इस गन्दगी के बारे में इस तरह बताया, “आपके देश में सार्वजनिक सम्पति से
लोगों को प्यार नहीं हैं | जहां-तहां कूड़ा फैंकने और थूकने को गलत नहीं मानते, जहां मर्जी थूक देते हैं, लघु शंका कर
देते हैं, आदि-आदि | उन्होंने हमारी और भी कएक बुराइयां गिनवाई तथा कड़वे अनुभव सुनाए | उनकी बात सही थी | बहुत
शर्मिंदा हुआ | क्या बचाव करता, कौनसी छतरी खोलता | हम हैं ही ऐसे |
उस जोड़े के पास दिल्ली आने का टिकट तो था परन्तु आरक्षण नहीं था | मेरा एक बर्थ रिजर्व था | मैंने बिगड़ी तस्वीर को
सुधारने की सोच के साथ कहा, “आप टी टी ई से कहें, वह आपकी मदद करेगा | यदि बर्थ नहीं मिले तो आप मेरे पास जरूर आइए
|” मैंने उन्हें अपना बर्थ और बोगी नंबर लिख कर दे दिया | मैं मन ही मन सोच रहा था, “काश ! वह जोड़ा आ जाता तो मैं छै
घंटे जैसे-तैसे काट लेता परन्तु उस जोड़े को अपना बर्थ दे देता | एक घंटा बीतने पर भी वह जोड़ा नहीं आया | शायद उन्हें
बर्थ मिल गया होगा | मुझे आज भी मलाल है कि मैं उस विदेशी जोड़े के सामने अपने देश की इमेज सुधारने का भागीदार नहीं
बन सका |”
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.02.2020
खरी खरी - 568 : तय टैम पर जगौ दी
अच्याल क्वे लै कार्यक्रम
तय टैम पर शुरू नि हुन,
जो टैम पर ऐ जानी उनार
भैटी भैटिए पटै जानी घुन ।
देर में कार्यक्रम शुरू हुंछ
तय टैमक एक घंट बाद,
य एक घंट बरबादी क
के जवाब छ तुमार पास ?
किलै बलूंछा लोगों कैं पैली
ठीक तय टैम पर बलौ,
पै कैक इंतजार नि करो
तय समय पर दी जलौ ।
तुमार देखादेखी आब क्वे लै
टैम कि परवा नि करैं राय,
जो टैम पर पुजि जानी
उनू पर लै नि तरसै राय ।
आयोजन करणियो न्यूत में
तय टैमक सम्मान करो,
क्वे टैम पर ओ झन ओ
कार्यक्रम टैम पर शुरू करो ।
जो टैम पर पुजि जानी
उनुकैं बेकार सजा नि दियो,
सोचो, भल काम करि बेर
बेकारक अपजस नि लियो ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.02.2020
मीठी मीठी - 428 : मातृभाषा दिवस 21 फरवरी
एक निवेदन -
आपणि भाषा भौत भलि
करि ल्यो ये दगै प्यार,
बिना आपणि भाषा बलाइए
नि ऊंनि दिल कि बात भ्यार।
पूरन चन्द्र कांडपाल
खरी खरी - 567 : भ्रष्टाचार की जड़
जड़ भ्रष्टाचार की
मजबूत इतनी हो गई,
उखड़ वह सकती नहीं
शक्ति सारी खो गई ।
रेत के पुल बन रहे हैं
नजरें घुमाए वे खड़े,
खा रहे भीतर ही भीतर
राष्ट्र को दीमक बड़े ।
डिग्रियां तो बिक रही हैं
अब सरे बाजार में,
नाव शिक्षितों की डोली
जा रही मजधार में ।
मंतरी से संतरी तक
बिक रहे हैं खुलेआम,
घोटालों के संरक्षक
घूम रहे हैं बेलगाम ।
बैंक खाली करके वो तो
छोड़ गया है देश को,
थोड़े कर्ज में जो दबा था
वो छोड़ रहा है देह को ।
भ्रष्ट लोगों के घरों में
जल रहे घी के दीये,
रोकने वाले थे जो
वे भी उन्हीं में मिल लिए ।
टूट रहा है मनोबल
कर्मठ निष्ठावान का,
चक्रव्यूह घेरे उसे है
भ्रष्ट चोर शैतान का ।
सत्यवादी सद्चरित्र का
मान पहले था जहां,
आज झूठे चोर बेईमान
पूजे जाते हैं वहां ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.02.2020
खरी खरी - 565 :जरा सोचिए हाथ मिलाने से पहले ?
सुप्रसिद्ध शायर बशीर बद्र अब 85 वर्ष के हो गए हैं । उनका एक बहुत ही प्रचलित शेर है -
" जरा हाथ क्या मिला दिया
यों गले मिल गए तपाक से,
ये गर्म मिजाज का शहर है
जरा फासले से मिला करें ।"
अब हम सब हाथ मिला कर एक दूसरे का अभिवादन करने लगे हैं । हाथ जोड़कर अभिवादन का रिवाज ही समाप्त हो गया । फिर भी
महिलाओं से हम हाथ जोड़कर ही अभिवादन करते हैं । ' हाथ मिलाना ' एक मुहावरा भी है । वैसे हाथ के साथ जुड़े कई
मुहावरे हैं - हाथ की सफाई, हाथ खींच लेना, हाथ तंग होना, हाथ थामना, हाथ पकड़ना, हाथ पीले करना, हाथ फेरना, हाथ
बंटाना, हाथ बढ़ाना, हाथ मारना आदि आदि । हाथ धोना, हाथ धो बैठना, हाथ धो लेना भी मुहावरे हैं ।
कभी कभी बड़ी मजबूरी में न चाहते हुए भी हाथ मिलाना पड़ता है । तब हम उस व्यक्ति से आंख नहीं मिलाते, सिर्फ हाथ
मिलाते हैं । ' ऐसे में 'जिंदगी का अजब दस्तूर निभाना पड़ता है, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाना पड़ता है ।' हाथ
मिलाने की बात पर डाक्टर कहते हैं, ' हमारे शरीर का सबसे गंदा अंग हमारा दांया हाथ है । हम इससे खुजली भी करते हैं
और नाक भी पोछते हैं । हम इसे नाक में, मुंह में और कान में भी घुसाते हैं, आंख भी छूते हैं तथा कुदरती विसर्जन करते
समय भी इसकी मदद लेते हैं । हम बस के डंडे, मेट्रो के डंडे और मेट्रो एक्स्क्लेटर पर भी हाथ को रगड़ते हुए चलते हैं
। ऐसा सभी करते हैं क्योंकि सब जगह हमारा दांया हाथ आगे रहता है इसलिए यह सबसे अधिक गंदा है । जो जगह हमने अपने हाथ
से पकड़ी उसे हम से पहले सबने पकड़ा जिसकी वजह से ये स्थान सर्दी - जुकाम सहित अन्य कई प्रकार के वाइरसों और
रोगाणुओं से भरे होते हैं ।
हम में से अधिकांश लोग भोजन से पहले हाथ नहीं धोते । शायद घर में धोते हों परन्तु किसी पार्टी में तो नहीं धोते ।
बिना हाथ धोए भोजन करते हैं, प्रसाद या लंगर भी छक लेते हैं और गोलगप्पे खाते हैं । आजकल एक बहुत ही खतरनाक वायरल
बीमारी कोविड- 19 (कोरॉना वाइरस ) से चीन में 1800 लोग मर चुके हैं और 75 हजार रोग ग्रस्त हैं । दुनिया के 16 देशों
में यह रोग दस्तक दे चुका है । इसकी कोई दवा नहीं है । बचाव का एकमात्र उपाय है स्वच्छता और अपने हाथ से उन अंगों को
नहीं छूना जिनकी ऊपर चर्चा की गई है तथा हाथ धोना और किसी से भी हाथ नहीं मिलाना ।
इस खरी खरी का एकमात्र उद्देश्य यह है कि हाथ धोते रहने से हम कई बीमारियों से बचेंगे और हाथ मिलाने के बजाय हम
अभिवादन हाथ जोड़कर करें तो हम सभी वायरल बीमारियों से बचेंगे । हम सचेत रहेंगे तो कुछ ही दिनों में हमारी हाथ
मिलाने की आदत छूट जाएगी । यदि कोई हाथ मिलाना चाहे भी तो हम हाथ जोड़ कर उसे अभिवादन कर सकते हैं । यदि हमारा कोई
लंगोटिया यार हाथ मिलाने की जिद भी करे तो हम कह सकते हैं, "यार मेरा हाथ गंदा है ।" यदि अब भी हम अपनी आदत नहीं
सुधारेंगे और हाथ धोने की आदत नहीं अपनाएंगे तो किसी जान लेवा हस्त- स्पर्श हस्तांतरित वायरल बीमारी के कारण हम अपनी
जान से हाथ धो बैठेंगे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.02.2020
खरी खरी - 564 : जूते - चप्पल, नोट - गाजर
भले ही खरी - खरी कुछ अटपटी सी लगे परन्तु अटपटी नहीं है । जो लोग जूते या चप्पल पहन कर घर के अंदर घूमते हैं या
किसी के घर में घुसते हैं उन्हें कभी फुर्सत मिले तो अपने जूते - चप्पल के तले जरूर देख लें । तले पर गंदगी चिपकी
हुई स्पष्ट नजर आएगी । इस गंदगी में कई तरह की बीमारियों के कीटाणु होते हैं और पूरे फर्स पर फ़ैल जाते हैं जो
परिवार के किसी भी व्यक्ति को बीमार कर सकते हैं । जिन घरों में जूते बाहर रखने का नियम है वह बहुत अच्छी बात है ।
हमें संकल्प करना चाहिए कि हम किसी के घर में जूते - चप्पल पहन कर न घुसें । अस्पताल या ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश
होने से पहले इसी कारण जूते - चप्पल बाहर उतराए जाते हैं ।
पार्क की बैंच पर बैठ कर देखा कि कुछ जुआरी जूते के नीचे नोट दबाकर जुआ खेल रहे थे । वहीं पर घास में गुटका भी थूक
रहे थे । नोटों पर पार्क की गंदगी लग रही थी । कुछ जुआरी उन्हीं नोटों को मुंह में भी डाल रहे थे । RTV या बस का
कंडक्टर, सब्जी - फल बेचने वाले ये भी नोट को मुंह में पकड़ते है । शादी में दारू गटकने के बाद दूल्हे के कुछ मित्र
मुंह में नोट डाल कर ढोल - बैंड वाले के मुंह से नोट खिचावाते हैं । श्मशान में पंडा भी मुर्दे के ऊपर नोट रखवाता है
और देखदेखी सब रखते चले जाते हैं ।पंडा मुर्दे को चिता में रखवाता है और नोट जेब में रखता है । इस तरह जो भी नोट
हमारी जेब में हैं वे सबसे अधिक रोगाणु अपने में लपेटे हुए हैं । कम से कम हम तो ऐसा न करें और बीमारी से बचें ।
गंदे नोट स्वीकार न करें तथा गंदे नोटों को सबसे पहले खर्च करें ।
हम गाजर - मूली बाजार से लाकर धोने के बाद उन्हें फ्रिज में रख देते हैं । गाजर और मूली के पत्ते व तने के बीच के
भाग में पेट के कीड़े के सूक्ष्म अंडे होते हैं या रोगाणु अड्डा जमाए रहते हैं । इससे पूरा फ्रिज भी दूषित होता है ।
अतः पत्ते और तने के बीच के भाग को काट कर ही गाजर - मूली फ्रिज में रखने चाहिए । हरी पत्ते वाली सब्जियों, धनिया -
पोदीना में कीड़े औेर छोटे कैंचवेे चिपके रहते हैं । पालक में तो छोटे सांप भी देखे गए हैं । फ्रिज में सभी सब्जियां
धोने के बाद रखने से फ्रिज बीमारी का गोदाम बनने से बच सकता है । थोड़ी सावधानी बरतने सी आज की खरी खरी आपके
स्वास्थ्य के लिए मीठी मीठी बन सकती हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.02.2020
खरी खरी - 563 : कितने शोधकर्ता है हमारे ?
कुछ महीने पहले अंतरराष्ट्रीय संगठन क्लेरिवेट एनालिटिक्स ने दुनिया के सबसे काबिल 4000 (चार हजार ) शोधकर्ताओं
(एचसीआर) की लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में भारत के केवल 10 शोधकर्ताओं का नाम शामिल हैं । यह जानकर हैरानी होती
है कि इन 10 भारतीयों में केवल 1 ही महिला है। जहां इस लिस्ट में अमेरिका पहले नंबर पर है तो वहीं ब्रिटेन दूसरे और
चीन ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। अमेरिका के सबसे ज्यादा 2639 शोधार्थी, ब्रिटेन के 546 शोधार्थी और चीन के
482 वैज्ञानिकों के नाम इस सूची में मौजूद है।
हमारे शोधार्थी विश्व या चीन की तुलना में इतने कम क्यों हैं ? स्पष्ट है हम शोध के लिए उचित संशाधन उपलब्ध नहीं करा
सकते । हमारे एम्स (AIIMS) सहित किसी भी अस्पताल में, विश्वविद्यालय में या किसी भी शैक्षणिक संस्थान में पूरा स्टाफ
भी उपलब्ध नहीं है । स्कूल शिक्षकों की भी कमी किसी से छिपी नहीं है । स्कूलों में समय पर वर्दी और पुस्तकें नहीं
मिलती हैं । देश और टी वी चैनलों के पास इन मुद्दों पर चर्चा करने का समय नहीं है क्योंकि उनका अधिकांश समय हिन्दू-
मुस्लिम बहश में ही बीतता है । सरकारें जो कहती हैं वह कार्य हो रहा है या नहीं देश को मीडिया से ही सत्य का पता
चलता गए । देश के टी वी चैनलों से निवेदन है कि राष्ट्रनिर्माण के मुद्दों को भी स्थान दें और सत्य को सामने लाएं
तभी भारतमाता की जय होगी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.02.2020
मीठी मीठी - 427 : लोकार्पण " खैचाताणि : विचार गोष्ठी - कवि सम्मेलन
16 फरवरी 2020 को अपराह्न DPMI न्यू अशोक नगर नई दिल्ली में नवोदित कवि वीरेंद्र जुयाल रचित गढ़वाली काविता संग्रह
" खैंचाताणि " का लोकार्पण किया गया । इस अवसर पर विचार गोष्ठी के साथ कुमाउनी - गढ़वाली कवि सम्मेलन भी आयोजित किया
गया । विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता थे DPMI के चेयरमैन डॉ विनोद बछेती, पूरन चन्द्र कांडपाल, नेत्र सिंह असवाल,
जगदीश ढौंढियाल, आशीष सुंदरियाल, और जयपाल सिंह रावत । लोकार्पण और विचार गोष्ठी के बाद कुमाउनी गढ़वाली कवि सम्मेलन
भी आयोजित किया गया ।
कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करने वाले कवि थे सर्वश्री ललित केशवान, पूरन चन्द्र कांडपाल, नेत्र सिंह असवाल, जयपाल
सिंह रावत, दिनेश ध्यानी, पयास पोखड़ा, दर्शन सिंह रावत, रमेश हितैषी, गोविंद राम पोखरियाल, संतोष जोशी, प्रदीप
खुदेड़ , अनूप नेगी, अनूप रावत, सुनील सिंधवाल, सुश्री कुसुम भट्ट आदि । इस तरह के आयोजनों में नवोदित कवियों को मंच
देना बहुत अच्छी बात है । यदि कार्यक्रम तय समय पर आरम्भ होता तो कुछ और कवियों को भी अपनी कविता पढ़ने का अवसर मिल
जाता । इस अवसर पर कई कवि, पत्रकार और गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे जिनमें मुख्य थे - सर्वश्री रमेश घिल्डियाल, ओम
प्रकाश आर्य, द्वारिका प्रसाद चमोली, नीरज बवाड़ी, बी पी जुयाल, शंकर ढोंडियाल, सुश्री रामेश्वरी नादान, यशोदा जोशी,
निशांत रौथान, जगनमोहन रावत, गिरधारी रावत, जी पी एस रावत, पत्रकार सत्येन्द्र रावत, अनिल पंत आदि । विरेन्द्र जुयाल
के परिजन भी इस अवसर पर मौजूद थे । आयोजन का संचालन डॉ केदारखंडी और कुसुम भट्ट ने संयुक्त रूप से किया ।
विरेन्द्र जुयाल रचित 120 पृष्ठ के इस गढ़वाली कविता संग्रह में 80 कविताएं हैं जो समाज की प्रत्येक विसंगति को
ललकारती है, आईना दिखाती हैं, अपनी माटी - थाती का स्मरण करती हैं और सौहार्द, संवेदनशीलता व समरसता के मिठास को
सिंचित करती हैं । पुस्तक का पेपर बैक मूल्य ₹ 150/- है । पुस्तक प्राप्ति के लिए रावत डिजिटल इंदिरापुरम गाजियाबाद
( मोब 9910679220 ) पर संपर्क किया जा सकता है । हम विरेन्द्र जुयाल को इस कविता संग्रह के प्रकाशन पर हार्दिक
शुभकामना देते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.02.2020
मीठी मीठी - 426 : कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पांडे जी की 138वीं जयंती : विचार गोष्ठी व कवि सम्मेलन
कुमाऊँ केसरी बदरी दत्त पांडे जी का जन्म 15 फरवरी 1882 को विनायक पांडे जी के घर कनखल में हुआ । बाद में वे
अल्मोड़ा आये । उन पर विवेकानंद जी और ऐनीवेसेन्ट का प्रभाव था । उन्होंने 1905 नें देहरादून में नौकरी की । वे 1910
तक इलाहाबाद में एक संपादक के साथ रहे । उन्होंने अल्मोड़ा अखबार और शक्ति अखबार नें काम किया । वे गांधी जी के
संपर्क में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े रहे । 13 जनवरी 1921 उत्तरायणी के दिन कुली बेगार के रजिस्टर गोमती-सरयू के
संगम बागेश्वर में उनके नेतृत्व में बहाए गए । वे अंग्रेजों के दमन और बंदूक से निर्भीक होकर अहिंसा से स्वतंत्रता
की आवाज बुलंद करते रहे और "कुमाऊँ केसरी" कहलाये । इस तरह मानव जाति को कलंकित करने वाली कुली बेगार प्रथा का अंत
हुआ ।
कुमाऊं केसरी बदरी दत्त पांडे जी 7 वर्ष तक अलग- अलग जेलों में बंद रहे । 1937 में उन्होंने "कुमाऊँ का इतिहास"
पुस्तक लिखी । वे संयुक्त प्रांत के सदस्य, जिला परिषद के सदस्य, केंद्रीय एसेम्बली सदस्य तथा लोकसभा के सदस्य रहे ।
13 जनवरी 1964 को 83 वर्ष की उम्र में उनका देहावसान हो गया । वे एक निर्भीक पत्रकार, कुशल प्रशासक और जन प्रिय नेता
थे । उनके नाम से नैनीताल में एक अस्पताल और बागेश्वर में पोस्ट ग्रेज्युएट कॉलेज है । हम ऐसे महामानव को उनकी
138वीं जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
15 फरवरी 2020 को दिवंगत पांडे जी की जयंती गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में उत्तराखंड फिल्म नाटक संस्थान
(ufni ) द्वारा आयोजित की गई । इस अवसर पर सर्वश्री धीरेन्द् प्रताप सिंह, हरिपाल रावत, गंभीर सिंह नेगी, खुशहाल
सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह भंडारी, आर पी ध्यानी, प्रदीप वेदावाल, सुश्री संयोगिता ध्यानी (संस्था की अध्यक्ष ) ,
कुसुम चौहान आदि मुख्य वक्ता थे । विचार गोष्ठी के बाद कुमाउनी - गढ़वाली कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें मुख्य
कवि थे सर्वश्री पूरन चन्द्र कांडपाल, दिनेश ध्यानी, रमेश घिल्डियाल, पायस पोखड़ा, मदन मोहन डुकलान और सुश्री विजय
लक्ष्मी भट्ट । सुश्री प्रेमा धोनी, चंद्रकांता शर्मा, मधु बेरिया साह, लक्ष्मी शर्मा, अनिल पंत, जी पी एस रावत,
ढौंढियाल जी, जगनमोहन रावत सहित कई गणमान्य व्यक्ति एवम् संस्था के कलाकार सदस्य इस जयंती समारोह में मौजूद थे । सभी
वक्ताओं एवम् कवियों ने अपने शब्दों में अमर स्वतंत्रता सेनानी कुमाऊं केसरी पंडित बदरी दत्त पांडे जी का स्मरण किया
और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की । समारोह का संचालन वरिष्ठ मंच कलाकार व उद्घोषक बृज मोहन शर्मा ने किया ।
इस अवसर पर कुमाऊनी - गढ़वाली भाषा के काव्य पाठ आयोजन हेतु हम संस्था को साधुवाद देते हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.02.2020
खरी खरी - 562 : मतलबी लोग
मतलबी लोग
मतलबी यार,
दिखावटी दुनिय
दिखावटी प्यार,
मतलब निकलि गोय
पै भुलि जानी,
रुबरू मिलनी
अपन्यार है जानी,
धरम करम न्हैगो
मतलबी रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.02.2020
खरी खरी - 560 : प्रेम दिवस 14 फरवरी
'प्रेम दिवस' हर रोज हो,
एक दिन का 'रोज' नहीं।
एक सप्ताह से 'प्रेम' का बाजारीकरण हो रहा है । हमारे देश में प्रेम की बात
रहीम ने कही-
'रहीमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे तो फिर ना जुड़े,
जुड़े गांठ पड़ जाए ।।
कबीर ने भी कहा-
पोथी पढ़ि पढ़ि जुग मुआ,
पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर 'प्रेम' का,
पढ़े सो पंडित होय ।।
मीरा बोली-
हे री मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दर्द न जाने कोय...
'प्रेम' को समझने, महसूस करने और निभाने की समझ होनी चाहिए चाहे वह जिससे भी हो । तीसरी सदी के रोमन संत वेलेंटाइन
ने भी प्यार, समरसता, सौहार्द से रहने का संदेश दिया था जिनके नाम से 14 फरवरी को प्रतिवर्ष प्रेम दिवस मनाया जा रहा
। जो ये दिखावे का पागलपन, खुलेआम आलिंगन, खुलेआम स्पर्श, खुलेआम गलबहियां, खुलेआम कामसुख और हर साल नया प्रेमी
बदलने के रिवाज -समर्थन में जो ढोल बज रहा है इसकी हलकान में बौराये युवजन ही आते हैं और नशा उतरने तक ही झूमते रहते
हैं तथा हकीकत सामने आते ही लुप्त हो जाते हैं 'तारा ज्यों प्रभात । इस पागलपन से कुछ लोगों को जरूर लाभ होता जिसे
हम प्यार का बाजारीकरण कहते अन्यथा प्यार कोई बाजार की वस्तु से नहीं जो खरीदी जा सके । 'प्यार का नाम बदनाम न
करो...देखो ओ दिवानों....
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.02.2020
खरी खरी - 384 : पुलवामा में आतंकी कायरता
कल 14 फरवरी 2019 की अपरान्ह पुलवामा कश्मीर में एक फिदायीन आतंकी हमले में हमारी CRPF के 44 जवान शहीद हो गए । जब
जवान अपनी बस में बैठकर जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे पुलवामा में एक फियादीन ने उनकी बस पर बारूद भरी कार टकरा दी ।
इस भयानक विस्फोट से यह हादसा हुआ । कई जवान घायल भी हुए हैं जिनका सैनिक अस्पतालों में उपचार हो रहा है ।
यह बहुत दुःखद घटना है जिससे पूरा देश दुखी है, स्तब्ध है और इन शहीद परिवारों के साथ दृढ़ता से खड़ा है । जिन्होंने
ने अपनों को खोया है हम उनके दुख में शामिल हैं । ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी । हमारी कानवॉय को टक्कर मारने यह
फियादीन हाइवे पर कैसे आ गया, यह बहुत बड़ी चूक है जिस चूक की कीमत हमें 44 बहादुरों को खोकर चुकानी पड़ी है । इसकी
गहराई से जांच होनी चाहिए ।
इस समय हमें संयम से काम लेना होगा । टी वी चैनलों पर शोर मचाने से लाभ नहीं । संतुलित भाषा बोलने की जरूरत है ।
सेना अपना काम अवश्य करती है और यहाँ भी करेगी । टी वी चैनलों पर गरम बहस भी अनुचित है । सभी राजनैतिक दलों को इस
समय एकजुटता दिखानी है तथा सरकार और सुरक्षाबलों का मनोबल भी बढ़ाना है । हमारी सेना प्रोफेसनल है वह इस तरह के
संकटों से जूझना जानती है और जूझेगी भी । इस घटना के सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धाजंलि । भविष्य में ऐसी चूक न हो
इसके लिए हमें कायर आतंकियों से बहुत चौकन्ना रहने की जरूरत है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.02.2019 "
(विगत वर्ष की खरी खरी )
खरी खरी - 561 : पुलवामा कांड की दुखद बरसी
आज 14 फरवरी 2020 को पुलवामा आतंकी कांड की बरसी है ।आज ही के दिन 2019 को पुलवामा में हमारी CRPF के 44 जवान एक
फियादीन हमले में शहीद हो गए थे । अभी तक उस कांड की छानबीन नहीं हुई है । 15 फरवरी 2019 को मैंने उन शहीदों की
श्रद्धांजलि में कुछ शब्द लिखे थे । उन शब्दों को श्रद्धांजलि बतौर पुनः उद्धृत कर रहा हूं -
पूरन चन्द्र
कांडपाल,
14.02.2020
बिरखांत -305 : निगमबोध घाट पर शवदाह की परम्परा
उत्तराखंड के सरोकारों से सराबोर होने की बात तो हम सब करते ही हैं परन्तु अपने हिस्से का क्रियान्वयन हम नहीं करते
| हम ‘बन बचाओ, नदी बचाओ, पेड़ लगाओ, प्रकृति से छेड़छाड़ मत करो और शराब-धूम्रपान-गुट्का से उत्तराखंड को बचाओ’ भी
कहते हैं | हम गंगा-यमुना की स्वच्छता बहश में भागीदारी भी करते रहे हैं | परन्तु न हमें पेड़ लगाने की चिंता हैं, न
पर्यावरण बचाने की और न नदी बचाने की | उदहारण के लिए दिल्ली में यमुना किनारे स्थित निगम बोध श्मशान घाट की चर्चा
करते हैं |
यहाँ पर उत्तराखंड एवं कुछ अन्य जगहों के लोग शवदाह यमुना नदी के किनारे करते हैं और चार-पांच घंटे में शव दाह कर
सम्पूर्ण राख-कोयला यमुना में बहा देते हैं | काला गंदा नाला बन चुकी यमुना की दुर्दशा निगमबोध घाट पर देखी नहीं जा
सकती है | यहाँ पर शवदाह की व्यवस्था (CNG) सी एन जी फर्नेश से भी है | छै फर्नेश (भट्टी) चालू हालत में हैं | एक
शवदाह में एक घंटा बीस मिनट का समय लगता है | शवदाह में समय तो बचता ही है एक पेड़, पर्यावरण, हवा और यमुना भी बचती
है और शवदाह में कर्मकांड की वे सभी क्रियाएं भी की जाती हैं जो लकड़ी के दाह में की जाती हैं | शवदाह में सी एन जी
खर्च मात्र एक हजार रुपये है जबकि लकड़ियों का खर्च ढाई से पांच हजार रुपये तक हो जाता है | अक्सर फट्टे, लकडियां,
चीनी दोबारा मंगाई जाती हैं क्योंकि फट्टे और चीनी में मुर्दाघाट में भी कमीशन का यमराज बैठा है |
यह सब जानते हुए भी लोगों का रुझान सी एन जी दाह के प्रति नहीं दिखाई देता | अन्धविश्वास की जंजीरें उन्हें जकड़े
हुए हैं | तर्क दिया जाता है कि ‘हमारी परम्परा लकड़ी में ही जलाने की है और लकड़ी में जलाने से ही मृत व्यक्ति सीधा
स्वर्ग जाएगा |’ यमुना के मायके वाले उत्तराखंडियों को तो यमुना की अधिक चिंता होनी चाहिए |
यदि मानसिकता नहीं बदली तो प्रधानमंत्री के बनारस को क्योटो बनाने के सपने का क्या होगा ? वहां भी पण्डे घाटों की
स्वच्छता में कुछ न कुछ रोड़ा अटका रहे हैं | पेड़, पर्यावरण, प्रदूषण एवं नदियों की चिंता के साथ आज रुढ़िवादी एवं
अंधविश्वासी परम्पराओं-प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता भी है | क्या हम सोसल मीडिया के भागीदार इन मुद्दों पर जनजागृति
करेंगे ? वक्त आने पर इसे अपनायेंगे या अपनाने को कहेंगे ? या सिर्फ दूसरों से ही इस कदम की अपेक्षा करेंगे ? हो सके
तो इस मुद्दे पर चर्चा करें और वक्त आने पर क्रियान्वयन में मदद करें |
कौन क्या कर रहा है, बात यह नहीं है | मुख्य बात है कि हम क्या कर रहे हैं ? कथनी –करनी में अंतर हम रोज देखते हैं |
शराब-धूम्रपान-गुट्के के विरोध में मंच से कविता पाठ करने वाले तथा लम्बे-लम्बे भाषण देने वालों को मैंने उसी समारोह
के समापन के तुरंत बाद शराब गटकते, सिगरेट पीते और गुट्का फांकते देखा है | पर उपदेश.. के प्रवचनों की हमारे
इर्द-गिर्द बाड़ आई है | हम स्वयं से इन सवालों को पूछें और अपने हिस्से के क्रियान्वयन से कतराएं नहीं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.02.2020
खरी खरी - 559 : दिल्ली में "आप " पार्टी की जीत
9 फरवरी 2020 की खरी खरी में मैंने लिखा था कि दिल्ली जीतेगी और दिल्ली जीत गई । 8 फरवरी 2020 को संपन्न हुए
दिल्ली विधान सभा की 70 सीटों के चुनाव का परिणाम 11 फरवरी 2020 को घोषित हो गए । इन 70 सीटों के लिए 672 प्रत्यासी
मैदान में थे जिनमें 79 महिलाएं भी थीं । सर्वाधिक 28 उम्मीदवार नई दिल्ली विधान सभा सीट से थे जहां से मुख्यमंत्री
अरविंद केजरीवाल प्रत्यासी थे । इन 672 प्रत्याशियों में 16 पढ़े -लिखे नहीं हैं, 115 मिडिल स्कूल तक पढ़े है, 298
ग्रेजुएट हैं और 133 पर अपराधिक मुकदमे दर्ज थे जिनमें 104 पर हत्या, अपहरण और बलात्कार के मामले दर्ज हैं । सभी
प्रत्याशियों का फैसला दिल्ली के 1.48 करोड़ मतदाताओं ने 13750 मतदान केंद्रों पर 20385 ईवीएम की मदद से किया गया
।
दिल्ली विधान सभा का चुनाव एक महासमर की तरह लड़ा गया जिसमें एक तरफ तो अकेला अरविंद केजरीवाल था और दूसरी तरफ एक
बहुत बड़ा दल - बल था जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, केंद्रीय मंत्री, कई अन्य मंत्री, आधे दर्जन मुख्यमंत्री, दो
पूर्व मुख्य मंत्री, पार्टी के कई सांसद, कई नेता, कई अभिनेत्री -अभिनेता और पार्टी कार्यकर्ताओं का सैलाब था ।
चुनाव को तीसरे राष्ट्रीय दल ने त्रिकोणीय बनाकर नेक टू नेक फाइट करने का प्रयास किया । कई अन्य दल और निर्दलीय भी
चुनाव मैदान में थे जिनका इस चुनाव पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा ।
लगभग एक महीने तक चुनाव प्रचार हुआ । ज्यों ज्यों चुनाव प्रचार बढ़ता गया इसमें कई तरह के बिगड़े - बोल और कषैली
भाषा घुस गई और कई भड़काऊ भाषणों ने भी इसे हथिया लिया । कुछ बिगड़ैलों को चुनाव आयोग ने देर - सवेर दंडित भी किया ।
कुछ मीडिया चैनलों ने इस चुनाव को स्थानीय मुद्दों से भटका कर सीएए और एनपीआर के माध्यम से वाया शाहीनबाग राग हिन्दू
- मुस्लिम की ओर मोड़ने का वृहद प्रयास किया । राजनीतिक दलों को मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए था । भड़काऊ भाषणों,
बिगड़े बोलों से कटुता फैलती है और राष्ट्र का नुक़सान होता है । चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तक कई अनहोनियां होते -
होते टल गई और 8 फरवरी 2020 को 62.59% मतदाताओं ने सुचारु रूप से मतदान किया जबकि 2015 के दिल्ली विधान सभा चुनाव
में 67% मतदान हुआ था ।
दिल्ली के एग्जिट पोल में आप पार्टी पुनः सरकार बनाते हुए बताई गई थी जो इस बार सटीक रहे । 2015 के चुनाव में उसने
67/70 जीती थीं । 11 फरवरी 2020 को चुनाव परिणाम आया और आप पार्टी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में 62
सीटों पर विजय प्राप्त की जबकि बच्ची हुई 8 सीट बी जे पी की झोली में गई । कांग्रेस पिछले चुनाव की तरह इस बार भी
खाता नहीं खोल सकी । उत्तराखंड मूल के मोहन सिंह बिष्ट भी करावल नगर से बी जे पी प्रत्यासी बतौर चुनाव जीते हैं । इस
चुनाव में जीतने वालों को बधाई और पराजितों को संघर्ष करते रहने के लिए शुभकामाएं । दिल्ली के मतदाताओं को विशेष
विनम्र धन्यवाद जो वे किसी के भड़काने - बरगलाने में नहीं आए और धैर्य - संयम का परिचय देते हुए प्रजातंत्र प्रदत
अपने अधिकार और कर्तव्य को बड़े सौहार्द और समरसता से निभाया ।
मैं कोई राजनैतिक विश्लेषक नहीं हूं । मैंने दिल्ली के पूरे चुनाव प्रचार को मीडिया में देखा और समाचार पत्रों में
पढ़ा । मैं इस पर अधिक टिप्पणी न करते हुए केवल इतना कहूंगा कि यह चुनाव जहां एक ओर किए हुए कार्य पर लड़ा गया वहीं
दूसरी ओर दिल्ली के मुद्दों से हट कर लड़ा गया । चुनाव में कई बार कई नेताओं द्वारा कलुषित भाषा का प्रयोग किया गया
जिसका दिल्ली से कोई लेना देना नहीं था । नफ़रत, विद्वेष और कटु शब्दों के प्रहार से सर्व धर्म समभाव की चूल हिलने
से बच गई । हमारे नेताओं को समझना होगा कि धर्म - संप्रदाय का उपयोग राजनीति को साधने के लिए नहीं बल्कि राजनीति की
सुचिता के लिए होना चाहिए । जीतने वालों ने दिल्ली में पटाखे नहीं जलाए यह खुशी की बात है । जीत का अर्थ है उस
विश्वास पर खरा उतरना जो जनता ने आप में प्रकट किया है और हार का अर्थ है निराश न होते हुए प्रजातंत्र में विपक्ष की
उचित भूमिका निभाना और सरकार को उसके द्वारा किए गए वायदे याद दिलाते रहना । दिल्ली का चुनाव हमें यह संदेश देता है
कि आने वाले समय में चुनाव किए गए कार्य पर ही लड़े जाएंगे । भटकाव और इधर - उधर के मुद्दों की गैर - जरूरी राजनीति
जनता अब समझने लगी है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.02.2020
मीठी मीठी - 425 : ब्यौल ढूंढो ( कुमाउनी गीत)
‘ब्योलि ढूँढो’ गीत क बाद आब ‘ब्यौल ढूंढो’
च्येलियां कि डिमांड लै पुरि करि दिनू |
( बदलते समय के साथ लड़कियों ने भी
कैसे दुल्हे की चाहत रखी है, इस गीत में
उनके मन की बात है | )
दाज्यू मीहुणी ब्यौल ढूंढो गौं बै भलौ भलौ
मीकणी नि चैन दाज्यू बात मारणी च्यलौ |
उत्तराखंड बटि ढूंढो और कैं बै नि चैनौ
आपण मुलुक बै ढूंढो सीप सहूरौ नानौ
गलती साथ झन ढूंढिया क्वे फरफंडी च्यलौ | दाज्यू...
सिदसाद ब्यौल ढूनिया पढ़िया लेखीया
गबरू जवान जस हिम्मत क भरिया
डरणी मरणी झन ढूनिया, ढूनिया दिलवालौ | दाज्यू...
जांचि लिया भली भांत शराबी-कबाबी
देखि लिया गुसैल नशैल, जुवारी लबारी
झन ढूनिया गुट्कबाज, बिड़ि सिगरटौ रयलौ | दाज्यू...
यतू पतव झन ढूनिया कुकुर क पुछड़
चुसिया बानर जस नि हुण चैन मुखड़
झन ढूनिया बल्द जस कुड़कभाड़ ठयलौ | दाज्यू...
देखण चाण भल हुण चैं सनिमा जस हीरो
अकला पिछाड़ी लठ्ठ लिणियां नि हुण चैन जीरो
थम्मू जस झन ढूनिया, गूड़ कस भ्यलौ | दाज्यू...
रोबिल चटक ढूनिया जस राजकुमारा
ख़ुशी ख़ुशी जो उठै द्यो म्यार झटैक नखरा
कमै धमै सब आपणी जो म्यार हाथ द्यलौ | दाज्यू...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.02.2020
मीठी मीठी - 424 : सर्वभाषा ट्रस्ट वार्षिकोत्सव में सम्मान अलंकरण
9 फरवरी 2020 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा आयोजित कार्यक्रम में देश
के कई साहित्यकारों/कवियों/भाषा पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सुशोभित किया गया । महामंडलेश्वर मार्तण्ड पुरी जी
को राष्ट्र रत्न सम्मान -2019 से सुशोभित किया गया । कई भाषाओं के साहित्यकार भी सम्मानित हुए जिनमें हिंदी,
कुमाउनी, भोजपुरी, कश्मीरी, हरयाणवी, पंजाबी, नेपाली आदि प्रमुख भाषाएं थी । कुमाउनी भाषा के लिए दिल्ली से पूरन
चन्द्र कांडपाल और देहरादून से सुश्री नीलम पांडे ' नील ' को " गिरीश तिवारी ' गिर्दा ' साहित्य सम्मान " से सुशोभित
किया गया । इस अवसर पर विचार गोष्ठी के साथ - साथ विभिन्न भाषाओं में काव्य पाठ भी आयोजित किया गया । सर्वश्री पूरन
चन्द्र कांडपाल, राजू पांडे और सुश्री नीलम पांडे ' नील ' ने कुमाउनी में काव्य पाठ किया । यह कार्यक्रम दिन में 11
बजे से सायं 5.30 बजे तक दो सत्रों में आयोजित था । भोजनावकाश के बात दूसरा सत्र आरम्भ हुआ ।
दीप प्रज्ज्वलन एवम् सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार अशोक लव ,
समन्वयक केशव मोहन पांडे सहित संस्था की पूरी टीम एवम् मुख्य अतिथि प्रोफेसर अमृत लाल मदान समेत अन्य विशिष्ट
अतिथियों ने किया । इस साहित्य कुंभ में महामंडलेश्वर मार्तंड पुरी, सुश्री रेनू हुसैन, सुभद्रा , डॉ अशोक
श्रीवास्तव, डॉ अजीत सिंह, सुश्री रोमी शर्मा, कमलेश शर्मा, डॉ फिरोज एवम् 100 वर्षीय श्री ओ पी मोहन समेत कई
गणमान्य एवम् वरिष्ठ व विशिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे । सर्व भाषा ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य है सभी भाषाओं को संजोए
रखना , विभिन्न भाषाओं से जुड़ना, लेखनी में मिट्टी की सुगंध भरना, विलुप्त होती आंचलिक भाषाओं को बचाना और पुस्तक
प्रकाशित करना । संस्था जन - सहयोग से गतिमान रहती है । भाषा और साहित्य को जीवंत रखने के सर्व भाषा ट्रस्ट के इस
वृहद प्रयास को साधुवाद एवं शुभकामनाएं । संस्था की सदस्यता के लिए मोब 8178695606 एवम् 8920608821 पर संपर्क किया
जा सकता है । साहित्य सम्मान के इस महाकुंभ के मंच का संचालन सुश्री श्वेता, भावना, केशव मोहन पांडे, सहित संस्था के
कई प्रवक्ताओं ने किया । संस्था के अध्यक्ष श्री अशोक लव ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद किया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.02.2020
खरी खरी - 558 : जीतेगी दिल्ली
8 फरवरी 2020 को संपन्न हुए दिल्ली विधान सभा की 70 सीटों के चुनाव का परिणाम 11 फरवरी 2020 को घोषित होगा । इन 70
सीटों के लिए 672 प्रत्यासी मैदान में हैं जिनमें 79 महिलाएं भी हैं । सर्वाधिक 28 उम्मीदवार नई दिल्ली विधान सभा
सीट से हैं जहां से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल प्रत्यासी हैं । इन 672 प्रत्याशियों में 16 पढ़े -लिखे नहीं हैं,
115 मिडिल स्कूल तक पढ़े है, 298 ग्रेजुएट हैं और 133 पर अपराधिक मुकदमे दर्ज हैं जिनमें 104 पर हत्या, अपहरण और
बलात्कार के मामले दर्ज हैं । सभी प्रत्याशियों का फैसला दिल्ली के 1.48 करोड़ मतदाताओं ने 13750 मतदान केंद्रों पर
20385 ईवीएम की मदद से किया ।
चुनाव परिणाम कुछ भी हो दिल्ली का यह चुनाव एक महासमर की तरह लड़ा गया जिसमें एक तरफ तो अकेला अरविंद केजरीवाल था और
दूसरी तरफ एक बहुत बड़ा दल - बल था जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, केंद्रीय मंत्री, कई अन्य मंत्री, आधे दर्जन
मुख्यमंत्री, दो पूर्व मुख्य मंत्री, पार्टी के कई सांसद, कई नेता, कई अभिनेत्री -अभिनेता और पार्टी कार्यकर्ताओं का
सैलाब था । चुनाव को तीसरे राष्ट्रीय दल ने त्रिकोणीय बनाकर नेक टू नेक फाइट का प्रयास किया जबकि कई अन्य दलों और
निर्दलीयों ने भी चुनाव में अंत तक अपना वर्चस्व बनाए रखा ।
ज्यों ज्यों चुनाव प्रचार बढ़ता गया इसमें कई तरह के बिगड़े - बोल घुस गए और कई भड़काऊ भाषणों ने भी इसे हथिया लिया
। कुछ बिगड़ैलों को चुनाव आयोग ने देर - सवेर दंडित भी किया । कुछ मीडिया चैनलों ने इस चुनाव को स्थानीय मुद्दों से
भटका कर सीएए और एनपीआर के माध्यम से वाया शाहीनबाग राग हिन्दू - मुस्लिम की ओर मोड़ने का वृहद प्रयास किया ।
राजनीतिक दलों को मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए । भड़काऊ भाषणों, बिगड़े बोलों से कटुता फैलती है और राष्ट्र का
नुक़सान होता है । चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तक कई अनहोनियां होते - होते टल गई और 8 फरवरी 2020 को 61% मतदाताओं ने
सुचारु रूप से मतदान किया । राजधानी के लोगों द्वारा मतदान में कंजूसी प्रजातंत्र के लिए दुखद है । स्मरण रहे 2015
के दिल्ली विधान सभा चुनाव में 67% मतदान हुआ था ।
11 फरवरी को जो भी दल जीते, जिसकी भी सरकार बने, यह जीत दिल्ली की होगी । दिल्ली के एग्जिट पोल में आप पार्टी पुनः
सरकार बनाते हुए दिखाई जा रही है । एग्जिट पोल एक अंदाज है जो सही या गलत कुछ भी हो सकता है । 2015 के चुनाव में
एग्जिट पॉल ने आप पार्टी को 10 से कम सीट दी थी जबकि उसने 67/70 जीती । इस चुनाव में जीतने वालों को शुभकामना और
पराजितों को संघर्ष करते रहने की बिन मांगी सलाह देते हुए दिल्ली के मतदाताओं को विशेष विनम्र धन्यवाद जो वे किसी के
भड़काने या बरगलाने में नहीं आए और धैर्य - संयम का परिचय देते हुए प्रजातंत्र प्रदत अपने अधिकार और कर्तव्य को बड़े
सौहार्द और समरसता से निभाया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
09.02.2020
खरी खरी - 557 : आज वोट जरूर देना
आज वोट जरूर देना
सर्वप्रिय मशहूर को देना,
वोट काम को देना
वोट नेकनाम को देना,
वोट विकास को देना
वोट उज्ज्वल आस को देना,
वोट निर्माण को देना
वोट जन कल्याण को देना,
वोट सौहार्द्र को देना
वोट जन कद्र को देना,
वोट भाईचारे को देना
वोट समाज सारे को देना,
वोट समरसता को देना
वोट शिष्ट-भद्रता को देना,
वोट सर्वधर्म समभाव को देना
वोट सामाजिक जुड़ाव को देना,
वोट आपसी प्यार को देना
वोट अच्छे कर्णधार को देना,
वोट समाज जोड़ने को देना
वोट घृणा छोड़ने को देना,
वोट रोजगार को देना
वोट कर्मकार को देना,
वोट राष्ट्रीय एकता को देना
वोट सामाजिक मधुरता को देना,
वोट पर्यावरण युक्ति को देना
वोट प्रदूषण मुक्ति को देना,
वोट शहीद किसान को देना
वोट महिला सम्मान को देना,
वोट जल स्वास्थ्य शिक्षा को देना
वोट संस्कृति भाषा दीक्षा को देना,
वोट साझी शहादत को देना
वोट साझी विरासत को देना,
वोट कर्तव्य बदस्तूर देना
वोट सपरिवार जरूर देना ।
सही ईवीएम बटन दबाना
आज वोट जरूर देना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.02.2020
बिरखांत – 304 : चूहा, कुत्ता, हा हा, हॉर्न के बखेड़े
हम सब जानते हैं कि हमें बखेड़ा उपजाने में देर नहीं लगती | घर में, पड़ोस में, कार्यस्थल में, सड़क पर या बैठे-बैठे
सोशल मीडिया में | कुछ महीने पहले दिल्ली के भागीरथी विहार में चूहेदानी से दूसरे की घर की ओर चूहा छोड़ने पर ऐसा
बखेड़ा हुआ कि आपसी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी | कुछ वर्ष पूर्व सशस्त्र सेना चिकित्सा कालेज (AFMC) पूने
के इन्टोमोलोजी विभाग में हमें बताया गया कि चूहा किसान का शत्रु है और सांप किसान का मित्र | अगर सांप न होते तो
चूहे सभी अन्न नष्ट कर देते क्योंकि इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है |
हम सब चूहों द्वारा किये गए नुकसान से परिचित हैं | हम घर के चूहे को पकड़ते हैं और दूसरी जगह छोड़ देते हैं | चूहों
से फ़ूड पोइजनिंग, रैट बाईट फीवर और प्लेग जैसी कई बीमारियाँ फैलती हैं | वैज्ञानिकों के अनुसार हमें चूहों को नष्ट
कर देना चाहिए | चूहेदानी को पानी की बाल्टी में डुबाना, चूहा मारने का उत्तम तरीका बताया गया है | परन्तु कुछ लोग
चूहे को भगवान् की सवारी बताते हैं इसलिए मारने के बजाय दूसरे के घर की ओर डंडा देते हैं | स्वयं सोचें और जो उचित
लगे वही अपनाएं | इस बात पर भी बखेड़ा खड़ा हो सकता है और होते रहता है ।
दूसरा बहुचर्चित बखेड़ा कुत्ते का है | एक व्यक्ति कुत्ता पालता है और परेशानियां पड़ोसियों को झेलनी पड़ती हैं |
कुत्ता रात को भौंकता है, कहीं पर भी शौंच कर देता है | श्वान मालिक किसी की बात नहीं सुनता | रिपोट होने पर
पुलिस-अदालत होती है और वर्षों केस लटके रहता है | कुत्ते वाला त्यौरियां चढ़ा कर कुत-डोर हाथ में थामे बड़े रौब से
घूमता है | उसे किसी की परवाह नहीं | उसकी सबसे बोलचाल बंद है | एक दिन जब कुत्ते का मालिक मर जाता है | सभी पड़ोसी
उसके कुतप्रेम, कुतत्व और कुतपने को भूल कर उसकी अर्थी में शामिल होते हैं फिर भी उस परिवार को अकल नहीं आती और अंत
में अदालत के दंड से ही केस का अंत होता है |
तीसरा बखेड़ा ‘हा-हा’ का है | एक आदमी प्रतिदिन सुबह चार बजे अपने घर की बालकोनी में जोर-जोर से ‘हा-हा’ करता है
अर्थात हंसने का व्यायाम करता है | पड़ोसी उसे मना करते हैं | वह नहीं मानता | केस अदालत में जाता है | अदालत से उसे
आदेश मिलता है, “तुम पार्क में जाया करो, घर की बालकोनी या आसपास ‘हा-हा’ नहीं करोगे | तुम्हारी इस हरकत से लोग दुखी
हैं |” पड़ोसियों से अकड़ने वाला यह तीसमारखां अदालत से माफी मांगता है और लोगों को उसकी ‘हा-हा’ से मुक्ति मिलती है
|
इसी तरह पड़ोस में तबला, ढोलक, हारमोनियम, ढोल, डीजे, म्यूजिक सिस्टम, हॉर्न, पटाखे, जोर जोर से झगड़ा, बहुमंजिले
फ्लेटों में खट-खट, वाहन पार्किंग, जीने या सीढ़ियों की गन्दगी आदि समस्याओं से हम आए दिन जूझते हैं और छोटी सी बात
पर बखेड़े खड़े हो जाते हैं | चलो अपने से पूछते हैं, ‘कहीं हम चूहा, कुत्ता, हा-हा, हॉर्न, मुजिक सिस्टम, शराब पार्टी
सहित कई अन्य बखेड़ों के कारण तो नहीं हैं ?’
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.02.2020
मीठी मीठी - 423 :ब्योलि ढूंढों ( कुमाउनी गीत )
अणब्यवाई लौंडों कि डिमांड पर य गीत ‘ब्योलि ढूंढो’ ('उकाव –होराव' किताब -२००८ )
(कुंवारे लड़के के मन में कैसी दुल्हन की कल्पना है, इस गीत में अपने मन की बात वह अपने बड़े भाई से कह रहा है | )
दाज्यू मिहुणी ब्योलि ढूंढो
गौं बै भली-भली
मिकणी नि चैनी दाज्यू शहर की च्येली |
उत्तराखंड बटी ढूंढों और कैंबै नि चैनी
कसिक समाउल मैं तेजतरार स्यैणी
आजकल च्येलिया हैगीं बंदूकै की नली । मिकणी...
सिदि सादि नानि चैंछ पढ़िया लेखिया
जो ख्वारम धोति धरो आंचव गाड़िया
मिसिरी कि कुंज जसी, गूड़ कसि डली । मिकणी...
छवट-छ्वट घुगंट मजी चमकणी बिंदुली
नगदार कनफूल दगै नानि नानि नथूली
देखण में लागो जसी गुलाब की कली | मिकणी...
बानकि कुटुकि ढूंढो, ढूंढो काई गोरी
लुपलुपी सुपसुपी ढूंढो चौमासै की तोरी
काकड़ फुल्युड़ जसी कैरुवै गेदुली | मिकणी...
सासु-सौर क भरम करो
भल-भल व्यवहार
ननद देवर दगै रौ भै-बैणी चार
पिनाउ कि गांज जसी झन ल्याया चिलैली | मिकणी...
औंणियां जणियां देखो घर देखो समाज
खुशी-खुशी जो निभैद्यो द्वि घरों कि लाज
धान कि बालड़ी जसी फुन वाई धमेली | मिकणी...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.02.2020
खरी खरी - 555 : गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों ?
26 जनवरी 2020 को हम सबने 71वां गणतंत्र दिवस मनाया । किसी ने धूम- धाम से तो किसी ने सादगी से मनाया । कोई एक -
दो दिन की छुट्टी का आनंद लेने बाहर (नानी- दादी के यहां भी) चला गया तो किसी ने जम कर नींद ली । किसी ने करीब 2
घंटे टी वी पर परेड देखी । मैंने 26 जनवरी को दिन भर करीब दो दर्जन स्त्री- पुरुष-बच्चों से अलग-अलग स्थानों पर बड़े
खुशनुमा माहौल में बस एक ही सवाल पूछा, " गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ?" अधिकांश ने बे-सिर
बे-पैर के उटपटांग उत्तर दिये । कुछ ने बताया ,"इस दिन हमारा संविधान लागू हुआ ।" सवाल फिर अपनी जगह खड़ा था,
"संविधान 26 जनवरी को ही क्यों लागू हुआ ? 24 - 25 या 27 -28 या किसी अन्य दिन लागू क्यों नहीं हुआ ? इस प्रश्न का
उत्तर किसी ने भी नहीं दिया । ये है हमारे देशवासियों की हमारे गणतंत्र दिवस के बारे में जानकारी । आप में किसी को
निराशा, किसी को दुख या किसी को आश्चर्य हो रहा होगा परन्तु मुझे ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मैं जानता हूं इस बात की
चर्चा या देश की चर्चा हमारे माहौल में बहुत कम ही होती है । हम तो अनचाही बेसिर - पैर की बहसों में उलझे रहते हैं
या उलझा दिए जाते हैं ।
आप लोगों में कई मित्र अवश्य इस प्रश्न का उत्तर जानते होंगे फिर भी सही उत्तर देने का प्रयास कर रहा हूं । उत्तर -
" 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में हमारा संविधान लिख कर 26 नवम्बर 1949 को तैयार हो गया । संविधान ड्राफ्टिंग समिति के
अध्यक्ष डॉ बी आर अम्बेडकर थे जबकि संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे । संविधान लागू करने के लिए 26
जनवरी 1950 तक प्रतीक्षा इस लिए की गई क्योंकि दिसम्बर 1929 में रावी नदी के किनारे लाहौर के कांग्रेस अधिवेसन में
पंडित नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज की मांग की गई और 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस मना कर ध्वज फहरा
दिया गया । 26 जनवरी 1930 के दिन का स्मरण और महत्व को सम्मानित करने के लिए राष्ट्र द्वारा 26 जनवरी 1950 तक
संविधान लागू होने की प्रतीक्षा की गई और 26 जनवरी 1950 से हमारा संविधान लागू हो गया ।" हमें अपने संविधान की समझ,
संविधान का ज्ञान और संविधान का सम्मान करना चाहिए । यदि संविधान नहीं होता तो हमारे देश का क्या हाल होता या देश
होता भी या नहीं ? जरूर मंथन करें और अपने संविधान को नमन करें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.02.2020
मीठी मीठी - 422 : कैसे मिलते हैं पद्मसम्मान ?
पद्मसम्मान जो 1954 से प्रतिवर्ष दिए जाते हैं ,2019 में पद्मसम्मान के लिए कई हज़ार आवेदन पहुंचे थे जिनमें से
केवल 141 (7+16+118) को ही ये सम्मान दिए गए । अधिकतम 120 नागरिकों को ही पद्मसम्मान दिए जाते हैं परन्तु इस वर्ष ये
141 व्यक्तियों को दिए गए। अपवाद को छोड़कर ये मरणोपरांत नहीं दिए जाते । सम्मान पाने वाले को कोई सरकारी सुविधा या
रकम नहीं मिलती । ये सम्मान चिकित्सकों को छोड़कर किसी भी सरकारी कर्मचारी को नहीं दिए जाते ।
पद्मसम्मान तीन श्रेणी के हैं - पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री ( ऊपर से नीचे को) जिन्हें किसी भी क्षेत्र में
उच्चकोटि की सेवा का प्रदर्शन करने पर दिया जाता है । प्रधानमंत्री की अगुवाई में बनी एक कमिटी पुरस्कार पाने वाले
नामों को अंतिम रूप देती है । इस कमिटी में कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, राष्ट्रपति के सचिव और 4 से 6 सदस्य होते हैं ।
आखिर में प्रधानमंत्री और राष्टपति सूची को मंजूरी देते हैं । सम्मान पाने वालों को एक प्रमाणपत्र तथा मैडल का
रेप्लिका भी दिया जाता है ।
पद्मसम्मान प्राप्त व्यक्ति सम्मान को अपने नाम के आगे- पीछे नहीं जोड़ सकता है । लेटर हैड या दूसरे कागजों में भी
इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है । सभी 141 पद्मसम्मान पाने वालों को बधाई और शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.02.2020
मीठी मीठी - 421 : काव्य कुटुम्ब का वार्षिकोत्सव
2 फरवरी 2020 को अपराह्न रोहिणी सेक्टर 4 दिल्ली स्थित विश्वकर्मा प्लेस में काव्य कुटुम्ब रोहिणी दिल्ली द्वारा
अपना वार्षिकोत्सव मनाया गया । इस अवसर पर साहित्य चर्चा, नवांकुर सम्मेलन, काव्य मंथन और 5 भाषाओं - हिंदी,
कुमाउनी, गढ़वाली, मैथिली और भोजीपुरी में काव्य पाठ आयोजित किया गया । काव्य पाठ में सहभागिता देने वाले कवि थे
सर्वश्री पूरन चन्द्र कांडपाल, शंभू शिखर ( मुख्य अतिथि ), संतोष पटेल, कमल आग्नेय और मणिकांत झा । एक दर्जन से भी
अधिक युवा और किशोर कवियों ने अपनी काव्य रचनाएं मंच से सुनाई । इस कार्यक्रम का पहला भाग 1 फरवरी 2020 को भी आयोजित
किया गया जिसमें मुख्य अतिथि हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष सुविख्यात वरिष्ठ कवि सुरेन्द्र शर्मा थे ।
2 फरवरी 2020 के इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ । संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री रश्मि ' पहली
किरण ', डॉ राकेश मिश्रा और मीडिया प्रभारी दिल्ली हृदय सम्राट यशोदानंदन सहित पूरी टीम ने इस भव्य आयोजन में बड़ी
कर्मठता से अपनी अपनी भूमिका निभाई । सभी कवियों ने सभागार में बैठे दर्शकों को अपनी रचनाओं से आत्मविभोर किया । इस
अवसर पर संस्था के सदस्यों को उनके साहित्य मंथन एवम् सहभागिता के लिए सम्मानित किया गया । इन शब्दों की लेखनी को भी
सम्मानित किया गया । काव्य कुटुम्ब से जुड़े कई राज्यों के प्रतिनिधि एवम् युनाइटेड इंडिया के श्री वाई के मिश्रा,
श्री रवि त्रिपाठी तथा कई गणमान्य व्यक्ति भी इस आयोजन में उपस्थित थे ।
काव्य कुटुम्ब के इस साहित्यिक आयोजन से नई पीढ़ी के नवांकुरों को काव्य से जुड़ने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ ।
उनकी कविताओं में साहित्य, देशप्रेम, संस्कृति संयोजन और सौहार्द्र का मिठास देखने को मिला । हम काव्य कुटुम्ब
संस्था को इस साहित्यिक सोच और उसके क्रियान्वयन के लिए साधुवाद करते हुए शुभकामना देते हैं कि उनका यह साहित्यिक
लगाव अविरल गतिमान रहे और कविता के नवांकुर समाज में उगते रहें । अंत में इस संस्था की हिम्मत को नमन करते हुए कहना
होगा -
तेरी हिममत तेरे साथ रहे,
विजय पताका तेरे हाथ रहे,
दस्तक देता उपहार लिए,
कर नव प्रभात अभिनंदन तू,
कर खुद अपना संचालन तू ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.02.2020
मीठी 419 : मां से बढ़कर कौन ?
माँ को याद करने के लिए एक विधा काव्य भी है । मां को याद करने के लिए किसी खास दिन की प्रतीक्षा भी क्यों हो ?
मातृ - पितृ स्मरण तो हर सांस में होना चाहिए । काव्यांजलि के माध्यम से याद करना या श्रद्धांजलि अर्पित करना सुकून
देता है । माँ के बारे में जितना अधिक कहा जाय वह कम है । कुछ छंद प्रस्तुत हैं -
स्नेह वात्सल्य ममता करुणा की
सबसे सुंदर सूरत तू,
त्याग तपस्या स्व-अर्पण की
जीती-जागती मूरत तू ।
जग सेवा में तत्पर माँ की
सेवा कहाँ कोई कर पाया,
जग से गई सिधार जिस दिन
त्याग स्मरण उसका आया ।
अंतिम क्षण तक थकी नहीं तू
सेवा जग की करती रही,
जग के उजियारे के खातिर
सदा दीप सी जलती रही ।
माँ के कर्ज से महीं में कोई
उऋण नहीं हो सकता है,
आँचल की उस अमृत बूंद का
मोल चुका नहीं सकता है ।
( मेरा हिंदी कविता संग्रह "स्मृति - लहर" की कविता 'माँ से बढ़कर कौन' से उधृत ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.02.2020
मीठी मीठी - 416 : वसंत की महक
कवियों ने खूब कहा वसंत
संगीत में झूम बहा वसंत,
मादक बन कर ऋतुराज खड़ा
वीरों के पाग बंधा वसंत उन ।
भव्य प्रकृति का अच्छादन
नाचे धरती इठलाये गगन,
हुई वसुंधरा पल्लवित पुष्पित
बिछ गयी रंगोली वन उपवन ।
वसंती चादर ओड़ खड़ी
पीली सरसों उल्लास जड़ी,
बौराती हलचल चहक उठे
एक छटा निराली निखर पड़ी ।
कोयल की कूक में छाये वसंत,
फूलों पर रंग बिखराये वसंत,
कलियों पर भौंरे मंडराए, तितली संग उड़कर आया वसंत ।।
तरु पर नई कोपलें खिली,
मुस्काने लगी नन्हीं सी कली,
चहूं वसंती यौवन देख,
मदमाती वसंती बयार चली ।
कवियों ने खूब कहा वसंत, संगीत में झूम बहा वसंत, मादक बन कर ऋतुराज खड़ा,
वीरों के पाग बंधा वसंत ।
( यादों की कलिका से...)
(वसंत पंचिमी की शुभकामनाएं । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.01.2020
बिरखांत - 303 : गांधी को क्यों नहीं मिला ‘नोबेल पुरस्कार’ ?
( आज 30 जनवरी बापू के शहीदी दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि । )
मोहन दास करम चन्द गांधी (महात्मा गांधी, बापू, राष्ट्रपिता) का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ |
उनकी माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम करम चन्द था | 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ |
गांधी जी 18 वर्ष की उम्र में वकालत पढ़ने इंग्लैण्ड गए | वर्ष 1893 में वे एक गुजराती व्यौपारी का मुकदमा लड़ने
दक्षिण अफ्रीका गए |
दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने रंग- भेद निति का विरोध किया | 7 जून 1893 को गोरों ने पीटरमैरिटजवर्ग रेलवे स्टेशन पर
उन्हें धक्का मार कर बाहर निकाल दिया | वर्ष 1915 में भारत आने के बाद उन्होंने सत्य, अहिंसा और असहयोग को हथियार
बनाकर अन्य सहयोगियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और देश को अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र कराया | 30 जनवरी
1948 को नाथूराम गौडसे ने नयी दिल्ली बिरला भवन पर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी | इस तरह अहिंसा का पुजारी क्रूर
हिंसा का शिकार हो गया | देश की राजधानी नयी दिल्ली में राजघाट पर उनकी समाधि है |
पूरे विश्व में महात्मा गांधी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है | संसार में बिरला ही कोई देश होगा जहां बापू के
नाम पर कोई स्मारक न हो | परमाणु बमों के ढेर पर बैठी हुयी दुनिया भी गांधी के दर्शन पर विश्वास करती है और उनके
बताये हुए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करती है | विश्व की जितनी भी महान हस्तियां हमारे देश में आती हैं वे राजघाट पर
बापू की समाधि के सामने नतमस्तक होती हैं | इतना महान व्यक्तित्व होने के बावजूद भी विश्व को शान्ति का संदेश देने
वाले इस संदेश वाहक को विश्व में सबसे बड़ा सम्मान कहा जाने वाला ‘नोबेल पुरस्कार’ नहीं मिला | क्यों ?
नोबेल पुरस्कार’ प्रदान करने वाली नौरवे की नोबेल समिति ने पुष्टि की है कि मोहनदास करम चन्द गांधी नोबेल शांति
पुरस्कार के लिए 1937, 1938, 1939, 1947 और हत्या से पहले जनवरी 1948 में नामांकित किये गए थे | बाद में पुरस्कार
समिति ने दुःख प्रकट किया कि गांधी को पुरस्कार नहीं मिला | समिति के सचिव गेर लुन्देस्ताद ने 2006 में कहा, “
निसंदेह हमारे 106 वर्षों से इतिहास में यह सबसे बड़ी भूल है कि गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला | गांधी को
बिना नोबेल के कोई फर्क नहीं पड़ा परन्तु सवाल यह है कि नोबेल समिति को फर्क पड़ा या नहीं ?”
1948 में जिस वर्ष गांधी जी शहीद हुए नोबेल समिति ने उस वर्ष यह पुरस्कार इस आधार पर किसी को नहीं दिया कि ‘कोई भी
योग्य पात्र जीवित नहीं था |’ ऐसा माना जाता है कि यदि गांधी जीवित होते तो उन्हें बहुत पहले ही ‘नोबेल शांति’
पुरस्कार प्रदान हो गया होता | महात्मा गांधी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ भी नहीं दिया गया
क्योंकि वे इस सम्मान से ऊपर हैं |
सत्य तो यह है कि अंग्रेज जाते- जाते भारत का विभाजन कर गए | गांधी जी ने विभाजन का अंत तक विरोध किया | जिन्ना की
महत्वाकांक्षा ने तो विभाजन की भूमिका निभाई जबकि भारत के विभाजन के बीज तो अंग्रेजों ने 1909 में बोये और 1935 तक
उन बीजों को सिंचित करते रहे तथा अंत में 1947 में विभाजन कर दिया | भारत में राम राज्य की कल्पना करने वाले गांधी,
राजनीतिज्ञ नहीं थे बल्कि एक संत थे | गांधी को ‘महात्मा’ का नाम रवीन्द्र नाथ टैगोर ने और ‘राष्ट्रपिता’ का नाम
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सम्मान के बतौर सुझाया था | आज भी दुनिया कहती है कि गांधी मरा नहीं है, वह उस जगह
जिन्दा है जहां दुनिया शांति और अमन-चैन की राह खोजने के लिए मंथन करती है |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30 जनवरी 2020
मीठी मीठी - 414 : राखी और गुलदाड़
वीरता की पराकाष्ठा तब होती है जब कोई अपनी जान की परवाह किए बिना कर्तव्य की ललकार को सुनता है । स्वयं की जान की
बाजी लगाकर गुलदार के हमले से भाई की जान बचाने वाली उत्तराखंड की बहादुर बेटी राखी रावत को सामाजिक सरोकारों के लिए
प्रतिबद्ध संस्था 'नई पहल नई सोच ' ने नई दिल्ली में सम्मानित किया। संस्था के संस्थापक और वरिष्ठ अधिवक्ता एवं समाज
सेवी संजय दरमोड़ा ने राखी रावत एवं उनके पूरे परिवार को दिल्ली में सम्मानित किया। इस अवसर पर दरमोड़ा ने कहा पहाड़
की इस बहादुर बेटी ने अपनी बहादुरी से न केवल अपने छोटे भाई की जान बचाई बल्कि विश्व पटल पर उत्तराखंड का नाम रोशन
किया।
दस वर्षीय राखी रावत को गणतंत्र दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार द्वारा अन्य 21 वीरता पुरस्कार
विजेता बच्चों के साथ राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गर्व महसूस करते हुए अधिवक्ता संजय शर्मा
दरमोडा ने कहा कि हमें अपने बहादुर बच्चों पर गर्व है। हमने निर्णय लिया है कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का
शुभारंभ इस वीर बालिका को सम्मानित कर किया जाएगा। इस मौके पर मौजूद राखी के माता जी ने कहा कि राखी ने उन्हें एक नई
पहचान दिलाई है। हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी बेटी को एक दिन इतना सम्मान मिलेगा। हम आदरणीय संजय
दरमोड़ा एवं नई पहल नई सोच के सभी कार्यकर्ताओं का आभार प्रकट करते है कि आप सब ने हमें इतना सम्मान दिया।
बाल्यकाल में अदम्य साहस से सराबोर राखी और गुलदार की कहानी कुछ इस तरह है - पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल ब्लॉक के देव
कुंडई गाँव निवासी राखी रावत पुत्री दलवीर सिंह रावत चार अक्टूबर 2019 को अपने चार साल के भाई राघव और मां के साथ
खेत में गई थी। खेत से घर लौटते समय गुलदार ने राखी के भाई पर हमला किया, भाई को बचाने के लिए राखी उससे लिपट गई थी।
आदमखोर गुलदार के लगातार हमले से लहूलुहान होने के बाद भी राखी ने भाई को नहीं छोड़ा जिस पर राखी की मां के चिल्लाने
की आवाज से गुलदार भाग गया था। राखी की इस बहादुरी के लिए राखी को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के तहत मार्कंडेय
पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारतीय बाल कल्याण परिषद (आईसीसीडब्ल्यू ) की ओर से दिल्ली में आयोजित भव्य समारोह
में राखी को यह पुरस्कार असम राइफल्स के ले. कर्नल रामेश्वर राय के करकमलों से दिया गया।
(संपादित लेखांश सोसल मीडिया से साभार ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.01.2020
खरी खरी - 554 : क्या-क्या बांटोगे ?
राजनीति के हाट में
बंट गए भगवान
देखा नहीं था आजतक
ऐसा अद्भुत ज्ञान,
ऐसा अद्भुत ज्ञान
बांटो सूरज चांद सितारे,
धरती जल आकाश बांटो
बांटो प्रकृति नजारे,
जात धर्म संप्रदाय की
क्यों रचे चुनाव रणनीति ?
मुद्दों से मत भटको नेता
करो जनहित राजनीति ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.01.2020
मीठी मीठी -415 : हमारे बहादुर बच्चे
हमारे देश में प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर 'राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार' भारतीय बाल कल्याण परिषद ( वर्ष
2019 के गणतंत्र दिवस से यह सम्मान महिला और बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत ) द्वारा वर्ष 1957 से प्रधानमंत्री के
हाथ से प्रदान किये जाते हैं । प्रत्येक राज्य में परिषद की शाखा है । प्रतिवर्ष 1 जुलाई से 30 जून के बीच 6 वर्ष से
बड़े और 18 वर्ष से छोटी उम्र के वे बच्चे ग्राम पंचायत, जिला परिषद, प्रधानाचार्य, पुलिस प्रमुख एवं जिलाधिकारी की
संस्तुति के बाद परिषद की राज्य शाखा को आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए दूसरों की जान
बचाई ।
इस पुरस्कार के लिये पुलिस रिपोर्ट एवं अखबार की कतरन प्रमाण के बतौर होनी चाहिए । 1957 से 2019 तक यह पुरस्कार 1006
बहादुर बच्चों को प्रदान किया गया जिनमें 705 लड़के और 301 लड़कियां हैं । पुरस्कार में चांदी का पदक, नकद राशि,
पुस्तक खरीदने के वाउचर और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है । सर्वोच्च बहादुरी के लिए स्वर्ण पदक और विशेष बहादुरी के
लिए भारत पुरस्कार, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा सुर बापू गयाधानी पुरस्कार दिया जाता है । ये बच्चे गणतंत्र दिवस परेड
में भाग लेते हैं और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं ।
इस वर्ष के( वर्ष 2019 के पुरस्कार ) गणतंत्र के ये पुरस्कार 22 बहादुर बच्चों को प्रदान किया गया जिनमें 1
मरणोपरांत हैं । इन बच्चों में 12 लड़के और 10 लड़कियां देश के 12 विभिन्न राज्यों के हैं जिनमें 10 वर्ष की राखी
उत्तराखंड की है जिसने गुलदाड़ से अपने भाई को बचाया । इस वर्ष गणतंत्र दिवस परेड में ये बच्चे जीपों में बैठकर
राजपथ से गुजर रहे थे । देश में अपने अपने राज्य का नाम ऊँचा करने वाले इन बहादुर बच्चों को बहुत-बहुत बधाई और
शुभकामनाएं । हमें अपने बच्चों से इस पुरस्कार की चर्चा अवश्य करनी चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.01.2020
बिरखांत- 302 : 71वां गणतंत्र दिवस – संकल्प करने का दिन
प्रतिवर्ष जनवरी महीने में चार विशेष दिवस एक साथ मनाये जाते हैं | 23, 24, 25 और 26 जनवरी | 23 को नेताजी सुभाष
जयंती, 24 को राष्ट्रीय बलिका दिवस ( इस दिन 1966 में श्रीमती इंदिरा गाँधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थी
), 25 को मतदाता जागरूकता दिवस और 26 को 1950 में हमारा संविधान लागू हुआ था | वर्ष 2016 से 22 जनवरी को ‘बेटी बचाओ
और बेटी पढ़ाओ’ दिवस भी मनाया जाने लगा है | (इस बार शायद मनाना भूल गए ।) हमने विगत 70 वर्षों में बहुत कुछ पाया है
और देश में विकास भी हुआ है परन्तु बढ़ती जनसंख्या ने इस विकास को धूमिल कर दिया | 70 वर्ष पहले हम 43 करोड़ थे और आज
132 करोड़ हैं अर्थात उसी जमीन में 89 करोड़ जनसंख्या बढ़ गई |
हमने मिजाइल बनाए, ऐटम बम बनाया, अन्तरिक्ष में धाक जमाई, कृषि उपज बढ़ी, साक्षरता दर जो तब 2.55% थी अब 74.1% है |
रेल, सड़क, वायुयान, उद्योग, सेना, पुलिस, अदालत आदि सब में बढ़ोतरी हुई | इतना होते हुए भी हमारी लगभग 25 % जनसंख्या
गरीबी रेखा से नीचे है जिनकी प्रतिदिन की आय पचास रुपए से भी कम बताई जाती है | देश की सभी जनता के पास अभी भी
शौचालय नहीं हैं | कई स्कूलों और आगनबाड़ी केन्द्रों में पेय जल नहीं है और दूर-दराज में कई जगह अभी बिजली नहीं
पहुँची है | प्रतिवर्ष हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं | अदालतों में करीब तीन करोड़ से भी अधिक मामले लंबित हैं
और एक केस सुलझाने में कई वर्ष लग जाते हैं | ब्रेन ड्रेन भी नहीं थमा है |
विदेशों की नजर में हम निवेश के लिए सुरक्षित नहीं हैं | 187 देशों में हमारा नंबर 169 है अर्थात उनकी नजर में 168
देश उनके लिए हमसे अधिक सुरक्षित हैं | विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में हमारा नाम नहीं है | बताने के लिए
तो बहुत कुछ है जिससे मनोबल को ठेस लगेगी | प्रतिवर्ष राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड हमारा मनोबल बढ़ाती है | हमारे
सुरक्षा प्रहरी हिम्मत और शक्ति के परिचायक हैं जो सन्देश देते हैं कि हमारी सीमाएं सुरक्षित और चाकचौबंद हैं | हमें
अपने देश में ईमानदारी के पहरुओं पर भी गर्व है | हम अभी विकासशील देश हैं क्योंकि हमारे पास विकसित देशों जैसा बहुत
कुछ नहीं है |
भारत को विकसित राष्ट्र बनने में देर नहीं लगेगी यदि ये मुख्य चार दुश्मनों – भ्रष्टाचार, बेईमानी, अकर्मण्यता और
अंधविश्वास से उसे निजात मिल जाय | इसके अलावा नशा, आतंकवाद, अशिक्षा, गरीबी, गन्दगी और साम्प्रदायिकता भी हमारी
दुश्मनों की जमात में हैं | यदि हम इन दस दुश्मनों को जीत लें तो फिर भारत अवश्य ही सुपर पावर समूह में शामिल हो
सकता है | इन दुश्मनों की चर्चा हमारे राष्ट्र नायकों सहित देश के कई प्रबुद्ध नागरिकों ने पहले भी कई बार की है और
आज भी हो रही है | आइये इस गणतंत्र पर संकल्प करें और इन सभी दुश्मनों को जड़ से उखाड़ फेंकने में सहयोग करते हुए देश
को महाशक्ति समूह में शामिल करें | आप सबको 71वे गणतंत्र दिवस की बधाई |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.01.2020
मीठी मीठी - 413 : बालिका दिवस - सार्वभौमिक संस्था द्वारा
24 जनवरी 2020 को सायं 5 बजे गढ़वाल भवन नई दिल्ली में सार्वभौमिक संस्था दिल्ली द्वारा हर वर्ष की भांति इस वर्ष
भी राष्ट्रीय बालिका दिवस के सुवसर पर " आह्वान 2020 " (सशक्त बेटी सशक्त समाज) का दीप प्रज्वलन के साथ आयोजन किया
गया । इस अवसर पर मुख्य कार्यक्रम थे - नौनी विषय पर कविता पाठ, तनाव प्रबन्धन /किशोरावस्था परिवर्तन पर वार्ता
द्वारा वार्ताकार - प्रोफेसर मोनिका रिखी (दिल्ली विश्वविद्यालय ) एवम् प्रोफेसर सुनिता देवी, प्रस्तुती डा॰ हिमानी
बिष्ट (फिजियोथेरेपिष्ट व योगाथेरेपिष्ट ) एवम् कु. स्तुती दत्त । संगीत निर्देशनक राकेश गुसांई , नृत्य निर्देशक
लक्ष्मी रावत पटेल, शास्त्रीय गायिका मधुबेरिया बिष्ट शाह ने सुंदर कार्यक्रम प्रस्तुत किया ।
सुश्री संस्कृति गैरोला की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम आरम्भ हुआ जिसमें दिवंगत डॉ विमल, मीरा गैरोला और हेमा गुसाईं
को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई । इस आयोजन में सर्वश्री ब्रह्मानंद कंगड़ीयाल, रमेश घिल्डियाल और डॉ सतीश
कालेश्वरी ने काव्य पाठ किया । प्रोफेसर रिखी एवम् प्रो. दत्त ने स्ट्रेस मैनेजमेंट (अवसाद मुक्ति ) पर सुरुचिपूर्ण
वक्तव्य दिया और कई प्रश्नों के उत्तर दिए । आयोजन में कई साहित्यकार, कवि, पत्रकार, राजनीतिज्ञ एवम् गणमान्य
व्यक्ति उपस्थित थे जिन्होंने बालिका दिवस के इस कार्यक्रम को देखा । सभागार में सर्वश्री के सी पांडे, देवेन्द्र
जोशी, पूरन चन्द्र कांडपाल, पत्रकार सुनील नेगी, चारु तिवारी, सत्येन्द्र रावत, गायक जगदीश ढौंढियाल, अनिल पंत,
सुश्री करुणा भट्ट, प्रेमा धोनी, मधु बेरिया बिष्ट शाह, संगीतकार - गायक सर्वेश्वर बिष्ट आदि कई समाज से जुड़े हुए
लोग इस अवसर पर मौजूद थे । कार्यक्रम संचालन संस्था के अध्यक्ष अजय बिष्ट ने किया । इस सफल आयोजन के लिए सार्वभौमिक
की पूरी टीम को साधुवाद और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.01.2020
मीठी मीठी - 412 : आज बालिका दिवस
आज 24 जनवरी 'बालिका दिवस' छ । आजक दिन 1966 में दिवंगत प्रधानमंत्री 'भारत रत्न' इंदिरा गांधी देशकि पैली महिला
प्रधानमंत्री बनी । तब बटि य दिन कैं 'बालिका दिवस' क रूप में मनाई जांछ । इन्दिरा ज्यूक बार में किताब "लगुल'' बै
याँ लेख उधृत छ । बालिका दिवस कि बधै और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.01.2020
मीठी मीठी - 411 : नेताजी सुभाष बोस जयंती
आज 23 जनवरी स्वतंत्रता आन्दोलनक अमर सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ज्युकि जयंती छ । "लगुल" किताब बै उनार बार में
लेख उधृत छ । देश कैं "जयहिन्द" नारा दिणी नेताज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.01.2020
खरी खरी - 553 : अणदेखी नि करो नना कैं
बेई चनरदा मिलीं और अच्यालाक ननाक बार में कुछ ज्यादै चिंता में डुबि रौछी | बतूण लागीं, “ के कई जो हो महाराज हम
आपण नना देखि डरै फै गोयूं और डरा मारि हमूल नना हैं के लै कौण छोड़ि हालौ | हर दुसार दिन खबर मिलीं या टी वी में हम
देखनूं कि इज या बौज्यूकि डांट पड़ण पर फलाण नान घर बै भाजि गो या फंद पर लटकि गो | य डराक वजैल हमूल लै नना हैं के
कौण छोडि है जो भलि बात न्हैति | हमूल नना कैं टैम दीण चैंछ | प्यारल समझै बेर लै नान मानि जानी पर य काम बिलकुल
नानछिना यानै शैशव काल बै शुरू हुण चैंछ | जता लै हमू कैं नना में क्वे लै अवगुण नजर ओ, हमूल धृतराष्ट्र या गांधारी
नि बनण चैन | दुर्योधनाक अवगुणों कैं वीक इज- बौज्यूल देखीयक अणदेखी करि दे | उनूल गुरु द्रोणाचार्यकि बात कैं लै
अणसुणी करि दे |
जब लै क्वे हमूं हैं हमार नना कि बुराई करनी हमूल नक् मानणक बजाय चुपचाप विकि बात कैं जाचण –परखण चैंछ | कम उमराक
नान लै हमार दिई मोबाइल या कंप्यूटर पर उत्तेजनात्मक दृश्य देखें रईं | देश में 13 साल है कम उम्र क 76 % नान रोज यू
ट्यूब में वीडियो देखें रईं जनूल आपण अभिभावकों कि इजाजत ल आपण एकाउंट बनै रौछ | ननाकि भाषा लै गन्दी या अशिष्ट है
गे | ऊँ आपण आम-बुबू कैं लै के नि समझन और नै उनरि सुणन | उनू कैं घर का खाण लै भल नि लागन | ऊँ चाउमिन, मोमोज,
बर्गर, चिप्स, फिंगर फ्राई और बोतल बंद पेयल म्वाट लै हूं फैगीं या उनरि तंदुरुस्ती बिगड़ण फैगे | घर में लै हाम नना
पर के खाश अनुशासन नि लगून और उनुकें ज्यादै पुतपुतै दिनू | रतै उठण बटि रात स्येतण तक नना लिजी टैमक कैद-क़ानून हुण
चैंछ | खेल और टी वी पर एक-एक घंट है ज्यादै टैम दींण ठीक न्हैति | 15 अगस्त या 26 जनवरी कि छुट्टी देर तक स्येतणक
लिजी नि हुनि बल्कि जल्दि उठि बेर य दिन कैं मनूणक लिजी हिंछ |
कुछ लोग आपण अवयस्क लाडलों कैं स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चलूणकि खुलि छूट दीं रईं | गली-मुहल्ल में अक्सर यौ दृश्य
हाम देखैं रयूं | अवयस्क लाड़िल आपण वाहन ल नजीक में खेलणी नना कैं कुचलि द्युछ | कैकै निर्दोष नान मारी गाय और य
लाड़िल कैं सजा लै नि हुनि क्यलै कि उ अवयस्क मानी जांछ | रात में यूं जोर जोरैल हॉर्न बजै बैर लोगों कैं परेशान करि
बेर उड़नछू है जानी | पुलिस सब चैरीं पर चुप भैटी रैंछ | यास ननाक अभिभावकोंक लेसंस रद्द हुण चैंछ | हालकि रिपोटक
अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में हमार देश में हर साल डेड़ लाख बेक़सूर लोग मारी जानी और तीन लाख लोग घैल है जानी | य संख्या
में अवयस्क लाडलों द्वारा मारी गईं निर्दोष लोग लै शामिल छीं |
नना दगै देशप्रेम और शहीदोंकि चर्चा लै हुण चैंछ | हमूल आपण नना क व्यवहार, बोलचाल, संगत, आदत, आहार और स्वच्छता पर
जरूर नजर धरण चैंछ | अगर शुरू बटि अनुशासन ह्वल तो अघिल जै बेर डांटणक सवाल पैद नि हवा | नना दगै अभिभावकोंक मित्रवत
व्यवहारल उनर भविष्य भल रांछ और नान एक समझदार नागरिक बननी | तो अंत में य कूण चानू कि आपण नना लिजी टैम जरूर
निकालिया नतर एक दिन पछताण पड़ि सकूं |”
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.01.2020
खरी खरी - 551 : डॉ गंगा प्रसाद विमल स्मरण
28 जनवरी 2020 को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में गढ़वाल हितैषीणी सभा (पं) दिल्ली द्वारा सुप्रसिद्ध हिंदी लेखक/कवि
दिवंगत डॉ गंगा प्रसाद विमल (3 जून 1939 - 23 दिसंबर 2019 ) के स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई । डॉ
विमल एक कालजई रचनाकार थे जिन्होंने 5 उपन्यास, 12 कविता संग्रह, 11 लघु कहानी संग्रह, 8 गद्य पुस्तकें, 7 संपादित
संग्रह और कई साहित्यिक पत्रिकाओं में कई निबन्ध लिखे । उनके साहित्य सृजन के लिए उन्हें कई सम्मान भी प्रदान किए गए
जिनमें पोयट्री पीपल प्राइज, कला विश्व विद्यालय, रोम का डिप्लोमा गोल्ड मैडल, नेशनल म्यूजियम ऑफ लिट्रेचर, सोफिया,
दिनकर पुरस्कार, इंटरनेशनल ओपन स्काटिश पोयट्री प्राइज,भारतीय भाषा पुरस्कार, महात्मा गांधी सम्मान आदि मुख्य हैं
।
स्मृति सभा में कई गणमान्य व्यक्ति आए थे जिनमें कई साहित्यकार, कवि, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, डॉ विमल के शिष्य और
समकालीन सखा मौजूद थे । सुश्री मधु बैरिया साह की स्वरांजलि के बाद जिन वक्ताओं ने डॉ विमल को अपने शब्दों से
शब्दांजलि अर्पित की उनमें मुख्य थे - सर्वश्री प्रो.हरेंद्र अस्वाल, मोहबत सिंह राणा, उपेन्द्र नाथ, डॉ राजा
कुखशाल, डॉ हेमा उनियाल, विमल गोयल, डॉ एस पी सेमवाल, पूरन चन्द्र कांडपाल, निखिल विमल (अमेरिका से केलिफोर्निया
निवासी डॉ विमल के पौत्र ), सुश्री सुनीति, डॉ पी एस केदारखंडी, डॉ पुष्पलता भट्ट, डॉ कुसुम नौटियाल, रमेश
घिल्डियाल, डॉ हरि सुमन बिष्ट, पं महिमा नंद द्विवेदी, जगदीश ढौंढियाल, प्रदीप पंत, जोत सिंह बिष्ट, डॉ रेखा व्यास
और पद्मश्री डॉ श्याम सिंह शशि । स्मृति सभा का संचालन डॉ पवन मैठाणी ने किया ।
डॉ विमल का 23 दिसंबर 2019 को श्रीलंका में एक कार दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया था । इस दुर्घटना में डॉ विमल
की बहू और पोते का भी निधन हो गया । डॉ विमल एक प्रकृति प्रेमी हिमालयन श्रृद्धा से परिपूर्ण स्पष्ट एवम् जमीन से
जुड़े हुए कालजई लेखक थे जिन्हें अनंत तक याद किया जाएगा । दिवंगत डॉ विमल को पुनः विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.01.2020
मीठी मीठी - 410 : 'हमरि भाषा हमरि पछ्याण'
म्येरि नईं किताब 'हमरि भाषा हमरि पछ्याण' कएक लोगों कैं भलि लागी । कुमाउनी में य म्येरि 12उं किताब छ । नना कैं
हमरि भाषा सिखूणक य किताब में म्यर एक प्रयास छ । किताब में पैल पाठ 'स्वर' बटि शुरू हुंछ । व्यंजन, बारहखड़ी, गिनती,
पहाड़, फल- फूल, साग-सब्जि, अनाज, फसल, कहाण, मसाल, भोजन, लात-लुकुड़, जेवर, चाड़, किड़- मकौड़, पशु, रिश्त-नात, शरीरक
अंग, त्यार, महैण, ऋतु, मौसम, राज्यक प्रतीक, उत्तराखंड राज्य, भाषा, गैरसैण, ऐतिहासिक तारिक, खाश दिवस आदि विषयों
पर य किताब में चर्चा छ । दिल्ली में हमरि भाषा सिखलाई कक्षाओं में कएक संस्थाओंल य किताब नना तक पुजै ।
किताब में व्याकरणकि सूक्ष्म जानकारीक साथ 30 लघुलेख लेख (हिंदी अनुवादक साथ), 10 अनुच्छेद, 10 कहानि, 6 चिठ्ठी समेत
अन्य भौत कुछ छ य किताब में । सबै शब्दोंक हिंदी अनुवाद लै दगाड़ में छ । किताबक प्रकाशक छीं - 'कुमाउनी भाषा,
साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी, पोस्ट डीनापानी अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।' 104 पृष्ठोंकि य किताबकि पेपर
बैक कीमत ₹ 120/- ( ₹ 20/- कि छूट पर ₹ 100/-) छ । किताब मोब.9871388815 /8076325807 पर उपलब्ध छ । किताब रावत
डिजिटल किताब विक्रेता दिल्लीक पास लै मिलि सकीं)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.01.2020
खरी खरी - 550 : गैरसैण नहीं बनी, अमरावती बन गई
देश का 29वां राज्य तेलंगाना 2 जून 2015 को घोषित हुआ । इसकी राजधानी हैदराबाद घोषित हुयी । आंध्रा के लिए नयी
राजधानी अमरावती तय हुयी जिसका निर्माण कार्य जोरों पर है । हमारे राज्य को बने हुए 19 वर्ष हो गए । इस दौरान यहां 8
मुख्यमंत्री बने परंतु राजधानी गैरसैण तय होने के बाद भी अभी तक देहरादून में अटकी है । अभी तक गैरसैण को राजधानी
घोषित भी नहीं किया गया है । तेलंगाना में 11 अक्टूबर 2016 को 21 नए जिले भी अस्तित्व में आ गए हैं । उत्तराखंड में
4 जिले घोषित हुए एक अरसा बीत गया परंतु अस्तित्व अभी दूर है । हम कुछ तो तेलंगाना-आंध्र प्रदेश से सीखें । हमें
शायद बुसिल ढुंग इसीलिये कहने लगे हैं लोग ।
क्या गैरसैण राजधानी के लिए एक आंदोलन की आवश्यकता पड़ेगी ? उनका सिंगल इंजन और इनका डबल इंजन शक्तिहीन हो गए हैं ।
राजधानी की कोई बात ही नहीं करता । अब जनता को सोचना है । पलायन रोकने और उत्तराखंड में विकास को गति देने के लिए
राजधानी का गैरसैण कूच नितांत आवश्यक है । राज्य आंदोलन के 42 शहीदों ने भी राजधानी गैरसैण ही तय की थी और इसके लिए
अपना बलिदान दिया था । पलायन से विगत 10 वर्षों में करीब 5 लाख लोग राज्य से पलायन कर गए । गैरसैण राजधानी बनती तो
पलायन अवश्य थमता । 2019 का चुनाव भी 'राजधानी गैरसैण' बनाने का मुद्दा नहीं बन सका । एक बेहतरीन राज्य की कल्पना
सपने में ही रह गई । कब बसंत आएगा गैरसैण के लिए ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.01.2020
मीठी मीठी - 409 : उत्तरैणी सांस्कृतिक आयोजन बुराड़ी और अवंतिका रोहिणी दिल्ली
15 जनवरी 2020 हुणि देशकि राजधानी दिल्ली में कएक जाग उत्तरैणी सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करी गईं । द्वि जाग
भागीदारी करणक मौक मिलौ । पैल आयोजन बुराड़ी कौशिक एंक्लेव पार्ट - II में गंगोत्री सामाजिक संस्था (पं ) दिल्ली
द्वारा आयोजित छी । यां सांस्कृतिक आयोजन में कलाकारोंक दगाड़ सहभागिता में मुख्य छी सर्वश्री पूरन सुंदरियाल, हरीश
नौटियाल, राजकुमार आर्या और राकेश नेगी (संचालन ) । य कार्यक्रम में कुमाउनी - गढ़वाली कवि सम्मेलन लै आयोजित करिगो
जमें सर्वश्री पूरन चन्द्र कांडपाल, जयपाल सिंह रावत, कुंज विहारी मुंडेपी और गिरीश भावुक मुख्य कवि छी । श्री गंभीर
सिंह नेगी और उनरि टीम में सर्वश्री लाखी राम डबराल, धर्मपाल कुमैई, गबर सिंह गुसाई, राकेश नेगी समेत कएक सामाजिक
कार्यकर्ता जुड़ी छी । कुमाऊनी - गढ़वाली कवि सम्मेलन कैं आयोजन में शामिल करणी संस्था कि सोच कैं साधुवाद ।
उत्तरैनी त्यारक दुसर कार्यक्रम देवभूमि उत्तराखंड धार्मिक - सांस्कृतिक विकास संगठन (पं ) अवंतिका रोहिणी दिल्ली
द्वारा डीडीए कम्यूनिटी सेंटर सेक्टर 3, रोहिणी दिल्ली में आयोजित करिगो । यां श्रीमती देवकी शर्माक निर्देशन में
दिव्य कला संगम संस्था दिल्लीक कलाकारों द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत करिगो जमें मुख्य भूमिका निभूणी छी निर्देशक
श्रीमती देवकी शर्मा, मोहन मिश्रा, प्रकाश काल्हा आदि । कार्यक्रम आयोजित करणी टीम में मुख्य छी सर्वश्री एन डी
लखेड़ा, भूपाल सिंह बिष्ट, प्रदीप जोशी समेत उनरि पुरि टीम । वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सर्वश्री के एस बिष्ट, प्रेम
सिंह बिष्ट, निगम पार्षद अनेश जैन, तारा दत्त पांडे, डॉ बी सी लोहनी, समेत य सफल आयोजन में कएक गणमान्य व्यक्ति
मौजूद छी ।
द्विए आयोजनों में बागसर में 13 जनवरी 1921 हुणि उतरैणीक दिन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नरक सामणि कुमाऊं केशरी बद्री दत्त
पांडे ज्यूक कूण पर ‘कुली बेगारा’ क सब रजिस्टर वां संगम में बगूण और उ दिन बै उत्तराखंड में ‘कुली बेगार’ (बिना
मजूरी दिए जोर-जबरदस्ती वांक लोगों हैं बै ब्वज / डोलि / कमोड उठौण ) क कलंक और अंग्रेजोंक जुल्म ख़तम हुण, य प्रसंग
कि चर्चा लै हैछ । द्विए आयोजनों में भौत लोग मौजूद छी जमें नारी शक्ति, नानतिन और कएक कीर्तन मंडलीक सदस्य लै
भागीदार रईं । भौत भल सांस्कृतिक प्रस्तुति दिणी यूं द्विए आयोजनों कि पुरि टीम, कलाकार और दर्शकों समेत सबै मितुरों
कैं उतरैणी कि भौत भौत शुभकामना |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.01.2020
मीठी मीठी - 408 : 15 जनवरी, सेना दिवस
आज के दिन 1949 में भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ जनरल के एम करिअप्पा बने थे । तब से प्रतिवर्ष 15 जनवरी को सेना
दिवस मनाया जाता है । एक बार जो सैनिक बन जाता है वह हमेशा ही अपने को सैनिक समझता है । ऐसा सभी पूर्व सैनिक सोचते
हैं । मुझे वह क्षण याद आता है जब आज से 48 वर्ष पूर्व हमने अपने साथियों के साथ 3 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 में 14
दिन की लड़ाई में पश्चिमी और पूर्वी सीमा पर दुश्मन से घुटने टिकवाये थे । तब मेरी उम्र 23 वर्ष थी । इस युद्ध में
जीत के बाद राष्ट्र ने युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों को पश्चिमी और पूर्वी स्टार प्रदान किये थे । उस पश्चिमी
स्टार को देखकर उन क्षणों की याद ताजा कर लेता हूँ । सेना दिवस के अवसर पर सभी को शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15 जनवरी 2020
बिर- 301 : उतरैणी/मकरैणी/मकर संक्रांति/उतरायण (उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत)
प्रतिवर्ष 14 (इस वर्ष 15 को ) जनवरी को उतरैणी /मकरैणी/मकर संक्रांति उत्तराखंड सहित देश के कई राज्यों में बड़ी
धूमधाम से मनाई जाती है | पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है जो एक खगोलीय घटना
है जिसे ‘संक्रमण’ या ‘संक्रांति’ कहा जाता है | इस दिन से ही शिशिर ऋतु का माघ महीना आरम्भ होता है | यह त्यौहार
पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है | उत्तराखंड में ‘उतरैणी’ या ‘मकरैणी’ या ‘मकर संक्रांति’ के नाम से,
असम में ‘बीहू’, हिमाचल-जम्मू-कश्मीर-पंजाब में लोहड़ी, बंगाल में ‘संक्रांति’, तमिलनाडु में ‘पोंगल’, उत्तरप्रदेश
में ‘संकरात’, बिहार-पूर्वी उत्तरप्रदेश में ‘खिचड़ी’, गुजरात में ‘उतरायण’, ओडिशा में ‘मित्रपर्व’, तथा महाराष्ट्र
में ‘तिलगुल’ आदि |
इस दिन लोग नदियों में किये गए स्नान को पुण्य मानते हैं और पाप कटने की बात करते हैं | केवल स्नान करने से पुण्य
कैसे मिल जाएगा और पाप कैसे कट जाएगा, यह एक श्रध्दा की बात है | पाप तो तब कटेगा जब उसका प्रायश्चित हो और उस पाप
कर्म की पुनरावृति नहीं हो | पुण्य तब मिलेगा जब हम नदी में कारसेवा (श्रमदान) करके नदी की गन्दगी साफ़ करेंगे | यहाँ
तो हम नदी में वह सब कुछ डाल आते हैं जिसकी हमें जरूरत नहीं है | स्वर्ण मंदिर अमृतसर में भी लोग स्नान करते हैं
परन्तु कारसेवा से तालाब की मिट्टी भी निकालते हैं | हम जहां भी गए गन्दगी डाल आते हैं | विश्व के सबसे ऊँची चोटी
ऐवरेस्ट में भी कूड़े के ढेर हमारे पर्वतारोहियों और शेरपाओं ने ही डाले हैं |
मकर संक्रांति के दिन देश में कई नदियों के किनारे या पड़ाओं में मेले लगते हैं | उत्तराखंड के बागेश्वर में
गोमती-सरयू नदियों के संगम पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है जिसमें मुख्य तौर से स्थानीय वस्तुओं का व्यापार होता है
| साथ ही कई प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं जिनमें स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंडियों की भागीदारी को
प्रदर्शित किया जाता है । उतरैणी के अवसर पर उत्तराखंड में कौवों को पक्वान खिलाएं जाते हैं क्योंकि शीतकाल में भी
कौवा उत्तराखंड से पलायन नहीं करता । यह त्योहार उत्तराखंडियों के पक्षी-पर्यावरण प्रेम को भी दर्शाता है ।
बागेश्वर मेले से ही उत्तराखंड में व्याप्त ‘छुआछूत’ के उन्मूलन का श्रीगणेश भी हुआ | जो लोग ‘छुआछूत’ के पोषक थे
उनके बारे में अन्य लोग कहते थे, “खणी- निख़णी आब बागसर देखियाल”, अर्थात खाने- नहीं खाने वालों का पता बागेश्वर में
लगेगा जहां अलग से कुलीन रसोई की व्यवस्था नहीं होती | उतरैणी के दिन कौवे को बुला बुला कर भोजन भी कराया जाता | शीत
काल में इस पक्षी को बचाने का यह एक पर्यावरण से जुड़ा सरोकार है |
बागेश्वर उतरैणी मेले का स्वतंत्रता आन्दोलन में भी बहुत बड़ा योगदान है | “लड़ाइ लड़ी जब देशल आजादीकि उत्तराखंडी
पिछाड़ी नि राय, फिरंगियों कैं यस खदेड़ौ उनूल भाजनै पिछाड़ी नि चाय”, (जब देश ने आजादी की लड़ाई लड़ी तो उत्तराखंडी पीछे
नहीं रहे | उन्होंने अंग्रेजो को ऐसे भगाया कि उन्होंने ने भागते हुए पीछे नहीं देखा | ) बागेश्वर में 13 जनवरी 1921
को उतरैणी के दिन अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के सामने कुमाऊं केशरी बद्री दत्त पांडे जी के कहने पर ‘कुली बेगार’ के सभी
रजिस्टर वहाँ सरयू -गोमती के संगम में बहा दिए गए |
इस तरह उत्तराखंड में ‘कुली बेगार’ (बिना पारिश्रमिक दिए जोर-जबरदस्ती वहाँ के लोगों से बोझा/ डोली/ कमोड उठवाना) के
कलंक का अंत हुआ | अंग्रेजों के जुल्म की कभी ख़त्म नहीं होने वाली व्यथा बहुत लम्बी है | इसे से सांस्कृतिक आयोजनों
में दिखाया जाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी को भी उत्तराखंडियों द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई लड़ाई का ज्ञान हो
और उससे प्रेरणा मिले । सभी मित्रों को उत्तरैणी की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.01.2020
मीठी मीठी - 406 : स्वामी विवेकानंद जयंती
आज 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद ज्युकि 158वीं जयंती छ । आजक दिन 1863 हुणि कोलकत्ता में उनर जन्म हौछ । उनार बार में
"लगुल" किताब में छपी लघुलेख कुमाउनी और हिंदी में याँ उधृत छ । विश्व शान्तिक प्रवर्तक स्वामी विवेकानंद ज्यू कैं
विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.01.2020
मीठी मीठी - 405 : भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री
आज 11 जनवरी, देशाक दुसार प्रधानमंत्री भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री ज्युकि पुण्यस्मृति । "लगुल" किताब बै लघुलेख
उनार बार में याँ उधृत छ । विनम्रतापूर्वक श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.01.2020
मीठी मीठी - 404 : दिल्ली लालकिला मैदान में राष्ट्रीय हिंदी कवि सम्मेलन
10 जनवरी 2020 को सायं 7 बजे से वृंदगान समूह के गीत गायन के साथ राष्ट्रीय हिन्दी कवि सम्मेलन दिल्ली के लालकिला
मैदान में आरम्भ हुआ । इस कवि सम्मेलन का आयोजन हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित किया गया था । दीप प्रज्वलन
मुख्य अतिथि, पूर्व मुख्यसचिव गोवा एवम् पांडुचेरी सेवाराम शर्मा, उपाध्यक्ष हिंदी अकादमी सुरेन्द्र शर्मा, हिंदी
अकादमी सचिव डॉ जीतराम भट्ट आदि मंचासीनों द्वारा किया गया । इस सम्मेलन में 30 कवि आमंत्रित थे जिन्होंने लालकिले
के प्रांगण से एक से एक सुंदर कविताओं से श्रोताओं को प्रफुल्लित किया । पूर्ण कवि सम्मेलन जिसे पूरी रात चलना था
उसमें उपस्थित नहीं रह सका । फिर भी मुझे इस कवि सम्मेलन का एक श्रोता बनना बहुत अच्छा लगा । हिंदी अकादमी को इस
वृहद आयोजन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
11.01.2020
मीठी मीठी - 403 : विश्व हिंदी दिवस
विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये
जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन
को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते
हैं। विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनो की शुरुआत
की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था इसी लिए इस दिन को 'विश्व हिन्दी
दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी अपने राष्ट्र की भाषा
पढ़ लिख नेह लगाय
और कोई भी भाषा सीखो
हिंदी नहीं भुलाय ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
10.01.2020
खरी खरी - 549 : राष्ट्रगीत वंदे मातरम
कुछ मित्रों ने 'वंदेमातरम' राष्टगीत के बारे में जिज्ञासा जाहिर की है । वर्ष 1876 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने
सन्यासी विद्रोह पर आधरित 'आनंद मठ' पुस्तक में यह गीत लिखा । 1896 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगौर ने कांग्रेस के
मुंबई अधिवेशन में इस गीत को स्वर दिया । 1905 में अखिल भारतीय कांग्रेस के वाराणसी अधिवेशन में इसे आजादी की लड़ाई
का गीत बनाया गया । बाद में अंग्रेजों ने इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया । आजादी के बाद संविधान सभा में इसे
'राष्ट्रगीत' का दर्जा मिला जबकि 'जनगणमन' को राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया ।
'वंदेमातरम' गीत पर देश में अक्सर राजनीति होती है । परन्तु इसे गाया जाना स्वैच्छिक है अर्थात राष्ट्रगान की तरह
अनिवार्य नहीं । (यदि है तो मेरी जानकारी भी बढ़ाएं ।) कई बार यह भी सुनने को मिलता है कि अमुक ने इसे अमुक जगह जरूर
गाने या बोलने पर बाध्य किया । देशप्रेम की बात तब जोर-जबर्दस्ती नहीं हो सकती जब इस पर राजनीति हो । हमारा राष्ट्र
ध्वज तिरंगा है । हम इसकी आन-बान-शान पर कुर्बान होने की शपथ लेते हैं । इसके लहराते ही हम 'राष्ट्रगान: गाते हैं या
इसकी धुन बजाते हैं । हमें अपने दिल से 'राष्ट्रगान' का सम्मान करना चाहिए और इसके गाने के वैधानिक नियमों को भी
समझना चाहिए । साथ ही हमें अपने 'राष्ट्रगीत' का सम्मान भी करना चाहिए भलेही इसके गाने या समय की कोई वैधानिक
नियमावली नहीं है ।
कुछ दिन पहले हमने 'वंदेमातरम' के बारे में कई मित्रों से चर्चा की । सभी वर्ग- आयु के लोगों से इसके बारे में पूछा
। जो 'वंदेमातरम' को हर जगह जबरजस्ती अनिवार्य करने के पक्ष में थे उनमें से किसी को भी राष्ट्रगीत का 'तीसरा शब्द'
भी मालूम नहीं था । कई लोग तो 'राष्ट्रगान' भी अच्छी तरह नहीं जानते । पहले हम 'राष्ट्रगान' और 'राष्ट्रगीत' को
स्वयं याद करें और इनका शुद्ध उच्चारण और भावार्थ समझें तब अन्य मित्रों से इसकी उम्मीद करें । जो मित्र राष्ट्रगीत
को जानने की जिज्ञासा रखते हैं उनके लिए इसका आरंभिक छंद नीचे उधृत है :-
वन्दे मातरम.. वन्दे मातरम्..
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्
शस्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिनीम्,
सुखदां वरदां मातरम,वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम.. वन्दे मातरम् ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.01.2020
बिरखांत 300 : काला महीना (काव महैंण)
उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर भी अक्सर सुनने में आता है कि आजकल काला महीना (काव महैंण) लगा है इसलिए ये मत करो
और वो मत करो । क्या है ये काला महीना ? विज्ञान में कोई काला या किसी रंग का महीना नहीं है परन्तु जब से मुझे याद
है मैंने कर्मकांडी ब्राह्मणों से और अपने बुजर्गों से काले महीनों के बारे में सुना है और जिसकी समाज में पहले बहुत
मान्यता थी परन्तु आज भी कुछ न कुछ मान्यता बनी हुई है ।
हिंदी महीनों में 6ठा महीना भादो (14 अगस्त से 13 सितम्बर) और 10वां महीना पूस ( 14 दिसम्बर से 13 जनवरी) दो काले
महीने माने जाते हैं । ज्योतिष वाले इसका जो भी कारण बताएं, इसके पीछे लोक-विज्ञान है । भादो और पूस के महीनों में
उत्तराखंड में खेती का काम नहीं होता । सावन में गुड़ाई- निराई पूरी हो जाती है और मंगसीर के अंत तक असोज समेरने के
बाद घास- लकड़ी एकत्र करने का कार्य पूरा हो जाता है । घास के लुटे लग जाते हैं और कंघौव में जलाने के लिए लकड़ियां सज
जाती हैं ।
अधिकांश लोग (ससुराल वाले) बहू को ससुराल से मायके भेजने में कभी खुश नहीं होते (बात उत्तराखंड की है) थे/हैं। अब
बदलाव है क्योंकि बहू भी ज्यादा दबायस सहन नहीं करती । करे भी क्यों ? क्योंकि अब बाल विवाह भी नहीं होते और बहू
अनपढ़ भी नहीं होती । इसलिए उस दौर में लोक-विज्ञानियों ने कुछ ऐसा सोचा ताकि बहू कुछ दिन मायके भेजी जाय । अतः
उन्होंने भादो और पूस को काला महीना घोषित करते हुए यह भी कहा कि 'काले महीनों में बहू ससुरालियों (विशेषकर पति, जेठ
और ससुर ) का मुँह न देखे और देखेगी तो अनहित होगा । इस तरह बहू को साल में दो महीने सास- ससुर की बंधुवा मजदूरी से
मुक्ति मिल जाती थी और बहू इन दो महीनों में मायके जाकर आराम करते हुए अपने फटे हुए हाथ -पांवों -मुखड़े की दरारों पर
मलहम (तेल) लगाते हुए माँ के सामने दो आंसू गिरा आती थी और माँ के आंसू पोछ आती थी ।
काले महीनों के आगमन पर जहां बहू मन ही मन खुश होती थी वहीं सास घुटन से मरती थी क्योंकि बहू का काम सासू जी (ज्यू)
के हवाले हो जाता था । आज भी कुछ लोग काले महीनों में कोई शुभ कार्य नहीं करते । लोगों का क्या है ? पितरों को भगवान
भी मानते हैं और पितृपक्ष (सरादों में ) को अशुभ भी कहते हैं । वैदिक साहित्य लिखे हुए 3200 वर्ष हो चुके हैं । क्या
आज भी हम 3200 वर्ष भूतकाल के समय से चलें ? मेरा विचार है देश-काल-परिस्थिति से चलें और जो अच्छा है, उचित है उसे
अपनाएं और अनुचित को तृणाजलि दें , जैसे तब महिला को वस्तु समझा जाता था और आज महिला हमारे समकक्ष खड़ी है । आज जहाँ
एक ओर बेटी ससुराल गई वहीं दूसरी ओर बहू बेटी बन कर घर आ गई । दोनों ही हमसे मम्मी - पापा भी कहने लगे हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.01.2020
खरी खरी -548 : किसी 8 तारीख को यह घोषणा भी हो
पी एम साहब से उम्मीद है कि जिस तरह आपने 8 नवम्वर 2016 को अचानक नोटबंदी की घोषणा की उसी तरह एक दिन किसी भी 8
तारीख को आप अचानक यह घोषणा भी कर दें कि आज से देश का कोई भी राजनैतिक दल केवल चैक या कैशलेस से ही चंदा स्वीकार
करेगा और चंदे का अधिकांश भाग बैंक में रखेगा । चंदे का पूरा हिसाब भी जनता को बताएगा । राजनैतिक दलों को भी आय कर
के दायरे में शीघ्र लाया जाएगा । नकद रहित की शुरुआत घर से होनी चाहिए । जब देश के सुरक्षा प्रहरी आय कर देते हैं तो
जनप्रतिनिधि एवम् राजनैतिक दलों को भी कर के दायरे में लाया जाना देश के हित में होगा । साथ ही जिस तरह ग्राम प्रधान
के लिए न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य है उसी तरह विधायकों एवम् सांसदों के लिए भी न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए तभी
भारत डिजिटल इंडिया बनेगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
08.01.2020
खरी ख़री - 547 : कस जमान ऐगो (II)
च्यालां क छीं गर्लफ्रैंड
च्येलियां क बौय फ्रैंड,
हाथों पर बादि रईं
फ्रेंडशिपाक बैंड,
क्वे घुमरीं पार्कों में
क्वे डवां मुणि भैरीं,
औणी जाणियाँ कि परवा
न्हैति बेफिकर हैरीं,
शरम लिहाजक
निशान लै मटिगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
आब जनम दिन लै
नईं तरिक ल मनूं रईं,
केक़ा क माथ बै
मोमबत्ती जगूं रईं,
तीन आंखर अंग्रेजी
सबूंल सिखी है,
अंग्रेजी में कूं रईं
हैपी बर डे,
जैल दी जगूण चैंछी
उ दी नीमू फैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
मतलबाक लोग हैगीं
मतलबाक यार,
दिखावटी दुनिय में
दिखावटी प्यार,
मतलब निकलि गोयौ
पै भुलि जानीं,
रूबरू मिलनी
अपन्यार है जानीं,
धरम करम न्हैगो
मतलबी रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.01.2020
खरी खरी - 546 : कस जमान ऐगो (I)
ब्या में बरेतिय लोग सिद
ब्योलि कै घर ऊंनी,
खै-पी बेर लिफाफ
ब्यौला बाप कैं पकडूंनी,
कै दगै बात करण क
टैम न्हैति बतूनी,
जैमाव डाउण है
पैलिकै खसिकि ऊंनी,
बरयात कूण में सिरफ
ब्यौलक परिवार वां रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
ब्याक लगन कि
परवा क्वे नि करन,
वीडियो फोटो वलांक
सब जाग हुकम चलूं,
खिसाई बामण चुपचाप
टकटकी लगै भैरां,
कभतै झपकि ल्युछ
कभतै आंख मिनू,
फोटोग्राफी भलि है गेई
समझो भल ब्या हैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
06.01. 2020
खरी खरी - 545 : किस बात का गर्व ?
कुछ लोग कहते हैं हमें उत्तराखंडी होने का गर्व है । ठीक है गर्व होना चाहिए परन्तु हम पहले भारतीय हैं बाद में
उत्तराखंडी । यदि हम गर्वित हैं तो हमें देवभूमि की आन-बान- शान बनाये/बचाये रखने के लिए गंभीरता से सोचना होगा और
अपनी कथनी -करनी में अंतर नहीं करना होगा अन्यथा हमें किस बात का गर्व ?
हर रोज शराब में डूबे रहने का ?
धूम्रपान- चरस -सुल्पा- भांग पीने का ?
गुटखा- खैनी - तम्बाकू - जर्दा खाने का ?
जागर लगाकर डराने -भ्रमित करने का ?
जागर में डंगरियों को शराब पिलाने का ?
भगवान के नाम पर पशु बलि देने का ?
शहीदों और शहीद परिवारों को भूलने का?
अंधविश्वास को पोषित करने का ?
गलत बी पी एल कार्ड बनाने का ?
बिना कुछ घूस लिए काम नहीं करने का ?
झूठे प्रमाण पत्र से पैंसन लेने का ?
सैणियों पर जबरजस्ती मसाण लगाने का ?
राज्य में आये पर्यटकों को ठगने का ?
रसोई बनाने या मुर्दा फूंकने में शराब मांगने का ?
जनहित -आंदोलनों में घर में घुसे रहने का ?
जुगाड़बाजी और चाटुकारी से कुछ प्राप्त करने का ?
इस खरी खरी से किसी को बुरा लगे तो अपना गुबार निकाल दीजिये । जो लोग इन अपसंस्कृतियों से दूर हैं और इनके विरोध में
गिच खोलते हैं उन्हें प्रणाम/जयहिन्द परन्तु जमीनी सच तो कहना ही होगा । उत्तराखंड जो देवभूमि है, शहीद भूमि है और
वीर भूमि है उसे हमने अपनी गलत हरकतों से व्यथित किया है, उसकी शान को ठेस पहुंचाई है और उसे अपमानित किया है । इन
सभी अपसंस्कृतियों का विरोध करने की हमारी हिम्मत पता नहीं किस गाड़ -गधेरे में बह गई ? मसमसैबेर के नि हुन,बेझिझक
गिच खोलो !
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.01.2020
खरी खरी - 544 : मंहगाई, भ्रष्टाचार और अपराध पर भी ब्रेक लगाओ हजूर !
यह सर्व विदित है कि एक अच्छे ड्राइवर का ध्यान सिर्फ एक्सलेटर पर ही नहीं होना चाहिए । ब्रेक, गेर और पहियों की
हवा पर भी होना चाहिए तभी गाड़ी ठीक से चले । गरीब को जिन्दा रहने के लिए कम से कम छै चीजें चाहिए- आटा, चावल,
दाल, चीनी, चाय और नमक । दूध, घी-तेल, सब्जी के बिना भी वह जी लेता है । नमक के पानी में डुबाकर भी वह रोटी खा
लेता । प्याज जिसे वह रोटी के ऊपर नमक के साथ खाता था वह अब उसे नसीब नहीं है । पांच महीने से प्याज ₹ 80 /- से
₹ 120/- तक बिक रहा है । बिस्कुट, ब्रेड से लेकर सामान्य दवाओं की कीमत भी कुलाचें मार रही हैं । हर महीने
कैमिष्ट को अधिक राशि देनी पड़ती है ।
2014 में देश में सत्ता परिवर्तन के कई मुद्दों में से ये तीन मुख्य मुद्दे थे बढ़ती मंहगाई, बढ़ता भ्रष्टाचार,
बढ़ता तेल और बढ़ता अपराध । उक्त छै वस्तुओं के दाम कम करने के बजाय बहुत आगे निकल गए । बी पी एल कार्ड सभी
गरीबों के पास नहीं है । विशेषतः असंगठित क्षेत्र के गरीब मजदूरों के पास बी पी एल कार्ड नहीं होता । पेट्रोल -
डीज़ल के दाम तो बढ़ते ही जा रहे हैं जिसके कारण अन्य चीजों के दाम भी स्वतः ही बढ़ गए हैं । गैस सिलिंडर 1 जनवरी
2020 से 19 रुपया बढ़ गया है अर्थात 695/- से उछलकर 714/- का हो गया है । भ्रष्टाचार और अपराध भी घटने के बजाय
बढ़ते ही जा रहे हैं । हजूर आम जनता की राहत के लिए बढ़ती मंहगाई, भ्रष्टाचार और बढ़ते अपराधों पर शीघ्र ब्रेक
लगाइये ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.01.2020
मीठी मीठी - 402 : म्यार शब्दोंक शीर्षक ( बिरखांत, खरी - खरी, मीठी - मीठी और ट्वीट )
सोसल मीडियाक सबै मितुरों कैं सपरिवार नौं साल 2020 क आगमन पर पुनः भौत -भौत शुभकामना । आपूंल पिछाड़ि वर्षोंकि
चार वर्ष 2019 में लै पुर साल (उरातार 365 दिन ) मेेरि खरी -खरी, मीठी -मीठी, बिरखांत और ट्वीट कैं टैम दे। विगत
कुछ वर्षों बटि सोसल मीडिया में उरातार लेखनै अब तली 298 बिरखांत (साप्ताहिक वर्णनात्मक लेख ), 543 खरी - खरी (
साप्ताहिक कटु सत्य लेख ), 400 मीठी - मीठी ( खरी खरीक साथ बीच बीच में सूचनापरक लेख) और 895 ट्वीट ( रोज़ाना कम
शब्दों में आपणि बात ) लेखि हालीं । हिंदी और कुमाउनी में लेखी म्यार सबै आँखरों कैं आपूंल टैम दे, आपूं सबूंक
हार्दिक आभार । आस छ कि य साल लै आपूं म्यार आंखरों कैं जरूर टैम द्यला, पढ़ला और म्यर मार्गदर्शन करते रौला ।
धन्यवादक साथ पुनः नौं साल कि शुभकामना।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.01.2020
मीठी मीठी - 401 : मेरे शब्दों के शीर्षक ( बिरखांत, खरी - खरी, मीठी - मीठी और ट्वीट )
सोसल मीडिया के सभी मित्रों को सपरिवार नववर्ष 2020 के आगमन पर पुनः बहुत -बहुत शुभकामनाएं । आपने अन्य वर्षों
की तरह बीते वर्ष 2019 में भी पूरे साल (अविरल 365 दिन ) मेरी खरी -खरी, मीठी -मीठी, बिरखांत और ट्वीट को समय
दिया और सुना । विगत कुछ वर्षों से सोसल मीडिया में निरंतर लिखते हुए अब तक 298 बिरखांत (साप्ताहिक वर्णनात्मक
लेख ), 543 खरी - खरी ( साप्ताहिक कटु सत्य लेख ), 400 मीठी - मीठी ( खरी खरी के साथ बीच बीच में सूचनापरक लेख)
और 895 ट्वीट ( प्रतिदिन कम शब्दों में अपनी बात ) लिख चुका हूं । हिंदी और कुमाउनी में लिखे गए मेरे सभी आँखरों
को आपने समय दिया, आप सभी का हार्दिक आभार । पूर्ण आशा है इस वर्ष भी आप चाहे -अनचाहे मेरे शब्दों को जरूर समय
देंगे, पढ़ेंगे और मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे । धन्यवाद के साथ पुनः नववर्ष की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.01.2020
बिरखांत- 299 : दुनिया के साथ हैपी न्यू ईयर
जी हां, आपको भी ‘हैपी न्यू ईयर’, नव वर्ष की बधाई | भारत का नव वर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (मार्च द्वितीय
सप्ताह) माना जता है परन्तु उस दिन बहुत कम लोगों को हैपी न्यू ईयर या नव वर्ष की बधाई कहते हुए सुना गया है | हमारे
देश में मुख्य तौर से प्रति वर्ष तीन नव वर्ष मनाये जाते हैं | पहला 1 जनवरी को जिसकी पूर्व संध्या 31 दिसंबर को
मार्केटिंग के बड़े शोर-शराबे के साथ मनाई जाते है | 1 जनवरी का शुभकामना संदेश भी बड़े जोर-शोर से भेजा जाता है | आज
भी यही हो रहा है | वाट्सैप, फेसबुक सहित सभी सोशल मीडिया में इस तरह के संदेशों का सैलाब आया है कि संभाले नहीं
संभल रहा | यह नव वर्ष भारत सहित अंतरराष्ट्रीय जगत में सर्वमान्य हो चुका है |
दुनिया के साथ चलना ही पड़ता है | जो नहीं चलेगा वह पीछे रह जाएगा, कम्प्यूटर क्रान्ति इसका एक उदाहरण है | हमने
माशा, रत्ती, तोला, छटांग, सेर और मन की जगह मिलि, सेंटी, डेसी,/ डेका, हेक्टो, किलो, क्विंटल और टन अपनाया है
तो विश्व के साथ जनवरी १ को नव वर्ष मानने में हिचक नहीं होनी चाहिए | घर में हमने अपने बच्चों को हिन्दी
महीनों/दिनों के नाम बताने भी छोड़ दिये हैं | 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89 और99 को हिंदी में क्या कहते हैं,
हमारे अधिकांश बच्चे नहीं जानते | पूछ कर आज ही देखिये | हम कोई भी भाषा सीखें परन्तु अपनी मातृभाषा तो नहीं
भूलें | हमारे देश का वित्त नव वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है | दूसरे नव वर्ष को विक्रमी सम्वत कहते हैं
जो ईसा पूर्व 57 से मनाया जता है | 2020 में वि.स. 2076 है जो 21 मार्च 2019 को आरम्भ हुआ था | तीसरा नव वर्ष
साका वर्ष है जो 78 ई. से आरम्भ हुआ अर्थात यह वर्तमान 2020 से 78 वर्ष पीछे है | इसका वर्तमान वर्ष 1942 है
|
भारत एक संस्कृति बहुल देश है जहां कई संस्कृतियाँ एक साथ फल-फूल रहीं हैं | यहां लगभग प्रत्येक राज्य में अलग
अलग समय पर नव वर्ष मनाया जाता है | अनेकता में एकता का यह एक विशिष्ट उदाहरण है | हमारे देश ‘भारत’ का नाम
अंग्रेजी में ‘इंडिया’ है | कई लोग कहते हैं कि हमारे देश का नाम सिर्फ और सिर्फ ‘भारत’ होना चाहिए | पड़ोसी
देशों के नाम अंग्रेजी में भी वही हैं जो वहां की अपनी भाषा में हैं | ‘इंडिया’ शब्द ‘इंडस’ से आया | ‘इंडस’
शब्द ‘हिंदु’ से आया और ‘हिंदु’ शब्द ‘सिन्धु’ से आया (इंडस रिवर अर्थात सिन्धु नदी ) | ग्रीक लोग इंडस के
किनारे के लोगों को ‘इंदोई’ कहते थे |
जो भी हो यदा कदा यह प्रश्न बना रहता है कि एक देश के दो नाम क्यों ? देश में कुछ लोग ‘इंडिया’ को अमीर और
‘भारत’ को गरीब भी मानते हैं अर्थात इंडिया मतलब ‘शहरीय भारत’ और भारत मतलब ‘ग्रामीण भारत’ | हमारा देश सिर्फ
‘भारत’ ही पुकारा जाय तो अच्छा है | हमारे संविधान के आमुख में भी लिखा है “वी द पीपल आफ इंडिया दैट इज
‘भारत’...” अर्थात हम भारत के लोग... | हम भारतीय हैं, ‘वसुधैव कुटम्बकम’ हमारा विश्व दर्शन है | इसलिए सबके साथ
1 जनवरी को मुस्कराते हुए नव वर्ष की बधाई जरूर कहिये |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.01.2020
खरी खरी -543 : आप डटे हैं -40०C पर भी, शुभकामना
विगत 1989 से जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध लगातार हो रहा है जिससे हमारे सैकड़ों सुरक्षा प्रहरी वतन की माटी को
अपने लहू से सिंचित कर गए । देश के कुछ अन्य भागों में भी हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपना बलिदान दिया है । हमारी
सेना और अन्य सुरक्षा प्रहरियों ने भी दुश्मन की हर गोली का बड़ी मुस्तैदी से मुहतोड़ जबाब दिया और प्रत्येक शहीद
के बलिदान का तुरंत बदला लिया । आतंकवाद के नाग का सिर कुचलना अभी बाकी है जिसकी देश को दरकार है । अब तक देश के
लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सभी अमर शहीदों को नए साल की पूर्व संध्या पर विनम्र श्रद्धांजलि के साथ नमन
। हम नव वर्ष पर अपने सैन्य भाइयों को भी हार्दिक शुभकामना देते हैं जो -40० C पर भी वतन की रक्षा में डटे हैं ।
नववर्ष 2019 की पूर्व संध्या पर भलेही आज हम नए साल का स्वागत कर रहे हैं और एक - दूसरे को बधाई- शुभकामना दे
रहे हैं परन्तु दिल से हम मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने वाले इन वीर सपूतों के प्रति नतमस्तक होकर विनम्र
श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं और इस दुख के दौर में इन शहीद परिवारों के दुख -दर्द में सहानुभूतिपूर्वक शामिल
हो रहे हैं -
'शहीदों की चिंताओं में
लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का
बस एक यही निशां होगा ।'
इस गमगीनअंधेरे में
एक दीप जलाते हैं,
सभी मित्रों को नववर्ष
की शुभकामना देते हैं ।
जयहिन्द,
जय हिंद की सेना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
31.12 .2019
खरी खरी -542 : "मुझे नहीं पता श्रंंगार।"
उत्तराखंड के पर्वतीय भाग में ग्रामीण महिलाओं के लिए विज्ञान कोई बदलाव नहीं लाया । वह कहती है, "मेरे लिए कुछ
भी नहीं बदला । मैं जंगल से घास -लकड़ी लाती हूँ, हल चलाती हूँ, दनेला (दन्याइ) लगाती हूँ, निराई-गुड़ाई करती हूँ,
खेत में मोव (गोबर की खाद) डालती हूँ, दूर-दूर से पीने का पानी लाती हूँ, पशुपालन करती हूँ और घर -खेत-आँगन का
पूरा काम करती हूँ । मुझे पता नहीं चलता कि कब सूरज निकला और कब रात हुई । मुझे नहीं पता श्रंगार क्या होता है
।"
वह चुप नहीं होती, बोलते रहती है, ''गृहस्थ के सुसाट -भुभाट, रौयाट - बौयाट में मुझे पता भी नहीं चलता कि मेरे
हाथों- एड़ियों में खपार (दरार) पड़ गये हैं और मेरा मुखड़ा फट सा गया है । मेरे गालों में चिरोड़े पड़ गए हैं ।
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अपने बच्चों को तो मैं बिलकुल भी समय नहीं दे पाती । सिर्फ उनके लिए रोटी बना देती
हूँ बस । अब कुछ बदलाव कहीं-कहीं पर दिखाई देता है वह यह कि खेत बंजर होने लगे हैं । नईं- नईं बहुएं आ रही हैं
जो पढ़ी लिखी हैं । वे यह सब काम नहीं करती । हम भी बेटियों को पढ़ाकर ससुराल भेज रहे हैं जो वहाँ यह सब काम नहीं
करेंगीं । लड़कों के लिए यहाँ रोजगार नहीं है और वे बहू संग नौकरी की तलाश में निकल गए हैं । सरकार - दरबार से
कहती हूं कि तुम ढूंढते रहो उजड़ते गाँवों से पलायन के कारण... पर गांव तो खाली हो गए हैं । यहां वे ही रह गए है
जिनका कोई कहीं ले जाने वाला नहीं है ।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.12.2019
खरी खरी - 541 : अंधविश्वास के ग्रहणों को भी समझें
यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं
परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ
उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा
और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने
के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी |
हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है, सत्य-अहिंसा और
सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी
हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा-अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों- बाबाओं
के देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस
नहीं जुटा पा रहे हैं |
हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का
डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम अंधविश्वासियों को सुनते हैं परन्तु
खगोल शास्त्रियों या वैज्ञानिकों को नहीं सुनते । हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता
या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं
|
हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगने, गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और
दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में
दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फूक वाले के पास जाते हैं |
वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा, केवल परीक्षा के दिन तिलक
लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा-नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को
पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह
दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं-
‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी
बन गए
लेकर डिग्री ढेर,
अंधविश्वास कि मकड़जाल में
फंसते न लगती देर,
पंडित बाबा गुणी तांत्रिक
बन गए भगवान्
आंखमूंद विश्वास करे जग,
त्याग तत्थ – विज्ञान ।
सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा मेरे शब्दों पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं | सभी मित्रों एवं
टिप्पणीकारों तथा पसंदकारों का साधुवाद तथा हार्दिक आभार |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.12.2019
बिरखांत – 298 : गणतुवों (पुछारियों) के तुक्के
अंधविश्वास की जंजीरों में बंधा हमारा समाज गणतुवों या पुछारियों के झांसे में बहुत जल्दी आ जाता है | लोग अपनी
समस्या समाधान के लिए गणतुवों के पास आते हैं या भेजे जाते हैं | कभी- कभार उनका तुक्का लग जाता है तो उनके
श्रेय का डंका पिटवाया जाता है | तुक्का नहीं लगने पर भाग्य- भगवान्- किसमत –नसीब -करमगति कह कर वे पल्ला झाड़
देते हैं |
कुछ महीने पहले दिल्ली महानगर में ऐसी ही एक घटना घटी | मेरे एक परिचित का उपचाराधीन मानसिक तनाव ग्रस्त युवा
पुत्र अचानक दिन में घर से बिन बताये चला गया | इधर -उधर ढूंढने के बावजूद जब वह देर रात तक घर नहीं आया तो थाने
में उसकी रिपोट लिखाई गई | इस तरह परिवार का पहला दिन रोते-बिलखते बीत गया | दूसरे दिन प्रात: किसी मित्र के
कहने पर पीड़ित माता- पिता गणत करने वाली एक महिला (पुछारिन) के पास गये | पुछारिन बोली, “आज शाम से पहले
तुम्हारा बेटा घर आ जाएगा | वह सही रास्ते पर है, सही दिशा पर चल रहा है | तुम बिलकुल भी चिंता मत करो
|”
उसी रात थाने से खबर आती है कि आपके बताये हुलिये के अनुसार एक लाश अमुक अस्पताल के शवगृह (मोरचुरी) में है |
परिजन वहां गए तो मृतक वही था जो घर से गया था | चश्मदीदों ने बताया कि यह व्यक्ति उसी दिन (अर्थात गणत करने के
पहले दिन ) रात के करीब साड़े नौ बजे दुर्घटनाग्रस्त होकर बेहोशी हालत में पुलिस द्वारा अस्पताल लाया गया | उसकी
मृत्यु लगभग तभी हो गयी थी | दस-ग्यारह घंटे पहले मर चुके व्यक्ति को पुछारिन ने बताया कि ‘वह सही दिशा में चल
कर घर की ओर आ रहा है’ |
उलझाने के इस धंधे के लोग किस तरह समाज को बरगलाते हैं, यह एक उदाहरण है | यदि पुछारिन के पास कुछ भी ज्ञान होता
तो वह कह सकती थी ‘वह व्यक्ति घोर संकट में है या परेशान है, अड़चन में फंसा है |’ पोस्टमार्टम और अंत्येष्टि के
बाद पुछारिन को जब यह दुखद समाचार भिजवाया गया तो उसने ‘भाग्य -भगवान्- किसमत- नसीब- करम -परारब्ध- ब्रह्मलेख’
आदि शब्दों को दोहरा दिया | यदि वह व्यक्ति जीवित आ जाता तो यह पुछारिन महिमामंडित हो जाती जबकि उससे आज ‘तूने
तो ऐसा बताया था’ कहने वाला कोई नहीं है |
सच तो यह है कि दोषी हम हैं जो इस प्रकार के तंत्रों के जाल में फंसते हैं और कभी सही तुक्का लगने पर इनकी
वाह-वाही का डंका पीटते हैं, इनको महिमा मंडित करते हैं | कब जागेगा तू इंसान ? किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को
महिमामंडित नहीं करने से हम समाज में सुधार ला सकते हैं | चर्चा तो होनी चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.12.2019
मीठी मीठी - 398 : आज अटल जी की जयंती
आज 25 दिसम्बर हमार 10उं प्रधानमंत्री, भारत रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी ज्युकि जयंती छ । उनार बार में पुस्तक
"लगुल'' बै लेख याँ उधृत छ । अटल ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2019
मीठी मीठी - 399 : वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली
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Google Chrome
आज 25 दिसंबर पेशावर विद्रोहक अमर सेनानी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ज्युकि जयंती छ । "लगुल" पुस्तक बै उनार बार
में लघुलेख याँ उधृत छ । अन्यायक विरुद्ध आवाज बुलंद करणी य वीर योद्धा कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.12.2019
खरी खरी -540 : उसको ' देवी ' आ गई ?
शादी में महिला संगीत और कीर्तन भी दो विधाएं आजकल देखादेखी खूब रंग में हैं | महिला संगीत में स्थानीय भाषाओं
को सिनेमा के गीतों ने रौंद दिया है | ‘चिकनी चमेली..., बदतमीज दिल...., आंख मारे ...जैसे सिने गीतों की भरमार
है | कैसेट- सी डी या डीजे लगाओ और आड़े- तिरछे नाचो, हो गया महिला संगीत | कहाँ गये वे ‘बनड़े’ जैसे परम्परागत
गीत ? कीर्तन में भी पैरोडी संग नृत्य हो रहा है | सिनेमा के गीत की धुन में शब्दों का लेप लगा कर माता रानी को
रिझाने का एक निराला अंदाज बन गया है | ' बृज की छोरी से राधिका गोरी से ...' (सिने गीत ' हम तुम चोरी से बंधे
एक डोरी से ...) । पता नहीं ये कौन लोग हैं जो कृष्ण की अनन्य भक्त राधा का कीर्तन में कृष्ण से ब्याह कराना
चाहते हैं ? लोग तालियां बजाते है या नाचने लगते हैं ।
आजकल हरेक कीर्तन में कुछ महिलाओं में ‘देवी’ आ जाती है जो आयोजकों से हाथ जुड़वा कर ही थमती है | पता नहीं दूसरे
के घर में बिन बुलाये ये ‘देवी’ आ कैसे जाती है ? आना ही है तो अपने घर में आ और अपने घरवालों को राह दिखा,
दूसरे के घर में यह सबके सामने तमाशा क्यों ? कीर्तन में यह शोभा भी नहीं देता जबकि ‘देवी’ वाली अमुक आंटी चर्चा
में आकर भविष्य में गणतुवा भी बन सकती है | जिस कीर्तन में अपनी ही संस्कृति की झलक हो उसे उत्तम कीर्तन कहा
जाएगा |
इधर आजकल सांस्कृतिक आयोजन में कुछ कलाकार मंच से गायन की ‘जागर’ विधा गाते हैं तो दर्शकों में बैठी कुछ महिलाओं
को 'देवी ' आ जाती है । चप्पल पहने, बिन हाथ-मुंह धोये दर्शकों के समूह में यह ‘देवी’ पता नहीं क्यों आ जाती है
? गीत - संगीत थमते ही देवी चली भी जाती है क्योंकि यह सब गीत - संगीत का असर होता है । लोग इनके आगे हाथ जोड़कर
महिमा मंडन करने लगते हैं और गायक भी स्वयं को धन्य समझने लगता है । हमने यह जरूर सुना - देखा है कि कुछ लोग '
जागर ' में अपने घर पर देवी या देवता नचाते है परन्तु इसकी एक श्रद्धा - मर्यादा वे जरूर अपनाते हैं । आयोजनों
में इस तरह किसी स्त्री या पुरुष में देवी - देवता नाचना और उसका महिमामंडन करना एक अनुचित परम्परा को
प्रोत्साहन देना है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.12.2019
मीठी मीठी - 397 : लोक -उत्सवक दिल्ली में दुसर दिन
गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा अकादमी, कला - संस्कृति - भाषा विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा सेंट्रल पार्क
राजीव चौक नई दिल्ली में द्वि दिनी लोक - उत्सव आयोजनक 22 दिसंबर 2019 हुणि दुसर दिन लै भौत गिड़दम रौछ । ठीक 2
बजी कार्यक्रम शुरू हौछ । आयोजनक शुभारंभ अकादमीक उपाध्यक्ष, कवि और गायक हीरा सिंह राणा ज्यू एवं अकादमीक सचिव
डॉ जीतराम भट्ट ज्यू समेत सबै सदस्योंल दी जगै बेर करौ । गणेश वंदना में दर्शकोंल लै भागीदारी निभै ।
दुसार दिन लै लोक उत्सव में उत्तराखंडक लोकजीवन एवम् साहित्यक प्रदर्शन लै करिगो और उत्तराखंडी भाषाओं कि
जानकारी, साहित्य एवम् इतिहास लै बताइगो । लोक संस्कृतिक कएक कार्यक्रम लै हईं जमें नान -ठुल सबै कलाकारोंल
भागीदारी निभै । आयोजन स्थल में दर्शकों कि भौत ठुल गिड़दम देखण में आछ जनूल कार्यक्रमक खूब आनंद ले । य मौक पर
कएक पत्रकार, साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, व्यवसाई, मातृशक्ति और नानतिन लै मौजूद छी । आयोजन कैं राणा ज्यूल
संबोधित करौ । राणा ज्यूल दिल्ली सरकारक भाषा अकादमी बनूणक लिजी आभार व्यक्त करौ । कार्यक्रम संचालन करते हुए डॉ
भट्ट ज्यूल सबै दर्शकों कैं उत्तराखंड कि सांस्कृतिक झलक बतूनै धन्यवाद दे । सबै दर्शकोंल दिल्ली में हमरि भाषा
अकादमी बनण पर भौत खुशि जतै ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.12.2019
मीठी मीठी - 396 : सेंट्रल पार्क राजीव चौक में लोक -उत्सव
गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी भाषा अकादमी, कला - संस्कृति - भाषा विभाग, दिल्ली सरकार द्वारा सेंट्रल पार्क
राजीव चौक नई दिल्ली में द्वि दिनी लोक - उत्सवक आयोजन 21 दिसंबर 2019 हुणि 2 बजी शुरू हौछ जो 22 दिसंबर 2019
हुणी लै जारी रौल । आयोजनक शुभारंभ दिल्ली सरकारक उप - मुख्यमंत्री और अकादमीक अध्यक्ष मनीष सिसोदिया ज्यू और
अकादमीक उपाध्यक्ष, कवि और गायक हीरा सिंह राणा ज्यू एवं अकादमीक सचिव डॉ जीतराम भट्ट ज्यू समेत सबै सदस्यों ल
दी जगै बेर करौ ।
य लोक उत्सव में उत्तराखंडक लोकजीवन एवम् साहित्यक प्रदर्शन लै करिगो और उत्तराखंडी भाषाओं कि जानकारी, साहित्य
एवम् इतिहास लै बताइगो । लोक संस्कृतिक कएक कार्यक्रम लै हईं जमें नान -ठुल सबै कलाकारोंल भागीदारी निभै । आयोजन
स्थल में दर्शकों कि भौत ठुल गिड़दम देखण में आछ जनूल कार्यक्रमक खूब आनंद ले । य मौक पर कएक पत्रकार,
साहित्यकार, कवि, राजनीतिज्ञ, व्यवसाई, मातृशक्ति और नानतिन लै मौजूद छी । आयोजन कैं सिसोदिया ज्यू और राणा
ज्यूल संबोधित करौ । राणा ज्यूल दिल्ली सरकारक भाषा अकादमी बनूणक लिजी आभार व्यक्त करौ । कार्यक्रम संचालन करते
हुए डॉ भट्ट ज्यूल सबै दर्शकों कैं उत्तराखंड कि सांस्कृतिक झलक बतूनै धन्यवाद दे । य सफल आयोजनक लिजी अकादमीक
सचिव समेत पुरी टीम कैं धन्यवाद ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
22.12.2019
बिरखांत-297 : भगवान भी नहीं सुरक्षित
कल अपने चिर परिचित चनरदा वही अपने अल्लहड़ अंदाज में मिले | उनके हाथ में कई वर्षों के समाचार पत्रों की वे
कतरनें थी जिनमें मंदिरों में चोरी की खबरें छपी थी | चनरदा बताने लगे, “अरे साब इधर-उधर की तो खूब पढ़ते-लिखते
हो ज़रा इन कतरनों को भी देखो | देश का कोई ऐसा मंदिर नहीं होगा जहां से आजतक कभी न कभी, कुछ न कुछ चोरी नहीं हुआ
होगा | इन वर्षों में कर्णप्रयाग के चंडिका मंदिर से आठ छत्र; हल्द्वानी गौजाजाली मन्दिर से घंटे, कलश, नाग,
त्रिशूल, नथ, हार, मुकुट, माला ,दीपक स्टैंड, लोटा और नकदी; केदारनाथ से मुकुट; दिल्ली के प्रशांत विहार बालाजी
मंदिर से करीब बीस लाख मूल्य की वस्तुएं, जहांगीरपुरी से राम-जानकी-लक्षमण की मूर्ति |
इसी तरह दिल्ली के भजनपुरा, वैशाली, सूरजमल पार्क, जगतपुरी, पांडव नगर, महरौली, वेलकम, आन्दंद विहार, दिलशाद
गार्डन, सप्तऋषि गार्डन सहित पिलखुवा, सिरोही आदि स्थानों के मंदिरों में भी चोरी हुई | आए दिन धार्मिक स्थलों
में अपराधिक घटनाएं होती रहती हैं | इन कुकृत्यों को अंजाम देने वालों में यदा कदा यहां के सेवादारों अथवा
‘उपासकों’ की मिलीभगत भी होती है |
पूजा स्थलों की प्रत्येक वस्तु शक्ति का प्रतीक मानी जाती है | आस्था एवं शक्ति की प्रतीक जब ये मूर्तियां चोरी
हो जाती हैं या धर्मस्थलों का खजाना लूटा जाता है या किसी महिला के साथ यहां अमानवीय कृत्य होता है तो मन में
प्रश्न उठने लगता है कि भगवान ने स्वयं को या वहां की वस्तुओं को या उस महिला को बचाते हुए इन राक्षसों को
दण्डित क्यों नहीं किया ? उस नरपिशाच पर स्वयं वह मूर्ति ही गिर जाती, पंखा या कोई अन्य वस्तु गिर जाती, उसे
ठोकर ही लग जाती |
‘यह कलियुग है’ कह कर लोग अपनी श्रधा पर कोई खरोंच नहीं लगने देते लेकिन धर्मस्थलों में भगवान का इन नरपिशाचों
पर प्रहार नहीं करना श्रधालुओं को अखरता जरूर है | धर्मस्थलों के परिसर की कोई दुर्घटना या धर्मस्थल की यात्रा
के दौरान की दुर्घटना अन्य स्थानों की दुर्घटना से कहीं अधिक अखरती है | इन सब घटनाओं से मन में कबीर के भजन
“मोको कहां ढूंढें रे बन्दे’ का स्मरण हो आता है | कबीर ने भगवान के मूरत-तीरथ, जप-तप, व्रत-उपवास, काबा-कैलाश,
क्रियाक्रम, जोग-संन्यास में नहीं होने की बात कही है | उनका मानना है कि एक अच्छे- सच्चे इंसान के मन में ही
भगवान वास करते हैं | सत्य भी यही है भगवान पूजा स्थलों में नहीं होते |
पूजा स्थल तो केवल भगवान् का स्मरण करने की एक जगह है जहां ईश्वर स्मरण के साथ अन्य आगंतुकों से भी मिलाप हो
जाता है |” ( ये चनरदा कौन हैं ? चनरदा लेखक का वर्षों पुराना वह कर्म पुजारी किरदार है जो किसी
धर्म-संप्रदाय-जाति-मजहब का न होकर सबसे पहले एक इंसान है, एक भारतीय है और समाज में व्याप्त विषमता, वैमनस्यता,
असमाजिकता, जुगाड़बाजी, चाटुकारिता, अन्धविश्वासऔर असहिष्णुता पर गांधीगिरी के साथ अपना मुंह खोलने की हिम्मत से
सराबोर है | )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12.2019
खरी खरी - 539 : कस जमान ऐगो
ब्या में बरेतिय लोग सिद
ब्योलि कै घर ऊंनी,
खै-पी बेर लिफाफ
ब्यौला बाप कैं पकडूंनी,
कै दगै बात करण क
टैम न्हैति बतूनी,
जैमाव डाउण है
पैलिकै खसिकि ऊंनी,
बरयात कूण में सिरफ
ब्यौलक परिवार वां रैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
ब्या क लगन कि
परवा क्वे नि करन,
वीडियो फोटो वलांक
सब जाग हुकम चलूं,
खिसाई बामण चुपचाप
टकटकी लगै भैरां,
कभतै झपकि ल्युछ
कभतै आंख मिनू,
फोटोग्राफी भलि है गेई
समझो भल ब्या हैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पैली बै सरास जाणता
आब आंसु लै नि ऊँन
सरास जाणकि खुशि
और मेकअपकि फिकर,
यास में डाड़क के
मतलब नि हुन,
डाड़ निकाउणक लिजी
डाड़क कैसेट बाजैं फैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
ब्या होते ही
ब्यौल बदलि जां,
भली निकरन
घरववां हूँ बात,
उतकै बै मानू
ब्योलिक ऑडर
भाजि बेर सुणु
विकी धात,
ब्याकै दिन बै उ
ब्योलिक कब्ज में न्हैगो,
कस जमान देखौ
कस जमान ऐगो ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.12.2019
खरी खरी - 538 : जनहित के मुद्दों से की बात हो !
कुछ महीने पहले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में छपे एक लेख "असली हिन्दू, नकली हिन्दू" देश का ध्यान
इस ओर आकर्षित करता है कि सोमनाथ मंदिर (गुजरात) में गैर हिन्दुओं की प्रविष्टि के लिए अलग रजिस्टर क्यों रखा
गया ? इस मुद्दे पर हमारे मीडिया खूब टी आर पी बनाई । यह वही मीडिया है जो कुछ समय पहले शनि सिगनापुर मंदिर में
स्त्री की प्रविष्टि नहीं होने पर बहुत आंदोलित था या सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश किये जाने पर पक्षधर था ।
अब सबरीमाला मंदिर पर भी मीडिया का रुख बदल गया है और चुप्पी साध ली । अधिकांश मीडिया सुविधाजनक सिद्धांत पर
चलने लगा है । हमारी मीडिया को इस विभाजनकारी प्रवृति से निजात कब मिलेगी या मिलेगी भी कि नहीं ?
कुछ मीडिया चैनल इस मुद्दे पर चुप रहे । एक ओर हम देश में संविधान में स्त्री - पुरुष के बराबरी की बात करते हैं
और दूसरी ओर हम यह सामाजिक खाई क्यों चौड़ी करते जा रहे हैं ? मंदिर में किसी भी श्रद्धालु को अपनी श्रद्धानुसार
प्रवेश पर न कोई पाबंदी होनी चाहिए और न किसी प्रकार का जातीय भेदभाव इंगित किया गया नजर आना चाहिए । देश में
सामाजिक विषमता को सिंचित करने के किसी भी कारक को नहीं बख्शा जाना चाहिए और इस तरह के राग-द्वेष उत्पन्न करने
वाली प्रथाओं को शीघ्रता से बंद किया जाना चाहिए । इसके लिए कानून पहले से ही है जिसकी आएदिन अवहेलना होती है ।
इसी तरह इस बीच मंदिर जाने या नहीं जाने पर भी मीडिया ने बहुत कोलाहल किया । यह एक व्यर्थ शोर था । धार्मिक
अनुष्ठान करना किसी भी व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण है । कोई करे या नहीं करे इससे उस व्यक्ति की श्रेष्ठता से कोई
लेना -देना नहीं । मीडिया को इस तरह के व्यर्थ मुद्दों पर समय नष्ट करने के बजाय देश हित की चर्चाओं जैसे किसान,
जवान, शिक्षा, विज्ञान, पर्यावरण, अंधविश्वास निवारण, सामाजिक सौहार्द आदि के विषय में वार्ता करनी चाहिए तथा
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, रुढ़िवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, सामाजिक विषमता, आतंकवाद, बढ़ती मंहगाई, और कट्टरता
के विरोध में खुलकर चर्चा करनी चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.12. 2019
खरी खरी -537 : थोड़ा समय तो दें बच्चों को !
कुछ महीने पहले ग्रेटर नोएडा में कक्षा 11 के एक लड़के द्वारा अपनी मां और छोटी बहन की अपने ही घर में हत्या कर
दी । इस दिल दहला देने वाली घटना ने एक बार फिर समाज के सामने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि हमारे नौनिहाल कहां
जा रहे हैं ? इस हिंसा के लिए देखा जाय तो अभिभावक जिम्मेदार हैं । कक्षा 11 का छात्र करीब 16- 17 वर्ष का रहा
होगा । अभी हाल में एक कक्षा 7 की लड़की ने अध्यापक की मामूली डांट पर घर आकर आत्महत्या कर ली ।
सत्य तो यह है कि हमने बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया । बच्चों पर बाल्यकाल से ही नजर रखनी पड़ती है । हम तब
उन्हें समझाने की सोचते हैं जब वे किशोर अवस्था के चरम पर होते हैं । हमारे बच्चे कैसे बोल रहे हैं, उनकी
चाल-ढाल क्या हो रही है, उनमें अनुशासन कैसा है, वह घर के कार्यों में कितनी रुचि ले रहा है, भाई-बहन से उसका
वर्ताव कैसा है, उसकी संगत किसके साथ है, उसके कपड़ों से नशा - धूम्रपान की बदबू तो नहीं आ रही, वह बाथरूम-टॉयलेट
में कितना समय लगा रहा है, पढ़ाई तथा स्कूल के कार्य पर वह कितना ध्यान दे रहा है, जंकफूड पर वह कितनी रुचि लेता
है, समाज से उसके बारे में कैसी प्रतिक्रिया मिलती है आदि । इन सब बातों पर मां की नजर अधिक पैनी होनी चाहिए ।
ग्रेटर नोएडा का यह मां - बहन का हत्यारा छात्र एक दिन या एक महीने या एक साल में ऐसा कुपात्र नहीं बना । वह
मिडिल कक्षाओं से बिगड़ चुका था । उसमें परिवार उचित संस्कार नहीं भी नहीं भर सका । उसका मोबाइल भी पिता ने कुछ
दिन पहले ही ले लिया बताया जा रहा है । हम आजकल पालने से ही बच्चों को मोबाइल पकड़ा रहे हैं । हिंसा करना या
दुष्कर्म जैसे अपराध करना बच्चे टेलिविज़न या मोबाइल से सीख रहे हैं । ऐसे बच्चे बहुत जल्दी क्रोधित भी हो जाते
हैं ।
इन पंक्तियों के लेखक ने कई बार कई किशोर होते लड़कों को समूह में बैठकर पार्कों में पोर्न देखते पाया है और
उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए समझाया भी है । "ब्लू ह्वेल" गेम ने भी कई बच्चे मार दिये । बच्चों पर निरंतर नजर
रखने वाले इस तरह के हादसों से बचे रहते हैं । व्यक्ति कितना भी व्यस्त हो, उसे अपने बच्चों की डायरी और नोटबुक
जरूर देखनी चाहिए । इससे बच्चों को समझने और उन्हें भटकाव से रोकने में मदद मिलेगी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.12.2019
खरी खरी - 536 : इंसाफ के लिए रोती निर्भया की मां
" 16 दिसंबर 2012 की रात मेरी बेटी के साथ हैवानियत हुई ।उसके बाद पूरा देश इंसाफ की मांग करते हुए सड़कों पर
उतर आया ।मगर आज 7 साल के बाद भी नरपिशाचों को सजा नहीं मिली । बेटी के जाने के बाद हम पूरी तरह टूट गए । उसकी
तकलीफ और तड़फ को याद कर हम कांपने लगते हैं । विगत 7 वर्ष से हम सिसकियां भरते हुए कराह रहे हैं । हमने इन सात
वर्षों में कोई भी त्यौहार नहीं मनाया । हम निर्जीव होकर जीवित हैं और बिलखते रहते हैं । हमारे घर का हर कोना
उसे याद करके रोता है ।"
निर्भया की मां इंसाफ के लिए विगत 7 वर्षों से गुहार लगाते हुए कहती हैं, "मेरी बेटी के साथ 6 नरपिशाचों द्वारा
जघन्य अपराध किए जाने के बाद कानून तो बना परन्तु उसकी कोई तय समय सीमा नहीं है जिसका दोषियों ने खूब फायदा
उठाया । इतने समय तक उन्होंने अपील नहीं की तो अब अपील का अधिकार समाप्त होना चाहिए था । अपराधियों को इसी कारण
कानून का डर नहीं है और दुष्कर्म के केस बढ़ते जा रहे हैं । छोटी बच्चियों का भी रेप हो रहा है और उन्हें मार
दिया जाता है । आज सबसे जरूरी है कि एक तय समय सीमा के अंदर सुनवाई हो और उसका अतिशीघ्र क्रियान्वयन हो । मुझे
उम्मीद है मेरी बेटी की आत्मा को कानून में समय सीमा तय होने और सजा का शीघ्र क्रियान्वयन से शांति मिलेगी ।"
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.12.2019
बिरखांत - 296 : 16 दिसंबर ‘विजय दिवस’ की याद में
आज (16 दिसम्बर) भारतीय सैन्यबल को सलूट करने का दिन है | आज ही के दिन 1971 में हमारी सेना ने पाकिस्तान के
93000 सैन्य-असैन्य कर्मियों से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण करवाया था | इस युद्ध का मुख्य
कारण था करीब एक करोड़ से अधिक पूर्वी पाकिस्तानी जनता द्वारा पाकिस्तान की फ़ौज के अत्याचार से अपनी जान बचा कर
भारत में शरण लेना | तब देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी जिन्होंने दुनिया का ध्यान भी इस समस्या की
ओर खीचा |
पाकिस्तान को भारत द्वारा शरणार्थियों एवं मुक्तिवाहिनी ( पाकिस्तान के अत्याचारों से लड़ने वाला संगठन) की मदद
करना अच्छा नहीं लगा और उसने 3 दिसंबर 1971 को भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर एक साथ युद्ध थोप दिया | 14
दिन के इस युद्ध में पाकिस्तान छटपटाने लगा और उसके सैन्य कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने पूरे सैन्य
साजो सामान के साथ भारतीय सैन्यबल के कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल जे एस अरोड़ा के सामने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया
|
इस युद्ध की पूरी बागडोर देश के चीफ आफ आर्मी, जनरल एस एच एफ जे मानेकशा (शैम मानेकशा) के हाथ थी जिन्हें 3
जनवरी 1973 को, भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर देश के राष्ट्रपति ने आजीवन फील्ड मार्शल का रैंक प्रदान किया |
बाद में उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया | 16 दिसंबर 1971 को विश्व के नक्शे में एक नए देश
‘बंग्लादेश’ का जन्म हुआ जिसके राष्ट्रध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान बने | इस महाविजय पर पूर्व प्रधानमंत्री (तब
नेता विपक्ष ) अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री, भारत रत्न, श्रीमती इंदिरा को ‘दुर्गा’ का अवतार
बताया था|
आजादी से अब तक के युद्धों में हमारे लगभग साड़े बारह हजार सैनिक शहीद हो चुके हैं जिनमें साड़े तीन हजार से अधिक
सैनिक 1971 के युद्ध में शहीद हुए | इन शहीदों में 255 उत्तराखंड के थे | प्रतिवर्ष हम 16 दिसंबर को अपने शहीदों
का स्मरण करते हुए ‘विजय दिवस’ मनाते हैं और अपने शहीदों को नमन करते हुए उनके परिजनों का दिल से सम्मान करते
हैं | मीडिया में इस दिवस को सूक्ष्म स्थान मिलने का हमें दुःख है | (इन पंक्तियों के लेखक (तब उम्र 23 वर्ष) को
उस 14 दिन के युद्ध में भाग लेने वाली भारतीय सेना का सदस्य होने का सौभाग्य प्राप्त है जिसकी याद में मिला "
पश्चिम स्टार " आज भी मेरे पास मौजूद है | मुझे याद है 3 दिसंबर 1971 (आज से 48 वर्ष पहले) की सायं करीब साढ़े
पांच बजे अंधेरा होने लगा था । तभी दुश्मन का पहला गोला हमारे बहुत नजदीक गिरा था । बंकर ने बचाव किया और हमने
अपना कार्य जारी रखा । उन क्षणों को याद कर आज भी रोमांचित हो जाता हूं । भारतीय सैन्य बल को दिल से बहुत प्यार
के साथ बहुत बड़ा सलूट । जयहिंद ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.12.2019
विजय दिवस
खरी खरी - 535 : मंडी डबवाली अग्नि कांड भी भुलाए नहीं भूलता
8 दिसंबर 2019 को अनाजमंडी दिल्ली अवैध फैक्ट्री अग्निकांड ने 43 जानें ले लीं । 13 जून 1997 को दिल्ली उपहार
सिनेमा अग्निकांड ने 59 जानें ले लीं । ( खरी खरी - 533 )। इसी तरह 23 दिसंबर 1995 को मंडी डबवाली, सिरसा,
हरियाणा के एक DAV स्कूल अग्निकांड ने 258 बच्चों सहित 442 निर्दोषों को बेमौत मार डाला और 160 बच्चों -
अभिभावकों को घायल कर दिया । स्कूल का वार्षिक उत्सव आयोजन एक पैलेस में सैंथेटिक टेंट के नीचे चल रहा था जहां
बाहर निकालने का मात्र एक गेट था । इस समारोह में करीब 1500 लोग थे जहां बिजली के जनरेटर से आग लगी थी और आग
लगते ही भगदड़ मच गई । बताया जाता है कि 2009 में ( 14 वर्ष बाद ) पीड़ितों को कुछ आर्थिक राहत दी गई ।
इन अग्निकांडों से मृत हुई जिंदगियों को देखकर रूह कांप जाती है । कई घायल आज भी रो-रो कर जिंदगी काट रहे हैं ।
इतनी दर्दनाक घटनाओं को देखकर भी हमारा शासनतंत्र नहीं जागता । जहां भी कानून की अवहेलना होती है भ्रष्टाचार की
भूख उसकी अनदेखी कर देती है । देश में आए दिन अग्निकांडों में कई लोग मरते हैं । दो - चार दिन हल्ला होता है फिर
भ्रष्ट तंत्र अपनी भूख मिटाकर अवैध को वैध का प्रमाण पत्र दे देता है । निर्दोष मरते हैं और इन मौतों पर
दोषारोपण की ओछी आयतें पढ़ी जाती हैं । देश का करोड़ों रुपया तो मृतकों के परिजनों में मरहम लगाने बतौर बंट जाता
है । काश ! भ्रष्टाचार नहीं होता तो ये बेमौत मारने वाले अग्निकांड भी नहीं होते । कब और कैसे मिटेगा देश से
भ्रष्टाचार ??? (वैसे भाषणों और कागज में तो मिट गया है ।)
पूरन चन्द्र कांडपाल
15.12.2019
खरी खरी - 533 : मिलावट का मोह
हल्दी में खड़िया
धनिए में लीद,
काली मिरच में
पपीते के बीज,
मिरच में लकड़ी का
बुरादा मिला है,
हर मसाले में मिलावट
का सिलसिला है ।
चावल में कंकड़
दाल में पत्थर,
आटे में मिट्टी
लगती है चर चर,
घी-तेल मिलावट से
हो गए बदतर,
अंदर से कुछ भी हो
खुशबू है ऊपर ।
शरबत में शकरीन
मिठाई में रंग है,
हर पकवान मिलावट के
रंग से भरा है,
लगता हरित है
रंग जिस भाजी का,
असली नहीं वह
नकली हरा है ।
'वर्क' मिठाई जो
ओढ़े हुए है,
ज़हर अपने में वह
जोड़े हुए है,
बर्फी में आलू
समाया हुआ है,
दूध में रसायन
मिलाया हुआ है ।
अरे ! ओ मिलावट
के धंधे वालो,
इस कुकृत्य से
अपना मन मोड़ो,
होगी एक दिन
दुर्गति तुम्हारी,
हैवानियत के इस
धंधे को छोड़ो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.12. 2019
बिरखांत-295 : “मैं इंडिया गेट से शहीद बोल रहा हूं जी”
“भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट से मैं ब्रिटिश भारतीय सेना का शहीद इंडिया गेट के प्रांगण का आखों
देखा हाल सुना रहा हूं | १३० फुट (४२ मीटर) ऊँचा यह शहीद स्मारक १० वर्ष में १९३१ में बन कर तैयार हुआ | इस
स्मारक पर मेरे नाम के साथ ही मेरे कई शहीद साथियों के नाम लिखे हैं जिन्होंने भारतीय सेना में १९१४-१८ के प्रथम
महायुद्ध तथा तीसरे अफगान युद्ध में अपनी शहादत दी थी |
जब मैं शहीद हुआ तब से कई युद्ध हो चुके हैं | देश की स्वतन्त्रता के बाद १९४७-४८ के कबाइली युद्ध, १९६२ का चीनी
आक्रमण, १९६५, १९७१ तथा १९९९ का पाकिस्तान युद्ध, १९८६ का श्रीलंका सैन्य सहयोग, संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना बल
और विगत ३० वर्षों से जम्मू-कश्मीर के छद्म युद्ध में मेरे कई साथी शहादत की नामावली में अपना नाम लिखते चले गए
| शहीदी का सिलसिला जारी है और रहेगा भी | प्रतिदिन मेरा कोई न कोई साथी कश्मीर में भारत माता पर अपने प्राण
न्यौछावर करते जा रहा है |
स्वतंत्रता के बाद देश की राजधानी में कोई ऐसा स्मारक नहीं बना जहां इन सभी शहीदों के नाम अंकित किये जाते | भला
हो उन लोगों का जिन्होंने १९७१ के युद्ध के बाद इंडिया गेट पर उल्टी राइफल के ऊपर हैलमट रखकर उसके पास २६ जनवरी
१९७२ को ‘अमर जवान ज्योति’ स्थापित कर दी | इंडिया गेट परिसर में एक शहीद स्मारक बनाने का सुझाव मेरी व्यथा को
लिखने वाले इस लेखक ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया गेट का शहीद’ (प्रकाशित २००५) में अवश्य दिया है | अब एक शहीद स्मारक
बन चुका है ।
मेरे देश में शहीदों और शहीद परिवारों का कितना सम्मान होता है यह तो आप ही जानें परन्तु मैं इंडिया गेट पर लगे
सबसे ऊँचे पत्थर से चौबीसों घंटे देखते रहता हूं कि यहां क्या-क्या होता है | राष्ट्रीय पर्वों पर हमें पुष्प
चक्र चढ़ा कर सलामी दी जाती है और कुछ देश-प्रेमी जरूर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं | बाकी दिन इंडिया गेट एक
पिकनिक स्पॉट बन कर रह गया है | यहां लोग सैर– सपाटे और तफरी के लिए आते हैं | यहां मदारी बन्दर नचाते हैं,
स्वदेशी-विदेशी युगल प्रेमालाप करते हैं, बच्चों की अनदेखी कर फब्तियां कसते हैं, अश्लील हरकत करते हैं, किन्नर
वसूली करते हैं, कारों में लगे डेक का शोर होता है, भोजन खाकर दोना-पत्तल-प्लास्टिक की थैलियां-खाली बोतल
जहां-तहां डालते हैं, खिलौने वाले और फोटोग्राफर द्विअर्थी संवाद बोलते हैं |
हमें श्रधांजलि देना तो दूर हमारी ओर कोई देखता तक नहीं | हमारे प्रति दिखाई गयी यह उदासी तब जरा जरूर कम होती
है जब कोई इक्का-दुक्का देशवासी मेरी उलटी राइफल, हैलमट और प्रज्वलित ज्योति को देखने के लिए वहाँ पर पल भर के
लिए रुकता है | मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है क्योंकि मैं अपने देश के लिए शहीदी देने स्वयं गया था,
मुझे कोई खीच कर नहीं ले गया | कुछ कलमें मेरी गाथाओं को लिखने के लिए जरूर चल रहीं हैं, कुछ लोग यदा-कदा मेरे
गीत भी गाते हैं, क्या ये कम है मेरी खुशी के लिए ? मैं तो इन पत्थरों में लेटे -लेटे गुनगुनाते रहता हूं –‘सारे
जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ |"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.12.2019
खरी खरी - 533 : उपहार सिनेमा अग्निकांड 1997
लालच, भ्रष्टाचार और कानून की अवहेलना के कारण हुआ उपहार सिनेमा अग्निकांड की दिल दहला देने वाली घटना हुई । 22
बरस पहले 13 जून 1997 को दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में 'बॉर्डर' फिल्म देखने के दौरान
लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग घायल भी हो गए थे। इस भीषण अग्निकांड ने पूरे देश
को हिलाकर रख दिया था। इस हादसे में अपनों को खोने वाले आज भी जिंदगी और मौत में फ़र्क नहीं कर पाते, क्योंकि इस
हादसे ने उन्हें अंदर तक खामोश कर दिया ।
इस अग्निकांड में किसी ने अपना जवान लड़का खोया तो किसी ने अपनी जवान लड़की। सच तो यह है कि इस आग में न केवल 59
लोगों की जान गई थी, बल्कि उनके परिजन आज भी तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं। पीड़ित परिजनों की आंखें कल्पना मात्र
से ही नम हो जाती हैं । कुछ मां-बाप तो ऐसे हैं, जो आज तन्हाई में अपनी जिंदगी की आखिरें शाम गुजार रहे हैं और
मौत का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आज उनके पास न तो जीवन जीने का कोई सहारा है और न ही कोई मकसद। ऐसे
एक नहीं,बल्कि कई लोग हैं, जिनका पूरा परिवार ही इसमें तबाह हो गया।
दरअसल शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गई, जो तेजी से अन्य हिस्सों में फैली। सिनेमा हाल
धुंए से भर गया । घटना की जांच के दौरान पता चला था कि सिनेमाघर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। यह भी
बताया जाता है कि बॉर्डर फिल्म देखने के लिए अतिरिक्त कुर्सियां गैलरी और दरवाजों के पास रख दी थी। अंधेरे के
कारण लोग रास्ता टटोलते रह गए और रास्ता बंद होने के कारण बाहर नहीं निकल सके । लालच, भ्रष्टाचार और कानून की
अवहेलना से 59 जानें दम घुटने के कारण मौत के मुंह में समा गईं । पता नहीं कितने सिनेमाघरों ने इस मानवजनित कांड
से सबक सीखा होगा ?
18 वर्ष बाद इस काण्ड का न्याय हुआ जिसमें 16 लोगों को 2 - 2 वर्ष की सजा हुई और बिल्डर अंसल भाइयों पर 30 - 30
करोड़ रुपए का जुर्माना हुआ । यह मुकदमा पीड़ितों के संगठन द्वारा लड़ा गया । ऐसा ही एक दर्दनाक अग्निकांड 8
दिसंबर 2018 को अनाजमंडी दिल्ली की अवैध फैक्ट्री में हुआ जिसमें 43 मजदूर दम घुटने से मर गए और कई घायल हो गए ।
जांच चल रही है । यहां भी भ्रष्टाचार के खूनी हाथ ही कातिल बताए जा रहे हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
12.12.2019
मीठी मीठी - 395 : हमार प्रणव दा (भारत रत्न )
आज 11 दिसंबर, पूर्व वित्त - रक्षा मंत्री - योजना आयोग क उपाध्यक्ष, पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणव दा (
प्रणव मुखर्जी ) क जन्मदिन छ । आज ऊं 84 वर्षक है गईं । प्रणव दा कैं भौत भौत शुभकामना । ' लगुल ' किताब बै उनार
बार में एक लेख कुमाउनी - हिंदी में यां उद्धृत छ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
11.12.2019
खरी खरी - 532 : पर उपदेश
अक्सर हम दूसरों को उपदेश देते हैं कि गलत काम न करें परन्तु स्वयं करते रहते हैं । मैंने कई कवियों को शराब,
धूम्रपान और गुटके के विरोध में मंच से कविता पढ़ते देखा और मंच छोड़ते ही उन्हें शराब या सिगरेट या गुटका सेवन
करते देखा । ये लोग द्वय चरित्र के होते हैं जो उचित नहीं है । दुनिया इन्हें देखती है परन्तु चुप रहती है । कुछ
लोग हवन - यज्ञ या कर्मकांड करते समय भी मुंह में गुटका भरे हुए रहते हैं जिसकी निंदा की जानी चाहिए । यजमान ऐसे
लोगों को टोकने के बजाय अनदेखी कर देते हैं जो गलत है । डंगरिये शराब या भंगड़ी पीकर दुलैंच में बैठ अपनी आरती
करवाते हैं और सौकार आंख बंद कर आरती करते हैं ।
इसी तरह एक भारतीय अभीनेत्री ने दिवाली पर पटाखे नहीं चलाने की अपील की थी लेकिन उनकी शादी में जमकर आतिशबाजी
हुई जिसकी खूब आलोचना भी हुई । इसी तरह एक समाचार के अनुसार पेटा (PeTA) नामक संस्था ने एक विवाह में हाथी-घोड़ों
के साथ बारात निकालने की निंदा की थी क्योंकि उस दौरान पशुओं को नियंत्रण करने के लिए यातना दी जाती है ।
हमारे देश में कानूनों की जमकर अवहेलना प्रतिदिन होती है परन्तु जब सेलिब्रेटी काननू की अवहेलना करते हैं तो एक
गलत संदेश समाज में जाता है । उपदेश देना बहुत आसान होता है । हम जो भी उपदेश समाज को दें उस पर पहले खुद अमल
करें । समाज को सेलिब्रेटी से देश के हित में कुछ सार्थक करने की उम्मीद होती है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.12.2019
खरी खरी - 531 : कभैं आपूहैं पुछो !!
भाग्य क भरौस पर
तमगा नि मिलन
पुज-पाठ भजन हवन ल
मैदान नि जितिन,
पसिण बगूण पड़ूं
जुगत लगूण पणी,
कभतै हिटि माठु माठ
कभतै दौड़ लगूण पणी ।
पढ़ीलेखी हाय
पढ़ी लेखियां जस
काम नि करें राय ,
गिचम दै क्यलै जमैं थौ
आपू हैं नि पूछैं राय,
मरि-झुकुड़ि बेर कुण नि बैठो
ज्यौना चार कभें त जुझो,
क्यलै मरि मेरि तड़फ
क्यलै है रयूं चुप
कभैं आपूहैं पुछो ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.12 .2019
खरी खरी - 530 : यदि दूल्हा - दुल्हन चाहैं तो ?
देश की राजधानी में आजकल शादियों का जोर है । शादियों के कारण सड़क पर अक्सर जाम लगा रहता है । इस जाम से प्रदूषण
अधिक कष्टदायी हो जाता है । इस प्रदूषण के मुख्य कारक डीजल जनरेटर थे जिसे न्यायालय ने बंद करवा दिया है । भलेही
चोरी से मिलीभगत के साथ अब भी जनरेटर चलाये जा रहे हैं जिनसे खतरनाक प्रदूषण हो रहा है ।
शादियों में प्रदूषण का एक कारण आतिशबाजी भी है । बरात जहां से चलती है और जहां पहुंचती है इन दोनों जगह पर जम
कर आतिशबाजी होती है । जाम के कारण या शराबी बरेतियों के कारण अक्सर बरात गंतव्य तक देरी से पहुंचती है । तब आस
- पास के लोग अपने घरों में आराम कर रहे होते हैं या सो गए होते हैं । ठीक इसी समय जमकर आतिशबाजी होने लगती है,
जोर -जोर डीजे बजने लगता है । रिपोट करने पर उल्टे पुलिस की छत्रछाया इस अवसर पर बढ़ जाती है । अब लोग किससे कहें
? गसगसाते - मसमसाते हुए तंत्र को गाली देकर अपना क्रोध शांत करते हैं ।
ऐसी विकट परिस्थितियों में यदि दूल्हा -दुल्हन चाहे तो पहले से ही आतिशबाजी के लिए मना कर सकते हैं । आतिशबाजी
नहीं होने से शादी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा बल्कि लोगों को शोर - प्रदूषण से छुटकारा मिल जाएगा और दूल्हा -
दुल्हन को आशीर्वाद भी दिल से मिलेगा । उम्मीद करते हैं दाम्पत्य डोर में बंधने वाले युवा और युवतियां अपनी मिलन
की इस सुमधुर बेला में जन - जन का आशीर्वाद तो लेंगे साथ ही प्रदूषण से हमारे व्यथित पर्यावरण को भी बचाएंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.12.2019
खरी खरी - 529 : जुगाड़बाजी का रोग
कुछ महीने पहले हमने एक रामलीला में लक्ष्मण - परशुराम संवाद देखा । दोनों ही स्थानीय कलाकार थे । परशुराम का
पात्र लक्ष्मण के पात्र से उम्र में कुछ बड़ा था और लक्ष्मण से अच्छा कलाकार भी था । रामलीला में संवाद के बाद
मंच से इनाम की घोषणा हुई तो लक्ष्मण को एक हजार रुपए और परशुराम को दो सौ रुपए का इनाम बताया गया । परशुराम के
पात्र का अभिनय लक्ष्मण से अच्छा था फिर लक्ष्मण को इनाम अधिक क्यों मिला होगा ? खोजबीन करने पर पता चला कि इनाम
देने वाले आठ लोग लक्ष्मण के रिश्तेदार थे जो एक एक सौ रुपया लक्ष्मण को दे गए जबकि दो अनजान लोगों ने एक एक सौ
रुपए लक्ष्मण और परशुराम दोनों को इनाम दिए । स्पष्ट है इनाम कला को नहीं बल्कि रिश्तेदार को दिया गया ।
इस इनाम को देखकर मुझे कई वर्ष पहले देखी गांव की रामलीला याद आ गई । यहां भी लक्ष्मण का पात्र इनाम के जुगाड़
में ही रहता था । उसने अपने गांव के एक सहपाठी को कहा, "सुन, मैं तुझे चांदी का एक पदक देता हूं । तू आज रामलीला
में लक्ष्मण - परशुराम संवाद के बाद यह पदक मुझे इनाम में दे देना । मंच से घोषणा होने पर तेरा भी नाम हो जाएगा
और मैं उत्तम पात्र घोषित हो जाऊंगा ।" लक्ष्मण का वह सहपाठी बोला, " देख यार हम गरीब लोग हैं । बड़ी मुश्किल से
घर में चूल्हा जलता है । जब मेरे नाम से चांदी का पदक लक्ष्मण को इनाम दिए जाने की घोषणा होगी तो लोग सोचेंगे कि
इस फटेहाल गरीबी में ये लड़का पदक कहां से लाया होगा ? मुझ से यह काम नहीं होगा । तू मुझे दो रुपए दे, एक तुझे
और एक परशुराम को इनाम में दे दूंगा । एक के बजाय दोनों को इनाम देना अच्छा रहेगा । भौनिका (परशुराम ) भी बहुत
अच्छे पात्र हैं । मैंने उनको तालिम में देखा है । गजब का पाट खेलते हैं वे । लक्ष्मण ने दो रुपए देने से मना कर
दिया ।
लक्ष्मण की महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई । उसने पदक इनाम देने के लिए दूसरे गांव के एक अन्य व्यक्ति को पटा लिया ।
इसका पता तब चला जब रात को रामलीला में लक्ष्मण - परशुराम संवाद के बाद मंच से लक्ष्मण के पात्र को चांदी का एक
पदक इनाम स्वरूप घोषित हुआ । लोग कह रहे थे, "यार ऐकटींग तो परशुराम की लक्ष्मण से अच्छी थी । पदक देने वाले ने
भाईबंदी करी है । परशुराम को भी पदक देता तो ठीक होता । यह लक्ष्मण का जुगाड़ हो सकता है वरना चांदी का मैडल
उसके बजाय परशुराम को मिलना चाहिए था ।"
आज भी हमारे सामने इस तरह के कई जुगाड़ू लक्ष्मण हैं जो जहां - तहां जुगाड़बाजी से इनाम या पुरस्कार झटक लेते
हैं और पुरस्कार के वास्तविक हकदार देखते रह जाते हैं । लोग इन चाटुकार - जुगाड़बाज लक्षमणों को अब बखूबी
पहचानने भी लगे हैं क्योंकि लोगों को बगुलों और हंसों की पहचान एक न एक दिन देर - सवेर हो ही जाती है । बगुला
हंस बनकर कितने दिन तक घूम सकता है ? इस तरह के जुगाड़ बाज लक्ष्मण अपने घर के शीशे के सामने भी खड़े नहीं हो
सकते क्योंकि शीशा बोलता है, "मेरे सामने खड़े होने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ? तू मुर्दा जमीर वाला जिंदा
जुगाड़ू है ।" जुगाड़बाजी का रोगी कभी किसी से नजर नहीं मिला सकता । इन रोगियों को अपना भेद खुलने का डर सताते
रहता है । झूठ के पैर नहीं होते । सच्चाई और ईमानदारी के सामने झूठ और फरेब कभी टिक नहीं सका है । जुगाड़बाजी के
चेहरे देर - सवेर एक दिन बेनकाब हो ही जाते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.12.2019
मीठी मीठी - 394 : आज 7 दिसम्बर सशस्त्र सेना झण्डा दिवस
आज 7 दिसम्बर को प्रतिवर्ष 7 दिसम्बर 1949 से सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है । इस अवसर पर लोगों से दान
स्वीकार किया जाता है । दान की यह राशि सशस्त्र सेना के कल्याण हेतु खर्च किया जाता है । देश की सुरक्षा में दिन
-रात जुटी हमें अपनी सशस्त्र सेना पर गर्व है । हमें अपनी सशस्त्र सेना के शौर्य, पराक्रम और बलिदान का निरंतर
स्मरण करते रहना चाहिए और उनके परिवारों के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए । सभी को सशस्त्र सेना झंडा दिवस की
शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.12.2019
मीठी मीठी - 393 : बिना दहेज और दहेज की बारातें
बारातों के मौसम में दो बारातों की चर्चा सुनिये । कुछ महीने पहले एक समाचार के अनुसार बिहार के पटना में एक
शादी बड़ी सादगी के साथ सम्पन्न हुई । इस शादी में कई अतिथियों ने अपना अंग दान किया और कइयों ने बिना दहेज के
विवाह का संकल्प पत्र भरा । बिना दहेज, बिना बैंड बाजे, बिना नाच-गाने, बिना डीजे- डिस्को और बिना भोज की इस
शादी को कई गणमान्य लोगों ने देखा । यहाँ केवल चाय की व्यवस्था थी और चार-चार लड्डू प्रसाद स्वरूप प्रत्येक
आगन्तुक को दिये गए । दहेज रहित इस शादी में कोई भी गिफ्ट स्वीकार नहीं किया गया जिसकी सूचना आगन्तुकों को पहले
से दी गई थी ।
एक अन्य समाचार के अनुसार इसी दिन एक बारात मुरादाबाद उ.प्र. से कोटा, राजस्थान पहुंची । दूल्हा और दुल्हन दोनों
ही उच्च शिक्षा प्राप्त थे । शादी के एक दिन पहले यहां सगाई हुई जिसमें दुल्हन के पिता ने पैंतीस लाख ₹ के सोने
के जेवर और इक्कीस लाख ₹ नकद दिए । शादी के दिन दहेज लोभी दूल्हे का लालच बढ़ गया और उसने एक करोड़ ₹ की मांग कर
दी । साथ ही प्रत्येक बाराती को एक -एक सोने का सिक्का देने का हुकम भी चला दिया । जब दुल्हन को इस बात का पता
चला तो उसने दहेज के भूखे दूल्हे रूपी इस भेड़िये से शादी करने से इनकार कर दिया । सबसे बड़ी बात तो यह है कि
दुल्हन के पिता ने इस दुःखद घटना की चर्चा मंच पर जा कर तब की जब सभी मेहमान खाना खा चुके थे । इसके बाद बारात
बिना दुल्हन के लौट गई ।
ये दोनों घटनाएं बिना किसी विश्लेषण के हम से बहुत कुछ कहतीं हैं । एक तरफ एक दूल्हे ने दहेज तो छोड़ो, भोज तक
नहीं लिया और दूसरी तरफ एक दूल्हे रूपी भेड़िये ने लालच की सभी सीमाओं को पार कर दिया । एक दूल्हा शुभकामनाओं
सहित अपनी दुल्हन के साथ विदा हुआ और दूसरा दूल्हा रूपी भेड़िया बिन दुल्हन के अपने मुंह में थूका कर बेशरमी से
गर्दन झुकाए लौट गया ।
हमें इन दोनों घटनाओं की चर्चा अपने परिजनों और सहकर्मियों से अवश्य करनी चाहिए । यदि हम ऐसा कर सके तो हमने
समाज में व्याप्त दहेज प्रथा के उन्मूलन में अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ा योगदान दिया समझा जाएगा । स्वेच्छा से
नए जोड़े को सामर्थ्यानुसार कुछ उपहार दिए जा सकते हैं परन्तु दहेज की मांग कभी भी स्वीकार नहीं होनी चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.12. 2019
मीठी मीठी -391 : घरवाइ कैं लै खवाै
म्यार पड़ोस क चनरदा
घरवाइ-भक्ति पैलिकै बै करैं रईं,
ऑफिस बै आते ही
रसोई में घुसी जां रईं ।
पिसी लै वलि दिनी
भान लै खकोइ दिनी,
घरवाइ दगै ठाड़ है बेर
साग लै खिरोइ दिनी ।
एक दिन उं रसोइ में
भौत व्यस्त है रौछी,
मी भ्यार बै ठाड़ है
बेर उनुकैं चै रौछी ।
मील कौ हो क्यलै आज
मालिक्याण कां जैरीं,
जो तुमार हूं एकलै
फान फुताड़ लैरीं।
अरे यार वीकि मुनाव
पीड़ हैरै, अलै आंख लैरीं,
नान रवाट खणा लिजी
टकटकै बेर चैरीं ।
मील कौ यार नना हूं
किलै आपूं हैं लै पकौ,
द्वि रवाट तुम लै खौ
और बीमार कैं लै खवौ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.12.2019
मीठी मीठी - 390 : नौसेना दिवस की शुभकामनाएं
आज 4 दिसम्बर 'भारतीय नौसेना दिवस' के उपलक्ष्य में देश की नौसेना को हार्दिक शुभकामनाएं एवं जयहिन्द । 4
दिसम्बर 1971 को हमारी नौसेना ने पाकिस्तान के कराची नेवल बेस को ध्वस्त किया था । यह उस युद्ध की जीत के जश्न
के बतौर मनाया जाता है ।
हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम,
सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी,
होती तेरी चर्चा आम |
गुरखा सिक्ख बिहारी कहीं तू,
कहीं तू जाट पंजाबी,
कहीं कुमाउनी कहीं गढ़वाली,
कहीं मराठा मद्रासी |
कहीं राजपूत डोगरा है तू,
कहीं महार कहीं नागा,
शौर्य से तेरे कांपे दुश्मन,
पीठ दिखाकर भागा |
नहीं हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
तू है हिन्दुस्तानी,
मातृभूमि पर मर मिट जाए,
ऐसा अमर सेनानी |
मात-पिता पत्नी बच्चे
रिश्तेदार या घर संसार,
आंख के आगे ये नहीं होते
सामने जब करतब का भार ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.12.2019
मीठी मीठी - 389 : डॉ राजेंद्र प्रसाद स्मरण
आज 3 दिसंबर देश क पैल राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ज्यूक जन्म दिन । उनार बार में एक लेख ' लगुल ' किताब बै
द्वि भाषा में यां उद्धरत छ । डॉ प्रसाद कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.12.2019
खरी खरी - 528 : क्या-क्या बांटोगे ?
राजनीति के हाट में
बंट गए भगवान
देखा नहीं था आजतक
ऐसा अद्भुत ज्ञान,
ऐसा अद्भुत ज्ञान
बांटो सूरज चांद सितारे,
धरती जल आकाश बांटो
बांटो प्रकृति नजारे,
जात धर्म और गोत्र की
क्यों रचे चुनाव रणनीति ?
मुद्दों से मत भटको नेता
करो जनहित राजनीति ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.12.2019
बिरखांत -292 : जागर नहीं है मर्ज की दवा (i)
देवताओं की भूमि कहा जाने वाला प्रदेश उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य, स्वच्छ वातावरण तथा अनगिनत देवालयों के लिए
प्रसिद्ध है | यहां के निवासी परिश्रम, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, देशप्रेम तथा जुझारूपन के लिए भी जाने
जाते हैं | साक्षरता में भी अब यह प्रदेश अग्रणीय हो रहा है | रोजगार के अभाव में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा
| इस पहाड़ी राज्य में पहाड़ से भी ऊँची रुढ़िवादी परम्पराएं यहां के निवासियों को आज भी घेरे हुए है |
ऐसी ही एक परम्परा है ‘जागर’ जिसे यहां ‘जतार’ या ‘जागरी’ के नाम से भी जाना जाता है | पूरे राज्य में यह
परम्परा भिन्न-भिन्न नाम से समाज को अपने मकड़जाल में फंसाए हुए है | सभी जाति- वर्ग का गरीब- अमीर तबका इस
रूढ़िवाद में जकड़ा हुआ है जिसे इस जकड़ का तनिक भी आभास नहीं है |
इस तथाकथित समस्या समाधान के लिए आयोजित की जाने वाली ‘जागर’ में मुख्य तौर से तीन व्यक्तियों का त्रिकोण होता
है | पहला है ‘डंगरिया’ जिसमें दास द्वारा ढोल या हुड़के की ताल- थाप पर देवता अवतार कराया जाता है जिसे अब ‘देव
नर्तक’ कहा जाने लगा है | दूसरा है ‘दास’ जिसे ‘जगरिया’ अथवा ‘गुरु’ भी कहा जाता है | यह व्यक्ति जोर- जोर से
बिजेसार (ढोल) अथवा हुड़का (डमरू के आकार का स्थानीय वाद्य ) बजाकर वातावरण को कम्पायमान कर देता है | इसी कम्पन
में डंगरिये में देवता अवतरित हो जाता है | देवता अवतार होते ही डंगरिया भिन्न- भिन्न भाव- भंगिमाओं में बैठकर
अथवा खड़े होकर नाचने लगता है | इस दौरान ‘दास’ कोई लोकगाथा भी सुनाता है | लोक चलायमान यह गाथा जगरियों को पीढ़ी
डर पीढ़ी कंठस्त होती है | वीर, विभत्स, रौद्र तथा भय रस मिश्रित इस गाथा का जगरियों को पूर्ण ज्ञान नहीं होता
क्योंकि सुनी- सुनाई यह कहानी उन्हें अपने पुरखों से विरासत में मिली होती है | यदि इस गाथा में कोई श्रोता शंका
उठाये तो जगरिया उसका समाधान नहीं कर सकता | उसका उत्तर होता है “ बुजर्गों ने इतना ही बताया |”
‘जागर’ आयोजन का तीसरा कोण है ‘सौंकार’ अर्थात जो व्यक्ति अपने घर में जागर आयोजन करवाता है | ‘सौंकार’ शब्द
‘साहूकार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है धनवान या ऋण देनेवाला | जागर आयोजन करने वाला व्यक्ति अक्सर गरीब होता है
परन्तु जागर में उसे ‘सौंकार’ फुसलाने के लिए कहा जाता है ताकि वह इस अवसर पर खुलकर धन खर्च करे |
‘जागर’ आयोजन का कारण है आयोजक किसी तथाकथित समस्या से ग्रस्त है जिसका समाधान जागर में करवाना है | बीमार पड़ने,
स्वास्थ्य कमजोर रहने, कुछ खो जाने, परिजन का आकस्मिक निधन हो जाने, पशुधन सहित चल- अचल सम्पति का नुकसान होने,
पुत्र-पुत्री के विवाह में विलम्ब होने, संतान उत्पति में देरी अथवा संतान नहीं होने, संतान का स्वच्छंद होने,
संतान उत्पति पर जच्चा को बच्चे के लिए दूध उत्पन्न नहीं होने, विकलांग शिशु क जन्म लेने, तथाकथित ऊपर की हवा
(मसाण –भूत, छल- झपट ) लगने, किसी टोटके का भ्रम होने, दुधारू पशु द्वारा दूध कम देने, जुताई के बैलों की चाल
में मंदी आने, तथाकथित नजर (आँख) लगने, परीक्षा में असफल होने, नौकरी न लगने, परिजन के शराबी- नशेड़ी- जुआरी
बनने, सास- बहू में तू- तड़ाक होने अथवा मनमुटाव होने, परिवार- पड़ोस में कलह होने, पलायन कर गए परिजन का पत्र
अथवा मनीआर्डर न आने अथवा आशानुसार उसके घर न आने जैसी आए दिन की समस्याएं जो वास्तव में समस्या नहीं बल्कि जीवन
की सीढ़ियां हैं जिनमें हमें चलना ही होता है, जागर आयोजन का प्रमुख कारण होती हैं | वर्षा नहीं होने, आकाल पड़ने
अथवा संक्रामक रोग फ़ैलने पर सामूहिक जागर का आयोजन किया जाता है जिसका अभिप्राय है रुष्ट हुए देवताओं को मनाना
परन्तु ऐसा कम ही देखने को मिला है जब जागर के बाद इस तरह के संकट का निवारण हुआ हो |
व्यक्तिगत जागर पर विहंगम दृष्टिपात करने पर स्पष्ट होता है कि उपरोक्त में से किसी भी समस्या के पनपते ही
समस्या-ग्रस्त (दुखिया) व्यक्ति डंगरिये तथा जगरिये से सलाह- मशवरा करके जागर आयोजन की तिथि निश्चित करता है |
पूरा गांव जागर वाले घर में एकत्रित हो जाता है | समस्या समाधान की उत्सुकता सबके मन में बनी रहती है | दास-
डंगरिये को भोजन कराया जाता है | (अब शराब भी पिलाई जाती है ) | धूप- दीप जलाकर तथा गोमूत्र छिड़क कर स्थान को
पवित्र किया जाता है | डंगरिये को आसन लगाकर बैठाया जाता है | ठीक उसके सामने जगरिया और उसका साथी तासा (रौटी)
वाला बैठता है | डंगरिये को भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू के ऊपर छोटे छोटे जलते हुए कोयले रखे जाते हैं ) दी जाती
है जिसे वह धीरे- धीरे कश लगाकर पीते रहता है | पंच- कचहरी (वहाँ मौजूद जन समूह ) में धूम्रपान का सेवन खुलकर
होता हे | नहीं पीने वाला भी मुफ्त की बीड़ी- सिगरेट पीने लगता है | इसी बीच जगरिया अद्वायी (गाथा) सुनाने लगता
है | शेष भाग अगली बिरखांत 293 में...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.11.2019
खरी खरी - 526 : आबारा कुत्तों से परेशान हैं लोग
देश के हर शहर में आबारा कुत्तों से लोग दुःखी हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । एक समाचार के अनुसार
देश
में लगभग साड़े चार करोड़ से अधिक आबारा कुत्ते हैं और प्रतिवर्ष बीस हजार लोग कुत्तों के काटने से रेबीज रोग के
शिकार होते हैं जबकि कुत्तों के काटने के लगभग दो करोड़ केस होते हैं । यह भयावह स्तिथि महानगरों में अधिक है
जिसका
विवरण सरकारी और निजी अस्पतालों में देखा जा सकता है ।
स्थानीय निकाय आबारा कुत्तों की संख्या को रोकने में असहाय लगते हैं । श्वान बंध्याकरण निराशाजनक है तभी यह
संख्या
बढ़ रही है । अबारा कुत्तों को जहां-तहां पोषित किये जाने से भी इनकी संख्या बढ़ रही है । जिस व्यक्ति को कुत्ते
ने
काटा है वही जानता है कि उसे कितनी पीड़ा होती है और किस तरह उपचार कराना पड़ता है । समाज चाहे तो आबारा श्वान
नियंत्रण में सहयोग कर सकता है । आबारा कुत्तों को भोजन देने से बेहतर है कुत्तों को घर में पाला जाए । इस विषय
में किसी प्रकार के अंधविश्वास के भंवर में न पड़ा जाय । यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है । अबारा कुत्ते तो गंदगी
करते हैं, पालतू कुत्तों को भी श्वान मालिक बीच सड़क या किसी के भी घर के आगे बेझिझक शौच कराते हैं और मना करने
पर
'तुझे देख लूंगा' की धमकी देते हैं । हम भारत माता की जय या वन्देमातरम तो बोलते हैं परन्तु इस भारत माता के
प्रति
अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझते ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.11.2019
खरी खरी - 525 : बच्चों को मोबाइल की लत से बचाओ
मोबाइल फोन आज हमारी अभिन्न आवश्यकता बन गया है । हमने अपने स्वार्थ के कारण अपने बच्चों को मोबाइल का शिकार बना
दिया है । आरम्भ से ही हम उसके मुंह में दूध की बोतल और हाथ पर मोबाइल थमा रहे हैं । अब बच्चे बिना मोबाइल हाथ
में लिए खाना मुंह में नहीं डालने देते । अभिभावक बच्चों को मोबाइल गेम्स लगाकर खाना खिलाने लगे हैं । लगातार
मोबाइल प्रयोग से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है । बच्चे बिना मोबाइल के रोने लगते हैं अर्थात वे मोबाइल की
लत के शिकार हो गए हैं ।
चिकित्सकों का कहना है कि मोबाइल से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडीयेशन निकलता है जो बच्चों की त्वचा और मस्तिष्क एवम्
तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है जिससे कई बार बच्चों को चक्कर आना, जी मिचलाना या उल्टी आना देखा गया है ।
नजर की कमजोरी और आंख की अन्य समस्या भी लगातार मोबाइल प्रयोग से आने लगी है ।
मोबाइल जनित सभी समस्याओं का निदान है कि बच्चों को मोबाइल नहीं दिया जाय । बच्चों को दोस्तों के बीच पार्क में
खेलने का समय दिया जाय । उन्हें अन्य खिलौने भी दिए जा सकते हैं । अभिभावकों को भी बच्चों के सामने मोबाइल कम
प्रयोग करना चाहिए जिससे उन्हें मोबाइल देखने को न मिले । यदि हमने अपनी भावी पीढ़ी को बचाना है, तंदुरुस्त रखना
है, उनकी आंखें बचानी हैं, उनका मस्तिष्क बचाना है तो हमें उनके सामने मोबाइल प्रयोग नहीं करने का संकल्प लेना
ही होगा । बड़े बच्चों को बहुत कम समय के लिए मोबाइल दिया जा सकता है । मोबाइल में गेम्स, कामेडी, मनोरंजन आदि
बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.11.2019
मीठी मीठी - 387 : संविधान दिवस
26 नवम्बर 1949 हुणि भारतक संविधान कैं संविधान सभाल स्वीकार करौ । संविधान लेखण में 2 साल 11 महैण 18 दिन लागीं
। 'लगुल ' किताब बै संविधान दिवसक बार में एक लेख यां उद्धृत छ । सबूं कैं संविधान दिवस कि बधै और शुभकामना
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.11.2019
मीठी मीठी - 386 : 'कुमाउनी शब्द संरचना ' - डॉ चंद्रशेखर पाठक
नौकुचियाताल (भीमताल , उत्तराखंड ) राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन में डॉ चंद्रशेखर पाठक ज्यू रचित किताब
'कुमाउनी शब्द संरचना ' भेंट स्वरूप प्राप्त हैछ । 112 पन्नों कि य किताब 'नवारुण' वसुंधरा गाजियाबाद बै
प्रकाशित है रै । इग्यार अध्यायों में रचित य किताब कएक प्रकारल उपयोगी छ । कुमाउनी में लेखी य किताब में शब्द
परिभाषा, शब्द - अर्थ, कुमाउनी शब्दोंक वर्गीकरण, शब्द संरचना कि पद्धति, पदबंध, वाच्य, पक्ष, वृत्ति, काल और
कुमाऊनी - हिंदीक क्रिया शब्द भौत विस्तृत रूप में लेखि रईं ।
किताब लेखण में डॉ पाठक ज्यूल भौत मेहनत करि रैछ । किताब में वर्णित सामग्रीक सबै संदर्भों और लेखकोंक आभार लै
उनूल व्यक्त करि रौछ । पाठक ज्यू लेखैं रईं - "अंत में उं सबै पुस्तकों और उनार लेखकों कैं नमन करूं जनरि ज्ञान
राशिक आलोक लि पुस्तकक प्रणयन में जाने -अनजाने सहयोग प्राप्त भेौछ । य पुस्तक निश्चित रूपलि अध्येताओं,
जिज्ञासुओं, छात्र -छात्राओं और शोधकर्ताओं लिजिक उपयोगी सिद्ध होेलि, यसि आशा मेरि छ ।" वास्तव में डॉ पाठक
ज्यूक श्रम -साधना कैं नमन करनू जो उनूल हमरि भाषाक जिज्ञासुओंक लिजी एक संदर्भ ग्रंथ प्रस्तुत करौ । पाठक ज्यू
कैं भौत -भौत बधै और शुभकामना । संपर्क मोब.9412104971.
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.11.2019
बिरखांत -291 : खूब गाली दो यारो !!
कुछ मित्रों को बुरा लगेगा और लगना भी चाहिए | अगर बुरा लगा तो शायद अंतःकरण से महसूस भी करेंगे | सोशल मीडिया
में अशिष्टता, गाली और भौंडापन को हमने ‘अशोभनीय’ बताया तो कई मित्र अनेकों उदाहरण के साथ इस अपसंस्कृति के
समर्थक बन गए | तर्क दिया गया कि रंगमंच में, होली में तथा कई अन्य जगह पर ये सब चलता है | चलता है तो चलाओ भाई
| हम किसी को कैसे रोक सकते हैं | केवल अपनी बात ही तो कह सकते हैं |
दुनिया तो रंगमंच के कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और गायकों को शिष्ट समझती है | उनसे सदैव ही संदेशात्मक शिष्ट
कला की ही उम्मीद करती है, समाज सुधार की उम्मीद करती है | मेरे विचार से जो लोग इस तरह अशिष्टता का अपनी
वाकपटुता या अनुचित तथ्यों से समर्थन करते हैं वे शायद शराब या किसी नशे में डूबी हुई हालात वालों की बात करते
हैं अन्यथा गाली तो गाली है |
सड़क पर एक शराबी या सिरफिरा यदि गालियां देते हुए चला जाता है तो उसे स्त्री-पुरुष- बच्चे सभी सुनते हैं | वहाँ
उससे कौन क्या कहेगा ? फिर भी रोकने वाले उसे रोकने का प्रयास करते हैं परन्तु मंच या सोशल मीडिया में तो यह
सर्वथा अनुचित, अश्लील और अशिष्ट ही कहा जाएगा | क्या हमारे कलाकार या वक्ता किसी मंच से दर्शकों के सामने या घर
में मां- बहन की गाली देते हैं ? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर भी यह नहीं होना चाहिए ।
हास्य के नाम पर चुटकुलों में अक्सर अत्यधिक आपतिजनक या द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग भी खूब हो रहा है, यह भी
अशिष्ट है | अब जिस मित्र को भी हमारा तर्क ठीक नहीं लगता तो उनसे हम क्षमा ही मांगेंगे और कहेंगे कि आपको जो
अच्छा लगे वही बोलो परन्तु अपने तर्क के बारे में अपने शुभेच्छुओं और परिजनों से भी पूछ लें | यदि सभी ने आपकी
गाली या अशिष्टता का समर्थन किया है तो हमें जम कर, पानी पी पी कर गाली दें | हम आपकी गाली जरूर सुनेंगे क्योंकि
जो अनुचित है उसे अनुचित कहने का गुनाह तो हमने किया ही है ।
आजकल अनुचित का खुलकर विरोध नहीं किया जाता | लोग डरते हैं और मसमसाते हुए निकल लेते हैं | हम गाली का जबाब भी
गाली से देने में विश्वास नहीं करते | कहा है -
“गारी देई एक है,
पलटी भई अनेक;
जो पलटू पलटे नहीं,
रही एक की एक |”
साथ ही हम मसमसाने में भी विश्वास नहीं करते -
“मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौ बाट में जो दव
हिम्मत ल उकें फोड़णी चैनी |”
(मसमसाने से कुछ नहीं होता, निडर होकर मुंह खोलने वाले चाहिए, रास्ते में जो चट्टान अटकी है उसे हिम्मत से फोड़ने
वाले चाहिए) | इसी बहाने अकेले ही चट्टान तोड़कर सड़क बनाने वाले पद्मश्री दशरथ माझी का स्मरण भी कर लेते हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2019
खरी खरी - 523 : यमुना का संताप
स्वच्छ हुई नहीं
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।
व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।
आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2019
खरी खरी - 521 : देश में सांप्रदायिक एकता बहुत जरूरी
कुछ मित्र ताने मारते हुए मुझ से कहते हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे
पड़े
रहते हो ?' मित्रो, ऐसा नहीं है । मैं हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत
होकर कुछ शब्द लिख देता हूं । चार दशक से कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और
विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध में लिखता- बोलता हूं ।
कबीर के दोनों दोहे याद हैं । पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार; ता पर ये चाकी भली, पीस खाये संसार
।' दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय; ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।' मोको कहां ढूंढे
रे बंदे भी याद है । 'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में; ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना एकांत निवास
में ।' बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है, "मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका मदिरालय एक
ही
है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती मधुशाला
।"
दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना चाहिए ।
सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता था,
"हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा कि
हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते -जाते
अपने
षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।
देश को स्वतंत्र हुए 72 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का षड्यंत्र आज भी
जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर वे सियासत
किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे । सर्वोच्च न्यायालय का आभार
जो
9 नवम्बर 2019 को सर्वसम्मति से देशहित में अयोध्या का केस सुलटाया । सियासत वाले अपनी दुकान से अब कुछ अन्य
आइटम
बेचने की सोचेंगे क्योंकि दुकान तो बंद होने से रही ।
स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है । धर्म और
आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए नफरत का
पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने वालों से
सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.11.2019
मीठी मीठी - 381 : भारत रत्न पं जवाहर लाल नेहरू जन्मदिन
आज 14 नवम्बर देशक पैल प्रधानमंत्री भारत रत्न, पंडित जवाहर लाल नेहरूक जन्मदिन छ । उनार बार
में एक नान लेख
किताब "लगुल " बै यां उद्धृत छ जैक हिंदी में अनुवाद लै दगाड़ में छ ताकि नानतिन लै हमरि भाषा
सिखि सको ।
नेहरू ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
14.11.2019
मीठी मीठी - 380 : सफल रौछ नौकुचियाताल राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन - 2019
तीन दिनी इग्यारूं 'राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन' मौनी माई आश्रम, भक्ति धाम, नौकुचियताल
(नैनीताल ) में 10
बटि 12 नवम्बर 2019 तक कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी अल्मोड़ा व
'पहरू' कुमाउनी
मासिक पत्रिका द्वारा भौत भली भांत आयोजित करिगो । सम्मेलन में देश भर बटि कुमाउनी क रचनाकार और
कुमाउनी भाषा
प्रेमी लोग ऐ रौछी । यौ मौक पर कएक राजनेता, पत्रकार, साहित्यकार, गणमान्य व्यक्ति और
सांस्कृतिक कलाकार लै ऐ
रौछी । विशेष बात य छ कि या एक सांध्यकालीन सत्र में आयोजित कुमाउनी कवि सम्मेलन में करीब 40
कवियोंल काव्य
पाठ करौ । रोजाना पैल सत्रक शुरुआत में जयनन्दा लोक कला केन्द्रक कलाकरों द्वारा चंदन बोरा
ज्यूक नेतृत्व में
स्वागत गीत गै बेर सबै आगन्तुकोंक सम्मान हौछ ।
सम्मेलन में हमरि भाषा और यैक रचनाकारों संबंधी कएक प्रस्ताव प्रस्ताव लै पास हईं जै में मुख्य
छी हमरि भाषा
कैं संविधान क आठूं अनुसूची में शामिल करण और देहरादून में ठंड पड़ी भाषा संस्थान कैं पुनर्जीवित
करि बेर भाषा
और साहित्यकारों क ख़्याल करण । कुमाउनीक प्रचारक लिजी अभियान चलूण और पढ़ण कि संस्कृतिक दी जगूण
कि बात लै हैछ
।
सम्मेलन में कएक किताबों क लै लोकार्पण हौछ । म्यरि किताब " हमरि भाषा हमरि पछयाण "(कुमाउनी
भाषा सिखलाई) क लै
सम्मेलन में लोकार्पण हौछ । सम्मेलन में कएक रचनाकारों कैं कुमाउनी भाषा क अलग-अलग विधाओं में
सम्मानित लै
करिगो । कुल मिलै बेर यौ एक भौत भल और सफल सम्मेलन छी । सबै भागीदारोंल आयोजन समिति कि पुरि टीम
कैं साधुवाद
ज्ञापित करौ । सम्मेलन कैं सफल बनूण में योगदान दिणी लोगों क लै आभार प्रकट करिगो ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.11.2019
खरी खरी - 518 : इंसानियत की डोर
मेरे चारों ओर सब
चोर-लुटेरे ही नहीं हैं,
कुछ इंसानियत की डोर
थामे भी चल रहे हैं ।
मिलावट के धंधे में
व्यस्त नहीं हैं सभी,
कुछ काले कारनामों को
बेनकाब भी कर रहे हैं ।
सब कौवे बगुले गिद्ध
नहीं बने हैं अभी,
कुछ कोयल बुलबुल मोर
की तरह जी रहे हैं,
सूकर गिरगिट मगरमच्छ
नहीं हुए हैं सभी,
कुछ अश्व श्वान गज सी
वफ़ा भी कर रहे हैं ।
घूस-भ्रष्टाचार में अभी
नहीं बिके हैं सब,
ईमानदारी से भी कुछ
गुजारा कर रहे हैं,
अभी सब बेईमानी में
लिप्त नहीं हुए हैं ,
कुछ इसे पाप की
कमाई भी समझ रहे हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.11.2019
खरी खरी - 517 : गिच खोलणी चैनी
मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मतल उकैं फोड़णी चैनी ।
अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
बिन कर्म करिए
फल नि मिलन,
अन्यार में एक
मस्याव जगूणी चैनी ।
मसमसै..
जात - धरम पर जो
लडूं रईं हमुकैं,
झुठ वैद करि बेर
बहकूं रईं सबूं कैं,
यास हैवानों कैं भुड़ जास
चुटणी चैनी ।
मसमसै ...
गिरगिट जस रंग
जो बदलैं रईं जां तां,
मगरमच्छ क आंसू
टपकूं रईं यां वां,
इनुकैं बीच बाट में
घसोड़णी चैनी ।
मसमसै...
बिना किताब लेखिए
पुरस्कार मिलें रईं ,
लोग गिच -आंख -कान
बंद करि भै रईं ,
य जुगाड़ पर लै खुलि बेर
बात करणी चैनी ।
मसमसै बेर...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.11.2019
खरी खरी - 516 : कितने देवता ?
देवता कितने हैं ? इस पर लोग बहस करते रहते हैं । देवता तो 33 कोटि हों या 33 करोड़ । ( बताए 33
कोटि अर्थात 33
प्रकार के हैं ।) पर बहस क्यों हो ? यह अनंत बहस है । कभी समाप्त नहीं होगी । हम एक ईश्वर की
बात करें । जिसको
जो देवता पूजना हो पूजे । ईश्वर/भगवान केवल एक है और वह निराकार है । उसमें विश्वास रखने से
हमें ताकत मिलती
है, शांति मिलती है और अंहकार दूर रहता है तथा दुःख को सहने की शक्ति मिलती है । यह श्रध्दा का
सवाल है । यही
आदि औऱ यही अंत । इस पर इससे ज्यादा वार्ता करना व्यर्थ है ।
हम वर्तमान में जी रहे हैं और पौराणिक युग की चर्चाओं को ही समय दे रहे हैं । यह बहस क्यों नहीं
होती कि देश
के बच्चे कुपोषित क्यों हैं ? यह बहस क्यों नहीं हो कि देश अंधविश्वास के घेरे से बाहर कैसे आये
? बहस तो
कितने दीए जलाएं, इस पर भी होनी चाहिए और पटाखों के निषेध पर भी होनी चाहिए । यह वार्ता क्यों
नहीं होती कि
नदियों में विसर्जन सहित सभी प्रकार की गंदगी मत डालो । इस वैज्ञानिक युग में उस धरती की बात
नहीं हो रही जो
हमारे शोषण से त्रस्त है और जलवायु का अचानक परिवर्तन हो रहा है । पर्यावरण को बचाने की बहस भी
बहुत जरूरी है
। प्रत्येक त्यौहार पर एक पौधा रोपने की भी बहस होनी चाहिए । अतः समाज को स्वयं चेतना/सोचना
होगा कि हम अपने
को किस बहस में उलझाएं ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.11.2019
बिरखांत- 289 : कब थमेंगी सड़क दुर्घटनाएं ?
एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना में करीब एक लाख तीस हजार (350 मृत्यु
प्रतिदिन
अर्थात प्रति चार मिनट में एक मृत्यु ) लोग अपनी जान गंवाते हैं | इस तरह बेमौत मृत्यु में
हमारा देश विश्व
में सबसे आगे बताया जाता हैं | कैंसर, क्षय रोग, मधुमेह, हृदय गति व्यवधान आदि रोंगों के बाद
देश में सड़क
दुर्घटना में मरने वालों के संख्या आती है | इस बेमौत मृत्यु में दुपहिया वाहन चालक/सवार सबसे
अधिक हैं जिसमें
18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों की मृत्यु दर 12 % है | सड़क दुर्घटना में करीब पांच लाख लोग घायल
होते हैं
जिनमें अधिकाँश अपंग हो जाते हैं | दो वर्ष पहले केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की अकाल मृत्यु
भी 3 जून 2014
को सड़क दुर्घटना में हुयी थी | वर्तमान में कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब हम टी वी में
क्षत-विक्षत शव तथा
चकनाचूर हुए वाहनों के दृश्य नहीं देखते हों |
देश की राजधानी में प्रतिदिन सड़क दुर्घटना में पांच लोग मरते हैं जिनमें औसतन दो पैदल यात्री और
दो दुपहिया
चालक हैं | प्रति सप्ताह दो साइकिल चालक तथा एक कार चालक सड़क दुर्घटना में मरता है | सड़क
दुर्घटनाओं के मुख्य
कारण हैं बिना लाइसेंस के वाहन चलाना, वाहन चलाने का अल्पज्ञान होना, सिग्नल जम्पिंग, वाहन से
सिग्नल नहीं
देना, ओवर स्पीड (गति सीमा से अधिक ), ओवर लोड, शराब पीकर वाहन चलाना, रोड रेस (एक दूसरे से आगे
निकलने की
जल्दी), सड़क पर गलत पार्किंग, चालक की थकान या झपकी आना, लापरवाही, डेक का शोर अथवा मोबाइल पर
ध्यान बटना आदि
| विपरीत दिशा से आरहे वाहन की गलती, हेलमेट कोताही, सड़क के गड्डे, तथा मशीनी खराबी आदि भी भीषण
दुर्घटना के
अन्य कारण हैं |
इन सब दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है लोगों में क़ानून का डर नहीं होना | हमारे देश के लोग विदेश
जाते हैं और
वहाँ के नियम-क़ानून का पालन बखूबी करते हैं | स्वदेश आते ही यहां के क़ानून को अंगूठा दिखा देते
हैं क्योंकि
यहां क़ानून का डर नहीं है | सब जानते हैं कि शराब पीकर वाहन चलाने सहित सभी सड़क सुरक्षा के
नियमों की अवहेलना
में जुर्माना है परन्तु लोगों को जुर्माने की चिंता नहीं है | उन्हें घूस देकर छूटने का पूरा
भरोसा है या
जुर्माने की रकम अदा करने के फ़िक्र नहीं हैं | प्रतिवर्ष लाखों चालान भी कटते हैं |
हमारे देश में बच्चे अपने अभिभावकों का वाहन खुलेआम चला कर दुर्घटना में कई निर्दोषों को मार
देते हैं | कई
बार बड़ी तेजी से उड़ती मोटरबाइक में एक साथ बैठे छै- सात बच्चे सड़क पर जोर जोर से हॉर्न बजाते
हुए देखे गए हैं
| इन दुपहियों में कार या ट्रक का हॉर्न लगाकर, रात हो या दिन जोर जोर से हॉर्न बजाते हुए उड़
जाना इन बिगडैल
बच्चों का फैशन बन गया है | पुलिस या तो होती ही नहीं या देख- सुन कर भी अनजान बनी रहती है | अब
जब दुर्घटनाओं
की अति हो गई तब इन नाबालिगों द्वारा वाहन चलाने पर अभिभावकों को दण्डित करने की मांग उठ रही है
| सड़कों पर
गड्ढे भी दुर्घटना का मुख्य कारण बन गए है जिन्हें शीघ्र भरा जाना चाहिए ।
इस बीच उत्तराखंड में भी सड़क दुर्घटनाओं की बाड़ सी आ गई है जिससे कई घर उजड़ गए हैं | बारात,
पर्यटन, तीर्थाटन,
व्यवसाय आदि से जुड़े कई वाहन आये दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं | इसका कारण भी सभी सड़क सुरक्षा
के नियमों की
अवहेलना ही है | इन सभी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हमें अपने घर से शुरुआत करनी पड़ेगी | अपने
नाबालिग बच्चों
को भूलकर भी कोई वाहन नहीं दें ताकि सड़क पर कोई अनहोनी न हो | लाइसेंस प्राप्त बालिंग बच्चों का
प्रशिक्षण भी
उत्तम होना चाहिए | आप स्वयं भी वाहन चलाते समय संयम रखें क्योंकि दुर्घटना से देर भली | स्मरण
रहे आपका
परिवार प्रतिदिन आपकी सकुशल घर वापसी के इंतज़ार में रहता है |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
07.11.2019
मीठी मीठी - 379 : 'धार वोर - धार पोर ' - दिनेश ध्यानी
3 नवंबर 2019 हुणि हिंदी और गढ़वालि क वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी ज्यूल मिकैं आपण लेखी
गढ़वालि कविता
संग्रह "धार वोर - धार पोर " गढ़वाल भवन नई दिल्ली में भेंट करी । 70 कविताओंक य कविता संग्रह
में 22 छिटगा
कविता लै छीं । ध्यानी ज्यूल य किताब वरिष्ठ साहित्यकार दिवंगत भगवती प्रसाद नौटियाल ज्यूक
चरणों में भेंट करि
रैछ । नौटियाल ज्यू कि भौत याद ऐ किलै कि एक पत्रिका में उनार और म्यार आँखर दगड़ - दगड़ी छपछी
भौत पैली।
किताब में वरिष्ठ साहित्यकार मदन मोहन डुकलान ज्यूल भलि भूमिका लेखि रैछ । विशेष बात य छ कि
ध्यानी ज्यूल य
पोथि में करीब तीन दर्जन कलमकारों, कवियों और पत्रकारों कैं याद करि रौछ जनुमें एक नाम म्यर लै
छ ।
कविता संग्रह में सबै कविता एक है भाल एक छीं । कैकि चर्चा करूं और कैकि नि करूं है जांरै । फिर
लै कविता
वन्दना, धार वोर - धार पोर, बुबा जी, पाणी, नाता -रिश्ता, तेरि याद, भेदभाव, फूलदेई और छिटागा
भौत भाल और
मार्मिक कविता छीं । कविता वन्दना में मां सरस्वती हैं प्रार्थना छ - " बेटि - ब्याटा फरक नि हो
कखि, जाति -
पाति न हंकार हो ।"
एक कविता, कविता संग्रहक नाम पर लै छ, 'धार वो र - धार पोर' । कविताक भाव देखो -
"अद बाटम च जिंदगानी
इनै उनै ठौर निरै
धार वोर - धार पोर
झट्ट छंटेनु बसौ नि हवै ।"
कविता 'लासनौ पात ' में य दुख प्रकट है रौछ कि खेति बांजि हैगे और एक लासण क पतेल लै हरै गो ।
कविता ' बुबा जी
' भौत मार्मिक छ । बौज्यू कि याद कवि हृदय में जमि हुई छ, "
"अमणि बुबा जी
नि छन हम्हरा बीच
पण वोंकि बुद्धि -सीख
बा टुल बाथौ पाणी रैंद
हमुथैं दिन रात ।"
कविता ' नाता - रिश्ता ' लै भौत वेदना भरी कविता छ जमें रिश्तों कि चिंता है रैछ -
"मठु -मठु कै, जरा -जरा कैकि
नाता रिश्ता हर्चंणा छन
पीठि का अपणा भै दगड्या
घड़ि म सोरा हूणा छन ।"
एक छिटगा लै देखो -
" सक अर सुबौ न बढै दे
दूरी हमरा दरम्यान
नथर यथगा बुरु
तु बि नि छै, मि बि नि छौं ।"
उम्मीद करनू कि सब पाठकोंल य कविता संग्रह पढ़न चैंछ । कविताओं में उत्तराखंडक धरातल और खुशबू
भौत महकि रैछ ।
जो लै यूं कविताओं कैं पढ़ल उकैं वांकि अन्वार जरूर मिललि । ध्यानी ज्यू कैं भौत - भौत बधै और
शुभकामना
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.11.2019
खरी खरी - 516 :प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
1.आवश्यक वस्तुओं के अलावा कोई माल वाहक डीजल वाहन दिल्ली में ना घुसे ।
2.दिल्ली एन सी आर में निमार्ण करने व ढहाने पर एक लाख का जुर्माना। स्थानीय व जोनल आधिकारी
होगें
जम्मेदार।
3.एन सी आर में कूड़ा जलाने पर 5000 रुपये का जुर्माना। खुल्ले में कूड़ा नहीं डाला जायेगा।
4.एनसीआर में बिजली कटौती नही की जायेगी ताकि जनरेटर का इस्तेमाल ना करना पड़े।अगले आदेश तक
जनरेटर पर पूरी तरह
रोक।
5.जाम से बचने के लिएं ट्रैफिक प्लान तैयार किया जाय। सड़कों पर पानी का छिड़काव करना होगा।
6.लोगों को जागरूक करने के लिए कोर्ट के फैसले का टीवी ,मिडिया के सारे माध्यम से थाना, ताकुला,
तहसील स्तर तक
व्यापक प्रचार हो।
7.दिल्ली व अन्य राज्य सरकारें तीन सप्ताह में बताऐं कि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए
कौन से उपाय किए
जांय।।
जन हित में जारी।
पूरन चन्द्र कांडपाल
(साभार सो मी मित्र बसंत जोशी जी )
05.11.2019
मीठी मीठी - 378 : कहानी संग्रह " नौ वर्षक ब्या" - रमेश हितैषी
3 नवम्बर 2019 हुणि गढ़वाल भवन नई दिल्ली में उत्तराखंड आर्य समाज विकास समिति (पं) दिल्ली
द्वारा आयोजित कवि
सम्मेलन समारोह में हिंदी, कुमाउनी और गढ़वालि भाषाक लेखक रमेश हितैषी ज्यू कि पांचू किताब
कुमाउनी कहानि
संग्रह " नौ वर्षक ब्या" क लोकार्पण हौछ ।
य किताब में उत्तराखंडक धरातल दगै जुड़ी हुई 22 कहानि छीं । यूं कहानियों में पहाड़क लोकजीवन,
दुख -पीड़, रहन-
सहन, रीति -रिवाज, भाषा -संस्कृति, शिक्षा - स्तर, स्यैणियांक कंकाव, अंधविश्वास कि जकड़, नशा
-धूम्रपान कि
राव -घोव देखण में ऐंछ । हितैषी ज्यूू कि कहानियों में कल्पना बिलकुल नजर नि ऊंनि बल्कि यूं
कहानियों में
यथार्थ भरी हुई छ । समाज में जस लै उनुकैं नजर आ, उनूल उई टिपि दे । सामाजिक विषमता पर यूं
कहानियों में भौत
वेदना छ ।
कहानी "नौ वर्षक ब्या", "मोती बल्द", "हुड़क्याण" "पिरमू सिपाइ" "रतनु बैदि" आदि एक है एक भौत
भाल कहानि छीं ।
कहानियों में देशप्रेम, कर्म -संस्कृति कि झलक लै छ और सामाजिक सौहार्द कि अपील लै छ । उम्मीद छ
कि अतिशयोक्ति
है दूर और पारिवारिक संवेदना में भरपूर य कहानि संग्रह पाठकों कैं भल लागल । किताब प्राप्ति
लिजी
मोब.9910679220 पर संपर्क करण चैंछ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.11.2019
मीठी मीठी - 377: उत्तराखंड आर्य समाज विकास परिषद में हमरि भाषाक कवि सम्मेलन
बेई 3 नवम्बर 2019 हुणि गढ़वाल भवन नई दिल्ली क अलकनंदा सभागार में उत्तराखंड आर्य समाज विकास
समिति (पं) कि
को - आपरेटिव (अर्बन) थ्रिफ्ट/क्रेडिट सोसाईटी लि. दिल्ली द्वारा 10उं वार्षिक आम बैठक कि बाद
कुमाउनी -
गढ़वाली कवि सम्मेलन आयोजित करिगो । य कवि सम्मेलन में करीब 28 कवियों ल काव्य पाठ करौ और
अध्यक्षता वरिष्ठ
कवि ललित केशवान ज्यूल करी । कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करणी कवि छी सर्वश्री ललित केशवान, पूरन
चन्द्र
कांडपाल, दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, चंदन प्रेमी, ओम प्रकाश आर्य, मदन डुकलान, गिरीश भावुक,
पयाश पोखड़ा, डॉ
सतीश कालेश्वरी, द्वारका प्रसाद चमोली, नीरज बवाड़ी, जगत कुमाऊनी, जगमोहन रावत, सुरजीत सिंह,
अनूप रावत,
प्रकाश मिलनसार, विरेन्द्र जुयाल, संतोष जोशी, गोविंद राम, बी पी जुयाल, जगदीश तिवारी, कीर्तन
कुमार, आशीष
सुंदरियाल, रोशन लाल, डॉ सुशील सेमवाल, प्रकाश आर्य और संजय आर्य ।
हाम उत्तराखंड आर्य समाज विकास समिति कैं विशेष धन्यवाद दीण चानू कि उनूल आपणी वार्षिक बैठक में
हमरि भाषा क
कवि सम्मेलन आयोजित करौ । य तब हौछ जब उनार मन में हमरि भाषा कैं सिंचित करण कि सोच मौजूद छी ।
य मौक पर
संस्था द्वारा कुमाउनी - गढ़वाली साहित्य बेचण क काउंटर लै उपलब्ध करिगो जां बै कएक
साहित्यकारों क किताब
लोगों ल ख़रीदीं । य मौक पर रमेश हितैषी ज्यू रचित कुमाउनी कहानि संग्रह "नौ वर्ष के ब्या " क
लोकार्पण लै हौछ
जैकि सूक्ष्म समीक्षा लै करिगे। सम्मेलन कैं डॉ सत्येन्द्र प्रयासी और वरिष्ठ पत्रकार चारु
तिवारी ज्यू ल लै
संबोधित करौ । य मौक पर पत्रकार सत्येन्द्र रावत, संस्थाक अध्यक्ष गुसाई राम आर्य, UFNI अध्यक्ष
श्रीमती
संयोगिता ध्यानी समेत कएक गणमान्य व्यक्ति और संस्थाक पदाधिकारी मौजूद छी । सफल और सुव्यवस्थित
मंच संचालन
रमेश हितैषी ज्यूल करौ । जल पान व्यवस्था क साथ अध्यक्ष द्वारा सबै आगंतुकों आभार व्यक्त करिगो
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
04.11.2019
मीठी मीठी - 376 : कुमगढ़ पत्रिका
उत्तराखंडी भाषाओं कि मासिक पत्रिका "कुमगढ़ " जो काठगोदाम बै प्रकाशित हिंछ वीक लै आपूं सदस्य
बनि सकछा । छठूं
वर्ष में चली य पत्रिकाक लै मि आजीवन सदस्य छ्यूँ । पत्रिका में कुमाउनी और गढ़वाली द्विये
साहित्य कैं जागि
मिलीं । संपादक दामोदर जोशी 'देवांशु' ,मो.9719247882, मूल्य ₹ 25/- । पत्रिकाक सितम्बर -
अक्टूबर 2019 अंंक
में म्येरि कविता " मनौ 15 अगस्त " छपि रैछ और भ्यार क आवरण में म्यार किताबों कि सूची लै छापि
रैछ । संपादक
ज्यू कैं धन्यवाद और आभार ।
' कुमगढ़ ' पत्रिका क मुख्य उद्देश्य छ उत्तराखंड कि लोक भाषाओं क दस्तावेजीकरण क सामूहिक
प्रयास । पत्रिका
में कुमाउनी और गढ़वाली साहित्य कि सबै विधाओं कि चर्चा हिंछ । क्वे लै पाठक आपणी रचना संपादक
कि पास भेेजि
सकूं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.11.2019
खरी खरी - 515 : दिल्ली में उत्तराखंडी संस्थाएं
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अनुमान लगाकर लोग बताते हैं कि यहां लगभग 25 से 30 लाख तक
उत्तराखंड के
लोग रहते हैं जो दिल्ली की आबादी ( 1.9 cr वर्ष 2011 ) का 7वां हिस्सा बताया जाता है । इस
जनसंख्या की कोई
ऑपचारिक गिनती नहीं है । उत्तराखंड एकता मंच के नाम से 20 नवंबर 2016 को दिल्ली के रामलीला
मैदान में एक रैली
भी उत्तराखंड समाज ने की । वहां लोग आए परंतु कितने लोग आए उसका भी अनुमान नहीं लगाया जा सका ।
( कृपया किसी
को ज्ञात है तो बताने का कष्ट करें ।) इतना जरूर है कि यह भीड़ अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से
बहुत कम थी
क्योंकि रामलीला मैदान की कैपेसिटी लगभग एक लाख से अधिक बताई जाती है । दिल्ली एनसीआर में
उत्तराखंडी जनसंख्या
की करीब 400 से 500 तक (अनुमानित ) सामाजिक संस्थाएं बताई जाती हैं । इनकी भी गिनती किसी ने
नहीं की हैं लेकिन
उत्तराखंडी समाज की संस्थाएं दिल्ली के कोने - कोने में या हर गली - मोहल्ले में हैं । इन
संस्थाओं में
पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों प्रकार की संस्था हैं जो अपनी संस्कृति, भाषा, त्यौहार और रीति -
रिवाजों को सिंचित
करते रहते हैं । यही उत्तराखंड समाज की एक बहुत बड़ी पहचान है ।
पंजीकृत संस्थाओं में अधिकांश संस्थाएं पंजीयन कानून 1860 के हिसाब से निरंतरता नहीं बनाए रखती
। प्रत्येक
पंजीकृत संस्था को प्रतिवर्ष 31 मार्च को बैलेंस सीट और बैंक खाते के परिचालन का विवरण अपनी
संस्था के सदस्यों
को महासमिति की आम बैठक में देना होता है । यही नियम प्रत्येक RWA के लिए भी होता है । हम सब कई
ऐसी संस्थाओं
को जानते हैं जो पंजीकृत केवल लेटर हेड में हैं जबकि जमीन में उनकी कभी कोई क्रियान्वयन गतिविधि
नजर नहीं आई ।
इनमें कुछ ऐसी संस्थाएं भी हैं जिनको दो दसक से भी अधिक हो गए हैं । पता नहीं संस्था है भी या
नहीं परन्तु
उनके पदाधिकारी अवश्य यदा कदा कई मंचों से पुकारे जाते हैं, तब पता लगता है कि अमुक संस्था भी
कहीं न कहीं है
।
कुछ मित्रों को इस बात का पता नहीं है कि वार्षिक ऑडिट, बैलेंस शीट और संस्था में यदि कुछ बदलाव
हुआ है तो
इसकी सूचना पंजीयक सोसाइटी को देना आवश्यक होता है अन्यथा उनका पंजीयन रद्द हो जाता है । पुनः
पंजीयन के लिए
फिर नए सिरे से पूरी कार्यवाही करनी होती है । सभी मित्रों से अनुरोध है कि यदि आपके पास दिल्ली
एनसीआर में
उत्तराखण्डियों की जनसंख्या और सामाजिक संस्थाओं की अनुमानित संख्या ज्ञात हो तो साझा करने का
कष्ट करें ।
संस्थाओं को जीवंत रखना आसान कार्य नहीं है । अपने समाज के लिए जनहित में प्रतिबद्ध इन सभी
संस्थाओं को हम नमन
करते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
02.11.2019
बिरखांत -288 : प्रदूषण मुक्ति के सख्त कदम
यदि महानगरों में प्रदूषण घटाना है तो सख्त कदम तो उठाने ही पड़ेंगे । अपने स्वास्थ्य के खातिर
हमने कोई बदलाव
स्वीकार नहीं किया । वर्त्तमान दिल्ली सरकार ने दो बार सम- विषम (ऑड -ईवन ) का प्रयोग कर भी
लिया है परंतु
नियमित नहीं हो सका जो अब नियमित करना ही होगा । अपनी सुख-सुविधा के खातिर हम बच्चों के नाजुक
फेफड़ों की तरफ
नहीं देख रहे । अब पुनः इस महीने 15 दिन के लिए आड - इवन की बात हो रही है ।
सरकार के भरसक प्रयास करने पर भी रुपए का गिरना जारी है जो ₹ 71.07 प्रति डालर हो चुका है । यह
स्तिथि लगातार
आयत के बढ़ने और निर्यात के घटने से उत्पन्न हुई । आयात की सूची में सबसे अधिक आयात कच्चे तेल का
होता है। हम
कुल खपत का 80 % तेल आयात करते हैं जिसकी कीमत डालर में देनी होती है। राजधानी के पड़ोसी राज्य
धान की पराली
जला रहे हैं । जन - जागृति उन पर बेअसर रही । सरकार रात - दिन जोर - शोर से कह रही है कि हम
टेक्नोलोजी में
बहुत आगे हैं परन्तु हम वह तकनीक नहीं खोज सके हैं जिससे पराली का कुछ सदुपयोग हो और किसान को
पराली जलानी
नहीं पड़े । हमारे देश में मानव जनित प्रदूषण अधिक है । दीवाली के पटाखे, धान की पराली और
कंस्ट्रक्शन की धूल
तथा कूड़े का जलना । इनसे सख्ती से नहीं निपटा जाता । भ्रष्टाचार की वजह से देश में बैन के बाद
भी दीपावली पर
अवैध पटाखे देर रात तक जले जिनकी आवाज कानून के रखवालों को नहीं सुनाई दी ।
देश में सड़कों पर कारों की संख्या बहुत है जिसे घटाया नहीं जा सकता बल्कि यह संख्या दिनोदिन
बढ़ती रहेगी।
वर्षों से यह अपील जारी है कि लोग कार -पूलिंग करें अर्थात एक ही गंतव्य स्थान तक जाने के लिए
दो-चार व्यक्ति
बारी-बारी से एक ही कार का उपयोग करें जिससे चार कारों की जगह सड़क पर एक ही कार चलेगी। पेट्रोल
भी बचेगा और
सड़क पर वाहन भीड़ भी कम होगी। इस अपील पर बिलकुल भी अमल नहीं हुआ। कार मालिक सार्वजानिक वाहन (बस
) की कमी और
समय अनिश्चितता के कारण उसका उपयोग करना पसंद नहीं करते।
सरकार यदि देश के सभी महानगरों के लिए यह क़ानून बना दे कि सम और विषम संख्या की कारें बारी-बारी
से सप्ताह में
तीन-तीन दिन के लिए ही सड़क पर चलें अर्थात जिन कारों के अंत में 1, 3, 5 ,7 ,9 (विषम संख्या )
हो वें विषम
तारीख को चलें और जिनके अंत में 2, 4, 6, 8, 0 (सम संख्या ) हो वे सम तारीख को चलें तथा रविवार
को सभी वाहन
चलें तो इससे सड़कों पर वाहन संख्या घट कर आधी रह जायेगी, तेल का आयात घटेगा, प्रदूषण कम होगा और
प्रदूषण जनित
बीमारियां कम हो जाएंगी क्योंकि बच्चों के फेफड़ों पर इस प्रदूषण का बहुत बड़ा कुप्रभाव पड़ रहा है
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.11.2019
खरी खरी - 515 : टी बी (क्षय, तपेदिक ) से कैसे बचे देश ?
सरकार ने वर्ष 2025 तक टी बी को देश से खत्म करने का लक्ष्य रखा है लेकिन देश में इस रोग के
मरीजों की संख्या
बढ़ रही है । टी बी से हर साल करीब 5 लाख लोग हमारे देश में मर जाते हैं । देश में करीब 22 लाख
से अधिक टी बी
के रोगी हैं जिनमें करीब डेढ़ लाख बच्चे हैं ।
टी बी रोग के मुख्य लक्षण हैं लगातार सूखी खांसी, बुखार, वजन कम होना, रात को पसीना आना, छाती
में दर्द, भूख
कम लगना और छोटी छोटी सांस लेना | यह एक मध्यम गति का संक्रामक रोग है जो हवा से (सांस द्वारा)
फैलता है |
रोगी के फेफड़े में अड्डा बनाए रोगाणु उसकी सांस से, खासने से या छींक से बाहर आते हैं जिससे
उसकी नजदीकी हवा
रोगाणुयुक्त हो जाती है | उस हवा को जब स्वस्थ व्यक्ति सांस लेता है तो ये रोगाणु उसके फेफड़े
में परवेश कर उसे
रोगी बना सकते हैं | किसी भी भीड़ में यदि एक भी रोगी टी बी का है तो वह किसी भी स्वस्थ व्यक्ति
को यह रोग
फैला सकता है ।
जिन लोगों का इम्यून सिस्टम ( रोग प्रतिरोधक तंत्र) कमजोर है वे जल्दी टी बी की चपेट में आते
हैं । कुपोषण
इसका मुख्य कारण है । धूम्रपान जैसे बीड़ी, सिगरेट व तम्बाकू, हुक्का, सुल्पा आदि इस रोग को
अधिक खतरनाक बनाते
हैं । सड़क पर उड़ने वाली धूल - मिट्टी और कंस्ट्रक्शन कार्य से जनित प्रदूषण मनुष्य के फेफड़ों
को रोग लगने
में मदद करता है । दूषित खान - पान और जल से भी इस रोग की वृद्धि होती है जो फेफड़ों के आलावा
दिमाग, हड्डी,
गुर्दे, आंत, गर्भाशय सहित शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है । अतः टीबी से बचने के
लिए उपरोक्त
लक्षण होने पर रोगी को अस्पताल ले जाना तथा बच्चों को जन्म लेते ही बी सी जी का टीका लगाना बहुत
जरूरी है
।
नियमित संतुलित आहार नहीं मिलने पर भी रोग की संभावना रहती है । यही कारण है यह रोग गरीब तबके
में अधिक पाया
जाता है । जन जागृति ही टी बी का सबसे बड़ा बचाव है । अतः जिस व्यक्ति को आप निरन्तर खांसते हुए
देखते हैं उसे
एक बार सरकारी अस्पताल जाने में मदद करें । सरकारी अस्पताल में इलाज मुफ्त होता है । हम सब
मिलकर अपने देश को
टी बी मुक्त करने का संकल्प लें, यह भी एक देश सेवा है । आपके एक प्रयास से टी बी का फैलाव रुक
सकता है
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
30.10.2019
खरी खरी -513 : प्रतिबंध के बाद भी देर रात तक चले पटाखे
27 अक्टूबर 2019 दीपावली की रात लोगों ने 10 बजे रात्रि के बाद भी खूब पटाखे जलाए । आरम्भ में
करीब 8 बजे रात
लग रहा था कि इस साल लोग प्रदूषण के कारण कम पटाखे चलाएंगे । लेकिन 9 बजे के बाद अंधाधुंध
पटाखों का शोर होने
लगा जो उच्च डेसीबल का था । सरकारी अपील और न्यायालय के आदेश की जमकर अवहेलना हुई । रात को ही
हवा में प्रदूषण
और धूल की परत दिखाई देने लगी ।
राजधानी में 27 अक्टूबर की सुबह कई जगह पर हवा में प्रदूषण 400 AQI से अधिक था । 200 से कम AQI
सामान्य माना
जाता है । इस प्रदूषण का प्रचार पहले से ही किया गया था । इसके बावजूद लोगों ने पटाखे जलाए ।
कुछ नव धनाढ्यों
और नम्बर दो की कमाई वाले मनचलों ने पटाखों के शोर और प्रदूषण से पूरे समाज को दुखित और
पर्यावरण को प्रदूषित
किया । लोग समाज के स्वास्थ्य से इस तरह कब तक खिलवाड़ करते रहेंगे, इस प्रश्न का उत्तर किसी के
पास नहीं है
।
28 अक्टूबर की सुबह धुएं की परतें कम नजर आईं । लोगों ने बताया कि इस बार पिछले साल की तुलना
में कुछ कम पटाखे
जले । जले पटाखों के अवशेष सड़क पर कई जगह अधिक और कई जगह कम दिखे । उन सभी लोगों को धन्यवाद
जिन्होंने पटाखे
नहीं जलाकर अपने मासूम बच्चों के फेफड़ों को प्रदूषण से बचाया और अपने बच्चों की समझाया । काश !
इस बात को सभी
लोग समझते तो हमारी समस्याएं कम हो जाती ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.10.2019
मीठी मीठी - 373 : शुभ दीपावली
शुभ दीपावली सबके नाम,
एक दीप शहीदों के नाम,
चीनी सामान का नहीं नाम,
स्वच्छता हो सबका काम,
आतिशबाजी न लो नाम,
सुप्रीम कोर्ट को लाल सलाम ।
जब चीन प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मामले पर संयुक्त राष्ट्र में हमारे विरुद्ध अड़ंगा लगा रहा है,
सीमा पर घुसपैठ
में पाक की मदद कर रहा है तो फिर हम चीन की मूर्तियां, लड़ियां, पटाखे और खिलौनों पर मोह क्यों
करें ? चीन में
बनी जिन वस्तुओं का विकल्प हमारे पास है उन चीनी वस्तुओं को भी नहीं खरीदा जाय । हमें हमेशा यह
देशप्रेम
प्रदर्शित करना ही होगा तभी चीन की बुद्धि काम करेगी ।
पिछली दीपावली से इस दीपावली तक हमारे कई दर्जन सैनिक उग्रवाद से लड़ते हुए शहीद हो गए । इस
दीपावली पर एक दीप
शहीदों के नाम पर भी प्रज्ज्वलित करें और शहीदों को नमन करते हुए शहीद परिवारों के प्रति सम्मान
प्रकट करें
।
दीपावली दीप पर्व है । दीप प्रज्ज्वलित करें, घर की स्वच्छता और सजावट सर्वोपरि है । दीपावली
स्वच्छता का
त्यौहार है । आतिशबाजी स्वेच्छा से ही नहीं करें । उच्चतम न्यायालय को दीपावली की विशेष
शुभकामनाएं जो
उन्होंने हमें प्रदूषण से बचाने का कदम उठाया । हो सके तो प्रदूषण कम करने के लिए एक पेड़ लगाएं
।
सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं । मातृभूमि के उन वीर सपूतों को विनम्र
श्रद्धांजलि के साथ एक
निवेदन -
तुम गजल लिखो या
गीत प्रीत के खूब लिखो,
एक पंक्ति तो कभी
शहीदों पर लिखो,
लौट नहीं आये जो
गीत लिखो उनपर,
देह-प्राण न्यौछावर
कर गए राष्ट्र की धुन पर ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.10.2019
शुभ दीपावली
बिरखांत - 287 : पटाखों पर हो पूर्ण पाबन्दी
पटाखों की पाबंदी पर पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ, ‘बिरखांत’ भी लिख चुका हूँ | हर साल
दशहरे से तीन
सप्ताह तक पटाखों का शोर जारी रहता है जो दीपावली की रात चरम सीमा पर पहुंच जाता है | शहरों में
पटाखों के शोर
और धुंए के बादलों से भरी इस रात का कसैलापन, घुटन तथा धुंध की चादर आने वाली सुबह में स्पष्ट
देखी जा सकती है
| दीपावली के त्यौहार पर जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा तथा लाइलाज रोगों का
शिकार बनाता है
|
पटाखों के कारण कई जगहों पर आग लगने के समाचार हम सुनते रहते हैं | पिछले साल छै से चौदह महीने
के तीन शिशुओं
की ओर से उनके पिताओं द्वारा देश के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि
प्रदूषण मुक्त
पर्यावरण में बड़े होना उनका अधिकार है और इस सम्बन्ध में सरकार तथा दूसरी एजेंसियों को राजधानी
में पटाखों की
बिक्री के लिए लाइसेंस जारी करने से रोका जाय |
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों
के बारे में
लोगों को शिक्षित करें और उन्हें पटाखों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दें | न्यायालय ने कहा
कि इस सम्बन्ध
में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में व्यापक प्रचार करें तथा स्कूल और कालेजों में शिक्षकों,
व्याख्याताओं,
सहायक प्रोफेसरों और प्रोफेसरों को निर्देश दें कि वे पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में
छात्रों को शिक्षित
करें |
यह सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय का रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने का आदेश पहले
से ही है परन्तु
नव- धनाड्यों एवं काली कमाई करने वालों द्वारा इस आदेश की खुलकर अवहेलना की जाती है | ये लोग
रात्रि दस बजे से
दो बजे तक उच्च शोर के पटाखे और लम्बी-लम्बी पटाखों के लड़ियाँ जलाते हैं जिससे उस रात उस
क्षेत्र के बच्चे,
बीमार, वृद्ध सहित सभी निवासी दुखित रहते हैं |
एक राष्ट्रीय समाचार में छपी खबर के अनुसार सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बार देश में विदेशी
पटाखों को रखना
और उनकी बिक्री करना अवैध होगा | इसकी अवहेलना करने पर निकट के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट की जा
सकती है | इन
विदेशी पटाखों में पोटेशियम क्लोरेट समेत कई खरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो
स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक तो है ही इससे आग भी लग सकती है या विस्फोट हो सकता है | विदेश व्यापार महानिदेशक ने
आयातित पटाखों
को प्रतिबंधित वस्तु घोषित किया है | ऑनलाइन पटाखा बिक्री पर भी अब रोक लग गई है ।
कुछ लोग अपनी मस्ती में समाज के अन्य लोगों कों होने वाली परेशानी की परवाह नहीं करते | उस रात
पुलिस भी
उपलब्ध नहीं हो पाती या इन्हें पुलिस का अभयदान मिला होता है | वैसे हर जगह पुलिस भी खड़ी नहीं
रह सकती | हमारी
भी कुछ जिम्मेदारी होती है | क्या हम बिना प्रदूषण के त्यौहार या उत्सव मनाने के तरीके नहीं
अपना सकते ? यदि
हम अपने बच्चों को इस खरीदी हुई समस्या के बारे में जागरूक करें या उन्हें पटाखों के लिए धन
नहीं दें तो कुछ
हद तक तो समस्या सुलझ सकती है | धन फूक कर प्रदूषण करने या घर फूक कर तमाशा देखने और बीमारी मोल
लेने की इस
परम्परा के बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए | उच्च शोर के पटाखों की बिक्री बंद होने पर भी
ये बाजार में
क्यों बिकते आ रहे हैं यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है |
हम अपने को जरूर बदलें और कहें “पटखा मुक्त शुभ दीपावली” | “ SAY NO TO FIRE CRACKERS”. पटाखों
के रूप में
अपने रुपये मत जलाइए , इस धन से गरीबों को गिफ्ट देकर खुशी बाँटिये । इस बार उच्चतम न्यायालय के
आदेशानुसार
पटाखों की बिक्री पर पाबंदी होने से दीपावली की रात कुछ प्रदूषण कम होने की उम्मीद है जिसके लिए
सभी नागरिक
धन्यवाद के पात्र हैं । अब समय आ गया है जब पटाखों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर पूर्ण
पाबंदी लगनी चाहिए ।
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.10.2019
मीठी मीठी - 372 : वीरांगना गौरा देवी जयंती
आज 25 अक्टूबर गौरादेवी ज्यू कि जयंती छ । " बुनैद" किताब बै उनार बार में एक लेख यां उद्धृत छ
। गौरा ज्यू
कैं विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.10.2019
खरी खरी - 512 : "धनतेरस" क्या है ?
धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है, धन या लक्ष्मी की नहीं । भगवान धनवंतरि ब्रह्मांड
की सबसे
प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के देव हैं ।
हमारा सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य है, इसलिए हमें धनवंतरी की पूजा करने के लिए शास्त्रों में बताया
गया है ।
धनवंतरी के नाम में "धन " शब्द के कारण समयांतर - लोगों की धनराशि के प्रति बढती लालसा से
वशीभूत, धनवंतरी
भुला कर केवल धन की पूजा शुरू हो गई । सोसल मीडिया में लोग आभूषणों और सिक्कों के "कट- पेस्ट -
फारवर्ड "
चित्र अपने मित्रों को हवाई उपहार भेज रहे हैं ? सोचिए ? केवल "शुभकामना" लिखना उचित है ।
धनवंतरी पूजा पर आपको धनतेरस की बहुत बहुत शुभकामनाएं, आपका तन मन सदा स्वस्थ रहे , ऐसी हमारी
शुभकामनाएं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.10.2019
खरी खरी - 511 : पटाखों पर नकेल
बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाली और
अन्य अवसरों पर
आतिशबाजी के लिए दिशा-निर्देश पहले ही दिए हैं जिनके पालन करवाने की जिम्मेदारी क्षेत्रीय थाना
प्रभारी की
होगी । इन निर्देशों की अवहेलना पर थाना प्रभारी न्यायालय की अवमानना के दोषी माने जाएंगे ।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार दीपावली को रात 8 से 10 बजे तक और क्रिसमस -नया साल को रात
11.55 से 12.30 तक
ही कम प्रदूषण और कम शोर वाले पटाखे ही जलाए जाएंगे । लाइसेंस धारक दुकानदार ही पटाखे बेच
सकेंगे । पटाखों की
ऑनलाइन बिक्री नहीं होगी । पटाखों की बिक्री से जुड़े निर्देश सभी त्योहारों और शादियों पर भी
लागू होंगे । NCR
क्षेत्र में सामुदायिक आतिशबाजी की जगह निर्धारित होनी चाहिए । लिथियम, आर्सेनिक, एंटीमनी
(अंजन, सुरमा), सीसा
और पारा युक्त पटाखे पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे ।
बम -पटाखों की आवाज पहले से निर्धारित 12 सितम्बर 2017 के आदेश के अनुसार होगी । न्यायालय ने
पटाखों से
पर्यावरण को भारी खतरा बताया । देशभर में कम प्रदूषण उत्पन्न करने वाले हरित पटाखे बनाने की
अनुमति दे दी गई
है । ये सभी आदेश पटाखों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी एक याचिका के निस्तारण पर दिए गए ।
समाज को जनहित और अपने बच्चों के हित में पटाखे नहीं जलाने चाहिए । प्रथा-परम्परा में भी सिर्फ
दीप जलाकर
रोशनी के साथ दीपावली मनाई जाती थी । पटाखों का प्रचलन वर्तमान में होने लगा जिससे स्वास्थ्य को
खतरा पैदा हो
गया । हमें पटाखे खरीदने, भेंट करने और जलाने से बचना चाहिए । यह हमारा प्रदूषण घटाने और
पर्यावरण बचाने में
अपनी भावी पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा योगदान होगा । वैसे भी जब श्रीराम घर वापस आए थे तब पटाखे नहीं
केवल दीप
प्रज्ज्वलित किए गए थे । बाजारवाद ने इसमें पटाखे जोड़ दिए जो आज स्वास्थ्य समस्या, प्रदूषण और
बीमारी के
स्रोत बन गए हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.10.2019
ख़री खरी - 509 : अब "मान्यता" को समझने लगी नारी
अतीत में जितना भी महिलाओं को पुरुषों से कमतर दिखाने की बात कही-लिखी गई उसको लिखने वाले नर थे
। सबकुछ अपने
मन जैसा लिखा, जो अच्छा लगा वह लिखा । एक शब्द है "मान्यता" है । 'बहुत पुरानी मान्यता है' कहा
जाता है । ये
कैसी मान्यताएं थी जब जब औरत को बेचा जाता था, जुए के दाव पर लगाया जाता था, बिन बताए गर्भवती
को घर से निकाला
जाता था, उस पर मसाण लगाया जाता था, उसे लड़की पैदा करने वाली कुलच्छिनी कहा जाता था, उसे सती
-जौहर करवाया
जाता था और उसे मुँह खोलने से मना किया जाता था । महिला ने कभी विरोध नहीं किया । चुपचाप सुनते
रही और सहते
रही ।
अब हम वर्तमान में जी रहे हैं । अब सामंती राज नहीं, प्रजातंत्र है । 74% महिलाएं शिक्षित हैं ।
श्रध्दा के
साथ किसी भी मंदिर जाइये, नारियल फोड़िये, नेट विमान चलाइये, स्पीकर बनिये, प्रधानमंत्री बनिये,
राष्ट्रपति
बनिये और बछेंद्री की तरह ऐवरेस्ट पर चढ़िये । देश के लिए ओलंपिक से केवल दो पदक आये 2016 में,
दोनों ही पदक
महिलाएं लाई । पुरुष खाली हाथ आये । आज देश में हमारा संविधान है जिसके अनुसार हम सब बराबर हैं
। जयहिंद के
साथ सभी सीना तान कर आगे बढ़िए । जय हिन्द की नारी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.10.2019
मीठी मीठी - 370 : जयानंद भारती जयंती
कल 20 अक्टूबर 2019 को जयानंद भारती स्मारक निधि (पं) दिल्ली द्वारा गांधी शांति प्रतिष्ठान नई
दिल्ली में
स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक एवम् नागरिक अधिकारों के समर्थक जयानंद भारती का 139वीं जयंती
मनाई गई । इस
अवसर पर एक वक्ताओं ने भारती जी के बारे में अपने विचार प्रकट किए जिनमें प्रमुख थे सर्वश्री
गणेश लाल
शास्त्री ( अध्यक्षता), पूरन चन्द्र कांडपाल, दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, डॉ प्रयासी, पत्रकार
देवसिंह रावत,
जितेंद्र गढ़वाली, हरी सिंह, ओपी शास्त्री, संदीप कुमार, दिनेश सिंह बिष्ट आदि । संचालन सुरेश
चन्द्र जी
द्वारा किया गया । इस अवसर पत्रकार सत्येन्द्र रावत, ओम प्रकाश आर्य और चंदन प्रेमी सहित कई
साहित्यिक,
सामाजिक और राजनैतिक व्यक्ति उपस्थित थे ।
जयानन्द भारती (18 अक्टूबर 1881–09 सितम्बर 1952), भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं
सामाजिक चेतना के
अग्रदूत थे। उन्होने ‘डोला-पालकी आन्दोलन’ चलाया। यह वह आन्दोलन था जिसमें शिल्पकारों के
दूल्हे-दुल्हनों को
डोला-पालकी में बैठने के अधिकार बहाल कराना था। लगभग 20 वर्षों तक चलने वाले इस आन्दोलन के
समाधान के लिए
भारती जी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया जिसका निर्णय शिल्पकारों के पक्ष में
हुआ।
स्वतन्त्रता संग्राम में भारती जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 28 अगस्त 1930 को
इन्होंने राजकीय
विद्यालय जयहरीखाल की इमारत पर तिरंगा झंडा फहराकर ब्रिटिश शासन के विरोध में भाषण देकर छात्रों
को
स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिए प्रेरित किया।
भारती जी पर आर्य समाज का गहरा प्रभाव पड़ा । स्वामी श्रद्धानंद जी ने उनका मार्गदर्शन कर उनमें
सामाजिक चेतना
को समाज और राष्ट्र हित में जागृत किया । उन्होंने गांधी जी के असहयोग और सत्याग्रह आंदोलन में
सक्रिय भूमिका
निभाई । आज हमें कर्मवीर भारती जी के आंदोलन से प्रेरित होकर सामाजिक विषमता को दूर करने की
आवश्यकता है
क्योंकि ये विषमताएं आज भी समाज में मौजूद हैं । इस आयोजन के लिए स्मारक निधि की पूरी टीम को
शुभकामनाएं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
21.10.2019
मीठी मीठी - 369 : उत्तराखंड लोकपर्व 2019
बेई 19 अक्टूबर 2019 हुणि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली में उत्तराखंड लोक मंच
(पं) दिल्ली
द्वारा 25ऊं उत्तराखंड लोकपर्व 2019 मनाई गो । कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण उत्तराखंडी वाद्य,
लोकगीत - संगीत
और कुमाउनी - गढ़वाली कवि - सम्मेलन छी । कवि सम्मेलन कि अध्यक्षता वरिष्ठ कवि ललित केशवान
ज्यूल करी । काव्य
पाठ करणी मुख्य कवि छी सर्वश्री पूरन चन्द्र कांडपाल, दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, मदन डुकलान,
डॉ कालेश्वरी और
जयपाल सिंह रावत । कुछ अन्य कवियों ल लै काव्य पाठ करौ जो छी - सर्वश्री रमेश घिल्डियाल, ओम
प्रकाश आर्य, चंदन
प्रेमी, नीरज बवाड़ी, विरेन्द्र जुयाल, बलबीर रावत, वी सुंदरियाल, बीपी जुयाल, अनूप रावत आदि ।
संचालन दिनेश
ध्यानी ज्यूजू ल क रौत ।
हम संस्थाक अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती और उनरि टीम कैं साधुवाद दीण चानू जो उनूल आपण कार्यक्रम
में हमरि भाषाक
काव्य - पाठ क आयोजन लै करौ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
20.10.2019
खरी खरी - 508 : एक इंटरव्यू रावण का
दशहरे की सायं दहन से पहले दिल्ली में रावण से आमने-सामने भेंट हो गई । रावण की विद्वता, ज्ञान
और पराक्रम की
याद दिलाते हुए मैंने पूछा, " इतना सबकुछ होते हुए आप युद्ध में मारे जाते हैं और लोग आज भी
आपकी बुराई करते
हैं । इतने पराक्रमी होने पर भी आपने छल से सीता का हरण क्यों किया ?
अजी साहब इतना सुनते ही रावण साहब उछल पड़े और गरजते हुए बोले, "आपने सुना नहीं युद्ध और प्यार
में सब जायज है
। किसी की बहन की नाक कट जाय तो भाई कैसे चुप रह सकता है । मेरी बहन सूपनखा भी तो नारी थी ।
मानता हूं उसने
गलती की पर उस गलती की इतनी बड़ी सजा तो नहीं होनी चाहिए थी ।"
मशाल की तरह धधकती रावण की आंखों को देख कर मुझ से बोला नहीं गया । रावण का पारा सातवे आसमान पर
था । वह गरजना
के साथ बोलता गया, " क्यों मुझे बदनाम करते हो ? मैंने एक मंदोदरी के सिवाय कभी किसी दूसरी नारी
की ओर देखा तक
नहीं । सीता को उठाकर ले तो गया परंतु अपने महल के बाहर अशोक वाटिका में रखा उसे । उसके आँचल को
छुआ तक नहीं ।
उसके सम्मान पर आंच नहीं आने दी ।"
रावण अपनी जगह सही था । वह आगे बोलता गया, " मैंने कभी नारी पर लाठीचार्ज नहीं किया और कभी किसी
नारी का
बलात्कार भी नहीं किया । न कभी किसी नारी का उत्पीड़न किया और न अपमान किया । मुझे बुरा समझ कर
कोसते हो तो
पहले अपने अंदर छुपे हुए रावण को तो बाहर निकालो फिर जलाना मेरा पुतला । 94 % बलात्कारी पीड़िता
के किसी न किसी
तरह से परिचित या सम्बन्धी होते हैं तुम्हारे इस समाज में । पहले इनके अंदर के राक्षस को मारो ।
मैंने तो अपनी
मौत और मौत का तरीका खुद ढूंढा था । बलात्कारियों संग मेरा नाम मत जोड़ो ।"
रावण की इस 24 कैरट सच्चाई से मैं वाकशून्य हो गया था । उसकी इस कटु सत्यता से मैं हिल चुका था
। इसी बीच
रामलीला डायरेक्टर की सीटी बजी और दनदनाते हुए रावण मंच पर पहुंच गया । मंच की ओर जाते हुए वह
मुझे कुछ पाखंडी
बाबाओं, दुष्कर्मी जनप्रतिनिधियों, नरपिशाच आचार्यों और भ्रष्ट नेताओं के नाम गिना गया जो आजकल
जेल में हैं ।
रावण वास्तव में सत्य कह रहा था । हमें अपने अंदर की बुराइयों के रावण का दहन सबसे पहले करना
होगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.10.2019
बिरखांत -286 : पुड़िया में जहर
अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक समूह में रहकर देश हित में निष्पक्ष कलम चला रहा हूं | स्वास्थ्य शिक्षक
होने के नाते
कई वर्षों से नशामुक्ति से भी जुड़ा हूं और सैकड़ों लोगों को शराब, धूम्रपान, खैनी, गुट्का, तम्बाकू,
मिथ और
अन्धविश्वास से छुटकारा दिलाने में मदद कर चुका हूं | एक टी वी चैनल पर मैंने इस बात को स्वीकारा है
कि प्रत्येक
व्यक्ति अपने तरीके से भी किसी नशा-ग्रसित को नशामुक्त करने में मदद कर सकता है | इसमें क्रोध नहीं
विनम्रता की
जरूरत है | नशेड़ी नशे के दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ होता है | जिस दिन वह इसके घातक परिणाम को समझ
जाएगा, वह नशा छोड़
देगा |
कोई भी नशा हम मजाक- मजाक में दोस्तों से सीखते हैं फिर खरीद कर सेवन करने लगते हैं | अपना धन फूक
कर स्वास्थ्य
को जलाते हुए कैंसर जैसे लाइलाज रोग के शिकार हो जाते हैं | यदि आप किसी प्रकार का नशा कर रहे हैं
तो इसे तुरंत
छोड़ें | अपने मनोबल को ललकारें और जेब में रखे हुए नशे को बाहर फैंक दें | वर्ष 2004 में मेरी
कविता संग्रह
‘स्मृति लहर’ लोकार्पित हुई | जनहित में जुड़ी देश की कई महिलाएं हमें प्रेरित करती हैं | ऐसी ही
पांच प्रेरक
महिलाओं – इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, किरन बेदी, बचेंद्री पाल और पी टी उषा पर इस पुस्तक में
कविताएं हैं |
पुस्तक भेंट करने जब में डा. किरन बेदी के पास झड़ोदाकलां दिल्ली पहुंचा तो उन्होंने बड़े आदर से
पुस्तक स्वीकार
करते हुए मुझे नव- ज्योति नशामुक्ति केंद्र सरायरोहिला दिल्ली में स्वैच्छिक सेवा की सलाह दी | मैं
कुछ महीने तक
सायं पांच बजे के बाद इस केंद्र में जाते रहा | मेडिकल कालेज पूने की तरह यहां भी बहुत कुछ देखा,
सीखा और किया
भी | आज भी मैं हाथ में तम्बाकू मलते या धूम्रपान करते अथवा गुट्का खाते हुए राह चलते व्यक्ति से
सभी प्रकार के
नशे छोड़ने पर किसी न किसी बहाने दो बातें कर ही लेता हूं |
9 अगस्त 2015 को निगमबोध घाट दिल्ली के नजदीक कश्मीरीगेट, यमुना बाजार, हनुमान मंदिर पर नशेड़ियों से
नशा छोड़ने
की अपील करने एक महिला नेता पहुँची जिनके सिर पर किसी ने पत्थर मार दिया | बहुत दुःख हुआ | जनहित
में मुंह खोलने
वाले को असामाजिक तत्व निशाना बना देते हैं यह नईं बात नहीं है | आज भी पूरी दिल्ली में पाउच बदल कर
जर्दा-
गुट्का, तम्बाकू अवैध रूप से बिक रहा है |
कानूनों के धज्जियां उड़ते देख भी बहुत दुःख होता है | इसका जिम्मेदार कौन है ? बुराई और असामाजिकता
के विरोध में
मुंह खोलने में जोखिम तो है | क्या जलजलों की डर से घर बनाना छोड़ दें ? क्या मुश्किलों की डर से
मुस्कराना छोड़
दें ? मैं बिरखांत में किसी को सलाह (प्रवचन) देना नहीं चाहता बल्कि समस्या को उकेर या उजागर कर
इसकी गंभीरता को
समझाने का प्रयास करता हूं | जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी नशा करने वाले या गुटका थूक कर
गंदगी करने
वाले को टोकेगा उस दिन से ही स्वच्छता का दीदार होने लगेगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.10.2019
खरी खरी - 325 : फटी पैंट का फैशन
आजकल हम देखते हैं कि युवक- युवतियां घुटने से नीचे और घुटने से ऊपर, जांघ के ऊपरी सिरे से थोड़ा
नीचे तक,
कई जगह से फटी जीन्स पहन कर खुलेआम घूम रहे हैं । सबसे पहले मैंने यह दृश्य मेट्रो ट्रेन में देखा ।
उसके
बाद इसी तरह की फटी जीन्स पहने प्रेमी जोड़ों को मेट्रो स्टेसन की सीढ़ियों में सट कर गर्दन एक -दूसरे
की ओर
झुकाए बैठे देखा । जंतर मंतर की ओर गैरसैण के लिए धरना-प्रदर्शन के लिए जा रहा था तो रास्ते में भी
कई
फटेहालों को देखा । कुछ मित्रों से पूछा तो वे बोले, "सर ये फटीचर नहीं हैं, ये फटेहाल गरीब नहीं
हैं ,ये
फैशन के फरिश्ते हैं । बाजार में फटी पैंट पहनने का नया फैशन आ गया है ।" मैं सोचने लगा 'यदि कमर से
ऊपर
के फटे वस्त्र पहनने का फैशन भी आ गया तो तब देश का क्या होगा ?"
इसी सोच में मुझे अपने मिडिल स्कूल का जमाना याद आ गया जब मैं और मेरे जैसे कई छात्र तीन टल्ली
(पैबंद)
लगी सुरर्याव (पैंट) पहने स्कूल जाते थे । हमारे घरवाले पैंट फटने पर उस पर तुरन्त टल्ली लगवा देते
थे ।
हम फटी पैंट पहन कर कभी बाहर नहीं गए । परन्तु आज जमाने की बलिहारी देखो युवा फैशन के नाम पर पैंट
फाड़े
सीना तान कर चल रहे हैं । वाह रे ! पैंट-फाड़ फैशन । युवतियों की फटी पैंट पर एकबारगी नजर पड़ते ही
नजर झुक
जाती है । मेरा आश्चर्य का ठिकाना तो तब नहीं रहा जब एक लड़का बोला, "अंकल इन फटी पैंटों की कीमत
बिनफटी
पैंटों से अधिक है, क्योंकि यह फैशन की फाड़ है ।"
अब तो फटी पैंटों को देख आश्चर्य भी नहीं होता, शायद नैनों ने समझ लिया है कि इस तरह के वस्त्र- फाड़
अंग-दिखाऊ नए नए फैशन आने वाले वक्त में देखने को मिलते रहेंगे और हमारी सभ्यता को मुँह चिढ़ाते
रहेंगे ।
वस्त्र डिजायनर कहीं हमें पुनः उसी युग में तो नहीं ले जाना चाहते जिस युग में सबसे पहले मानव ने
पेड़ों की
छाल और पत्तों से शरीर ढकना सीखा था ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.10.2019
खरी खरी -505 : क्यों नहीं बदलता समाज ?
इसके मुख्य बारह कारण हैं -
1. यहाँ बाबाओं के वेश में बालात्कारी होते हैं, लोग उनका बचाव करते हैं और प्रवचनकर्ता अपने प्रवचन
पर स्वयं
नहीं चलते ।
2. यहाँ मुंह में गुटखा डाल कर पंडित पूजा- पाठ, कथा, श्राद्ध, अखंडपाठ, सुंदरकांड और हवन करते हैं
।
3. यहाँ शराब के विरोध में कविता या गीत मंच से गाकर या लिखकर कवि और गायक शराब पीते हैं ।
4. स्कूल-कालेज में पढ़ाने वाले अध्यापक शराब -गुटखा -धूम्रपान का सेवन करते हैं और बच्चों से मंगाते
हैं ।
5. यहाँ अंधविश्वास में डूबकर पशुबलि दी जाती है, कहीं पर भी नींबू - मिर्च लटकाई जाती हैं और
मूर्ति तथा नदी
में दूध उड़ेला जाता है ।
6. यहाँ नदियों को माता भी कहते हैं और विसर्जन के नाम पर उनमें गंदगी भी डालते हैं।
7. यहाँ लकड़ी जलाने के दो त्यौहार हैं - लोहड़ी और होली । पौधरोपण का कोई भी त्यौहार नहीं है ।
8. यहाँ देवताओं के नाम पर भांग- धतूरा और शराब तथा पशुबलि को प्रोत्साहन मिलता है ।
9. यहां संस्कृति-संस्कार और महिला सम्मान की शिक्षा पर गम्भीरता नहीं होती है महिलाओं का अपमान
खुलेआम होता है
।
10.यहाँ कानून का डर नहीं है । जनता को छोड़ो, सरकारें
भी न्यायालय की अवहेलना करती हैं ।
11. यहाँ घूस देकर कोई भी अवैध कार्य वैध मैं परिवर्तित हो जाता है ।
12. यहाँ मात्र अफवाहों से ही साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ जाता है, रोड लिंचिग हो जाती है और
सार्वजनिक सम्पत्ति
नष्ट कर दी जाती है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.10.2019
खरी खरी-503 : गैर कानूनी है प्रेसर हॉर्न
शहरों में, महानगरों में या सड़क किनारे आवासों में हम सब वाहनों के प्रेसर हॉर्न से दुःखी हैं ।
प्रेसर हॉर्न से
उपजा असह्य शोर रोगियों, बच्चों, विद्यार्थियों और वरिष्ठ नागरिकों में यह सिरदर्द, तनाव, उच्च
रक्तचाप, हृदय
रोग, अपच और तंत्रिकातंत्र के रोगों का मुख्य कारण बन गया है । वर्तमान में सड़क पर उच्च प्रेसर
हॉर्न, मल्टीटोन
हॉर्न, मोडिफाइड हॉर्न आदि वाहनों पर लगा कर लोग समाज की परवाह नहीं करते हुए धड़ल्ले से बजाते हुए
निकल पड़ते हैं
। रात्रि में हॉर्न निषेध है परन्तु ये लोग रात को भी हॉर्न बजाते हैं । इनकी हरकत पुलिस
जानती-देखती है परन्तु
मौन रहती है । ट्रक का हॉर्न दुपहिया वाहनों पर लगा है जो सबसे खतरनाक है ।
एक साल पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रेसर हॉर्न से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण पर एक याचिका की सुनवाई
करते हुए
दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर जबाब मांगा है । याचिका में
कहा गया कि
कई बार पुलिस से शिकायत करने पर भी पुलिस ने समाज को दुखी करने वाले असामाजिक तत्वों पर कोई कारवाई
नहीं की
।
जब सरकार न सुने, पुलिस न सुने और तंत्र बहरा हो जाये तो लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं ।
न्याय की गुहार
लगाना भी सरकारों को न्यायपालिका का दखल नजर आता है । जनता जाए तो जाए कहाँ ? उम्मीद है न्यायालय के
इस आदेश से
हमारे तंत्र में कुछ चेतना आएगी । कानून की अवहेलना करने वाले आज भी खुलेआम जोर जोर से प्रेसर हॉर्न
बजा रहे हैं
। कुछ बाइक पर तो ट्रक या कार का हॉर्न बजाया जाता है । इनसे सख्ती से निपटा जाए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.10.2019
बिरखांत – 284 : मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम
रामलीला के इस मौसम में श्रीराम का स्मरण ह्रदय से हो जाए तो अच्छा है | बताया जाता है कि श्री राम
का जन्म आज
से लगभग सात हजार वर्ष ( बी सी ५११४ )पूर्व हुआ | कुछ लोग इस पर भिन्नता रखते हैं | पौराणिक चर्चाओं
में अक्सर
मतान्तर देखने-सुनने को मिलता ही है | श्रीराम की वंशावली की विवेचना में मनु सबसे पहले राजा बताये
जाते हैं |
इक्ष्वाकु उनके बड़े पुत्र थे | आगे चलकर वंशावली में ४१वीं पीढ़ी में राजा सगर, ४५ वीं पीढ़ी में राजा
भगीरथ,
६०वीं में राजा दिलीप बताये जाते हैं | दिलीप के पोते रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और
दशरथ के पुत्र
श्रीराम जो ६५वीं पीढ़ी में थे |
वाल्मीकि के राम मनुष्य हैं | तुलसी के राम ईश्वर हैं | कंबन ने ११वीं सदी में कंबन रामायण लिखी और
तुलसी ने
१६वीं सदी में रामचरित मानस | अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘पुरवासी-२०१२’ में डा. एच सी तेवाड़ी (वैज्ञानिक)
का लेख
श्रीराम के बारे में कई जानकारी लिए हुए है | श्रीराम तेरह वर्ष की उम्र में ऋषि विश्वामित्र के
आश्रम में गए |
वहाँ से मिथिला नरेश जनक- पुत्री सीता से उनका विवाह हुआ | २५ वर्ष (कुछ लोग १४ वर्ष भी कहते हैं )
की उम्र में
उन्हें वनवास हुआ | १४ वर्ष वन में बिताने के बाद वे ३९ वर्ष की उम्र में अयोध्या लौटे | श्रीराम
हमारे पूज्य या
आदर्श इसलिए बन गए क्योंकि उन्होंने समाज के हित में कई मर्यादाएं स्थापित की | उन्होंने माता-पिता
की आज्ञा
मानी, हमेशा सत्य का साथ दिया, पर्यावरण से प्रेम किया, अनुसूचित जाति के निषाद को गले लगाया, भीलनी
शबरी के
जूठी बेर खाए और सभी जन-जातियों से प्रेम किया |
एक राजा के बतौर राज्य की प्रजा को हमेशा खुश रखा | उन्होंने एक धोबी के बचनों को भी सुना और सीता
का परित्याग
कर दिया | सीता और धोबी दोनों ही उनकी प्रजा थे परन्तु सीता उनकी पत्नी और प्रजा दोनों थी जबकि धोबी
केवल प्रजा
था | लेख के अनुसार एक धारणा है कि भारत में जाति भेद आदि काल से चला आ रहा है और तथाकथित ऊँची-नीची
जातियां
हमारे शास्त्रों की ही देन है | महर्षि वाल्मीकि इस धारणा को झुठलाते लगते हैं क्योंकि वह स्वयं
अनुसूचित जाती
से थे और इसके बावजूद सीता उनकी पुत्री की तरह उनके आश्रम में रहीं | स्वयं राजा श्रीराम ने उन्हें
वहाँ भेजा था
| राज-पुत्र लव -कुश महर्षि के शिष्य थे | यहां यह दर्शाता है कि श्रीराम की मान्यता सभी वर्ग के
लोगों में
सामान रूप से थी | आज हम मानस का अखंड पाठ करते हैं परन्तु उसकी एक पंक्ति अपने ह्रदय में नहीं
उतारते | जो
उतारते हैं वे श्रद्धेय हैं | हम समाज में आज भी राम के निषाद-शबरी को गले नहीं लगाते | जो लगाते
हैं वे अधिक
श्रद्धेय हैं |
संक्षेप में श्रीराम का वास्तविक पुजारी वह है जो उनके आदर्शों पर चले | हमारी समाज में कएक रावण
घूम रहे हैं और
कईयों के दिलों में रावण घुसे हुए हैं | हम उस रावण का तो पुतला जला रहे हैं जबकि इन रावणों से सहमे
हुए हैं |
गांधी समाधि राजघाट पर मूर्ति स्तुति में विश्वास नहीं रखने वाले बापू के मुंह से निकला अंतिम शब्द
‘हे राम’
बताता है कि वे सर्वधर्म समभाव से वशीभूत थे और ‘ईश्वर-अल्लाह’ को एक ही मानते थे | हम भी श्रीराम
का निरंतर
स्मरण करें और ऊँच –नीच तथा राग- द्वेष रहित समाज का निर्माण करते हुए सर्वधर्म समभाव बनाकर अपने
देश में मिलजुल
कर भाईचारे के साथ रहने का प्रयत्न करें |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.10.2019
खरी खरी - 501 : उत्तराखंड भाषा संस्थान ???
वर्ष 2012 में देहरादून स्थित उत्तराखंड भाषा संस्थान ने कुमाउनी-गढ़वाली भाषाओं के साहित्यकारों के
दो सम्मेलन
किये थे । उस दौरान संस्थान की निदेशक डॉ (श्रीमती) सविता मोहन थी । इस भाषा संस्थान का मुख्य
उद्देश्य हमारी
भाषाओं के साहित्य और साहित्यकारों का संरक्षण और संवर्धन करना था । उस दौरान कुछ साहित्यकारों को
पुरस्कृत भी
किया गया और कुछ साहित्यकारों को पुस्तक प्रकाशन सहयोग भी दिया गया । सम्मेलन के दौरान बतौर निशानी
सभी
साहित्यकारों को जूट का कंधे में लटकाने वाला एक-एक झोला भी दिया गया जिसे भाषा के कई कलमकारों ने
अब भी संभाल
कर रखा होगा ।
2012 से अब 7 वर्ष बीत गए हैं । पता नहीं है कि वह भाषा संस्थान है भी कि नहीं ? होगा भी तो
उत्तराखंड के बंजर
पड़े जल घराटों की तरह बंजर हो गया होगा क्योंकि संस्थान द्वारा हमारी भाषा संबंधी कोई भी गतिविधि
नहीं होती और न
ही साहित्यकारों की कोई खूसखबर ली जाती है । एक समय था जब कत्यूरों और चंद राजाओं के जमाने में जो
भाषा राजकाज
की थी आज वही भाषा अपनी पहचान बनाये रखने के लिए तड़प रही है । 1994 जे राज्य आन्दोलन में अलग राज्य,
राजधानी
गैरसैण के साथ ही अपनी भाषा की मान्यता और इसे संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की बात भी थी
। अब तो
राज्य की बागडोर उत्तराखंड के नेताओं के हाथ में है फिर हमारे नेताओं ने गैरसैण और हमारी भाषा को
क्यों भुला
दिया ? अपने नेता-अपने लोग फिर यह अटकाने, लटकाने और भटकाने की बात क्यों ?
वर्ष 2009 से लगातार अल्मोड़ा में कुमाउनी भाषा का सम्मेलन प्रतिवर्ष किया जाता है जहां से भाषा
संबंधी अनेकानेक
प्रस्ताव पारित कर उत्तराखंड सरकार के भाषा -संस्कृति मंत्रालय देहरादून को भेजा जाता है । इस वर्ष
भी यह
सम्मेलन 10 से 12 नवम्बर 2019 को भीमताल में आयोजित किया जा रहा है । इस सम्मेलन का आयोजन "पहरू''
कुमाउनी मासिक
पत्रिका औऱ "कुमाउनी भाषा, साहित्य और संस्कृति प्रचार समिति कसारदेवी अल्मोड़ा' के तत्वाधान में कई
भाषा
प्रेमियों के सहयोग से किया जाता है । कई बार तो सरकार के प्रतिनिधि भी इस सम्मेलन में सार्थक
आश्वासन दे गए हैं
। क्या उत्तराखंड सरकार इस बंजर पड़े "उत्तराखंड भाषा संस्थान देहरादून" को पुनर्जीवित करेगी ? सभी
भाषा-प्रेमियों और साहित्यकारों से निवेदन है कि कृपया मिलकर जोर से धात (जोर से उद्घोष) तो लगाएं
शायद हो वे जग
जाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.10.2019
मीठी मीठी - 362 : 30 घंटे की रामलीला का मंचन 3 घंटे में
दस दिन की रामलीला को मात्र एक दिन में मंचित करना आसान तो नहीं परन्तु यह प्रयास कर दिखाया
उत्तराखंड के गीत -
संगीत - नाट्य निदेशक शिवदत्त पंत जी ने । कल 6 अक्टूबर 2019 की संध्या को प्यारेलाल भवन आई टी ओ नई
दिल्ली में
रुद्रवीणा संस्था दिल्ली द्वारा 10 दिनों में मंचित होने वाली रामलीला को मात्र 3 घंटे में मंचित
किया गया । इस
आयोजन में मुख्य अतिथि पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी एवम् सांसद अजय भट थे । दर्शकों से
भरे हुए
सभागार में मैंने समाजसेवी सुधीर पंत, पत्रकार चारु तिवारी, खिमदा, कला निर्देशक गंगादत्त भट्ट और
हेम पंत जी के
साथ रामलीला का मंचन देखा ।
निश्चित समय से कुछ विलंब के साथ रामलीला का शुभारंभ 'श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन ' प्रार्थना के साथ
हुआ। इसके
बाद नट- नटी संवाद, रावण का भगवान शिव से वर मांगना, राजा दशरथ का पुत्रेष्ठी यज्ञ, राम जन्म,
विश्वामित्र का
राम - लक्ष्मण को राजा दशरथ से मांगना, तड़का बध, धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर, परशुराम - लक्ष्मण
संवाद, मंथरा -
केकई संवाद, कैकेई - दशरथ संवाद, राम - सीता और लक्ष्मण का वन गमन , सीता हरण, सबरी मिलन, अंगद -
रावण संवाद और
राम - रावण युद्ध, राजतिलक आदि कई दृश्य मंचित किए गए । स्वाभाविक है जिन दर्शकों ने 10 दिन की
रामलीला देखी है
उन्हें बहुत कुछ देखने को नहीं भी मिला होगा। परन्तु हम जानते हैं कि पूरी रामलीला को 3 घंटे में
समेटना बहुत
कठिन काम है । फिर भी उत्तराखंड के लोगों को इन 3 घंटों में पर्वतीय रामलीला का लुभावना धरातलीय
ऐहसास तो
शिवदत्त पंत जी ने करा ही दिया ।
पात्रों पर दृष्टि डालें तो सभी पात्रों का अभिनय उत्कृष्ट था । नट - नटी, शिवजी, दशरथ, कैकेई ,
मंथरा, जनक,
राम, सीता, लक्ष्मण, परशुराम, रावण, वशिष्ठ , विश्वामित्र, सुमंत, ताड़का, सूपनखा, मृग, दरवान सहित
सभी पात्रों
ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। पार्श्व गायन में स्वयं शिवदत्त पंत जी, पुत्री दीपा पंत और
अन्य गायकों
ने अच्छी प्रस्तुति दी । संगीत की मधुर धुन का निर्देशन विरेन्द्र राही जी ने किया। वस्त्र एवम्
रूपसज्जा दोनों
उत्कृष्ट एवम् आकर्षक थे । दृश्य, प्रकाश, मंच सज्जा एवम् स्पेशल इफेक्ट्स भी उत्तम थे । कुल मिलाकर
रुद्रवीणा
की टीम का यह कला प्रदर्शन बहुत रोचक और शैलीवद्ध था । शिवदत्त पंत जी और उनकी सम्पूर्ण टीम को इस
सफल आयोजन के
लिए बधाई और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
07.10.2019
मीठी मीठी - 365 : विजय दशमी की शुभकामनाएं
होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री, ईद
क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।
पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,
उष्मधरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।
सभी मित्रों को विजया दशमी ( दशहरा ) की शुभकामनाएं। आज दंभ, अकड़, अकर्मण्यता, चाटुकारिता और
अंधविश्वास के
रावण का दहन करते हुए सौहार्द और भाईचारे के वृक्ष रोपित करने हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.10.2019
दशहरा
मीठी मीठी - 361 : पायल नाम छि वीक
पायल उनियाल एक भलि गढ़वालि कवयित्री छी जो मात्र 37 साल कि उमर में 5 अक्टूबर 2018 हुणि य दुनिय
कैं छोड़ी बेर
न्हैगे । उ बीमार है बेर या क्वे दुर्घटना में नि मरि बल्कि वील आपणी अबघात आफी करि दी । के दुख त
जरूर हुनल
उकैं । फिर लै वील यस नि करण चैंछी । बेई 5 अक्टूबर 2019 हुणि उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच
दिल्ली, आर्यसमाज
विकास समिति दिल्ली और गढ़वाल हितैसिणी सभा दिल्ली व अन्य साहित्य मित्रों क सहयोग ल वीकि पैल पुण्य
तिथि गढ़वाल
भवन नई दिल्ली में मनै । दुःख कि बात य छ कि य मौक पर पायलक न क्वे मैत बै छि और न सरास बै । सब
साहित्य दगै
जुड़ी हुई लोग छी । पायल करीब 7 दर्जन अप्रकाशित कविता य दुनिय में आपणी निशाणि छोड़ि गे ।
य मौक पर करीब द्वि दर्जन कवियोंल कुमाउनी और गढ़वालि में पायल कैं काव्यांजलि दी । काव्यांजलि
दिणियां में
शामिल छी - सर्वश्री ललित केशवान, पूरन चन्द्र कांडपाल, जयपाल सिंह रावत, दिनेश ध्यानी, पयास
पोखड़ा, दर्शन सिंह
रावत, चंदन प्रेमी, रमेश हितैषी, ओम प्रकाश आर्य, बी पी जुयाल, जगनमोहन जिज्ञासु, योगेश भट्ट,
गिरधारी रावत,
सुश्री रामेश्वरी नादान, सुरजीत सिंह, विरेन्द्र जुयाल, अनूप रावत, द्वारिका चमोली, प्रदीप खुदेड,
शंकर ढौंडियाल
और खुद दिवंगत पायल उनियाल ( इंटरनेट बै अनूप रावत द्वारा ) । सर्वश्री पवन मैठाणी ज्यू, जलंधरी
ज्यू ,
सत्येन्द्र रावत ज्यू, मन मोहन बुड़ाकोटी ज्यू , इनू लोगों ल लै आपण विचार धरीं । य सफल आयोजन क
संचालन ध्यानी
ज्यू ल करौ । अंत में सुश्री रामेश्वरी नादानल सबूं कैं धन्यवाद दे ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.10.2019
मीठी मीठी - 360 : स्वरूप ढौंडियाल स्मरण (85 वीं जयंती )
कल 4 अक्टूबर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में ' अलकनंदा ' परिवार द्वारा प्रख्यात
लेखक, पत्रकार
और ' अलकनंदा ' पत्रिका के संस्थापक संपादक दिवंगत स्वरूप ढौंडियाल जी की 85वीं जयंती का आयोजन किया
गया । इस
अवसर पर कई वरिष्ठ लेखकों ने अपने विचार प्रकट किए जिनमें मुख्य थे सर्वश्री राजेन्द्र सिंह पूर्व
महानिदेशक
कोस्टल गार्ड, डा. गंगा प्रसाद विमल, पंकज बिष्ट, डा. हरिसुमन बिष्ट, मंगलेश डबराल, अवतार सिंह रावत
अधिवक्ता और
महेश चंद्रा जी । सभी वक्ताओं ने अपने अपने तरीके से ढौंडियाल जी का स्मरण कर उनके व्यक्तित्व और
कृतित्व को याद
किया । इस अवसर पर सभागार में कई साहित्यकार, पत्रकार और राजनीति से जुड़े व्यक्ति मौजूद थे ।
अलकनंदा पत्रिका
के नए अंक और वल्लभ डोभाल जी की पुस्तक ' सैनिक संवाद ' का लोकार्पण भी इस अवसर पर किया गया ।
कार्यक्रम संचालन
पत्रकार सुषमा जुगरान ने किया तथा ' अलकनंदा ' पत्रिका के संपादक विनोद ढौंडियाल ने आगंतुकों का
आभार व्यक्त
किया ।
इस बात को भी हमें समझना होगा कि ढौंडियाल जी ने उत्तराखंड के जनसरोकारों के लिए स्वैच्छिक
सेवानिवृत्ति ले ली
और तन - मन - धन से लेखन से जुड़ गए । यदि आज स्वरूप ढौंडियाल जी जीवित होते तो वे अवश्य पूछते कि
उत्तराखंड से
पलायन क्यों हो रहा है ?, गांव वीरान क्यों हो रहे हैं ?, राज्य की राजधानी गैरसैंण क्यों नहीं बनी
?, राज्य
आंदोलन के 42 शहीदों को न्याय क्यों नहीं मिला ?, उत्तराखंड में शराब के गधेरे क्यों बह रहे हैं ?
क्या जो भी
शौचालय बने उनमें पानी का प्रबंध है या वे स्टोर बन गए हैं?, उत्तरकाशी में सिर्फ लड़के ही क्यों
पैदा हो रहे
हैं?, और राज्य में प्रतिदिन कोई न कोई वाहन दुर्घटना क्यों होती है ? स्वरूप ढौंडियाल की बुलंद
आवाज तब सुनी
जाती थी और आज उनकी जैसी प्रखर आवाज नहीं उठती क्योंकि कलमों की धार कुंद कर दी जाती है , बोलने का
दम सिथिल हो
गया है, चाटुकार पुरस्कृत हो रहे हैं और पत्रकारिता तथा मीडिया की निष्पक्षता को वक्त की दीमक ने
खोखला कर दिया
है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.10.2019
बिरखांत - 283 : अच्छा इंसान बनना पहली जरूरत
आज जो लोग समाज के सौहार्द को बिगाड़ते हैं वे कबीर, रहीम, बिहारी, रसखान आदि कालजयी कवियों को नहीं
जानते हैं या
जानकार भी अनजान बने रहते हैं | इन महामनीषियों ने मनुष्य को इंसान बनाने के लिए, समाज को
अंधविश्वास से बाहर
निकालने के लिए तथा सामाजिक सौहार्द को बनाये रखने के लिए अथाह प्रयत्न किये | हमारे पुरखों ने
स्वतंत्रता
संग्राम भी मिलकर लड़ा | महत्वाकांक्षा के अंकुरों ने सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ दिया और इस अंकुर को
हमें गुलाम
बनाने वाला जाते- जाते मजबूती देकर देश को खंडित कर गया | इस खंडन से मजबह की दीवार को मजबूती मिली
और कुछ
असामाजिक तत्वों ने नफरत की नर्सरी में अविश्वास के पौधे उगाकर यत्र- तत्र रोपना शुरू कर दिया |
उसका जो परिणाम
हुआ उसकी चर्चा करने की आवश्कयता नहीं है क्योंकि सबकुछ हम आये दिन देख रहे हैं |
हमारे समाज में सौहार्द को सींचने वाले भी मौजूद हैं | विगत वर्ष कानपुर में गंगा नदी के बैराज पर
नौ युवक घूमने
गए | एक युवक सेल्फी लेते हुए फिसल कर गंगा नदी में गिर गया और डूबने लगा | उसे बचाने एक के बाद एक
सभी दोस्त
नदी में कूद पड़े परन्तु डूबने लगे | डूबते हुए युवकों का शोर सुन पास ही में रेत पर बैठा हुआ एक
युवक उन्हें
बचाने नदी में कूद गया | इसी बीच कुछ नाविकों ने तीन युवक बचा लिए परन्तु वह युवक भी मदद करते हुए
नदी में समा
गया | बाद में गोताखोरों ने सात शव बहार निकाले | अपनी जान गंवा चुका रेत पर बैठा युवक इन नौ युवकों
को नहीं
जानता था फिर भी वह इन्हें बचाने के लिए नदी में कूद पड़ा और उन युवकों को बचाते हुए डूब गया | बाद
में पता चला
कि उसका नाम मक़सूद अहमद था जो एमएससी में अध्ययनरत छात्र था |
जब मक़सूद अहमद गंगा में नौ युवकों को बचने कूदा होगा उस क्षण उसके मन में हिन्दू- मुसलमान की बात
नहीं रही होगी
| वह एक मुस्लिम युवक था जिसे उन नौ युवकों के बारे में कुछ भी पता नहीं था | वक्त की मांग पर वह
इंसानियत के
नाते नौ इंसानों को बचाने के लिए नदी में कूदा और स्वयं भी जल में समा गया | बात-बात में हिन्दू-
मुस्लिम कहने
वालों को यह बात समझनी चाहिए कि हम सबसे पहले इंसान हैं, बाद में कुछ और | मक़सूद के साथ अन्य छै का
डूब जाना
बहुत दुखदायी है | बाद में पता चला कि सभी छै मृतक युवा हिन्दू सम्प्रदाय के थे | एक सेल्फी ने सात
अमूल्य जान
ले ली | लोगों को चौकन्ना होकर सेल्फी लेनी चाहिए |
इसी तरह 18 नवम्बर 1997 को सुबह सवा सात बजे स्कूली बच्चों को ले जारही एक बस यमुना नदी पर बने
वजीराबाद पुल की
रेलिंग तोड़कर यमुना नदी में गिर गई | इस बस में 113 बच्चे और 2 अध्यापक थे | इस दुर्घटना में 28
बच्चे डूब कर मर
गये और 67 बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया गया | इन बच्चों को जगतपुरी दिल्ली निवासी गोताखोर
अब्दुल सत्तार
खान ने पानी से बहार निकाला | सत्तार ने लगातार 5 घंटे तक ठंडे पानी में डुबकी लगाई और 50 बच्चे
बचाए तथा मृत
बच्चों के शव बहार निकाले | इतने परिश्रम और 50 बच्चों का जीवन बचाने के बाद सत्तार ने कहा, “अल्लाह
ने हुनर
दिया तभी बच्चे बचाए | मुझे 28 बच्चों को नहीं बचा पाने का बहुत मलाल है |” सत्तार मुसलमान था
परन्तु वह जीवित
बचाए गए बच्चों के लिए एक “इंसान नहीं फ़रिश्ता बन कर आया था”, ये शब्द उन अभिभावकों के थे जो अपने
जीवित बच्चों
को गले लगाते हुए कह रहे थे | काश ! हम सबसे पहले एक अच्छे इंसान बन कर सामाजिक सौहार्द को सींचने
का काम कर
सकते !
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2019
T 783."मेरे पति को डयूटी में घायल कर गोली मार दी । मुझे भी गोली मार दो । हे न्याय ! तू कहां
है "-
इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की पत्नी ।
बुलंदशहर के स्याना में गोकशी को लेकर हुए बवाल के दौरान जान गंवाने वाले इंस्पेक्टर सुबोध की पत्नी
ने आरोपियों
को बेल मिलने पर दुख प्रकट किया है। उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ से आरोपियों की बेल खारिज कराने
की मांग की है
। पिछले साल 3 दिसंबर को बुलंदशहर के स्याना में गोकशी को लेकर जमकर बवाल हुआ था। इस दौरान निरीक्षक
सुबोध कुमार
समेत दो लोगों की जान चली गई थी। इस घटना की देश भर में चर्चा हुई थी। वहीं, पुलिस महकमे में भी
घटना को लेकर
शोक व्याप्त हुआ था । इंस्पेक्टर को उनके साथ गई पुलिस टीम ने क्यों नहीं बचाया ? पुलिस अपने अफसर
को अकेला
छोड़कर क्यों भागी यह भी सोचनीय है ।
मीठी मीठी - 357 : शहीद भगतसिंह स्मरण दिवस (आज जन्म दिवस )
शहीदे आजम भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर में हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर
भगत सिंह,
सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई थी । 23 मार्च यानि, देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को
हंसते-हंसते
न्यौछावर करने वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस है । यह दिवस न केवल देश के प्रति सम्मान और
हिंदुस्तानी होने
वा गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रृद्धांजलि देता है।
उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है। उनके उज्ज्वल
चरित्रों को
बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण किंवदंति हैं। भगतसिंह ने
अपने अति
संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। "आदमी
को मारा जा
सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं
और बहरे हो
चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।" बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों
में यह लिखा
था।
भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना
के अनुसार
भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका
था। इसके बाद
उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक
ब्रिटिश पुलिस
अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला। यह
मुकदमा भारतीय
स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान
भी भगतसिंह
क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा। फांसी पर जाने से पहले तक भी
वे लेनिन की
जीवनी पढ़ रहे थे।
आज अमर शहीद भगत सिंह की 113वीं जयंती है । हम विनम्रता के साथ उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित
करते हैं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.09.2019
खरी खरी - 496 : पुरस्कार के मापदंड ?
हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार नवाजने का मापदंड क्या है ?
कार्यानुभव, योग्यता,
वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, चाटुकारिता या कुछ और ?
आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार
हों, खेल
पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों ।
कई बार तो
वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन
पुरस्कार न्यायालय
के हस्तक्षेप के बाद दिया गया ।
पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार
का हकदार है ।
यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस
पुरस्कार का अपमान
है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है
। इस तरह
पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का संदर्भ
सदैव सालते रहता
है ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.09.2019
मीठी मीठी - 355 : मन के मनके
20 सितम्बर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान डॉ पुष्पा जोशी जी
ने मुझे अपनी
लिखी हुई पुस्तक " मन के मनके " (काव्य संग्रह ) भेंट की । अमृत प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित 110
पृष्ठों के
इस काव्य - संग्रह में 53 कविताएं और 56 चतुष्पद हैं । मां को समर्पित इस काव्य - संग्रह की सभी
कविताएं
उत्कृष्ट हैं और दिल को छूती हैं । तीन कविताएं तो ' नारी ' शीर्षक से हैं - ' नारी ही सबसे न्यारी
है ', नारी
आज भी अकेली है..' और नारी : एक सम्पूर्ण संसार '। ' नारी ही सबसे न्यारी है ' कविता का अंतिम छंद
बहुत ही
संदेशात्मक है जो यहां उद्धृत है -
"हे नारि ! उठो !
स्वयं को पहचानो, दु:शासन को जानो
केवल नारे नहीं, वारे -न्यारे करने होंगे
घर - घर से नारायण-आसाराम पकड़ने होंगे
तभी होगा उत्थान तुम्हारा...
करोगी जब बुलंद ये नारा...
नारी ही सबसे न्यारी है...
मान लो...
सब पर यह भारी है ...
मान लो सब पर यह भारी है ।"
सभी कविताओं की चर्चा करना मेरे असमर्थता है । ' देवभूमि ही नेर गहना, एक पत्थर तबीयत से उछालो,
मुझे आज जीने
दो, भारत के वीर सपूत...आदि कविताएं बहुत रोचक हैं ।
चतुष्पदी (56) भी एक से बढ़कर एक हैं । उदाहरणार्थ -
" कभी बर्फ, कभी अंगार है तू
कभी शोला, कभी बयार है तू
तेरा आना, आकर चले जाना
मानो बरखा की फुहार है तू ।"
" शंख होई मंदिर का, बजने दो मुझे
अज़ान मस्जिद की सुनने दि मुझे
चर्च की पवित्र बाइबिल है भीतर
गुरुद्वारे का लंगर छकने दो मुझे ।"
अंत में यही कहूंगा कि लेखिका ने एक अच्छा काव्य- संग्रह हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसमें रंग
- बिरंगे
इंद्रधनुषी तराने हैं । भाषा बहुत सहज है और शब्द रचना पाठक से एक सुमधुर संपर्क साध लेती है । हम
उम्मीद करते
हैं कि यह काव्य - संग्रह पाठकों को बहुत भाएगा । पुस्तक प्राप्ति के लिए मोब 7838043488 पर संपर्क
किया जा सकता
है । डा. पुष्पा जोशी को इस काव्य - संग्रह की रचना के लिए बधाई और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.09.2019
खरी खरी - 495 : पितृपक्ष में रोपिये एक पौधा पितरों के नाम
होली दिवाली दशहरा
पितृपक्ष नवरात्री,
ईद क्रिसमश बिहू पोंगल
गुरुपूरब लोहड़ी ।
पौध रोपित एक कर
पर्यावरण को तू बचा,
उष्म धरती हो रही
शीतोष्णता इसकी बचा ।
हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं ,
बड़े होकर वे रहेंगे कहां?
जल विहीन वायु विहीन
पृथ्वी रहने लायक तो रहेगी नहीं ।
धरा में हरियाली लाओ
पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.09.2019
मीठी मीठी - 353 : ' आदलि कुशलि ' कुमाउनी मासिक पत्रिका अंक अगस्त 2019
"लोकजीवनक संघर्ष और उनार अनुभव कैं समर्पित पिथौरागढ़ बै प्रकाशित " मासिक कुमाउनी पत्रिका " आदलि
कुशलि "
अगस्त 2019 अंक प्राप्त हैगो । तिसर वर्ष में प्रवेश य पत्रिका हमरि दुदबोलिक आंखरों कैं लही बेर
हमार पास हर
महैण पुजीं । य अंक में लै संपादकीय, लोक परम्परा, लोक साहित्य, खोजबीन, अन्य साहित्य समेत भौत भलि
जानकारी छ और
हमरी भाषा कि खुशबू दागाड़ रमेश हितैषी ज्यूू कि कहानी " कई लुहार" घी त्यार, रक्षा बंधन के त्यार,
आपन आपन
भाग्य ( संपादक ), आदि कायेक जानकारी दी रैछ । (संपादक - प्रकाशक : डॉ सरस्वती कोहली मोब
9756553728, 9456705814
)
पूरन चन्द्र कांडपाल
24.09.2019
मीठी मीठी - 354 : ट्रू मीडिया में हेम पंत
कल 20 सितम्बर 2019 को गांधी शांति प्रतिष्ठान नई दिल्ली में " ट्रू मीडिया " पत्रिका के विशेषांक
का लोकार्पण
हुआ जिसमें बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री हेम पंत जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लगभग 30
रचनाकारों के विचार
व्यक्त हैं । हेम पन्त नाट्य मंचन तो करते ही हैं वे एक अच्छे कवि, शायर, लेखक, संचालक और कलाकार
तथा एक अच्छे
इंसान भी हैं । इस पत्रिका में उनके बारे सभी रचनाकारों ने अपने - अपने तरीके और विश्लेषण से पंत जी
के बारे में
लिखा है ।
हेम पन्त जी के बारे में पत्रिका के पृष्ठ 28 से लिया गया एक अनुच्छेद यहां उद्धृत है - " हेम पंत
एक कुशल वक्ता
और मंच संचालक भी हैं । मैंने उनके मंच संचालन को कई बार देखा है । निर्धारित समय से वे मंच पर आते
हैं और अपनी
चिरपरिचित शैली में दर्शकों से जुड़ने लगते हैं । मंच में उत्पन्न विषम परिस्थितियों को भी से बखूबी
झेल जाते
हैं और प्रत्येक विषय, वस्तु और कलाकार या वक्ता के साथ पूरा न्याय करते हैं । वे कवि और शायर भी
हैं । पंत जी
हिंदी में कविता प्रस्तुत करते हैं परन्तु वे यदा - कदा कुमाऊनी कविता भी पढ़ते हैं । उनके साथ मुझे
कई बार मंच
साझा करने का अवसर भी प्राप्त हुआ है । परिस्थिति के हिसाब से वे शायरी करते हैं और दर्शकों को अपनी
ओर खींच
लेते हैं । हास्य - विनोद का रस भी उनकी वार्ता या संवाद में घुला रहता है । भी वे एक अच्छे साहित्य
समीक्षक भी
हैं । मेरे कुमाउनी उपन्यास "छिलुक " ( चिराग) की उन्होंने बहुत बेहतरीन समीक्षा की और इस समीक्षा
का उन्हीं के
द्वारा मंच से प्रस्तुतीकरण ( गढ़वाल भवन नई दिल्ली ) भी बड़े प्रभावशाली ढंग से किया ।"
पत्रिका के लोकार्पण पर कई विशिष्ठ मंचासीन अतिथियों ने पंत जी के बारे में अपने विचार व्यक्त किए
जिनमें मुख्य
थे सुश्री सुशीला रावत ( मंच अध्यक्षता), डा हरि सुमन बिष्ट, डा हेमा उनियाल, डा विनोद बछेती ,(
चेयरमैन DPMI),
सर्वश्री नरेंद्र सिंह लडवाल (सी एम डी सी हॉक ) फिल्म निर्देशक दीवान सिंह बजेली, संजय जोशी, ओ पी
प्रजापति और
पूरन चन्द्र कांडपाल । इस अवसर पर सभी अतिथि वक्ताओं का तुलसी पौध एवम् पत्रिका अंकित पात्र ( कप )
से सम्मान
किया गया । पंत जी का भी सम्मान पत्रिका की पूरी टीम ने किया और पंत जी ने भी ट्रु मीडिया की पूरी
टीम का सम्मान
करते हुए धन्यवाद के साथ आभार व्यक्त किया ।
इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे जिनमें प्रमुख थे सर्वश्री चारु तिवारी, सुनील नेगी, श्री
उनियाल,
विनोद ढोंडियाल, गंगा दत्त भट्ट ( नाट्य निदेशक), डा सतीश कालेश्वरी, रमेश घिल्डियाल, खुशहाल सिंह
बिष्ट, गायक
फंड्रियाल, के सी पंत, सुधीर पंत, हरीश सेमवाल, आर के मुद्गल, हीराबल्लभ कांडपाल, उमेश पंत (सार्थक
प्रयास ) ,
अजय सिंह बिष्ट ( सार्वभौमिक ), मोहन सिंह बिष्ट, सुश्री हेमा पंत, विभा पंत, कुसुम चौहान, सुनयना
बिष्ट, विजय
लक्ष्मी भट्ट, कुमू जोशी, किरण लखेड़ा, मीना कंडवाल, प्रदीप शर्मा, महेंद्र लटवाल आदि । सभागार में
अन्य कई लोग
थे जिनका नाम यहां उद्धृत नहीं कर पाया । पंत जी पूज्य माता जी, भार्या हेमा पंत जी एवम् उनकी
बेटियां व अन्य
परिजन भी इस अवसर पर मौजूद थे । कार्यक्रम के अंत में हेम पंत जी ने सभी आगंतुकों और ' ट्रू मीडिया
' का आभार
व्यक्त किया । अध्यक्ष सुश्री रावत ने अंत में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ सभी को धन्यवाद दिया ।
मंच संचालन
डा पुष्पा जोशी ( सह संपादक ट्रू मीडिया ) ने किया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
21.09.2019
खरी खरी - 492 : इसे 'इज्जत लुट गई..' न कहें
बहुत ही शर्मनाक और दुखद स्थिति में हम देख रहे हैं कि समाज में बलात्कार की घटनाएं थमने के बजाय बढ़
रही हैं ।
2012 के दिल्ली निर्भया बलात्कार काण्ड के मृत्यु दण्ड पाए नरपिशाच अभी जीवित हैं यह दुखद है । अब
तो कई हाई
प्रोफाइल और रसूखदार भी ब्लैकमेल कर बलात्कार करने लगे हैं । बलात्कार की शिकार स्त्री- जात का
असहनीय शारीरिक
और मानसिक पीड़ा से मुक्त होना बहुत कठिन है | इससे भी बढ़कर है सामाजिक दंश की पीड़ा | हमारे समाज में
स्त्री के
साथ इस तरह की घटना होने पर ‘इज्जत लुट गई’ कह दिया जाता है जो सर्वथा अनुचित और शर्मनाक है | इस
सामाजिक दंश की
पीड़ा इतनी भयानक और अकल्पनीय है की कुछ पीड़ितायें तो आत्म-हत्या तक कर लेती हैं | यह ठीक नहीं है और
समाज के लिए
शर्म की बात है | पीड़ित का तो इसमें कोई दोष ही नहीं है फिर वह स्वयं को क्यों सजा दे ? यदि उस समय
वह उस दंश के
सदमे से उबर जाए तो आत्म- हत्या से बच सकती है | उस समय उसे सामाजिक, चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक
उपचार के
अत्यधिक जरूरत होती है |
दुष्कर्म पीड़िता को यह सोचकर हिम्मत बांधनी होगी कि वह स्वयं को क्यों सजा दे ? उसने तो कोई अपराध
नहीं किया और
न उसका कोई कसूर | सिर्फ स्त्री -जात होने के कारण उसका शिकार हुआ है | उसे स्वयं को समझाना होगा कि
वह एक
नरपिशाच रूपी भेड़िये का शिकार हो गयी थी | उसे अपनी पीड़ा को सहते हुए, टूटे मनोबल को पुनः जागृत कर
जीना होगा और
नरपिशाचों को सजा दिलाने में क़ानून की मदद करनी होगी जो बिना उसके सहयोग के संभव नहीं हो सकेगा |
यों भी जंगली
जानवरों द्वारा काटे जाने पर हम उपचार ही तो करते हैं | हादसा समझकर इसे भूलने के साथ- साथ इन
भेड़ियों के आक्रमण
से बचाव का हुनर भी अब प्रत्येक महिला को सीखना होगा और हर कदम पर अपनी चौकसी स्वयं करनी होगी |
जघन्य अपराधी बलात्कारियों को शीघ्र कठोरतम दंड मिले, यह पीड़ित के लिए दर्द कम करने की एक मरहम का
काम करेगा |
साथ ही अब समाज के बड़े- बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म गुरुओं, पत्रकर- लेखकों, सामाजिक चिंतकों और
महिला
संगठनों को जोर-शोर से कहना पड़ेगा के इसे ‘इज्जत लुटने’ या ‘इज्जत तार तार होने’ वाली जैसी बात नहीं
समझें और
‘उक्त शब्दों’ से मीडिया और टी वी चैनलों को भी परहेज करना होगा ताकि दर्द में डूबी निर्दोष पीड़िता
को जीने की
राह मिल सके |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.09.2019
मीठी मीठी - 352 : शहीद मोहन चंद्र शर्मा,अशोकचक्र (मरणोपरांत)
दिल्ली पुलिस के एकमात्र अशोकचक्र (मरणोपरांत) विजेता इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा का आज 19 सितम्बर
को शहीदी
दिवस है । बहादुरी,कर्तव्यपरायणता और स्वबलिदान के लिए उन्हें 2009 में बहादुरी का सर्वोच्च सम्मान
'अशोकचक्र '
प्रदान किया गया था । मेरी पुस्तक 'महामनखी ' से उनके बारे में लेख उद्धृत है । उत्तराखंड के इस अमर
शहीद को
विनम्र श्रद्धांजलि ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.09.2019
बिरखांत - 282 : हिन्दी का दर्द, 14 सितंबर के बाद भी
देश में हिन्दी सहित 24 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं | ये सभी राष्ट्र भाषाएं हैं
| देश को
आजाद हुए 72 वर्ष हो गए परन्तु हिन्दी पूर्ण रूप से हमारे संघ की राजभाषा नहीं बन पाई | हिंदी एक
जनभाषा,
मातृभाषा और सबसे बढ़कर एक मेलजोल की भाषा के रूप में देश में विद्यमान है जिसके
बोलने-समझने-लिखने-पढ़ने वाले
लगभग अस्सी करोड़ से अधिक हैं | जिस देश में 95 % लोग अंगरेजी नहीं जानते वहाँ अंग्रेजी अपना शासन आज
भी जमाये
हुए है |
जिन घरों में हिन्दी बोली भी जाती है वहाँ बच्चे एक से सौ तक की गिनती हिन्दी में नहीं जानते | देश
में हिन्दी
से अधिक अंग्रेजी साहित्य का पठन-पाठन हो रहा है | कर्यालयों में मैकाले का ही ‘फार्मेट’ चल रहा है
जिसे कोई
उखाड़ने को तैयार ही नहीं है | साल में एक बार 14 सितम्बर को ही हिन्दी में चिंदी- बिंदी लगाई जाती
है | अधिकांश
जगह देश में यही हो रहा है | कहने को हमारे नेता संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में व्याख्यान देते हैं
परन्तु देश
की संसद में फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ते हैं जबकि अधिकांश सांसद हिन्दी समझते हैं |
हमारी सोच भी बहुत लज्जाजनक हो गई है क्योंकि हम हिन्दी को पिछड़ों की भाषा समझने लगे हैं | हिन्दी
में हस्ताक्षर
करने में हम कतराते हैं | देश –विदेश की अन्य भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है परन्तु अपने देश की
एक
सर्वमान्य भाषा अभी तक नहीं बन सकी जबकि इसे लागू करने के लिए स्वतंत्रता के बाद मात्र 15 वर्ष की
समय सीमा
निश्चित थी | हमारे संविधान के भाग 17 अनुच्छेद 343 (1) में स्पष्ट लिखा है कि संघ की राजभाषा
हिन्दी और लिपि
देवनागरी होगी फिर भी हिन्दी लाचार है और अंग्रेजी राज कर रही है |
मेरी मातृभाषा कुमाउनी है जिसे में बोलता-लिखता -पढ़ता हूं और कुमाउनी भाषा में 12 किताबों की रचना
कर चुका हूं
परन्तु मैं हिन्दी तथा अंग्रेजी के अलावा देश की कुछ अन्य भाषाएं भी थोड़ा-बहुत जानता हूं | मेरा
हिन्दी प्रेम
मेरी 17 हिन्दी पुस्तकों की ज़ुबानी प्रकट भी हुआ है | दो पुस्तकें एकसाथ तीन भाषाओं में हैं । अन्य
भाषाओं का
ज्ञान होना ठीक है पर हिन्दी की कीमत पर नहीं | देश में त्रिभाषा सूत्र कायम रहना चाहिए जिसके
अंतर्गत तीन
भाषाओं – मातृभाषा (स्थानीय भाषा), हिन्दी (राजभाषा) और लिंक भाषा के रूप में अंग्रेजी
(अंतरराष्ट्रीय भाषा )
जारी रहे परन्तु हिन्दी में शिथिलता किसी भी हालत में मान्य नहीं होनी चाहिए | एशिया के देश चीन,
जापान और
कोरिया अपनी भाषा में रमते हुए विकास के शिखर पर पहुंच गए हैं | 14 सितम्बर 'हिन्दी दिवस' के बाद भी
हिन्दी के
कपाल पर बिन्दी लगती रहे तभी हिन्दी आगे बढ़ेगी ।
हिन्दी अपनी राष्ट्र की भाषा
पढ़ लिख नेह लगाय,
सीखो चाहे और कोई भी
हिन्दी नहीं भुलाय,
हिन्दी नहीं भुलाय
मोह विदेशी त्यागो,
जन जन की ये भाषा
हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह ‘पूरन’ कार्यालय में
बनी यह चिंदी,
बीते सत्तर बरस
अभी अपनाई न हिन्दी |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.09.2019
खरी खरी - 491 : पितृपक्ष अशुभ क्यों ?
एक तरफ कुछ लोग कहते हैं कि पितर हमारे देवता हैं, वे सराद पक्ष में स्वर्ग से आकर मृत्युलोक में
विचरण करते हैं
। दूसरी तरफ वही लोग कहते हैं कि आजकल सराद लगे हैं और कोई भी शुभ काम नहीं करते । पितर हमारे देवता
हैं तो
पितृपक्ष अशुभ कैसे हो गया ? पहले तो स्वर्ग एक काल्पनिक शब्द है । स्वर्ग कहीं नहीं है । यदि कहीं
स्वर्ग होता
तो अंकल शैम (अमेरिका) ने वहां अब तक कब्जा कर लिया होता ।
मृत्यु के बाद हमारी पंचतत्व की देह मिट्टी में मिल जाती है और हम मृतक का दाह संस्कार कर देते हैं
। जो जन्म
लेगा वह एक दिन अवश्य मरेगा । सराद शब्द 'श्रद्धा' का अपभ्रंश है । हम अपने स्वजनों को उनकी जयंती
या पुण्यतिथि
पर जरूर याद करें । उनके सम्मान में यथाशक्ति सामाजिक कार्य करें या गरीबों अथवा किसी सुपात्र को
दान दें । सराद
में भात या आटे के पिंड (ढीने) तो वहीं पर रह जाते हैं और धन-द्रव्य पंडित की जेब में जाता है ।
भलेही पितर अपने
जीवन में भूखे रहे हों, ब्राह्मण के लिए भोज बनता है । कोई कौवे को खिला रहा है तो कोई बामण ढूंढ
रहा है ।
जो जीते जी अपने माँ बाप की सेवा न करता हो, उसे ये श्राद्ध कर्म उनके मरने के बाद दिखावे में या डर
से करने की
जरूरत नहीं है । जब कहीं स्वर्ग है ही नहीं तो फिर सराद में जो पकवान रखे जाते हैं वे तो वहीं पर
पड़े रहते हैं ।
यह एक व्यर्थ का दिखावा है । 'ब्रह्मभोज' के माध्यम से यह पितरों के पास पहुंचेगा' यह कथन एक पाखंड
है ।
पितरों के नाम से यथाशक्ति दान जरूर हो परन्तु यह पिंड बनाना फिर इन पिंडों को हटाना एक आडम्बर है ।
जब पितर
सरादों में पृथ्वी पर आए हैं तो फिर वे सराद में आकर यह सब खाते क्यों नहीं, इसका जबाब कोई नहीं
देता । इस भ्रम
से ही कुछ लोगों का व्यवसाय चल रहा है । पितरों को सबसे बड़ी श्रध्दांजलि यह है कि हम उनकी प्रत्येक
जयंती तथा
पुण्यतिथि पर एक पौधा रोपें और उनके निमित अपने स्कूलों में अपनी सामर्थानुसार बच्चों को
प्रोत्साहित करें
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.09.2019
मीठी मीठी - 349 : आज हीरा सिंह राणा ज्यूक जनमदिन
आज 16 सितम्बर 2019 हैं सुप्रसिद्ध लोकगायक, गीतकार और कवि हीरा सिंह राणा ज्यू 77 वर्षक है गईं ।
पिछाड़ि 60
वर्ष बटि ऊँ हमरि मातृभाषा कुमाउनी कि सेवा में एक संत-फकीर कि चार निःस्वार्थ लागि रईं । उनर रचना
संसार भौत
ठुल छ । उनूल नौ रसों में देशप्रेम, श्रृंगार, प्रेरणादायी, विरह, भक्ति, उत्तराखंड और संदेशात्मक
भौत गीत-
कविता लेखीं । उनुहैं हम आपणि संस्कृति और भाषाक धरोहर लै कै सकनूं ।
राणा ज्यू आज जनमानस में छाई हुई एक महान विभूति छीं । उनर अमुक गीत भल छ अमुक गीत भौत भल छ , यैक
विश्लेषण करण
आसान न्हैति । उनु दगै कवि सम्मेलन में म्यर लै कएक ता दगड़ हौछ । ऊँ एक सरल, सहज, शांत और एक फ़कीर
प्रवृति क
मनखी छीं । राणा ज्यू कैं देखते ही जो गीत-कविता म्यार कानों में गूंजण फै जानीं ऊँ छीं - 'अहा रे
जमाना, त्यर
पहाड़ म्यर पहाड़, लस्का कमर बादा, म्येरि मानिलै डानि, अणकसी छै तू, आजकल है रै ज्वाना, आ लिली बाकरी
लिली...,
आंखरों कि माव बनै बेर गीत- कविता क रूप में हमार बीच में धरणी य सुरों क सम्राट कैं भौत भौत
शुभकामना । उम्मीद
छ राणा ज्यू अघिल हैं लै आपण रचनाओंल हमर साहित्य, संस्कृति और कला कैं सिंचित करते रौल । 2 फ़रवरी
2016 बटी
लगातार चार ता मील आपण आंखरों में उम्मीद जतै रैछ कि उनुकैं पद्म सम्मान दियी जाण चैंछ ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.09.2019
खरी खरी -490 : क्यों नहीं बदलता समाज ? क्योंकि ?
1. यहाँ बाबा के वेश में बालात्कारी होते हैं ।
2. यहाँ मुंह में गुटखा डाल कर पंडित
हवन करते हैं ।
3. यहाँ शराब के विरोध में कविता पढ़
कर कवि शराब पीते हैं ।
4. स्कूल-कालेज में पढ़ाने वाले
अध्यापक धूम्रपान करते हैं ।
5. यहाँ अंधविश्वास में डूबकर पशुबलि दी
जाती है और मूर्ति में दूध उड़ेला जाता है ।
6. यहाँ नदियों को माता भी कहते हैं और
उनमें गंदगी भी डालते हैं।
7. यहाँ लकड़ी जलाने के दो त्यौहार हैं,
पौधरोपण का कोई त्यौहार नहीं ।
8. यहाँ देवताओं के नाम पर भांग-धतूरा
और शराब को प्रोत्साहन मिलता है ।
9. यहां संस्कृति-संस्कार और महिला सम्मानकी शिक्षा पर गम्भीरता नहीं होती है ।
10.यहाँ कानून का डर नहीं है और कि सरकारें भी न्यायालय की अवहेलना करती हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.09.2019
मीठी मीठी- 348 : चाहिए दो अदद पद्मश्री
हमारे देश में गणतंत्र दिवस के अवसर पर चार नागरिक सम्मान दिए जाते हैं – भारत रत्न, पद्मविभूषण,
पद्मभूषण और
पद्मश्री | भारत रत्न को छोड़ अन्य तीनों को पद्म सम्मान कहते हैं | पद्म सम्मान प्रति वर्ष अधिकतम
120 लोगों को
दिए जा सकते हैं । किसी एक व्यक्ति को ये तींनों सम्मान मिल सकते हैं लेकिन इसे पाने में कम से कम
पांच वर्ष का
अंतर होना चाहिए | पद्म सम्मान मरणोपरांत नहीं दिए जाते |
इस सम्मान का नामांकन प्रति वर्ष 1 मई से 15 सितम्बर तक किया जाता है जो राज्य या केंद्र सरकार के
माध्यम से
होता है | राज्य सरकारें जिला प्रशासन से नामांकन मांगती है | इसके अलावा कोई सांसद, विधायक, गैर
सरकारी संगठन
(एन जीओ ) या कोई व्यक्ति भी अपने स्तर पर किसी को इस सम्मान के लिए नामंकित कर सकता है |
प्रधानमंत्री कार्यालय
के अंतर्गत बनी एक समिति इसे अंतिम रूप देती है और अंत में प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति इस पर अपनी
मुहर लगाते
हैं |
उत्तराखंड में दो ऐसी लोकप्रिय विभूतियाँ हैं जिन्हें लोकप्रियता और जन-मानस की भावना के आधार पर
पद्म सम्मान
दिया जाना चाहिए | ये दो लोकप्रिय सितारे हैं श्री हीरा सिंह राणा (हिरदा ) और श्री नरेंद्र सिंह
नेगी ( नरेन्दा
या नरुदा ) | हिरदा का जन्म 16 सितम्बर 1942 को मनीला (अल्मोड़ा, उत्तराखंड) में हुआ | वे विगत 60
वर्षों से अपनी
गीत- कविताओं के माध्यम से लोक में छाये हुए हैं | उनकी कुछ पुस्तकें हैं- प्योलि और बुरांश, मानिलै
डानि और
मनखों पड़ाव में |
नरेन्दा (नरुदा) का जन्म 12 अगस्त 1949 को गाँव पौड़ी (पौड़ी, उत्तराखंड) में हुआ | नरूदा भी विगत 45
वर्षों से
अपने गीत-संगीत-कविता के माध्यम से लोकप्रियता के चरम पर हैं | नरुदा की रचनाएँ हैं- खुचकंडी,
गांणयूं की गंगा
स्याणयूं का समोदर, मुट्ठ बोटी की रख और तेरी खुद तेरु ख्याल |
इन दोनों में लगभग कई समानताएं हैं | वर्तमान में दोनों क्रमश: कुमाउनी और गढ़वाली के शीर्ष गायक
हैं, दोनों बहुत
लोकप्रिय हैं, दोनों ही राज्य आन्दोलन से जुड़े रहे, दोनों भाषा आन्दोलन में संघर्षरत हैं, दोनों ही
समाज सुधारक
हैं, दोनों की कई कैसेट –सीडी हैं, दोनों के ही गीत संग्रह हैं, दोनों ही कविता पाठ भी करते हैं,
दोनों का उच्च
व्यक्तित्व है और दोनों ही कई सम्मान-पुरस्कारों से विभूषित हैं |
इन दोनों की संघर्ष गाथा पुस्तक रूप में प्रकाशित है | हिरदा की संघर्ष यात्रा ‘संघर्षों का राही’
(संपादक-चारु
तिवारी, प्रकाशक- उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली) और नरुदा की संघर्ष यात्रा ‘नरेंद्र सिंह
नेगी की गीत
यात्रा’ (संपादक- डा.गोविन्द सिंह, उर्मिलेश भट्ट, प्रकाशक- बिनसर पब्लिशिंग क.देहरादून ) का
लोकार्पण हो चुका
है | इन पंक्तियों के लेखक को इन दोनों विभूतियों के साथ काव्यपाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ है |
अत: उत्तराखंड
की इन दोनों विभूतियों को वर्ष 2020 के गणतन्त्र दिवस पर पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया जाना चाहिए
| इस हेतु
उत्तराखंड सरकार को शीघ्र से शीघ्र उचित कदम उठाने चाहिए |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.09.2019
मीठी मीठी - 347 : हिंदी दिवस पर कवि सम्मेलन
कल 14 सितम्बर 2019 हिंदी दिवस के अवसर पर जागृति मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा DPMI न्यू अशोक नगर , नई
दिल्ली के
सभागार में व्यंग्यात्मक हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें कई कवियों ने सहभागिता निभाई
जिनमें मुख्य
कवि थे सर्वश्री डॉ राजीव कुमार पाण्डेय, राकेश सोनी, पूरन चन्द्र कांडपाल, वृंदा सिंह, वीरेंद्र
जुयाल, मनोज
चंदोला, हेम पंत, श्रीमती सुमन बिष्ट, सरला अधिकारी, निधि वर्मा और मुक्ति बत्रा आदि ।
कार्यक्रम में अधिवक्ता संजय शर्मा दरमोड़ा, डा विनोद बछेती ( चेयरमैन DPMI ), वरिष्ठ पत्रकार चारु
तिवारी,
राजेन्द्र नाथ, आंनद जोशी, सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे । आयोजन का संचालन हेम पंत जी ने किया
और सभी
आगंतुकों धन्यवाद कार्यक्रम की आयोजक सुश्री कुमु जोशी भटनागर ने किया ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
15.09.2019
खरी खरी - 489 : हिन्दी की वेदना
(14 सितम्बर हिन्दी दिवस)
हिन्दी अपनी राष्ट्र की भाषा
पढ़ लिख नेह लगाय,
सीखो चाहे और कोई भी
हिन्दी नहीं भुलाय,
हिन्दी नहीं भुलाय
मोह विदेशी त्यागो,
जन जन की ये भाषा
हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह ‘पूरन’ कार्यालय में
बनी यह चिंदी,
बीते सत्तर बरस
अभी अपनाई न हिन्दी |
लार्ड मैकाले ने भारत में
अंग्रेजी की ऐसी जड़ जमाई,
अंग्रेजों के जाने के बाद भी
अंग्रेजी उखड़ नहीं पाई,
भले ही यू एन में कुछ
लोगों ने हिन्दी पहुंचाई,
पर अपनी संसद में तो
अंग्रेजी की ही है दुहाई ।
( सभी भारतीयों को हिन्दी 'दिवस की शुभकामनाएं ' तथा इंडिया वालों को 'हैप्पी हिन्दी डे टु यू।' )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.09.2019
बिरखांत-281: आने दो बिटिया को
( कुछ महीने पहले उत्तरकाशी जिले के 133 गावों में में तीन महीने में 216 प्रसव हुए, सभी लड़के
जन्मे । इस
अद्भुत रहस्य पर अभी वार्ता होने की प्रतीक्षा है । )
मानव को जन्म देने वाली जननी की जन्मने से पहले ही बेख़ौफ़ हत्या के लिए हमारा संकुचित परम्परावादी
समाज ही
जिम्मेदार है | कन्याओं की गर्भ में ही हत्या कर हम मानवता को अंत की ओर ले जा रहे हैं | महिला रहित
समाज की तो
कल्पना भी नहीं की जा सकती फिर भी हम यह कुकृत्य कर रहे हैं | तकनीक ने हमें शैतान बना दिया, जो हम
बीमारी की
जानकारी देने वाली मशीन से ह्त्या के लिए कन्या भ्रूण ढूँढने लगे | कुकुरमुत्तों की तरह अवैध
गर्भपात केन्द्रों
तथा कसाईखाना बन गये नर्सिंगहोमों ने प्रकृति प्रदत मानव लिंग-अनुपात की चूल हिला दी है | (1000/940
वर्ष 2011 )
| यदि इन कसाईखानों को नहीं रोका गया तो बेटों के चहेतों को अपने कुंआरे लाडलों के लिए दुल्हन ढूंढ
कर भी नहीं
मिलेगी | देश के कुछ राज्यों में यह समस्या दस्तक दे चुकी है |
लड़कियाँ पैदा होने से पहले ही क्यों मार दी जाती हैं ? जन्मी हुई बेटियां हमें भार क्यों लगती हैं ?
हम
पुत्रियों की तुलना में पुत्रों को अधिक मान्यता क्यों देते हैं ? हमें बेटा ऐसा क्या दे देगा जो
बेटी नहीं दे
सकती ? बेटे को चावल और बेटी को भूसा समझने की सोच हमारे मन-मस्तिष्क में क्यों पनपी ? इस तरह के कई
प्रश्नों का
उत्तर हमें अपनी दूषित -संकुचित मानसिकता एवं कथनी- करनी में बदलाव लाकर स्वत: ही मिल जाएगा | ‘लड़की
ससुराल चली
जायेगी, लड़का तो हमारे साथ ही रहेगा और सेवा करने वाली दुल्हन के साथ खूब दहेज़ भी लाएगा, जबकि लड़की
को पढ़ाने
में, फिर उसके विवाह में खर्च होगा और मोटा दहेज़ भी देना पड़ेगा | इतना धन कहां से आएगा ? दहेज़ का
‘स्टैण्डर्ड’
भी बढ़ चुका है | इससे अच्छा है दो-चार हजार ‘सफाई’ के दे दो और लाखों बचाओ | फिर बेटा तो सेवा
करेगा, वंश
चलाएगा, मुखाग्नि और पिंडदान देगा तथा श्राद्ध भी करेगा | लड़की किस काम की ?’ इस तरह की मानसीकता ने
ही आज यह
सामाजिक समस्या खड़ी कर दी है | कसाई बने चिकित्सकों को दोष भलेही दें परन्तु वास्तविक दोषी तो
माता-पिता या
दादा-दादी हैं जो दबे पांव कसाइयों के पास जाते हैं |
पुत्र लालसा ने जनसँख्या के सैलाब को विस्फोटक बना दिया है | बढ़ती जनसंख्या में विकास ‘ऊंट के मुंह
में जीरा’
जैसे लगने लगा है | शिक्षा के प्रसार से लोग इस बात को समझ रहे हैं कि लड़का- लड़की जो भी हो संतान दो
ही काफी हैं
| आज भी हमारे देश में एक आस्ट्रेलिया की जनता के बराबर जनसख्या प्रतिवर्ष जुड़ती जा रही है |
ग्रामीण भारत तथा
शहर के पिछड़े तबके में जनसँख्या वृद्धि अधिक है | हमें एक दोष जनसंख्या नीति अपनानी ही होगी जिसमें
दो संतान के
बाद ग्राम सभा से लेकर संसद तक की सभी सुविधाएं वंचित होनी चाहिए | पड़ोसी देश चीन ने नीति बनाकर ही
जनसँख्या पर
नियंत्रण कर लिया है |
जनसँख्या नियंत्रण के आज कई तरीके हैं परन्तु अवैध शल्य चिकित्सा द्वारा भ्रूण हत्या में महिला को
पीड़ा के साथ
–साथ बच्चेदानी के अंदरूनी पर्त के क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी रहती है | उस समय गर्भ से
छुटकारा पाने की
जल्दी में ऐसी महिलाओं को वांच्छित पुनः गर्भधारण करने में रुकावट हो सकती है | क़ानून के अनुसार
लिंग बताना तथा
भ्रूण हत्या करना अपराध है | कुछ ‘कसाइयों’ को इसके लिए दण्डित भी किया जा चुका है | दुख की बात तो
यह है की
अशिक्षित एवं गरीबों के अलावा संपन्न लोग भी लड़के के लिए भटक रहे हैं | काश ! इन लोगों को पुरुषों
से कंधे से
कंधा मिलाकर आकाश की ऊँचाइयों को छूने वाली अनगिनत महिलायें नजर आती तो शायद ये अपनी बेटियों के साथ
कभी अन्याय
नहीं करते और दो बेटियों के आने के बाद किसी लाडले की प्रतीक्षा में परिवार नहीं बढ़ाते | रियो से
2016 में
ओलम्पिक दो पदक लाने वाली सिंधु- साक्षी सबके सामने हैं | 18वें एशियाड में भी लड़कियों ने कई पदक
जीते ।
कविता संग्रह ‘स्मृति लहर’ में ‘नारी का ऋण’ कविता में मैंने एक दम्पति के शब्दों को कविता रूप दिया
है, “बेटा,
बेटा रह सकता है पुत्रवधू के आने तक; बेटी, बेटी ही रहती है अंतिम साँस के जाने तक |” अत: ‘बिटिया
को आने दो,
मारो मत |’ हमें कन्याभ्रूण हत्या से नहीं बल्कि कन्यादान से अपार सुकून, अनंत सुख और अविरल शांति
आजीवन मिलती
रहेगी | अटल जी की चिता को उनकी नातिन और सुषमा जी की चिता को उनकी बेटी ने ही अग्नि दी । सोच बदलने
की बात है ।
जब जागो तब सवेरा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.09.2019
खरी खरी - 487 : नॉर्मल डिलीवरी या सिजेरियन
किसी भी महिला के लिए मां बनना एक अद्भुत ऐहसास है जिसे प्रत्येक महिला पाना चाहती है ।आज
नव-मातृत्त्व में कदम
रखने वाली अधिकांश युवतियां शिशु का जन्म नार्मल डिलीवरी (प्राकृतिक प्रसव) के बजाय सिजेरियन से
करवा रहीं हैं ।
सिजेरियन अर्थात महिला के गर्भ से शिशु को सर्जरी (ओप्रेसन) से बाहर निकलना । आजकल यह सुविधानुसार
भी होने लगा
है
चिकित्सकों के अनुसार नार्मल डिलीवरी में 10 से 15 घंटे का समय लगता है जबकि सिजेरियन से मात्र 30
से 45 मिनट
में शिशु बाहर आ जाता है । इससे डॉक्टरों का समय बचता है, प्रसूता को प्रसव पीड़ा से नहीं गुजरना
पड़ता । अस्पताल
को सिजेरियन से अच्छी कमाई होती है क्योंकि कि प्रसूता को 7- 8 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है ।
सिजेरियन के लिए
सीजीएचएस योजना से सरकारी कर्मचारियों का या कारपोरेट कर्मचारियों का कम्पनी द्वारा बिल भुगतान हो
जाता है ।
बताया जाता है कि देश की राजधानी में 70 % डिलीवरी सिजेरियन से प्राइवेट अस्पतालों में होती है ।
अधिकांश
महानगरों में 70 से 95 % तक प्रसव सिजेरियन से करवाये जाते हैं । नार्मल डिलीवरी एक स्वस्थ परम्परा
है जिसे
अस्पताल में ही कराया जाना चाहिए । चिकित्सकों के अनुसार सिजेरियन प्रसव से जन्मे बच्चे संघर्ष में
अक्षम और
निरीह होते हैं वहीं महिलाओं को सिजेरियन के बाद रक्ताल्पता (अनेमिया), मोटापा या उच्च रक्तचाप (हाई
ब्लड
प्रेसर) जैसे परेशानी हो सकती है ।
एक समाचार के मुताबिक उन डॉक्टरों पर अब नजर रखी जा रही है जिन्होंने अधिक सिजेरियन किये हैं । मां
बनने वाली
युवती को उसके परिजनों द्वारा नार्मल प्रसव के लिए प्रोत्साहित किया जाना आज के माहौल में एक
सर्वोत्तम बात होगी
। आरम्भ में ही सिजेरियन की बात करना गलत है । सिजेरियन तो एक आपातकाल परिस्थिति है जब महिला बीमार
हो या कोई
चिकित्सकीय सलाह दी गई हो । नारी को इतना नाजुक या हिम्मतहार भी नहीं होना चाहिए कि वह प्रसव के नाम
से डरने लगे
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.09.2019
खरी खरी - 486 : अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस
8 सितंबर 2019 को 53वें अन्तर्राष्ट्ररीय साक्षरता दिवस पर कोई विशेष समारोह का समाचार मीडिया में
नहीं लपलपाया
। मीडिया में हाईप खबरें ही गूंजती रही । दो वर्ष पहले इसी दिवस पर उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू जी
ने नई दिल्ली
में कहा था , "हर नागरिक एक अनपढ़ को साक्षर बनाये ताकि गरीबी और भ्र्ष्टाचार दूर किया जा सके ।"
वेंकैया जी एक
नेक दिल, शिष्ट और स्पष्टवादी इंसान हैं । दिवंगत संजय गांधी ने भी देश को 4 नारे दिये थे - 'देश का
एक व्यक्ति
एक अनपढ़ को पढ़ाये, प्रत्येक व्यक्ति एक पेड़ लगाए, अपना शहर स्वच्छ रखें और परिवार छोटा रखें ।' यह
बात सत्तर के
दशक के उत्तरार्ध्द की है । पूर्व राष्ट्रपति कलाम सर ने 83वें संविधान संशोधन ( वर्ष 2000 ) को
अपनी सहमति दी
और शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया ।
1947 में साक्षरता 18 % थी और आज 75% है अर्थात आज भी देश में 25% लोग अनपढ़ हैं । आजादी के 72 साल
बाद भी हमारा
देश पूर्ण साक्षर नहीं बन पाया, यह बहुत दुख की बात है । वेकैंया जी ने उस अवसर पर कहा 'राष्ट्रपिता
महात्मा
गांधी ने भी निरक्षरता को समाज के लिए शर्मनाक और कलंक बताया था ।'
हमारे सभी राष्ट्रीय लक्ष्य समय पर कभी भी पूरे नहीं होते । देश के अधिकांश स्कूलों में शिक्षा की
गुणवत्ता में
कमी है । स्कूली शिक्षा का स्तर भी संतोषजनक नहीं है । एक राज्य के शिक्षकों के ज्ञान की चर्चा कुछ
दिन पहले
मीडिया में दिखाई गई जो अत्यंत ही सोचनीय थी । स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर, शौचालय, पानी और बिजली
आज भी कुछ
जगह अपूर्ण है । स्कूलों में कहीं विद्यार्थी नहीं तो कहीं अध्यापक नहीं है । कुछ स्कूलों में आधा
साल बीत जाने
के बाद भी बच्चों को पुस्तकें नहीं मिलती हैं । मिड डे मील भी कुछ जगहों पर अव्यवस्थित है ।
ऐसे में हमारा कछुवा तंत्र 2022 तक पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकेगा ? हमारा विकसित
राष्ट्र का
सपना और विश्वगुरु बनने का सपना कैसे पूरा होगा जब आज भी विश्व के प्रथम 200 विश्वविद्यालयों में
हमारा नाम नहीं
है । इसका मुख्य कारण देश प्रत्येक क्षेत्र में अंधविश्वास के भंवर से बाहर आकर वैज्ञानिक सोच को
तरजीह नहीं दे
पा रहा और अधिकांश समय हिन्दू -मुस्लिम या आरक्षण या पुरातन परम्पराओं के झमेले की वार्ता -बहस में
ही गुजर जाता
है । हमें नई सोच के साथ नई पहल करनी होगी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.09.2019
खरी खरी - 485 : स्वच्छता अभियान की अनदेखी - एक वीडियो
इस वीडियो के माध्यम से हम संबंधित अधिकारियों/स्थानीय निकायों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं कि
प्रधानमंत्री जी
के स्वच्छता अभियान की अनदेखी न की जाय । एक पार्क की रेलिंग तोड़कर वहां कूड़े का एक लंबा- ऊंचा अंबार
लग चुका है
जो कई दिनों/महीनों से है । चार विद्यालयों के निकट यह कूड़ा एक चौड़ी सड़क के किनारे बहुत दूर तक एक
विशाल ढेर का
रूप ले चुका है । उम्मीद है वीडियो के द्वारा किए गए निवेदन पर अधिकारियों की निगाह अवश्य पड़ेगी
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.09.2019
बिरखांत -279 : वे चार दिन
कुछ समय पहले एक समाचार पत्र में 'वे चार दिन' के बारे में एक लेख छपा था । शायद कुछ मित्रों ने पढ़ा भी
हो ।
सूक्ष्म में बताता हूं, कालम की लेखिका कहती है, “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के
महीने में
चार दिन तक राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है | फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र
भक्तों में
बांट दिया जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि
पानी के लाल
होने के पीछे पुजारियों का हात होता है |”
लेखिका ने ‘रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों?' इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन
की घटनाओं
की चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में
कई सवाल
पूछे हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | महिला को
अपवित्र
कहना हमारी अज्ञानता है ।
उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें पहले गोठ (पशु निवास) या ' छूत कुड़ी' में रहती थी | बाद में
चाख के
कोने (मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार
से आज
बदलाव आ गया है | बेटियों का विवाह बीस से पच्चीस या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को
छूत लगती
है, न किसी के बदन में कांटे बबुरते हैं और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) है | घर
–मकान-
वातावरण सब पहले जैसा ही है, सिर्फ अब छूत नहीं लगती |
सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम), पाखण्ड, आडम्बर, मसाण और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा- डरा कर
रखने की
परम्परा का न आदि है न अंत | बात- बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों,
डंगरियों और
बभूतियों द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) |
ऋतुस्राव (रजस्वला अर्थात पीरियड या मासिक ) के वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक
प्रकृति प्रदत
क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है
और इसका
नियमित होना स्त्री के स्वस्थ शरीर का परिचायक है । इस दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस | इसमें छूत या
अस्पर्श जैसी
कोई बात नहीं है । स्कूल जाने वाली छात्राओं तक को अब इस प्रक्रिया से जानकारी दी जाने लगी है जो एक
अच्छी बात है
। अब फिल्म और विज्ञापन से यौवन में कदम रखने वाली लड़कियों को बताया जाता है कि यह उत्तम स्वास्थ्य का
प्रतीक है
और इसे कुछ अनहोनी या समस्या समझना हमारी जानकारी की कमी समझा जाएगा । इस दौरान स्वच्छता का ध्यान अति
आवश्यक है
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.08.2019
मीठी मीठी - 338 : मेजर ध्यान चंद स्मरण दिवस ( राष्ट्रीय खेल दिवस)
हर साल 29 अगस्त हुणि हमार देश में हॉकी जादूगर मेजर ध्यान चंद ज्यू क जन्मदिन राष्ट्रीय खेल दिवस के
रूप में मनाई
जांच । "लगुल " किताब बै उनार बार में एक लेख यां उद्धृत छ । ध्यान चंद ज्यू कैं विनम्र श्रद्धांजलि और
सबूं कैं
राष्ट्रीय खेल दिवस कि शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.08.2019
खरी खरी - 482 : मोबाइल का प्रेम रोग
आजकल आप कहीं भी नज़र डालिए - घर, बाहर, मैट्रो, रेल , बस, पार्क, कोई भी समारोह, राह में चलते हुए या
सैर करते
हुए, आपको अधिकतर लोग मोबाइल फोन से चिपके हुए मिलेंगे या कान में लीड डाल कर दुनिया से कटकर घूमते हुए
मिलेंगे या
मोबाइल की ओर देखकर अपने आप हंसते हुए मिलेंगे । बताया जाता है कि देश के अधिकतर शहरी युवक - युवतियों
के पास
स्मार्ट फोन है । कुछ लोग तो फोन में लाइक या चैटिंग या गीत - संगीत देखने - सुनने में इतने दीवाने हो
गए हैं कि
उन्हें समय पर खाने या सोने का भी होश नहीं है । कई बार तो लोग सड़क पर चलते हुए एक दूसरे से या किसी
वाहन से टकरा
जाते हैं । बच्चों या परमेश्वरी से बात करने का समय नहीं है । घर में चार वयस्क हैं चारों अपने अपने फोन
में
तल्लीन हैं, कोई किसी से बात नहीं कर रहा । तल्लीनता सेंड या फारवर्ड में है या वीडियो देखने में है या
बहस -
चैटिंग में हम खोए हुए हैं ।
इसे हम फोन तल्लीनता नहीं कहेंगे बल्कि यह एक लत है या एक रोग की गिरफ्त है । कुछ साल पहले जब मोबाइल
नहीं था तो
ऐसी हालत नहीं थी बल्कि व्यक्ति समाज या परिवार से मिलता था । जुड़ा तो वह अब भी है परन्तु उन मित्रों
से जुड़ा है
जो हवा में हैं । गुलदस्ता, चाय कप, मॉडल, मूर्ति, भगवान के चित्र, कार्टून, पेड़, पहाड़, दृश्य, पोर्न,
अश्लील
चुटकुले आदि फारवर्ड करना सबसे बड़ा या प्राथमिक कार्य मोबाइल में हम करने लगे हैं । हम क्या कर रहे हैं
हमें नहीं
मालूम ? फोन का सदुपयोग भी है जो बहुत कम होता है जबकि फोन है ही सदुपयोग के लिए या जानकारी बढ़ाने के
लिए । जब दो
घंटे लगातार फोन के प्रयोग से निजात मिले तो स्वयं से इस मोबाइल फोन में बिताए गए समय का हिसाब तो
मांगना चाहिए
।
जो लोग इस वास्तविकता को समझते हैं कि वे फोन रोग या लत से ग्रस्त हो चुके हैं उन्हें फोन के नोटिफिकेशन
बंद करने
चाहिए । किसी को कोई खास बात करनी होगी तो आपको फोन तो आ ही सकता है । रात्रि में या दिन में कुछ घंटे
फोन का
स्वीच आफ करें । फोन का एक अनुशासन बनाएं और उस पर अटल रहें । लगातार फोन का प्रयोग हमारे रोग प्रतिरोधक
तंत्र (
Immune system ) को कमजोर कर देता है जो बहुत खतरनाक बात है । अपने रोग देने वाले फोन को हमने स्वयं
अपना शत्रु
बना दिया है । क्या इसी शत्रुता के लिए या स्वयं को रोगी बनाने के लिए हमने स्मार्ट फोन खरीदा था
?
पूरन चन्द्र कांडपाल
28.08.2019.
खरी खरी - 480 : देशभक्ति की परिभाषा
कुछ दिन पहले विभांशु दिव्याल का ' बतंगड़ बेतुक ' कालम में देशभक्ति के बारे में एक लेख पढ़ा । बहुत ही
तथ्य
पूर्ण एवं समरस लेख था । आजकल कुछ लोग देशभक्ति के प्रमाण पत्र भी देने लगे हैं । जो उनके मन कैसी नहीं
बोलेगा वह
देशभक्त नहीं है । ऐसे कुछ लोग सड़क पर गुटका थूकते हैं, कूड़ा डालते हैं, हुड़दंग मचाते हुए भारत माता
की जय -
वन्देमातरम कहते हैं और वे स्वयं को देश भक्त कहते हैं । इस बार प्रधानमंत्री ने स्वछता रखने वालों और
छोटा परिवार
रखने वालों को देशभक्त कहा है जिसकी सराहना होनी चाहिए और उनकी बात का अनुपालन होना चाहिए ।
विभांशु जी के शब्दों के अनुसार देशभक्ति चीखने - चिल्लाने में नहीं, शिष्ट भाषा और व्यवहार में प्रकट
होती है।
खुद बेहतर इंसान बनना देशभक्ति है, नफरत मिटाना और लोगों में इंसानियत जगाना देशभक्ति है । जाति, धर्म
की कट्टरता
से लड़ना, आपसी सौहार्द पैदा करना, अंधश्रद्धा को त्यागना, विवेक से कार्य करना, अंहकार छोड़ना, दूसरों
को अपने
जैसा इंसान समझना और उनका सम्मान करना देशभक्ति है । उन्माद से बचना और बचाना, उन्माद पर नियंत्रण रखना
तथा सबके
कल्याण की कामना करना देशभक्ति है । यदि हमारे अंदर इस देशभक्ति की कमी है तो सबसे पहले इस कमी को दूर
करते हुए
हमें स्वयं में देशभक्ति जगानी होगी तभी हम किसी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का हक रखते हैं । जयहिंद
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
26.08.2019
खरी खरी - 479 : दुख के कारण
जीवन में दुःखों के लिए जिम्मेदार कौन है ?
भगवान, गृह-नक्षत्र, भाग्य, रिश्तेदार, पड़ोसी या सरकार ? इनमें से कोई नहीं । सिर्फ हम जिम्मेदार हैं
।
1. हमारा सरदर्द, फालतू विचार से ।
2.पेट दर्द, गलत खाने से ।
3. हमारा कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे से ।
4.हमारा दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली से ।
5. हमारे कोर्ट केस, हमारे अहंकार से ।
6. हमारे फालतू विवाद, ज्यादा व व्यर्थ बोलने से ।
उपरोक्त कारणों के सिवाय हमार दुख के कई अन्य कारण भी हैं । हम बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं
या भगवान
को दोष देते हैं । यदि हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे कि कहीं न कहीं हमारी
मूर्खताएं,
स्वछंदता, या अकड़ ( ईगो ) ही इनके पीछे है। हम जन्माष्टमी जरूर मनाते हैं परन्तु कर्म - संस्कृती जिसका
संदेश
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दिया उस पर तनिक भी मंथन नहीं करते । मनुष्य के गिले- शिकवे सिर्फ़ साँस लेने तक
हैं , बाद
में तो सिर्फ़ पछतावे ही रह जाते हैं । इन बिंदुओं पर मंथन करें और यथार्थ को समझते हुए स्वयं में बदलाव
लाएं
।
पूरन चन्द्र कांडपाल
25.05.2019
खरी खरी - 478 : 'गीता' की बात भी हो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर
कुछ लोगों ने कल (23 अगस्त 2019 ) और कुछ आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं । इस महोत्सव में
श्रीकृष्ण के कर्म
संदेश की चर्चा प्रमुखता से होनी चाहिए थी जो नहीं हुई । 'गीता' के कर्म संदेश का मूल अर्थ यह नहीं है
कि बिना फल
या परिणाम का लक्ष्य बनाये हम कर्म करते जाएं । "कर्मण्डे वा....कर्मणी" का भाव यह है कि हम कर्म करें
और जो भी
प्रतिफल मिले उसकी चिंता न करते हुए उसे स्वीकार करें । हम जो भी कर्म करेंगे उसका फल हमें भोगना पड़ेगा
। इसलिए
कर्म करने से पहले सोच लेना उचित होगा । खैर लोग अपने अपने हिसाब से व्याख्या करते हैं ।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर आजकल ज्ञान की बात से अधिक मनोरंजन पर ध्यान दिया जाता है । एक बानगी देखिए -
एक फिल्मी
गीत है, 'हम-तुम चोरी से , बंधे एक डोरी से ...।' इस गीत पर जन्माष्टमी पर पैरोडी बना दी गई, 'बृज की
छोरी से,
राधिका गोरी से, मैया करा दे मेरा ब्याह...।' तीन कलाकार- एक राधा, दूसरा कृष्ण और तीसरा यसोदा । गीत
में कृष्ण
बना कलाकार यसोदा के कलाकार से कह रहा है और राधा बना कलाकार नाच रहा है तथा लोग सिटी बजा कर इस भौंडे
नृत्य-गान
में मस्त हैं । कृष्ण की पत्नी रुकमणी जी थी । राधा तो कृष्ण की अनन्य भक्त थी फिर यह फिल्मी पैरोडी पर
लोगों ने
आपत्ति क्यों नहीं की ? यह क्या हो रहा है, क्या संदेश जा रहा है, किसी को कोई मतलब नहीं ? पैरोडी गाने
वाले के
साथ गुटका मुंह में उड़ेले कलाकार वाद्य बजा रहे हैं औऱ श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जा रहा है ।
काश ! मंच से श्रीकृष्ण के बहाने नशामुक्ति और स्वच्छता अभियान का भी उद्घोष बीच -बीच में होता तो कोई
तो बदलता ।
कर्म - संस्कृति और संस्कारों की बात होती तो समाज में कुछ परिवर्तन आता । लकीर के फकीर बनकर हमने उत्सव
जरूर
मनाया, पैरोडियाँ सुनी, रासलीला देखी, माखन चोरी मंचित हुई परन्तु गीता के 18 अध्यायों के 700 श्लोकों
में से एक
की भी चर्चा नहीं हुई । कहीं कहीं पर तो - "कन्हैया तेरो जन्मदिन ऐसो मनायो, कटिया डाल के बिजली ल्हीनी
जगमग भवन
बनायो " भी होता है । चोरी की बिजली से टेंट सजाया जाता है ।
गीता के प्रथम अध्याय के प्रथम श्लोक का प्रथम शब्द है "धर्म'' और अंतिम अध्याय के अंतिम श्लोक का अंतिम
शब्द है
"मम।" इन दोनों को जोड़ें तो शब्द बनता है "धर्ममम'' अर्थात मेरा धर्म है केवल 'कर्म', वह कर्म जो जनहित
में हो,
समाज हित में हो और देश हित में हो । योगेश्वर श्रीकृष्ण के इस संदेश का मंथन आज के परिवेश में नितांत
आवश्यक है ।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पुनः शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
24.08.2019
खरी खरी - 477 : मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम
21 अगस्त 2019 को मैंने " मिसिंग टाइल सिंड्रोम " की चर्चा की थीं । आज पति - पत्नी संबंधित एक नए विषय
को छूने का
प्रयास है । जब किसी भी उम्र में पति - पत्नी के संबंध में सिथिलता या उदासीनता आने लगती है या एक दूसरे
की परवाह
या सम्मान कम होने लगता है, आपसी हंसी - मजाक कम होने लगती है, ' आइ लव यू ' कहना तो दूर, नाश्ता - लंच
- डिनर भी
अकेले होने लगता है, छोटी छोटी बातों में एक दूसरे की तीक्ष्ण आलोचना होने लगती है, झूठ बोलने के बेवजह
आरोप लगने
लगते हैं, सोने का समय भी अलग अलग होने लगता है, एक दूसरे के साथ बिताया जाने वाला वक्त भी मोबाइल में
बीतने लगता
है, यहां तक कि रात्रि शयन भी अलग अलग कमरे में होने लगता है, तो समझिए दाम्पत्य जीवन को ' मिसिंग
स्पार्क ' नाम
की बीमारी ने घेर लिया है । ये सभी उक्त लक्षण ' मिसिंग स्पार्क ' बीमारी के हैं जिसे " मिसिंग स्पार्क
सिंड्रोम "
भी कहते हैं । ऐसे में जीवन में निराशा या सदमा या डिप्रेशन भी दस्तक से सकता है ।
इस बीमारी का इलाज किसी डाक्टर या वैद्य या तांत्रिक या ज्योतिषि या किसी जगरिये - डंगरिये के पास नहीं
है बल्कि
इस रोग का उपचार स्वयं पति - पत्नी के पास है । रोग के जो भी ऊपर लक्षण बताए आप उनको अपने रिलेशन या
संबंध में न
आने दें । इस संबंध में इगो ( अकड़ ) रूपी जंग नहीं लगने दें । यदि यह जंग लग गया तो छूटेगा नहीं । कुछ
छोटी छोटी
बातें हैं यदि अमल करी जाएं तो हम ' मिसिंग स्पार्क सिंड्रोम ' से बच सकते हैं । भले ही इसमें दोनों का
रोल है
परन्तु मैं पति परमेश्वरों को कुछ सलाह देना चाहूंगा । आप जमी हुई बर्फ को पिघलाने में पहल करें क्योंकि
दिन में
तीन बार आपको उनके द्वारा भोजन परोसा जा रहा है । अपने मस्तिष्क के रिमोट को कूल में लाइए और किचन में
जाने का शुभ
अवसर ढूंढिए । हिम्मत के साथ उनके कंधे में हाथ रखते हुए प्यार से पूछिए, " क्या बन रहा जी या क्या हो
रहा है जी
..." फिर अपने हिसाब से दृश्य को आगे बढ़ाते जाइए । बताने की जरूरत नहीं है । पहल तो बेचारे पति
परमेश्वर को ही
करनी पड़ेगी । आपकी पहल से निनानाबे फीसदी बर्फ पिघल जाएगी ।
मेरे एक मित्र ने मेरी राय पर ऐसा ही किया । पत्नी गुस्से में थी । वह अवसर को भाप नहीं पाया । जैसे ही
उसने किचन
में जाकर पत्नी के कंधे में हाथ रखा, पत्नी ने उसे धक्का मारते हुए कहा "छोड़ो उथां जौ, मिकैं नि चैन ह
पोताड़ -
पातड़ " ( हटो उधर जाओ, मुझे नहीं चाहिए यह झूठा दिखावा ) । मित्र ने पुनः प्रयास किया और उसे सफलता
मिली । एक -
दूसरे की बात सुनकर, मोबाइल से दूरी रखकर और गृहकार्य में हाथ बंटाते कर हम स्पार्क को मिस होने से बचा
सकते हैं ।
स्पार्क को यहां चिंगारी या करंट न समझें इसे एक छिपी हुई मिठास समझें । घर - गृहस्थी तो ऐसे ही चलती है
और चलते आ
रही है । जहां बर्फ नहीं पिघलती, जहां छिपी हुई मिठास लुप्त होने लगती है वहां जीवन बहुत दुखद है, कूल
की जगह शूल
है । इसलिए जितनी जल्दी हो सके बर्फ पिघलाने में ही समझदारी है । अब अधिक सोचने के बजाय किचन की ओर
बढ़ने में ही
परमानंद है । बढ़िये ...
पूरन चन्द्र कांडपाल
23.08.2019
बिरखांत -278 : पत्थर युद्ध : बग्वाल
उत्तराखंड में पुरातन परम्पराएं आज भी जड़ जमाये हैं | बड़ी मुश्किल से पशु-बलि प्रथा अब कम हो रही है
लेकिन
चोरी-छिपकर खुकरी- बड्याठ अब भी चल रहे हैं | देवालयों में रक्तपात बहुत ही घृणित कृत्य हैं परन्तु जिन
लोगों ने
इसे उद्योग बना रखा है उनके बकरे बिक रहे हैं | जेब किसी की कटती है और पिकनिक कोई और मनाता है | हम
किसी से शिकार
मत खाओ नहीं कह सकते परन्तु देवता- मसाण- हंकार के नाम पर किसी की जेब काटना जघन्य पाप ही कहा जाएगा |
मांसाहार के
लिए बुचड़ के दुकानें गुलज़ार तो हैं ही |
परम्परा के नाम पर उत्तराखंड में आज भी मानव –रक्त बहाया जाता है | प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन जिला
चम्पावत में
वाराहीधाम देवीधुरा के खोलीखाड़- दूबाचौड़ मैदान में पत्थरों की बारिश होती है । भलेही इस वर्ष इसे फलों
की वर्षा का
रूप देने की कोशिश हुई फिर भी पत्थर वर्षा हुई फिर भी कई लोग घायल हो गए । एक दूसरे पर पत्थर बरसाने
वाले चार
खामों के लोग बड़े जोश से मैदान में कूद पड़ते हैं | इस पत्थरबाजी को बग्वाल भी कहा जाता है | अपराह्न में
मदिर के
पुजारी की शंख बजाते ही पत्थरबाजी शुरू होती है जो कुछ मिनट तक पत्थरों की वर्षा से कई लोगों का खून
बहने लगता है
| जब पुजारी को यकीन हो जाता है कि एक व्यक्ति के खून के बराबर रक्तपात हो चुका है तो वे युद्ध बंद करा
देते हैं |
इस युद्ध में दर्शकों सहित कई व्यक्ति घायल होते हैं जिनका बाद में उपचार किया जाता है |
यह परम्परागत पाषाण युद्ध वर्षों से चला आ रहा है | इसी प्रकार का पत्थर युद्ध जिला अलमोड़ा के ताड़ीखेत
ब्लाक स्तिथ
सिलंगी गाँव में भी वर्षों पहले बैशाख एक गते (१४ अप्रैल ) को प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता था जिसमें
स्थानीय लोगों
की दो टीमें ‘महारा’ और ‘फर्त्याल’ भाग लेती थीं | सूखे गधेरे में एक स्थान (खइ ) तय किया जाता था जिसे
पत्थरों की
वर्षा के बीच हाथ में ढाल लेकर पत्थरबाज छूने जाते थे | जो इस स्थान पर पहले पहुँच जाय उसे विजेता माना
जाता था |
यहाँ भी कई लोग घायल होते थे जिनका उपचार किया जाता था या खाट में डाल कर रानीखेत अस्पताल में ले जाया
जाता था |
पत्थरबाजी से खून बहाने को ‘देवी को खुश करने’ की बात मानी जाती थी | लगभग 20वीं सदी के 5वें दसक ( 60 -
65 वर्ष
पहले ) के दौरान नव-युवकों ने इस पाषण युद्ध को बंद करवा दिया और उस स्थान पर झोड़े (खोल दे देवी, खोल
भवानी, धारमा
केवाड़ा ...आदि ) गाये जाने लगे | अब झोड़े भी बंद हो गए हैं क्योंकि कौतिक एक नजदीकी स्थान पर होने लगा
है, झोड़े
वहीं होने लगे हैं | पत्थरमार युद्ध बंद होने से न कोई रोग फैला और न कोई अनहोनी हुई जैसा कि पुरातनपंथी
भय दिखाकर
प्रचारित करते थे |
चम्पावत की इस पत्थरबाजी के खून –खराबे में भाग लेने वाले जोश से सराबोर खामों को आपस में मिल-बैठ कर
सर्वसम्मति
से इस पाषाण युद्ध को बंद करवाना चाहिए | इसकी जगह कोई खेल की टूर्नामेंट आरम्भ की जानी चाहिए जिसमें
चार खामों की
चार टीम या अन्य स्थानीय टीमें भाग लें और साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करायें | पुरस्कार के लिए
ट्रॉफी रखें
| ऐसा करने से उत्तराखंड में खेलों को प्रोत्साहन भी मिलेगा | हमें समय के साथ बदलना चाहिए।
देश में पत्थरबाजी की कोई प्रतियोगिता नहीं होती | बग्वाल का जोश खेलों में परिवर्तित होना चाहिए |
‘देवी नाराज हो
जायेगी’ का डर ग्राम सिलंगी में भी था जो एक भ्रम था | रुढ़िवाद को सार्थक कदम उठाकर और सबको साथ लेकर
समाप्त करते
हुए खेल भावना युक्त नूतन परम्परा आरम्भ करने की पहल होनी चाहिए | दुनिया चांद में पहुंच गई है और हम
देवी को रक्त
चढ़ाने की सोच से नहीं उबर सके । मंथन जरूर करें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.08.2019
खरी खरी - 476 : मिसिंग टाइल सिंड्रोम (एक मानव जनित रोग)
नया आवास बनाकर एक व्यक्ति ने घर में सुंदर टाइल लगाए । बाथ रूम के एक कोने पर एक टाइल कम पड़ गई । यह
जगह दरवाजे
के पीछे थी । अतः मिस्त्री ने जोड़-जंतर कर वहां पर टाइल लगा दी जो आसानी से दिखाई नहीं दे रही थी । जैसा
कि इस
व्यक्ति को इस टाइल का पता था, जो भी व्यक्ति इनके घर आता वह उस व्यक्ति से इस टाइल की चर्चा करते हुए
कहता, "यार
एक टाइल ने काम खराब कर दिया, बाकी तो सब काम बढ़िया हुआ । " देखने वाला व्यक्ति कहता, "अरे यार दरवाजे
के पीछे है,
दिखाई भी नहीं दे रही, तुम्हारे बताने पर मुझे पता चला । रहने दो क्यों टेंसन ले रहे हो ?" उसके समझाने
पर भी मकान
मालिक चेहरा लटकाए ही रहा जैसे वह कोई बड़ी समस्या को ढो रहा हो ।
याद रखिए यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जो हमारा पूरा ध्यान एक छोटी सी नजरअंदाज करी जाने वाली इस तरह
की कमी की
ओर खींच कर हमें परेशान करती है । हम जन्मदिन उत्सव मनाते हैं । करीब 20 मित्र- परिजन इस छोटे से आयोजन
में
सम्मिलित होते हैं। सबको भोजन और आयोजन अच्छा लगता है । आये हुए 20 में से कोई एक व्यक्ति आयोजन या भोजन
में कुछ न
कुछ त्रुटि या नुक्ता निकाल देता है जबकि 19 इस आयोजन की प्रशंसा करते हैं । हम इन 19 की प्रशंसा को तो
भूल जाते
हैं और उस एक की अनावश्यक बात को "लोग-बाग कह रहे हैं" कह कर मन-मस्तिष्क में उतार कर हमेशा ढोते रहते
हैं ।
स्वयं की मोल ली हुई इस मनोवैज्ञानिक समस्या को 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' के नाम से जाना जाता है ।
मनोवैज्ञानिकों
का मानना है कि हमें हमारी खुशी चुराने वाली ऐसी बातों को समस्या का रूप देकर दुखी नहीं होना चाहये । इस
एक
व्यक्ति द्वारा उत्पन्न की गई असहजता को तरजीह नहीं देते हुए हमें उन 19 लोगों को तरजीह देनी चाहिए
जिन्होंने सत्य
के साथ हमारा मनोबल बढ़ाने में अपना सहयोग दिया । वैसे भी किसी के आयोजन में अनावश्यक मीन -मेख निकालना
एक लाइलाज
बीमारी है जो कुछ लोगों में हम अक्सर देखते हैं । इस 'मिसिंग टाइल सिंड्रोम' नामक बीमारी से हम बचे रहें
और समाज
को जागृत करें, यही हमारा प्रयास होना चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.08.2019
खरी खरी - 475 : रोटी और भगवान
अक्सर हम सब देखते हैं कि जब भी कुछ घरों में रोटी और भगवान की फ़ोटो/तस्वीर फालतू हो जाती है तो उसको वे
चौराहे पर
या पार्क के कोने पर या किसी पेड़ के नीचे फेंक देते हैं । उसके बाद कुत्ते या आवारा पशु उस स्थान पर आते
हैं । इन
पशुओं का मन हुआ तो रोटी खाते हैं अन्यथा वहीं इर्द-गिर्द मल-मूत्र करके चल पड़ते हैं ।
रोटी की बात करें तो जिसके लिए पूरी दुनिया दौड़ रही है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जिसके लिए हम
दर-दर की
ठोकरें खाते हैं उसे लोग इस तरह क्यों फैंक देते हैं ? पहले तो रोटी उतनी ही बने जितनी चाहिए । यदि बच
भी जाये तो
उसका सदुपयोग अगले भोजन में कर लें । हम सुबह रोटी लेकर कार्यस्थल पर खाते रहे हैं तब तो यह बासी नहीं
होती । फिर
भी रोटी फैंकने के बजाय किसी गौशाला तक पहुंचा दी जाय ।
भगवान तो बेचारे अनाथ हैं । टूट गए, पुराने हो गए या खंडित हो गए उनको तो लावारिश होना ही है । पता नहीं
लोग जिस
फोटो-मूर्ती पर रात-दिन नाक रगड़ते हैं, उसकी पूजा करते हैं उसे इस तरह गंदगी में क्यों छोड़ देते हैं ।
यह हमारे
देश की कैसी धार्मिक शिक्षा है ? किसी ने तो उन्हें ऐसा करने को कहा है । किसी भी मूर्ति-फोटो को इस तरह
आवारा
पशुओं के बीच उसका निरादर करते हुए छोड़ने के बजाय उसे भू-विसर्जन कर देना चाहिए अर्थात किसी पेड़ के नीचे
या साफ
जगह पर उसे तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिए । जल-विसर्जन में भी वह मिट्टी में ही मिलेगी । अंधविश्वास -
जड़ित
प्रथा-परम्परा की जंजीरों से हमें अपने को मुक्त करना है तभी हम अपनी अगली पीढ़ी के लिए जलस्रोतों और
नदियों को बचा
पाएंगे तथा श्रद्धा का भी सम्मान कर सकेंगे ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.08.2019
मीठी मीठी - 336 : सांस्कृतिक कुमाऊं दर्शन नोएडा ( उत्तर प्रदेश )
बेई 18 अगस्त 2019 हुणि नोएडा सेक्टर 19 कम्युनिटी सेंटर में सांस्कृतिक कुमाऊं दर्शन (ट्रस्ट) नोएडा
द्वारा
संस्थाक तिसर वार्षिकोत्सव आयोजित करिगो । आयोजन में मुख्य अतिथि सी हौक ग्रुपक चेयरमैन श्री नरेन्दर
सिंह लडवाल
ज्यू और विशिष्ट अतिथि सर्वश्री कृष्ण चन्द्र जोशी (उद्यमी ) हेम पन्त ( नाट्य रंगमंच कलाकार) , गंगा
दत्त भट्ट (
कला निदेशक ), पूरन चन्द्र कांडपाल
( साहित्यकार) समेत कयेक गणमान्य लोग मौजूद छी । कार्यक्रम में
सुप्रसिद्ध
लोकगायक हीरा सिंह राणा और गायिका सुश्री आशा नेगी कि विशेष मौजूदगी रै । अन्य गायकों में श्री सुरेश
जोशी और के
सी पंत लै समारोह में छी ।
संस्कृति और कला संगमक य रोचक कार्यक्रम में संस्था कि नारीशक्ति समेत नान - ठुल करीब तीन दर्जन
कलाकारोंल भौत भलि
प्रस्तुति दी बेर सभागार में दर्शकोंक भल मनोरंजन करौ । राणा ज्यू और आशा नेगी ज्यूक गीतोंल लै दर्शक
भौत खुशि हईं
। करीब साढ़े तीन घंट तक य आयोजक सबै लोगोंल आनंद उठा । कार्यक्रम में संगीत प्रस्तुत करणी टीम लै भलि
छी । य
आयोजन क संचालन सुधीर पंत ज्यू और उनार दगड़ियों ( पंत ज्यू और जोशी ज्यू ) ल करौ । आपणी भाषा और
संस्कृति कैं
सिंचित करण क लिजी सांस्कृतिक कुमाऊं दर्शन ट्रस्ट नोएडा कि पुरी टीम कैं बधाई और शुभकामना ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
19.08.2019
मीठी मीठी -335 : रोकिए जनसंख्या विस्फोट
आज हमारे देश की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है जो 2011 में 121 करोड़ थी । देश में वर्ष 1962 में एक नारा
था 'बस दो
या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे ।' जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ और आगे चलकर नारा आया 'हम दो हमारे
दो ।' आजकल
बिना कोई नारे के नई पीढ़ी बस एक बच्चे के बाद विराम लगाने लगी हैं । मुझे लगता है कि एक बच्चे वाला
विचार कई मायने
में ठीक नहीं है । सबसे पहले इससे कुछ वर्षों बाद जनसँख्या संतुलन बिगड़ जाएगा । दूसरी बात यह है कि
परिवार - समाज
से कई रिश्ते लुप्त हो जाएंगे जैसे - भाई, भाबी, चाचा, चाची, मौसी - मौसा, देवर, जेठ, देवरानी, जेठानी,
साली, साला
आदि । मित्र, सहेली, यार, दोस्त की जगह या अहमियत अलग है । रिश्ते अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनकी
जगह भरी
नहीं जा सकती ।
एकल संतान के माता-पिता को इस मुद्दे पर जरूर सोचना चाहिए । घर में दो बच्चे होने चाहिए भलेही दोनों
बेटी हों या
बेटे । अकेला एक बच्चा समाजिकता के अभाव से भी ग्रसित हो जाता है । स्कूल में भलेही उसे साथी मिलते हों
परन्तु घर
में तो वह इकलौता है । यह डरने की बात नहीं है कि आप दूसरे बच्चे को सुख - सुविधाएं नहीं दे पाएंगे ।
हां पुत्र की
भूख (सन सिंड्रोम ) के खातिर परिवार नहीं बढ़ना चाहिए जैसा कि अभी भी कहीं - कहीं देखने को मिलता ।
परिवार में दो
बच्चे अर्थात 'हम दो हमारे दो' को चरितार्थ रखना चाहिए ।
देश की जनसंख्या निरन्तर बढ़ रही है । जितना भी विकास होता है वह बढ़ती जनसंख्या के नीचे दब जाता है ।
यदि इसी तरह
बढ़ते गई तो एक दिन जनसंख्या विस्फोट हो सकता है । अब राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाने का समय आ गया है
जिसमें ' हम
दो हमारे दो ' के कानून को सबके लिए सख्ती से लागू किया जाए । हमें पुत्र या पुत्री जो भी हो जाए उसे
स्वीकार करना
होगा और ' पुत्र सिंड्रोम ' बीमारी से दूर रहना होगा । तभी छोटे परिवार की परिकल्पना साकार हो सकती है
और देश की
बढ़ती हुई जनसंख्या पर अंकुश लग सकता है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
18.08.2019
खरी खरी - 474 : स्वच्छता की बात
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो कहा ही, प्रथम प्रधानमंत्री से लेकर 14वें प्रधानमंत्री तक सभी ने
स्वच्छता की
बात अपने अपने ढंग से कही । परन्तु हम सुनते ही कहां हैं ? हम से सड़क या गली - मुहल्ले से कूड़ा उठाने
के लिए कोई
नहीं कह रहा । सिर्फ इतना कहा जा रहा है कि जहां - तहां कूड़ा मत डालो । यदि हम सड़क - गली - मुहल्ले
में कूड़ा
डालेंगे ही नहीं तो स्वच्छता तो स्वतः ही रहेगी ।
वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने 2014 से इस स्वच्छता के बारे में अब तक छै बार लालक़िले की प्राचीर से कह
दिया है,
झाड़ू लगा कर भी दिखा दिया है, स्वच्छता अभियान को भी समझा दिया है परन्तु जमीनी तस्वीर कुछ जगहों को
छोड़कर नहीं
बदली । प्रातः सैर के समय सड़क पर कूड़े के ढेर मिलते हैं । गली - मुहल्ले का भी वही हाल है । हम नहीं
बदले ।
दिल्ली मैट्रो में अब्बल स्वच्छता है । मैट्रो से उतरते ही लोग गुटके के पाउच फैंकना शुरू कर देते हैं ।
मैट्रो
में सख्त कानून है क्योंकि वह एक कॉर्पोरेशन है जिसके अपने नियम हैं ।
हमारे पास हर गली - मुहल्ले - सड़क हेतु हमें सुधारने के लिए पुलिस या गार्ड भी नहीं है । हमें जनजागृति
की अधिक
जरूरत है और गंदगी या कूड़ा डालने वालों के लिए कुछ दंडात्मक क्रिया भी होनी चाहिए । इस लेख के अंत में
कूड़े के
ढेर के तीन - चार दिन पहले लिए गए चित्र रोहिणी में यमुना नहर के ऊपर के है । यह दृश्य देखकर दुख होता
है । उस
स्थान की हालत आज भी वैसी ही है क्योंकि कूड़ा निरन्तर वहां फेंका जाता है । क्या हम सुधरेंगे ?
पूरन चन्द्र कांडपाल
17.08.2019
बिरखांत- 277 : हम स्वतंत्र हैं (व्यंग्य ) (शुभकामनाओं सहित, व्यंग्य में कुछ छूट गया तो निःसंकोच
बता दें ।)
73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, अपने इर्द- गिर्द की अनचाही तस्बीर को समर्पित है आज की यह व्यंग्य
बिरखांत |
लगभग दो सौ वर्ष फिरंगियों की गुलामी के बाद देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ | 26 जनवरी 1950 को
हमारा संविधान
लागू हुआ जिसमें आज तक 123 संशोधन भी हो चुके हैं | संविधान ने हमें जो स्वतंत्रताएं दे रखी हैं उन पर
हमने नहीं
सोचा क्योंकि हमारी मस्तिष्क में अपनी स्वतंत्र संहिता पहले से ही डेरा डाले हुए है | हमारी इस अलिखित
स्वतंत्र
संहिता की न कोई सीमा है और न कोई रूप | बिना दूसरों की परवाह किये जो कुछ हमें अच्छा लगे या हमारा मन
करे वही
हमारी असीमित स्वतंत्र संहिता है भलेही इससे किसी को परेशानी हो, कोई छटपटाये या किसी का नुकसान हो |
चर्चा करें तो सबसे पहले बोलने की स्वतंत्रता को लें | हमें किसी भी समय, कुछ भी, कहीं पर भी बिना सोचे-
समझे
बोलने की छूट है | न छोटे- बड़े का ख्याल और न स्त्री- पुरुष का ध्यान | भाषा जितनी भी अभद्र या अश्लील
हो बेरोकटोक
निडर होकर उच्चतम उद्घोष के साथ बोलने पर भी हमें कोई रोक नहीं सकता | वैसे हमारी संसद में भी कुछ लोगों
को
असंसदीय भाषा बोलने की छूट है | गन्दगी फैलाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है | हम कहीं पर भी- गली,
मोहल्ला, सड़क,
कार्यालय, सार्वजनिक स्थान, प्याऊ, जीना-सीड़ी, रेल, बस में बेझिझक थूक सकते हैं | बस में बैठकर बाहर
किसी राहगीर
पर, दो-पहिये सवार या कार पर थूकिये, खुल्ली छूट है | कार चला रहे हैं तो क्या हुआ, कहीं पर भी पच्च..
से थूकिये
कोई कुछ नहीं कहेगा |
मल-मूत्र विसर्जन की भी हमें पूरी छूट है | रेल की पटरी, नाली -नहर- नदी -सड़क के किनारे, कहीं पर भी
करिए | कोई
देखता है तो देखने दीजिये, आप अनदेखी करिए | कोई बिलकुल ही पास से गुजरता है तो गर्दन घुटनों के अन्दर
घुसा
दीजिये, देखने वाला थूकते हुए चला जाएगा | मूत्र विसर्जन आप कहीं पर भी कर सकते हैं | दीवार पर, पेड़ की
जड़ या तने
पर, बिजली- टेलेफोन के खम्बे पर, खड़ी बस या कार के पहियों पर, सड़क के किनारे या कोने अथवा मोड़ पर या
जहां मन करे
वहां पर बिना इधर- उधर देखे खूब तबियत से कर दीजिये |
अपने घर को छोड़कर कहीं पर भी कूड़ा- कचरा फैंकने की भी हमें पूरी स्वतंत्रता है | फल- मूंगफली या अंडे के
छिलके,
बचा हुआ भोजन, पोस्टर- कागज, प्लास्टिक थैली, गुटका- पान मसाला पाउच, माचिस तिल्ली, बीडी-सिगरेट के
डिब्बे-
ठुड्डे, डिस्पोजेबल प्लेट- गिलास, बोतल, नारियल आदि कहीं पर भी लुढ़का दीजिये | झाडू लगाओ कूड़ा पड़ोस की
ओर धकाओ |
कूड़े के ढेर ऐसी जगह लगाओ जहां वह दूसरों की समस्या बने | घर में सफेदी कराओ, मलवा या बचा हुआ वेस्ट
पार्क, सड़क या
गली में फैंको, कोई रोकने वाला नहीं | गांधी से लेकर मोदी जी तक 14 प्रधानमंत्री हमें समझाते रहे । हम
क्यों सुनें
? मैट्रो में हम डंडे के बल पर कूड़ा नहीं डालते, इसका हमें मलाल है ।
हमें अपने जानवरों को सड़कों पर खुला छोड़ने की पूरी छूट है | गाय, भैंस या सूवर के झुण्ड से सड़क के बीच
कोई टकराए
हमारी बला से | हमने कुत्ते पाले हैं तो उन्हें सड़क या पार्क में ही तो घुमायेंगे | मल- मूतर करवाने के
लिए ही तो
हम उन्हें वहां ले जाते हैं | पार्क-सड़क तो सभी का है, लोगों को देखकर अपने जूते –चप्पल बचा कर चलना
चाहिए | हमारी
यातायात समबन्धी आजादी तो असीमित है | बिना संकेत दिए मुड़ने, रात में प्रेशर हार्न बजाने वह भी किसी को
बुलाने के
लिए, तेज गति से वाहन चलाने, दु-पहिये में पांच -छै जनों को बिठाने, दूसरे की या किसी भी जगह वाहन पार्क
करने,
प्रार्थना पर बस न रोकने, बस में धूम्रपान करने, महिला- सीटों पर बैठने, भीड़ के बहाने बस में महिलाओं के
शरीर से
स्वयं को रगड़ते हुए आगे बढ़ने, वरिष्ठ जनों के अनदेखी करने, शराब- नशा लेकर वाहन चलाने तथा निर्दोष
नागरिकों को
टक्कर मारते हुए रफूचक्कर होने की भी हमें पूरी छूट है |
कहाँ तक बताऊँ, हमारी स्वच्छंदता के असीमित छूट का हम आनंद ले रहे हैं | महिलाओं को घूरने, उनपर कटाक्ष
करने,
द्विअर्थी संवाद बोलने, बहला-फुसला कर उन्हें अपने चंगुल में फ़साने, उनका यौन शोषण करने तथा उनका बना-
बनाया घर
बिगाड़ने की हमें खुल्ली छूट है | हमें झूठ बोलने, कोर्ट में बयान बदलने, बयान से मुकरने, घूस देने,
धर्म-सम्प्रदाय
के नाम पर विषवमन करने, असामाजिक तत्वों को संरक्षण देने, क़ानून की अवहेलना करने, रात को देर तक पटाखे
चलाने,
कटिया डाल कर बिजली चोरने, सार्वजनिक स्थानों पर नशा -धूम्रपान करने, किसी का चरित्र हनन करने, अश्लीलता
देखने और
पढ़ने, कन्याभ्रूण की हत्या करने, कालाबाजारी- मिलावट और तश्करी करने, फर्जी डिग्रीयां -प्रमाण पत्र
लेने, फुटपाथ
खोदने, सड़क पर धार्मिक काम के नाम पर तम्बू लगाने, बिना बताये जलूस या रैली निकालने, यातायात जाम करने,
गटर के
ढक्कन और पानी के मीटर चुराने, पार्कों की सुन्दरता नष्ट करने, विसर्जन के नाम पर नदियों में रंग-रोगन
युक्त
मूर्तियाँ डालने और धार्मिक कूड़ा फैंकने, राजनीति में बेपैंदे का लोटा बनने, शहीदों और राष्ट्र भक्तों
को भूलने और
सरकारी दफ्तरों में बिना काम की तनख्वा लेने सहित हमारी अनेकानेक स्वतंत्रताएं हैं |
ये सभी स्वतंत्रताएं हमें कहाँ ले जायेंगी ? क्या इन्हीं के लिए हमारे अग्रज शहीद हुए थे ? क्या मनमर्जी
के तांडव
करने के लिए ही हम पैदा हुए हैं ? क्या हमें दूसरों की तनिक भी परवाह है ? हम अपना व्यवहार कब बदलेंगे ?
हम कानून
का सम्मान करना कब सीखेंगे ? इन प्रश्नों को हम अनसुना न करें और इस व्यंग्य में वर्णित आजादी के बारे
में स्वयं
से जरूर सवाल करें | स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15 अगस्त 2019
मीठी मीठी - 333 : मनौ 15 अगस्त
कै कैं छ टैम सब हैरीं व्यस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
आजादी यसिके नि मिलि क्तुक्वाल दि बइ,
ग्वारां क राज कि तबै हिली तइ,
काटि गुलामी कि बेड़ि करौ उनर राज अस्त,
तबै मनू रयूं हाम आज पन्नर अगस्त |
हमूकैं आजाद हई हैगीं अड़सठ साल,
क्वे रैगो गरीब क्वे हैगो मालामाल,
को चांरौ तिरंगै कैं सब हैरीं व्यस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
भ्रष्ट है गो तंत्र करैं रई देश क हलाल,
राष्ट्र सम्पति क कैकैं न्हैति मलाल,
अपराध दिनोदिन बढ़ते जांरौ ज्यान हैगे सस्त
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
नेताओं क गीत, शहीदों कैं क्वे नि पुछें रय,
शहीद परिवारों दगै क्वे लै नि मिलैं रय,
देश प्रेमियों क हालात है गईं खस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
इस्कूलों में लै देश प्रेम कि बात बंद हैगे,
नि रै गेइ पढ़ाई-लिखाई व्यौपार धंध हैगे,
नान-नान इस्कुलियां पुठम ठुल हैगीं बस्त,
को मनूरौ आब पन्नर अगस्त |
राज्य में स्यैणी लै हैगीं शराब क ठेकदार
माफियों दगै मिलि रईं भल चलि रौ रुजगार,
कच्ची-पक्की इंग्लिश पेऊं रईं सब छीं मस्त,
कैल नि सोच यस लै ह्वल पन्नर अगस्त |
गैरसैण नि गेइ राजधानी देहरादून अटिकि रै,
उत्तराखंडियों क मन में य बात खटिकि रै,
करो हिम्मत लगूनै रौ गैरसैण क गस्त,
क्वे न क्वे वां जरूर मनौ पन्नर अगस्त |
सब जागि रेल न्हैगे उत्तराखंड चाइए रैगो,
आज -भोव कुनै-कुनै मुद्द दबाइए रैगो,
जोर नि लगाय हमूल मिलीजुलि जबरजस्त,
नेताओंल लै छोड़ आब मनूण पन्नर अगस्त |
अरे ओ लेखक कवि गीतकार साहित्यकारो,
अरे ओ देशाक पहरुओ इमानदार पत्रकारो,
उठो कमर कसो अघिल बढ़ो तुम निहौ पस्त,
क्वे झन मनौ,तुम जरूर मनौ पन्नर अगस्त|
पूरन चन्द्र काण्डपाल रोहिणी
15.08.2019
मीठी मीठी - 334 : रक्षाबंधन क त्यार
रक्षाबंधन क त्यार
भै बैणियां क प्यार,
भै क भरौस बैणि कैं
बैणि क भरौस भै कैं ।
क्वे दूर क्वे नजीक
राखी में याद वीक,
कैं भै दगाड़ बैणि भैजीं
कैं लिफाफ में राखी ऐजीं ।
त्यारों क रां सबूं कैं इंतजार
घर ऐ जानी जो छीं भ्यार
त्यार - ब्यारों कि चली छ रीत
जतू त्यार उतू गीत संगीत ।
सबै त्यार मिलन सार
त्यारों ल बढ़ते जां भैचार,
मनखी रैजां धारै धार
मेल करै दिनी हमार त्यार ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
15.08.2019
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता
दिवस कि शुभकामना ।
खरी खरी - 473 : देश में बाड़ की विभीषिका
इस समय जब हम अपने 73वें स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में लगे हैं, देश के कई भागों को भीषण बाड़ ने
अपनी चपेट
में लिया है । केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित हैं । यहां कई लोगों की डूबने से मृत्यु
भी हो गई
है। उत्तराखंड में भी बादल फटने से बहुत क्षति हुई है । वैज्ञानिकों के अनुसार जिस वर्षा को लगातार दो
हफ्ते होना
था वह अचानक एक या दो दिन में होने लगी है । देश में कहीं सूखा है तो कहीं अधिक वर्षा हो रही है । बाड़
से होने
वाली इस त्रासदी के जिम्मेवार हम ही हैं और हमारा शासन तंत्र है ।
ग्लोबल वार्मिग के कारण पूरा वर्षा चक्र गड़बड़ा गया है और ग्लोबल वार्मिग का कारण भी हम और हमारा
असंतुलित
पर्यावरण को छेड़ना है । हमने 2013 की केदारनाथ विभीषिका से कुछ नहीं सीखा जिसमें 5800 लोग जल प्रलय से
अपना जीवन
खो चुके थे । वहां हमने नदी के घर में (बहाव क्षेत्र ) अपने डेरे बना लिए थे । अन्य राज्यों में भी यही
हो रहा है
। नदी के बहाव क्षेत्र में घर या बाजार बन गए हैं , कुएं और तालाब लुप्त करके वहां भी मनुष्य ने रहना
शुरू कर दिया
है । यह सब सरकार और शासन की नाक के नीचे होता है । स्थानीय निकाय इस अवैध निर्माण के साक्षी होते हैं ।
भ्रष्टाचार की चादर की ओट में यह अवैध कर्म वैध हो जाता है । यह पूरे देश की हालत है किसी राज्य विशेष
की नहीं ।
बाड़ में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति हम एक कोरी सहानुभूति के सिवाय और कर भी क्या सकते हैं ।
वर्षा और
बाड़ के थमने के बाद जिंदगी को पीड़ित लोग पुनः रास्ते में लाने का प्रयास करेंगे । मीडिया - अखबार भी
चुप हो
जाएंगे । अगले साल फिर यही होगा । क्या हमारी सरकारें या नीति नियंता इस प्रतिवर्ष की त्रासदी पर कुछ
मंथन करेंगे
? क्या हम पर्यावरण की छेड़छाड़ में संयम बरतेंगे । क्या लोग ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से सोचेंगे ?
इस बीच एक
सलूट उनको जरूरी है जो वर्दी पहने भगवान के रूप में पीड़ितों का जीवन बचा रहे हैं । जयहिंद एनडीआरएफ,
जयहिंद
एसडीआरएफ, जयहिंद हिन्द की सेना । एक जयहिंद उन संवेदनशील मनखियों को भी जो बाड़ पीड़ितों की मदद में
हाथ बंटा रहे
हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
14.08.2019
खरी खरी - 472 : पूजा/इबादत प्रथा पर मंथन जरूरी
मैंने हमेशा ही पूजा या इबादत या धर्म के नाम पर पशुबलि को अनुचित कहा है । कुछ मित्र ताने मारते हुए
मुझ से कहते
हैं, 'कभी मुसलमानों के बारे में भी लिखो, क्यों हमेशा हिन्दुओं के पीछे पड़े रहते हो ?' मित्रो, ऐसा
नहीं है । मैं
हिन्दू से पहले हिंदुस्तानी या भारतीय हूं और मानवीय सरोकारों से वशीभूत होकर कुछ शब्द लिख देता हूं ।
चार दशक से
कलमघसीटी हो रही है । जन- सरोकारों पर लिखते आ रहा हूं । हर विसंगति और विषमता तथा अंधविश्वास के विरोध
में लिखता-
बोलता हूं ।
कबीर के दोनों दोहे याद हैं । पहला- 'पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार; ता पर ये चाकी भली, पीस
खाये संसार
।' दूसरा - 'कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लेई बनाय; ता पर मुल्ला बांघ दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।' मोको
कहां ढूंढे
रे बंदे भी याद है । 'ना तीरथ में ना मूरत में, ना काबा कैलाश में; ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना
एकांत निवास
में ।' बच्चन साहब की मधुशाला भी कहती है, "मुसलमान और हिन्दू हैं दो, एक मगर उनका हाला; एक है उनका
मदिरालय एक ही
है उनका प्याला; दोनों रहते एक न जब तक मंदिर -मस्जिद हैं जाते, बैर कराते मंदिर-मस्जिद मेल कराती
मधुशाला ।"
दोनों संप्रदायों को देश और समाज के हित में एक-दूसरे का सम्मान करते हुए मध्यमार्ग से संयम के साथ चलना
चाहिए ।
सत्य तो यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन सबने मिलकर लड़ा और हिंदुस्तान का अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर कहता
था,
"हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की ।" जब फिरंगियों को लगा
कि
हिंदुस्तान आजाद करना ही पड़ेगा तो उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के कई षडयंत्र रचे और जाते
-जाते अपने
षड्यंत्र में सफल भी हो गए ।
देश को स्वतंत्र हुए 72 वर्ष हो गए हैं और देश के दो मुख्य सम्प्रदायों की आपसी नफरत को बढ़ाने का
षड्यंत्र आज भी
जारी है । यदि यह नफरत प्यार में बदल जाएगी तो अमन-चैन के कई दुश्मनों की दुकानें बंद हो जाएंगी । फिर
वे सियासत
किस पर करेंगे ? ये लोग नफरत की आग जलाकर अपनी रोटी सेकते आये हैं और सेकते रहेंगे ।
स्पष्ट करना चाहूंगा कि ईश्वर कभी भी पशु -बलि नहीं लेता और न अल्लाह ईद में पशु -कुर्बानी लेता है ।
धर्म और
आस्था के नाम पर किसी पशु की कुर्बानी या बलि एक अमानुषिक कृत्य है । सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए
नफरत का
पुलाव पका कर नहीं बांटा जाय । जाति-धर्म- सम्प्रदाय की लड़ाई में हमें झोंक कर अपना उल्लू सीधा करने
वालों से
सावधान रहना ही वक्त की मांग है ताकि हम कम से कम अगली पीढ़ी को तो इस संक्रामक रोग से बचा सकें ।
ईद की सभी को शुभकामना । जब हम से वे दीपावली की शुभकामना कहते हैं, कांवड़ियों की सेवा में पंडाल लगाते
हैं, होली
- रामलीला में संगत करते हैं तो हमें भी उन्हें ईद की शुभकामना देने में संकोच नहीं करना चाहिए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.08.2019
दिल्ली
मीठी मीठी-329: तीलू रौतेली जयंती, सार्वभौमिक के वार्षिक दिवस पर
10 अगस्त 2019 को राजधानी में वीरांगना तीलू रौतेली की 358 वां जन्मोत्सव नई दिल्ली स्थित गढ़वाल भवन
सभागार में
सार्वभौमिक संस्था द्वारा मनाया गया । इस आयोजन की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवम् वंदना के साथ हुई । संस्था
की सचिव
हिमानी बिष्ट द्वारा नारी सशक्तीकरण पर एक लघु व्याख्यान दिया । संस्था की महासचिव सुश्री शर्मिला अमोला
द्वारा
हेपेटाइटिस रोग के बारे में बड़े विस्तार से सहज शब्दों में बताया । उसके बाद आगंतुक गणमान्य व्यक्तियों
द्वारा
समरिका " नौनी " ( सशक्त बेटी, सशक्त समाज ) का विमोचन किया गया ।
सार्वभौमिक आयोजित कार्यक्रम में दो लघु नाटिकाओं का मंचन भी हुआ । पहली नाटिका थी "आब के होलू " और
दूसरी नाटिका
थी "बूढ़े माता - पिता का दर्द " । दोनों ही नाटिकाओं का मंचन कलाकारों द्वारा बड़ी उत्कृष्टता से किया
गया जिसे
दर्शकों ने खूब पसंद किया । दोनों ही नाट्यमंचन रोचक एवं संदेशवाहक थे । पहला नाटक गढ़वाली - कुमाउनी में
संयुक्त
संवाद के साथ था जबकि दूसरी नाटिका हिंदी में थीं । इस आयोजन में समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य
करते हुए
नारी की पहचान को चार चांद लगा रही महिलाओं की चर्चा भी हुई और प्रिंसिपल सुश्री रचना जोशी को संस्था ने
सार्वभौमिक ऐवार्ड से सम्मानित किया गया । उत्तराखंड के पौड़ीखाल की 6 छात्राओं और दो गीत - संगीत साधक
छोटे
बच्चों को भी संस्था ने सम्मानित किया । इन दो बच्चो - मनीष और तनुज ने वाद्यों के साथ मंच पर प्रस्तुति
भी दी ।
इस आयोजन एक विशेष कार्यक्रम "उत्तराखंड के लोक गीत - संगीत की अनंत यात्रा " था जिसमें तीन काल खंडों (
1930
,-1970, 1970 - 2000 और 2000 से आगे ) की चर्चा डॉ कालेश्वरी जी ने की । इस रंगारंग कार्यक्रम को करीब
दो दर्जन से
अधिक कलाकारों, गायकों, संगीतज्ञों ने प्रस्तुत किया । सबका नाम लिखना संभव नहीं है । फिर भी लक्ष्मी
रावत पटेल,
पुष्पा जोशी, गीता गुसाईं, राकेश गौड़, ठगरियाल जी, पंड्रियाल जी और नरेंद्र अजनबी जी ने दर्शकों को
आत्मविभोर
किया । कुछ ऐसे बेजोड़ नृत्य देखने को मिले जिन्होंने दर्शकों को 1960 के दसक में पहुंचा दिया ।
गढ़वाल भवन के खचाखच भरे सभागार में कई साहित्यकार, पत्रकार, कवि, राजनीतिज्ञ, कलाकार और कई गणमान्य
व्यक्ति थे
जिनमें सर्वश्री सांसद तीरथ सिंह रावत, कर्नल चन्द्र सिंह पटवाल, हरिपाल रावत, मोहबत सिंह राणा, डॉ पवन
मैठाणी,
अर्जुन सिंह राणा, अधिवक्ता संजय दरामोड़ा, देवेन्द्र जोशी, सुश्री द्रौपदी, मधु बेरिया साह, आरुषि
निशंक, एम सी
पपनै, हेम पन्त, चारु तिवारी, के सी पांडे आदी प्रमुख थे । मंच का संचालन संस्था के संयोजक एवम् अध्यक्ष
अजय सिंह
बिष्ट एवम् हिमानी बिष्ट ने किया । पांच घंटे के इस रोचक कार्यक्रम को शब्दों में बांधना आसान नहीं है ।
इस सफल
आयोजन के लिए सार्वभौमिक टीम और इससे जुड़े परिवारों तथा अंत तक टिके रहने वाले दर्शकों को बधाई और
शुभकामना ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.08.2019
खरी खरी - 471 आयोजनों में समय अनुपालन की दरकार
बड़ी विनम्रता से कहना चाहूंगा कि उत्तराखंड की अधिकतर संस्थाएं, अपवाद को छोड़कर, अपने किसी भी आयोजन
को विलंब के
साथ ही आरंभ करती हैं । इस बात को कई बार आयोजक भी विनम्र भाव में इंगित करते हैं, "कार्यक्रम निर्धारित
समय से
आरम्भ नहीं कर सके, क्षमा चाहते हैं ।" मेरा निवेदन है कि यदि हम एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन या अपने
कार्यस्थल पर
समय से पहुंचते हैं तो हमें किसी भी संस्था के कार्यक्रम में भी समय से पहुंचना चाहिए । आयोजकों को
कार्ड में वही
समय लिखना चाहिए जब वे कार्यक्रम शुरू कर सकें । 5 या 10 मिनट की देरी स्वीकार हो सकती है । यदि
कार्यक्रम 6 बजे
सायं आरम्भ होना है तो कार्ड में 4.30 या 5.00 या 5.30 नहीं लिखना चाहिए । यह कोई शादी का निमंत्रण नहीं
है । शादी
में यह सब चलता है क्योंकि बरात देर से पहुंचती है । कार्यक्रमों के दौरान हमने सभागार में दर्शकों को
कहते सुना
है, "हम तो आयोजन में निर्धारित समय पर पहुंच गए थे, हमें कार्यक्रम का बहुत देर तक इंतजार करना पड़ा ।"
जब
कार्यक्रम देरी से आरम्भ होते हैं तो फिर देरी से ही समाप्त भी होते हैं और कुछ लोग कार्यक्रम छोड़ कर
चले भी जाते
हैं । ऐसे में कार्यक्रम ठीक से हो भी नहीं पाते क्योंकि समायाभाव के कारण आयोजकों पर दबाव बन जाता है ।
कलाकार,
आयोजक, मंच संचालक सब उस तरह नहीं चल सकते जिसका उन्होंने अभ्यास किया होता है । कुछ कलाकारों के तो
अपने आइटम
दिखाने का समय ही नहीं मिलता जिसे उन्होंने बड़ी लगन से तैयार किया होता है ।
कृपया इस बात पर हम सब मंथन करें और इसे अन्यथा न लें । हमें अपने सभी कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित बनाने
के लिए
समय का अनुपालन तो करना ही होगा । कुछ वर्ष पहले मैंने गढ़वाल भवन में इस विषय "समय अनुपालन का सरोकार "
पर एक
विचारगोष्ठी भी आयोजित की थी जिसे सभी मित्रों का आशीर्वाद भी मिला था । निष्पक्षता से सोचिए कि हिंदी
अकादमी या
मंडी हाउस के रंगमंचों में कार्यक्रम कैसे ठीक दिए हुए समय पर शुरू हो जाते हैं ? वे लोग भी हमारे जैसे
हैं । जिन
लोगों को मेरी बात अखरे कृपया क्षमा करें । शुभकामनाओं सहित । " मसमसै बेर के नि हुन , बेझिझक गिच
(मुंह) खोलणी
चैनी , अटकि रौ बाट में जो दव, हिम्मत ल उकैं फोड़णी चैनी ।" नक झन मानिया । ( मसमसाने के बजाय मुंह
खोलना चाहिए,
समस्या तो हिम्मत करने से ही दूर होगी । बुरा न मानें ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.08.2019
मीठी मीठी-326: राजधानी में तीलू रौतेली जयंती
08 अगस्त 2019 को राजधानी में वीरांगना तीलू रौतेली की 359वीं जयंती UFNI (उत्तराखंड फिल्म एण्ड नाटक
इंस्टीट्यूट
) द्वारा नई दिल्ली बाल भवन के बाल सभागार में मनाई गई । इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे
जिनमें मुख्य
थे सांसद तीरथ सिंह रावत, ले.जन.( से नि) अरविंद सिंह रावत, कर्नल (से नि) चन्द्र पटवाल, अधिवक्ता संजय
दरामोड़ा,
श्री सच्चिदानंद शर्मा आदि । UFNI द्वारा दिया जाने वाला इस वर्ष का तीलू रोतेली पुरस्कार सामाजिक
क्षेत्र में
अग्रणी हल्द्वानी की सुश्री सुमन अधिकारी को दिया गया । समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी
किया गया ।
इस अवसर पर सांसद तीरथ सिंह रावत, संस्था के संरक्षक के ऐस भंडारी, अध्यक्ष सुश्री संयोगिता ध्यानी और
सचिव सुश्री
सुमित्रा किशोर ने आगंतुकों को संबोधित किया । तीलू रौतेली उत्तराखंड की वह वीरांगना थी जिसने अपने दम
पर सामंती
कुप्रथाओं का सामना किया और वीरगति को प्राप्त हुई । उनका जन्म 8 अगस्त 1661 बताया जाता है । उत्तराखंड
सरकार
द्वारा इस वीरांगना के नाम पर प्रतिवर्ष सरकारी पुरस्कार भी दिए जाते हैं । कार्यक्रम का सफल संचालन
श्री बृजमोहन
शर्मा और सुश्री विजय लक्ष्मी भट्ट ने किया ।
UFNI का प्रतिवर्ष उत्तराखंड की एक महिला को इस तरह पुरस्कृत किया जाना गर्व की बात है । इस तरह के
पुरस्कार से इन
समाजसेवियों को बाल मिलता है जो अपनी सामाजिकता के लिए प्रतिबद्ध हैं । हमें तीलू रौतेली के साथ ही
उत्तराखंड की
सुश्री बिसनी देवी साह, कुंती वर्मा, हंसा धनाई, बेलमती चौहान, गौरादेवी, टिंचरी माई, शिवानी, कुसुम
नौटियाल, हेमा
उनियाल, बछेंद्री पाल, रीना कौशल धर्मशक्तू, मधुमिता बिष्ट आदि जैसी कई नारी शक्तियों को याद स्वत: हो
जाती है जो
आज की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं । इस अवसर पर उत्तराखंड की इन सभी नारी शक्ति का हम आदर के साथ
स्मरण करते
हैं और सुश्री सुमन अधिकारी जी को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं ।
कार्यक्रम अपने निर्धारित समय से आरम्भ नहीं हुआ । विलंब का जो भी कारण हो, हम आयोजकों से विनम्रता से
अपील करना
चाहेंगे कि कार्यक्रम लिखे हुए निर्धारित समय से आरम्भ किए जाने चाहिए ताकि जो लोग लिखे हुए समय से
पहुंचते हैं
उन्हें और विलंब से आने वालों को यह संदेश जाए कि आपने समय का अनुपालन किया । UFNI की पूरी टीम को इस
आयोजन और
सामाजिकता के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
09.08.2019
बिरखांत- 276 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त (शायद आपने भी मनाया होगा ऐसे? यदि नहीं मनाया तो इस बार
सोचिए ।)
कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों में से मात्र छै लोग एकत्र
हुए |
(जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया
| बाकी पद
पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की
तरह रहो
और मर जाओ | यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो
अपने घर,
हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे
और
मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |” सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और
योजना तैयार कर
ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा करने, मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |
स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और
टोली के एक
व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है
| अपनी
श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका
ढूंढ लिया
है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों
को याद
करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर
से आवाज
आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ,
पिंड छुटा इन
कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना
हमारे फंडे
को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल
पड़े ।
खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-देन
वही करते हैं
|” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का
आदमी पर्दे का
कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के
पहचान का
निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला,
“यार हो
सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी
बहरे नहीं
हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी
की हद हो
गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत
करो |
इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |
इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र
मुहल्ले में
बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का
अभाव इस
आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों
की गूंज
‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी |
टोली के छै
व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह
टोली रो रही
थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |
टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”
चनरदा ने
उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित
समय की देरी
से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए |
प्रतियोगिताएं शुरू
हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे |
कुर्सी दौड़
में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो
गया था |
जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |
कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन
लिया | यह
वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं
| उस दिन
मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता
सेनानियों,
शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ
आपके सामने
खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”
समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने
मिलकर इस कमी
को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी
एक गूंज
भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन- धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें
सुनो,
निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत
एक मधुर
स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार
करने वाले,
देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र -प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?”
(आने वाले 15 अगस्त की सभी मित्रों को अग्रिम शुभकामनाएं । )
पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.08.2019
मीठी मीठी - 324 : अलविदा अनुच्छेद 370
अंततः 2014 में किया गया एन डी ए सरकार का वायदा 2019 में पूरा हुआ । कल 05 अगस्त 2019 को भारत के जम्मू
- कश्मीर
राज्य से राज्य को विशेष स्वायतता देने वाला अनुच्छेद 370 की सब धारा (2) और (3 ) को हटाया गया और साथ
ही राज्य का
पुनर्गठन भी किया गया जिसमें जम्मू - कश्मीर को विधान सभा सहित केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और लद्दाख
को बिना
विधान सभा के केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया ।
इससे पहले राज्य के अधिकतर भागों में धारा 144 लगा दी गई और इंटरनेट सेवा भी अवरुद्ध कर दी गई ताकि कोई
अप्रिय
घटना न घटे और कोई कानून - व्यवस्था की समस्या पैदा एन हो । वहां के दो पूर्व मुख्यमंत्री नजरबंद है
इसके साथ ही
27 अक्टूबर 1947 का वह अस्थाई अनुच्छेद पूर्ण रूप से जम्मू कश्मीर से समाप्त हो गया । साथ ही जम्मू -
कश्मीर का
संविधान भी समाप्त हो गया । अनुच्छेद 370 का अंश (1) नहीं हटाया गया । वर्ष 1947 में अनुच्छेद 370 का
विशेष दर्जा
तत्कालीन महाराजा हरिसिंह की मांग पर दिया गया क्योंकि वे इसके बिना भारत में विलय को तैयार नहीं हुए
जबकि
पाकिस्तान महाराजा की कोई भी मांग पूरा करने को तैयार हो गया था ।
अब भारत 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों का गणतंत्र हो जाएगा । राज्य सभा में बिल के पक्ष में
125 और
विपक्ष में 61 वोट पड़े और बिल पास हो गया । विरोधी दलों का मानना है कि उन्हें विश्वास नहीं किया गया ।
एन डी ए
के कुछ सहयोगी दलों ने राज्यसभा से बहिर्गमन किया । आशा की जानी चाहिए कि जम्मू - कश्मीर राज्य के इस
पुनर्गठन से
अब इस क्षेत्र में शांति स्थापित होगी और दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का तीव्र गति से विकास होगा ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
06.08.2019
खरी खरी - 470 : राग 'हिन्दू -मुस्लिम' क्यों और कब तक ?
सब जानते हैं कि विश्व में 56 मुस्लिम देश हैं जिनमें 12 तेल निर्यातक हैं । हम 80% तेल आयात करते हैं ।
हमारी
99.9 मुस्लिम देशों से दोस्ती है । हम इन देशों को कई वस्तुएं निर्यात भी करते हैं । फिर हर बात में
'हिन्दू-
मुस्लिम' राग क्यों ? हमें अब स्वयं सोचना होगा । विश्व में इंडोनेशिया ( जहां पिछले साल पीएम साहब गए
थे ) के बाद
सबसे अधिक मुस्लिम हमारे देश में रहते हैं ।
हमने स्वतंत्रता आंदोलन भी मिलकर लड़ा । हमने रसखान का कृष्ण- प्रेम देखा, मिज़ाइल मैन APJ अब्दुल कलाम का
सपना
देखा, परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) अब्दुल हमीद की अद्भुत वीरता देखी, भारत रत्न बिस्मिल्लाखां की
शहनाई सुनी,
6 भारत रत्न और 1 परमवीर चक्र का राष्ट्र-प्रेम देखा । खेल, व्यापार, सिनेमा, लेखन, कृषि सहित विभिन्न
क्षेत्रों
में अनेकों ऐसे मुस्लिम देखे जिन्होंने भारत के मुकुट पर कई रत्न जड़े ।
समझ में नहीं आता कि वे कौन क्षुद्रबुद्धि लोग हैं जो बात-बात में 'हिन्दू-मुस्लिम' का राग अलाप कर
हमारी गंगा-
जमुनी तहजीब को जख्म देना चाहते हैं, फूलवालों की सैर में रोड़ा अटकना चाहते हैं और इसी राग से आग लगा कर
राजनैतिक
रोटियां सेंकना चाहते हैं । हमारे लिए उन शब्दों का कोई मोल नहीं है जो करनी से मेल नहीं खाते ।
कुछ महीने पहले हमें पीएम साहब ने ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद ) के हामिद की याद दिलाई । हमारे समाज में
गोपाल, हामिद,
रोबर्ट, गुरतेज सहित 11 धर्मों के बच्चे अपने अभिभावकों के संग आपस में मिलजुलकर रहते हैं, पढ़ते -खेलते
हैं ।
हमारी सदियों पुरानी सौहार्द- मोहब्बत की हिलोर कुछ सरारती -असामाजिक तत्वों द्वारा देखी नहीं जा सकती ।
इसलिये वे
हमेशा कुछ न कुछ छिछोरपन करके इसे तोड़ने की फिराक में रहते हैं । इनकी यह बदनीयती कभी भी सफल नहीं होगी
क्योंकि
प्रत्येक भारतीय इनकी मंसा को समझ चुका है । ऐसे दौर हम देखते आये हैं क्योंकि "सदियों रहा है दुश्मन
दौरे जहां
हमारा ।" हमने मिलकर अपना संविधान बनाया है । यह हमारे सामाजिक सौहार्द का सबसे बड़ा ग्रन्थ है जिसका
हमने सम्मान
करना चाहिए और करेंगे भी । "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना , हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा
।" जयहिन्द
।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
05.08.2019
मीठी मीठी - 323 : एक सेवानिवृत टैंक से मुलाकात
उत्तर भारत में भ्रमण के दौरान एक विशेष जगह पर सम्मान के साथ स्थापित भारतीय स्थल सेना के एक सेवानिवृत
टैंक से
बिलकुल नजदीक से मुलाकात हुई । मेरे पूछने पर टैंक ने बताया, "सर सेवानिवृत्ति के बाद इस स्थान पर मैं
बहुत
सम्मानित महसूस कर रहा हूं । दिन भर जो भी देशवासी यहां से गुजरता है, बड़ी गर्मजोशी और गर्व के साथ
मेरी ओर देखता
है । कई लोगों ने तो मेरे अंग - अंग को बड़े सम्मान से स्पर्श किया है, सहलाया है। बच्चे तो कभी कभी
मेरी गोद में
सवार हो जाते हैं ।"
सेवानिवृत टैंक अपनी दास्तान सुनाते गया, " मुझे अपने जीवन पर गर्व है क्योंकि मेरे पूर्वज वर्ष 1948,
1962 और
1965 के सभी युद्धों में लड़े और दुश्मन को छटी का दूध याद दिलाया । मैं 1971 के युद्ध में अपने साथियों
के साथ
पश्चिमी सीमा पर लड़ा और दुश्मन को नेस्तोनाबूद किया । आज भी मेरे वंशज बड़ी मजबूती के साथ देश की
सीमाओं पर डटे
हैं । हमारी हिम्मत, मजबूती, जोश और युद्ध प्रवीणता को देखकर कोई भी दुश्मन हमारी ओर आंख उठाकर नहीं देख
सकता ।
अपनी भारतभूमि की सेवा करने के लिए मैं स्वयं को धन्य समझता हूं । जयहिंद ।" इस अमर सेनानी सेवानिवृत
टैंक को सलूट
करते हुए मैं अपने गंतव्य की ओर निकल गया ।
03.08.2019
खरी खरी - 469 : एक महिला ऐसी भी
फूलन देवी ( जिसे दस्यु सुंदरी भी कहा गया और जिस पर 'बैंडिट क्वीन' फ़िल्म भी बनी ) की जिंदगी में जो
बीता और वह
दस्यु नारी क्यों बनी इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं । 10 साल की फूलन का 40 साल के व्यक्ति से विवाह
कितना
अनैतिक है इसे समझा जा सकता है । वह भागी और डाकुओं द्वारा अगवा कर ली गई । विक्रम मल्लाह से दोस्ती कर
उसने बंदूक
चलानी सीखी । प्रतिशोध की ज्वाला में दहकती फूलन ने 58 दलितों की मौत का बदला बेहमई में 22 सवर्णों को
मार कर लिया
फिर 11 वर्ष बिना ट्रायल के जेल काटी ।
मिर्जापुर से वह सांसद बनी और सुरक्षा के बीच भी 26 जुलाई 2001 को फूलन की हत्या कर दी गई । फूलन के
संघर्ष पर यदि
ईमानदारी से दृष्टि डाली जाए तो वह दलित महिला शोषण के विरुद्ध आवाज उठाती रही ।क्राइम ब्यूरो के अनुसार
आज भी
प्रतिदिन 6 दलित महिलाओं का यौन उत्पीड़न होता है । दलित महिलाओं को फूलन का संघर्ष स्मरण करते हुए उन
लोगों से
अहिंसक संघर्ष करना चाहिए जो आज भी किसी न किसी बहाने उनका शारीरिक शोषण करते हैं औऱ उन्हें कुएं तथा
मंदिर प्रवेश
से वंचित रखते हैं । तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो दलित बच्चियों और महिलाओं में अशिक्षा एवं गरीबी
बहुत अधिक
है जिस पर सरकारों को अवश्य मंथन करना होगा ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
04.08.2019
बिरखांत -275 : यै हुणि ‘इज्जत लुटिगे’ नि कौ
हमर समाज में नरपिसाचों कि संख्या दिनोदिन बढ़नै जांरै | उनुकैं सजा या क़ानून क डर न्हैति | नानि गुड़िय
जसि भौ बटि
बुढी स्यैणि तक इनरि करतूत क शिकार बनै रईं | बलात्कार क रोजाना नईं कांडों ल हैवानियत लै शर्मसार हैगे
| रात छोड़ो
दिन में लै स्यैणि- जात सुरक्षित न्हैति | दुष्कर्मी बेखौप घुमें रईं | यूं वहशियों क आपण क्वे
नात-रिश्त नि हुन |
यूं नरपिसाच देखण में आम मैंसों जास देखिंनी जो आपण लोगोंक बीच में लै हुनी पर इनरि पछ्याण करण भौत
मुश्किल हिंछ |
बलात्कारक मर्ज नरपिसाचों कि हैवानियत ग्रस्त लाइलाज बीमारी छ तबै त यूं एक छोटि गुड़ी जसि भौ बटि अस्सी
वर्ष कि
बुढ़िय तक कैं आपण शिकार बनै दिनी |
आज हम सद्म में छ्यूं, हम दुखित छ्यूं, हम डर ल कापैं रयूं क्यलै कि हमार इर्द- गिर्द रोज बलात्कार कि
घृणित घटना
होतै जां रईं जनूं में दस घटनाओं में बै केवल एक ही घटना कि रिपोट पुलिस तक पुजीं | समाज विज्ञानियोंक
मानण छ कि
90% रेप केस पुलिस अविश्सनियता, न्याय में देरी और सामाजिक सोच (सोसियल स्टिग्मा) क कारण चुपचाप घुटन
में छटपटानै
हरै जानीं | देश कैं 2005 क दिल्ली गेट रेप काण्ड, 2010 क दिल्ली धौलाकुआ दुष्कर्म केस, 2012 क दिल्ली
निर्भया
हैवानियत काण्ड, य बीच अणगणत रेप कांडों और 29 जुलाई 2016 क बुलंदशहर हाइवे रेप- लूट काण्ड ल और मई 2017
क उन्नाव
रेप कांड ल देश कैं दहलै बेर धरि दे | उन्नाव रेप कांड पर 1अगस्त 2019 हुणि सर्वोच्च न्यायालय क दखल क
बाद रोजाना
सुनवाई दिल्ली में व्हलि ।
दिनोदिन बढ़णी रेप केसों क मध्यनजर पुलिस या क़ानून कि तरफ देखि बेर दुःख और निराशा हिंछ | बताई जांरौ कि
29 जुलाई
2016 की रात जो हाइवे पर य घृणित कुकृत्य हौछ उ रात पुलिस रजिस्टर में उ क्षेत्र में छै पीसीआर वाहन
ड्यूटी पर छी
| अगर यूं वाहन ड्यूटी पर हुना तो यसि जघन्य बारदात नि हुनि | नरपिसाचों कैं पुलिस क रवइय और अकर्मण्यता
क पत्त
हुंछ तबै ऊँ बेडर है बेर यस संगीन अपराध करनीं | पत्त नै य हमरि कुम्भकरणी नींन में स्येती पुलिस कब
जागलि ? चाहे
ज्ये लै कारण हो हमार देश में न्याय में देरी लै एक अभिशाप छ | दिसंबर 2012 क निर्भयाकांड क 7 वर्ष बितण
बाद लै उ
काण्ड में लिप्त नरपिसाच सजा मिली बाद लै फांसी पर नि चढ़ि राय | कभैं अपील, कभैं दुबार उखेलापुखेल, कभैं
लूपहोल क
लाभ ल्हीनै न्याय मिलण में देरी होतै जींछ | निर्भया ल 29 दिसंबर 2012 हुणि तड़पि- तड़पि बेर दम तोड़ दे पर
वीकि
आत्मा कि आवाज आज लै हमार कानों में गूंजीं, मानो उ हमूं हैं पूछें रै, “कभणि मिललि ऊँ दरिंदों कैं
फांसि ? कभणि
मिलल मीकैं न्याय ?”
बलात्कार कि शिकार स्यैणि- जात क असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ है मुक्ति मिलण भौत कठिन छ | यै है लै
ठुल छ
सामाजिक पीड़ क दंश | हमार समाज में क्वे ले स्यैणि या नानि दगै यसि घटना हुण पर ‘इज्जत लुटिगे’ कै दिनी
जो भौत गलत
बात छ और शर्मनाक छ | य सामाजिक दंश कि पीड़ यतू भयानक और अकल्पनीय छ कि कएक पीड़ित त आपणी कपोघात
(आत्म-हत्या) तक
कर ल्हीनी | य ठीक बात न्हैति | यस नि हुण चैन | य समाज क लिजी भौत शर्म कि बात छ | पीड़ित क यै में क्ये
लै दोष नि
हय फिर उ आपूं कैं सजा क्यलै द्यो ? अगर उ टैम पर उ य दंश क सद्म है उबरि जो तो उ आत्म- हत्या है बचि
सकीं | उ बखत
उकैं सामाजिक, डाकटरी और मनोवैज्ञानिक उपचार कि भौत ज्यादै जरवत हिंछ |
दुष्कर्म पीड़िता कैं य सोचि बेर हिम्मत बादण पड़लि कि उ आपूं कैं क्ये लिजी सजा द्यो ? वील त क्वे कसूर
नि कर और न
वीक क्ये दोष | सिर्फ स्यैणि -जात हुण क कारण वीक शिकार हौछ | उकैं खुद आपूं कैं समझूण पड़ल कि उ एक
नरपिसाच रूपी
भेड़िये कि शिकार बनीं | उकैं आपणि पीड़ कैं सहन करनै, टुटि हुयी मनोबल कैं दुबार जगूण पड़ल और नरपिसाचों
कैं सजा
दिलूण में क़ानून कि मदद करण पड़लि जो बिना वीक सहयोग दिए संभव नि है सका | उसी लै जंगली जानवरों द्वारा
बुकाई जाण
पर हम इलाजै करनू | हादसा समझि बेर य घटना कैं भुलण क दगाड़ यूं भेड़ियों क आक्रमण है बचण क हुनर लै आब
हरेक स्यैणि
कैं सिखण पड़ल और हर कदम पर आपणि चौकसी खुद करण पड़लि |
बलात्कारियों कैं जल्दि है जल्दि कठोर दंड मिलो, य पीड़ित कि पीड़ कैं कम करण में एक मलम क काम करल | आब
टैम ऐगो जब
समाज क बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म- गुरुओं, पत्रकार- लेखकों, सामाजिक चिंतकों और महिला संगठनों कैं
जोर-शोर ल
य कौण पड़ल कि यै हुणि ‘इज्जत लुटिगे’ या ‘इज्जत तार तार हैगे’ जसि बात नि समझी जो और नि कई जो | यूं
शब्दों है
मीडिया- टी वी चैनलों कैं लै परहेज करण पड़ल ताकि पीड़ और निराशा में डूबी हुई पीड़ित कैं ज्यौन रौण बाट
मिलि सको |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.08.2019
तुम मुझे भुला न पाओगे,क्या . . .
T700.तुम मुझे भुला न पाओगे,क्या हुआ तेरा वादा,नफरत की दुनिया को,जैसे हजारों गीत गायक मो.रफी की आज
पुण्य तिथि ।
विनम्र श्रद्धांजलि।
खरी खरी - 468 : कटु सत्य : राम और रावण
यदि आप रास्ते में चल रहे हैं और आपको वहां पड़ी हुई राम जी की और रावण की दो मूर्तियां मिले और आपको एक
मूर्ति
उठाने का कहा जाए तो अवश्य आप राम की मूर्ति उठा कर घर ले जाओगे क्योंकि राम सत्य, निष्ठा, मर्यादा,
कर्म और
सकारात्मकता के प्रतिक है और रावण छल - कपट और नकारात्मकता का प्रतिक है ।
अगली बार आप फिर से उसी रास्ते पर चल रहे हों और रास्ते में पड़ी हुई राम जी और रावण की दो मूर्तियां
मिल जाएं
जिनमें राम की मूर्ति पत्थर की हो और रावण की सोने की हो और आपसे एक मूर्ति उठाने को कहा जाए तो आप राम
जी की
मूर्ति छोड़ कर रावण की सोने की मूर्ति ही उठाएंगे । (अपवाद को छोड़कर ) । इसका अर्थ हुआ कि हम सत्य और
असत्य,
सकारात्मक और नकारात्मक अपनी सुविधा और लाभ के अनुसार तय करते हैं ।
एक कटु सत्य यह भी है कि 99% प्रतिशत लोग भगवान को सिर्फ अपने लाभ और डर की वजह से पूजते है । आज तक
किसी ने नहीं
कहा कि है भगवान तेरा भला हो । जब भी भगवान की पूजा होती है कुछ न कुछ मांग भगवान के सम्मुख रख दी जाती
है । कई
बार तो भगवान के सामने शर्त रखी जाती है कि हे भगवान मेरा अमुक काम बन जाएगा तो तुझे प्रसाद चढ़ाऊंगा ।
मन्नत भी
इसी क्रिया का अंश है । स्वयं से सवाल पूछने की जरूरत तो है । ( लेख के कुछ अंश सोसल मीडिया से साभार
संपादित हैं
। )
पूरन चन्द्र कांडपाल
01.08.2019
अवॉर्ड वापसी
T698.अब अवॉर्ड वापसी.2 और अवॉर्ड जिज्ञासी.2 में बुद्धिजीवी शीत युद्ध टालना असंभव है ।फिलहाल 49 vs 62
की
हल्लाबोल चहलकदमी चल पड़ी।
मीठी मीठी - 322 : दो डिप्टी कलेक्टरों की मिसाल
हम समय समय पर सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा सुधारने के लिए जन जागृति करते रहते हैं । इसी संदर्भ में
कई बार
लिखा कि
जब तक सरकारी अफसर, कर्मचारी और राजनीतिज्ञ अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश नहीं कराते तबतक इन
स्कूलों का
सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता । सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाने चाहिए और कानून को दृढ़ता से लागू
करना चाहिए ।
30 जुलाई 2019 के एक समाचारपत्र के अनुसार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कार्यरत दो डिप्टी कलेक्टरों
ने अपने
बच्चों
को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया है । इनमें एक D C की पत्नी तो एक स्कूल में कुछ घंटे निःशुल्क
कक्षाएं भी
लेतीं हैं
। इनका मानना है कि सरकारी और निजी स्कूलों में कोई अधिक अंतर नहीं है और इस अंतर को समाप्त किया जा
सकता है ।
अतः सरकार को सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा यदि ईमानदारी से सुधारनी है तो सभी सरकारी वेतन भोगियों और
चुने हुए
जनप्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना अनिवार्य किया जाय । यह शिक्षा के क्षेत्र
में उठाया
जाने
वाला अभूतपूर्व कदम होगा । आशावाद जिंदाबाद !
पूरन चन्द्र कांडपाल
31.07.2019
खरी खरी - 467 : कुकृत्य की सजा-ए-मौत में रुकावट क्यों ?
दुष्कर्म (रेप) ने हमारे देश में अब एक समस्या का रूप ले लिया है । 95% आरोपी तो पीड़िता के रिश्तेदार,
पड़ोसी,
सहपाठी,
सहकर्मी या पहचान वाले होते हैं । अब किस पर भरोसा करें । आज हम उस दौर से गुजर रहे हैं जब नारी वर्ग को
हर किसी
भी
पुरुष को संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए कि वह उसके लिए कभी भी घातक हो सकता है ।
अधिक दुःखद तो तब होता है जब ये नरपिशाच दुधमुंही बच्चियों को इस कुकृत्य का शिकार बनाते हैं । कुछ दिन
पहले इंदौर
में
एक 26 वर्षीय नरपिशाच ने एक 4 माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी । यह नरपिशाच उस
बच्ची के
परिजनों को
जानता था ।
वारदात के 22 दिन बाद 12 मई 2018 को इंदौर की जिला अदालत ने इस नरपिशाच हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई
है । मानवता
को
शर्मसार करने वाले इस कांड में पुलिस ने बड़ी तेजी से जांच पूरी की और आरोप पत्र अदालत में पेश कर दिया ।
न्यायालय
ने
अपने 51 पृष्ठ के फैसले में इसे जघन्य, वीभत्स, क्रूर और जंगली कृत्य बताते हुए आरोपी को मृत्युदंड दिया
। अब आगे
भी इस
कांड पर द्रुत कार्यवाही हो और सजा का क्रियान्वयन शीघ्रता से हो । 7 वर्ष हो गए हैं 2012 के निर्भया
कांड के दोषी
अभी
भी जिंदा हैं । अदालत का फैसला तो मात्र 22 दिन में आ गया, अब देखते हैं कि इंदौर के इस बालात्कारी
हत्यारे को कब
फांसी
पर लटकाया जाता है ?
देश में यौन उत्पीड़न में मृत्युदंड पाए एक बलात्कारी हत्यारे जिंदा हैं । एक सर्वे के अनुसार देश में हर
तीन में
से एक
किशोरी सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को लेकर चिंतित रहती है जबकि 5 में से एक किशोरी बलात्कार सहित
अन्य
शारीरिक
हमलों को लेकर डर के साये में जीती है । वर्तमान में नारी यौन उत्पीड़न में देश का बहुत बुरा हाल है ।
देश की 40% लड़कियों को लगता है कि पुलिस उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लेगी या उल्टे उन पर ही आरोप
लगाएगी । 25%
लड़कियों को लगता है कि उनका कभी भी शारीरिक शोषण और बलात्कार हो सकता है । इस तरह का डर प्रत्येक लड़की
के मन में
चौबीसों घण्टे मौजूद रहता है । इस भयावह स्तिथि के लिए हम सब जिम्मेदार हैं क्योंकि इस अपराध को करने
वाला कोई
पुरूष ही
तो है । अपनी बेटियों की इस भयावह हालत की चर्चा हम अपने बेटों से तो कर ही सकते हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
30.07.2019
मीठी मीठी - 320 : हमरि भाषा सिखलाई आयोजन प्रताप विहार, खोड़ा कालोनी ।
बेई 28 जुलाई 2019 हुणि डी ब्लाक प्रताप विहार, खोड़ा कालोनी, गाजियाबाद उ प्र में हमरि भाषा सिखलाई
कक्षाओं
क
समापन
हौछ । य आयोजन श्री मनोहरदत्त देवतल्ला ज्यू कि टीम ल आयोजित करौ जैक संयोजक लै देवतल्ला ज्यूु छी ।
कार्यक्रम में
नना
ल कुमाउनी और गढ़वाली भाषा में जे लै सिखौ वीक बार में बारि - बारि कै बता । नना ल सांस्कृतिक कार्यक्रम
लै
पेश
करौ । य
आयोजन कैं सफल बनूण में महिला शक्ति क लै भल सहयोग रौछ । आयोजन में 40 नना कैं "हमरि भाषा हमरि पछयाण "
किताब टीम
द्वारा भेंट करिगे । नना कैं अन्य इनाम लै देई गईं । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ विनोद बछेती ( चेयर
मैन
डीपीएमआइ )
छी । य सफल आयोजन क मंच संचालन कुमाउनी कवि श्री ओम प्रकाश आर्या ज्यू ल करौ ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
29.07.2019